Hindi - क्राइम कहानियाँ

काली रात की गवाही

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शेखर राणे


भाग 1

मुंबई की उस रात कुछ अलग था। समंदर की लहरें जैसे कुछ कहने को बेताब थीं, और आसमान की कालिख शहर के गुनाहों की तरह भारी लग रही थी। पुलिस स्टेशन नं. 17 के इंस्पेक्टर अर्जुन पाटिल की आंखों में नींद नहीं थी। पिछले चौबीस घंटे में तीन कत्ल, तीनों एक ही तरीके से, और कोई सुराग नहीं। अर्जुन ने मेज पर रखी फाइल उठाई, जिस पर लिखा था – “केस: ब्लैक रोज मर्डर्स।”

हर शव के पास एक काली गुलाब की पंखुड़ी पाई गई थी। न खून के धब्बे, न संघर्ष के निशान, जैसे मौत खुद चुपचाप आई हो और अपनी दस्तक देकर चली गई हो। पहली लाश – एक पत्रकार, दूसरी – एक वकील, और तीसरी – एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता। तीनों अलग-अलग दुनिया के लोग, लेकिन अर्जुन जानता था कि कोई अदृश्य धागा है जो इन्हें जोड़ता है।

“सर, अंधेरी ईस्ट के उस होटल से कॉल आया है,” कांस्टेबल मित्तल ने अंदर आकर कहा, “कमरा नंबर 307 में एक महिला बेहोश पाई गई है, दरवाज़ा अंदर से बंद था। और टेबल पर… एक काली गुलाब की पंखुड़ी।”

अर्जुन ने तुरंत जैकेट उठाई, बूट पहने और गाड़ी की ओर बढ़ा। रास्ते भर मुंबई की सड़कों का सन्नाटा उसे और बेचैन करता रहा। होटल की लॉबी में खड़े रिसेप्शनिस्ट के हाथ कांप रहे थे। “सर, वो महिला अकेली आई थी, शाम छह बजे चेक-इन किया था। किसी से नहीं मिली।”

कमरा 307 का दरवाज़ा खोलते ही हल्का सा चूड़ियों का खनक सुनाई दिया। महिला ज़िंदा थी, लेकिन बेहोशी की हालत में थी। डॉक्टर को बुलाया गया। टेबल पर रखी गुलाब की पंखुड़ी अब अर्जुन के सामने एक चुनौती बन चुकी थी।

“नाम पता चला?” उसने मित्तल से पूछा।

“सर, अदिति रॉय, दिल्ली की रहने वाली हैं। पेशे से लेखिका।”

अर्जुन को झटका सा लगा। पत्रकार, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और अब एक लेखिका। क्या ये सारे लोग किसी खुलासे के करीब थे? क्या कोई ऐसा सच था जिसे दुनिया से छुपाया जा रहा था?

डॉक्टर ने कहा, “इनके खून में एक अजीब सा केमिकल मिला है, जिससे व्यक्ति घंटों तक बेहोश रह सकता है लेकिन शरीर पर कोई असर नहीं पड़ता।”

“मतलब, कोई अंदर आया, दवा दी, और पंखुड़ी रखकर चला गया… बिना कोई दरवाज़ा खोले?” अर्जुन बुदबुदाया।

“या कोई अंदर से ही था,” मित्तल बोला।

“CCTV फुटेज चेक करो,” अर्जुन ने आदेश दिया।

फुटेज में अदिति रॉय शाम को अकेली आती दिखी, फिर कोई नहीं आया। लेकिन ठीक रात 9:23 पर लाइट एक पल को गुल होती है, और जब दोबारा जलती है, तो कैमरा ब्लर हो जाता है।

“कोई टेक्निकल हैकर है,” अर्जुन ने कहा, “जो बिजली की पल भर की कटौती में खेल करता है।”

“लेकिन क्यों? और अदिति को क्यों ज़िंदा छोड़ा?” मित्तल ने पूछा।

“शायद वो अगला संदेश है। जैसे कातिल कहना चाहता हो – मैं देख रहा हूँ, सुन रहा हूँ, और जब चाहूं तब छू सकता हूँ।”

अर्जुन ने अदिति के बैग से एक डायरी निकाली। उसके अंदर एक पेज फाड़ा गया था। बाकी पन्नों में शब्दों के बीच एक पैटर्न नजर आ रहा था – एक छिपा हुआ कोड। हर पांचवे पेज पर एक शब्द हाइलाइट किया गया था – “DARK”, “TRUTH”, “INSIDE”, “FILES”, “VANISHED”।

“सच अंदर है, फाइलों में, जो गायब हो गई हैं…” अर्जुन ने धीरे से पढ़ा।

क्या ये कोई स्टोरी थी जिसे अदिति लिख रही थी? या कोई सच्चाई जो वो उजागर करना चाहती थी?

और फिर… अर्जुन की आंखें चौक गईं। डायरी के आखिरी पन्ने पर सिर्फ दो शब्द लिखे थे – “मुझे पता है।”

अर्जुन को अब यकीन हो गया था – ये कोई सीरियल किलर नहीं, ये कोई क्राइम नेटवर्क है जो अपने राज़ छुपाने के लिए कुछ भी कर सकता है। और अदिति… शायद अब उसकी सबसे अहम कड़ी थी।

जैसे ही वो कमरे से बाहर निकला, अर्जुन को अपने मोबाइल पर एक अनजान नंबर से मैसेज आया –
“Inspector Patil, you’re next. Let’s see if you can decode the truth before the black rose comes for you.”

भाग 2

इंस्पेक्टर अर्जुन पाटिल मोबाइल स्क्रीन पर टकटकी लगाए देखता रहा। उस अनजान नंबर से आया मैसेज उसके रोंगटे खड़े कर गया था। “You’re next.” तीन शब्द जो सिर्फ धमकी नहीं, बल्कि चुनौती भी थे। अर्जुन ने तुरंत साइबर सेल को मैसेज फॉरवर्ड किया और ट्रेस करने का आदेश दिया।

“सर, ये मैसेज एक वर्चुअल प्राइवেট नेटवर्क से भेजा गया है, लोकेशन मास्क की गई है,” मित्तल ने कहा। “किसी प्रोफेशनल का काम है।”

अर्जुन ने अदिति रॉय की डायरी फिर से खोली। वो पेज जहां “मुझे पता है” लिखा था, उसके पीछे हल्की सी उंगली की छाप नजर आई, जैसे किसी ने गीली उंगली से कुछ लिखा हो जो अब सूख चुका है। अर्जुन ने UV लाइट मंगाई। जैसे ही उसने पेज पर लाइट डाली, उभरता है – “RK-Files / CID Vault – 17.6.09”

“RK Files… 2009 की कोई पुरानी केस फाइल?” अर्जुन ने बुदबुदाया।

“CID के वॉल्ट में ऐसी कोई फाइल है क्या?” मित्तल ने पूछा।

“पता लगाओ। और वॉल्ट के एक्सेस लॉग्स मंगाओ,” अर्जुन ने आदेश दिया।

तभी अस्पताल से कॉल आया – “सर, अदिति होश में आ गई हैं, लेकिन कुछ बोल नहीं पा रही हैं। डॉक्टर ने कहा स्ट्रेस और दवा की वजह से वॉइस चोक्ड है। पर उसने एक कागज़ पर कुछ लिखा है।”

अर्जुन भागते हुए अस्पताल पहुंचा। अदिति की आंखों में डर और थकावट दोनों थे। उसने कांपते हाथों से कागज की ओर इशारा किया। उसपर लिखा था – “मेरे साथ दो और लोग थे… नाम मत पूछो… हम RK-Files को उजागर करने वाले थे। मैं ही ज़िंदा क्यों हूँ?”

“दो और लोग… क्या वो तीनों जो मारे गए?” अर्जुन ने खुद से पूछा।

अर्जुन ने अब ये मान लिया था कि पत्रकार, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता – और अदिति – एक ही मिशन पर थे। शायद किसी बड़े घोटाले को उजागर करने की कोशिश कर रहे थे, और RK-Files उसका हिस्सा थी। लेकिन यह फाइल थी क्या?

CID के लॉग्स से पता चला – 17 जून 2009 को एक फ़ाइल नंबर RK-219 को “क्लासिफ़ाईड” घोषित कर गुप्त रखा गया था। एक्सेस सिर्फ तीन लोगों को था – एक डिप्टी कमिश्नर, एक मंत्री, और एक नाम… “राघवेंद्र खुराना – स्पेशल इन्वेस्टिगेटर, अब रिटायर्ड।”

“राघवेंद्र खुराना… वही RK!” अर्जुन का माथा ठनका।

अब केस की दिशा बदल चुकी थी। एक रिटायर्ड अफसर के पास शायद वो जवाब थे जो आज जानलेवा बन चुके थे।

अर्जुन ने राघवेंद्र का पता निकाला – लोनावला के एक शांत इलाके में एक पुरानी कोठी में रहते थे। अकेले। कोई फैमिली नहीं।

“तुरंत चलो,” अर्जुन ने कहा।

रास्ते भर अर्जुन के ज़हन में एक ही सवाल था – अगर RK-Files इतनी खतरनाक थी, तो क्यों उसे अबतक बाहर नहीं लाया गया? और अगर अदिति की टीम को इसके बारे में पता चला, तो ये जानकारी उन्हें कैसे मिली?

लोनावला की ठंडी हवा और घने पेड़ों के बीच वो कोठी किसी भूतहा हवेली जैसी लग रही थी। दरवाज़ा खटखटाने पर कोई जवाब नहीं आया। अर्जुन ने चारों तरफ देखा, फिर खिड़की से झांका – अंदर अंधेरा था, लेकिन कोई हलचल नहीं दिखी।

मित्तल ने दरवाज़ा धक्का दिया। खुल गया।

कोठी में कदम रखते ही एक अजीब सी गंध नाक से टकराई – पुराने कागज़ों, धूल, और शायद… मौत की।

“खुराना साब?” अर्जुन ने आवाज़ दी।

कोई जवाब नहीं।

फिर अर्जुन की नज़र सीढ़ियों के नीचे पड़ी एक छाया पर पड़ी। वो झटपट आगे बढ़ा।

राघवेंद्र खुराना का शव वहीं पड़ा था, गर्दन एक ओर मुड़ी हुई, और उसके हाथ में… एक काली गुलाब की पंखुड़ी।

“कोई हमें हर कदम पर एक कदम आगे से देख रहा है,” अर्जुन ने कहा।

मित्तल ने इधर-उधर देखा और एक छोटी तिजोरी के टूटे हुए लॉक की ओर इशारा किया।

“यहां कोई आया था, कुछ ले गया है। सवाल ये है – क्या खुराना कुछ देने वाला था? या उसने कुछ छुपा रखा था?”

अर्जुन ने खुराना की जेबें टटोली। एक छोटा पेनड्राइव मिला – “RK-219 – Partial Copy” लिखा था उस पर।

“शायद जवाब अब इसी में हैं,” अर्जुन ने धीमी आवाज़ में कहा, “या शायद… अगली गवाही की शुरुआत।”

भाग 3

पेनड्राइव को अर्जुन ने जैसे ही अपनी लैपटॉप में लगाया, एक पॉपअप आया – “डिक्रिप्शन की ज़रूरत है – पासकोड?” नीचे एक छोटा सा टेक्स्ट था – “सिर्फ वो जो देख पाए, सुन पाए, और समझ पाए।”

“शायद ये कोड किसी घटना से जुड़ा है, या शायद किसी की पहचान से,” मित्तल ने कहा।

“हो सकता है खुद खुराना का नाम या जन्मतिथि?” अर्जुन ने कोशिश की – नाम, जन्म वर्ष, सब असफल। तभी उसकी नज़र डायरी के उस पुराने पन्ने पर गई, जहाँ अदिति ने लिखा था – “INSIDE FILES VANISHED 17.6.09”

अर्जुन ने एक नया प्रयास किया – पासकोड: 17609।

Access Granted.

स्क्रीन पर एक फोल्डर खुला: RK-219 – Evidence Logs

पहला वीडियो चला। कैमरे की फुटेज थी – तारीख 15 जून 2009। एक सरकारी दफ्तर, और एक टेबल के पास तीन लोग बैठे थे – राघवेंद्र खुराना, एक व्यक्ति जिसे पहचानना मुश्किल था, और एक महिला। आवाज़ धुंधली थी, लेकिन बातें साफ थीं:

“अगर ये रिपोर्ट बाहर आई, तो पूरा मंत्रालय हिल जाएगा,” महिला बोल रही थी।

“हम सच छुपा नहीं सकते। तीन नाबालिग लड़कियों की मौत, और सबूत दबाए जा रहे हैं,” खुराना ने गुस्से में कहा।

“सर, हमें आदेश मिला है इस फाइल को क्लोज करने का। ऊपर से सीधा फोन आया है,” तीसरा आदमी बोला।

फुटेज यहीं कट हो गई।

“नाबालिग लड़कियों की मौत? और ये फाइल दबा दी गई?” मित्तल की आंखें चौड़ी हो गईं।

अर्जुन ने दूसरे वीडियो पर क्लिक किया। इस बार तस्वीरें थीं – तीन लड़कियों की पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट, कुछ खून के धब्बों वाली ड्रेस, और एक नाम – ‘शक्ति केंद्र – नारी संरक्षण गृह, ठाणे’

“मतलब ये सब एक महिला सुरक्षा केंद्र से जुड़ा है? और लड़कियों की मौत वहीं हुई थी?” मित्तल ने पूछा।

“और शायद जिन लोगों को मारा गया – पत्रकार, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता – वो इसी केस को फिर से उठाने की कोशिश कर रहे थे।”

अब तस्वीरें जोड़ने लगी थीं।

अर्जुन ने तय किया – अब अगला पड़ाव है ‘शक्ति केंद्र’, जहां से ये सब शुरू हुआ था।

अगले दिन, ठाणे।

शक्ति केंद्र एक बड़ी पुरानी बिल्डिंग थी, जिसके बाहर बोर्ड पर अब सिर्फ “रिसोर्स सेंटर” लिखा था। अंदर एक अधेड़ उम्र की महिला बैठी थी – प्रिया जाधव, संस्था की वर्तमान प्रमुख।

“आप RK-219 केस के बारे में कुछ जानती हैं?” अर्जुन ने सीधे पूछा।

महिला एक पल को चौंकी, फिर बोली – “वो पुराना केस? मैंने सुन रखा है, लेकिन मेरे आने से पहले की बात है। रिकॉर्ड्स में कुछ नहीं मिलता।”

“फिर भी हमें बिल्डिंग देखनी है,” अर्जुन ने कहा।

केंद्र की पिछली मंज़िल में एक बंद कमरा था। “ये स्टोर रूम है, यहां कुछ नहीं,” प्रिया ने कहा।

लेकिन दरवाज़ा खोलते ही अर्जुन का दिल धक से रह गया।

कमरे में दीवारों पर पुराने फोटोज लगे थे – लड़कियों के स्केच, नाम, उम्र। और एक कोना – जिसमें तीन तसवीरें थीं – उन्हीं तीन लड़कियों की जो वीडियो में दिखी थीं।

फर्श पर एक धूलभरी अलमारी में अर्जुन को एक पुरानी फाइल मिली – आधी जली हुई। ऊपर लिखा था – “RK-219 – Unofficial Notes”

फाइल के अंदर, एक पन्ना अब भी सही-सलामत था। उसपर लिखा था – “अगर मैं मारा जाऊँ, तो ये फाइल उस इंसान को देना, जो डरता नहीं। जो कानून से ऊपर न्याय को मानता हो।” नीचे हस्ताक्षर था – राघवेंद्र खुराना।

“सर,” मित्तल की आवाज़ कांप रही थी, “प्रिया जाधव की पहचान मैच करवा रहे हैं… वो शक्ति केंद्र की सीनियर केयरटेकर थीं साल 2009 में… यानी घटना के वक्त वही जिम्मेदार थीं।”

“मतलब वो सब जानती हैं… और अब कह रही हैं कि उन्हें कुछ पता नहीं?” अर्जुन गुस्से में कांपने लगा।

लेकिन जब वो बाहर निकले, प्रिया जाधव गायब थी।

“सर, गाड़ी भी नहीं है। और गेट के बाहर एक बाइक वाले ने उसे पीछे बैठाकर कहीं ले गया,” एक स्टाफ मेंबर बोला।

“वो जानती है कि हम उसके करीब आ गए हैं। और अब वो भाग रही है,” अर्जुन बोला।

तभी अर्जुन के मोबाइल पर फिर से वही अनजान नंबर से मैसेज आया –

“Very good, Inspector. अब तुम भी देखोगे वही जो उन्होंने देखा था… और शायद तुम भी नहीं बचोगे।”

भाग 4

प्रिया जाधव की अचानक गुमशुदगी ने अर्जुन की बेचैनी को और बढ़ा दिया था। शक्ति केंद्र से निकलते ही उसने पुलिस वायरलेस पर ऑल-रेड अलर्ट जारी करवाया—“एक महिला, उम्र लगभग 55, साड़ी में, केंद्र से फरार, हो सकता है कि केस RK-219 से जुड़ी हो। हर टोल, हर CCTV चेक करो।”

लेकिन अर्जुन को भीतर से यकीन था—जिसने तीन लोगों को साफ तरीके से मार डाला, वो अब भी खेल के अगले मोहरे को पकड़ने की कोशिश कर रहा है।

अर्जुन ने अपनी गाड़ी में बैठते ही प्रिया जाधव के पुराने रिकार्ड्स खंगालने शुरू किए। ठाणे पुलिस के पुराने फाइलों से एक चौंकाने वाली जानकारी निकली—प्रिया को 2009 में एक नाबालिग लड़की के साथ मारपीट के आरोप में सस्पेंड किया गया था। लेकिन मामला अदालत तक पहुंचने से पहले ही बंद हो गया।

“किसने बंद करवाया था ये मामला?” अर्जुन ने पूछा।

“सर, एक पॉलिटिकल लीडर का नाम है फाइल में – विक्रांत देशमुख,” मित्तल ने जवाब दिया।

“विक्रांत देशमुख… मंत्री… और अब राज्यसभा सांसद। यानी प्रिया का बचाव करने वाला, और शायद RK फाइल्स दबाने वाला भी वही है।”

अर्जुन को अब साफ लगने लगा कि ये सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि पावर, पॉलिटिक्स और अपराध के गठजोड़ की एक उलझी हुई कहानी थी।

अर्जुन ने तुरंत विक्रांत देशमुख के पुराने और वर्तमान कॉल रिकॉर्ड्स निकालने का आदेश दिया।

तीन नंबर बार-बार रिपीट हो रहे थे। एक था प्रिया का। दूसरा किसी बंद किए गए नंबर का। और तीसरा – एक फर्जी NGO के नाम पर रजिस्टर्ड नंबर – “जनवाणी सेवा ट्रस्ट”।

“सर, ये NGO पिछले तीन साल से कोई काम नहीं कर रही, लेकिन फंडिंग अब भी आती है—विदेश से,” मित्तल बोला।

“मतलब ये पूरी जड़ वहां है। पॉलिटिकल कवर, फर्जी संस्था, और अंदर का अपराध।”

तभी अर्जुन का मोबाइल फिर बजा—लेकिन इस बार न मैसेज था, न कॉल। बल्कि एक वीडियो।

वीडियो चला। धुंधली स्क्रीन पर एक अंधेरे कमरे में बंधी हुई महिला—प्रिया जाधव।

उसका चेहरा डर और पसीने से भरा था।

“इंस्पेक्टर अर्जुन… अगर आप ये देख रहे हैं… तो समझिए… मैं अब ज्यादा दिन नहीं बचूंगी। मैंने बहुत कुछ देखा है… बहुत कुछ छुपाया है… लेकिन अब वक्त आ गया है बताने का। उन तीनों लड़कियों को मैंने नहीं मारा था। मैं सिर्फ एक मोहरा थी… असली कातिल वो हैं जो ऊपर बैठते हैं… जो…”

स्क्रीन ब्लैक हो गई।

फिर स्क्रीन पर सिर्फ एक लाइन उभरी—“अब बारी तुम्हारी है, अर्जुन।”

“सर, लोकेशन ट्रेस हो गई—वीडियो लोखंडवाला की एक बंद फैक्ट्री से भेजा गया है,” मित्तल चिल्लाया।

“चलो,” अर्जुन ने कहा, “वो ज़िंदा हो या नहीं… हमें अब सच्चाई से पीछे नहीं हटना है।”

लोखंडवाला की फैक्ट्री।

अर्जुन और मित्तल ने चारों ओर से फैक्ट्री को घेर लिया। अंदर सन्नाटा था, लेकिन हवा में कुछ ऐसा था—जैसे कोई छुपा हो, देखने वाला हो।

जैसे ही वे भीतर दाखिल हुए, दीवारों पर पुराने अख़बार चिपके हुए थे—हर खबर एक कांड की, एक रहस्य की। और हर खबर पर क्रॉस किया गया था लाल स्याही से।

“सर… ये सब क्लिपिंग उन्हीं लोगों की हैं जिनकी हत्या हुई… और जिनका नाम RK-219 से जुड़ा है।”

तभी कोने से एक धीमी आवाज़ आई—“कौन है…?”

अर्जुन दौड़ते हुए गया—प्रिया जाधव फर्श पर पड़ी थी, जख्मी हालत में, उसके हाथ रस्सियों से बंधे थे। लेकिन उसकी आंखें खुली थीं।

“मैंने देखा था… उन लड़कियों को ले जाया गया था उस रात… कोई उन्हें बचाने नहीं आया। खुराना साब ने फाइल बनाई थी… लेकिन ऊपर से दबाव आया। फिर मैंने चुप रहना चुना…”

“कौन उन्हें ले गया?” अर्जुन ने पूछा।

“देशमुख… और… कोई और… एक नकाब वाला आदमी… जिसने कभी अपना चेहरा नहीं दिखाया…”

प्रिया ने एक पेपर की ओर इशारा किया—एक छोटा सा नोट:

“द ब्लैक रोज़ मैन”

अर्जुन के ज़हन में उस गुलाब की पंखुड़ी की छवि कौंध गई। अब तक ये सिर्फ एक सिग्नेचर लगता था। लेकिन हो सकता है… ये असली कातिल का नाम हो।

प्रिया की सांस टूट रही थी, “वो सबको मिटा रहा है… जिनके पास सच्चाई थी… अब तुम बचे हो…”

और उसकी सांस थम गई।

“सर…” मित्तल धीमे स्वर में बोला, “हम अब सिर्फ एक कत्ल की जांच नहीं कर रहे… हम खुद एक लिस्ट में शामिल हो गए हैं।”

अर्जुन दीवार पर देखा—एक लिस्ट… नामों की। आखिरी नाम लिखा था:

अर्जुन पाटिल।

भाग 5

लोखंडवाला की उस वीरान फैक्ट्री में, दीवार पर अपना नाम देखकर अर्जुन का कलेजा थम सा गया।
“अर्जुन पाटिल – अंतिम चरण।”
लाल स्याही से लिखा था, लेकिन उसमें डर नहीं, बल्कि एक घमंडी चेतावनी थी। जैसे कोई कह रहा हो – अब तुमसे ज्यादा मैं जानता हूँ।

“मित्तल, इस लिस्ट के बाकी नामों को क्रॉस चेक करो। शायद कोई ज़िंदा हो। शायद कोई और बचे हो जिसे हमसे पहले मारा जाना है।”

“सर,” मित्तल ने जल्दी से तस्वीरें खींची, लिस्ट सेव की। “इनमें दो नाम जान-पहचान के लग रहे हैं – एक पत्रकार है ‘विनय तिवारी’ और एक सोशल ऐक्टिविस्ट ‘माया जोशी।’”

“दोनों ज़िंदा हैं?” अर्जुन ने पूछा।

“अब तक के रिकॉर्ड में हां। विनय दिल्ली में रहता है, माया पुणे में। हम तुरंत अलर्ट जारी करते हैं।”

लेकिन अर्जुन को अब खुद की सुरक्षा की चिंता नहीं थी। वो जानता था – जो कोई ये सब orchestrate कर रहा है, वो सिर्फ फिजिकल नहीं, साइकॉलजिकल भी खेल रहा है। ये कत्ल सिर्फ शरीर का नहीं, मन का भी था।

मुंबई पुलिस हेडक्वार्टर – उसी रात

अर्जुन ने RK-219 से जुड़े सारे दस्तावेज़ एक टेबल पर फैलाए। तीनों मर्डर केस, अदिति की डायरी, खुराना का पेनड्राइव, शक्ति केंद्र की फाइल्स, प्रिया की मरने से पहले की बातों का वीडियो।

लेकिन कुछ अभी भी अधूरा था।

“सर, एक नई चीज़ मिली है,” मित्तल ने कहा। “विक्रांत देशमुख का फाइनेंशियल रिकॉर्ड्स चेक करते वक्त एक शेल कंपनी मिली – ‘RAVEN CORP’ – जो सिर्फ तीन महीनों के लिए एक्टिव थी, 2009 में। उसके अकाउंट से एक बड़ा ट्रांजेक्शन हुआ था – किसी ‘B.R.M.’ के नाम पर।”

“B.R.M…” अर्जुन धीरे-धीरे दोहराने लगा। “Black Rose Man?”

मित्तल ने सिर हिलाया। “कोई व्यक्ति नहीं, शायद एक कोड। लेकिन अगर हम इस पैसे का सोर्स ट्रैक करें, तो हम उस आदमी तक पहुंच सकते हैं।”

“और अगर हम उस आदमी तक पहुंचे, तो काले गुलाब की जड़ भी दिखेगी।” अर्जुन ने कहा।

तीन दिन बाद – दिल्ली

अर्जुन और मित्तल ने दिल्ली में विनय तिवारी का घर ट्रेस किया। लेकिन वहां पहुंचने पर दरवाज़ा टूटा हुआ मिला। अंदर का हाल डरावना था – किताबें उलटी पड़ीं, लैपटॉप फर्श पर टूटा, और दीवार पर एक पंखुड़ी – काली गुलाब की।

“हम देर हो गए,” मित्तल फुसफुसाया।

लेकिन अर्जुन ने कुछ नोटिस किया – टेबल के नीचे एक पेनड्राइव, और विनय के हाथ में बंद एक पेपर का टुकड़ा।

पेपर पर सिर्फ दो शब्द – “गोवा – चापोरा फोर्ट”

“विनय का आखिरी संदेश है ये,” अर्जुन ने कहा। “शायद वो जानता था कि हम आएंगे। और वो कुछ पीछे छोड़ना चाहता था।”

पुणे – उसी रात

माया जोशी को भी अर्जुन ने स्पेशल सिक्योरिटी में रखा, लेकिन एक कॉल ने फिर से भूचाल ला दिया।

“सर, माया जोशी गायब है। दो नकाबपोश लोग खुद को पुलिस बताकर आए और उसे अपने साथ ले गए।”

“हम उनके पीछे हैं?” अर्जुन ने पूछा।

“नहीं, CCTV जाम कर दिया गया। कोई ट्रेस नहीं।”

अर्जुन ने अपने सिर में धड़कन महसूस की – जैसे वक्त फिसल रहा था और वो हर कदम पर पीछे रह जा रहा था।

रात को होटल रूम में

अर्जुन ने विनय का छोड़ा हुआ पेनड्राइव खोला। अंदर एक वीडियो था – खुद विनय तिवारी का।

“अगर तुम ये देख रहे हो, इंस्पेक्टर, तो मैं शायद मर चुका होऊं। मैंने चापोरा फोर्ट में एक पुराना टेप छिपा रखा है – RK-219 का आखिरी सबूत। लेकिन ध्यान रहे – वो आदमी वहां भी आ सकता है। वो हर जगह पहुंच सकता है। और सबसे खतरनाक बात ये है… वो हमारे ही बीच है।”

अर्जुन की आंखें स्क्रीन पर टिक गईं। “हमारे ही बीच है” – क्या इसका मतलब पुलिस विभाग के भीतर कोई मुखबिर? या कोई नेता? या शायद कोई वो, जिसे अर्जुन भरोसेमंद मान चुका है?

तभी अर्जुन के मोबाइल पर एक मैसेज आया –
“गोवा आओ, लेकिन अकेले। नहीं तो माया की जगह अगली पंखुड़ी तुम बनोगे।”

भाग 6

गोवा की गर्म, नम हवा में चापोरा फोर्ट की ऊंची दीवारें दूर से ही किसी प्राचीन रहस्य की तरह चमक रही थीं। इंस्पेक्टर अर्जुन पाटिल की आंखों में अब डर नहीं, बस एक जिद थी – इस खेल को खत्म करने की।

वो अकेला आया था, जैसा मैसेज में कहा गया था। मित्तल को मुंबई में छोड़कर, बिना किसी वायरलेस, बिना बैकअप, बस अपनी सर्विस रिवॉल्वर और विनय तिवारी का पेनड्राइव लेकर।

चापोरा फोर्ट की पुरानी दीवारों के बीच चलते हुए अर्जुन को हर कदम पर लगता जैसे कोई उसे देख रहा है। एक कोना पार करते ही उसे एक पुराना पत्थर दिखा, जिस पर सफेद चॉक से एक तीर का निशान बना था।

विनय के वीडियो में यही संकेत था।

अर्जुन ने धीरे से जमीन की दरारों को टटोलना शुरू किया, और कुछ देर बाद, एक छोटी सी धातु की डिब्बी मिली – अंदर एक माइक्रो टेप और एक हस्तलिखित चिट्ठी।

“RK-219 का आखिरी टेप। इस टेप में देशमुख और एक नकाबपोश व्यक्ति की बातचीत है। मुझे पता था कि मैं ज्यादा दिन नहीं बचूंगा, लेकिन तुम… तुम इसे पूरा कर सकते हो।”
– विनय

अर्जुन ने तुरंत टेप को अपने पॉकेट रिकॉर्डर में डाला।

आवाज़ें आईं –

देशमुख: “तुमने सब साफ कर दिया?”
अनजान आवाज़: “तीनों लड़कियों को फार्महाउस में रखा है। तीसरे दिन ‘प्रशिक्षण’ होगा। फिर वही पुराना रूट – बंगाल के रास्ते बाहर।”
देशमुख: “हमेशा की तरह कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए। कोई दस्तावेज़ नहीं, कोई नाम नहीं। ब्लैक रोज़ की तरह सब कुछ चुप।”
अनजान आवाज़ (हँसते हुए): “सर, ब्लैक रोज़ सिर्फ निशान नहीं, सिस्टम है।”

अर्जुन का खून खौल उठा। ये सिर्फ एक हत्या श्रृंखला नहीं, बल्कि मानव तस्करी का संगठित नेटवर्क था—जहां लड़कियों को ‘प्रशिक्षण’ के नाम पर बेच दिया जाता था। और ब्लैक रोज़… एक कोड था उस पूरे नेटवर्क का।

तभी एक हल्की सी सीटी की आवाज़ आई – पीछे से।

अर्जुन ने तुरंत पलटकर देखा – दो काले कपड़े पहने नकाबपोश लोग।

“हमें टेप दे दो, इंस्पेक्टर,” उनमें से एक ने कहा।

“क्यों? ताकि तुम भी माया की तरह गायब कर दो?” अर्जुन ने रिवॉल्वर निकाली।

“माया ज़िंदा है, अब तक। लेकिन अगर तुमने गोली चलाई… वो नहीं रहेगी।”

“मैं जानता हूं तुम ब्लैक रोज़ के आदमी हो। और मैं ये भी जानता हूं कि ये टेप तुम्हारी कब्र बन सकता है।”

“तो फिर देखो… तुम्हारे सामने क्या विकल्प हैं – टेप दो, और माया को ज़िंदा देखो। या गोली चलाओ, और फिर अगली खबर में तुम्हारा नाम होगा।”

अर्जुन ने रिवॉल्वर नीचे की, लेकिन टेप नहीं बढ़ाया।

“तुम्हारी ये बातें मुझे नहीं रोक सकतीं। मैंने खुराना को मरा देखा है, अदिति को टूटते देखा है, विनय की लाश उठाई है… अब मैं पीछे नहीं हटूंगा।”

“तो तुम्हें मारना पड़ेगा,” एक ने कहा और आगे बढ़ा।

लेकिन तभी एक सायरन की आवाज़ हवा में गूंजी – मित्तल, अपने यूनिट के साथ, पीछे की पहाड़ी से फोर्स लेकर आ गया था।

“सर, माफ कीजिए – मैंने आपके जाने के बाद खुद ही आपको ट्रैक किया,” मित्तल चिल्लाया।

गोलियों की आवाजें गूंजने लगीं।

दोनों नकाबपोश पुलिस की फायरिंग में ढेर हो गए। लेकिन उनमें से एक की नकाब उतर गई।

अर्जुन वहीं थम गया।

“ये… ये तो…”

मुंबई पुलिस का एक वरिष्ठ अधिकारी। डीसीपी हेमंत राव।

मित्तल सन्न रह गया। “सर… ये हमारे ही बीच था।”

“विनय सही था,” अर्जुन बुदबुदाया। “कातिल हमारे बीच ही था।”

अर्जुन ने माया को गोवा के एक फार्महाउस से ज़िंदा बरामद करवाया। देशमुख के खिलाफ कोर्ट में केस दर्ज हुआ, मीडिया में हड़कंप मच गया।

RK-219 अब बंद फाइल नहीं थी।

ब्लैक रोज़ के राज़ को उजागर कर दिया गया था – लेकिन उसकी जड़ें कितनी गहरी थीं, ये जानना अब बाकी था।

भाग 7

मुंबई लौटने के बाद अर्जुन पाटिल का नाम अब सिर्फ पुलिस विभाग में नहीं, बल्कि मीडिया के हर डिबेट में गूंज रहा था। “ब्लैक रोज़ सिंडिकेट का पर्दाफाश”, “देशमुख की गिरफ्तारी”, “मुंबई पुलिस के अंदर छुपे गुनहगार”—हर अख़बार की हेडलाइन उसी की कहानी कह रही थी।

लेकिन अर्जुन जानता था कि यह सिर्फ सतह थी। हेमंत राव की मौत के बाद भी कई दरवाज़े बंद थे। उस रात गोवा में ब्लैक रोज़ के दो एजेंट मारे गए, पर उनके पीछे कौन था? और ब्लैक रोज़ – क्या वो वाकई खत्म हो चुका था?

पुलिस मुख्यालय – विशेष जांच इकाई

“सर,” मित्तल ने एक फाइल टेबल पर रखी, “हेमंत राव के फोन से मिले डेटा का एनालिसिस आ गया है। कुछ ईमेल्स हैं—एनक्रिप्टेड—but एक नाम बार-बार आया है – “R”।”

“R?” अर्जुन ने माथा सिकोड़ते हुए पूछा।

“हां सर, बस यही एक अल्फाबेट। लेकिन हर ईमेल में यही सिग्नेचर है – ‘For every rose that falls, a new thorn rises. – R’”

“मतलब देशमुख और हेमंत राव के ऊपर भी कोई है। और वो अब भी आज़ाद है।”

अर्जुन ने सोचते हुए कहा, “ब्लैक रोज़ एक व्यक्ति नहीं, एक विचार है – डर, नियंत्रण और नेटवर्क। और जब तक उसकी जड़ें न काटी जाएं, तब तक ये खत्म नहीं होगा।”

“तो अगला कदम?” मित्तल ने पूछा।

“हमें ब्लैक रोज़ के फंडिंग नेटवर्क तक पहुंचना होगा। पैसा जहां से आता है, वहां से सिस्टम बनता है।”

दिल्ली – फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट (FIU)

अर्जुन और मित्तल ने अगले दो दिन सरकारी एजेंसियों के साथ बैठकर देशमुख, राव और रेवेन कॉर्प के खातों का गहराई से विश्लेषण किया। एक नया लिंक सामने आया – “Azra Holdings – एक सिंगापुर बेस्ड कंपनी।”

“इसका मालिक कौन है?” अर्जुन ने पूछा।

“नाम है – रघुवीर महाजन। एक रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट। भारतीय प्रशासनिक सेवा का पूर्व सचिव, अब विदेश में।”

“रघुवीर… R?” अर्जुन के चेहरे पर सन्नाटा फैल गया।

“वो ब्लैक रोज़ का असली सिरा हो सकता है। और अब तक सबसे छुपा हुआ चेहरा।”

भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की मदद से अर्जुन और मित्तल ने सिंगापुर में स्थित एजेंसी को रघुवीर महाजन के बारे में अलर्ट भेजा।

लेकिन खबर आई – “रघुवीर दो दिन पहले ही भारत लौट चुका है।”

“कहां?” अर्जुन चौंक पड़ा।

“उसे किसी ने दिल्ली एयरपोर्ट से रिसीव किया, फिर एक ब्लैक कार में चला गया। कोई ट्रेस नहीं।”

अब मामला फिर भारत में था। और अर्जुन को यकीन था – अब खुद ब्लैक रोज़ उसका पीछा कर रही है।

उस रात, अर्जुन के घर के बाहर एक लिफाफा फेंका गया।

अंदर एक कागज़ और एक ताजा काली गुलाब की पंखुड़ी थी। कागज़ पर बस एक पंक्ति –

“माया अब भी तुम्हारी सबसे कमज़ोर कड़ी है। उसे मत भूलो। – R”

अर्जुन का दिल बैठ गया।

उसने तुरंत माया को कॉल किया। फोन बंद।

“मित्तल!” अर्जुन चिल्लाया, “माया गायब है। और R फिर से एक्टिव हो गया है।”

“लेकिन इस बार,” अर्जुन की आंखों में आग थी, “हम शिकार नहीं होंगे। हम शिकारी बनेंगे।”

भाग 8

मुंबई की उस बरसाती सुबह अर्जुन पाटिल की आंखों में नींद नहीं थी—बस माया की चिंता और ‘R’ की गूंज। वो जानता था कि यह अब महज एक केस नहीं, बल्कि उसकी अपनी लड़ाई बन चुकी थी।

“मित्तल, रघुवीर महाजन भारत में है और माया गायब। इसका मतलब साफ है – वो हमें चुनौती दे रहा है। इस बार हमें उसके तरीके से ही खेलना होगा।”

“सर, हम कैसे खोजेंगे उसे? R कोई आम आदमी नहीं है—वो सिस्टम के हर कोने में घुसा हुआ है,” मित्तल बोला।

“हम भी सिस्टम से हैं। और अब वक्त है उसके खुद के हथियार उसके खिलाफ इस्तेमाल करने का।”

साइबर यूनिट, मुंबई

अर्जुन ने देश के टॉप साइबर एनालिस्ट्स को बुलाया। उन्होंने R के ईमेल और कम्युनिकेशन पैटर्न को डीकोड करना शुरू किया।

“सर, हमने उसके ज्यादातर ईमेल्स का मेटाडेटा चेक किया है। IPs तो प्रॉक्सी हैं, लेकिन एक लोकेशन हर बार पास आती है – नागपुर।”

“नागपुर?” मित्तल चौंका।

“हां। और खास बात ये है कि एक पुराना गेस्ट हाउस है—आदित्य सेवा सदन—जहां से आखिरी मैसेज भेजा गया लगता है।”

“तो चलो नागपुर,” अर्जुन ने कहा।

नागपुर – आदित्य सेवा सदन

गेस्ट हाउस सुनसान था। एक बूढ़ा चौकीदार बैठा था, आंखों में डर और झिझक।

“रघुवीर महाजन?” अर्जुन ने सीधे पूछा।

बूढ़ा चौंका, फिर धीमे से बोला – “कमरा नंबर 104…”

कमरा खुला। अंदर एक आदमी बैठा था, सफेद कुरता-पायजामा में, आंखों में गहरी थकान लेकिन चेहरा शांत – रघुवीर महाजन।

“आप आए, ये तो तय था,” उसने कहा।

“माया कहां है?” अर्जुन ने रिवॉल्वर निकाला।

“सवाल तुम्हारा सही है, लेकिन जवाब तुम्हें खुद ढूंढ़ना होगा।”

“अब पहेली नहीं, महाजन। खेल खत्म करो।”

रघुवीर मुस्कराया, “ब्लैक रोज़ कभी खत्म नहीं होता, अर्जुन। मैं सिर्फ एक चेहरा हूं। असली चेहरे तो अब भी तुम्हारे चारों ओर घूम रहे हैं – वो विधायक, वो अधिकारी, वो कारोबारी जो तुम्हें बधाई भेज रहे हैं, प्रेस में तारीफ कर रहे हैं।”

“क्या तुम माया को मार चुके हो?” अर्जुन ने गुस्से से पूछा।

“नहीं। वो अभी ज़िंदा है। और तुम्हारी अगली चाल तय करेगी कि वो ज़िंदा रहेगी या नहीं।”

“मतलब?” मित्तल ने पूछा।

“मुंबई में कल रात एक ट्रक पकड़ा गया—उसमें दो नाबालिग लड़कियां थीं। उसे ब्लैक रोज़ ने भेजा था। अगर तुम उसे प्रेस में उजागर करते हो, माया मारी जाएगी। अगर चुप रहोगे, लड़कियां बेच दी जाएंगी… चुनाव तुम्हारा है।”

अर्जुन चुप। ये अब सिस्टम बनाम आत्मा था।

“तुम लोग हमेशा ऐसे ही सोचते हो ना?” अर्जुन फुसफुसाया। “कि हम फंस जाएंगे, डर जाएंगे, और सिस्टम का हिस्सा बन जाएंगे?”

“क्योंकि तुम डरते हो हार से। समाज को तो फर्क नहीं पड़ता, अर्जुन।”

अर्जुन ने धीरे से रिवॉल्वर नीचे रखा और कहा, “तुम सही हो… समाज को फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मैं फर्क करता हूं।”

मुंबई – उसी शाम

अर्जुन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई।

“आज मैं बताना चाहता हूं कि ब्लैक रोज़ सिर्फ एक क्राइम सिंडिकेट नहीं, हमारी चुप्पी का नाम है। कल रात जिन लड़कियों को बचाया गया, वो ब्लैक रोज़ के सौदे की शिकार थीं। और अगर मेरी आवाज़ के बाद माया जोशी को कुछ भी हुआ, तो देश के हर कोने में तुम्हारा चेहरा उजागर कर दूंगा, रघुवीर महाजन।”

अगली सुबह

एक टैक्सी माया को अर्जुन के घर के बाहर छोड़ गई। बेहोश, लेकिन ज़िंदा।

उसके हाथ में बस एक पुर्जा था –
“तुमने पहली बार किसी कांटे को चुभने से पहले काटा। – R”

भाग 9

माया ज़िंदा थी, लेकिन बोल नहीं पा रही थी। उसके चेहरे पर चोट के निशान, आंखों में थरथराती परछाइयां। डॉक्टरों ने बताया कि उसे psychological shock-induced mutism हुआ है—एक ऐसा डर, जिसने उसकी आवाज छीन ली है।

लेकिन अर्जुन जानता था—माया जो नहीं बोल सकती, उसके खामोश हाथ शायद जवाब जानते हैं।

उसने माया को एक पेन और पेपर दिया। कई मिनटों तक सन्नाटा रहा। फिर माया ने धीरे-धीरे लिखा—
“गहरे तहखाने… तस्वीरों वाला कमरा… दो लोग… एक और R.”

“मतलब रघुवीर अकेला नहीं था,” मित्तल फुसफुसाया।

“और शायद वो R जिसका सामना हमने किया, वह केवल एक मोहरा था।” अर्जुन के चेहरे पर सख्ती थी।

मुंबई पुलिस मुख्यालय – स्पेशल वॉर रूम

अर्जुन ने सबूतों की आखिरी परतें खोलीं। जिन फाइलों को वर्षों से दबा दिया गया था, जिन लड़कियों के नाम अब तक गुमनाम थे, वो अब एक नक्शे पर एक साथ जोड़े गए।

और फिर उभरा एक पैटर्न—हर ट्रांजैक्शन, हर गायब लड़की, हर मर्डर एक शहर से जुड़ता था—कोलकाता।

“कोलकाता?” मित्तल चौंका।

“हां,” अर्जुन ने कहा, “ब्लैक रोज़ का असली केंद्र शायद वहीं है। और वो तहखाना जिसकी बात माया ने की, वहीँ होगा।”

कोलकाता – उत्तरी इलाका, एक पुराना हवेली

माया की स्केचिंग और पुरानी उपग्रह तस्वीरों की मदद से एक पुरानी हवेली ट्रेस हुई—ठक्कर हवेली। बाहर से वीरान, पर भीतर शायद ज़िंदा रहस्य।

अर्जुन, मित्तल और लोकल यूनिट आधी रात को पहुंचे। हवेली के अंदर हर कदम पर धूल और दीवारों में दरारें थीं, पर एक फर्श का टुकड़ा बाकी हिस्सों से अलग लगा।

उसे उठाने पर नीचे एक छुपा दरवाज़ा निकला।

“यही है तहखाना,” अर्जुन ने कहा।

सीढ़ियां उतरते ही एक ठंडी सीलनभरी हवा आई। दीवारों पर तस्वीरें टंगी थीं—सैंकड़ों चेहरों की, ज्यादातर नाबालिग लड़कियों की। हर तस्वीर के नीचे कोड—“R-X21”, “R-Z14”…

“ये उनका ‘कलेक्शन’ था,” मित्तल की आंखें भर आईं।

कमरे के अंदर एक ऑपरेटिंग टेबल, कैमरे, और एक कंप्यूटर। सिस्टम को ऑन किया गया। पासवर्ड पूछा गया।

अर्जुन ने वही शब्द टाइप किया—“BlackRose”

फोल्डर खुला:
“R-MasterList”
“Pipeline: 2025 – Eastern Trade”

हर दस्तावेज़ बताता था कि ब्लैक रोज़ एक तस्करी नेटवर्क नहीं, बल्कि मानव अंगों का भी बाज़ार चला रहा था—जहां लड़कियों को ट्रेन किया जाता था, और फिर उन्हें या तो बेच दिया जाता था, या उनकी आवाज, शरीर, और पहचानें हमेशा के लिए मिटा दी जाती थीं।

“सर, ये सबूत काफी है पूरे नेटवर्क को गिराने के लिए,” मित्तल ने कांपते हुए कहा।

“लेकिन R का असली चेहरा अभी भी छुपा है,” अर्जुन बुदबुदाया।

तभी सिस्टम में एक फोल्डर खुला – “Final Directive”

एक वीडियो प्ले हुआ।

रघुवीर महाजन, किसी बंद कमरे में कैमरे के सामने।

“अगर तुम ये देख रहे हो, अर्जुन, तो मैं मर चुका होऊं… या शायद छुपा हुआ हूं। लेकिन याद रखना—ब्लैक रोज़ को सिर्फ नाम से नहीं, सोच से मिटाना होगा। एक R मिटेगा, तो दूसरा पैदा होगा। तुम्हें सिस्टम नहीं, सोच को तोड़ना होगा।”

वीडियो के आखिर में बस एक चेहरा उभरा—सूट-बूट में एक व्यक्ति, जिसकी आंखों में शून्यता थी।

विधान पारकर – केंद्रीय मंत्री।

अर्जुन के मुंह से धीमी फुसफुसाहट निकली—“R… रघुवीर नहीं… राव नहीं… रियल मास्टरमाइंड विधायिका में बैठा है।”

भाग 10

मुंबई लौटते ही अर्जुन पाटिल ने अपनी यूनिफॉर्म के बटन कस दिए। अब ये केस नहीं, युद्ध था—एक ऐसा युद्ध जिसमें सामने वाला दुश्मन कोई गैंगस्टर नहीं, बल्कि खुद भारत सरकार का हिस्सा था: विधान पारकर, केंद्रीय मंत्री।

“मित्तल,” अर्जुन ने धीमे स्वर में कहा, “हम सीधा हमला नहीं कर सकते। लेकिन एक चाल चल सकते हैं।”

“कैसी चाल, सर?”

“ब्लैक रोज़ का सबसे बड़ा हथियार था—डर। हम इसका उल्टा करेंगे—सच को सबसे ऊँची जगह से बोलेंगे।”

दिल्ली – एक सप्ताह बाद

अर्जुन ने प्रधानमंत्री कार्यालय को एक गोपनीय रिपोर्ट भेजी—RK-219 केस, ब्लैक रोज़ सिंडिकेट, रघुवीर महाजन की फंडिंग, हेमंत राव की भूमिका, और अंततः, विधान पारकर का नाम।

साथ में उन्होंने भेजा—चापोरा फोर्ट की रिकॉर्डिंग, कोलकाता तहखाने से बरामद डेटा, और माया की लिखित गवाही।

जवाब आया—”शांत रहो। हम जांच कर रहे हैं।”

लेकिन अर्जुन जानता था, ये सिर्फ वक्त खरीदने का तरीका था।

मुंबई – उसी रात

एक टेलीविजन चैनल ने एक अनाम फोल्डर प्राप्त किया—नाम था “FinalRose”।

रात 9 बजे, न्यूज एंकर ने अचानक ब्रेकिंग न्यूज पढ़ी—”हमारे पास ब्लैक रोज़ नेटवर्क की असली जानकारी है। और इसमें शामिल है एक केंद्रीय मंत्री!”

देशभर में हड़कंप मच गया।

विधान पारकर का नाम सार्वजनिक हो गया।

अगली सुबह – दिल्ली

विधान पारकर मीडिया से घिरा। उसने साफ इनकार किया, “ये सब झूठ है। विपक्ष की साज़िश है। मेरी छवि खराब करने का प्रयास है।”

लेकिन तभी लोकसभा में विपक्ष के नेता ने संसद में वही फोल्डर पेश कर दिया।

और साथ में अर्जुन पाटिल को बुलाकर शपथ दिलवाई गई।

“मैं, अर्जुन पाटिल, शपथपूर्वक कहता हूँ—मैंने ये फाइल खुद अपनी आंखों से देखी है, और ब्लैक रोज़ का मुख्य संयोजक यही आदमी है—विधान पारकर।”

संसद में सन्नाटा।

दो दिन बाद

विधान पारकर को अंतरिम निलंबन पर भेज दिया गया। जाँच के लिए एसआईटी (Special Investigation Team) गठित की गई। प्रधानमंत्री ने प्रेस में बयान दिया—
“हम एक भी लड़की की आवाज को नजरअंदाज नहीं करेंगे।”

मीडिया अब अर्जुन को “द ब्लैक रोज़ बस्टर” कहने लगी।

तीन महीने बाद – एक कोर्ट रूम, मुंबई

ब्लैक रोज़ केस की सुनवाई में 126 गवाह, 42 सबूत, और 9 साल की फाइलें जमा की गईं।

जज ने फैसला सुनाया—”यह अदालत ब्लैक रोज़ सिंडिकेट के सभी अभियुक्तों को दोषी मानती है, और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाती है।”

कहानी खत्म नहीं हुई…

माया अब मुंबई पुलिस की साइकोलॉजिकल रिकवरी यूनिट का हिस्सा है—वो अब उन लड़कियों की मदद करती है जो बोल नहीं पातीं।

मित्तल को प्रमोशन मिला—ACP मित्तल।

और अर्जुन?

वो फिर से एक चाय की दुकान पर बैठा मिला—डायरी लिखते हुए।

कोई पत्रकार पूछता है—“सर, अब क्या करेंगे?”

अर्जुन मुस्कराता है—
“अब… अगली गवाही का इंतज़ार करूंगा। शायद ये शहर फिर से कुछ कहेगा।”

समाप्त

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