विराज जोशी १ ऋत्विक घोषाल एक ऐसे लेखक थे जिनकी आँखों में नींद नहीं, बल्कि पुराने समय की छवियाँ तैरती थीं। दिल्ली के करोल बाग के एक पुराने अपार्टमेंट की चौथी मंज़िल पर उनका छोटा सा कमरा था—दीवारें जर्जर, खिड़की से झांकती धूल, और हर कोने में बिखरे किताबों के ढेर जिनमें से ज़्यादातर रेडियो ड्रामा, पुरानी कहानियाँ और भारतीय ऑडियो आर्काइव्स पर केंद्रित थे। पिछले छह महीने से वह एक किताब पर काम कर रहे थे, जिसका विषय था: “बुलंद आवाज़ें – भारतीय रेडियो नाटकों का इतिहास”, लेकिन लेखन अब थकान बन चुका था। उसी थकान से उबरने के…
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आलोक पाण्डेय १ राजस्थान की तपती हुई धरती पर फैला हुआ था कर्णपुरा गाँव—एक ऐसा स्थान जहाँ गर्म हवाएँ दिन में साँय-साँय करती थीं और रात होते ही सब कुछ जैसे ठहर जाता था। चारों ओर बंजर ज़मीन, सूखे पेड़ों की छाँह, और रेत में गहराती चुप्पी। जुलाई की उस दोपहर में, जब सूरज अपनी पूरी प्रखरता से चमक रहा था, दिल्ली विश्वविद्यालय से रिसर्च स्कॉलर अन्वेषा शर्मा ने पहली बार इस गाँव की मिट्टी को छुआ। हाथ में डायरी, बैग में रिकॉर्डिंग डिवाइस और मन में ढेर सारे सवाल लेकर वह एक पुरानी जीप से उतरी, जो उसे शहर…
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मानव वर्धन १ मध्य प्रदेश के भीतरी हिस्सों में बसा था एक पुराना, लगभग भुला दिया गया गाँव — बेरोज़ा। इस गाँव का नाम तक मानचित्रों में साफ़ नहीं दिखता था, लेकिन उसकी कहानियाँ लोकगीतों और बुज़ुर्गों की फुसफुसाहटों में अब भी ज़िंदा थीं। किसी जमाने में यह इलाका राजा वीरप्रताप सिंह के अधीन था, जिनकी विशाल हवेली अब वीरान पड़ी थी। हवेली की जर्जर दीवारें, छत पर उगी काई, टूटी खिड़कियाँ और सामने की परछाइयाँ — सब मिलकर उस जगह को किसी शापित चित्र की तरह बनाते थे। पत्रकार शौर्य वर्मा और उसकी कैमरा ऑपरेटर मित्र दीपिका उस दिन…