Hindi - यात्रा-वृत्तांत

कश्मीर की वादियों में

Spread the love

दीप्तिमान शर्मा


अध्याय १– वादियों की दहलीज़

दिल्ली से श्रीनगर की उड़ान जैसे ही बादलों को चीरते हुए नीचे उतरने लगी, लेखक की आँखों के सामने फैली धरती ने एक नया ही रूप ले लिया। धुंध और बर्फ की परतों से घिरी पहाड़ियाँ मानो किसी चिर-परिचित चित्र की तरह सामने थीं, जिन्हें उसने केवल किताबों और फिल्मों में देखा था। श्रीनगर के हवाई अड्डे पर उतरते ही ठंडी हवा का पहला झोंका जैसे उसे उस अनदेखी दुनिया के स्वागत में गले से लगा लेता है। हवाई अड्डे से बाहर निकलते ही उसकी नज़रें बर्फ से लदी देवदार की कतारों और दूर-दूर तक फैली सफेद चादर पर ठहर जाती हैं। टैक्सी की खिड़की से झाँकते हुए वह देखता है कि रास्तों के दोनों ओर छोटी-छोटी लकड़ी की दुकानों और चायख़ानों में लोग बैठे हैं, हाथ में गर्म नून-चाय की प्यालियाँ, और उनके चेहरे पर ठंड के बावजूद एक आत्मीय मुस्कान। लेखक को ऐसा लगता है जैसे वह किसी सपने की दहलीज़ पर खड़ा है, जहाँ की हर बूँद, हर हवा, हर दृश्य अपने में एक कविता समेटे हुए है। धीरे-धीरे कार जब डल झील की ओर बढ़ती है, तो उसकी साँसें तेज़ हो जाती हैं, मानो बचपन से सुनी कहानियों की जन्नत अब उसकी आँखों के सामने आकार ले रही हो।

डल झील पर पहुँचते ही उसका पहला सामना उन मशहूर शिकारे से होता है, जिन्हें देखना भर ही एक अलग अनुभव है। नीली, पीली और लाल रंगों से सजी हुई शिकारे झील के शांत जल पर ऐसे तैर रही हैं जैसे किसी चित्रकार ने कैनवास पर हल्के ब्रश से उन्हें उकेरा हो। झील का पानी इतना साफ़ कि उसमें आसपास की बर्फीली चोटियों और नीले आसमान का प्रतिबिंब एकदम सजीव दिखाई देता है। लेखक जब एक शिकारे पर बैठता है, तो उसकी आत्मा जैसे एक अलग ही लय में बहने लगती है। पानी की हल्की-हल्की थपकियाँ, शिकारे के पतवार की धीमी चाल और दूर से आती कश्मीरी लोकगीतों की मधुर धुन उसके मन को एक अनजाने सुख से भर देती है। झील के किनारों पर खड़ी हाउसबोटें अपनी लकड़ी की नक्काशी और पारंपरिक डिज़ाइन के साथ मानो किसी पुराने किस्से की गवाही देती हैं। वह एक हाउसबोट पर चढ़ता है, जहाँ लकड़ी के फर्श पर बिछे कश्मीरी कालीन और दीवारों पर जड़े नक्काशीदार पैनल उसे एक बीते युग की शाही झलक दिखाते हैं। वहाँ की आतिथ्यपूर्ण मेज़बानी, कहवा की ख़ुशबू और खिड़की से दिखाई देती झील की झिलमिलाहट उसे यह एहसास कराती है कि कश्मीर केवल एक जगह नहीं, बल्कि एक अनुभव है जो दिल में उतरकर स्थायी रूप से बस जाता है।

दिन ढलते-ढलते सूरज की सुनहरी किरणें जब डल झील के पानी पर बिखरती हैं, तो लेखक को लगता है कि उसने अपने जीवन का सबसे सुंदर दृश्य देख लिया है। शिकारे धीरे-धीरे घाट की ओर लौट रहे हैं, पानी पर चमकते सूरज की परछाई और दूर की पहाड़ियों पर बर्फ का सुनहरा आभा एक साथ मिलकर मानो स्वर्ग का चित्र रच देते हैं। आसपास से आती लोगों की बातचीत, दुकानों से उठती केसर और सूखे फलों की महक, और हवा में घुली लकड़ी के धुएँ की हल्की गंध उसे भीतर तक छू जाती है। उसे यह भी अहसास होता है कि इस सौंदर्य के पीछे एक गहरी कहानी छिपी है—लोगों की मेहनत, उनकी संघर्षमयी ज़िंदगी और उस घाटी का इतिहास जिसने अनगिनत आँधियाँ देखी हैं। परंतु इस क्षण में वह उन सब बातों को भूलकर केवल उस जन्नत जैसे दृश्य में खो जाना चाहता है। रात होने पर जब आसमान तारों से भर जाता है और झील का पानी उन तारों का प्रतिबिंब बनने लगता है, तब लेखक अपने आपसे कहता है—“हाँ, यही है वादियों की दहलीज़, जहाँ धरती और आसमान मिलकर एक ऐसी दुनिया बनाते हैं, जिसे केवल महसूस किया जा सकता है, शब्दों में बाँधा नहीं जा सकता।”

अध्याय २– झील के आईने में शहर

सुबह-सुबह डल झील की हवा में एक अलग ही ठंडक और ताजगी घुली होती है। लेखक जैसे ही हाउसबोट की खिड़की से झाँकता है, उसकी आँखों के सामने झील का एक बिल्कुल नया रूप खुलता है। रातभर की निस्तब्धता के बाद पानी पर हल्की-हल्की धुंध तैर रही होती है, और उसमें से छनकर आती सूरज की पहली किरणें ऐसा भ्रम देती हैं मानो झील ने एक पारदर्शी आईना ओढ़ लिया हो। शिकारे पानी पर हौले-हौले सरकते हैं, उनकी चाल में एक सधी हुई लय होती है, मानो वे प्रकृति के संगीत का हिस्सा हों। लेखक एक शिकारे में बैठकर झील के बीच उतरता है और देखता है कि सुबह का यह समय यहाँ के लिए किसी अनुष्ठान जैसा है—पानी पर तैरते फूल बेचने वाले, सब्ज़ियों और ताज़ी हरी पत्तियों से भरे छोटे-छोटे डोंगे, और उनमें बैठी कश्मीरी औरतें जिनकी आँखों में ठंड से लिपटी चमक है। झील का आईना न केवल आकाश और पहाड़ों की छवि उतार रहा है, बल्कि उन लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी को भी, जो इस जल से अपनी साँसें और अपनी ज़रूरतें पूरी करते हैं। लेखक को लगता है कि वह किसी शहर में नहीं, बल्कि एक जीवित चित्रकला में उतर आया है, जहाँ हर आकृति अपने भीतर हजारों साल पुरानी परंपरा और जीवन का रहस्य समेटे हुए है।

शिकारे को चलाने वाला ग़ुलाम, जिसकी उम्र पचास के आसपास होगी, पतवार की लय के साथ लेखक से बात करने लगता है। उसकी आवाज़ धीमी और भारी है, जैसे झील के जल की गहराई। वह बताता है कि कैसे उसके पिता और दादा भी यही काम करते थे—झील के आईने पर यात्रियों को घुमाना, उन्हें कहानियाँ सुनाना, और उनके चेहरों पर विस्मय की मुस्कान देखना। ग़ुलाम की बातों से लेखक को पहली बार अहसास होता है कि इस अद्भुत सुंदरता के पीछे एक गहरी खामोशी छुपी है। शिकारे के लोगों की आँखों में चमक है, पर उनमें कहीं न कहीं एक थकान और अदृश्य चिंता भी बसी है—पर्यटन पर निर्भर जीवन, मौसम की कठोरता, और राजनीतिक अस्थिरता की परछाईं। झील की नर्म लहरें लेखक को धीरे-धीरे यह सिखाती हैं कि कश्मीर केवल नयनाभिराम दृश्य ही नहीं, बल्कि उन हज़ारों परिवारों की कहानियों का आईना है, जिनके संघर्ष और सपनों ने इसे जिंदा रखा है। जब शिकारा किनारे पहुँचता है, तो लेखक देखता है कि घाट पर बच्चे लकड़ी के टुकड़ों से छोटे-छोटे नाव बनाकर खेल रहे हैं, जबकि उनके बड़ों की आँखें किसी अनकहे भविष्य की ओर टिकी हैं। यह दृश्य उसकी आत्मा में एक गहरी हलचल पैदा करता है, मानो झील ने उसे अपने आईने में उसकी ही बेचैनियों का प्रतिबिंब दिखा दिया हो।

झील के किनारे बाज़ार की हलचल एक अलग ही रंग भर देती है। छोटी-छोटी दुकानों में सूखे मेवे, केसर, पश्मीना शॉल और लकड़ी की नक्काशीदार वस्तुएँ सजी हुई हैं। हवा में केसर और ताज़ी रोटी की मिली-जुली ख़ुशबू तैरती है। लेखक दुकानों में घूमते हुए दुकानदारों की मुस्कुराहटों और उनकी आवाज़ों में छिपी उम्मीद को महसूस करता है। एक बूढ़ा दुकानदार उसे कहवा पिलाते हुए कहता है—“साहिब, यहाँ की ठंड हमारी रगों में है, पर गर्मजोशी भी उसी में पली है।” उस क्षण लेखक समझ जाता है कि यह बाज़ार केवल वस्तुओं का नहीं, बल्कि आत्माओं का लेन-देन है, जहाँ हर मुस्कान एक गुप्त कहानी है। पर जब वह थोड़ी दूरी पर बैठा एक और बूढ़ा देखता है, जो अपनी दुकान के बाहर बिना कुछ कहे झील की ओर निहार रहा है, तो उसे लगता है कि यह खामोशी ही कश्मीर की सबसे बड़ी आवाज़ है। डल झील, जो सुबह में आईने की तरह जगमगाती है, असल में एक ऐसा दर्पण है जिसमें सुंदरता और पीड़ा दोनों का चेहरा साफ़ दिखता है। लेखक अपने आप से कहता है कि शायद यही वजह है कि कश्मीर का हर दृश्य मन में उतरकर एक अमिट स्मृति बन जाता है—क्योंकि उसके भीतर केवल रंग और आकृतियाँ नहीं, बल्कि गहरी भावनाएँ और अदृश्य कहानियाँ भी समायी होती हैं।

अध्याय ३– श्रीनगर की गलियों में

श्रीनगर का पुराना शहर अपने भीतर सदियों की परतें समेटे हुए है। लेखक जब सुबह-सुबह संकरी गलियों से होकर निकलता है, तो उसे लगता है जैसे वह किसी जिंदा किताब में चल रहा हो, जहाँ हर दीवार, हर मोड़ एक कहानी कह रहा है। लकड़ी से बने झरोखे, रंगीन काँच वाली खिड़कियाँ और पुरानी इमारतों की जर्जर परंतु गरिमामयी बनावट उसे उस युग की याद दिलाती हैं, जब यह शहर व्यापार और संस्कृति का केंद्र हुआ करता था। वह जामा मस्जिद के विशाल प्रांगण में पहुँचता है, जिसकी लकड़ी की नक्काशीदार स्तंभ और शांत वातावरण एक अजीब सा सुकून देते हैं। मस्जिद की वास्तुकला किसी सामान्य इमारत की तरह नहीं, बल्कि मानो लकड़ी और पत्थर से बनी कोई प्रार्थना हो। यहाँ की खामोशी में लेखक को एक ऐसी गूँज सुनाई देती है जो समय की सीमाओं को लाँघकर आई हो। गलियों में आगे बढ़ते हुए वह देखता है कि कैसे छोटी-छोटी दुकानों में रोज़मर्रा की ज़रूरतें बिकती हैं—कश्मीर की मशहूर मसालों से भरी बोरियाँ, पश्मीना शॉल, और रंग-बिरंगे फलों के ठेले। यह सब मिलकर पुराने शहर को एक जीवित संग्रहालय बना देते हैं, जहाँ इतिहास और वर्तमान साथ-साथ चलते हैं।

लेखक की अगली मंज़िल शंकराचार्य मंदिर है, जो डल झील के ऊपर पहाड़ी पर स्थित है। सीढ़ियाँ चढ़ते हुए उसका हर कदम जैसे उसे भीतर की ओर भी ले जाता है। मंदिर से श्रीनगर का दृश्य देखने पर उसे लगता है मानो पूरा शहर झील के आईने में समाया हुआ हो। मंदिर की घंटियों की आवाज़ और हवा में घुली देवदार की ख़ुशबू उसे यह एहसास कराती है कि कश्मीर की पहचान केवल धर्म या संस्कृति से नहीं, बल्कि उनकी साझा परंपरा से बनी है। यहाँ हर पत्थर और हर पेड़ इस बात की गवाही देते हैं कि यह घाटी हमेशा से विविधता का संगम रही है। मंदिर से लौटकर जब वह फिर से गलियों में उतरता है, तो वहाँ की चहल-पहल उसे आकर्षित करती है। रंगीन बाज़ार, जहाँ दुकानदार पूरे जोश से ग्राहकों को पुकारते हैं, और बच्चे पतंगें उड़ाते हैं—सब मिलकर एक जीवंत चित्र खींच देते हैं। पर इसी भीड़ में लेखक कुछ युवाओं से मिलता है, जिनकी आँखों में सपनों की चमक और माथे पर संघर्ष की लकीरें दोनों साथ दिखाई देती हैं।

उन युवाओं में से एक, इमरान, लेखक को बताता है कि वह इंजीनियर बनना चाहता है, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति और हालात उसे हर दिन एक नई चुनौती देते हैं। दूसरा युवक, आदिल, कहता है कि वह पर्यटक गाइड है, और यही काम उसकी पढ़ाई का खर्च उठाता है। वे सब एकसाथ हँसते-बोलते हैं, पर उनकी आवाज़ों में छुपी उम्मीद और अनिश्चितता लेखक को भीतर तक छू जाती है। उनकी बातें सुनकर उसे लगता है कि ये गलियाँ केवल पुराने कश्मीर की गवाह नहीं, बल्कि नए कश्मीर के सपनों का भी आईना हैं। दुकानों की रौनक और भीड़-भाड़ के बीच लेखक को समझ आता है कि यहाँ हर इंसान अपनी छोटी-सी जगह में बड़े सपनों के लिए संघर्ष कर रहा है। जब दिन ढलता है और बाजार की रोशनियाँ जल उठती हैं, तो गलियाँ और भी चमकदार लगने लगती हैं। लेकिन इस चमक के पीछे की खामोशी और युवाओं की कहानियाँ लेखक के दिल में गहरे उतर जाती हैं। वह सोचता है कि कश्मीर की असली तस्वीर इन्हीं गलियों में छिपी है—जहाँ इतिहास की गूँज, संस्कृति की परंपरा और भविष्य की उम्मीदें एक साथ साँस लेती हैं।

अध्याय ४– एक शिकारा वाले की दास्तान

सुबह के शांत माहौल में जब डल झील की सतह पर हल्की धूप तैर रही थी, लेखक ने एक पुराने शिकारे को किनारे पर टिके देखा। उस शिकारे का रंग फीका पड़ चुका था, लकड़ी की सतह पर समय की झुर्रियाँ साफ़ झलक रही थीं, लेकिन उसमें एक अनकही गरिमा थी—जैसे उसने अनगिनत यात्रियों को इस झील की कहानी सुनाई हो। उसी शिकारे के पास बैठे एक बुज़ुर्ग शिकारा-चालक ने लेखक को मुस्कुराकर इशारा किया। उसकी आँखें गहरी और थकी हुई थीं, पर उनमें अपनापन झलकता था। लेखक उसके शिकारे पर बैठ गया और धीरे-धीरे पतवार की हर चोट के साथ पानी की लहरों ने जैसे उसकी ज़िंदगी का परदा खोला। उस बुज़ुर्ग का नाम यूसुफ़ था, जिसकी उम्र सत्तर के पार होगी। वह बताने लगा कि उसका बचपन भी इसी झील के पानी पर बीता—जहाँ उसकी पहली बार पतवार थामने की कोशिश, पहली कमाई, और पहली ज़िम्मेदारियाँ सब इस पानी की सतह पर दर्ज हैं। झील उसके लिए केवल रोज़गार का साधन नहीं, बल्कि जीवन का दर्पण है, जिसमें उसने अपने हर सुख-दुःख का प्रतिबिंब देखा है। लेखक ध्यान से सुनता रहा, और उसे लगा जैसे झील का पानी यूसुफ़ की आवाज़ में बह रहा हो।

यूसुफ़ ने अपनी दास्तान जारी रखी। उसने कहा कि उसके पिता भी शिकारा चलाते थे और उसी काम को आगे बढ़ाना उसकी मजबूरी भी थी और नियति भी। कभी-कभी विदेशी सैलानी आते थे, उनकी आँखों में कश्मीर को देखने की लालसा होती थी, और यूसुफ़ को अच्छा लगता था कि वह उन्हें अपने घर का सौंदर्य दिखा पा रहा है। लेकिन हालात हमेशा इतने आसान नहीं रहे। उसने याद किया कि कैसे अस्सी और नब्बे के दशक में अशांति के दिनों ने पूरे कश्मीर की रूह को झकझोर दिया था। पर्यटक आना बंद हो गए थे, झील सूनी हो गई थी, और शिकारे बेकार पड़े रहते थे। यूसुफ़ कहता है कि उन दिनों उसने अपने बच्चों को भूखे पेट सुलाया, कभी कर्ज़ लिया तो कभी हाउसबोट मालिकों के यहाँ छोटी-मोटी नौकरी करके गुज़ारा किया। उसकी आवाज़ में कोई शिकायत नहीं थी, लेकिन एक थकान थी जो बरसों के बोझ की तरह झलकती थी। उसने बताया कि अब उसके तीन बेटे हैं—दो श्रीनगर से बाहर छोटे-मोटे काम करते हैं और तीसरा यहीं शिकारा चलाने में उसकी मदद करता है। परिवार का गुज़ारा चलता है, पर अब वह पहले जैसी ताक़त महसूस नहीं करता। लेखक को लगता है कि यह कहानी केवल यूसुफ़ की नहीं, बल्कि इस घाटी के उन अनगिनत लोगों की है जिनकी ज़िंदगी का हर मोड़ राजनीति और हालात की आंधियों से प्रभावित रहा है।

जब सूरज ऊपर चढ़ आया और झील पर रोशनी नाचने लगी, तब यूसुफ़ ने शिकारा किनारे की ओर मोड़ते हुए एक गहरी साँस ली। उसने कहा, “बाबूजी, कश्मीर को लोग जन्नत कहते हैं, लेकिन इस जन्नत में रहने वालों की मुश्किलें कोई नहीं देखता। हमारे लिए ये झील रोटी का ज़रिया है, लेकिन इसमें हमारी तक़लीफ़ों का आईना भी छुपा है।” उसकी आँखें डल झील के पानी की तरह गहरी और चमकदार थीं, पर उनमें दर्द की लहरें भी साफ़ दिखाई देती थीं। लेखक उस क्षण में समझ गया कि उसने कश्मीर का दूसरा चेहरा देखा है—वह चेहरा जो पर्यटकों के कैमरों में कैद नहीं होता, लेकिन यहाँ के हर इंसान की रगों में बहता है। शिकारे से उतरते समय लेखक ने यूसुफ़ से हाथ मिलाया, और उसकी उंगलियों की कठोरता में दशकों का संघर्ष महसूस किया। यह मुलाक़ात उसके दिल में एक अमिट छाप छोड़ गई। उसने सोचा कि डल झील केवल सुंदरता का आईना नहीं, बल्कि उन ज़िंदगियों का मौन गवाह है, जिन्होंने तमाम मुश्किलों के बावजूद अपनी नाव को डुबने नहीं दिया। और शायद यही कश्मीर की असली कहानी है—सुंदरता और संघर्ष का अद्भुत संगम।

अध्याय ५– पहलगाम का रास्ता

सुबह-सुबह लेखक ने श्रीनगर की हलचल भरी गलियों को पीछे छोड़ते हुए पहलगाम की ओर निकलने का निर्णय लिया। सड़क के किनारे बसी छोटी-छोटी बस्तियाँ और कच्ची पगडंडियाँ जैसे हर कदम पर उसकी निगाहों को आकर्षित कर रही थीं। शहर से बाहर निकलते ही वातावरण बदल गया—सड़क के दोनों ओर बर्फ से ढकी देवदार की कतारें खड़ी थीं, जिनकी लंबी छाया जैसे धुंध में घुलकर वातावरण को और भी रहस्यमय बना रही थी। लेखक को महसूस हुआ कि यहाँ हर मोड़ पर प्रकृति अपनी अलग भाषा बोल रही है। हरे-भरे देवदारों के बीच से गुजरती हल्की धूप और ठंडी हवा की मीठी ठंडक उसे भीतर तक ताज़गी दे रही थी। सड़क के नीचे बहती लिद्दर नदी की आवाज़ एक हल्की लय बना रही थी, जो जैसे सफ़र के संगीत का हिस्सा थी। लेखक ने अपनी गाड़ी की खिड़की खोल दी और नदी की ठंडी हवा को चेहरे पर महसूस किया। पानी की हल्की सरसराहट और दूर-दूर तक फैली बर्फ की सफेदी उसे एक अलग ही दुनिया में ले जा रही थी, मानो शहर और उसकी आपाधापी कहीं पीछे रह गई हो।

सफर के दौरान लेखक के साथ स्थानीय गाइड फारुक़ भी था, जो पहलगाम और आसपास के गाँवों की लोककथाओं और इतिहास से उसे रूबरू कराता रहा। फारुक़ ने बताया कि पहलगाम का नाम “पाहली गाम” से आया, जिसका अर्थ होता है “पहली बस्ती”, और यह क्षेत्र सदियों से यात्रियों और साधुओं का स्थल रहा है। उन्होंने यात्रा के दौरान घाटियों में घुमते हुए अनगिनत कहानियाँ सुनाईं—एक ऐसी महिला की कहानी जिसने लिद्दर नदी के किनारे बचपन में पहली बार अपने पिता के साथ मछली पकड़ी थी, और एक चरवाहे की कहानी जिसने बर्फबारी के दिनों में अपने ही परिवार की मदद के लिए पहाड़ पार किए थे। लेखक ने ध्यान से सुना और महसूस किया कि इन कहानियों में केवल मानव जीवन की घटनाएँ नहीं, बल्कि उस कठिन परिदृश्य में जीने की सूक्ष्म समझ और लोगी का धैर्य भी छिपा हुआ है। फारुक़ की बातें जैसे घाटियों की आत्मा में समाई हुई थीं, और लेखक के अनुभव को और भी जीवंत बना रही थीं।

जब कार धीरे-धीरे पहलगाम पहुँचती है, तो लेखक की आँखों के सामने घाटियों की विशालता खुल जाती है। बर्फ की सफेदी और देवदारों की हरी छटा मिलकर पहाड़ों को जैसे एक जादुई परदा ओढ़ा देती है। लिद्दर नदी अब अधिक ऊँचाई से बह रही थी, उसकी गर्जना और ठंडक लेखक के मन में रोमांच और सुकून दोनों भर रही थी। रास्ते में दिखती छोटी-छोटी झोपड़ियाँ, घास के मैदानों में चरते पशु, और दूर दूर तक फैले खेत मानो एक अलग ही जीवन की तस्वीर पेश कर रहे थे। लेखक ने महसूस किया कि शहर की भागदौड़ और आधुनिक जीवन की चिंताओं के बीच यह स्थान एक शांति और आत्मनिरीक्षण की जगह है। फारुक़ के द्वारा सुनाई गई लोककथाएँ, बर्फ से ढकी घाटियों की चुप्पी, और नदी की लगातार बहती धारा—इन सबने मिलकर लेखक को यह एहसास दिलाया कि पहलगाम केवल एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि जीवन के संघर्ष, प्रकृति की सादगी और संस्कृति की गहराई का प्रतीक है। लेखक ने अपने कैमरे में इस नजारे को कैद करने की कोशिश की, लेकिन महसूस किया कि इस सौंदर्य को केवल आँखों और मन में ही संजोना बेहतर है, क्योंकि यहाँ हर दृश्य एक जीवंत अनुभूति बनकर उसके भीतर उतर रहा था।

अध्याय ६– पहलगाम की सुबह

पहलगाम की सुबह कुछ अलग ही थी—हवा में ठंडक के साथ ताजगी और मिट्टी की ख़ुशबू मिली हुई थी। लेखक जब अपने कमरे की खिड़की खोलता है, तो सामने फैली हरियाली से ढकी घाटियाँ उसे घेर लेती हैं, और दूर से लिड़्दर नदी की हल्की सरसराहट उसकी आत्मा को सुकून देती है। सूर्य की किरणें धीरे-धीरे पहाड़ों की बर्फ पर पड़ रही थीं, और उनका प्रतिबिंब घाटियों में बिखरकर एक सुनहरी चादर की तरह दिखाई दे रहा था। लेखक ने सोचा कि आज वह घोड़े की सवारी करके घाटियों और जंगलों के और पास जाकर उनकी आत्मा को महसूस करेगा। घाटियों की ओर जाते हुए वह देखता है कि रास्ते में बर्फ पिघलकर छोटे-छोटे नालों और धाराओं में बदल रही थी, और इन पानी की धाराओं में घास और फूलों का प्रतिबिंब एक अद्भुत दृश्य बना रहा था। घोड़े की पीठ पर बैठकर लेखक ने महसूस किया कि इस सफ़र की हर ठंडी सांस और हर हल्की झपकियों वाली हवा उसके मन में अलग ही ऊर्जा भर रही थी।

घाटियों के बीच सवारी करते हुए लेखक को कई छोटे गाँव और खेत दिखाई दिए। यहाँ के लोग, जो अपने रोज़मर्रा के काम में व्यस्त थे, उन्होंने उसे मुस्कान और हाथ हिलाकर स्वागत किया। लेखक जब एक छोटे गाँव के पास रुका, तो वहाँ कुछ बच्चे घास के मैदान में खेल रहे थे। उनकी मासूमियत और खेलों की हँसी लेखक को बेहद आकर्षित करती है। लेकिन थोड़ी ही देर में उन्होंने अपने जीवन की कठिनाइयाँ भी साझा की—कहानी उनके पिता की बेरोज़गारी, पढ़ाई में आने वाली बाधाओं, और मौसम की वजह से खेतों में काम की चुनौतियों की। लेखक को महसूस हुआ कि यह मासूमियत केवल खेल और हँसी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें संघर्ष और जीवन की गहरी समझ भी छिपी है। बच्चों की बातें सुनकर उसे यह अहसास हुआ कि पहलगाम की सुंदरता केवल दृश्यात्मक नहीं है, बल्कि यहाँ की ज़िंदगी, लोगों की मेहनत और प्रकृति के साथ उनका संघर्ष भी इसे विशेष बनाते हैं।

घोड़े की सवारी जारी रखते हुए लेखक घाटियों के और भी नज़दीक पहुँचता है। हरियाली के बीच बहती नदियाँ और छोटे-छोटे झरने उसकी यात्रा को और भी रोमांचक बना रहे थे। घाटियों में हल्की धुंध छाई हुई थी, जो दृश्य को और भी रहस्यमय और आकर्षक बना रही थी। लेखक ने महसूस किया कि यह जगह केवल पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि आत्मा को शांति और मन को संतुलन देने वाली जगह है। बच्चों और स्थानीय लोगों से बातचीत करने के दौरान उसे यह एहसास हुआ कि यहाँ की ज़िंदगी का हर पहलू—बर्फ, पानी, पेड़-पौधे और मानव संघर्ष—एक साथ मिलकर इस घाटी की असली पहचान बनाते हैं। जब वह अपनी सवारी पूरी करता है और घाटियों के बीच एक ऊँची चोटी से पूरे दृश्य को निहारता है, तो उसे यह एहसास होता है कि पहलगाम केवल आँखों से नहीं, बल्कि दिल और मन से महसूस की जाने वाली जगह है। हर साँस, हर आवाज़ और हर दृश्य उसके भीतर उतरकर एक स्थायी स्मृति बन गया था, जो उसे यहाँ की मासूमियत और संघर्ष दोनों की गहराई समझा रहा था।

अध्याय ७– संघर्ष की परछाइयाँ

पहलगाम की घाटियों में एक छोटे से गाँव में रुके हुए लेखक ने महसूस किया कि यहाँ की सुंदरता के पीछे छिपी कहानियाँ इतनी गहरी और जटिल हैं कि पहली नजर में उन्हें समझ पाना नामुमकिन सा लगता है। गाँव के लोग उसे अपने घरों में बुलाते हैं, चाय की प्यालियाँ और ताजगी से भरी रोटियाँ परोसते हैं, और फिर धीरे-धीरे अपनी ज़िंदगी की कहानियाँ साझा करने लगते हैं। एक बूढ़े किसान ने अपनी बात शुरू की—कहा कि कैसे वर्षों पहले उनके परिवार को एक बड़े संघर्ष का सामना करना पड़ा, जब बर्फ़बारी और बाढ़ ने उनके खेत बर्बाद कर दिए थे। उनके चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन आँखों में वह दर्द साफ़ दिखाई दे रहा था जो सालों से उनके दिल में दबा हुआ था। किसान ने यह भी बताया कि किस तरह उनके बेटे पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए क्योंकि परिवार का गुज़ारा खेतों पर ही निर्भर था। लेखक को यह अहसास हुआ कि यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता और जीवन के संघर्षों के बीच एक अजीब सा संतुलन है—जैसे स्वर्ग और धरती की दो परतें एक साथ मौजूद हों, और हर मुस्कान में छिपा एक अदृश्य दर्द हो।

गाँव में और आगे बढ़ते हुए लेखक ने कुछ युवाओं से भी बातचीत की, जिनकी आँखों में सपनों की चमक थी, पर उनके चेहरे पर समय और हालात की कठोरता भी स्पष्ट थी। एक युवा ने कहा कि उसे शहर में नौकरी ढूँढने की कोशिश करनी पड़ रही है, लेकिन परिवार की जिम्मेदारियों और घाटियों की सीमाओं ने उसे बार-बार रोका। उसने अपने खोए हुए अवसरों और अधूरे सपनों की कहानी साझा की, और लेखक को लगा कि यह कहानी केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि इस पूरे क्षेत्र के संघर्ष की दास्तान है। बच्चों के खेल और हँसी के बीच भी एक छिपी हुई गंभीरता थी, जैसे जीवन की कठिनाइयाँ यहाँ की हवा में घुली हुई हों। लेखक ने महसूस किया कि इस गाँव के लोग हर दिन प्रकृति और परिस्थितियों के साथ एक नाजुक संतुलन बनाए रखते हैं, और उनकी जीवनशैली में संघर्ष और धैर्य इतनी गहराई से जुड़ा है कि वह पहली नजर में दिखाई नहीं देता। इस अनुभव ने लेखक को यह समझने में मदद की कि कश्मीर केवल बर्फ़ और हरियाली का नाम नहीं, बल्कि हर इंसान की मेहनत और आत्मा की दृढ़ता का प्रतीक भी है।

दिन ढलते-ढलते जब लेखक गाँव के एक ऊँचे बिंदु से घाटियों की ओर नज़र डालता है, तो उसे एक अजीब सा मिश्रित अनुभव होता है। नीचे फैली घाटियाँ, बहती नदियाँ और हरियाली उसे जन्नत जैसी लगती हैं, पर हर गाँव, हर घर और हर इंसान की कहानी में एक दर्द और संघर्ष की परछाई भी है। उसने देखा कि कैसे लोग अपने जीवन की कठिनाइयों के बावजूद उम्मीद बनाए रखते हैं—किसानों की मेहनत, युवाओं का सपना और बच्चों की मासूमियत, सभी मिलकर एक ऐसा दृश्य प्रस्तुत करते हैं जो सुंदरता और दर्द का अद्भुत संगम है। लेखक को एहसास हुआ कि यही कश्मीर की असली पहचान है: बर्फ़ से ढकी चोटियाँ और झीलों की शांति केवल बाहरी छवि हैं, लेकिन उनके भीतर के जीवन, संघर्ष और अनकहे सपने इस जन्नत को वास्तविकता की गहराई देते हैं। इस गाँव में बिताया हर पल उसे यह सिखा गया कि सुंदरता केवल देखने में नहीं, बल्कि महसूस करने और समझने में है, और यहाँ का हर दृश्य केवल आँखों को नहीं, बल्कि दिल और मन को भी छू जाता है।

अध्याय ८– गुलमर्ग की ओर

श्रीनगर से गुलमर्ग की यात्रा शुरू होते ही लेखक को रास्ते की खामोशी और आसपास की बर्फ़ीली चोटियों की भव्यता ने मोहित कर दिया। जैसे ही गाड़ी पहाड़ों की चढ़ाई पर आगे बढ़ी, हरी-भरी घाटियाँ और बर्फ से ढकी देवदार की कतारें उसकी आँखों के सामने एक फिल्मी दृश्य जैसा छा गईं। रास्ते में छोटे-छोटे गाँव, जहाँ लोग अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में व्यस्त थे, लेखक को न केवल दृश्यात्मक आनंद दे रहे थे, बल्कि उनके जीवन की कहानियाँ भी अनायास उसके मन में उतर रही थीं। लिड़्दर नदी की धारा दूर से बहती दिखाई दे रही थी, और उसके पानी की हल्की सरसराहट जैसे उसके सफ़र की लय को बढ़ा रही थी। हवा में बर्फ की ताजगी और देवदार के पेड़ों की खुशबू उसे भीतर तक छू रही थी। लेखक ने महसूस किया कि गुलमर्ग केवल पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि घाटियों और चोटियों के बीच बसी एक ऐसी जगह है, जहाँ हर मोड़ पर प्रकृति की नाजुक सुंदरता और मानवीय जीवन का संघर्ष एक साथ देखने को मिलता है।

गुलमर्ग पहुँचते ही लेखक ने देखा कि बर्फ से ढकी ढलानें पर्यटकों की भीड़ से गूंज रही थीं। स्कीइंग के शौकीन लोग ढलानों पर दौड़ रहे थे, उनके चेहरे पर उत्साह और आनंद साफ़ दिखाई दे रहा था। छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बड़े वयस्क तक, हर कोई इस बर्फ़ीले खेल का मज़ा ले रहा था। लेकिन लेखक की निगाहें उन छोटे दुकानदारों और कामगारों पर गईं, जो इन पर्यटकों के लिए चाय, स्नैक्स और स्कीइंग उपकरण बेच रहे थे। उनके चेहरे पर थकान और मेहनत की झलक थी, और वह जानता था कि इस भीड़ और चमक के पीछे उनका जीवन कितना संघर्षपूर्ण है। दुकानों की लकड़ी की सतहें, बर्फ से भीगी हुई सड़कें, और ठंडी हवा में लगातार काम करना—इन सब चीज़ों ने उसे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि गुलमर्ग की यह चमक केवल देखी नहीं जाती, बल्कि समझी भी जानी चाहिए। यहां की सुंदरता के पीछे छिपी मानव मेहनत और पर्यावरणीय चुनौतियाँ उसकी आत्मा में एक मिश्रित अनुभव पैदा कर रही थीं।

लेखक जब ढलानों के किनारे बैठा और चारों तरफ फैली बर्फ़ीली चोटियों को निहारता है, तो उसे गुलमर्ग की जन्नत जैसी छवि दिखाई देती है। सूर्य की किरणें बर्फ पर पड़कर उसे सुनहरी चमक दे रही थीं, और दूर-दूर तक फैली हरियाली के बीच बर्फ की सफेदी मानो एक काल्पनिक परदा ओढ़े हुए हो। पर जैसे ही उसकी निगाह स्थानीय दुकानदारों और छोटे कामगारों पर पड़ी, उसे समझ आया कि इस स्वर्ग के भीतर एक गहरी वास्तविकता भी छिपी है—गरीबी, कठोर मेहनत और मौसम की चुनौती। लेखक ने महसूस किया कि गुलमर्ग केवल एक दृश्य नहीं, बल्कि जीवन और संघर्ष का संगम है। वह जानता था कि यह अनुभव उसे हमेशा याद रहेगा—बर्फ़ से ढकी ढलानों की खूबसूरती, खेलों की खुशी, और साथ ही वहाँ के लोगों की मेहनत और संघर्ष की परछाइयाँ—सब मिलकर गुलमर्ग की असली कहानी बनाते हैं। लेखक ने सोचा कि यही कश्मीर की असली पहचान है: दृश्यात्मक आनंद और छिपी मेहनत का अद्भुत संतुलन, जिसे महसूस करना और समझना किसी भी यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।

अध्याय ९– एक चायवाले का किस्सा

गुलमर्ग की ढलानों पर चहल-पहल और बर्फ़ीली हवा के बीच, लेखक की नजर एक छोटे से चाय के ठेले पर पड़ी। ठेले के पीछे खड़ा युवक, अजीम, हाथ में चाय का कप पकड़े ग्राहकों का स्वागत कर रहा था। उसके चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन उसकी आँखों में एक थकान और गंभीरता स्पष्ट दिखाई दे रही थी। लेखक ने पास जाकर उससे बात करना शुरू किया। अजीम ने अपनी ज़िंदगी के बारे में बताना शुरू किया—कहानी एक ऐसे युवा की, जिसने पढ़ाई के सपनों को छोड़कर अपने परिवार की मदद के लिए यह काम अपनाया। हर दिन वह सुबह सूरज निकलने से पहले उठता, ठंडी बर्फ़ीली हवा में ढलानों तक चाय पहुँचाता, और रात को थक कर अपने छोटे से कमरे में लौटता। उसका जीवन गुलमर्ग की खूबसूरती और पर्यटकों की खुशी के पीछे छुपे कठिन परिश्रम की कहानी कह रहा था। लेखक को यह एहसास हुआ कि यहाँ की जन्नत जैसी सुंदरता केवल देखने में नहीं, बल्कि समझने में भी उतनी ही गहरी है, क्योंकि इसके भीतर रहने वाले लोगों की मेहनत और संघर्ष इस छवि का अहम हिस्सा है।

अजीम ने बताते हुए कहा कि हर मौसम की अपनी चुनौतियाँ हैं। गर्मियों में पर्यटकों की भीड़ रहती है, पर बर्फ़बारी और ठंड के समय यह व्यवसाय कठिनाई में पड़ जाता है। कभी-कभी भारी बर्फ़बारी के कारण लोग ढलानों पर नहीं आते, और चाय का व्यापार ठहर जाता है। इसके बावजूद वह अपने काम को जारी रखता है क्योंकि यह केवल उसकी रोज़ी-रोटी का जरिया नहीं, बल्कि परिवार के लिए जिम्मेदारी का प्रतीक भी है। लेखक ने ध्यान दिया कि अजीम के अनुभवों में एक स्थिरता और धैर्य है, जो उसे कई कठिनाइयों के बावजूद आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। वह बताता है कि कैसे कभी-कभी पर्यटकों की छोटी-सी तारीफ़ और मुस्कान उसके दिन को संजीवनी दे देती है, और यही संतुलन उसे जीवन की कठिनाइयों से जूझने की ताक़त देता है। लेखक महसूस करता है कि गुलमर्ग की ढलानों पर बिखरी चमक और आनंद के पीछे यही छुपी कहानियाँ इसकी असली आत्मा को उजागर करती हैं।

जब लेखक अजीम के साथ थोड़ी देर बैठा और चारों तरफ बर्फ़ीली ढलानों और खेलों को निहारता है, तो उसे गुलमर्ग की सुंदरता और मानव संघर्ष का अद्भुत मेल दिखाई देता है। यहाँ पर्यटक उत्साह और आनंद के प्रतीक हैं, पर स्थानीय लोग अपनी रोज़मर्रा की चुनौतियों और मेहनत के साथ इस स्वर्ग को वास्तविकता में बदलते हैं। अजीम की कहानी लेखक के मन में गहराई से उतर गई—हर चाय का कप, हर मुस्कान, और हर थकी हुई साँस यहाँ की असली कहानी को बयान कर रही थी। लेखक ने महसूस किया कि किसी भी जगह की सुंदरता केवल उसकी बाहरी छवि से नहीं, बल्कि उसके लोगों की ज़िंदगी, संघर्ष और धैर्य से जानी जाती है। गुलमर्ग की बर्फ़ीली ढलानें, स्कीइंग का रोमांच और पर्यटकों की खुशी केवल दृश्यात्मक आनंद हैं, पर अजीम जैसे युवा इसका असली चेहरा दिखाते हैं—सुंदरता और संघर्ष का अद्भुत संगम। लेखक यह समझ गया कि यात्रा केवल देखने के लिए नहीं, बल्कि महसूस करने और समझने के लिए होती है, और अजीम की कहानी ने उसे यही एहसास दिलाया।

अध्याय १०– वादियों से लौटते हुए

श्रीनगर से लौटते समय लेखक ने महसूस किया कि कश्मीर की यात्रा केवल प्राकृतिक सुंदरता का अनुभव नहीं थी, बल्कि यह भावनाओं, संघर्षों और कहानियों का एक गहन सफ़र भी थी। शहर की हलचल और पहलगाम व गुलमर्ग की शांति के बीच के अंतर ने उसे यह एहसास दिलाया कि यह घाटी केवल तस्वीरों और postcards की जन्नत नहीं है, बल्कि यहां के हर इंसान की ज़िंदगी में गहरी जड़ें जमा रही हैं। डल झील के पानी में झलकती सूरज की पहली किरण, शिकारे वाले यूसुफ़ की मेहनत भरी कहानी, पहलगाम की घाटियों में खेलते बच्चों की मासूमियत और गुलमर्ग की बर्फ़ीली ढलानों पर चाय बेचने वाले अजीम की जद्दोजहद—इन सभी अनुभवों ने लेखक के मन में एक अमिट छाप छोड़ दी। वह समझ गया कि कश्मीर की असली पहचान केवल उसकी प्राकृतिक सुंदरता नहीं, बल्कि यहां के लोगों के संघर्ष, उनकी उम्मीद और उनके सपनों का दर्पण भी है। जब वह रास्ते में लिड़्दर नदी की बहती धारा और देवदार के घने जंगलों को निहारता है, तो उसे लगता है कि यह जगह मनुष्य और प्रकृति के बीच संतुलन का अद्भुत उदाहरण है, जहाँ हर लहर और हर पेड़ एक कहानी कहता है।

सफर के दौरान लेखक ने महसूस किया कि कश्मीर के सौंदर्य के पीछे छिपा संघर्ष कई रूपों में है। छोटे गाँवों में किसानों की मेहनत, बेरोज़गार युवाओं के सपने, और बर्फ़ीली ढलानों पर काम करने वाले दुकानदारों की कठिनाइयाँ—इन सबने उसे यह सिखाया कि सुंदरता और संघर्ष दो ऐसे पहलू हैं जो एक-दूसरे से अलग नहीं हो सकते। गुलमर्ग की चमक और स्कीइंग के उत्साह के बीच अजीम की थकान और कठिन मेहनत, पहलगाम की घाटियों में बच्चों की मासूमियत के साथ उनकी ज़िंदगी की चुनौतियाँ, और डल झील के शिकारे वाले यूसुफ़ का संघर्ष—इन सबने लेखक को यह एहसास दिलाया कि कश्मीर केवल देखने में सुंदर नहीं, बल्कि महसूस करने में भी गहरी जगह है। उसने देखा कि यहाँ की हर धड़कन, हर मुस्कान, और हर थकी हुई साँस इस धरती की असली कहानी को बयान करती है।

जब लेखक अंततः श्रीनगर पहुँचता है और अपनी वापसी की यात्रा शुरू करता है, तो उसके मन में एक अजीब सा मिश्रित अनुभव होता है—खुशी, सुकून, और हल्की उदासी। उसे एहसास होता है कि कश्मीर का हर दृश्य, हर व्यक्ति, और हर अनुभव उसके दिल में हमेशा के लिए उतर गया है। वह जानता है कि यह यात्रा केवल यादों में संजोने के लिए नहीं, बल्कि उसे जीवन के वास्तविक अर्थ और संघर्ष की गहराई का एहसास दिलाने के लिए थी। डल झील की खामोशी, पहलगाम की घाटियों की हरियाली, गुलमर्ग की बर्फ़ीली ढलानें और उनके बीच की ज़िंदगियाँ—सभी मिलकर उसके मन में एक अमिट छवि बन गई हैं। लेखक समझता है कि कश्मीर केवल पर्यटन स्थल या जन्नत नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी भूमि है जहाँ भावनाएँ, संघर्ष और अनकही कहानियाँ हमेशा जीवित रहती हैं। वह अपने मन में यह संकल्प लेता है कि इन यादों और किस्सों को वह हमेशा अपने भीतर संजोए रखेगा, क्योंकि यही कश्मीर का असली सौंदर्य है—स्वर्ग जैसा दृश्य नहीं, बल्कि जज़्बातों और जीवन का अद्भुत संगम।

समाप्त

 

 

 

 

 

 

 

 

 

1000071398.png

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *