समीर चौहान भाग 1 — शुरुआत का सपना लखनऊ की पुरानी गलियों में सर्दी की धूप धीरे-धीरे उतर रही थी। आयुष वर्मा बालकनी में खड़े होकर चाय की भाप में खोया था। कप उसके हाथ में था, लेकिन दिमाग कहीं और। नौकरी में आज प्रमोशन मिला था, लेकिन दिल में कोई खुशी नहीं थी। दिल्ली की एक मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर मैनेजर बनना उसके कॉलेज के दोस्तों के लिए सपनों जैसी बात थी, मगर आयुष के लिए… ये बस एक और महीने का वेतन था, जो बैंक अकाउंट में जमा होकर ईएमआई और बिलों में गुम हो जाएगा। बालकनी से…
-
-
मधुश्री चौहान १ गाँव की सुबह में एक अलग ही सादगी होती है—न शोर, न भागदौड़, बस मिट्टी की खुशबू और जागते जीवन की धीमी गूंज। ऐसी ही एक सुबह, जब सूरज की हल्की किरणें आम के पेड़ों को छूती हुई धीरे-धीरे ज़मीन पर उतर रही थीं, राधा अपने कच्चे घर के सामने झुकी हुई कुएँ से पानी भर रही थी। उसकी माँ गौरी भीतर चूल्हा जलाने में लगी थी और छोटी बहन मुनिया अब भी खाट पर आधी नींद में कसमसा रही थी। राधा के शरीर में नींद की थकान अभी भी थी, लेकिन आँखों में घर के हालातों…
-
नवनीत विश्वास 1 हर सुबह जैसे मुंबई जागती है – गाड़ियों की आवाज़, लोकल ट्रेनों की घरघराहट, और भीड़ के कोलाहल में – उसी के साथ एक और दुनिया भी आँखें खोलती है: डब्बावालों की दुनिया। ये वो लोग हैं जो रोज़ लाखों लोगों के घर का खाना, सैकड़ों किलोमीटर दूर, बिना एक गलती के, समय पर पहुँचा देते हैं। नाथा पाटील, लगभग साठ साल के बुज़ुर्ग डब्बावाले, इस दुनिया के एक अनुभवी सिपाही हैं। सफेद नेहरू टोपी, हल्की झुर्रियों वाली मुस्कान, और आँखों में वर्षों का अनुभव। सुबह चार बजे उनकी नींद खुलती है, जैसे शरीर में कोई अलार्म…
-
सोमा ठाकुर रोहित ने जैसे ही बी.ए. अंतिम वर्ष की परीक्षा पास की, एक अजीब सा आत्मविश्वास उसके भीतर भर गया था। वह एक छोटे शहर का सीधा-सादा लड़का था, लेकिन आंखों में बड़े सपने पलते थे—अपने दम पर कुछ बनना, परिवार की हालत सुधारना, और समाज में सम्मान अर्जित करना। उसके पिता, श्री मनोहर लाल शर्मा, एक सेवानिवृत्त क्लर्क थे, जिनकी पेंशन से जैसे-तैसे घर चलता था। मां गृहिणी थीं और एक छोटी बहन कॉलेज में पढ़ रही थी। रोहित हमेशा से पढ़ाई में अच्छा था, लेकिन साधनों की कमी और प्रतियोगी माहौल ने उसे भीड़ का हिस्सा बना…
-
राकेश मिश्र ऊँचे बर्फीले पर्वतों के बीच, जहाँ हवा में देवताओं की सांसें महसूस होती थीं, एक पुरानी पत्थर की गुफा थी — भीतर सन्नाटा, बाहर प्रकृति का मधुर संगीत। गुफा के भीतर विराजमान थे साधु बाबा, जिनका वास्तविक नाम किसी को नहीं मालूम था; सब उन्हें ‘बाबा’ कहकर ही बुलाते थे। वर्षों से इस गुफा में वे ध्यान, जप और प्रकृति की साधना में लीन थे। उनके आसपास न कोई मंदिर था, न कोई मूर्ति, न ही कोई सेवक या शिष्य—सिर्फ एक चटाई, एक कमंडल, और एक जलपात्र। उनके शरीर पर एक मोटी जटा-जूट की लहराती पगड़ी, चेहरा समय…
-
अरुण कुमार त्रिपाठि १ रामू का जीवन बिल्कुल वैसा था जैसा किसी सीधे-साधे किसान का होता है। वह उत्तर भारत के एक छोटे से गाँव धनपुर में अपने मिट्टी के छोटे-से घर में पत्नी गौरी और दो बच्चों — सोनू और मुनिया — के साथ रहता था। रामू की दिनचर्या सूरज निकलने से पहले शुरू हो जाती थी। पैरों में फटे हुए चप्पल, सिर पर पुरानी टोपी और कंधे पर खुरपी लटकाए, वह सुबह की ओस में भीगती घास पर धीरे-धीरे खेतों की ओर बढ़ता। उसके खेत में गेहूं, चना और सरसों के कुछ हिस्से थे, लेकिन फसलें बहुत समृद्ध…