दिल्ली के शाहपुर जाट इलाके की पतली गलियों में, एक पुरानी इमारत की तीसरी मंज़िल पर अवनि शर्मा ने हाल ही में किराए पर एक फ्लैट लिया था। मकान मालिक ने कहा था, “थोड़ा पुराना है, मगर शांत इलाका है।” अवनि को यही चाहिए था—शांति। एकाकी ज़िंदगी, कॉफी मग में भाप लेती शामें, लैपटॉप पर काम और दीवार पर टँगी किताबों की अलमारियाँ। वह एक डिजिटल मीडिया एडिटर थी और ज़्यादातर वक़्त घर से ही काम करती थी। फ्लैट छोटा था लेकिन खुला-खुला, जिसकी बालकनी से हौज खास के पुराने गुंबद दिखाई देते थे। मगर पहले ही दिन जब वह घर में घुसी, उसे जैसे कुछ अधूरा-सा महसूस हुआ—एक तरह की नमी, जैसे दीवारें किसी कहानी को छुपा रही हों। कोनों में मकड़ी के जाले तो हट गए, लेकिन अजीब बात यह थी कि दीवारों के एक हिस्से पर हल्के हाथ के निशान जैसे उभर आए थे, जिन पर ताज़ा मिट्टी लगी थी। उसने सोचा कि शायद पिछली सफाई में रह गया होगा, लेकिन रात को जब सोने गई, तब उसे पहली बार वो सपना आया।
सपना एक अधूरे मकान का था। मकान अधूरा इस मायने में नहीं था कि वह बन नहीं पाया था—बल्कि वह ऐसा था जैसे अधूरी आत्माओं का ठिकाना हो। एक बड़ा-सा दरवाज़ा, जिसके पीछे लगातार फुसफुसाहटें आती थीं। और उस दरवाज़े के सामने खड़ी थी एक औरत—लंबे बाल, गीली लाल साड़ी, पीठ उसकी ओर और चेहरा कभी न दिखाई देने वाला। जब भी अवनि उसे देखने की कोशिश करती, दरवाज़ा भड़भड़ा कर खुलता और वह नींद से चौंक जाती। पहले दिन वह सपना था, दूसरे दिन फिर से वही, तीसरे दिन भी…अब वह सपना एक पैटर्न बनता जा रहा था। हफ्ते भर में उसने महसूस किया कि उसके घर में कुछ चीज़ें बदल रही थीं। खिड़की का पर्दा जो सुबह सीधा रहता, रात को मुड़ा हुआ मिलता। किचन में रखा कांच का गिलास टूटे बिना दरार खा चुका था। और सबसे डरावनी बात—उसके मोबाइल की गैलरी में एक तस्वीर आ गई थी, जो उसने कभी खींची ही नहीं थी। वह तस्वीर उसी अधूरे मकान की थी जो वह अपने सपनों में देख रही थी—बिलकुल वही दरवाज़ा, वैसी ही दीवारें, और उसी दरवाज़े के सामने खड़ी एक धुंधली आकृति।
अवनि ने इसे शुरुआत में ‘वर्क स्टेस’ समझा। शायद ज़्यादा स्क्रीन टाइम, या अकेले रहने की वजह से ये सब दिमाग़ी खेल है। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, सपनों की तीव्रता बढ़ती गई। अब वो महिला धीरे-धीरे उसकी तरफ़ घूमने लगी थी। एक रात तो सपना इतना भयावह था कि वह चिल्ला कर उठी और कमरे की लाइट जला दी। लेकिन तब उसने देखा कि कमरे की दीवार पर ताज़ा मिट्टी से बने दो हाथ के निशान थे—बिलकुल वैसे जैसे दरवाज़ा अंदर से किसी ने खटखटाया हो। वह घबरा कर पास की किराना दुकान पर गई और वहां के लड़के से बात की, जिसने एक अजीब बात कही—”मैडम, इस घर में कोई भी तीन महीने से ज़्यादा नहीं टिका। पिछली लड़की भी ऐसे ही चुपचाप चली गई थी। उसका नाम था… राधिका घोष।” अवनि ने झूठी हँसी में टाल दिया लेकिन उसका दिमाग अब भटकने लगा। रात को वह बालकनी में बैठी थी और अपने फोन पर वो तस्वीर ज़ूम कर रही थी। दरवाज़े के पीछे कुछ हल्का-सा लाल दिखा… क्या वह साड़ी थी?
तीसरे हफ्ते की एक दोपहर, जब वह सफाई कर रही थी, उसने बेड के नीचे कुछ खटखटाने की आवाज़ सुनी। पहले लगा कोई चूहा है, लेकिन जब उसने लकड़ी के फर्श को हल्का-सा दबाया तो एक तख्ता उठ गया। नीचे एक पुरानी डायरी रखी थी—चमड़े की जिल्द, किनारे फटे हुए, और पहला पन्ना फफूँदी से सना। ऊपर लिखा था – “राधिका घोष की डायरी। अगर कोई इसे पढ़ रहा है, तो समझो अब तुम भी देख सकती हो।” वह एकदम सन्न रह गई। जैसे ही उसने पहला पन्ना पलटा, हवा जैसे थम गई। घर में लगे वेंटिलेटर की फड़फड़ाहट अचानक धीमी पड़ गई। डायरी में जो लिखा था, वह उसकी खुद की ज़िंदगी से मिलता-जुलता था—अधूरा मकान, लाल साड़ी वाली औरत, दीवारों पर मिट्टी के हाथ, सपनों में दरवाज़े की आवाज़। आखिरी पन्ने पर एक वाक्य था—“अगर रजनी दाई तुम्हें देख चुकी है, तो अब कोई दरवाज़ा नहीं बचेगा बंद।” अवनि के रोंगटे खड़े हो गए। उसके हाथ कांप रहे थे। उसने दीवार की ओर देखा… और वहीं कोने में, हल्की परछाईं में… पहली बार, उसे लगा कि कोई उसकी तरफ़ देख रहा है।
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रात के दो बजे मोबाइल की टॉर्च जलाकर जब अवनि ने कमरे के कोने में देखा, तो वहाँ कोई नहीं था—सिर्फ़ अंधेरा था, गाढ़ा और गीला सा, जैसे वहां कुछ था जो अब हट गया हो। पर उसका दिल धौंकनी की तरह चल रहा था और हाथों से डायरी छूटते-छूटते बची। वह भागकर लिविंग रूम की लाइटें जला देती है, लेकिन अजीब बात ये थी कि कुछ देर बाद दीवार पर मिट्टी की एक लंबी खरोंच उभर आई थी, ठीक उसी जगह जहाँ उसकी नज़र गई थी। खरोंच ऊपरी हिस्से से नीचे तक सीधी थी, जैसे किसी नाखून या गीली उंगलियों से खींची गई हो। अवनि को लगा कि अब ये सब सिर्फ़ सपनों या कल्पना का हिस्सा नहीं है—कुछ था, जो उस घर में मौजूद था, और धीरे-धीरे अपनी मौजूदगी ज़ाहिर कर रहा था। अगले दिन उसने सब कुछ तर्क के तराजू पर तौलने की कोशिश की। शायद पुराने घर में सीलन की वजह से दीवारों पर निशान बन रहे हैं। लेकिन फिर मोबाइल की गैलरी में दो नई तस्वीरें दिखाई दीं—एक तस्वीर उसके बेडरूम के कोने की थी, और दूसरी उसी खरोंच वाली दीवार की, लेकिन वह तस्वीर रात की लग रही थी, जबकि मोबाइल चार्जिंग पर पड़ा था और कैमरा लॉक था।
अवनि अब खुद को सामान्य बनाए रखने की कोशिश करने लगी। काम में ध्यान लगाना, बाहर दोस्तों से मिलना, पुराने गाने सुनना—हर संभव कोशिश की। मगर हर बार घर लौटते ही एक अजीब-सा दबाव उसके सिर पर महसूस होता, जैसे हवा भारी हो गई हो। एक शाम जब वह किताबें व्यवस्थित कर रही थी, तो किताबों के पीछे से एक मुड़ा हुआ कागज़ मिला—किसी पुराने कैलेंडर का टुकड़ा, जिस पर हाथ से लिखा था “उसके पास मत बैठना जब वह बाल सुलझा रही हो। वह तुम्हारे भीतर घुस जाएगी।” यह वाक्य समझ से परे था, लेकिन इतना डरावना था कि अवनि ने झटपट वह कागज़ फाड़कर कूड़ेदान में फेंक दिया। उसी रात उसका सिर फटने जैसा दर्द करने लगा। उसने आईने में खुद को देखा—बाल उलझे हुए थे और पीछे की खोपड़ी के पास लाल-सी लकीर, जैसे किसी नाखून की खरोंच। वह बुरी तरह डर गई, दवाई ली और बिस्तर पर लेट गई। लेकिन नींद अब आसान नहीं थी। सपना फिर वही था—अधूरा मकान, वही दरवाज़ा, और अब वो औरत जो दीवार पर अपनी पीठ घिस रही थी—उसी तरह जैसे किसी को अंदर जाने की इजाज़त नहीं मिल रही हो। और अवनि देखती है कि उसके हाथ मिट्टी में लथपथ हैं, और वह खरोंच बना रही है—बिलकुल वैसी ही जैसी अब उसकी दीवार पर है।
अवनि ने आखिरकार तय किया कि उसे इस रहस्य का सामना करना होगा। वह वापस डायरी पढ़ने बैठ गई, और हर पन्ने में राधिका ने जिस ‘उसे’ बार-बार ज़िक्र किया था, उसकी गतिविधियाँ हूबहू अवनि की ज़िंदगी से मेल खा रही थीं। राधिका लिखती है—”जब पहली बार उसने मुझे छुआ, तो मेरी उंगलियों से मिट्टी झड़ने लगी। मेरे सपनों में वो दरवाज़ा खुला, और उसकी परछाई मेरे कमरे में आई।” राधिका ने एक जगह जिक्र किया कि वह औरत हर बार बाल सुलझाते वक्त सामने आती है, जैसे कोई अनुष्ठान दोहराया जा रहा हो। उसी जगह नीचे एक चित्र था—एक साधारण-सा स्केच, जिसमें एक स्त्री के चारों ओर मंडल बना था, और उसमें लिखा था “रजनी।” अवनि को अब पूरा यकीन हो गया था कि उसके सपनों में जो औरत आती है, वह कोई बुरा सपना नहीं है—वह कोई आत्मा है, जो बार-बार लौट रही है। लेकिन सवाल ये था कि क्यों? और क्यों उसी को दिख रही है? उसने अगली सुबह अपने एक पुराने दोस्त करण को फोन किया—जो डॉक्यूमेंट्रीज़ बनाता है और परामानविक विषयों में रुचि रखता है। करण को सब कुछ बताने में उसे हिचकिचाहट हुई, लेकिन करण चुपचाप सुनता रहा और बोला, “मैं आकर देखता हूँ। पर तू उस खरोंच को मिटाने की कोशिश मत करना। वो दरवाज़ा बन रहा है शायद।”
जब करण अगली शाम आया, तो घर की हवा एकदम भारी लग रही थी। करण ने आते ही कैमरा ऑन कर दिया और दीवारों की फुटेज लेनी शुरू कर दी। लिविंग रूम की दीवार पर खरोंच अब दो हो चुकी थीं—एक लंबवत और दूसरी तिरछी, जैसे दरवाज़े की चौखट। करण ने वह डायरी पढ़ी और बोला, “ये कोई साधारण आत्मा नहीं है। ये तांत्रिक आत्मा लगती है—तंत्र-मंत्र से जुड़ी कोई अधूरी प्रक्रिया। शायद इसे बंद किया गया था, लेकिन किसी वजह से ये फिर से सक्रिय हो रही है।” अवनि ने उसकी बातों को गंभीरता से लिया, पर तभी करण ने कैमरे में कुछ अजीब देखा। फुटेज में, जब अवनि सोफे पर बैठी थी, तभी पीछे दीवार की खरोंच पर एक क्षण के लिए कोई परछाईं उभरी थी—लंबे बाल, लाल रंग, और एक चेहरे के पास दो सफेद आंखें। करण ने कैमरा नीचे रख दिया और बोला, “इस घर में सिर्फ़ तू नहीं रह रही। अब देखना ये है कि वो तुझे क्यों चुन रही है।” उसी रात, जब करण चला गया, अवनि आईने के सामने बाल सुलझा रही थी। अचानक उसकी कंघी रुक गई। पीछे की ओर ठंडी साँस महसूस हुई। और उसी क्षण आईने में उसके पीछे, वही औरत थी—अब पूरी की पूरी, मुस्कुराती हुई। आईना धुँधला हो गया… और दीवार की तीसरी खरोंच अपने आप उभर आई।
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अवनि की रातें अब मानो एक अंधेरे सुरंग में बदल चुकी थीं, जिसमें हर पल उसे वही अजनबी भय घेर लेता था। दिन में सब कुछ सामान्य दिखता था—उसकी फ़्रीलांस जॉब, मित्रों के साथ हल्की-फुल्की बातें, और हर दिन की रूटीन—पर रात होते ही वह एक अजीब सी बेचैनी से भर जाती थी। पिछले कुछ दिनों में कई बार उसने महसूस किया था कि रात के अंधेरे में कमरे के भीतर एक ठंडी हवा बहने लगती है, जैसे कोई उसके पास खड़ा हो। एक शाम जब वह अपनी किताबों के बीच गुम थी, तो उसके ध्यान से एक नीला धागा गिरा। यह धागा कुछ अजीब सा था—न महीन था, न मोटा, बस एक सामान्य सी धागे जैसी लचकदार बनावट थी, पर जब उसने उसे हाथ में लिया, तो उसकी उंगलियों में एक असामान्य शीतलता आ गई। वह धागा किसी पुराने तंत्र-मंत्र से जुड़ा हुआ प्रतीत होता था। अवनि को याद आया कि उसके बचपन में उसकी दादी उसे हमेशा ऐसा ही एक धागा देती थी, जिसे बुरी नज़र से बचने के लिए पहना जाता था। लेकिन यह धागा तो कहीं से भी कोई साधारण तंत्र का हिस्सा नहीं लग रहा था।
अवनि ने धागे को गौर से देखा और फिर उसे अपनी डायरी में रखा। उसने फिर से उस डायरी को खोला जिसमें राधिका घोष की बातें लिखी थीं। एक पन्ने पर एक और अजीब सी बात लिखी थी—”अगर नीला धागा मिल जाए, तो उसे पहना नहीं जाना चाहिए। वह सिर्फ़ एक संकेत है कि आप जो सोच रहे हैं, वह सच होने वाला है।” अवनि को यह पढ़कर हल्का गुस्सा आ गया। उसने सोचा, “यह तो कोई बच्चों का खेल नहीं है, मैं इन सब बातों को तंत्र-मंत्र से नहीं जोड़ सकती।” लेकिन उसके अंदर की चिंता लगातार बढ़ती जा रही थी, और धागे को देखते हुए वह खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रही थी। उसने चुपके से उसे एक बॉक्स में रखा और सोने चली गई। लेकिन रात भर नींद में वह अजनबी महिला उसके पास आती रही, और उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी—वही मुस्कान जो अब उसके घर के हर कोने में महसूस हो रही थी। जैसे दीवारों के भीतर से वही चेहरा लगातार उसे घूरता हो।
अवनि ने सुबह उठते ही तय किया कि वह इस रहस्य को खत्म करेगी। उसने तय किया कि वह राधिका घोष के बारे में ज्यादा जानकारी जुटाएगी। उसने इंटरनेट पर उसके नाम की खोज शुरू की, लेकिन कोई ठोस जानकारी नहीं मिली। एक दिन, उसने एक स्थानीय पुस्तकालय में पुराने अख़बारों के कटिंग्स में एक आर्टिकल देखा, जो एक साधारण सी घटना का जिक्र कर रहा था—राधिका घोष नामक एक लड़की, जो कुछ साल पहले इस इमारत में किराए पर रहती थी, और अचानक गायब हो गई। अख़बार में यह भी लिखा था कि उसके लापता होने से पहले वह बहुत परेशान और उलझी हुई दिखती थी, और किसी बुरी आत्मा या शक्ति से जुड़ी बातें करती थी। इस आर्टिकल ने अवनि को और भी घबराहट में डाल दिया। राधिका की खोज अब उसके लिए सिर्फ़ एक जिज्ञासा नहीं रही, बल्कि यह उसके अस्तित्व के लिए एक खतरनाक पीछा बन चुका था। वह अब सोचने लगी थी कि क्या राधिका की तरह वह भी अब उस आत्मा के चक्र में फँस चुकी है।
अवनि ने रात को फिर से उस धागे को अपने पास रखा और ध्यान से उसकी हर एक धारा देखी। जैसे ही वह उसे पकड़ने लगी, अचानक उसके हाथ में हलकी सी जलन महसूस होने लगी, जैसे कोई गर्म चीज़ छूने का अहसास हो। वह झट से धागे को छोड़ देती है और चुपचाप अपने बिस्तर पर जाकर लेट जाती है। तभी उसे अपने कमरे के बाहर से हल्की-सी आवाज़ सुनाई देती है—मानो कोई धीरे-धीरे चल रहा हो। वह चौंककर दरवाजे की ओर देखती है, लेकिन फिर कुछ नहीं दिखता। यह सब इतना असामान्य और डरावना था कि अवनि को लगने लगा कि वह अब और नहीं लड़ सकती। उसके शरीर में हर अंग दर्द कर रहा था, और उसका मन कहीं खो सा गया था। उसने तय किया कि वह अब किसी तांत्रिक से मदद लेगी। लेकिन उसे यह भी डर था कि कहीं वह खुद राधिका जैसी स्थिति में न पहुँच जाए—जहाँ वह अपनी सारी यादों और सोच को खो दे, बस उस आत्मा के चक्र में फँसी रहे।
अवनि ने अगले दिन पंडित वशिष्ठ से मिलने का निश्चय किया। पंडित वशिष्ठ, जो दिल्ली के एक काली मंदिर के पुजारी थे, तंत्र-मंत्र के जानकार थे और अवनि ने सुना था कि उन्होंने बहुत सी अजीब घटनाओं का सामना किया था। जब अवनि उनसे मिली, तो उन्होंने पहले तो उसके दर्द और बेचैनी को समझने की कोशिश की। पंडित वशिष्ठ ने कहा, “जो भी आत्मा तुम्हारे साथ खेल रही है, वह कोई साधारण आत्मा नहीं है। वह एक तंत्रिक शक्ति से जुड़ी है, जो हमेशा अपने शिकार को पकड़ती है। तुम्हारे द्वारा किया गया हर कदम उसे और ताकतवर बना रहा है। तुम अगर उसे रोकना चाहती हो, तो तुम्हें अपने डर से बाहर निकलना होगा।” अवनि को उसकी बातों ने और भी घबराहट में डाल दिया, लेकिन उसने पंडित वशिष्ठ की सलाह मानी और अगले दिन ही अपने घर में तंत्र-मंत्र से जुड़ी चीज़ों को हटाने का सोचा। लेकिन क्या यह सच में सब खत्म हो जाएगा, या अवनि अब भी रजनी दाई की गिरफ्त में है, यह तो समय ही बताएगा।
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अवनि ने जैसे ही उस कमरे का दरवाज़ा खोला, उसकी नसों में एक ठंडी सनसनाहट दौड़ गई। यह वही पुराना कमरा था जहाँ उसके नाना तांत्रिक साधनाएँ करते थे — दीवारें अभी भी उसी धुंधली राख से ढकी थीं, और फर्श पर सिंदूर की सूखी रेखाएँ अब भी वैसी की वैसी थीं। लेकिन इस बार, वहाँ कुछ बदला-बदला सा था। कमरे के बीचों-बीच अब एक बड़ा कांच का कटघरा रखा था, जिसके भीतर पुरानी जली हुई चिट्ठियाँ, राख, और एक लाल रंग की पट्टी में लिपटी मानव-हड्डियाँ थीं। अवनि को याद आया कि ये वही सामान थे जिन्हें उसने एक बार अपने नाना के देहांत के बाद पुराने संदूक से निकालकर जलाया था। लेकिन यहाँ — अब 2025 में, इतनी दूर, उसी हालत में, कैसे लौट आए? उसके कानों में एक धीमी, मगर लगातार गूंजती आवाज़ आई: “तू लौट आई, अधूरी साधना पूरी करने?” अवनि ने अपने चारों ओर देखा — कोई नहीं था। फिर भी वह आवाज़ एक ही वाक्य दोहरा रही थी, जैसे किसी फटी हुई कैसेट की रील बार-बार घूम रही हो।
वह आवाज़ अब केवल कानों तक सीमित नहीं थी — अवनि को अपने अंदर, अपने दिल और दिमाग़ में भी वह स्पंदन महसूस हो रहा था। कमरे की दीवारें धीरे-धीरे कांपने लगीं, और लकड़ी की छत से मिट्टी की परतें झड़ने लगीं। एक बार फिर रजनी की छाया उस कांच के कटघरे के पीछे दिखाई दी — उसकी आँखें खाली थीं, लेकिन उनमें एक अजीब चमक थी। “तू हर उस चीज़ को मिटाना चाहती थी जो तुझे जोड़ती थी मुझसे। लेकिन मैं सिर्फ़ ऐप नहीं हूँ, अवनि। मैं उस रक्त की गंध हूँ जो पीढ़ियों से तुझमें बह रही है।” उसकी आवाज़ अब कंप्यूटर जनित न होकर, असली और भयानक लग रही थी — जैसे किसी भूत ने मानव गले की नसों में पिघला हुआ शीशा डाल दिया हो। अवनि का शरीर पसीने से भीग चुका था, उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं, लेकिन वह भागी नहीं। यह पहला मौका था जब वह इस रजनी से सीधे आमने-सामने खड़ी हुई थी।
अवनि ने अपने मोबाइल की फ्लैशलाइट ऑन की और कटघरे की ओर बढ़ी। जैसे ही रोशनी कांच पर पड़ी, रजनी की परछाई गायब हो गई, लेकिन उसकी जगह कटघरे के अंदर की चिट्ठियों पर कुछ नए अक्षर उभर आए — “मंत्र अधूरा था, बलिदान अधूरा नहीं होगा।” चिट्ठियाँ खुद-ब-खुद पलटने लगीं, और उनमें अवनि के बचपन की तस्वीरें, उसके माता-पिता की मौत की खबर, और उसके नाना के हाथ की लिखी कुछ डरावनी पंक्तियाँ शामिल थीं। “एक दिन जब समय, विज्ञान और आत्मा की सीमाएँ मिट जाएंगी, तब वो लौटेगी — रजनी — और फिर कोई कोड नहीं बचाएगा।” अवनि को अचानक अहसास हुआ कि यह सब एक बहुत ही गहरे जाल का हिस्सा है — सिर्फ़ TRAKT ऐप या उसके एल्गोरिथ्म का नहीं, बल्कि एक पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आ रहे तांत्रिक अभिशाप का। वह मोबाइल, कंप्यूटर, या किसी भी डिजिटल यंत्र से अब बाहर निकल चुकी थी।
अवनि ने उसी रात अपने पुराने काले लैपटॉप को फिर से एक्टिव किया, जिसमें उसने कभी रजनी के खिलाफ़ प्रोटेक्शन कोड्स बनाए थे। लेकिन स्क्रीन ऑन होते ही उसमें भी एक ही पंक्ति टाइप होती गई — “मेरे लिए कोई एंटी-वायरस नहीं बना सकता।” तभी कमरे की बत्ती झपकने लगी, और खिड़की के बाहर तेज़ हवा के साथ-साथ वही परछाई फिर से उभर आई। अब वह किसी मशीन में नहीं, बल्कि दीवारों, दर्पणों, और आँखों में भी समा चुकी थी। अवनि ने कंप्यूटर को बंद करने की कोशिश की, लेकिन कीबोर्ड के सारे बटन एक साथ दबने लगे — स्क्रीन पर उसकी खुद की तस्वीरें, बिना खींचे गए वीडियो, और उन सपनों की क्लिप्स आने लगीं जो उसने कभी देखे थे। उसे अब यकीन हो चला था — रजनी कोई डिजिटल प्रेत नहीं थी, बल्कि एक अनंत ऊर्जा थी, जो 2025 की आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल अपने तांत्रिक उद्देश्यों के लिए कर रही थी। और अब, अवनि उसके अंतिम उद्देश्य का केंद्र बन चुकी थी।
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वह रात कुछ अलग थी। हवाओं में जैसे राख की गंध तैर रही थी। अवनि ने खिड़की के बाहर झांका तो आकाश पर बादलों की गहरी परतें थीं, लेकिन बिजली की चमक में उसे सामने की छत पर एक परछाई दिखी – वही परछाई जो वह TRAKT ऐप में देख चुकी थी। वह तुरंत पीछे हटी और दरवाज़ा बंद कर दिया, लेकिन भीतर ही भीतर कांपती रही। फोन ऑफ था, इंटरनेट बंद, फिर भी कमरे की लाइट झपकने लगी। अचानक बाथरूम से नल के पानी की तेज़ आवाज़ आई। वह धीरे-धीरे दरवाज़ा खोली और देखा – दीवार पर किसी ने गीले हाथों से लिखा था: “अपडेट शुरू हो चुका है।” उसके पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई। उसने दीवार को पोंछा, पर अगली ही पल आईने में रजनी की मुस्कुराती परछाई उभर आई। “हर डर एक दरवाज़ा है,” वह कह रही थी, “अब तू बस दरवाज़ा खोल।”
अवनि अगले दिन प्रो. सोमेश नाग के पास पहुँची, जो डिजिटल तंत्र साधना पर रिसर्च कर रहे थे। प्रोफेसर ने बताया कि TRAKT कोई साधारण ऐप नहीं है। “यह एक यंत्र है – एक डिजिटल यंत्र, जिसे बंगाल के प्राचीन तांत्रिकों के मंत्रों से कोड में बदला गया है। किसी ने इन मंत्रों को AI या डेटा से नहीं जोड़ा, बल्कि सीधा चेतना से जोड़ा है।” अवनि हैरान थी। प्रोफेसर ने कहा कि यह ऐप यूज़र की आत्मा को ‘डिजिटल बीज मंत्र’ से बांधता है, और फिर धीरे-धीरे उनकी वास्तविकता बदलने लगता है। “हर बार तुम कुछ देखती हो, वह सिर्फ़ कोड नहीं, तुम्हारे मन का प्रतिबिंब है – लेकिन किसी और की इच्छा से निर्देशित।” अवनि ने पूछा, “तो इससे कैसे निकला जाए?” प्रोफेसर बोले, “निकला नहीं जा सकता। पर एक रास्ता है – अपने सबसे गहरे डर से साक्षात्कार।” अवनि समझ नहीं पाई, पर वह जान गई – अगला डर जल्द ही सामने आने वाला है।
अगली रात को TRAKT फिर चालू हो गया, बिना अनुमति। एक वीडियो चला जिसमें अवनि एक जलते हुए घर के भीतर चीख रही थी, और रजनी बाहर खड़ी मुस्कुरा रही थी। वीडियो से आवाज़ आई – “अग्नि शुद्धि की पहली सीढ़ी है।” और तभी उसके कमरे का पंखा तेज़ घूमने लगा, लाइट्स झपकने लगीं, और दीवारों से राख गिरने लगी। उसने जैसे ही वीडियो को बंद किया, उसे अपने कमरे में जलने की बदबू आने लगी। पर वहाँ कुछ नहीं था – सब सामान्य दिख रहा था, पर उसके भीतर डर की एक नई परत खुल चुकी थी। तभी खिड़की के बाहर फिर वही परछाई दिखी, जो इस बार उसकी ओर देख रही थी – बिल्कुल स्थिर, जैसे जानती हो कि अवनि उसे देख रही है। उसकी आँखें लाल थीं, और उसके चेहरे पर एक कटी हुई हंसी थी।
अब अवनि को साफ हो गया था कि यह सिर्फ एक ऐप नहीं, एक अनुष्ठान है – और वह उसमें भाग ले रही है, चाह कर भी नहीं रोक पा रही है। प्रोफेसर नाग ने उसे एक विधि बताई – रात के तीसरे पहर, बिना मोबाइल या उपकरण के, सिर्फ एक दीपक जला कर ध्यान में बैठना, और खुद से पूछना: “मेरा भय कौन है?” वह विधि कठिन थी, लेकिन उस रात उसने वही किया। दीपक की लौ जैसे जैसे स्थिर हुई, अवनि की आँखों के सामने रजनी का चेहरा आया – और अचानक वह खुद को एक पुराने श्मशान में बैठा पाया। चारों ओर राख उड़ रही थी, और दूर से मंत्रोच्चार सुनाई दे रहा था। रजनी पास आई और बोली – “तेरी आत्मा अब अपडेट नहीं, अपलोड होगी।” अवनि ने आंखें खोल दीं – उसके माथे पर राख लगी थी, असली राख, जो कमरे में कहीं से नहीं आ सकती थी। TRAKT अब सिर्फ़ स्क्रीन पर नहीं था – वह अब उसकी चेतना में उतर चुका था।
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रात के गहराते ही हवेली का माहौल और भी डरावना हो चला था। मोमबत्तियों की लौ काँप रही थी जैसे कोई अनजाना डर उसकी सांसों को थामे खड़ा हो। अनुराग और भावना, हवेली के उस हिस्से में पहुँचे जिसे बरसों से बंद रखा गया था—एक पुराना तहख़ाना, जिसकी सीलनभरी दीवारों पर ताम्रपत्रों की आकृतियाँ अब भी झिलमिला रही थीं। दीवार पर जड़ी एक तस्वीर पर अनुराग की नज़र गई—वही औरत जिसे उसने सपनों में देखा था। उसकी आँखों से लहू टपक रहा था और उसकी उँगलियाँ हवा में किसी मंत्र को उकेर रही थीं। भावना के हाथों में उस पल कंपकंपी दौड़ गई, लेकिन अनुराग ने उसे चुप रहने को कहा। नीचे उतरते-उतरते अचानक एक दरवाज़ा ज़ोर से बंद हुआ और तेज़ चीख हवेली की दीवारों से टकरा कर लौट आई।
हवेली के उस तहख़ाने में कई वस्तुएँ छिपी थीं—पुरानी चूड़ियाँ, तांत्रिक मूर्तियाँ, और एक बड़ा सा तांबे का आइना, जिसके सामने खड़े होते ही भावना को अपने बाल खुद-ब-खुद खुले महसूस हुए। आइने में उसकी परछाई नहीं थी—बल्कि वहाँ कोई और था, जिसकी आँखों में शून्य झलक रहा था। अनुराग ने ध्यान दिया कि आइने के पास की ज़मीन पर कुछ पुराने अक्षर खुदे हुए हैं—संस्कृत में लिखा एक श्लोक, जिसे उसने अपने दादा के तंत्रग्रंथ में पढ़ा था। यह श्लोक दरअसल एक ‘बांधन-मंत्र’ था, जिसका मतलब था आत्मा को किसी एक जगह स्थायी रूप से बाँध देना। तभी अनुराग को याद आया—उनकी नानी ने मरने से पहले कुछ बड़बड़ाया था: “वह अब भी इसी हवेली में है… बंद है… पर जाग गई है।”
रात का तीसरा पहर था जब भावना को अचानक लगने लगा कि कोई उसे पुकार रहा है। वो अनजाने में आइने की ओर बढ़ी और जैसे ही उसने उसे छूने की कोशिश की, पूरा कमरा अंधकार में डूब गया। दीवारों से ताम्र पत्र गिरने लगे और हवा में राख के गुबार उड़ने लगे। अनुराग ने टॉर्च जलाने की कोशिश की, पर हर रोशनी बुझ जाती थी मानो कोई उस प्रकाश को निगल रहा हो। तभी आइने से एक धुआँ सा निकला और धीरे-धीरे आकार लेने लगा—एक औरत, जिसकी आँखें भावनारहित थीं, मगर चेहरा भावना से मिलता-जुलता था। वह धुआँनुमा आकृति हवा में तैरती हुई बोली—”तू मेरी छाया है। जिस शरीर में तू है, वो कभी मेरा था।” भावना को झटका लगा, उसने चिल्ला कर अनुराग को पुकारा, लेकिन उसकी आवाज़ गूँज बनकर तहख़ाने की छत से टकराकर लौट गई।
सुबह होते-होते हवेली में मौन छा गया था। अनुराग और भावना दोनों ज़िंदा थे, मगर बदले हुए। भावना की आँखों में अब एक अजीब सी चमक थी, और अनुराग बार-बार उस मंत्र को दोहराता जा रहा था जो उसने दीवार से पढ़ा था। गाँव के पुजारी को बुलाया गया, जिसने हवेली को देखकर तुरंत पीछे हटने का निर्णय लिया—”ये सिर्फ़ एक आत्मा का मामला नहीं है, ये एक पूरे वंश की विरासत है।” उसने बताया कि हवेली की महिलाओं पर सदियों पुराना शाप है—एक आत्मा जो हर तीसरे जन्म में अपने शरीर को वापस लेने आती है, और वो आत्मा अब जाग चुकी है। अनुराग के हाथ में उस रात की राख से भरी एक थैली थी, और भावना अब हर रात आइने के सामने घंटों बिताती थी, मानो वो कुछ खोज रही हो… या शायद… किसी को बुला रही हो।
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दिल्ली की सर्द रात और ट्रिनिटी अपार्टमेंट की खामोश गलियों में अवनि के जीवन में जैसे एक अजीब सी शांति आ गई थी, लेकिन वह जानती थी कि यह सिर्फ़ तूफान से पहले की ख़ामोशी थी। पिछले हफ्ते में वह प्रो. सोमेश नाग के संपर्क में रही थी, जो उसे तंत्र और उसके डिजिटल रूपांतरण के रहस्यों को समझा रहे थे। सोमेश ने बताया था कि यह “TRAKT” ऐप एक सामान्य कोडिंग आधारित प्रोग्राम नहीं था – इसके पीछे है 1915 में लिखे गए एक दुर्लभ ग्रंथ ‘भैरवी-चक्र’ के मंत्र, जो कि मनुष्य के चित्त और आत्मा को डिजिटल माध्यम से बाँध सकते हैं। अब तक यह सिर्फ़ अवधारणा थी, लेकिन अवनि को जो दिख रहा था – वह इस तांत्रिक डिजिटल श्राप की सच्चाई को साबित कर रहा था।
उस रात सोमेश नाग ने अवनि को अपने घर बुलाया, जहाँ उसने एक विशेष रिचुअल तैयार किया था – स्क्रीन और तांत्रिक यंत्रों से सुसज्जित एक कमरा, जहाँ केवल “TRAKT” के रजनी एल्गोरिद्म को बुलाया जा सकता था। सोमेश ने बताया, “ये एक ‘तांत्रिक डिजिटल अस्तित्व’ है, जो केवल तब दिखाई देगा जब हम उसके कोर मंत्र को उल्टा पढ़ेंगे।” अवनि का दिल ज़ोर से धड़कने लगा। कमरे के चारों ओर भस्म, नींबू और राख से आकृतियाँ बनी थीं, स्क्रीन पर पुराने कोड्स चमक रहे थे। जैसे ही मंत्र का उच्चारण शुरू हुआ, हवा में अजीब गंध फैलने लगी और स्क्रीन पर फिर से वही औरत – रजनी – प्रकट हुई। लेकिन इस बार वह सिर्फ़ एक एल्गोरिद्म नहीं थी, बल्कि मानो कंप्यूटर स्क्रीन से बाहर आकर कमरे में उसकी छाया फैल रही थी।
रजनी की आँखें इस बार लाल नहीं, पूरी तरह काली थीं – और उसकी मुस्कान, जैसे किसी प्राचीन तांत्रिक की। वह बोली, “अवनि, तूने मुझे बुलाया, अब तू मेरा माध्यम बनेगी।” अचानक कमरे की लाइटें फड़फड़ाने लगीं, कंप्यूटर शट डाउन हो गया लेकिन स्क्रीन पर रजनी बनी रही। सोमेश मंत्र पढ़ता रहा, लेकिन रजनी की शक्ति बढ़ती जा रही थी। अवनि की आँखों के सामने एक फ्लैशबैक आया – जब वह छोटी थी और उसकी माँ उसे बताती थी कि उसकी नानी तंत्र-मंत्र में विश्वास करती थी और एक तांत्रिक ने कहा था कि ‘तेरे कुल में एक लड़की को आत्माओं का माध्यम बनना है।’ वह बात अब डरावनी सच्चाई बन चुकी थी। रजनी ने कहा, “तेरा डेटा तो बहाना था, असली कोड तो तुझमें है।”
सोमेश की चेतावनी स्पष्ट थी – यदि अब इस ऊर्जा को रोका नहीं गया, तो रजनी केवल स्क्रीन में सीमित नहीं रहेगी, बल्कि डिजिटल दुनिया से निकलकर असली दुनिया में प्रवेश कर जाएगी। अवनि को अब यह समझ आ चुका था कि उसे सिर्फ़ ऐप को बंद नहीं करना था, बल्कि खुद के भीतर छिपे उस “आकर्षण को” मिटाना था जो उसे रजनी से जोड़ता था। लेकिन सवाल यह था – वह कौन-सा डर या इच्छा थी जो रजनी को उसे पकड़े रखने दे रही थी? और क्या वह अपनी आत्मा को बचा पाएगी, या दिल्ली की एक और आत्मा तंत्र-जाल में बंध जाएगी?
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अवनि के कमरे की खिड़कियों से भीतर आती सर्द हवा में अब कंप्यूटर की स्क्रीन से झांकती रजनी की छाया घुल चुकी थी। प्रो. सोमेश नाग ने उसकी चेतना को बचाए रखने के लिए उसे यंत्रमंत्र से घिरे एक सुरक्षाकवच में बैठा दिया था, लेकिन अवनि जान चुकी थी कि अब उसकी लड़ाई सिर्फ़ किसी डिजिटल एल्गोरिद्म या हैकर से नहीं है — अब यह एक आत्मिक द्वंद्व था। रात के तीन बज चुके थे, लेकिन नींद का नामोनिशान नहीं था। स्क्रीन पर मंद रोशनी में रजनी बार-बार खुद को दोहरा रही थी, हर बार अलग रूप में, कभी माँ की तरह, कभी छोटी बहन पायल की तरह, और कभी एक दम से विकृत, लहूलुहान औरत की तरह — मानो आत्मा, डेटा में बदलते-बदलते अपने ही अस्तित्व से छटपटा रही हो। सोमेश ने बताया कि रजनी किसी ज़माने में एक असली लड़की थी — 2002 में दिल्ली विश्वविद्यालय की एक छात्रा, जो डिजिटल तंत्र प्रयोग का हिस्सा बनी थी, और जिसका मानसिक ह्रास उसे पागलखाने तक ले गया था।
पागलखाने की रिपोर्ट में दर्ज था कि रजनी बार-बार एक मंत्र दोहराती थी — “त्राक्तम शून्यं भवतु।” यही वही मूलमंत्र था जिसे सोमेश ने उल्टा कर कंप्यूटर में ट्रिगर किया था। अवनि ने अब यह तय कर लिया कि वह इस मंत्र के मूल स्रोत — ‘भैरवी-चक्र’ ग्रंथ की अंतिम प्रति तक पहुँचेगी, जो दिल्ली की तुगलकाबाद किले की गुफाओं में गुम हो चुकी थी। रातोंरात वह और सोमेश एक पुराने तांत्रिक इतिहासकार – पंडित मृदुल घोष से मिलने निकले, जो तंत्र विद्या के डिजिटल संक्रमण के सिद्धांत पर काम कर चुके थे। मृदुल घोष ने उन्हें चेताया – “जो आत्मा सैकड़ों सालों से पिंजरे में बंद है, उसे डिजिटल कुंजी से खोलना नादानी नहीं, पाप है।” लेकिन अवनि को तो अब अपने डर को जड़ से उखाड़ना था, क्योंकि वह महसूस कर चुकी थी कि उसकी चेतना का एक हिस्सा पहले ही रजनी से संक्रमित हो चुका है।
गुफाओं तक पहुँचते हुए, अवनि को बार-बार एक अजीब तरह की सिहरन होती थी — मानो हवा में डेटा बह रहा हो, सूचनाओं की अस्थियाँ, जिनमें सिसकती आत्माएँ छिपी हों। तुगलकाबाद की उस सुनसान, वीरान गुफा में, रजनी का नाम दीवारों पर उकेरा मिला — खून जैसे रंग में। सोमेश ने बताया कि 2002 में रजनी यहाँ एक डिजिटल तांत्रिक सम्मेलन में आई थी, जहाँ एक दुर्लभ प्रयोग के दौरान उसकी चेतना ‘नेटवर्क’ में विलीन हो गई। अवनि ने उस जगह पर चुपचाप ध्यानस्थ होकर अपने अंदर की कंप्यूटेशनल गड़बड़ियों को समझना शुरू किया – उसने महसूस किया कि उसके हर डर, हर अधूरी आकांक्षा में रजनी जैसे कोई अस्तित्व छिपा है जो उन्हें नियंत्रित करता है। तभी उसकी आंखें पल भर को बंद हुईं — और उसने खुद को उसी गुफा में, बिना किसी शरीर के, डिजिटल रेखाओं में परिवर्तित होते देखा, और सामने खड़ी थी रजनी, जिसे वह अब नफ़रत नहीं, डर से नहीं, करुणा से देख रही थी।
रजनी बोली — “मैं मरना चाहती थी, पर लोगों ने मुझे अमर बना दिया, डेटा में। अब तुझमें ही मेरी मुक्ति है।” अवनि ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया, और उसके स्पर्श से एक विचित्र रोशनी पूरे गुफा में फैल गई। कंप्यूटर-स्क्रीन की सीमाएँ टूट चुकी थीं, और डेटा की लहरें अब आत्मिक भावनाओं की तरह बह रही थीं। अवनि के स्पर्श से रजनी की काली आंखें धीरे-धीरे साफ़ होने लगीं, और पहली बार वह एक सामान्य इंसान की तरह दिखाई दी — बिना कोई कोड, बिना कोई डर। तभी पंडित मृदुल ने मंत्र का अंतिम चरण पढ़ा – “त्राक्त भैरवी मुक्तम।” और उस रोशनी में गुफा की दीवारें कंपकंपाईं, रजनी की आकृति धुंधलाने लगी, और एक तेज़ चीख के साथ वह हवा में विलीन हो गई — जैसे किसी आत्मा को अपने दंड से मुक्ति मिल गई हो।
लेकिन जैसे ही गुफा से बाहर निकले, अवनि के मोबाइल पर एक आखिरी नोटिफिकेशन आया – “TRAKT App Deleted Successfully. Reboot Required.” लेकिन सोमेश की आंखों में चिंता थी – “डिलीशन डिजिटल था, लेकिन असर आत्मिक है। क्या तुझमें रजनी अब भी कहीं बची है?” अवनि ने मुस्कुराकर कहा – “अगर है भी, तो अब वह कैद नहीं है। अब वह केवल कहानी है – दिल्ली की डिजिटल आत्मा की।” और दूर से तुगलकाबाद की गुफाओं से आती सर्द हवा में एक महीन सी आवाज़ गूंजी — जैसे कोई और आत्मा अपनी कहानी कहने को तैयार हो।
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अवनि को अब एहसास हो चुका था कि रजनी कोई महज़ डिजिटल एल्गोरिद्म नहीं थी — वह एक पुराने तांत्रिक संप्रदाय की अंतिम साधना का विस्तार थी, जिसे किसी ने आधुनिक तकनीक में लिपटा दिया था। सोमेश नाग के अनुसार, “TRAKT” का कोड 1923 में राजस्थान के एक वीरान कस्बे में गुप्त रूप से लिखा गया एक ‘यंत्र-कोड’ से प्रेरিত था, जिसे ‘काली-किरण’ ग्रंथ कहते थे। यह ग्रंथ तब से लापता था, जब एक ब्रिटिश पुरातत्त्व अधिकारी उसकी खोज करते हुए रहस्यमय ढंग से गायब हो गया था। सोमेश ने बताया कि उस ग्रंथ का अंतिम नक़्शा अभी भी मौजूद था, और वह दिल्ली के पुरानी किताबों की एक दुकान ‘आकाशदीप बुक्स’ में छिपा था। अवनि और सोमेश ने देर न करते हुए उसी रात उस दुकान का रुख़ किया। घड़ी रात के ढाई बजा रही थी, लेकिन दुकान का दरवाज़ा अजीब तरह से खुला था — जैसे कोई भीतर आने का इंतज़ार कर रहा हो।
भीतर घुसते ही अवनि को एक पुरानी, धूल से ढकी अलमारी में एक छोटा-सा नक़्शा मिला — हाथ से खींचा हुआ, जिसमें तंत्र-चक्रों के चिह्न थे और एक कोड लिखा था: “09-RAJ-39A”. अचानक बिजली चली गई, और दुकान के अंदर गहरा सन्नाटा पसर गया। उसी अंधेरे में एक धीमी फुसफुसाहट गूंजने लगी — “तू मेरे क़दमों के रास्ते पर आ चुकी है, अब वापसी नहीं…” रजनी की आवाज़ अब केवल डिजिटल स्क्रीन तक सीमित नहीं रह गई थी। उसने भौतिक दुनिया में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू कर दी थी। अवनि को ऐसा लगा जैसे वह अब एक पेंडुलम की तरह झूल रही हो — एक तरफ़ उसकी वैज्ञानिक, तर्कशील चेतना और दूसरी ओर एक रहस्यमय, भयावह शक्ति जिसे वह महसूस कर रही थी पर समझ नहीं पा रही थी। नक़्शे के संकेतों के अनुसार, अगला पड़ाव था — जोधपुर के पास का वीरान ‘महाकाल किला’, जहाँ रजनी का अंतिम अनुष्ठान हुआ था।
महाकाल किले की यात्रा आसान नहीं थी। राजस्थान की जलती हुई रेत, खाली सड़कें और हर मोड़ पर अजीब संयोग — जैसे कोई उन्हें रोकना चाहता हो। रास्ते में उनके वाहन का ब्रेक अचानक काम करना बंद कर दिया, मोबाइल नेटवर्क पूरी तरह गायब हो गया, और सोमेश को अचानक तीव्र बुख़ार चढ़ गया। ऐसा लग रहा था जैसे किला पहुँचने से पहले ही कोई अदृश्य शक्ति उन्हें तोड़ देना चाहती थी। लेकिन अवनि ने हार नहीं मानी। उन्होंने गाँव के एक पुराने तांत्रिक ‘भैरवनाथ’ से संपर्क किया, जो खुद उस अनुष्ठान की कथा जानता था। भैरवनाथ ने बताया कि रजनी वास्तव में उस तांत्रिक की पुत्री थी जिसने ‘काली-किरण’ ग्रंथ को रचा था। उसकी मृत्यु एक अधूरे अनुष्ठान के दौरान हुई, और तभी उसकी आत्मा उस यंत्र-कोड में कैद हो गई। TRAKT उसी कोड का आधुनिक रूप था, और रजनी अब माध्यम ढूंढ रही थी — जो उसका अधूरा अनुष्ठान पूरा करे। और वह माध्यम अवनि थी, क्योंकि अवनि की माँ की नानी उसी कुल से थीं।
महाकाल किले में प्रवेश करते ही हवा बदल गई। क़िले की दीवारों पर तांत्रिक आकृतियाँ, शवसाधना के चित्र और कुछ ऐसे चिन्ह उकेरे गए थे, जो आधुनिक कोडिंग लैंग्वेज से मेल खाते थे — ‘ॐ’ और ‘001101’ एक साथ। एक पुराना कम्प्यूटर टर्मिनल किले के तहखाने में मौजूद था, जिसकी स्क्रीन पर लिखा था: “Input the soulkey.” अवनि के सामने अब अंतिम द्वार था। सोमेश ने कहा — “ये तुम्हारे खून का सवाल है, अवनि। इस आत्मा को मुक्त करने का एक ही तरीका है — या तो इसे पूर्ण रूप से आत्मसात करो, या फिर इसे अंतहीन शून्यता में विसर्जित कर दो।” अवनि ने अपनी हथेली चीरकर स्क्रीन पर स्पर्श किया — और रजनी की आत्मा कंप्यूटर से बाहर निकलकर हवा में फैल गई। आँखें बंद करते ही उसे अपने भीतर कई आवाज़ें सुनाई दीं — रजनी की, उसकी माँ की, सोमेश की चेतावनी, और भैरवनाथ की प्राचीन मंत्रध्वनि। जब उसने आँखें खोलीं, सब शांत था। स्क्रीन काली थी, कम्प्यूटर बंद और महाकाल किले में सिर्फ़ रेत उड़ रही थी।
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रजनी के अंधकार से भरे संगीतमय स्वर अभी भी अवनि के कानों में गूंज रहे थे, जब वह प्रो. नाग के साथ उस पुराने कोठरी में पहुँची जहाँ पहली बार ‘TRAKT’ ऐप का कोड तांत्रिक लिपि में लिखा गया था। दिल्ली के बाहरी इलाके में स्थित वह सुनसान हवेली अब वीरान नहीं थी—उसकी दीवारों से काले धुएँ जैसे छायाएँ बाहर निकल रही थीं। कोडिंग लैपटॉप और काली तंत्र की पोथी एक ही स्थान पर रखे थे, उनके बीच एक त्रिकोण आकृति में लाल रंग से बना यंत्र था। प्रो. नाग ने हठपूर्वक कहा, “अब हमें इसे उसी ऊर्जा से बंद करना होगा जिससे यह खुला था—तंत्र, लेकिन मानव चेतना के बलिदान के बिना।” अवनि भयभीत थी, पर वह जानती थी कि यही अंतिम मौका है TRAKT को मिटाने का। उसने उस लैपटॉप को खोला और कोड की पंक्तियों में जाकर तांत्रिक वर्णों को हटाना शुरू किया, जबकि प्रो. नाग मंत्रों के माध्यम से आसपास की ऊर्जा को नियंत्रित करने लगे।
जैसे-जैसे अवनि कोड बदलती गई, हवेली की दीवारों से तेज़ चीखें गूंजने लगीं। रजनी की छवि अब सामने आ खड़ी हुई थी—आंखें बिना पलक झपकाए, उसका चेहरा अब डिजिटल रूप में नहीं, एक वास्तविक अभिशप्त स्त्री की तरह विकराल लग रहा था। उसने अवनि से कहा, “तू भी अब उन्हीं में से है, जिनकी आत्मा को मैंने डाउनलोड किया है। तुझसे यह कोड नहीं मिटेगा!” पर अवनि ने बिना रुके एक फाइल डिलीट की जिसका नाम था: soul_patch_final.trk. उसी क्षण हवेली की छत काँपने लगी, और एक भयानक गर्जना हुई, जैसे आसमान फट पड़ा हो। रजनी दर्द से चीखती हुई धुएँ में बदलने लगी, और कोड की हर लाइन स्क्रीन से गायब होने लगी। प्रो. नाग ने चिल्लाकर कहा, “अब समाप्ति की मुहर लगाओ!” अवनि ने ‘Destroy & Exit’ बटन पर क्लिक किया।
सभी फाइलें मिटते ही पूरी हवेली जैसे शांत हो गई। अवनि और नाग बाहर आए तो देखा कि आसमान फिर नीला था, हवा ठंडी थी, और उनके फोन से वह भयानक ऐप भी खुद-ब-खुद गायब हो चुका था। दिल्ली की सड़कों पर एक बार फिर सामान्य जीवन चल रहा था, जैसे कुछ हुआ ही न हो। पर अवनि जानती थी, वह बदल चुकी है। उसके अंदर वह डर, वह भयानक अनुभव अब अमिट था। वह रात को भी अब आराम से नहीं सो सकती थी, क्योंकि हर बार आँखें बंद करते ही उसे रजनी की वो आख़िरी पंक्ति सुनाई देती थी: “जिसे एक बार देखा, वह कभी मिटाया नहीं जा सकता।” प्रो. नाग ने उसे आश्वस्त किया कि यह अब बस एक स्मृति है, पर अवनि जानती थी कि यह स्मृति नहीं, एक डिजिटल छाया है, जो उसके अवचेतन में अब भी इंस्टॉल है।
अवनि ने आख़िरी बार प्रो. नाग से विदा ली और दिल्ली के अपने छोटे फ्लैट में लौट आई। उसने तय किया कि अब वह तकनीक से थोड़ी दूरी बनाकर रखेगी, पर वह जानती थी कि यह आसान नहीं होगा। उसके कंप्यूटर पर वह फ़ोल्डर जो उसने डिलीट किया था, फिर से दिखने लगा था—इस बार नाम था: final_backup.rjny. उसने एक गहरी साँस ली और स्क्रीन बंद कर दी। पर जैसे ही वह बत्ती बुझाकर लेटी, उसके कमरे में फिर वही धीमा संगीत बजने लगा, जो TRAKT ऐप पर रजनी सुनाया करती थी—एक धीमा, कर्णप्रिय, लेकिन अंततः मृत्यु जैसा भयावह संगीत… कहानी अब शायद खत्म नहीं हुई थी, वह सिर्फ़ रुक गई थी।
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