सत्यजीत भारद्वाज १ वाराणसी की सुबह उस दिन हमेशा की तरह गंगा की धुंधली लहरों से जागी थी, लेकिन डेविड मिलर के लिए यह क्षण किसी सपने की तरह था। रातभर की रेलयात्रा और थकान के बावजूद जैसे ही उसने स्टेशन से बाहर कदम रखा, उसके चारों ओर की हलचल ने उसकी थकान को कहीं पीछे छोड़ दिया। रिक्शों की आवाजें, मंदिर की घंटियों की टुन-टुन और हवा में घुली अगरबत्ती की महक उसके भीतर एक अजीब सा कंपन पैदा कर रही थी। उसके पैरों में अब तक पश्चिमी शहरों की ठंडी, व्यवस्थित सड़कों की आदत थी, मगर यहाँ ज़मीन…
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आरव मिश्र पर्व 1: घाटों का सवेरा बनारस की सुबह का कोई मुकाबला नहीं। यह शहर जिस तरह हर दिन की शुरुआत करता है, वैसा और कहीं नहीं होता। जैसे ही पहली किरण गंगा पर गिरती है, शहर की गलियाँ धीरे-धीरे जागने लगती हैं। रात की निस्तब्धता टूटकर धीरे-धीरे जीवन की चहचहाहट में बदल जाती है। अस्सी घाट की ओर जाती तंग गलियों में दूधवालों की आवाज़ गूँजने लगती है—“दूध ले लो, ताज़ा दूध…”। कहीं कोई दरवाज़ा खुलता है, कोई आँगन से झाड़ू लगाता है। गलियों की दीवारें, जिन पर कभी रंग-बिरंगे पोस्टर चिपके थे, अब धुँधली छायाओं की तरह…