आकाश गुप्ता १ भोपाल की रात उस रोज़ असामान्य रूप से सन्नाटेदार थी। बरसात अभी-अभी थमी थी और सड़कों पर जगह-जगह पानी जमा था, स्ट्रीट लाइट्स की पीली रोशनी उस पानी में प्रतिबिंबित हो रही थी। पुराने भोपाल की तंग गलियों से लेकर नए शहर की चौड़ी सड़कों तक हर जगह नमी और ठंडक फैली थी। रात के करीब बारह बज रहे थे जब अचानक वीआईपी रोड पर एक कार की तेज़ ब्रेक लगने की आवाज़ गूंजी, फिर किसी के चीखने जैसी हल्की ध्वनि, और उसके बाद टायरों के घिसटने की गंध के साथ एक कार अंधेरे में ग़ायब हो…
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दिव्या चावला १ जून की एक नमी से भरी, भारी-सी रात थी। मुंबई की बारिश अपनी पूरी ताक़त के साथ बरस रही थी, सड़कें पानी से भर चुकी थीं और कहीं-कहीं रेल की पटरियों के नीचे पानी बहने की आवाज़ एक अजीब-सी लय बना रही थी। शहर के पुराने हिस्से में, लोहे का वह पुल खड़ा था जो एक सदी से भी ज़्यादा समय से स्थानीय ट्रेनों का भार उठाता आ रहा था। पुल के नीचे काले पानी का एक स्थायी पोखर बना रहता था, और चारों ओर दीवारों पर उग आई हरी काई, समय और नमी के मिलन की…