समीरा त्रिपाठी नई दिल्ली के बाहरी इलाक़े में फैला वह अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स पहली नज़र में बिल्कुल साधारण लगता था—ऊँची-ऊँची इमारतें, बच्चों के खेलने का पार्क, गाड़ियों की पार्किंग में जमी धूल और शाम को लौटते दफ़्तरियों की भीड़। लेकिन इमारत नंबर बी–7 का फ्लैट 203 किसी कारणवश हमेशा खाली रहता था। लोगों ने कई बार वहाँ किराएदार देखे थे, लेकिन कुछ ही हफ़्तों में वे सामान समेट कर चले जाते। पड़ोसियों की बातें थीं कि रात के समय उस घर से अजीब आवाज़ें आती हैं—कभी फुसफुसाहट, कभी फर्नीचर खिसकने की, कभी किसी के धीमे-धीमे रोने की। मगर इन सब कहानियों…