आकाश बर्मा १ लखनऊ की उस सुबह में गली के दरवाज़े बंद थे, खिड़कियों के पर्दे आधे खींचे हुए, और लोगों के चेहरे पर अजीब-सा सन्नाटा पसरा हुआ था। सूरज की पहली किरणें जब पुरानी हवेली जैसे बने मकानों की दीवारों से टकराईं, तभी एक चीख ने पूरे मोहल्ले की नींद तोड़ दी। चीख घर के भीतर से आई थी—पत्रकार आरव मेहता के पड़ोसी ने सबसे पहले देखा कि दरवाज़ा आधा खुला है और भीतर से कुर्सी के गिरने जैसी आवाज़ें आ रही हैं। जब लोग धीरे-धीरे दरवाज़े तक पहुँचे तो सामने का दृश्य किसी बुरे सपने जैसा था—कमरे के…