शिवानी कश्यप इशा रेड्डी अपने मुंबई स्थित उच्च-मूल्य वाले फ्लैट की खिड़की से बाहर देख रही थी, जहाँ से शहर का विस्तृत आकाश नजर आता था। कभी इस शहर ने उसे अपने सपनों के रंग दिए थे, लेकिन अब यह शहर उसे एक बंद पिंजरे जैसा महसूस होने लगा था। वाहनों का शोर, लोगों की भाग-दौड़, और निरंतर दौड़ते हुए जीवन ने उसे पूरी तरह से थका दिया था। वह एक सफल करियर में थी, प्रतिष्ठित कंपनी में काम कर रही थी, जहां उसकी हर पहचान थी, लेकिन इन सबके बावजूद, उसे अंदर से एक खालीपन महसूस हो रहा था।…
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सुनील पाटिल राजेश और आर्टी की शादी हो चुकी थी, और अब वे अपनी शादी के बाद के हनीमून के लिए तैयार थे। दोनों ने एक शांत और सुरम्य हिल स्टेशन का चुनाव किया था, जो उनके दिलों के करीब था। हालांकि, राजेश को यात्रा की योजना बनाते वक्त कुछ उलझन थी, क्योंकि वह हमेशा से ही हर चीज़ को व्यवस्थित और नियंत्रित रखना पसंद करते थे। वह चाहते थे कि उनका हनीमून एक सपने जैसा हो, बिना किसी परेशानी और अड़चनों के। आर्टी, जो हमेशा से रोमांचक और नए अनुभवों की तलाश में रहती थी, इस यात्रा को लेकर…
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मायूरी शंकर माया ने मुंबई की व्यस्त और तनावपूर्ण जिंदगी से थक कर गोवा जाने का फैसला किया था। वह एक कॉर्पोरेट पेशेवर थी, जो अपने काम में हमेशा डूबी रहती थी। हर दिन की भागदौड़, मीटिंग्स और डेडलाइन्स ने उसे मानसिक और शारीरिक थकावट का शिकार बना दिया था। वह किसी तरह अपने कार्यों को पूरा करती, लेकिन अंदर ही अंदर वह महसूस कर रही थी कि वह अपनी जिंदगी को खोती जा रही है। पिछले कुछ दिनों से उसकी आंखों में एक अजीब सी थकान थी, और मन में खालीपन महसूस हो रहा था। एक दिन उसने अचानक…
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निशा अरोरा एक दिल्ली के उस सुबह की धूप बेहद सामान्य थी—उजली, लेकिन भावना से शून्य। अद्वैता शर्मा की खिड़की से छनकर आती रोशनी जैसे उसका चेहरा नहीं, उसकी पुरानी आदतों पर गिर रही थी। साढ़े सात बजे का अलार्म बंद कर वह वैसा ही उठी जैसे हर दिन, मैकेनिक की तरह। कॉफी मशीन चालू, बाथरूम की टाइल्स पर नंगे पाँव चलना, और टेबल पर बिखरे केस फाइल्स को एक नज़र देखना—जैसे उसने ज़िंदगी को स्वचालित मोड पर डाल रखा हो। लेकिन आज कुछ अलग था। उसकी आँखें एक जगह पर अटक गईं थीं—बुकशेल्फ़ के ऊपरी कोने पर रखी वो…
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नीलय मेहता अनिरुद्ध सेनगुप्ता ने स्टेशन पर रुकती उस ट्रेन को देखा तो कुछ देर तक बस खड़ा रहा, जैसे कोई अंतर्मन उसे रोक रहा हो या शायद वही धक्का दे रहा हो जिसकी उसे वर्षों से तलाश थी। चेन्नई एগ्मोर से रामेश्वरम जाने वाली वह रात की ट्रेन उसके लिए किसी साधारण सफ़र का ज़रिया नहीं थी—वह एक ऐसा दरवाज़ा थी, जो उसे उसके भीतर की किसी गूंजती आवाज़ तक ले जाने वाली थी। टिकट खिड़की पर लंबी लाइन, प्लेटफॉर्म की गंध, खड़खड़ाती ट्रॉली और चायवालों की पुकार—यह सब अनिरुद्ध को परिचित सा लगा लेकिन उस दिन हर आवाज़…
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अनिकेत तिवारी सुबह की भीड़भाड़ भरी दिल्ली, उसकी चिल्ल-पों और भागती ज़िंदगी की आवाज़ें जब भी खिड़की से भीतर आतीं, आदित्य के मन में एक खालीपन भर देतीं। उसकी ग्यारहवीं मंज़िल की बालकनी से दिखाई देता था ट्रैफिक का रेंगता हुआ सर्प, जिसके बीच वो भी रोज़ अपनी कार में फँसा रहता—सोचता हुआ कि आखिर ये दौड़ क्यों है, किसलिए है, और वो इस दौड़ में क्या खो रहा है। उसने एक नामी मल्टीनेशनल कंपनी में सालों मेहनत की थी, कामयाबी की ऊँचाई पर था, हर महीने अच्छा खासा वेतन, स्टेटस, कार, ऑफिस कैबिन, सबकुछ था—सिवाय चैन के। उस सुबह,…
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प्रणव शुक्ला दिल्ली की वो सर्द रात थी, जब शहर की इमारतें किसी नीरव कैदखाने जैसी लगती थीं। सड़कें रोशनी से जगमगा रही थीं, लेकिन उस रोशनी में भी अजीब-सा अंधकार फैला था — ऐसा अंधकार, जो दिल को चीरता चला जाए। आर्यन अपने ऑफिस की 25वीं मंज़िल की खिड़की से उस शहर को निहार रहा था, जो कभी उसके सपनों का हिस्सा था, और अब उसे सपनों का कफन जैसा लगने लगा था। एयरपोर्ट रोड की गाड़ियाँ, मेट्रो की गड़गड़ाहट, और दूर-दूर तक दिखती गगनचुंबी इमारतें — सब जैसे उसकी आत्मा पर बोझ बन गई थीं। दिन भर की…
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अनिर्बान दास उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे के कोने पर खपड़ैल की छत वाला पुराना त्रिपाठी निवास खड़ा था। बाहर बरामदे में तुलसी चौरे पर दिया जल रहा था, जिसकी मद्धम लौ में रात की निस्तब्धता भी जैसे प्रार्थना कर रही थी। घर के भीतर दीवारों पर लगे पुराने चित्रों में गुज़रे समय की गूँज थी — कहीं शंकर भगवान की तस्वीर, तो कहीं लक्ष्मी देवी की धुंधली हो चुकी तस्वीर, जिनकी याद इस घर के हर कोने में बसी थी। 72 वर्ष के शंकरनाथ त्रिपाठी लकड़ी की चौकी पर बैठे, रुद्राक्ष की माला जपते हुए आँखें बंद…
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संध्या अग्रवाल फिर मिलेंगे ज़रूर “याद है, हम चारों ने कॉलेज के आखिरी दिन क्या कहा था?” मीना की आवाज़ वॉट्सएप कॉल पर गूंजती है। “हाँ, ये कि हम हर साल एक ट्रिप करेंगे, खुद के लिए। और फिर?” कविता हँसती है, “फिर बच्चों के स्कूल, टिफिन, पति की मीटिंग और सास-ससुर की दवा लिस्ट!” “मत पूछो,” सुझाता बोली, “मेरे तो याद भी नहीं कब मैंने अकेले चाय पी थी, बिना किसी को पूछे।” रुखसाना चुप थी। वो हमेशा कम बोलती थी, लेकिन जब बोलती थी, तो सीधा दिल में उतरता था। “मैंने कल अलमारी साफ़ की,” वो बोली, “एक…
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विशाल सक्सेना एक दिल्ली की उस सुबह में कुछ अजीब सी खामोशी थी—न ज़्यादा कोहरा, न ही सूरज की चमक। एक मद्धम सी उदासी अर्जुन के कमरे की दीवारों पर रेंग रही थी जैसे पिछली रात की नींद में किसी ने कुछ अधूरा छोड़ दिया हो। दीवार पर लटकी कैलेंडर की तारीखें टेढ़ी हो चुकी थीं, और खिड़की के बाहर किसी ट्रैफिक सिग्नल की पीली रौशनी में बत्तखों की कतार जैसी आवाज़ें आती रहीं। अर्जुन की अलमारी के दरवाज़े खुले थे, एक ओर उसके कैमरे की काली बैग रखी थी जिसमें एक जीवन भर की यात्रा की प्यास भरी हुई…