मयंक श्रीवास्तव दुकान से घर तक का सफ़र शर्मा जी वैसे तो बिल्कुल सीधेसादे इंसान थे, लेकिन मोहल्ले में उनकी पहचान एक ऐसे शख्स की थी जिन्हें हर समय नई-नई चीज़ों का शौक चढ़ा रहता था। कल तक जो बड़े गर्व से लोगों को बताते घूम रहे थे कि “भाईसाहब, मेरा कीपैड वाला फोन पाँच साल से चल रहा है, बैटरी भी ओरिजिनल है”, वही शर्मा जी अचानक एक दिन मोहल्ले की मोबाइल शॉप से चमचमाता नया स्मार्टफोन लेकर लौटे। अब तक तो शर्मा जी उस पुराने फोन को अपने जीवनसाथी की तरह मान चुके थे। उसमें अलार्म भी मुश्किल…
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विपुल शर्मा भाग 1: बुआ का एलान बिल्लूपुर की सुबहें आमतौर पर कबूतरों की गुटरगूँ, चाय की पहली चुस्की, और दूधवाले की साइकिल की घंटी से शुरू होती थीं। लेकिन उस दिन की सुबह कुछ अलग थी। गाँव के मंदिर के सामने चौपाल में, नीम के नीचे बैठी कांता बुआ ने एक ज़ोरदार चाय की चुस्की लेकर जैसे ही गिलास रखा, वैसे ही उनकी आवाज़ पूरे गाँव में गूँज गई— “इस साल हम कन्याकुंभ में जाएँगे!” चारों तरफ सन्नाटा। गुड्डू, जो बुआ का भतीजा और स्थानीय सरकारी दफ्तर में बाबू था, अपने अख़बार के पीछे छिपते हुए बड़बड़ाया— “लो! फिर…