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    रात की रौशनी में तुम

    तृषा तनेजा १ धुंध से भरी उस सुबह में, पहाड़ों का रंग नीला नहीं था—वह कुछ धुंधला, कुछ राखी था, जैसे नींद से आधे जागे किसी ख्वाब के किनारे खड़े हों। चित्रधारा नामक इस छोटे से पहाड़ी कस्बे में पहली बार कदम रखते ही दक्ष सहगल को लगा मानो किसी भूली हुई याद की गलियों में लौट आया हो। स्टेशन से लेकर गांव के ऊपरी छोर तक पहुँचने वाली पतली पगडंडी के दोनों ओर देवदार के ऊँचे वृक्ष उसकी यात्रा के साथी बने हुए थे। उसके ट्रैवल बैग से लटकता कैमरा हर छाया को पकड़ने को उतावला था, पर उसके…