संजीव मिश्रा
भाग 1: किशोरलाल की किस्त-कथा
किशोरलाल गुप्ता, उम्र लगभग 43 साल, पेशे से एक मध्यम दर्जे का सेल्समैन, लेकिन दिल से बहुत बड़े सपने देखने वाला इंसान था। सपना—नई चमचमाती कार, फ्लैट में दो बाथरूम, और एक स्मार्ट टीवी जिसमें नेटफ्लिक्स चले बिना बफरिंग के। पर समस्या एक ही थी—पैसे। और तब उसके जीवन में एंट्री हुई EMI की।
पहली बार उसने EMI का नाम सुना था अपने ऑफिस के कलीग भोला प्रसाद से। भोला ने गर्व से बताया था, “भाई, मैंने तो अब iPhone भी EMI पे लिया है, बीवी की सिलाई मशीन भी, और बेटे की साइकिल भी। सब कुछ किश्तों में, और क्या चाहिए ज़िंदगी से?”
किशोरलाल की आंखें चमक उठीं। अगले ही दिन, ऑफिस से जल्दी निकलकर वो पास की इलेक्ट्रॉनिक्स दुकान पहुंचा और एक 55 इंच का स्मार्ट टीवी, फुल साउंड सिस्टम, और एक फ्रंट लोडिंग वॉशिंग मशीन का ऑर्डर दे डाला। दुकानदार ने पूछा, “सर, पेमेंट कैश, कार्ड या EMI?”
किशोरलाल ने सीना चौड़ा कर के कहा, “EMI! अब ज़माना EMI का है भैया।”
पहली किस्त आई 1327 रुपये की। बहुत खुशी से दी। दूसरी किस्त आई 1327 रुपये की—थोड़ी सी खुशी से दी। तीसरी किस्त आई, तभी बीवी ने कहा, “बिट्टू का स्कूल फीस भी देना है।” यहां से कहानी में ट्विस्ट आया।
अगले हफ्ते उसने बाइक के सर्विस के लिए क्रेडिट कार्ड स्वाइप किया। फिर दोस्त की शादी में गिफ्ट देना था, तो पर्सनल लोन लिया। धीरे-धीरे उसका बैंक अकाउंट EMI और क्रेडिट कार्ड के नोटिफिकेशन से भरने लगा।
एक दिन अलार्म बजा—फोन देखा, “आपकी EMI आज कट जाएगी। सुनिश्चित करें कि खाते में पर्याप्त राशि हो।” वह चौंका, “आज फिर EMI?” और तब शुरू हुआ किशोरलाल का जीवन का नया अध्याय—EMI की महासंकट यात्रा।
वो रोज़ हिसाब लगाता, कितनी EMI बाकी हैं, कितनी चुकाई हैं, और किस बैंक में कितने पैसे हैं। पर EMI ऐसी भूतनी निकली, जो हर महीने के पहले हफ्ते में सीधा गर्दन पकड़ लेती थी।
बीवी शक करने लगी, “इतना पैसा कहां जा रहा है?” बेटा बोलने लगा, “पापा, आप तो अमेज़न से सिर्फ EMI वाले सामान लाते हो, चॉकलेट भी किश्तों में देंगे क्या?”
एक दिन बिजली का बिल नहीं भरा, क्योंकि EMI कट गई थी। एक दिन दूधवाला पैसे मांगते हुए बोला, “भाईसाब, दूध भी EMI पे शुरू कर दूं क्या?” किशोरलाल ने मुस्कुराते हुए कहा, “अगर 3 महीनों की नो कॉस्ट EMI है, तो लगा दो!”
घरवाले परेशान, बैंक वाले पीछे, और ऑफिस में बॉस ने कहा, “EMI पे ऑफिस टाइम भी शुरू कर दूं क्या?”
इसी बीच, एक और समस्या आई—बीवी ने भी EMI पे एक सिलाई मशीन ले ली, छुपाकर। किशोरलाल को तब पता चला जब घर में दो-दो EMI वाले नोटिफिकेशन एक साथ बजे।
तब उसने EMI-मैनेजमेंट का एक जुगाड़ निकाला। एक व्हाइटबोर्ड पर उसने सारे EMI का टाइमटेबल बना दिया। सोमवार को टीवी, मंगलवार को वॉशिंग मशीन, बुधवार को स्मार्टफोन, गुरुवार को गैस चूल्हा, शुक्रवार को बीवी की सिलाई मशीन, शनिवार को बच्चे की साइकिल और रविवार को छुट्टी नहीं—बैंक का लोन रीपेमेंट।
उसे सपना आने लगा कि EMI की एक आंटी है जो हर महीने घर आती है, चाय मांगती है और फिर कहती है, “1327 रुपये दीजिए, नहीं तो आपकी शर्ट ले जा रही हूं।”
किशोरलाल हड़बड़ाकर उठता और पसीने से भीगा होता।
EMI की दुनिया में वो ऐसा उलझा कि अब वो दोस्त की शादी में भी पूछता, “तुमने शादी EMI पे की या कैश पे?” और बच्चे की बर्थडे पार्टी में केक काटते समय बोला, “इस केक की भी चार किस्तें होंगी।”
अब उसके जीवन में सिर्फ एक ही लक्ष्य था—EMI फ्री लाइफ। लेकिन जैसे ही थोड़ा बचत होता, कोई नया ऑफर आ जाता। “3 महीने की नो कॉस्ट EMI पर ट्रिप टू गोवा।” और किशोरलाल फिर से फिसल जाता।
इस प्रकार, किशोरलाल की ज़िंदगी एक ऐसी कॉमेडी बन गई, जहां हर दिन एक नई किस्त, एक नया मैसेज, और एक नई चिंता थी। EMI उसकी गर्लफ्रेंड बन चुकी थी—हर महीने डेट पर आ जाती, पैसे मांगती और चली जाती।
पर अब तक तो सिर्फ शुरुआत है। EMI का ये महा-भंवर आगे क्या-क्या गुल खिलाएगा, ये जानने के लिए बने रहिए अगले भाग में…
भाग 2: बब्लू भिंडी का भावनात्मक वसूली अभियान
किशोरलाल के जीवन में EMI नाम की जो बला आई थी, वह अब तक एक अदृश्य ताकत की तरह थी—हर महीने के पहले हफ्ते में बैंक का मैसेज आता, पैसे कट जाते, और फिर वो वही गमछा मुंह पर डालकर अगले महीने का इंतज़ार करता। लेकिन आज का दिन कुछ अलग था।
सुबह का वक्त था। किशोरलाल चाय की चुस्की ले रहा था और उँगलियों पर EMI की गिनती कर रहा था। तभी दरवाजे की घंटी बजी।
“कौन है भाई?” किशोरलाल ने दरवाजा खोला, तो सामने खड़ा था एक हट्टा-कट्टा युवक—गले में सोने जैसी चैन, लाल रंग की टी-शर्ट जिस पर लिखा था ‘EMI is Love’, और हाथ में एक फाइल।
“नमस्ते जी, मैं बब्लू भिंडी,” उसने मुस्कुराते हुए कहा।
“भिंडी?” किशोरलाल चौंका।
“पूरा नाम बब्लू प्रसाद भिंडी। मैं बैंक से आया हूं, EMI कलेक्शन एजेंट हूं। आप किशोरलाल गुप्ता हैं न? स्मार्ट टीवी की किश्त पिछले महीने नहीं गई। आपके खाते में पैसा नहीं था, फिर भी टीवी चालू है!”
किशोरलाल ने झेंपते हुए कहा, “वो… दरअसल… कुछ खर्चे बढ़ गए थे…”
बब्लू भिंडी ने गहरी सांस ली और अपनी जेब से एक हार्मोनियम जैसा छोटा सा म्यूजिक बॉक्स निकाला। उसने प्ले बटन दबाया—और गूंजा एक दर्दभरा गाना, “कर्ज़ है तू, मेरा ग़म है तू…”
“क्या है ये?” किशोरलाल ने पूछा।
“ये मेरा वसूली स्टाइल है। मैं भावनात्मक EMI एजेंट हूं। पैसे नहीं दोगे तो दर्दभरे गाने सुनाऊंगा, जब तक दिल पसीज न जाए।”
“अरे भाई, EMI तो देनी है, लेकिन अभी बीवी की मेड की सैलरी देनी है, बिट्टू का ट्यूशन, मां की दवाइयाँ…”
“मैं समझता हूं,” बब्लू ने आंखें भर कर कहा, “कई बार मैं भी खुद की EMI नहीं भर पाता। लेकिन फिर मैं खुद को समझाता हूं—’EMI is not a burden, it’s a lifestyle!’ अब चलिए, चलकर कोई समाधान निकालते हैं।”
किशोरलाल ने उसे ड्राइंग रूम में बिठाया। बब्लू ने अपनी फाइल खोली।
“आपके ऊपर कुल मिलाकर 7 EMI चल रही हैं। टीवी, वॉशिंग मशीन, गैस चूल्हा, स्मार्टफोन, AC, बेटे की साइकिल और… एक सिलाई मशीन? ये आपकी है?”
“वो बीवी ने लिया है, छुपाकर।” किशोरलाल ने धीरे से कहा।
“तो कुल मिलाकर आपकी EMI है ₹9,289 प्रति माह। आपकी आय क्या है?”
“₹23,000।” किशोरलाल ने जवाब दिया।
बब्लू ने माथा पकड़ लिया, “सर, आप तो गणित के जादूगर निकले। इस पैसे में तो मैं सिर्फ EMI भरूं, तो महीने में नमक-रोटी ही मिलेगी।”
“वही तो हो रहा है!” किशोरलाल ने व्यथा जताई।
“तो अब एक ही रास्ता है—EMI कंसॉलिडेशन प्लान।”
“वो क्या होता है?”
“सब EMI को जोड़कर एक बड़ी EMI बना देते हैं, जिससे दर्द एक बार में होता है, बार-बार नहीं। और मैं आपके लिए बैंक से बात भी करवा दूंगा। लेकिन एक शर्त है—आज एक छोटी सी किश्त तो देनी ही होगी, ताकि सिस्टम में दिखे कि आप ‘Emotionally Responsible Borrower’ हैं।”
किशोरलाल ने थके हुए मन से ₹1327 निकाले और बब्लू को दिए।
बब्लू ने मुस्कुरा कर कहा, “सर, आप जैसे कस्टमर ही हमें प्रेरणा देते हैं। आपसे मिलकर लगा कि कर्ज़ सिर्फ रकम नहीं, एक रिश्ता होता है।”
इतना कहकर उसने जेब से गुलाब का फूल निकाला और टीवी के ऊपर रख दिया। “ये EMI की तरफ से।”
जैसे ही बब्लू निकलने लगा, किशोरलाल ने पूछा, “आपका असली नाम क्या है?”
“बब्लू प्रसाद वर्मा। भिंडी नाम दोस्तों ने दिया था, क्योंकि मैं जब बोलता हूं, तो सबके दिल में चुभता हूं। लेकिन आज, मैं एक दोस्त की तरह गया हूं। और हां, अगली बार अगर किश्त लेट हो जाए, तो मैं रफ़ी साहब के गाने लेकर आऊंगा।”
बब्लू चला गया, लेकिन उसके पीछे एक गहरी सोच छोड़ गया। किशोरलाल अब अपनी लाइफ को EMI-केंद्रित मान चुका था।
उसने एक नया सपना देखा—“EMI मुक्त जीवन।” लेकिन यह सपना ऐसा था जैसे इंडिया में बिना ब्रेक का ट्रैफिक—नामुमकिन।
शाम को बीवी ने पूछा, “कौन था ये गाना गाकर पैसे ले गया?”
किशोरलाल ने जवाब दिया, “भविष्य का संकेत!”
रात में जब वह टीवी देख रहा था, एक नया विज्ञापन आया—“अब सिर्फ ₹2999 की आसान EMI में गोवा ट्रिप!”
किशोरलाल की आंखें फिर से चमकने लगीं… लेकिन तभी बब्लू की आवाज कानों में गूंजी—“EMI is not a burden, it’s a lifestyle!”
और उसने टीवी बंद कर दिया।
भाग 3: बीवी की गोवा ड्रीम और पति का बजट प्लान
किशोरलाल की जिंदगी में EMI अब उतनी ही स्थायी हो चुकी थी जितनी उसकी सुबह की चाय और अखबार। वह हर महीने की पहली तारीख को ऐसे कांपता था जैसे बच्चे परीक्षा के रिजल्ट के दिन कांपते हैं। लेकिन फिर भी उसने खुद को समझा लिया था कि ये सब ‘आधुनिक जीवनशैली’ का हिस्सा है।
पर उस दिन की शाम कुछ और ही तूफान लेकर आई।
बीवी रश्मि, जो आमतौर पर शांत स्वभाव की गृहिणी थी, उस दिन टीवी देखते-देखते एकाएक बोल पड़ी, “किशोर, हमें गोवा जाना है।”
किशोरलाल ने चौंककर उसकी तरफ देखा। वह समझा शायद उसने सुना नहीं, तो बीवी ने फिर कहा, “गोवा जाना है, छुट्टियों में। हमारी शादी को 15 साल हो गए, एक बार भी समंदर नहीं देखा मैंने। अब तो बिट्टू भी बड़ा हो गया है। वो भी देखे दुनिया।”
किशोरलाल ने थूक निगला। गोवा? EMI के समंदर में डूबा आदमी गोवा के समंदर में कैसे तैरेगा?
“लेकिन रश्मि…” वह कुछ कहने ही वाला था कि बीवी ने हाथ में मोबाइल घुमाते हुए कहा, “देखो ये ऑफर—तीन रात, चार दिन, होटल, ब्रेकफास्ट, टैक्सी, सब कुछ शामिल! सिर्फ ₹2999 प्रति माह पर आसान EMI! क्या कहते हो?”
किशोरलाल का माथा घूम गया। उसे ऐसा लगा जैसे EMI उसके पीछे चिल्ला रही है, “भाई, अब तो गोवा भी मैं ही करवाऊंगी!”
“रश्मि, हमें थोड़ा सोच समझकर खर्च करना चाहिए,” उसने साहस करके कहा, “बिट्टू की स्कूल फीस, मां की दवा, सिलेंडर की कीमत, दूध वाला, सब तो पहले ही…”
“बस करिए,” रश्मि ने ताली बजाते हुए कहा, “आपसे जब टीवी लेना था तब तो EMI पर हां कर दिए, जब AC लेना था तब भी हां, अब जब पत्नी बोले तो ना? क्या पत्नी की ख्वाहिशें सिर्फ वॉशिंग मशीन तक सीमित हैं?”
किशोरलाल को लगने लगा कि यह बहस हारने के लिए नहीं बल्कि बचने के लिए है। उसने फैसला किया कि उसे ‘बजट प्लान’ बनाना ही होगा—एक ऐसा प्लान जो पत्नी को गोवा का सपना भी दे और खुद को गली के किराना स्टोर में उधारी मांगने से भी बचा ले।
अगली सुबह वह बैठ गया अपने ‘EMI रजिस्टर’ के साथ। सामने गोवा ट्रिप का EMI ऑफर खुला था और एक तरफ उसकी 7 चालू EMI की सूची। हर एक किस्त की तारीख, रकम और कटने का तरीका उसने लिखा—कुछ ECS से, कुछ UPI से और एक तो बब्लू भिंडी हाथों से ही वसूल कर गया था।
उसने नया कॉलम बनाया—“मनोबल पर प्रभाव।”
टीवी — High
वॉशिंग मशीन — Medium
AC — High
बिट्टू की साइकिल — Very High (क्योंकि बिट्टू कहता, “पापा रेस करो!” और वो पैदल चलता)
सिलाई मशीन — Low (बीवी ने अब तक एक भी कुर्ता नहीं सिलवाया)
अब सवाल था: गोवा ट्रिप को कहां फिट किया जाए?
तभी बिट्टू दौड़ता आया, “पापा! स्कूल में पिकनिक जा रहे हैं वाटर पार्क, ₹900 देने हैं!”
किशोरलाल ने सिर पकड़ लिया। एक ओर बीवी का गोवा, दूसरी ओर बिट्टू का वाटर पार्क, और तीसरी ओर बैंक का संदेश—“आपका क्रेडिट स्कोर गिर रहा है।”
तभी उसे याद आया—बब्लू भिंडी! वह आदमी सिर्फ EMI नहीं वसूलता, समाधान भी लाता है।
उसने बब्लू को फोन किया।
“हैलो सर! क्या फिर कोई भावना जागी EMI के लिए?” बब्लू ने पूछा।
“नहीं रे भिंडी, इस बार भावना नहीं, भूख लगी है—गोवा की हवा खाने की भूख। कोई उपाय है?”
बब्लू ने कान खुजाते हुए कहा, “सर, उपाय है। लेकिन इसमें थोड़ा ‘जुगाड़-बुद्धि’ चाहिए।”
“बताओ।”
“आपके पास घर में क्या-क्या चीजें हैं जो EMI पर ली गई और जिनका उपयोग अब नहीं होता?”
“टीवी तो रोज़ चलता है, वॉशिंग मशीन ज़्यादा नहीं, AC अभी गर्मी में चाहिए, सिलाई मशीन तो…”
“बस! सिलाई मशीन को OLX पर डालिए। EMI से मुक्ति और थोड़ा पैसा!”
किशोरलाल को यह विचार कुछ जम गया।
अगले दो दिन में उसने वो मशीन बेच दी ₹2800 में। वही पैसा बिट्टू की पिकनिक और गोवा ट्रिप की पहली किश्त में चला गया।
अब बारी थी असली प्लान की। उसने Excel में एक ‘ट्रिप मैनेजमेंट फाइल’ बनाई। हर खर्च का कॉलम—ब्रेकफास्ट कितना खाना है, समंदर में नहाने की लागत शून्य है या नहीं, टैक्सी से चलें या बुलेट बुक करें।
बीवी ने देखा तो कहा, “तुम इतने प्लानर हो, शादी के पहले क्यों नहीं बताया?”
“तब तक तो EMI का ज्ञान नहीं था,” उसने मुस्कुरा कर कहा।
तीन हफ्तों बाद, गोवा ट्रिप की पहली किश्त कट गई। किशोरलाल ने एक मोमबत्ती जलाकर EMI भगवान को प्रणाम किया। फिर बिट्टू को गोवा का नक्शा दिखाया और खुद बोला, “देख बेटा, इधर बीच है, इधर हम घूमेंगे, और उधर होटल… जिसकी EMI अभी 5 महीने चलेगी!”
बीवी भी खुश थी, बिट्टू भी। और किशोरलाल? वह EMI के समंदर में तैरना सीख रहा था। कभी-कभी पानी नाक तक आता, पर वह अब डूबता नहीं था। क्योंकि अब उसके पास था—बजट प्लान, बब्लू भिंडी, और ढेर सारी इच्छाओं की किस्तबंद सूची।
भाग 4: EMI एक्सप्रेस में गोवा यात्रा और होटल वाले का EMI प्लान
किशोरलाल के घर में अब एक अजीब सी हलचल थी। डाइनिंग टेबल पर जहां पहले दूध का बिल, बिजली का मीटर और EMI का रजिस्टर रखा रहता था, अब वहाँ गोवा ट्रिप का प्रिंटआउट, सनस्क्रीन की लिस्ट, और समुद्र तटों के नक्शे बिछे हुए थे।
रश्मि ने कपड़ों की एक ‘गोवा स्पेशल’ लिस्ट बनाई थी—“स्लीवलेस पहनूंगी! पंद्रह साल से सिर्फ पल्लू में घूम रही हूं, अब बीच पर भी थोड़ा खुलापन चाहिए।” किशोरलाल ने अपनी नजरें झुका लीं, जैसे बैंक स्टेटमेंट में बैलेंस देख रहा हो।
बिट्टू तो जैसे ब्रेक डांस करने लगा था। स्कूल में वह सबको कह रहा था, “हम गोवा जा रहे हैं यार! समंदर में नहाएंगे, केकड़े पकड़ेंगे!”
इधर किशोरलाल ने EMI रजिस्टर में एक नया पन्ना जोड़ा—गोवा यात्रा खर्च सूची।
• ट्रेन टिकट: 3 AC → ₹2140 × 3
• होटल EMI → ₹2999 प्रति माह × 6
• समोसा + चाय स्टेशन पर → ₹90
• समुद्र के किनारे मूंगफली → ₹50
• बीवी के सनग्लासेस → अप्रत्याशित ख़र्च
• बिट्टू की पानी में डूबने वाली चप्पल → अभी से अनुमान लगाना व्यर्थ
यात्रा की शुरुआत:
वे ‘Konkan EMI एक्सप्रेस’ पकड़ने वाले थे, यानी वो ट्रेन जिसमें आधे यात्री अपनी किस्तें चुका कर छुट्टी पर निकले थे, और बाकी EMI से बचने के लिए भागे जा रहे थे।
स्टेशन पर पहुँचते ही बिट्टू ने कहा, “पापा, ये ट्रेन भी EMI पे ली है क्या?” किशोरलाल ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “नहीं बेटा, इसे IRCTC ने लिया है, लेकिन उसका भी कुछ ना कुछ किस्त का जुगाड़ होगा।”
ट्रेन में बैठते ही बीवी ने सीट पर चादर बिछाई, और बिट्टू खिड़की पर बैठकर वीडियो बनाने लगा—“हेलो दोस्तो, आज हम जा रहे हैं गोवा, अपने पापा की पहली EMI यात्रा पर!”
ट्रेन चल पड़ी। बाहर खेत-खलिहान, भीतर सैंडविच और कागज़ के खर्चे। रश्मि ने झोले से समोसे निकाले। किशोरलाल ने सावधानी से पनीर के टुकड़े गिने—“तीन टुकड़े! ठीक है, एक-एक के हिसाब से।”
रात को ट्रेन में सोते समय किशोरलाल ने आंखें बंद की और सोचा—“ये सब EMI से हो रहा है। अगर EMI ना होती, तो मैं कभी गोवा नहीं जाता। या शायद घर से बाहर भी नहीं निकलता।”
सुबह गोवा आया। स्टेशन से बाहर निकलते ही गर्म हवा का झोंका, नारियल पानी की दुकानें और टैक्सी वाले ऐसे लपकते जैसे EMI एजेंट खुद एयरपोर्ट पर नौकरी करने लगे हों।
एक टैक्सी वाले ने पूछा, “होटल?”
“हां, होटल Sea Breeze Residency,” रश्मि ने कहा।
“अरे साब, बहुत बढ़िया होटल है! EMI पे ही बुक हुआ होगा, सही न?”
किशोरलाल ने हैरानी से देखा, “आपको कैसे पता?”
“साब, आजकल हर कोई EMI पे ही गोवा आता है। हम टैक्सी वाले भी डाउन पेमेंट पे गाड़ी लेते हैं, और आप लोग EMI पे घूमने आते हैं—पूरा गोवा एक किस्तों वाला सपना है।”
होटल में प्रवेश:
होटल वाला रिसेप्शनिस्ट एक गोरा-चिट्टा आदमी था, नाम था—विवेक शेट्टी। वह मुस्कुरा कर बोला, “वेलकम टू Sea Breeze Residency। आपका EMI वेलकम ऑफर तैयार है!”
“EMI वेलकम ऑफर?” रश्मि ने पूछा।
“हां मैडम, जो लोग पहली बार EMI पे गोवा आते हैं, उन्हें हम एक नारियल पानी, एक फ्री फोटोशूट और एक ‘EMI क्लब कार्ड’ देते हैं।”
“ये EMI क्लब कार्ड क्या होता है?” किशोरलाल ने पूछा।
“इससे आपको हमारे होटल के अगले ट्रिप में 10% की छूट मिलेगी… लेकिन सिर्फ अगर आप फिर से EMI पे आएं।”
“मतलब अगर हम नकद पे आएं तो छूट नहीं मिलेगी?” किशोरलाल ने आश्चर्य से पूछा।
विवेक ने आंख मारते हुए कहा, “नकद देने वाले अब सिर्फ बाप-दादा की पीढ़ी में बचें हैं। अब तो EMI ही इमोशन है।”
रूम शानदार था—समुद्र के ठीक सामने, बालकनी से समुद्र की आवाज, और AC इतना तेज कि किशोरलाल को लगा कहीं इसकी भी अलग EMI न आ जाए।
बीवी ने तुरंत फोटो खिंचवाए, बिट्टू ने फोन गिरा दिया और कहा, “पापा, नया फोन भी लेना पड़ेगा।”
“तेरे पापा का तो लोन ही नया जन्म लेने वाला है,” किशोरलाल बुदबुदाया।
बीच पर पहला दिन:
सूरज ढल रहा था। समंदर की लहरें थपकी दे रही थीं। रश्मि ने बाल खोल दिए और कहा, “किशोर, मुझे पहली बार ऐसा लग रहा है कि ज़िंदगी EMI नहीं, एक खूबसूरत धारा है।”
किशोरलाल ने उसकी तरफ देखा—उसकी आंखों में समुद्र की चमक थी। उसने खुद से कहा, “शायद ये सब वाकई में जरूरी था।”
तभी एक बीच वेंडर आया, “भाईसाब, सनग्लास लीजिए। सिर्फ ₹499… या फिर ₹99 की EMI में पांच महीनों के लिए।”
किशोरलाल ने सिर पकड़ा।
रात को होटल में:
विवेक शेट्टी ने दरवाजे पर दस्तक दी, “सर, हमारी होटल की स्पेशल EMI डिनर बुफे है, जिसमें आप खाने के बाद EMI भर सकते हैं।”
“मतलब खाना भी किश्तों में?” रश्मि ने पूछा।
“जी हां, और अगर आप डेजर्ट नहीं लेंगे, तो अगली किश्त में छूट मिलेगी!”
रात के खाने के बाद किशोरलाल बालकनी में खड़ा हो गया। उसने समंदर को देखा और मुस्कुरा दिया।
“ज़िंदगी अब किश्तों में बंटी है। लेकिन इन किश्तों में भी मस्ती है। EMI ही सही, पर साथ तो है… और क्या चाहिए?”
अंदर से रश्मि ने आवाज दी, “किशोर, आओ… कल डॉल्फिन देखने जाना है, वो भी EMI पे बुक किया है।”
किशोरलाल ने गहरी सांस ली और कहा, “मैं आ रहा हूं… मेरे डॉल्फिन वाले भाग्य!”
भाग 5: डॉल्फिन वाली नाव और पति-पत्नी की किस्तों में बहस
गोवा की सुबह कुछ और ही होती है—हवा में नमकीनपन, नीले आकाश में सफेद बादल, और होटल की बालकनी में खड़ा एक किश्तों में जीता इंसान—किशोरलाल गुप्ता।
किशोरलाल आज जल्दी उठ गया था। सुबह की चाय उसने समुद्र को निहारते हुए पी। उसके कानों में लहरों की आवाज थी, लेकिन दिल में EMI के संदेश बज रहे थे।
अंदर से रश्मि की आवाज आई, “किशोर, जल्दी तैयार हो जाओ, हमें डॉल्फिन देखने जाना है। नाव वाला दस बजे पहुंच जाएगा।”
बिट्टू पहले से ही तैयार था, गले में बिनॉक्युलर लटका कर नारे लगा रहा था, “आज डॉल्फिन पकड़े बिना नहीं लौटेंगे!”
किशोरलाल ने धीरे से पूछा, “रश्मि, ये डॉल्फिन वाली बोट का किराया कितना दिया?”
रश्मि ने गर्व से कहा, “केवल ₹1500… EMI पे!”
किशोरलाल के चेहरे का रंग फीका पड़ गया। “मतलब अब हम डॉल्फिन भी किश्तों में देखेंगे?”
“अरे तो क्या हुआ?” रश्मि ने तर्क दिया, “एक बार में 1500 देना भारी लगता है, लेकिन ₹250 की EMI दे दो, और डॉल्फिन भी देख लो!”
“हमारी ज़िंदगी डॉल्फिन से ज़्यादा डेबिट अलर्ट में बदल चुकी है,” किशोरलाल ने बड़बड़ाते हुए जूते पहने।
डॉल्फिन बोट का सफर शुरू हुआ।
समंदर शांत था, और नाव में बैठी 12 यात्रियों की टोली में सबसे ज्यादा जोश बिट्टू में था। उसने नाव वाले से पूछा, “डॉल्फिन कहाँ है अंकल?”
नाव वाला बोला, “थोड़ी देर में दिखेगी बेटा, लेकिन शर्त ये है कि चुप रहना होगा।”
किशोरलाल ने मुस्कुराकर कहा, “अगर EMI की तरह अचानक सामने आ गई तो?”
नाववाला हँस पड़ा। “EMI से डरना क्या, किश्तों में सब मुमकिन है। आपने ये नाव भी EMI पे ली है क्या?”
“हां जी, और होटल, खाना, टैक्सी… सब कुछ!” किशोरलाल ने जवाब दिया।
नाववाले ने कहा, “तो सर, आप असली गोवा ट्रैवलर हो। यहां अब दो ही लोग आते हैं—बड़े रईस और बड़े EMI वाले।”
डॉल्फिन दिखी।
एक हल्की सी छलांग, नीले पानी पर सफेद रेखा की तरह उसका उछाल। बिट्टू चिल्लाया, “पापा! डॉल्फिन! देखो!” रश्मि ने वीडियो रिकॉर्ड किया। किशोरलाल ने एक फोटो खींची और मन ही मन सोचा—“इस एक सेकेंड के लिए मैंने ₹250 EMI लिया है।”
वो डॉल्फिन बार-बार नहीं आई, पर दिल में उसकी छवि बस गई।
नाव से लौटते समय, बहस की शुरुआत।
“रश्मि,” किशोरलाल ने धीरे से कहा, “अब थोड़ा रुक जाना चाहिए। हर चीज़ EMI पे… सही है क्या?”
“तो क्या करें? कुछ अच्छा करना चाहो तो पैसे कम पड़ते हैं, EMI नहीं लें तो घूमना-फिरना सपना ही रह जाएगा,” रश्मि बोली।
“लेकिन ये सपना कब हकीकत बनेगा? हमने जितना लिया है, अब चार महीने तक सिर्फ EMI चुकानी है। दूधवाले को उधार देनी पड़ी, मोबाइल का रीचार्ज भी काट-काट कर किया।”
“ओह, तो अब दोष मेरा है?” रश्मि ने तीखा होकर कहा, “जब टीवी लिया, तब कुछ नहीं कहा। जब बेटे की साइकिल ली, तब तो खुश थे। अब जब मैंने गोवा की बात की तो सारी समझदारी लौट आई?”
“मैं दोष नहीं दे रहा,” किशोरलाल ने ठंडी आवाज़ में कहा, “बस इतना कह रहा हूं कि सपने देखो, लेकिन ऐसे नहीं कि जागने के बाद कर्ज़ की धूप आंखें जला दे।”
रश्मि चुप हो गई। और फिर कुछ मिनट बाद बोली, “ठीक है, तो अब मैं भी समझदारी से खर्च करूंगी।”
किशोरलाल को राहत मिली। “हम दोनों मिलकर बजट बनाएंगे। रजिस्टर में नया कॉलम डालेंगे—‘ज़रूरी / अनावश्यक’। जैसे ये डॉल्फिन… जरूरी थी।”
“क्यों?” रश्मि ने मुस्कुराकर पूछा।
“क्योंकि बिट्टू की आंखों में जो चमक थी, वो किसी भी EMI से बड़ी थी,” किशोरलाल ने धीरे से कहा।
अगले दिन होटल में एक नया सरप्राइज।
विवेक शेट्टी, होटल रिसेप्शनिस्ट, दरवाजे पर आया और बोला, “सर, आपके नाम एक स्पेशल ऑफर आया है—हमारा होटल एक नया पैकेज निकाल रहा है—‘Romantic Beach Dinner on EMI!’”
किशोरलाल ने माथा पकड़ लिया। “मतलब रोमांस भी अब किश्तों में?”
विवेक बोला, “सर, ये जमाना ही किस्तों का है। प्यार हो या पानी पूरी, EMI ही रास्ता है!”
रश्मि ने चहक कर कहा, “किशोर! ये करते हैं न? एक अच्छा यादगार डिनर!”
किशोरलाल ने आंखें बंद कीं, और फिर मुस्कुराकर कहा, “ठीक है, लेकिन उसके बाद एक महीना बिना EMI के रहना है।”
“पक्का!” रश्मि ने हाथ बढ़ाया।
दोनों ने हाथ मिलाया। और पहली बार ऐसा लगा जैसे किश्तों की ये जंग वे दोनों मिलकर लड़ सकते हैं।
रात में, बीच डिनर के समय।
टेबल पर कैंडल, पास में समंदर की लहरें, दूर गिटार की धुन। रश्मि ने हाथ पकड़कर कहा, “धन्यवाद किशोर… ये सब मेरे लिए किया।”
“तेरे लिए नहीं करता तो किसके लिए करता? बब्लू भिंडी के लिए?” किशोरलाल ने हँसते हुए कहा।
रश्मि भी हँसी, “वैसे वो EMI एजेंट बब्लू बड़ा भावुक था… अगले ट्रिप पर उसे भी साथ ले चलते हैं।”
“नहीं! वो आएगा तो डॉल्फिन भी छुप जाएगी,” किशोरलाल बोला।
और दोनों हँस पड़े।
EMI की लहरों के बीच, उस रात एक सुकून का पल था—किश्तों में सही, लेकिन प्यार तो पूरा था।
भाग 6: EMI मुक्त बनने की योजना और बब्लू भिंडी की वापसी
गोवा की यात्रा किशोरलाल के जीवन में जैसे कोई छोटा सा ताज बन गई थी—हल्की सी चमक, थोड़ी सी चुभन, और बहुत सारी किस्तें। लेकिन उस समुद्र के किनारे दिए गए वादे के बाद, एक नया अध्याय शुरू होने वाला था—EMI मुक्त जीवन की योजना।
गोवा से लौटते ही सबसे पहले जो काम हुआ, वह था ‘EMI पुनरीक्षण सभा’। किशोरलाल, रश्मि और एक अधपके बालों वाला बिट्टू—तीनों डाइनिंग टेबल के पास बैठे थे, जैसे किसी बड़े कॉर्पोरेट मीटिंग में शामिल हों।
बीच में रखा था वो पवित्र EMI रजिस्टर।
किशोरलाल ने पेन उठाया और कहा, “अब से हमारे घर में हर खर्च होगा दो कॉलम में—ज़रूरी और गैर-ज़रूरी।”
रश्मि ने तुरंत चाय बनवाने का आइडिया दिया, “तो मेरी नई कॉफी मशीन वाला विचार?”
“गैर-ज़रूरी।”
बिट्टू बोला, “और मेरी नयी PS5?”
किशोरलाल ने उसे घूरा।
बिट्टू ने खुद ही कहा, “ठीक है, गैर-ज़रूरी।”
इस नये सदाचार के बीच एक और आवश्यक काम किया गया—बब्लू भिंडी को बुलाना।
उसने व्हाट्सएप पर मैसेज किया:
“भिंडीजी, गोवा से लौटकर हमने जीवन को नए तरीके से जीने का संकल्प लिया है। कृपया मार्गदर्शन करें।”
जवाब आया—
“आ रहा हूं सर, रजिस्टर और हार्मोनियम लेकर। आज आपकी आत्मा को छूकर जाऊंगा।”
शाम को जब दरवाज़ा खुला, सामने वही बब्लू भिंडी, नीली शर्ट में, हाथ में EMI की मोटी फाइल और एक नया डिजिटल EMI कैलकुलेटर लेकर खड़ा था।
“सर, लगता है गोवा ने आपको बदल दिया है। आपसे अब ‘EMI स्पेशल श्रवण कुमार’ की खुशबू आ रही है।”
“हम बदलना चाहते हैं भिंडीजी। अब और नहीं। अब EMI नहीं, सेविंग्स चाहिए,” किशोरलाल ने दृढ़ आवाज में कहा।
बब्लू ने कुर्सी खींची और कहा, “अच्छा, चलिए EMI डिटॉक्स करते हैं।”
EMI डिटॉक्स प्रोग्राम – बब्लू भिंडी संस्करण 1.0
1. EMI Consolidation:
“आपके पास 6 EMI हैं अलग-अलग बैंकों से। इन्हें एक साथ जोड़कर एक ‘मास्टर EMI’ बना लेते हैं। जैसे सारे चावल एक थाली में। इससे ब्याज थोड़ा कम होगा, और टेंशन भी।”
2. Unsubscribe Mission:
“जो चीज़ें अब काम नहीं आ रही हैं—जैसे बीवी की सिलाई मशीन, बच्चे का बेकार हो चुका स्कूटर—बेच डालिए। पैसा भी आएगा और बोझ भी कम होगा।”
3. सप्ताह में एक ‘No Spend Day’:
“हर हफ्ते एक दिन ऐसा होगा जब न कोई EMI, न खर्चा, न सपना—सिर्फ रोटी, नमक और सुकून।”
4. ‘Cash is King’ नियम लागू:
“जहां तक हो, नकद में खरीदारी करें। EMI पे सिर्फ वही जो बिना लिए नींद न आए।”
5. गैर-ज़रूरी सपनों का सूचीकरण:
“PS5, बटर चिकन रोज़ाना, म्यूजिक सिस्टम, मसाज चेयर—सबको एक अलग काले पन्ने में लिखिए। ये वो सपने हैं जो बैंक के नोटिफिकेशन में डूबते हैं।”
रश्मि ने बीच में टोका, “और अगर मैं कोई साड़ी लेना चाहूं EMI पे?”
बब्लू ने शांति से कहा, “अगर वो साड़ी पहनकर आप हर महीने EMI भी भरें, तो ज़रूर लें।”
सब हँस पड़े।
किशोरलाल ने अपनी जेब से वो छोटा EMI कार्ड निकाला जो होटल में मिला था और बब्लू को थमाया, “अब इस कार्ड से भी डर लगने लगा है।”
बब्लू ने कार्ड को देखा, एक मोमबत्ती जलाई और बोला, “आज से हम इस EMI कार्ड का अंतिम संस्कार करते हैं।”
उसने कार्ड को जलाई गई मोमबत्ती के ऊपर घुमाया और बोला, “हे किस्तों के भगवान, इस परिवार को कृपया एक छुट्टी दीजिए।”
फिर किशोरलाल ने कहा, “भिंडीजी, अब हम आपकी तरह ही लोगों को सिखाएंगे कि बिना सोचे EMI लेना कितना खतरनाक हो सकता है।”
बब्लू भावुक हो गया। “सर, आप जैसे आदमी अगर EMI मुक्त हो गए, तो बाकी जनता भी बच सकती है। मैं आपको एक खिताब देना चाहता हूं—किश्तमुक्त योद्धा!”
एक महीना बाद—
किशोरलाल के घर में अब हर चीज़ व्यवस्थित थी। EMI रजिस्टर अब ‘Monthly Saving Tracker’ बन चुका था। हर दिन एक खर्च कम किया जाता। ऑनलाइन सेल आते ही सब मुंह फेर लेते। और वीकेंड पर रश्मि खुद घर में पिज़्ज़ा बनाती—वो भी बेसन का।
बिट्टू ने स्कूल में एक प्रोजेक्ट बनाया—“EMI: दोस्त या दुश्मन?”
उसका नारा था—“EMI तभी लो, जब जेब में हो भरोसा।”
रश्मि ने अपनी सहेलियों को कहा, “देखो, अब मैं पहले सोती हूं फिर खरीदारी करती हूं। पहले उल्टा था।”
और किशोरलाल?
वह अब हर महीने एक नया लघु निबंध लिखता था—‘किश्तों की कहानियाँ’—जो फेसबुक पर पोस्ट करता, और एक बार तो 320 लाइक्स भी मिले।
लेकिन सबसे बड़ा सम्मान तब मिला जब बब्लू भिंडी फिर से आया, और इस बार कोई हार्मोनियम नहीं लाया। उसने किशोरलाल के हाथ में एक प्रमाणपत्र दिया—
“EMI फ्री सम्मान – Presented to Mr. Kishorelal Gupta for Surviving 7 Active Loans Without a Nervous Breakdown.”
पूरा परिवार खड़ा हुआ। तालियाँ बजीं। और किशोरलाल ने वो प्रमाणपत्र दीवार पर टाँगते हुए कहा:
“कभी-कभी ज़िंदगी भी किश्तों में मिलती है, लेकिन अगर प्यार, समझदारी और थोड़ी हंसी हो, तो हर किस्त एक कहानी बन जाती है।”
भाग 7: EMI मुक्त जीवन में पहला त्योहार – दिवाली बिना देनदारी के
किशोरलाल गुप्ता का जीवन अब कुछ-कुछ फिल्मी हो गया था—EMI की लत से मुक्त होकर वो खुद को किसी भूतपूर्व अपराधी जैसा महसूस करता था, जो अब सत्संग में जाकर मोक्ष की तलाश कर रहा हो। रजिस्टर अब ‘Monthly Peace Book’ बन चुका था, और हर पन्ने पर पैसे बचाने की लकीरें थीं।
लेकिन फिर आया त्योहारों का सीज़न—दिवाली।
दिवाली यानी रोशनी, मिठाइयाँ, सजावट, पटाखे और… सेल।
और इन सेल्स में छुपा होता है वो जानलेवा वायरस—EMI Offers।
अक्टूबर के अंत में ही रश्मि ने एक व्हाट्सएप मैसेज दिखाया—“फ्लिपकार्ट बिग धमाका सेल – मोबाइल्स, फ्रिज, टीवी सबकुछ 0% EMI पर।”
और साथ में एक दिलचस्प लाइन—”EMI is the new Diwali!”
किशोरलाल ने देखा और मुस्कुराया।
“अब हमारा घर EMI फ्री जोन है। यहां सिर्फ दीये जलेंगे, बैंक के मैसेज नहीं।”
रश्मि ने थोड़ी झुंझलाहट से कहा, “पर लोग तो नया सोफा भी खरीद रहे हैं, नए कपड़े, मिठाइयाँ पैक-पैक के भेज रहे हैं। हम क्या सिर्फ सादगी से ही मनाएँ?”
किशोरलाल ने धीरे से कहा, “सादगी नहीं, समझदारी से मनाएँ। चलो, एक दिवाली प्लानिंग मीटिंग करते हैं।”
और शुरू हुआ पहला EMI-मुक्त दिवाली प्लान।
बैठक में प्रस्ताव रखा गया:
1. सजावट:
बीवी ने कहा, “नया लाइटिंग सेट खरीदना है। पुराने वाले लाइट्स तो पंखे में लटकते-लटकते झूलने लगे हैं।”
किशोरलाल ने जवाब दिया, “बिट्टू के स्कूल प्रोजेक्ट के कार्डबोर्ड और रंग से घर सजाएँगे। और बिजली बचाने के लिए दीये जलाएँगे—दो फायदे, EMI नहीं और लाइट का बिल भी कम!”
2. मिठाइयाँ:
बिट्टू बोला, “पापा, इस बार मावा बर्फी लाना। वो जो 800 रुपये किलो वाली…”
रश्मि ने आंखें तरेरी।
किशोरलाल ने कहा, “मिठाइयाँ हम खुद बनाएँगे। और अगर अच्छा बना तो अगली बार ‘गुप्ता स्वीट्स होम मेड’ का बोर्ड भी लगाएँगे।”
3. उपहार:
बीवी बोली, “सहेलियों को कुछ देना भी तो होगा?”
किशोरलाल ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “घर का बना गुलाब जल और हस्तनिर्मित मोमबत्ती—दिल से दीजिए, दुकान से नहीं।”
सारी बातें सुनकर रश्मि ने एक गहरी सांस ली और कहा, “ठीक है… ये दिवाली EMI फ्री सही में खास होगी।”
और फिर शुरू हुई तैयारी।
घर की दीवारें खुद रंगी गईं। बिट्टू ने व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से DIY वीडियो देखकर पुराने अखबार से तोरण और रंगोली बनाई।
रश्मि ने बेसन, खोया और मेवा से लड्डू बनाए। और मिठाइयाँ बनने की महक पूरे मोहल्ले में फैल गई।
सभी पड़ोसी पूछने लगे, “भाभीजी, कुछ खास बना रही हैं क्या? इस बार तो ऑनलाइन नहीं मंगवाया?”
रश्मि मुस्कुराकर कहती, “EMI नहीं तो रसोई में रौनक है!”
बिट्टू स्कूल से लौटा और बोला, “पापा, हमारे क्लास में सबके घर नया TV आया। अर्जुन के घर तो Alexa भी है। हम क्या जवाब दें?”
किशोरलाल ने बिट्टू को गोदी में बिठाया और कहा, “बेटा, दूसरों के घर में जो है वो दिखता है, पर घर में जो नहीं है, वो महसूस होता है। हमारे घर में इस बार कोई डर नहीं है कि दिवाली के बाद क्रेडिट कार्ड का बिल आएगा। वो शांति सबसे बड़ी संपत्ति है।”
बिट्टू ने सिर हिलाया और कहा, “मतलब EMI से छुटकारा ही असली लक्ष्मी है?”
“बिल्कुल।”
और फिर आई दिवाली की रात।
घर में सादगी थी, लेकिन चमक भी थी। दीयों की रोशनी, मिठाइयों की खुशबू, और एक अजीब सी संतोष की भावना।
रश्मि ने पहली बार खुद को हल्का महसूस किया। न कोई उधारी, न किसी सेल की अफसोस, न कोई ‘बाद में भर देंगे’ वाला सामान।
बिट्टू ने हाथ में कुछ दीए लेकर बोला, “पापा, इन दीयों को हम EMI फ्री दीये कहें?”
किशोरलाल ने कहा, “हां, और हर दीये के साथ एक वादा—कभी ऐसा खर्च नहीं करेंगे, जो जेब से ज्यादा और दिल से कम निकले।”
तभी गली में शोर हुआ।
दरवाजे की घंटी बजी।
किशोरलाल ने दरवाजा खोला—सामने खड़ा था एक व्यक्ति चमकती जैकेट में, हाथ में गिफ्ट बॉक्स और मुँह पर वही पुरानी मुस्कान।
“बब्लू भिंडी!”
“सर, दिवाली है। सोचा आपको मेरा ‘EMI फ्री ग्रीटिंग कार्ड’ दे दूँ। इसमें वो 13 आइटम्स हैं जो आप नहीं खरीदे, लेकिन लोग ले गए—और अब मुझे गालियाँ दे रहे हैं!”
किशोरलाल ने कार्ड पढ़ा—
“Smartphone EMI: टूट गया, पर किस्तें बाकी
Sofa EMI: कुत्ते ने काटा, अब बैठने लायक नहीं
Drone EMI: उड़ाया एक बार, अब कोने में पड़ा है”
वे दोनों हँस पड़े।
रश्मि बाहर आई और कहा, “आइए भिंडीजी, मिठाई खाइए।”
बब्लू ने एक लड्डू उठाया और कहा, “भाभीजी, ये EMI फ्री स्वाद है। ये मिठाई कर्ज से नहीं, प्यार से बनी है। ये असली दिवाली है।”
बिट्टू ने बब्लू से पूछा, “आपके घर भी EMI फ्री दिवाली है?”
बब्लू ने सिर झुकाया, “नहीं बेटा, मैं तो EMI का सौदागर हूँ, लेकिन तुम लोगों से बहुत कुछ सीख रहा हूँ। अगली बार मैं भी ऐसा ही करूंगा।”
दिवाली की रात में जब आकाश में पटाखे छूट रहे थे, तो किशोरलाल का परिवार दीयों की रोशनी में चाय पी रहा था—एक शांत मुस्कान, कोई घबराहट नहीं, कोई मैसेज नहीं—सिर्फ शांति।
किशोरलाल ने आसमान की तरफ देखा और बुदबुदाया:
“इस साल की सबसे बड़ी रौशनी… हमारे भीतर है।”
भाग 8: रिश्तेदारों की नजर में EMI मुक्त परिवार और एक नई परीक्षा
दिवाली बीत चुकी थी, लेकिन किशोरलाल के घर में अब भी एक तरह की सुकून भरी रौशनी बनी हुई थी—EMI से आज़ादी की रौशनी। घर का माहौल हल्का-फुल्का, मिठाइयाँ बची हुईं, और सबसे महत्वपूर्ण चीज़—क्रेडिट कार्ड का बिल शून्य।
किंतु एक चीज़ जिसे किशोरलाल भूल गया था, वो थी रिश्तेदार।
हाँ, वही, जो त्योहारों के बाद आते हैं, घर की सजावट पर टिपण्णी करते हैं, और सबसे ज़्यादा सवाल पूछते हैं—”क्या लिया इस बार?”
और इसी शुभ घड़ी में आया फ़ोन—बड़े जीजाजी का।
“अरे किशोर बाबू! सुना आप लोग गोवा घूम आए! EMI पे गए क्या?”
“हां जीजाजी… गए थे… पर अब EMI मुक्त हो चुके हैं।”
“वाह! तो अब आप साधु बन गए क्या? ये भी कोई बात हुई? दिवाली में ना सोफा लिया, ना नया फ्रिज, ना ही कोई LED!”
“जीजाजी, इस बार सादगी से मनाया। मिठाइयाँ घर पे बनीं, सजावट खुद की, और—”
“मतलब कंजूसी से मनाया?”
फोन कट होते ही रश्मि आई, “क्यों बोल रहे थे जीजाजी को कि कुछ नहीं लिया? वो तो अब सबको बताएंगे कि हम लोग दीवाली में टोस्टर भी नहीं ले पाए!”
“तो क्या झूठ बोलूं?” किशोरलाल ने कहा। “हमने जो किया, सच्चाई है। और अब तो हमें इन बातों से ऊपर उठना चाहिए।”
“ठीक है,” रश्मि बोली, “लेकिन ज़रा तैयार रहना। परसों भाभीजी आ रही हैं—वो जिनके पति ने दिवाली पर कार ली है। EMI पर ही सही, लेकिन कार है।”
और फिर आई वो घड़ी।
घर में दाखिल हुईं मीनाक्षी भाभी, लाल रंग की साड़ी में, आँखों में काजल और होंठों पर EMI वाली मुस्कान।
“अरे वाह भाभीजी, आपका घर तो बहुत प्यारा लग रहा है,” उन्होंने चाय का कप उठाते हुए कहा, “थोड़ा सिंपल है, लेकिन प्यारा है।”
रश्मि मुस्कुरा दी, “इस बार हमने खुद ही सजाया। EMI फ्री घर है।”
“ओह! वैसे हमने तो इस बार नई कार ली है। रजत बोले, अब बच्चे बड़े हो गए हैं, Alto से काम नहीं चलेगा। Skoda ली है, 5 साल की EMI पर, लेकिन काफ़ी स्टेटस लगता है।”
बिट्टू कमरे में आया और अपनी बनाई हुई दीयों की फोटो दिखाने लगा।
“ये हमने खुद बनाए थे भाभीजी!”
मीनाक्षी भाभी ने उसकी पीठ थपथपाई, फिर धीमे से बोलीं, “बिट्टू बेटा, अगली बार मैं तुम्हें एक असली LED लाइट सेट भेजूंगी, ताकि तुम्हें ये कागज वाले बनाना न पड़े।”
रश्मि को जैसे किसी ने चुपके से चुभो दिया हो।
बातों-बातों में भाभीजी ने अपनी नई साड़ी, पति के स्मार्टवॉच, और बिटिया की EMI पे ली गई iPad का जिक्र किया।
और हर बार एक ही लाइन—“थोड़ा EMI का झंझट तो है, पर आजकल बिना EMI कुछ नहीं मिलता!”
रात को जब वे चली गईं, रश्मि चुपचाप बैठी थी।
“क्या हुआ?” किशोरलाल ने पूछा।
“कुछ नहीं… बस सोच रही हूँ, क्या सचमुच हम पीछे रह गए हैं?”
“रश्मि, पीछे वही होता है जो उधारी में दिखावा करता है। हम तो अब आगे बढ़ रहे हैं—बिना बोझ के, बिना दिखावे के।”
“लेकिन समाज को कौन समझाए?”
“हमें समझाने की ज़रूरत नहीं। हमें बस जीने की ज़रूरत है… सही तरीके से।”
अगले दिन एक नया मोड़ आया।
किशोरलाल को ऑफिस से बोनस मिला—पूरे ₹15,000।
रश्मि ने तुरंत सुझाव दिया, “चलो! अब कुछ नया खरीद ही लेते हैं। इस बार बिट्टू को लैपटॉप दिलवा देते हैं। ऑनलाइन क्लासेस भी हैं, और प्रोजेक्ट भी।”
बिट्टू की आंखें चमक उठीं।
किशोरलाल सोच में पड़ गया।
अंदर बैठा ‘पुराना किशोरलाल’ कह रहा था—“EMI से ले लो, बढ़िया लैपटॉप आ जाएगा!”
बाहर खड़ा ‘नया किशोरलाल’ कह रहा था—“बचत से लो, जितना संभव हो, और बाकी धीरे-धीरे जोड़ो।”
और तब उसने फैसला लिया—नकद में ही खरीदी करेंगे, जितना पैसा है उतने का ही लैपटॉप।
रश्मि ने पूछा, “लेकिन वो 16 GB RAM वाला नहीं मिलेगा…”
“तो 8 GB में काम चलाएँगे। RAM से ज़्यादा ज़रूरी है आत्म-सम्मान।”
बिट्टू ने भी कहा, “पापा, मैं अपनी पॉकेट मनी से ₹1000 दे सकता हूँ।”
उस दिन पहली बार किशोरलाल को लगा कि उसका EMI मुक्त जीवन सिर्फ उसकी कहानी नहीं, एक सोच बन रही है—जो आगे बढ़ रही है।
अगले हफ्ते ऑफिस में भी EMI कथा छिड़ गई।
राकेश, जो पिछले साल बाइक की EMI में डूब गया था, अब किशोरलाल से सलाह लेने लगा।
“भाई, तुमने कैसे खुद को संभाला? मेरा तो हर हफ्ते फोन आता है बैंक से।”
किशोरलाल ने मुस्कुराकर कहा, “EMI से आज़ादी किसी जेल से भागने से कम नहीं होती। लेकिन उसके लिए जिगर भी चाहिए और जुगाड़ भी।”
“और EMI एजेंट से?”
“भाई, अगर तुम्हारा EMI एजेंट बब्लू भिंडी जैसा हो, तो खुद ही सुधार देता है!”
रात को किशोरलाल ने डायरी में लिखा:
“एक साल पहले तक मैं हर महीने की पहली तारीख से डरता था। अब उसी तारीख को मैं घर का बिल बनाता हूँ और एक गुलाब का फूल पत्नी के लिए लाता हूँ।
दिखावे से बचने में जो शांति है, वो 0% EMI से भी ज़्यादा कीमती है।”
भाग 9: EMI मुक्त परिवार की शादी में परीक्षा – रिश्तेदारों की चकाचौंध बनाम सादा सोच
सर्दियों की शुरुआत हो चुकी थी। चाय की चुस्की और गरम पकौड़ों की सुगंध के बीच किशोरलाल EMI मुक्त जीवन का पूरा आनंद उठा रहा था। बचत धीरे-धीरे बढ़ रही थी, और रश्मि की रसोई से निकलती मिठाइयाँ अब बाजार से कहीं बेहतर लगने लगी थीं। बिट्टू ने अपने नए लैपटॉप पर प्रोजेक्ट भी बना लिया था और अब ‘फाइनेंशियल लिटरेसी’ पर स्कूल में भाषण देने की तैयारी कर रहा था।
लेकिन तभी आया एक और सामाजिक चक्रव्यूह—शादी का न्योता।
फोन बजा।
“हैलो किशोर बाबू! राजू की शादी पक्की हो गई है। आपके परिवार को पूरा आना है। और हाँ, कपड़े अच्छे से पहनिएगा, अब आप हमारे रिटायर्ड बड़े बाबू नहीं, EMI मुक्त सेलिब्रिटी हो!”
फोन रखने से पहले एक और लाइन—
“और गिफ्ट कुछ अच्छा होना चाहिए! कम से कम ₹5000 की तो उम्मीद है ही!”
रश्मि ने फोन काटते ही कहा, “अब ये नई मुसीबत आ गई। रिश्तेदार की शादी में सब लोग दिखावा करेंगे, और हम जाएंगे अपनी सादगी लेकर?”
“हम सादगी नहीं, समझदारी लेकर जाएंगे,” किशोरलाल ने गहरी सांस लेकर कहा।
शादी का प्लानिंग मीटिंग बुलाई गई:
स्थान: डाइनिंग टेबल
उपस्थित: किशोरलाल, रश्मि, बिट्टू, और EMI रजिस्टर (अब ‘बजट बुक’ नाम से प्रसिद्ध)
एजेंडा: शादी में दिखावा से कैसे बचे, और फिर भी कैसे सम्मानजनक बनें?
1. कपड़े:
रश्मि ने प्रस्ताव रखा, “मुझे इस बार सिल्क की नई साड़ी चाहिए। सुनीता भाभी तो पिछली बार मुंबई से 12,000 की साड़ी लाई थीं।”
किशोरलाल ने हल्के स्वर में कहा, “तुम्हारे पास वो गुलाबी कांजीवरम है न? थोड़ा प्रेस करा लो, उसमें तुम किसी रॉयल्टी से कम नहीं लगोगी।”
बिट्टू ने जोड़ा, “मम्मी, मैं अपनी शर्ट पर नया बिल्ला लगा लूंगा—‘पापा का बजट चैंपियन।’”
2. गिफ्ट:
“₹5000 में क्या दें?” रश्मि ने पूछा।
“पैसे फेंकने से अच्छा है कुछ अर्थपूर्ण देना,” किशोरलाल बोला।
आखिर फैसला हुआ—रश्मि खुद घर में ‘डायरी ऑफ सेविंग टिप्स’ तैयार करेंगी, जिसमें EMI मुक्त जीवन के मूलमंत्र होंगे। उसके साथ कुछ हैंडमेड मिठाइयाँ। गिफ्ट का नाम—‘समझदारी का पैकेट।’
3. ट्रैवल:
“कार बुक कर लें?” रश्मि ने पूछा।
“नहीं, ट्रेन से जाएंगे। और याद रखना, यात्रा जितनी लंबी हो, हँसी उतनी गहरी होती है।”
शादी का दिन आया।
बिट्टू झकाझक शर्ट में था। रश्मि ने कांजीवरम को करीने से पहना और हल्का सा गजरा लगाया। किशोरलाल अपनी पुरानी नेहरू जैकेट में किसी क्लासिक हिंदी फिल्म के नायक लग रहे थे।
फूलों से सजे मंडप में पहुंचे तो सबकी नजर उन पर पड़ी।
“अरे किशोर बाबू, नमस्ते!”
“वही जो EMI छोड़कर जीवन सुधार में लग गए हैं!”
“देखो-देखो, इनके पास कार नहीं फिर भी टाइम पे आए!”
कुछ हँसी उड़ी, कुछ मुस्कान मिली। पर जब उन्होंने गिफ्ट पैकेट थमाया और बताया कि इसमें क्या है—तो सब चौंक गए।
रिश्तेदारों का रिएक्शन:
“मतलब आपने खुद टिप्स लिखी हैं?”
“मिठाइयाँ घर की बनी हैं?”
“वाह! ये तो बहुत ही अनोखा गिफ्ट है।”
राजू की माँ, जो हमेशा हर चीज़ पर राय रखती थीं, पहली बार मुस्कुराईं और बोलीं, “आज तक जो भी आया, ज्वेलरी या शो-पीस दे गया। लेकिन आप जो दे गए, वो शायद आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है।”
शादी में भव्यता थी—DJ, हल्दी-मेहंदी थीम, बुफे में 29 आइटम्स। लेकिन किशोरलाल के अंदर की शांति कहीं ज़्यादा स्वादिष्ट लग रही थी।
रात को वापस लौटते हुए ट्रेन में रश्मि बोली, “किशोर, तुम्हारा ये EMI मुक्त जीवन अब मुझे भी बहुत प्यारा लगने लगा है।”
“हां, क्योंकि अब हम न किसी से दब रहे हैं, न किसी को दिखा रहे हैं। जो हैं, जैसे हैं, वही काफी है।”
बिट्टू बोला, “पापा, अगली बार मेरी बर्थडे पार्टी भी EMI फ्री रखना, लेकिन केक बड़ा होना चाहिए!”
“ठीक है,” किशोरलाल हँसते हुए बोला, “केक नकद में लेंगे, लेकिन उस पर लिखवाएँगे—’EMI नहीं, प्यार चाहिए!’”
घर लौटते ही, डोर बेल बजी।
सामने खड़ा था—बब्लू भिंडी।
“सर, आपकी EMI मुक्त शादी यात्रा की खबर सुनी। ये लो मेरी तरफ से एक छोटा सा सर्टिफिकेट—’Publicly Debtless Family of the Year!’”
रश्मि ने चाय पकाई, बिट्टू ने बिस्किट लाया। बब्लू ने हार्मोनियम नहीं लाया, बल्कि एक कविता सुनाई—
“किश्तों में जो जीते हैं, वो हर दिन थकते हैं,
जो बिना उधारी के हँसते हैं, वही सच्चे दीवाने हैं।
EMI ने जो छीना, वो समझदारी ने लौटाया,
गुप्ता परिवार ने जो किया, वो सबको सिखाया।”
तीनों तालियाँ बजा उठे।
भाग 10 : EMI का अंतिम अध्याय – बब्लू की नौकरी छोड़ने की घोषणा और किशोरलाल का मिशन शुरू
गोवा की यात्रा से लेकर रिश्तेदार की शादी तक, किशोरलाल गुप्ता की जिंदगी ने ऐसी करवट ली थी, जैसे पुराने स्कूटर में नई बैटरी लग गई हो। EMI मुक्त होने के बाद जीवन में जो शांति आई थी, वो अब सिर्फ परिवार तक सीमित नहीं रही, बल्कि धीरे-धीरे मोहल्ले में चर्चा का विषय बन गई।
कभी जिसके घर में हर महीने SMS आता था—”आपकी EMI आज कट जाएगी”, अब वहाँ पड़ोसी आकर पूछते थे,
“किशोर भैया, EMI से छुटकारा कैसे मिला?”
“EMI के बिना भी ज़िंदगी चलती है क्या?”
किशोरलाल अब हँसते हुए कहते,
“चलती नहीं, दौड़ती है! बस शुरुआत करनी पड़ती है बिना दिखावे के।”
लेकिन यह कथा तब मोड़ पर आई जब एक शाम दरवाजे पर दस्तक हुई—दरवाज़ा खोला और सामने खड़ा था—बब्लू भिंडी।
पर आज का बब्लू बदला हुआ था। EMI वाले चमकीले कपड़े नहीं, बल्कि सफेद कुरता और खादी की झोली।
चेहरे पर मुस्कान वही, पर आंखों में एक नई चमक।
“सर, एक बात कहने आया हूं…”
“क्या हुआ भिंडीजी?” किशोरलाल ने सोफे पर बिठाते हुए पूछा।
“मैंने नौकरी छोड़ दी है।”
“क्या? EMI एजेंट की नौकरी?” रश्मि की चाय के कप से चाय छलक पड़ी।
“हां,” बब्लू ने लंबी सांस ली, “अब मैं किसी से किश्त वसूली नहीं करूंगा। अब मैं लोगों को EMI से बचने की सीख दूंगा। अब मैं ‘ब्याज मुक्त भारत मिशन’ का स्वयंसेवक बनना चाहता हूं।”
किशोरलाल मुस्कुरा उठा, जैसे कोई पिता अपने बेटे की सही राह पकड़ने पर गर्व महसूस करता है।
“आपने सिखाया है सर… EMI एक ‘आसान मासिक आत्महत्या’ है। थोड़ी-थोड़ी करके इंसान खुद को खत्म करता रहता है। अब मैं भी आपकी तरह लोगों को बचाऊंगा।”
“बहुत अच्छा सोचा है भिंडीजी,” रश्मि ने मिठाई परोसी, “लेकिन ये काम अकेले बड़ा मुश्किल है।”
“तो अकेला क्यों?” किशोरलाल उठ खड़ा हुआ।
“आज से हम साथ हैं—मैं, रश्मि, बिट्टू और आप! हम बनाएंगे एक मिशन—‘EMI मुक्त जीवन अभियान।’”
बिट्टू ने झटपट एक पोस्टर बनाया—गोल रंग में बड़ा सा “₹” और उस पर एक क्रॉस का निशान।
“नाम क्या रखें पापा?” बिट्टू ने पूछा।
“नाम होगा—’सादा जीवन, सच्चा जीवन अभियान’।”
अगले ही हफ्ते उन्होंने मोहल्ले की कम्युनिटी हॉल में एक सेमिनार रखा—“किश्तों से बाहर – एक व्यवहारिक गाइड।”
अभियान का उद्घाटन हुआ बब्लू भिंडी के भाषण से—
“मैं बब्लू भिंडी, जो कभी आपसे गाने गा-गा कर EMI वसूलता था, आज आपसे वादा करता हूं—अब हर गली में, हर मोहल्ले में, EMI से छुटकारे का मंत्र फैलाऊंगा।”
किशोरलाल ने मंच पर खड़े होकर बताया—
“हमारी ज़िंदगी एक टाइम बम बन चुकी थी। हर महीने की पहली तारीख से डर लगता था। लेकिन जब हमने ‘ना’ कहना सीखा, तब जाकर चैन की नींद आई। EMI से छुटकारा कोई चमत्कार नहीं—ये अनुशासन है।”
भीड़ में बैठे एक युवक ने पूछा,
“लेकिन किश्तें तो मजबूरी हैं! कोई कैसे घर, गाड़ी, मोबाइल बिना EMI के ले सकता है?”
किशोरलाल ने मुस्कुराकर जवाब दिया,
“सपने देखो, लेकिन अपनी चादर देखकर। अगर EMI लेनी भी पड़े, तो एक समय में सिर्फ एक। और उससे ज्यादा जरूरी—ज़रूरत और लालच में फर्क जानो।”
तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूंज उठा।
अभियान के अंत में, लोगों को एक छोटा-सा पैकेट दिया गया—जिसमें थी एक चाय की पुड़िया, एक हस्तलिखित पत्र और एक पंक्ति—
“बजट बनाओ, बंधन मिटाओ।”
इसके बाद क्या हुआ?
1. राकेश, जो पहले EMI में डूबा हुआ था, अब हफ्ते में दो दिन ऑटो चलाकर एक्स्ट्रा कमाई करता है और अपनी किश्तों को बंद कर चुका है।
2. मीनाक्षी भाभी, जो पहले EMI वाली शॉपिंग में रिकॉर्ड बनाती थीं, अब अपनी सहेलियों को ‘कैश में खुश रहो क्लब’ चलाकर सिखा रही हैं।
3. बब्लू भिंडी अब ‘बब्लू ज्ञानदूत’ बन गया है और यूट्यूब चैनल चला रहा है—“भिंडी बोले तो बजट”, जिसमें EMI फ्री रेसिपी से लेकर जीवनशैली तक सब पर ज्ञान देता है।
4. बिट्टू ने स्कूल में पहला भाषण दिया—“मेरे पापा अब डरते नहीं, क्योंकि उनके पास अब कोई किश्त नहीं।”
और किशोरलाल?
अब वे हर महीने EMI फ्री लाइफ के बारे में एक कॉलम लिखते हैं लोकल अख़बार में—“बिना ब्याज की बात”।
एक दिन, किशोरलाल अपने पुराने EMI रजिस्टर के आखिरी पन्ने को पढ़ रहे थे। वहां लिखा था:
“एक दिन आएगा जब ये पन्ने बंद हो जाएंगे, और ज़िंदगी फिर खुलकर मुस्कुराएगी।”
उन्होंने वो पन्ना बंद किया, मुस्कराए और रश्मि से कहा—
“हमने सिर्फ किश्तें नहीं चुकाई हैं… हमने अपनी आज़ादी खरीदी है। और वो भी बिना ब्याज के।”
अंत




