• Hindi - यात्रा-वृत्तांत

    लद्दाख की वो आखिरी चाय

    विशाल सक्सेना एक दिल्ली की उस सुबह में कुछ अजीब सी खामोशी थी—न ज़्यादा कोहरा, न ही सूरज की चमक। एक मद्धम सी उदासी अर्जुन के कमरे की दीवारों पर रेंग रही थी जैसे पिछली रात की नींद में किसी ने कुछ अधूरा छोड़ दिया हो। दीवार पर लटकी कैलेंडर की तारीखें टेढ़ी हो चुकी थीं, और खिड़की के बाहर किसी ट्रैफिक सिग्नल की पीली रौशनी में बत्तखों की कतार जैसी आवाज़ें आती रहीं। अर्जुन की अलमारी के दरवाज़े खुले थे, एक ओर उसके कैमरे की काली बैग रखी थी जिसमें एक जीवन भर की यात्रा की प्यास भरी हुई…