अनामिका जोशी 1 शाम की हवा में अजीब सी उदासी थी, जैसे दिन अपने पैरों के निशान समेट रहा हो। दिल्ली के हज़रत निज़ामुद्दीन स्टेशन पर मयंक एक बेंच पर बैठा था, अपने नीले डफल बैग के ऊपर कोहनी टिकाए, और दूसरी ओर एक किताब पकड़े—”Norwegian Wood”। कानों में ईयरफोन, लेकिन कोई गाना नहीं चल रहा था। बस, शोर से खुद को काटने की एक कोशिश थी। उसे ट्रेन पकड़नी थी—जयपुर जाने वाली इंटरसिटी। पहली नौकरी, पहली पोस्टिंग, और पहली बार दिल्ली छोड़ना। भीतर कुछ हल्का सा डर भी था और थोड़ा गर्व भी। आसपास लोग भागदौड़ कर रहे थे,…