नवनीत मिश्रा बनारस के घाटों से दूर, पुराने शहर के भीतर एक मुड़ी-तुड़ी सी गलियों की भूलभुलैया में बसी थी पंचम गली — एक ऐसी जगह जो शहर के नक्शे में शायद दर्ज भी न हो, पर लोगों की यादों में सदी भर की कहानियाँ समेटे जीवित थी। यहीं पोस्टिंग हुई थी सब-इंस्पेक्टर अर्पित चौधरी की। अपने कंधों पर सख्त बूटों की टकटक, आँखों में यकीन और जेब में पिता का पुराना कम्पास लिए, अर्पित ने पहली बार उस गली में कदम रखा था जब दिन उतरकर संध्या की बाँहों में समा चुका था। गली की हवा में एक अजीब…
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विवेक मिश्रा शाम के साढ़े पांच बजे का वक्त था। आसमान धीरे-धीरे नारंगी से जामुनी होता जा रहा था। धूप की आखिरी किरणें गांव के पुराने पीपल के पेड़ों से छनकर मिट्टी पर पड़ रही थीं, और कहीं-कहीं से झींगुरों की आवाज़ें हवा में घुलने लगी थीं। यही वो वक़्त था जब रवि अपनी मोटरसाइकिल लेकर शांतिनगर की ओर बढ़ रहा था। सड़क सुनसान थी, पक्की नहीं — कच्ची मिट्टी से भरी हुई, और हर थोड़ी दूर पर गड्ढे। लेकिन रवि की आँखों में एक अलग ही चमक थी — वो एक पत्रकार था, जो ‘रहस्य’ की तलाश में गांव-गांव…