अन्वेषा सिन्हा १ निहारिका की दुनिया बहुत सीमित थी—एक पुराना, ऊँची छतওয়ाला कमरा जिसमें मोटे-मोटे परदे हर खिड़की को ढँके रखते थे, और दीवारों पर हल्की नमी और एक अधूरी राग की गूँज बसी रहती थी। दिल्ली के बांग्ला साहिब रोड के पुराने इलाके में स्थित उस मकान की छत पर कभी-कभी धूप उतनी बेधड़क आ जाती कि पर्दे के भीतर भी उसका सुनहरा स्पर्श टपकने लगता, और तब निहारिका की आंखें अनायास सिकुड़ जातीं। उसके पास अपनी पीड़ा का नाम था—”फोटोफोबिया”—एक ऐसा डर जो सिर्फ आंखों से नहीं, भीतर की आत्मा से जुड़ा था। वह उजाले से भागती थी,…