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    कुरकुरे और कविता

    अभिराज गुप्ता भोपाल की कोचिंग स्ट्रीट पर शाम ढलते ही भीड़ उमड़ने लगती है। सड़क के दोनों ओर कतार से लगे कोचिंग सेंटर्स से थके हुए छात्रों की भीड़ निकलती है, हाथों में बैग, आंखों में अधपकी नींद और मन में परीक्षा की चिंता। इन्हीं में एक लड़का हर शाम बिना चूके ठेले की एक विशेष गंध की तरफ खिंचता चला आता है। उसका नाम है वेदांत शर्मा। ग्वालियर से आया है, और कोचिंग के इस शहर में अपना इंजीनियरिंग का सपना लिए भटक रहा है। बाकी लड़कों से कुछ अलग है—भीड़ में होते हुए भी अलग-थलग, बातों में नहीं…