• Hindi - रहस्य कहानियाँ

    सन्नाटे की दीवारें

    कुणाल राठौर एपिसोड 1 : तहखाने की खिड़की रात ढाई बजे दिल्ली की हवा भारी थी। डिफेंस कॉलोनी की पुरानी कोठी—डी-17—के बाहर पुलिस की पीली पट्टी लगी थी। भीतर कदम रखते ही रिपोर्टर नैना त्रिपाठी को महसूस हुआ मानो दीवारें खुद साँस ले रही हों। बरामदे में एक परिचित चेहरा दिखा—राघव मेहरा, क्राइम ब्रांच के रिटायर्ड अफ़सर। हाथ में टॉर्च, आँखों में वही पुराना धैर्य। “आप यहाँ?” नैना ने पूछा। “आवाज़ सुनकर आया। और यह केस मुझे पुकार रहा था।” स्ट्रेचर पर लेटा मृतक था—आईएएस अफ़सर अरविंद कश्यप। चेहरे पर नीली झलक और कमरे में हल्की बादाम जैसी गंध। नैना…

  • Hindi - क्राइम कहानियाँ

    काशी की अधूरी लाशें

    अभय वशिष्ठ अध्याय १ वाराणसी की सुबहें अक्सर गंगा आरती की गूंज, शंखनाद और मंत्रोच्चार से जीवंत हो उठती हैं, लेकिन इन दिनों घाटों पर एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था। गंगा के किनारे बहती ठंडी हवा भी अब लोगों के दिलों को सुकून नहीं दे रही थी, क्योंकि लगातार कुछ दिनों से घाटों पर अधजली लाशें मिलने लगी थीं। काशी जैसे पवित्र नगर में, जहां मृत्यु को भी मोक्ष का द्वार माना जाता है, वहां अधजले शवों का यूं ही पड़े रहना एक असामान्य और भयावह दृश्य था। दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट और हरिश्चंद्र घाट—जहां हर रोज सैकड़ों…

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    नकाबपोश राघव अग्रवाल

    राघव अग्रवाल अध्याय 1: पहला पर्दा गिरा मुंबई के कोलाबा स्थित प्रसिद्ध रंगमंच “रंगदीप” की दीवारों पर हल्की सी सीलन की परत थी, पर भीतर माहौल हमेशा जीवंत और रचनाशील रहता था। उस शाम भी, मंच पर एक नया नाटक “अंधेरे के चेहरे” का अभ्यास चल रहा था। लेकिन इस बार, मंच पर सिर्फ अभिनय नहीं, असली मौत भी छिपी थी। जैसे ही अंतिम दृश्य के संवाद गूंजे और रोशनी मद्धम हुई, प्रकाश लौटने पर दृश्य ठहर गया—कलाकार विवेक माथुर, जो नाटक का मुख्य पात्र था, स्टेज पर लुढ़का पड़ा था। पहले तो सबने सोचा ये प्रदर्शन का हिस्सा है, लेकिन…

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    शिवमंदिर के पीछे

    शिवानंद पाठक कोल्हापुर की घाटियों से गुजरती जीप धूल उड़ाते हुए चिखली गाँव की सीमा में प्रवेश कर रही थी। जीप में बैठे वेदांत त्रिपाठी खिड़की से बाहर झाँकते हुए मंदिर की मीनार की झलक पकड़ने की कोशिश कर रहे थे। वे भारत सरकार के पुरातत्व विभाग से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी थे और इस अभियान के मुख्य अन्वेषक भी। चिखली जैसे दूरदराज़ गाँवों में आना उनकी रिसर्च का हिस्सा नहीं, बल्कि जुनून था। उनके साथ बैठी थीं रुचिका देशमुख, एक दक्ष रिसर्च एनालिस्ट, जो कोल्हापुर से ही ताल्लुक रखती थीं। उनके हाथ में मंदिर के नक्शे और एक पुरानी पांडुलिपि…