• Hindi - प्रेतकथा - रहस्य कहानियाँ

    कालका मंदिर का रहस्य

    अर्पण शुक्ला अध्याय की शुरुआत गर्म, सुनहरे रेगिस्तान की छवि से होती है, जहाँ सूरज की तेज़ किरणें रेत की लहरों पर चमकती हैं। आर्यन, सायली, करण और निधि, चार कॉलेज के दोस्त, अपनी बैकपैक में जरूरी सामान पैक कर, राजस्थान की असीमित रेगिस्तानी भूमि की ओर निकलते हैं। हर कोई इस यात्रा को लेकर उत्साहित और थोड़ा नर्वस महसूस कर रहा था, क्योंकि उनकी योजना सिर्फ पर्यटन या तस्वीरें लेने तक सीमित नहीं थी; उनका उद्देश्य प्राचीन स्थलों, भूतपूर्व किलों, और लोककथाओं में गहराई से उतरना था। कार की खिड़की से बहती हवा उनके चेहरे को छू रही थी,…

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    बरगद का वादा

    १ गाँव से ज़रा हटकर, कच्ची पगडंडी के किनारे, खेतों और बंजर ज़मीन के बीच खड़ा था एक विशाल बरगद का पेड़। उसकी जटाएँ धरती से लटककर साँपों की तरह रेंगती थीं और उसका फैलाव इतना था कि बरसात के दिनों में आधा गाँव उसकी छाँव में आ सकता था। लेकिन यह छाँव गाँववालों के लिए सुकून नहीं, बल्कि डर का पर्याय थी। पेड़ के चारों ओर का इलाक़ा वीरान और सुनसान पड़ा रहता; न कोई पशु पास आता, न कोई इंसान। कहते थे कि बरगद के पत्तों की सरसराहट भी आम हवा की तरह नहीं, बल्कि किसी की फुसफुसाहट…

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    पाँचवां कमरा

    कृष्णा तामसी १ चारों तरफ बर्फ की सफेद चादरें बिछी थीं और हरे देवदार के पेड़ जैसे किसी पुराने रहस्य को छिपाए खड़े थे। आरव मल्होत्रा की जीप धीरे-धीरे घने कोहरे को चीरती हुई हिमाचल के दुर्गम पहाड़ी रास्तों से गुजर रही थी। मोबाइल नेटवर्क कब का गायब हो चुका था और जीपीएस भी मानो बर्फ में जम चुका था। ड्राइवर संजय, जो गांव का ही था, बिना कुछ कहे बस गाड़ी चलाता जा रहा था। आरव अपने कैमरे से बर्फबारी की फुटेज लेने में मग्न था, जब उसने अचानक पूछा, “संजय भाई, कितनी दूर है वो गेस्ट हाउस?” संजय…

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    कंचनपुर की पिशाचनी

    शैलेश पटनायक १ बिहार के सुपौल जिले के पूर्वी छोर पर बसा था कंचनपुर गांव — खेतों और तालाबों के बीच झूमता हुआ एक शांत पर रहस्यमय संसार। दोपहर की गर्मी ढल रही थी जब नीलोत्पल मिश्रा और उसकी नवविवाहिता पत्नी संध्या, गांव की कच्ची सड़कों से गुजरते हुए अपने पुश्तैनी मकान के सामने पहुंचे। पुराने समय की लाली पुती दीवारें, टीन की छत और आंगन में खड़े आम और नीम के पेड़ गांव के परिवेश की आत्मा को जीवंत बनाए हुए थे। संध्या ने पहली बार इस मिट्टी की गंध को महसूस किया — नम, सोंधी, और किसी अनजाने…

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    पैतालगाँव की पुकार

    सौरभ ठाकुर १ छत्तीसगढ़ की पहाड़ियों और जंगलों के बीच बसे अनछुए रास्तों पर अनिरुद्ध घोष की जीप धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। मौसम अजीब रूप से ठहरा हुआ था — न हवा, न चिड़ियों की चहचहाहट, बस पेड़ों की लंबी छायाएँ और कभी-कभी टायरों के नीचे कुचले पत्तों की आवाज़। अनिरुद्ध, जो कोलकाता का एक खोजी पत्रकार था, ऐसे ही अनजाने, लगभग भूले-बिसरे गाँवों की लोककथाओं और अंधविश्वासों पर रिपोर्टिंग करता था। इस बार उसे एक गुमनाम ईमेल के ज़रिए पैतालगाँव के बारे में पता चला था — “हर तीसरी रात, यहाँ कोई न कोई गायब हो जाता है……

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    पिंजरे की लड़की

    तृषा मिश्रा १ दिल्ली की भीड़भाड़ और धूल-धक्कड़ भरी गलियों से निकलकर जब डॉ. वेदिका माथुर उत्तर प्रदेश के उस सुदूर गाँव ‘बड़ागाँव’ पहुँची, तो सुबह के आठ बजे थे। बस स्टैंड पर बस ने झटके से ब्रेक लगाया था और साथ बैठे ग्रामीणों की बातचीत एक पल को थम गई थी। हाथ में जंग खाया लोहे का सूटकेस और कंधे पर लैपटॉप बैग लटकाए वेदिका जब उतरी, तो गाँव की गलियों ने उसका स्वागत सन्नाटे से किया। उसका उद्देश्य सीधा था—इस गाँव के मंदिर के पास रखे लोहे के एक रहस्यमयी पिंजरे के बारे में जानना, जिसके बारे में…

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    मृगतृष्णा

    निखिल देसाई १ कच्छ के सफेद रेगिस्तान में जब सूर्य ढलता है, तो आकाश किसी सूती कपड़े पर फैले सिंदूरी रंग-सा लगता है। ध्रुव पटेल ने कैमरे की लेंस से उस दृश्य को कैद करते हुए गहरी साँस ली। “WanderSoul.in” पर पोस्ट होने वाली यह उसकी अगली कहानी थी, और वह चाहता था कि यह कुछ अलग हो—कुछ ऐसा जो पाठकों को रेगिस्तान की गंध, उसके रंग और उसकी नीरवता तक पहुँचा दे। अहमदाबाद से आए हुए उसे तीन दिन हो चुके थे और रण उत्सव की भीड़-भाड़ से दूर वह भुज से लगभग सत्तर किलोमीटर दूर एक गांव, खुदर…

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    अनुपमा

    १ रात का अंधेरा कुछ ज़्यादा ही घना था जब डॉक्टर रुचिका सावंत अपनी कार लेकर पुणे-मुंबई एक्सप्रेसवे पर निकल पड़ी। अस्पताल की ड्यूटी से छूटकर वो देर हो गई थी, और रात के ग्यारह बज चुके थे। उसके पास और कोई विकल्प नहीं था—अगले दिन एक जरूरी ऑपरेशन था, और वो चाहती थी कि रात में घर पहुँचकर थोड़ी देर माँ के हाथ का बना खाना खा ले और फिर आराम से नींद ले। उसका मन शांत नहीं था—वो खुद को थका हुआ महसूस कर रही थी, और ड्राइविंग में उसका ध्यान कम ही था। एक्सप्रेसवे के आसपास कोई…

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    अंतिम आरती

    हिमाचल की घाटियों में दिसंबर की रातें कुछ अलग ही किस्म की सन्नाटे से भरी होती हैं। हवा में बर्फ़ की गंध, पेड़ों पर जमीं सफेद चादर, और दूर कहीं से आती घंटियों की हल्की गूंज जैसे समय को रोक देती है। उन्हीं घाटियों में, देवदार के पेड़ों से घिरे एक पहाड़ी ढलान पर खड़ा है सेंट जोसेफ चर्च — एक पुराना, पत्थर का बना हुआ गिरिजाघर, जिसकी दीवारों में वक्त की सीलन और रहस्य दोनों बसे हैं। क्रिसमस के एक सप्ताह पहले की सुबह, जब गांव के लोग अपने घरों में लकड़ी जलाकर खुद को गर्म रखने में लगे…

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    पंचम गली की आत्मा

    नवनीत मिश्रा बनारस के घाटों से दूर, पुराने शहर के भीतर एक मुड़ी-तुड़ी सी गलियों की भूलभुलैया में बसी थी पंचम गली — एक ऐसी जगह जो शहर के नक्शे में शायद दर्ज भी न हो, पर लोगों की यादों में सदी भर की कहानियाँ समेटे जीवित थी। यहीं पोस्टिंग हुई थी सब-इंस्पेक्टर अर्पित चौधरी की। अपने कंधों पर सख्त बूटों की टकटक, आँखों में यकीन और जेब में पिता का पुराना कम्पास लिए, अर्पित ने पहली बार उस गली में कदम रखा था जब दिन उतरकर संध्या की बाँहों में समा चुका था। गली की हवा में एक अजीब…