Vishal Varshney
भैरवपुर गाँव बहुत साधारण था, चारों तरफ़ खेत, पीपल का पुराना पेड़, और बीच में मंदिर। लेकिन इस गाँव पर एक अनोखी छाया हमेशा से रही थी। हर पीढ़ी में बुज़ुर्ग बच्चों को चेतावनी देते थे—
“जब आकाश में लाल तारा चमके, दरवाज़े बंद कर लेना… वो है काल सितारा।”
गाँव के लोग मानते थे कि यह सितारा हर बार किसी एक जीवन की बलि लेता है। और बलि का स्थान अक्सर वही पुरानी हवेली होती थी, जो गाँव के छोर पर खंडहर की तरह खड़ी थी।
लाल तारे की रात
एक अमावस की रात, जब चारों तरफ़ अँधेरा था, आसमान पर एक अजीब-सा लाल तारा चमक उठा। बाकी तारे मानो बुझ गए थे। पूरा गाँव भयभीत होकर घरों में छिप गया।
लेकिन राघव—गाँव का सबसे निडर और जिद्दी युवक—हँस रहा था।
“ये सब अंधविश्वास है,” उसने अपने दोस्तों से कहा। “आज मैं साबित कर दूँगा कि कोई काल सितारा नहीं होता। देखना, मैं उसी हवेली में रात गुजारूँगा।”
दोस्तों ने बहुत मना किया, पर वह शराब के नशे और अपने अहंकार में हवेली की ओर निकल पड़ा।
हवेली की दहलीज़
हवेली के टूटे हुए फाटक अपने आप हिल रहे थे। चारों तरफ़ बबूल के पेड़, जिनकी टेढ़ी डालियाँ जैसे पंजे बनाकर भीतर जाने से रोक रही थीं।
राघव ने दरवाज़ा धक्का देकर खोला। किर्र-किर्र की आवाज़ के साथ वह भीतर गया।
भीतर की हवा में सड़ांध और जंग लगी लोहे जैसी गंध थी। दीवारों पर जाले लटक रहे थे, फर्श पर धूल और चूहे भाग रहे थे।
उसने टॉर्च निकाली और इधर-उधर घुमाई। अचानक उसे लगा कि कोई उसके कान के पास फुसफुसाया—
“राघव…”
वह चौंक गया। टॉर्च घुमाई, पर कोई नहीं था। तभी तेज़ हवा चली और हवेली का दरवाज़ा धड़ाम से बंद हो गया।
सितारे की फुसफुसाहट
वह डर के बावजूद भीतर बढ़ा। उसकी नज़र एक बड़े, पुराने आईने पर पड़ी। आईने में उसकी परछाई थी—लेकिन परछाई की आँखें लाल चमक रही थीं।
उसके कानों में गूँजी गहरी आवाज़—
“एक जीवन… आज मेरा है…”
राघव ने डर को हँसी में छुपाते हुए कहा, “कौन है? सामने आ!”
लेकिन उसी पल आईने में उसकी परछाई मुस्कुराई, जबकि वह खुद काँप रहा था।
अचानक उसे महसूस हुआ किसी ने उसके कंधे पर ठंडी हथेली रखी। वह चीखना चाहता था, मगर आवाज़ गले में ही फँस गई।
मौत की मुस्कान
उस रात राघव हवेली से कभी बाहर नहीं आया। सुबह गाँववाले जब पहुँचे तो उन्होंने देखा—
हवेली के बीच हॉल में उसका शव पड़ा था।
आँखें पूरी तरह लाल, और चेहरे पर अजीब-सी जमी हुई मुस्कान।
गाँव कांप उठा। सबने मान लिया कि काल सितारा सच है। हवेली को फिर से बंद कर दिया गया और लोग सालों तक उससे दूर रहे।
पंडित का आगमन
कई साल बाद गाँव में पंडित हरिदत्त आए। वे तपस्वी थे और दूर-दूर तक अपने ज्ञान और तंत्र विद्या के लिए प्रसिद्ध। उन्होंने गाँववालों से कहा—
“ये कोई भूत नहीं। यह भय और लालच का बंधन है। जो भीतर से अंधकार से भरा होता है, वही काल सितारे का शिकार बनता है।”
लोग डरते-डरते उनके साथ हवेली तक गए।
मुक्ति की अग्नि
पंडितजी ने हवेली में दीप जलाए, वेद-मंत्र गाए। दीवारें जैसे कांपने लगीं, हवा और भारी हो गई।
आईने पर फिर से राघव की परछाई दिखी—इस बार उसकी आँखें लाल थीं, चेहरा वही मुस्कान लिए।
उसने चीखते हुए कहा—
“मैंने मज़ाक किया था… पर अब मैं हमेशा के लिए फँस गया हूँ…”
पंडितजी ने ऊँचे स्वर में मंत्र पढ़े। दीपक की लौ तेज़ हुई और पूरे हॉल में रोशनी भर गई।
धीरे-धीरे राघव की परछाई की आँखों की लालिमा कम हुई। उसकी आवाज़ धीमी हो गई—
“अब मैं समझ गया… सच्चा अंधकार बाहर नहीं, मेरे भीतर था…”
आईना साफ़ हो गया, और परछाई धीरे-धीरे गायब हो गई। हवेली में पहली बार वर्षों बाद सन्नाटे की जगह शांति थी।
काल सितारे का अंत
उस रात आकाश में फिर से लाल तारा चमका। गाँव वाले काँप गए, पर इस बार कोई अनहोनी नहीं हुई।
सितारा धीरे-धीरे फीका होकर साधारण तारों में विलीन हो गया।
हवेली को गाँववालों ने मंदिर में बदल दिया। हर साल दीपोत्सव मनाया जाने लगा।
और काल सितारा अब लोगों के लिए डर नहीं
रहा—वह एक याद थी कि इंसान का सबसे बड़ा शत्रु उसका अपना अहंकार और डर है।