राकेश त्रिपाठी भाग 1 – अस्सी घाट की पहली सुबह सुबह के पाँच बज रहे थे। नवंबर की हल्की ठंडी हवा में वाराणसी शहर अभी नींद से पूरी तरह जागा नहीं था, लेकिन अस्सी घाट पर चहल-पहल शुरू हो चुकी थी। मैंने अपने बैग को कंधे पर टाँगा और होटल से बाहर निकलते ही महसूस किया कि यह यात्रा बाकी यात्राओं से अलग होने वाली है। सड़कें अभी तक खाली थीं, पर जैसे-जैसे मैं घाट की ओर बढ़ा, गली-कूचों में चाय की दुकानों से उठती भाप, समोसे तले जाने की खुशबू और पुकारते हुए ठेलेवाले धीरे-धीरे जीवन का संगीत छेड़…
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सुधांशु त्रिपाठी भाग 1 – पहली ठंडी सुबह नवंबर का महीना था। दिल्ली की सुबहें धीरे-धीरे धुंध के कपड़े ओढ़ने लगी थीं। पुरानी दिल्ली की सँकरी गलियाँ हों या नई दिल्ली की चौड़ी सड़कें, हर जगह ठंडी हवा का झोंका लोगों को अपनी ओढ़नी कसकर खींचने पर मजबूर कर देता। चौराहों पर, पार्क की बेंचों पर, यहाँ तक कि गली के नुक्कड़ों पर भी एक ही चीज़ की गंध तैर रही थी—उबलती हुई चाय की। आदित्य अपने किराए के छोटे से कमरे की खिड़की से बाहर झाँक रहा था। खिड़की के शीशे पर धुंध जम गई थी। उसने उँगली से…
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दीपक आहुजा अध्याय १ – मौत की सुर्ख़ियाँ मुंबई की नीयन रोशनी वाली रातें हमेशा से ही रहस्यों को अपने भीतर छिपाए रहती हैं। वही शहर, जहां हर गली में किसी न किसी की कहानी दबी होती है, उसी शहर के बीचोंबीच एक आलीशान होटल की सातवीं मंज़िल पर अचानक हड़कंप मच गया था। होटल का कमरा नंबर 709, जिसकी खिड़की से अरब सागर की ठंडी हवा सीधी भीतर आ रही थी, अब अपराध स्थल बन चुका था। कमरे की बत्ती मंद जल रही थी और फर्श पर बिखरी पड़ी शराब की बोतलें किसी अधूरी रात का गवाह बनी थीं।…
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सिद्धार्थ महाजन १ मुंबई की उस रात की हवा में बारिश की गंध कुछ अलग थी—एक ऐसी नमी जो सिर्फ मौसम की नहीं, बल्कि आने वाले तूफ़ान का संकेत दे रही थी। शाम से ही लगातार बरसते पानी ने मरीन ड्राइव की चमकदार सड़क को आईने जैसी चिकनी सतह में बदल दिया था। अरब सागर की लहरें ऊँचाई तक उछलकर पत्थरों से टकरा रही थीं, मानो शहर के हर रहस्य को धो डालना चाहती हों। लेकिन उस रात जो होने वाला था, उसे कोई भी बारिश नहीं मिटा सकती थी। रात के ठीक ग्यारह बजकर पैंतालीस मिनट पर एक काले…
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आकाश ठाकुर अध्याय 1 – बरगद की छाँव गाँव के बीचोंबीच खड़ा बरगद का विशाल पेड़ सदियों की गवाही देता प्रतीत होता था। उसकी जड़ें ज़मीन के भीतर गहरी उतरती और शाखाएँ आसमान की ओर फैली होतीं, मानो समय की लकीरों को अपने पत्तों में समेटे हुए। इस पेड़ के नीचे हमेशा हलचल रहती। सुबह-सुबह बूढ़े लोग अपनी दरी बिछाकर बैठते, अपने दिनों की बातें साझा करते और कभी-कभी नए आने वाले बच्चों को अपनी कहानियों में उलझा देते। धूप अगर ज्यादा तेज़ होती, तो उनकी आँखों की चमक पेड़ की घनी छाँव में ढल जाती। बच्चों के लिए यह…
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अनुपमा गुप्ता अध्याय १ – पुरानी लाइब्रेरी का रहस्य गाँव के परित्यक्त हिस्से में कदम रखते हुए आदित्य के भीतर एक अजीब-सी सनसनी दौड़ गई। वह गाँव, जहाँ समय जैसे ठहर गया था, टूटी-फूटी हवेलियों, सूनी गलियों और सूख चुके कुओं के बीच भूतहा-सा माहौल पेश करता था। आदित्य एक युवा शोधकर्ता था, जिसके भीतर इतिहास और अतीत के रहस्यों को खंगालने की अटूट जिज्ञासा थी। शहर से आए इस पढ़ाकू युवक ने गाँव के लोगों से सुना था कि पुराने ज़माने में यहाँ एक बड़ी हवेली के भीतर विशाल लाइब्रेरी हुआ करती थी, जहाँ दुर्लभ ग्रंथ, पांडुलिपियाँ और तंत्र-मंत्र…
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दीप्तिमान शर्मा अध्याय १– वादियों की दहलीज़ दिल्ली से श्रीनगर की उड़ान जैसे ही बादलों को चीरते हुए नीचे उतरने लगी, लेखक की आँखों के सामने फैली धरती ने एक नया ही रूप ले लिया। धुंध और बर्फ की परतों से घिरी पहाड़ियाँ मानो किसी चिर-परिचित चित्र की तरह सामने थीं, जिन्हें उसने केवल किताबों और फिल्मों में देखा था। श्रीनगर के हवाई अड्डे पर उतरते ही ठंडी हवा का पहला झोंका जैसे उसे उस अनदेखी दुनिया के स्वागत में गले से लगा लेता है। हवाई अड्डे से बाहर निकलते ही उसकी नज़रें बर्फ से लदी देवदार की कतारों और…
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बनारस की तंग और घुमावदार गलियाँ जैसे अपने भीतर सदियों का इतिहास समेटे खड़ी थीं, जिनमें सुबह-सुबह की गंगा आरती की घंटियों की आवाज़ और अगरबत्तियों की महक हवा में तैरती रहती थी। लेकिन उस दिन की सुबह इन गलियों पर एक अजीब सन्नाटा छाया हुआ था। सूरज की पहली किरणें जैसे ही पुराने कच्चे मकानों की दीवारों पर पड़ीं, शहर में अफवाहों का तूफ़ान फैलने लगा—“चौखंबा मोहल्ले में एक व्यापारी का कत्ल हो गया।” लोगों की भीड़ उस घर के सामने जमा हो गई थी, जो शहर के सबसे पुराने कपड़ा कारोबारियों में से एक, लक्ष्मण प्रसाद का था।…
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अनुभव तिवारी १ सांझ की बेला में जब गंगा किनारे वाराणसी का दशाश्वमेध घाट धीरे-धीरे दीपों और मंत्रोच्चार से भरने लगता है, तो वहाँ का हर दृश्य किसी अलौकिक चित्र की तरह आँखों में उतरता है। सूरज का अंतिम प्रकाश गंगा की सतह पर सुनहरी आभा बिखेरता है और उसकी लहरें मानो उस प्रकाश को अपनी गोद में समेटने के लिए आपस में खेलती हुई झिलमिलाती हैं। घाट की सीढ़ियों पर भीड़ उमड़ आई है—कहीं श्रद्धालु अपने हाथों में फूल और दीये लिए खड़े हैं, कहीं विदेशी पर्यटक मंत्रमुग्ध होकर इस दृश्य को कैमरे में कैद कर रहे हैं, और…
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आरति देशमुख अध्याय १ : आगमन लखनऊ स्टेशन पर उतरते ही अनामिका सेन को सबसे पहले जो एहसास हुआ, वह था इस शहर की हवा में घुला हुआ अदृश्य जादू। दिल्ली की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी से बिल्कुल अलग, यहाँ की फिज़ाओं में एक पुरानी रूहानी नमी थी, जैसे हर सांस में सदियों का इतिहास घुला हो। प्लेटफ़ॉर्म पर उतरते समय ही उसकी नज़रें उस खास अंदाज़ से सजाई गई इमारतों पर टिक गईं, जो ब्रिटिश दौर की वास्तुकला और नवाबी अदब का संगम लगती थीं। ऑटो रिक्शे और आधुनिक कैब सेवाओं के बीच से होकर बाहर निकलते हुए उसे महसूस…