• Hindi - प्रेतकथा

    बेरोज़ा हवेली का अंतिम दीपक

    मानव वर्धन १ मध्य प्रदेश के भीतरी हिस्सों में बसा था एक पुराना, लगभग भुला दिया गया गाँव — बेरोज़ा। इस गाँव का नाम तक मानचित्रों में साफ़ नहीं दिखता था, लेकिन उसकी कहानियाँ लोकगीतों और बुज़ुर्गों की फुसफुसाहटों में अब भी ज़िंदा थीं। किसी जमाने में यह इलाका राजा वीरप्रताप सिंह के अधीन था, जिनकी विशाल हवेली अब वीरान पड़ी थी। हवेली की जर्जर दीवारें, छत पर उगी काई, टूटी खिड़कियाँ और सामने की परछाइयाँ — सब मिलकर उस जगह को किसी शापित चित्र की तरह बनाते थे। पत्रकार शौर्य वर्मा और उसकी कैमरा ऑपरेटर मित्र दीपिका उस दिन…

  • Hindi - प्रेतकथा

    नरसंहार की रात

    विराज नागपाल १ रघुवीर राणा की जीप जैसे ही कच्ची सड़क पर धूल उड़ाती हुई आगे बढ़ी, सामने के दृश्य ने उसे सहसा खामोश कर दिया। सड़क के दोनों ओर सरसों के खेत अभी हरे ही थे, लेकिन उन खेतों के बीचोंबीच खड़ी एक बूढ़ी हवेली अपने पुराने ज़ख्मों की तरह झुलसी हुई दिख रही थी। उसके टूटे छज्जे, काले पड़े झरोखे और छत की ढही हुई चौखटें उसे किसी युद्ध का थका हुआ सैनिक बना रही थीं। गाँव वालों ने पहले ही चेता दिया था — “उधर मत जाइयो, बाबूजी। वो खून वाली कोठी है।” लेकिन इतिहास और तस्वीरों…

  • Hindi - प्रेतकथा

    भूतिया तिजोरी

    शुभदीप मिश्र वाराणसी स्टेशन की गर्म हवा में अजीब-सी गंध थी—कुछ धूप की, कुछ पुराने लोहे की, और कुछ जैसे समय की। शौर्य व्यास ने अपने ट्रॉली बैग का हत्था कसकर पकड़ा और भीड़ को चीरते हुए बाहर निकला। सालों बाद भारत लौटना उसे उतना अजनबी नहीं लगा, जितना लगा व्यास निवास का नाम सुनते ही मन में उभर आया अनकहा डर। वह तेरह साल का था जब उसके पिता की अचानक मौत के बाद मां ने उसे लंदन भेज दिया था, और तब से उसने कभी बनारस की ओर मुड़कर नहीं देखा। पर अब, वर्षों बाद, वकील के एक…

  • Hindi - रहस्य कहानियाँ

    सीलन की दीवार

    अनुज वर्मा दिल्ली की उमस भरी गर्मी की दोपहर में नेहा शर्मा जब पुरानी दिल्ली की तंग गलियों से होकर उस हवेली की तरफ़ बढ़ी, तो उसके दिल में हल्का-सा डर और अजीब-सी उत्सुकता एक साथ उभर आई। हवेली का नाम उसने कई बार सुना था, अख़बारों में उसकी तस्वीरें भी देखी थीं, पर सामने खड़े होकर उसकी जर्जर दीवारों को देखना जैसे किसी पुराने ज़ख्म की परत हटाने जैसा था। टूटी हुई जालीदार खिड़कियाँ, ऊपर से झूलती बेलें और लोहे का ज़ंग खाया बड़ा सा दरवाज़ा — सब कुछ जैसे समय के थपेड़ों से थक कर झुक गया था।…