आकाश वर्मा १ मुंबई की बारिशें जैसे पूरे शहर को धो डालती थीं, वैसे ही कभी-कभी मन के भीतर जमी गर्द भी बहा ले जाती थीं। लेकिन विवान मल्होत्रा के लिए, आज की शाम औरों से अलग थी—बाहर की बूंदों में तो लय थी, मगर उसके भीतर सुर गुम थे। वह अपने छोटे से अपार्टमेंट के कोने में बैठे हुए गिटार के तारों को हल्के से छेड़ता रहा, जैसे किसी खोए हुए एहसास को आवाज़ देने की कोशिश कर रहा हो। पिछले कुछ महीनों से उसकी ज़िंदगी एक अजीब-सी दोहरी लड़ाई में उलझी थी—एक तरफ़ अपने सपनों को सच करने…