आकाश कुमार १ काठगोदाम का स्टेशन, अपनी पुरानी ईंटों और हल्की सी धुंध में ढकी हुई चाय की खुशबू के साथ, हमेशा की तरह व्यस्त था। ट्रेन का हौला सा ब्रेक, धूल भरी हवा में घुलते ध्वनियों के साथ स्टेशन की पटरियों पर गूँज रहा था। बरसों बाद वही लोग, जिनकी दोस्ती कॉलेज की गलियों में पली-बढ़ी थी, अब अलग-अलग शहरों और ज़िंदगियों की भागमभाग के बीच फिर एक बार मिलने आए थे। अभिषेक, जो अब अपने करियर में व्यस्त और गंभीर हो गया था, स्टेशन की भीड़ में अपनी पुरानी यादों को ताज़ा करता हुआ खड़ा था। उसका मन…
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वेदिका शर्मा बमुश्किल शाम के साढ़े सात बजे होंगे जब आयरा सेन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुँची। प्लेटफॉर्म पर हलचल थी, लेकिन वह खुद किसी दूसरी लय में थी—धीमी, शांत और थोड़ी खोई हुई। पीठ पर कैमरा बैग और हाथ में एक काले रंग की डायरी थामे वो आगे बढ़ रही थी, जैसे किसी दृश्य को नहीं, बल्कि किसी याद को पकड़ना चाहती हो। उसकी ट्रेन—काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस—रात 8:00 बजे रवाना होने वाली थी। वह S3 कोच तक पहुँची और अपनी खिड़की वाली सीट पर बैठ गई। खिड़की का शीशा टूटा हुआ था, लेकिन उसे कोई शिकायत नहीं थी।…
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रीनी शर्मा दिल्ली का जनवरी महीने का मौसम था। हल्की ठंड, कोहरे की चादर और भीड़-भाड़ से भरी सड़कें। हर इंसान जैसे किसी अदृश्य घड़ी की सुई के पीछे दौड़ रहा था—बिना रुके, बिना पूछे कि ये दौड़ किसके लिए है? इन्हीं लाखों चेहरों में एक चेहरा था अर्जुन मेहरा का—32 वर्षीय, सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाला एक सामान्य कर्मचारी। हाइट 5’10”, छरहरा शरीर, हल्की दाढ़ी, आँखों में थकान और मन में एक स्थायी बेचैनी। हर दिन उसकी ज़िंदगी का रूटीन घड़ी की सुई से बंधा था—सुबह 7 बजे उठना, 8 बजे मेट्रो पकड़ना, 9 बजे ऑफिस पहुँचना, 12…