विपुल शर्मा भाग 1: बुआ का एलान बिल्लूपुर की सुबहें आमतौर पर कबूतरों की गुटरगूँ, चाय की पहली चुस्की, और दूधवाले की साइकिल की घंटी से शुरू होती थीं। लेकिन उस दिन की सुबह कुछ अलग थी। गाँव के मंदिर के सामने चौपाल में, नीम के नीचे बैठी कांता बुआ ने एक ज़ोरदार चाय की चुस्की लेकर जैसे ही गिलास रखा, वैसे ही उनकी आवाज़ पूरे गाँव में गूँज गई— “इस साल हम कन्याकुंभ में जाएँगे!” चारों तरफ सन्नाटा। गुड्डू, जो बुआ का भतीजा और स्थानीय सरकारी दफ्तर में बाबू था, अपने अख़बार के पीछे छिपते हुए बड़बड़ाया— “लो! फिर…
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राघवेंद्र मिश्रा १ रात के बारह बजे थे। शहर की गलियों में सन्नाटा पसरा हुआ था। लेकिन उस सन्नाटे को चीरती हुई हवेली नंबर २१ से एक अजीब सी आवाज़ आ रही थी—कभी दरवाज़े के चरमराने की, तो कभी किसी के कराहने की। यह हवेली कभी मिश्रा परिवार की शान हुआ करती थी, लेकिन अब यह वीरान और खंडहर में तब्दील हो चुकी थी। हवेली के चारों ओर उग आए कंटीले पेड़ और सूखे पत्तों का ढेर उसे और डरावना बना देता था। आज भी उसी हवेली से धुआँ उठता दिखाई दे रहा था। मोहल्ले वालों का कहना था कि…