• Hindi - सामाजिक कहानियाँ

    गली-गली बनारस

    आरव मिश्र पर्‍व 1: घाटों का सवेरा बनारस की सुबह का कोई मुकाबला नहीं। यह शहर जिस तरह हर दिन की शुरुआत करता है, वैसा और कहीं नहीं होता। जैसे ही पहली किरण गंगा पर गिरती है, शहर की गलियाँ धीरे-धीरे जागने लगती हैं। रात की निस्तब्धता टूटकर धीरे-धीरे जीवन की चहचहाहट में बदल जाती है। अस्सी घाट की ओर जाती तंग गलियों में दूधवालों की आवाज़ गूँजने लगती है—“दूध ले लो, ताज़ा दूध…”। कहीं कोई दरवाज़ा खुलता है, कोई आँगन से झाड़ू लगाता है। गलियों की दीवारें, जिन पर कभी रंग-बिरंगे पोस्टर चिपके थे, अब धुँधली छायाओं की तरह…