• Hindi - सामाजिक कहानियाँ

    काँच का घर

    सुनिधि पटेल १ सुबह के साढ़े छह बज रहे थे। शिवानी अपने छोटे से रसोईघर में चाय का भगौना चूल्हे पर चढ़ाकर चुपचाप खड़ी थी। स्टील की कटोरियों और कपों के टकराने की आवाज़ रसोई की दीवारों से टकराकर जैसे उसकी चुप्पी को चुनौती दे रही थी। रसोई की खिड़की से आती धूप की पतली लकीर उसके चेहरे को छूकर सरक जाती थी, लेकिन उसका चेहरा भावहीन था — न मुस्कान, न तनाव, न थकान — बस एक आदत से पैदा हुई स्थिरता। गैस पर चाय खौलने लगी तो उसने दूध की थैली फाड़ी, दो ब्रेड टोस्टर में डाले, और…