आकाश गुप्ता १ भोपाल की रात उस रोज़ असामान्य रूप से सन्नाटेदार थी। बरसात अभी-अभी थमी थी और सड़कों पर जगह-जगह पानी जमा था, स्ट्रीट लाइट्स की पीली रोशनी उस पानी में प्रतिबिंबित हो रही थी। पुराने भोपाल की तंग गलियों से लेकर नए शहर की चौड़ी सड़कों तक हर जगह नमी और ठंडक फैली थी। रात के करीब बारह बज रहे थे जब अचानक वीआईपी रोड पर एक कार की तेज़ ब्रेक लगने की आवाज़ गूंजी, फिर किसी के चीखने जैसी हल्की ध्वनि, और उसके बाद टायरों के घिसटने की गंध के साथ एक कार अंधेरे में ग़ायब हो…
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१ शाम के साढ़े नौ बज रहे थे। शहर के सबसे पॉश इलाके, वसंत विहार के बंगला नंबर 47 में एक अजीब सी शांति फैली हुई थी। बाहर तेज़ बारिश हो रही थी, और भीतर की दुनिया किसी रहस्य को अपने अंदर समेटे चुप थी। इस घर के मालिक, विवेक मल्होत्रा, एक नामचीन उद्योगपति थे जिनके व्यापारिक साम्राज्य का विस्तार देश के कई हिस्सों में था। उनका नाम अक्सर बिजनेस मैगज़ीन के पहले पन्ने पर छपता था, लेकिन आज उनकी एक और पहचान सामने आने वाली थी — एक मृतक की। घर का दरवाज़ा भीतर से बंद था, खिड़कियाँ हल्की-हल्की…