श्रुति चतुर्वेदी अध्याय १: चाँदनी और लोककथा कुमाऊँ की पहाड़ियों में बसा वह छोटा सा गाँव अपनी ठंडी हवाओं, चीड़ के ऊँचे-ऊँचे वृक्षों और सदियों पुरानी लोककथाओं के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। बरसों से बुजुर्गों की कहानियों में एक रहस्य जिंदा था—पूर्णिमा की रात एक सफेद साड़ी में लिपटी औरत की परछाईं तालाब की ओर जाती दिखती थी, जिसके होठों पर एक उदास लोकधुन होती थी। गाँव के बच्चों को पालने की कहानियों में, जवानों को चेतावनी के रूप में और बूढ़ों के डरावने अनुभवों में यह परछाईं बार-बार आती थी। कहते थे, जो भी उस गीत के पीछे…