यतीन आर्य 2084 का वर्ष था। विश्व ने अपनी सीमाएं पार करने का सपना वर्षों से देखा था, लेकिन अब पहली बार भारत ने ब्रह्मांड की असीम गहराइयों की ओर एक कदम बढ़ाया था। चेन्नई के तट से कुछ किलोमीटर दूर भारतीय इंटरस्टेलर रिसर्च सेंटर (IIRC) के विशाल प्रक्षेपण प्लेटफॉर्म पर सुबह की नीली रौशनी में चमकता हुआ एक अद्भुत यान खड़ा था—‘व्योम-1’। यह मानव जाति का भारत की ओर से पहला इंटरस्टेलर मिशन था, जिसे एक ऐसे ग्रह की ओर भेजा जाना था जिसे खगोलशास्त्रियों ने ‘ZPX-47’ नाम दिया था, पर टीम में इसे ‘शून्य ग्रह’ के नाम से…
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विनीत त्रिपाठी बनारस की रातें हमेशा से रहस्यमयी रही हैं, मानो इस शहर की गलियों, घाटों और हवाओं में कोई अदृश्य कहानी हर रात जन्म लेती हो। गंगा का किनारा, जहाँ दिन में हजारों श्रद्धालु पूजा-अर्चना में लीन रहते थे, रात होते ही किसी प्राचीन ग्रंथ की तरह रहस्य में डूब जाता था। वहीं पर स्थित थी वह हवेली, जिसे लोग ठाकुर हवेली के नाम से जानते थे। कभी इस हवेली में संगीत की महफिलें सजती थीं, बड़े-बड़े उस्ताद यहाँ अपनी कला का प्रदर्शन करते थे, और रियाज की स्वर लहरियाँ हवेली की दीवारों से टकराकर बनारस की हवाओं में…
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अर्जुन प्रसाद मिश्रा वाराणसी — एक ऐसा शहर जो गंगा की गोद में बसा है, जहाँ हर सुबह आरती की धुनों और शंखनाद की गूँज से होती है। वहीँ पुराने घाटों, मंदिरों और तंग गलियों के बीच बसा है हरिश्चंद्र मोहल्ला, जो अपनी गरीबी में भी आत्मसम्मान और रिश्तों की गर्माहट से भरा है। यहाँ की गलियाँ इतनी सँकरी हैं कि दो साइकिल एक साथ निकल जाएँ, तो चमत्कार ही लगे। दीवारों पर पोस्टरों की परतें जमी हैं, कहीं-कहीं रंग उखड़ कर ईंटों का चेहरा दिखा देती हैं। इसी मोहल्ले की एक टूटी-फूटी हवेली के पिछवाड़े दो कमरों का कच्चा…
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निशांत परांजपे भाग 1 रेल की सीटी की आवाज़, कुछ पुराने डिब्बों का कराहता हुआ शोर और उस पर हल्की बूंदाबांदी—आरव सैनी जैसे ही इस पुराने स्टेशन पर उतरा, उसे कुछ अजीब सा एहसास हुआ। वो पुलिस इंस्पेक्टर था, लेकिन इस बार ड्यूटी पर नहीं। छुट्टी पर आया था, खुद को थोड़े दिन के लिए दूर रखने उस दुनिया से जहां हर कदम पर शक होता है, हर मुस्कान के पीछे कोई कहानी। लेकिन किस्मत को उसकी छुट्टी मंजूर नहीं थी। यह स्टेशन उत्तर भारत के एक छोटे से शहर का था—नाम ज़रूरी नहीं, क्योंकि ऐसी जगहें हर राज्य में…
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सौरभ मिश्र भाग १ नींबू की गंध अक्सर गर्मियों की दोपहर में तेज़ लगती है। मगर उस दिन, जब सपना पहली बार हमारे मोहल्ले में आई थी, नींबू की गंध में कुछ धीमा था, जैसे वो अपनी ही खुशबू से शरमा रही हो। मैं दरवाज़े के पास बैठा था, पीतल के गिलास में नींबू पानी था, और माँ के कहने पर मैंने उसमें काला नमक डाला था। तभी उसने पूछा — “नींबू ज़्यादा है ना?” मैंने उसे देखा। उसकी आँखें नींबू के रस से नहीं, किसी और ही ख्याल से भरी थीं। मैंने हाँ कहा या ना, ये मुझे याद…
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संदीप मिश्रा सुबह की हल्की धूप मोहल्ले की पतली गली में सुनहरी चादर बिछा रही थी। अमरुद के पेड़ों पर बैठी चिड़ियाँ अपनी चहचहाहट से जैसे कोई संदेश दे रही थीं। हवा में सुबह-सुबह खिले गेंदा और गुलाब के फूलों की खुशबू घुली हुई थी। पर आज मोहल्ले में रोज की तरह सुस्ताता सन्नाटा नहीं था। आज हर किसी की नजर एक ही घर की ओर थी — पिंकी के घर की ओर। पिंकी आठ साल की नटखट, जिद्दी और शरारती बच्ची थी। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में हमेशा कोई नई शरारत चमकती रहती थी। उसके छोटे से घर का आँगन…
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सुनील शर्मा कांता बुआ को मोहल्ले में कौन नहीं जानता था? उम्र साठ के पार, लेकिन जुबान इतनी तेज़ कि मोहल्ले की दीवारें भी डर के मारे कांप जाएँ। सफेद बाल, माथे पर बड़ी सी बिंदी, और पल्लू हमेशा सिर पर — कांता बुआ का लुक देखकर कोई भी उन्हें सीधा-सादा समझ लेता, लेकिन असली गड़बड़ वहीं से शुरू होती थी। “अरे सुन री विमला! तूने सुना, सामने वाली पुष्पा की बहू रोज़ छत पर फोन पर बात करती है, लगता है कोई चक्कर-वक्कर है!” बुआ ने नाश्ते के समय विमला चाची को बताया, जो खुद मोहल्ले की “डेली न्यूज़…
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सौरभ मिश्रा भाग 1 लक्ष्मी नगर की गली नंबर सात में एक बड़ा ही विचित्र मामला हुआ। बाबूलाल जी की घड़ी चोरी हो गई। अब आप सोचेंगे, इसमें क्या बड़ी बात है? लेकिन जनाब, ये कोई मामूली घड़ी नहीं थी। ये वही ‘ओमेगा’ घड़ी थी जो बाबूलाल जी ने अपने रिटायरमेंट के समय खुद को गिफ्ट दी थी—पेंशन के पैसों से। और पूरे मोहल्ले में उन्होंने इसे ऐसे दिखाया था जैसे वो NASA के सैटेलाइट का कंट्रोल रूम हो। घड़ी में अलार्म, रेडियो, तापमान, चाँद की स्थिति, और ना जाने क्या-क्या सुविधाएँ थीं। सबसे बड़ी बात, घड़ी ‘ब्लू टूथ’ से…
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निहार राठौड़ राजगढ़ स्टेशन पर शाम के पाँच बज चुके थे, लेकिन उस छोटे से प्लेटफ़ॉर्म पर वक्त ठहरा हुआ लगता था। धूल से सनी पीली बेंचें, खामोश ट्रैक, और स्टील के पुराने खंभों पर टिमटिमाती मटमैली बत्तियाँ—सबकुछ जैसे किसी भूतपूर्व समय की तस्वीर हो। अर्जुन ठाकुर, तीस वर्ष का एक तेज़-तर्रार स्वतंत्र पत्रकार, दिल्ली से यहाँ सिर्फ एक मकसद लेकर आया था—ठाकुर हवेली के रहस्य को उजागर करना। उसके हाथ में एक पुराना, हल्का पीला लिफ़ाफा था, जिसमें केवल एक पंक्ति लिखी थी: “कमरा नंबर 9 को फिर से खोला जाना चाहिए। मेरा सच अब भी वहाँ बंद है।”…
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राघव आहूजा साल 2097 का जून महीना था, लेकिन मौसम अब किसी कैलेंडर का पालन नहीं करता था—पृथ्वी का संतुलन कब का बिगड़ चुका था, और तापमान अब मनमानी करता था; दिल्ली कभी -5°C में जम जाती थी तो कभी 57°C की आग उगलती गर्मी में झुलस जाती थी, और इन्हीं विपरीतताओं से बचने के लिए बनाए गए थे बायोडोम्स—मानव सभ्यता के कृत्रिम गढ़, कांच और स्टील से बने बंद ग्रह, जिनके अंदर समय, वायुमंडल, सूर्यप्रकाश, बारिश, हवा, सब कुछ नियंत्रित किया जाता था; और इन बायोडोम्स के बीच सबसे उन्नत था न्यू दिल्ली बायोडोम, जिसे अब बस “एनडीबी” के…