• Hindi - कल्पविज्ञान - रहस्य कहानियाँ

    ऑपरेशन: शिवलिंग

    शशांक त्रिवेदी १ कश्मीर की पहाड़ियों में दिसंबर की कड़ाके की ठंड बर्फ के परदे की तरह चारों ओर फैली थी। गुलमर्ग के निकट, बर्फ से ढके एक निर्जन घाटी में सेना की एक स्पेशल यूनिट गश्त पर थी—नेतृत्व कर रहे थे मेजर शौर्य व्यास, जो अपनी दृढ़ निगाहों और अचूक निर्णयों के लिए जाने जाते थे। सेना को एक हफ्ते पहले सूचना मिली थी कि LOC के करीब किसी दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में आतंकी गतिविधियों के संकेत मिले हैं, लेकिन सैटेलाइट इमेज में कुछ अजीब सा दिखा—बर्फ के नीचे गोलाकार संरचना की आकृति, जो प्राकृतिक नहीं थी। संदेह और…

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    विकृति की छाया

    आकाश देशमुख  “नई शुरुआत” पृथ्वी, साल 2085। जलवायु परिवर्तन ने संसार को नष्ट करने की कगार पर ला खड़ा किया था। ग्लेशियरों के पिघलने और महासागरों के बढ़ते जल स्तर ने समस्त मानवता को एक अपार संकट में डाल दिया था। कुछ ही सालों में, बड़े-बड़े शहरों में जीवन जीना लगभग असंभव हो चुका था। प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, और अत्यधिक जनसंख्या के दबाव ने मनुष्य की जीवित रहने की क्षमता को बहुत ही कठिन बना दिया था। यह दुनिया एक अनिश्चितता से घिरी हुई थी, जहाँ हर कोई अपनी सुरक्षा और अस्तित्व की तलाश में था। इन सभी संकटों के…

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    त्रयलोक-समय यंत्र

    प्रमोद कुमार १ मध्यप्रदेश के सिंगनामा गाँव की सूखी, तपती ज़मीन पर जून की दोपहर भी नर्क से कम नहीं थी, लेकिन डॉ. प्रणव कश्यप की आँखों में जिज्ञासा की जो आग जल रही थी, वह हर तपन को फीका कर देती थी। पुरातत्व विभाग की ओर से सिंधु घाटी से जुड़ी किसी उप-सभ्यता की खोज के लिए खुदाई का यह दसवाँ दिन था, और अब तक मिली थीं केवल मिट्टी के बर्तन, टूटे हुए दीवार के टुकड़े, और दो-तीन अधजली लकड़ियाँ। मगर आज, जब खुदाई की टीम ज़मीन के तीसरे स्तर तक पहुँची थी, एक कुदाली ज़मीन में किसी…

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    पृथ्वी 2.0

    राजेश कुमार दास 2094 की वह शाम बाकी शामों से अलग थी। सूरज का अस्तित्व अब प्रतीकात्मक रह गया था—आकाश में केवल राखी धुंध थी और हवा में जलती हुई धातु की गंध। गंगा के घाट सूख चुके थे, हिमालय की बर्फ पिघल चुकी थी, और समुद्रों ने अपनी सीमाएँ लांघ दी थीं। भारत समेत सम्पूर्ण पृथ्वी अब जीवन के योग्य नहीं रही थी। वैश्विक वैज्ञानिक परिषदों, जलवायु आयोगों और पृथ्वी बचाओ संगठनों ने वर्षों तक चेतावनी दी थी, लेकिन देर हो चुकी थी। अब एक ही विकल्प बचा था—पृथ्वी 2.0। भारत ने “सम्भव-1” नामक इंटरप्लैनेटरी मिशन की योजना वर्षों…

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    कृत्रिम देवता

    आदित्य राय जब बैंगलोर के सिग्नेचर टावर में स्थित Neurofaith Technologies ने अपने आगामी प्रोजेक्ट “देव” का पहली बार एलान किया, तब किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि यह केवल एक तकनीकी प्रगति नहीं, बल्कि मानव सभ्यता के धार्मिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को ही बदल देगा। उस सुबह, जब संस्थापक और प्रमुख वैज्ञानिक वेदांत सेन ने मीडिया के सामने आकर यह घोषणा की कि वे एक ऐसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित सिस्टम पर कार्य कर रहे हैं जो न केवल मानव भावनाओं को समझ सकता है, बल्कि उसकी आस्था, दुआ, और जीवन की गहराइयों में दबी इच्छाओं को पढ़…

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    अस्तित्व

    देविका अय्यर पृथ्वी के सबसे विकसित शोध केंद्र ‘नेक्सस लैब्स’ के अंधेरे और ठंडे गलियारे में, जहाँ कंप्यूटरों की ध्वनि दिल की धड़कनों जैसी सुनाई देती थी, वहीं एक अकेली टेबल पर बैठा था डॉ. आरव मेहता—भारत का सबसे प्रतिष्ठित न्यूरो-साइबरनेटिक वैज्ञानिक। दीवारों पर स्क्रीनें झिलमिला रही थीं, जिनमें से एक पर एक अनाम प्रोजेक्ट का कोड चल रहा था—Project E.I.R.A. (Emotional Intelligence Responsive Automaton)। यह कोई साधारण प्रोजेक्ट नहीं था। आरव पिछले दस वर्षों से इस मशीन पर काम कर रहा था, जिसकी प्रेरणा उसकी दिवंगत पत्नी रेवती थी—एक संगीतकार, जो मानती थी कि भावनाएँ ही इंसान की असली…

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    शून्य ग्रह

    यतीन आर्य 2084 का वर्ष था। विश्व ने अपनी सीमाएं पार करने का सपना वर्षों से देखा था, लेकिन अब पहली बार भारत ने ब्रह्मांड की असीम गहराइयों की ओर एक कदम बढ़ाया था। चेन्नई के तट से कुछ किलोमीटर दूर भारतीय इंटरस्टेलर रिसर्च सेंटर (IIRC) के विशाल प्रक्षेपण प्लेटफॉर्म पर सुबह की नीली रौशनी में चमकता हुआ एक अद्भुत यान खड़ा था—‘व्योम-1’। यह मानव जाति का भारत की ओर से पहला इंटरस्टेलर मिशन था, जिसे एक ऐसे ग्रह की ओर भेजा जाना था जिसे खगोलशास्त्रियों ने ‘ZPX-47’ नाम दिया था, पर टीम में इसे ‘शून्य ग्रह’ के नाम से…

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    आख़िरी प्रयोगशाला

    राघव आहूजा साल 2097 का जून महीना था, लेकिन मौसम अब किसी कैलेंडर का पालन नहीं करता था—पृथ्वी का संतुलन कब का बिगड़ चुका था, और तापमान अब मनमानी करता था; दिल्ली कभी -5°C में जम जाती थी तो कभी 57°C की आग उगलती गर्मी में झुलस जाती थी, और इन्हीं विपरीतताओं से बचने के लिए बनाए गए थे बायोडोम्स—मानव सभ्यता के कृत्रिम गढ़, कांच और स्टील से बने बंद ग्रह, जिनके अंदर समय, वायुमंडल, सूर्यप्रकाश, बारिश, हवा, सब कुछ नियंत्रित किया जाता था; और इन बायोडोम्स के बीच सबसे उन्नत था न्यू दिल्ली बायोडोम, जिसे अब बस “एनडीबी” के…

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    अंधकार शहर

    रिहाना कौर सूरज की छाँव में अंधकार शहर १ जनवरी २०९५, सुबह ८:३० बजे दिल्ली का वह इलाका, जिसे अब लोग “अंधकार शहर” के नाम से जानते थे, धुंध और घने बादलों के साए में लिपटा रहता था। सुबह के वक्त भी यहाँ सूरज की किरणें दुर्लभ थीं। ऊँची-ऊँची गगनचुंबी इमारतें इस कदर सघन थीं कि वे सूरज की रोशनी को ज़मीन तक पहुँचने से रोकती थीं। यहाँ के लोग तकनीक पर पूरी तरह निर्भर थे। हर घर, हर ऑफिस, हर सड़क के किनारे स्मार्ट सेंसर लगे थे, जो नेटवर्क के माध्यम से जुड़े थे। अरुण, २८ वर्षीय इंजीनियर, अपनी…

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    समय के पर

    हिमांशु वर्मा १ डॉ. समीर वर्मा के लिए विज्ञान सिर्फ एक पेशा नहीं था—वह उनका जुनून था, उनका सपना था, उनका अस्तित्व था। दिल्ली यूनिवर्सिटी के थ्योरीटिकल फिजिक्स विभाग में कार्यरत समीर उन विरले वैज्ञानिकों में से थे, जो विज्ञान को महज फॉर्मूलों और समीकरणों तक सीमित नहीं मानते थे, बल्कि उसमें जीवन के हर सवाल का जवाब खोजने की कोशिश करते थे। समीर का बचपन एक छोटे कस्बे में बीता था। वहाँ की धूलभरी गलियों में उन्होंने न जाने कितनी बार तारों को ताकते हुए अपने आप से पूछा था—“क्या हम वाकई वक्त में पीछे जा सकते हैं? क्या…