स्मृति चौहान भाग 1 – मुलाक़ात दिल्ली की उस ठंडी सुबह में हवा में हल्की धुंध घुली थी। कनॉट प्लेस की गोलाई पर कॉफ़ी शॉप्स की हलचल धीरे-धीरे बढ़ रही थी। भीड़ के बीच भी आरव को सब कुछ फीका लग रहा था। वह अपने लैपटॉप बैग को कंधे पर टाँगे एक पुरानी किताब की तलाश में ‘कॉफ़ी एंड पेजेज़’ नाम की बुक-कैफ़े में चला गया। कैफ़े का लकड़ी का दरवाज़ा खोलते ही उसकी नज़र उस पर पड़ी। खिड़की के पास वाली टेबल पर बैठी वह लड़की, जिसके बालों पर हल्की धूप झलक रही थी। उसकी आँखें किताब में गुम…
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१ मुंबई की हलचल भरी सुबह में, जब अरब क्रिएटिव एजेंसी की 12वीं मंज़िल पर धूप कांच की दीवारों से छनकर बोर्डरूम में गिर रही थी, तभी नए कैंपेन की मीटिंग शुरू हुई। एजेंसी का यह सबसे बड़ा प्रोजेक्ट था—एक इंटरनेशनल ब्रांड का भारत में पहला बड़ा लॉन्च—और हर कोई इस मीटिंग में अपनी चमक दिखाने के लिए तैयार बैठा था। कमरे में मौजूद क्लाइंट, अकाउंट मैनेजर, आर्ट डायरेक्टर्स, और कॉपी टीम के बीच, अरब मेहता की उपस्थिति अलग ही थी। शांत, सधे हुए, लेकिन आंखों में गहराई लिए, वह क्रिएटिव डायरेक्टर के तौर पर अपने नोट्स के साथ तैयार…