तृषा तनेजा १ धुंध से भरी उस सुबह में, पहाड़ों का रंग नीला नहीं था—वह कुछ धुंधला, कुछ राखी था, जैसे नींद से आधे जागे किसी ख्वाब के किनारे खड़े हों। चित्रधारा नामक इस छोटे से पहाड़ी कस्बे में पहली बार कदम रखते ही दक्ष सहगल को लगा मानो किसी भूली हुई याद की गलियों में लौट आया हो। स्टेशन से लेकर गांव के ऊपरी छोर तक पहुँचने वाली पतली पगडंडी के दोनों ओर देवदार के ऊँचे वृक्ष उसकी यात्रा के साथी बने हुए थे। उसके ट्रैवल बैग से लटकता कैमरा हर छाया को पकड़ने को उतावला था, पर उसके…
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नील मेहता मुंबई की उस सुबह में कुछ अलग था — जैसे भीड़ में भी एक ठहराव था, शोर में भी एक खामोशी छिपी हुई थी। राहुल ने खिड़की की परतों से आती धूप को चेहरे पर महसूस करते हुए अपनी आंखें खोलीं। नया अपार्टमेंट, नया बिस्तर, और एक अजनबी सी खामोशी। शहर तो वही था, लेकिन यह इलाका और यह इमारत उसके लिए नई थी। ऑफिस के काम ने उसे यहां खींच तो लाया था, लेकिन अब वह खुद से पूछने लगा था — क्या भागदौड़ ही सब कुछ है? वो बाथरूम से निकलते ही सीधे बालकनी की ओर…