सिद्धार्थ महाजन १ मुंबई की उस रात की हवा में बारिश की गंध कुछ अलग थी—एक ऐसी नमी जो सिर्फ मौसम की नहीं, बल्कि आने वाले तूफ़ान का संकेत दे रही थी। शाम से ही लगातार बरसते पानी ने मरीन ड्राइव की चमकदार सड़क को आईने जैसी चिकनी सतह में बदल दिया था। अरब सागर की लहरें ऊँचाई तक उछलकर पत्थरों से टकरा रही थीं, मानो शहर के हर रहस्य को धो डालना चाहती हों। लेकिन उस रात जो होने वाला था, उसे कोई भी बारिश नहीं मिटा सकती थी। रात के ठीक ग्यारह बजकर पैंतालीस मिनट पर एक काले…
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१ बारिश की हल्की बूँदें बेंगलुरु की सड़कों पर नाचती हुई बह रही थीं। रात लगभग साढ़े बारह बज रहे थे और सड़कें दिनभर के ट्रैफिक के बाद अब शांत थीं, बस कहीं-कहीं गाड़ियों की हेडलाइट्स और चाय की दुकानों की मद्धम रोशनी दिख रही थी। आर्यन मल्होत्रा अपनी पुरानी लेकिन भरोसेमंद स्कूटी पर सवार, एक आख़िरी डिलीवरी करने के इरादे से निकला था। उसके फोन की स्क्रीन पर फ़ूड डिलीवरी ऐप खुला था, और ऊपर से आती बारिश की बूंदें स्क्रीन पर गिरकर फैल रही थीं। तभी अचानक ऐप की लाइट थीम धीरे-धीरे काली हो गई—जैसे किसी ने अंदर…
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पवन कुमार शाह इलाहाबाद शहर की तंग गलियों के बीचोंबीच बसा हुआ वह पुराना डाकघर बरसों से अपनी जगह पर वैसे ही खड़ा था जैसे समय ने उसे भुला दिया हो। चारों ओर से छिल चुकी पपड़ी वाली दीवारें, जंग खाए लोहे के गेट और मकड़ी के जालों से भरे छज्जे इस इमारत की थकान का प्रमाण थे। सर्दियों की उस धुंधली सुबह में डाकघर की हवा भी किसी अजनबी बेचैनी से भरी हुई लग रही थी। पोस्टमास्टर हरीश चतुर्वेदी अपनी रोज़मर्रा की दिनचर्या में डूबे हुए थे—कभी पुराने रजिस्टर पर झुकी आंखें, कभी डाकियों को निर्देश देने का स्वर,…
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दिव्या चावला १ जून की एक नमी से भरी, भारी-सी रात थी। मुंबई की बारिश अपनी पूरी ताक़त के साथ बरस रही थी, सड़कें पानी से भर चुकी थीं और कहीं-कहीं रेल की पटरियों के नीचे पानी बहने की आवाज़ एक अजीब-सी लय बना रही थी। शहर के पुराने हिस्से में, लोहे का वह पुल खड़ा था जो एक सदी से भी ज़्यादा समय से स्थानीय ट्रेनों का भार उठाता आ रहा था। पुल के नीचे काले पानी का एक स्थायी पोखर बना रहता था, और चारों ओर दीवारों पर उग आई हरी काई, समय और नमी के मिलन की…