• Hindi - प्रेतकथा

    अंधेरों के पाँव

    सार्थक अग्रवाल भाग 1 — पुरानी हवेली का दरवाज़ा शाम की आख़िरी रोशनी छोटे से कस्बे शिवपुर की सड़कों पर रेंगते-रेंगते पतली हो रही थी जब अर्जुन ने बस से उतरकर अपना बैग कंधे पर डाला और चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई; स्टेशन नहीं, बस अड्डा भी ठीक से नहीं—एक खुला सा चौराहा, दो चाय की टिन की दुकानों के बीच से पराठे की घी वाली गंध, और दूर क्षितिज पर काली होती रेखा, जिसके पीछे वह हवेली थी जिसके बारे में शहर में फुसफुसाहटें चलती थीं; उसके मोबाइल में नोट्स खुले थे—“शिवपुर, पुरानी हवेली, मालिक: ठाकुर हरिराम सिंह (1892–1947), कथाएँ:…