अमिताभ वर्मा १ बघेलपुर गाँव की दोपहरें अक्सर आलस से भरी होती थीं, लेकिन उस दिन हवेली की मिट्टी में जो निकला, उसने पूरे गाँव को एक अनकहे सन्नाटे में डुबो दिया। ठाकुर हवेली, जो पिछले चालीस सालों से वीरान पड़ी थी, अब नई खरीददारी के बाद मरम्मत के लिए खुली थी। मजदूरों का दल दीवारें तोड़ रहा था, फर्श उखाड़ रहा था, और मलबे से धूल उड़ रही थी। तभी एक कुल्हाड़ी ज़मीन के नीचे किसी सख़्त चीज़ से टकराई — “ठक!” जैसी आवाज़ आई। मजदूर रुक गए। किसी ने कुदाल से थोड़ा और खोदा, तो बाहर निकला एक…