यतीन आर्य 2084 का वर्ष था। विश्व ने अपनी सीमाएं पार करने का सपना वर्षों से देखा था, लेकिन अब पहली बार भारत ने ब्रह्मांड की असीम गहराइयों की ओर एक कदम बढ़ाया था। चेन्नई के तट से कुछ किलोमीटर दूर भारतीय इंटरस्टेलर रिसर्च सेंटर (IIRC) के विशाल प्रक्षेपण प्लेटफॉर्म पर सुबह की नीली रौशनी में चमकता हुआ एक अद्भुत यान खड़ा था—‘व्योम-1’। यह मानव जाति का भारत की ओर से पहला इंटरस्टेलर मिशन था, जिसे एक ऐसे ग्रह की ओर भेजा जाना था जिसे खगोलशास्त्रियों ने ‘ZPX-47’ नाम दिया था, पर टीम में इसे ‘शून्य ग्रह’ के नाम से…
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राघव आहूजा साल 2097 का जून महीना था, लेकिन मौसम अब किसी कैलेंडर का पालन नहीं करता था—पृथ्वी का संतुलन कब का बिगड़ चुका था, और तापमान अब मनमानी करता था; दिल्ली कभी -5°C में जम जाती थी तो कभी 57°C की आग उगलती गर्मी में झुलस जाती थी, और इन्हीं विपरीतताओं से बचने के लिए बनाए गए थे बायोडोम्स—मानव सभ्यता के कृत्रिम गढ़, कांच और स्टील से बने बंद ग्रह, जिनके अंदर समय, वायुमंडल, सूर्यप्रकाश, बारिश, हवा, सब कुछ नियंत्रित किया जाता था; और इन बायोडोम्स के बीच सबसे उन्नत था न्यू दिल्ली बायोडोम, जिसे अब बस “एनडीबी” के…
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रिहाना कौर सूरज की छाँव में अंधकार शहर १ जनवरी २०९५, सुबह ८:३० बजे दिल्ली का वह इलाका, जिसे अब लोग “अंधकार शहर” के नाम से जानते थे, धुंध और घने बादलों के साए में लिपटा रहता था। सुबह के वक्त भी यहाँ सूरज की किरणें दुर्लभ थीं। ऊँची-ऊँची गगनचुंबी इमारतें इस कदर सघन थीं कि वे सूरज की रोशनी को ज़मीन तक पहुँचने से रोकती थीं। यहाँ के लोग तकनीक पर पूरी तरह निर्भर थे। हर घर, हर ऑफिस, हर सड़क के किनारे स्मार्ट सेंसर लगे थे, जो नेटवर्क के माध्यम से जुड़े थे। अरुण, २८ वर्षीय इंजीनियर, अपनी…
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हिमांशु वर्मा १ डॉ. समीर वर्मा के लिए विज्ञान सिर्फ एक पेशा नहीं था—वह उनका जुनून था, उनका सपना था, उनका अस्तित्व था। दिल्ली यूनिवर्सिटी के थ्योरीटिकल फिजिक्स विभाग में कार्यरत समीर उन विरले वैज्ञानिकों में से थे, जो विज्ञान को महज फॉर्मूलों और समीकरणों तक सीमित नहीं मानते थे, बल्कि उसमें जीवन के हर सवाल का जवाब खोजने की कोशिश करते थे। समीर का बचपन एक छोटे कस्बे में बीता था। वहाँ की धूलभरी गलियों में उन्होंने न जाने कितनी बार तारों को ताकते हुए अपने आप से पूछा था—“क्या हम वाकई वक्त में पीछे जा सकते हैं? क्या…