• Hindi - यात्रा-वृत्तांत

    लौटते कदम

    प्रणव शुक्ला दिल्ली की वो सर्द रात थी, जब शहर की इमारतें किसी नीरव कैदखाने जैसी लगती थीं। सड़कें रोशनी से जगमगा रही थीं, लेकिन उस रोशनी में भी अजीब-सा अंधकार फैला था — ऐसा अंधकार, जो दिल को चीरता चला जाए। आर्यन अपने ऑफिस की 25वीं मंज़िल की खिड़की से उस शहर को निहार रहा था, जो कभी उसके सपनों का हिस्सा था, और अब उसे सपनों का कफन जैसा लगने लगा था। एयरपोर्ट रोड की गाड़ियाँ, मेट्रो की गड़गड़ाहट, और दूर-दूर तक दिखती गगनचुंबी इमारतें — सब जैसे उसकी आत्मा पर बोझ बन गई थीं। दिन भर की…