सत्यजीत भारद्वाज १ वाराणसी की सुबह उस दिन हमेशा की तरह गंगा की धुंधली लहरों से जागी थी, लेकिन डेविड मिलर के लिए यह क्षण किसी सपने की तरह था। रातभर की रेलयात्रा और थकान के बावजूद जैसे ही उसने स्टेशन से बाहर कदम रखा, उसके चारों ओर की हलचल ने उसकी थकान को कहीं पीछे छोड़ दिया। रिक्शों की आवाजें, मंदिर की घंटियों की टुन-टुन और हवा में घुली अगरबत्ती की महक उसके भीतर एक अजीब सा कंपन पैदा कर रही थी। उसके पैरों में अब तक पश्चिमी शहरों की ठंडी, व्यवस्थित सड़कों की आदत थी, मगर यहाँ ज़मीन…
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विवेक शर्मा जयपुर की सर्दियों में जब गुलाबी हवाएं हवेली की पुरानी खिड़कियों से टकराती थीं, उस समय गोयल परिवार के आँगन में गहमागहमी थी। हल्के गुनगुने धूप में बैठे बुज़ुर्ग चाय पीते हुए किसी बड़े फैसले की चर्चा कर रहे थे, और रसोई से आती मसालों की खुशबू माहौल को और आत्मीय बना रही थी। अंशिका अपने कमरे की बालकनी में खड़ी सब देख रही थी, जैसे वह दृश्य का हिस्सा होते हुए भी अलग थी। उसकी माँ, विनीता गोयल, बार-बार नीचे से उसे बुला रही थीं लेकिन अंशिका की नजरें आसमान में उड़ते कबूतरों में उलझी थीं। पिछले…