दिल्ली के शाहपुर जाट इलाके की पतली गलियों में, एक पुरानी इमारत की तीसरी मंज़िल पर अवनि शर्मा ने हाल ही में किराए पर एक फ्लैट लिया था। मकान मालिक ने कहा था, “थोड़ा पुराना है, मगर शांत इलाका है।” अवनि को यही चाहिए था—शांति। एकाकी ज़िंदगी, कॉफी मग में भाप लेती शामें, लैपटॉप पर काम और दीवार पर टँगी किताबों की अलमारियाँ। वह एक डिजिटल मीडिया एडिटर थी और ज़्यादातर वक़्त घर से ही काम करती थी। फ्लैट छोटा था लेकिन खुला-खुला, जिसकी बालकनी से हौज खास के पुराने गुंबद दिखाई देते थे। मगर पहले ही दिन जब वह…
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शिवांगी वर्मा सूर्य अस्त होते-होते बनारस की गलियों में साँझ की परछाइयाँ उतरने लगी थीं, और अस्सी घाट की सीढ़ियाँ रोज़ की तरह शांत और उदास थीं। गंगा की लहरों में हल्की-सी चांदी की चमक थी, लेकिन उस शाम घाट पर कुछ अजीब-सा सन्नाटा पसरा था। स्थानीय नाविक सोमू जब पानी से लौट रहा था, तभी उसने घाट के तीसरे पत्थर पर एक अधेड़ उम्र के आदमी को पड़ा देखा—गर्दन झुकी हुई, आँखें खुली पर निष्प्राण, गले में तुलसी की माला, और हाथ में एक फटा हुआ कागज़ जिसमें कोई संस्कृत श्लोक लिखा हुआ था। “श्रीमान जी…?” सोमू ने डरते…