Hindi - क्राइम कहानियाँ

नीले दरवाज़े के पीछे

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अन्वेष चौगुले


वह जो नहीं दिखता

पांडिचेरी की गलियाँ सुबह की रोशनी में सोने सी चमक रही थीं। समुद्र की ठंडी हवा हर नुक्कड़ पर बसी थी, लेकिन संतोष नगर की एक गली में आज कुछ अलग था—कुछ असहज, कुछ ऐसा जो हवा में भारीपन भर रहा था।

उस गली के आख़िरी छोर पर एक दो-मंज़िला पुराना घर खड़ा था, जिसके सामने एक विशाल नीला दरवाज़ा था—जैसे किसी पुराने जमाने के बंगले में होता है। उसके पीछे रहता था डॉ. गिरीशन: उम्र करीब पचपन, दिखने में साधारण, पर हर मरीज की नब्ज पहचानने वाला एक अनुभवी होम्योपैथ। पर अब तीन दिन से न कोई मरीज़ आया, न दरवाज़ा खुला।

घर के पड़ोस में रहने वाली पुष्पा अम्मा ने थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई—”डॉक्टर साब का घर तीन दिन से बंद है। आवाज़ नहीं आती। कोई अंदर है भी या नहीं, पता नहीं चलता।”

पांडिचेरी पुलिस स्टेशन में तैनात इंस्पेक्टर रेवती नायर को यह केस सौंपा गया। तिरपन की उम्र, तेज़ नज़र, और बिना भाव के चेहरे वाली रेवती अपने अनुशासन और सटीकता के लिए मशहूर थी। उसने फाइल बंद की और सीधे निकल पड़ी संतोष नगर।

नीला दरवाज़ा रेवती के सामने खड़ा था, जैसे बरसों से कुछ छुपा रहा हो। उसने बेल बजाई। कोई जवाब नहीं। बेल फिर से। तब भी कुछ नहीं। इस बार वह दरवाज़ा जोर से खटखटाई—”डॉ. गिरीशन, ये पुलिस है। दरवाज़ा खोलिए!”

कोई हलचल नहीं। रेवती ने पड़ोसियों से पूछताछ शुरू की। पुष्पा अम्मा बोलीं, “रोज सुबह 6 बजे अगरबत्ती की गंध आती थी। आजकल कुछ नहीं। रातों को लाइट जलती दिखती है कभी-कभी, पर खिड़की से झाँकने पर साया भी नहीं दिखता।”

एक बुजुर्ग दुकानदार जो रोज दूध देता था, उसने कहा, “तीन दिन से दरवाज़ा नहीं खुला। दूध की थैली वहीँ पड़ी रह जाती है।”

रेवती का माथा ठनका। घर बंद, डॉक्टर लापता, पर अंदर कभी-कभी लाइट जलती है? कोई है अंदर? या कोई कुछ छुपा रहा है?

रेवती ने मैजिस्ट्रेट की अनुमति लेकर दरवाज़ा तुड़वाया। दरवाज़ा जैसे ही टूटा, अगरबत्ती और दवाइयों की मिली-जुली गंध नथुनों में घुस गई। घर शांत था, बहुत ज़्यादा शांत।

अंदर का हाल अजीब था—सब कुछ सलीके से रखा, जैसे कोई अभी-अभी निकल कर गया हो। बैठक में सोफा, कॉफी मग, कुछ अखबार—सब कुछ जैसे किसी सजग आदमी का दैनिक जीवन। पर कहीं कोई नहीं था। रसोई में बर्तन साफ़, फ्रिज में दवाइयाँ और तीन दिन पुराना दूध, जो अब बदबू देने लगा था।

रेवती को कुछ समझ नहीं आ रहा था। एक इंसान तीन दिन से नदारद है, पर उसके घर में किसी अनजाने की कोई निशानी नहीं। न संघर्ष के कोई चिह्न, न चोरी, न दरवाज़ा टूटा।

तभी सीढ़ियों के नीचे एक छोटा सा स्टोर रूम दिखा, जिसके ऊपर ‘डॉ. गिरीशन – प्राइवेट’ लिखा था। दरवाज़ा बंद था, पर ताला नहीं लगा था। रेवती ने दरवाज़ा खोला—कमरा छोटा था, पर चीज़ों से भरा। दवाइयों की पुरानी शीशियाँ, पुराने पर्चे, एक टाइपराइटर, और एक दराज।

दराज़ में एक डायरी मिली। पहले दो पन्नों पर मेडिकल नोट्स थे। लेकिन तीसरे पन्ने पर लिखा था:

“कभी-कभी कुछ बातें छुपाकर रखनी पड़ती हैं। क्योंकि सच दिखता नहीं, बस महसूस होता है। और अगर कोई सच दिख जाए, तो शायद हम उससे भाग जाएँ।”

रेवती उस वाक्य पर अटक गई। डॉक्टर किस सच की बात कर रहा था? क्या उसने खुद को छुपा लिया है? या कोई उसे छुपा रहा है?

वह डायरी के और पन्ने पलटती रही, पर इसके बाद सब खाली। मानो उसने कुछ कहना शुरू किया हो… और फिर रुक गया।

“माँम, डॉक्टर गिरीशन की क्लिनिक के बाहर एक विदेशी महिला की तस्वीर है,” एक सिपाही ने बाहर से बताया।

रेवती तुरंत बाहर आई। क्लिनिक के बाहर लगे कैमरे में एक हफ्ते पुराना फुटेज मिला—एक फ्रेंच महिला डॉक्टर से मिलने आती है। वह तमतमाई हुई लगती है। डॉक्टर उसे शांत कर रहा है। महिला कुछ कहती है, डॉक्टर पीछे हटता है। और फिर दरवाज़ा बंद हो जाता है।

“इस महिला का पता करो। एयरपोर्ट और होटल लॉग्स चेक करो,” रेवती ने कहा।

उस रात रेवती ने घर के बाहर अपनी टीम तैनात कर दी। वो जानती थी—कुछ है इस नीले दरवाज़े के पीछे… जो अब भी सांस ले रहा है, पर दिख नहीं रहा।

शहर की हवाओं में अब रहस्य की गंध तैर रही थी।

समुद्र गवाह है

पांडिचेरी की सुबहें आमतौर पर लहरों की ताल पर जागती हैं। किनारे चलती नारियल की हवा और धीमे-धीमे आती समुद्र की गर्जना, यहां के हर रहस्य को ढक लेती है। लेकिन आज की सुबह अलग थी।

रेवती नायर इंस्पेक्टर की कुर्सी पर बैठी थी, सामने टेबल पर फैला था डॉक्टर गिरीशन के घर से मिला सामान—डायरी, एक पुराना कैमरा, कुछ होम्योपैथिक फॉर्मूले, और वो रिकॉर्डिंग जिसमें एक विदेशी महिला डॉक्टर से भिड़ रही थी।

“नाम मिला क्या उस महिला का?” रेवती ने तेज़ी से पूछा।

“हां मैम,” कांस्टेबल पांडे बोले, “नाम है ऐलिस मौरिन। फ्रांस की नागरिक है। एक महीने से पांडिचेरी में है, Auro Guest House में ठहरी थी। लेकिन वो अब वहाँ नहीं है।”

“कब निकली?”

“तीन दिन पहले। ठीक उसी दिन जब डॉक्टर गायब हुआ।”

रेवती ने गहरी सांस ली। जैसे एक तस्वीर धीरे-धीरे रंग पकड़ने लगी हो। ऐलिस आखिरी व्यक्ति थी जो डॉक्टर से मिली। और उसके बाद डॉक्टर अदृश्य।

“उसका सामान?”
“होटल रूम साफ कर दिया गया था, लेकिन बेड के नीचे से एक कागज़ का टुकड़ा मिला।”

रेवती ने वो कागज़ लिया। उस पर अंग्रेज़ी में हाथ से लिखा था:

“I did what I had to. But some truths cannot be buried. Not by me. Not by him.”

इस एक वाक्य में एक दर्द, एक अपराधबोध और एक छुपा हुआ सच छुपा था।

रेवती अब सीधे समुद्र तट पहुँची। वो जगह जहां डॉक्टर अक्सर सुबह की सैर करता था। वहां के पुराने चौकीदार रमेश ने कहा, “डॉक्टर साहब रोज़ सुबह 5 बजे आते थे। लेकिन तीन दिन से नहीं दिखे। उस दिन एक लड़की आई थी… गोरी-चिट्टी, नीली ड्रेस में। वो देर तक सीढ़ियों पर बैठी रही, और फिर कुछ समुद्र में फेंक कर चली गई।”

“क्या फेंका?”

“दिखा नहीं, पर कुछ कागज़ जैसा था। लहरें बहा ले गईं।”

रेवती ने तुरंत तटीय टीम को अलर्ट किया। कुछ ही घंटे में, पानी के किनारे से एक भीगा हुआ नोट मिला—डॉक्टर गिरीशन की डायरी का पन्ना। उस पर लिखा था:

“मैंने ऐलिस से वो लिया, जो उसका था। लेकिन ये लेना मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल बन गई। मुझे डर है… अब वो वापस लेने आएगी।”

रेवती की आंखें सिकुड़ गईं। डॉक्टर ने ऐलिस से कुछ लिया था। क्या कोई दस्तावेज़? कोई तस्वीर? या कोई राज?

उसी शाम क्लिनिक की CCTV रिकॉर्डिंग खंगाली गई। 10 दिन पहले की एक फुटेज में ऐलिस डॉक्टर से बहस करती दिखती है। वो एक लिफ़ाफा लहराती है। डॉक्टर उसके हाथ से छीनता है, और सीधा स्टोर रूम की ओर जाता है।

“वो लिफ़ाफा स्टोर रूम से नहीं मिला,” रेवती बुदबुदाई। “या तो उसने छुपाया, या कोई और उसे पहले ही ले गया।”

शाम ढलने लगी थी। रेवती वापस डॉक्टर के घर लौटी। उसकी टीम अब नीले दरवाज़े को परछाई की तरह घेरे खड़ी थी। दरवाज़े पर एक नई निशानी थी—खरोंच का ताज़ा निशान। जैसे किसी ने रात में दरवाज़ा खोलने की कोशिश की हो।

घर के अंदर जाते हुए रेवती को दीवार पर एक पुरानी फोटो दिखी—डॉक्टर और एक छोटी बच्ची, समुद्र किनारे। लड़की की आंखें ऐलिस जैसी थीं।

“क्या ऐलिस डॉक्टर की…?”

उसी वक्त एक कॉल आया।

“मैम, हमें बीच के पास एक शव मिला है।”

रेवती दौड़ पड़ी। अंधेरे में समुद्र की लहरें कुछ वापस कर रही थीं। एक अधजला, पानी में भीगा शरीर—चेहरा बिगड़ा हुआ, पहचान मुश्किल। पर जेब में डॉक्टर गिरीशन का प्रेस्क्रिप्शन पैड।

“क्या ये डॉक्टर है?” एक सिपाही फुसफुसाया।

रेवती ने सिर हिलाया, “पता करो। फोरेंसिक बुलाओ। डीएनए टेस्ट कराओ।”

लेकिन उसके अंदर एक सवाल गूंज रहा था—

“अगर ये शव डॉक्टर का है… तो पिछले दो रातों में इस घर की लाइट किसने जलाई?”

तस्वीर जो चुप नहीं रही

पांडिचेरी के फोरेंसिक लैब में टेबल पर दो चीजें रखी थीं—एक अधजला शव का डीएनए रिपोर्ट और डॉक्टर गिरीशन का पुराने मेडिकल रिकॉर्ड से मिला सैंपल। इंस्पेक्टर रेवती नायर ने जब रिपोर्ट खोला, तो उसकी आंखें बिना पलक झपकाए कुछ देर तक वहीं रुक गईं।

रिपोर्ट कहती थी—शव डॉक्टर गिरीशन का नहीं था।

“तो फिर… कौन है ये आदमी?” रेवती ने खुद से पूछा।

इसका मतलब साफ था—डॉक्टर जिंदा है, या कम से कम उसका अंत हुआ नहीं है। और किसी और की पहचान को उसकी मौत बना कर पेश किया गया है। किसी बड़ी साज़िश की महक मिलने लगी थी।

रेवती तुरंत लौट आई डॉक्टर के घर। वो जानती थी, इस बार उसे हर उस चीज़ को देखना होगा जो पहले नज़रअंदाज़ हुई थी।

वो फिर से स्टोर रूम में गई। टेबल पर रखा पुराना कैमरा अब उसे बुला रहा था। कैमरा रोल वाला था—35mm—पुराना ज़माना, लेकिन डॉक्टर की पसंद शायद रेट्रो थी। रेवती ने कैमरा खोलकर देखा—भीतर एक एक्सपोज़ न हुआ रोल था।

उसने तुरंत कैमरा एक्सपर्ट को बुलवाया। लैब में रोल को डेवलप किया गया, और तस्वीरें सामने आईं।

छह तस्वीरें थीं।

  • पहली में डॉक्टर गिरीशन अकेले अपने क्लिनिक के बाहर खड़े हैं, हल्के से मुस्कराते हुए।
  • दूसरी तस्वीर—रात का वक्त, डॉक्टर क्लिनिक में एक कागज़ पढ़ रहे हैं, पीछे एक महिला की परछाई दिख रही है।
  • तीसरी तस्वीर—ऐलिस क्लिनिक के अंदर बैठी है, आंखों में गुस्सा, और हाथ में वही लिफ़ाफा।
  • चौथी तस्वीर—डॉक्टर किसी नकाबपोश से बात कर रहे हैं। नकाबपोश ने हुडी पहना है, और कैमरे की ओर पीठ की हुई है।
  • पाँचवीं तस्वीर—डॉक्टर किसी चीज़ को ज़मीन में दबा रहे हैं। बैकग्राउंड में दिखता है समुद्र किनारे का हिस्सा।
  • और आखिरी तस्वीर—ऐलिस अकेली खड़ी है, बाल बिखरे हुए, और आंखें डरी हुई। यह तस्वीर सबसे धुंधली थी, जैसे किसी ने चोरी-छुपे खींची हो।

रेवती को जैसे झटका लगा।

“यह तस्वीरें किसने खींची?” उसने फुसफुसाते हुए कहा। डॉक्टर खुद कैमरे में नहीं देख रहे थे। और सभी तस्वीरें किसी और की नज़र से ली गई थीं।

उसका ध्यान गया स्टोर रूम के कोने में रखे ट्राइपॉड की ओर। शायद डॉक्टर ने कैमरा सेट किया था, खुद ही टाइमर लगाया या कोई उसे तस्वीरें खींचने में मदद कर रहा था।

लेकिन सबसे रहस्यमय थी चौथी तस्वीर—नकाबपोश व्यक्ति। रेवती ने उसकी बॉडी लैंग्वेज और बैकग्राउंड का विश्लेषण शुरू किया। वह जगह क्लिनिक नहीं थी। वो किसी और बंद जगह की थी। दीवार पर हल्का सा पोस्टर था—जिस पर तमिल भाषा में कुछ लिखा था।

उसने तुरंत लैंग्वेज एक्सपर्ट को बुलाया। पोस्टर पर लिखा था—“Shakti Lodge – सस्ता और सुरक्षित आवास”।

रेवती ने टीम को भेजा—शक्ति लॉज, पांडिचेरी के बाहरी इलाके में एक पुराना लॉज। वहां से पता चला कि एक “मि. कुमार” नाम का व्यक्ति कुछ दिन पहले वहाँ ठहरा था, जिसने पहचान पत्र में चेहरा छुपा रखा था। लेकिन उस कमरे की सफाई के दौरान एक चीज मिली थी—डॉक्टर गिरीशन का पेन, जिस पर उनके नाम की खुदाई थी।

रेवती की शक की सुई अब “मि. कुमार” और नकाबपोश पर टिक गई थी।

वो वापस ऐलिस के पीछे गई। इंटरपोल से सूचना आई थी कि ऐलिस को चेन्नई एयरपोर्ट पर देखा गया था, लेकिन वो उड़ान में चढ़ने से पहले ही कहीं गायब हो गई। जैसे कोई उसे चेतावनी देकर पहले ही निकाल चुका हो।

“तो क्या ऐलिस को कोई बचा रहा है?” रेवती बुदबुदाई।

उसी रात, डॉक्टर के घर के सामने एक बच्चा आया। उसने एक चिट्ठी थमाई—बिना नाम की। उसमें सिर्फ एक वाक्य लिखा था:

“अगर आप जानना चाहती हैं कि तस्वीरें किसने लीं, तो समुद्र की ओर चलिए… वहाँ जहां कोई नहीं जाता।”

रेवती ने तुरंत लोकेशन का अनुमान लगाया—नॉर्थ बीच, जहाँ सरकारी चेतावनी के कारण कोई नहीं जाता था। और जहाँ तस्वीर में डॉक्टर कुछ दबा रहे थे।

वो अपनी टीम के साथ पहुँची। लाइट के सहारे उन्होंने खोज शुरू की। कुछ ही देर में, उन्हें ज़मीन में दबा हुआ एक प्लास्टिक बॉक्स मिला। उसे खोला गया—अंदर थे:

  • वही लिफ़ाफा जिसे ऐलिस लहरा रही थी—भीतर दस्तावेज़ थे, जिसमें किसी भूमि विवाद, और ज़बरन खरीद की प्रक्रिया की जानकारी थी।
  • कुछ कैश—यूरो और भारतीय रुपये।
  • और एक मेमोरी कार्ड।

मेमोरी कार्ड को लैपटॉप से जोड़ा गया। उसमें एक रिकॉर्डिंग थी।

डॉक्टर गिरीशन की आवाज़:

“अगर कोई ये सुन रहा है, तो मैं ज़िंदा नहीं हूं। या शायद कहीं ऐसी जगह हूं जहाँ लौटना अब संभव नहीं। मैंने कुछ ऐसा छुपाया था जो शायद मुझे नहीं करना चाहिए था। ऐलिस… वो मुझसे सिर्फ सच चाहती थी। पर मैंने उसके विश्वास का सौदा किया। अब जो हो, ये तस्वीरें मेरी गवाही हैं। पर असली दोषी वो है… जो हर वक्त हमारे आसपास रहता है, पर दिखता नहीं।”

रेवती की उंगलियाँ कांपने लगीं।

“वो जो दिखता नहीं…”

अब यह मामला एक हत्या से बढ़कर किसी और बड़े जाल की ओर इशारा कर रहा था।

रेत में छुपी चीख

रेवती नायर की आंखों में समुद्र का नीला फैलाव नहीं, बल्कि उन तस्वीरों की गहराई तैर रही थी। डॉक्टर गिरीशन की आवाज़, उसकी कबूलनामा जैसी रिकॉर्डिंग, और मेमोरी कार्ड में छुपे दस्तावेज़—सब मिलकर कहानी को वहां ले जा रहे थे जहाँ रेत के नीचे कोई चीख अब भी दबी हुई थी।

लैंड रिकॉर्ड के दस्तावेज़ बताते थे कि डॉक्टर एक विवादित ज़मीन का गवाह था। ज़मीन, जो कभी ऐलिस की मां—एक फ्रांसीसी मूल की महिला—के नाम पर थी, लेकिन अब सरकारी आदेश पर किसी स्थानीय रीयल एस्टेट कंपनी ने कब्ज़ा कर लिया था।

और वो कंपनी थी Kaveri Assets Pvt. Ltd., जिसकी शाखाएँ तमिलनाडु और पांडिचेरी में फैली थीं। जांच में सामने आया कि इस कंपनी का एक साइलेंट पार्टनर महेश पिल्लै नामक एक व्यक्ति था—पूर्व पुलिस अधिकारी और अब प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसी का मालिक।

“महेश पिल्लै…” रेवती बुदबुदाई, “इस नाम की फाइल मेरे पुराने रिकॉर्ड में है।”

उसने फाइल निकलवाई। आठ साल पहले एक केस था—मणिकुड़ी एनक्लेव भूमि विवाद, जिसमें महेश पिल्लै पर अवैध कब्जे, सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने, और गवाहों को धमकाने का आरोप था। लेकिन सबूतों की कमी और गवाहों की ग़ायब होने की वजह से केस बंद हो गया था।

अब वही पैटर्न दोबारा सामने था।

रेवती ने लॉज की सीसीटीवी फुटेज निकलवाई। नकाबपोश जिसे “मि. कुमार” कहा गया था, उसकी बॉडी स्ट्रक्चर महेश पिल्लै से मेल खाती थी। उसका चेहरा नज़र नहीं आया, लेकिन एक खास चीज़ पकड़ी गई—उसके हाथ पर बना एक पुराना टैटू, जिस पर ‘OM’ अंकित था।

रेवती को याद आया, जब वह आठ साल पहले महेश से मिली थी, तब यही टैटू उसकी कलाई पर चमक रहा था।

“तो यह साज़िश महेश की थी? डॉक्टर को धमकाया गया? और ऐलिस को डराकर भगाया गया?”

लेकिन अभी यह साबित नहीं हुआ था कि महेश खुद गिरीशन की हत्या या लापता होने में शामिल है।

उस रात समुद्र की लहरें असहज तेज़ हो गई थीं। जैसे समुद्र खुद कुछ कहना चाहता हो। तभी पुलिस कंट्रोल से खबर आई—

“मेम्बलिकुप्पम बीच के पास एक और लाश मिली है। अधजली और चेहरे पर तेज़ चोट के निशान हैं।”

रेवती का दिल धड़कने लगा। वह उसी वक्त पहुंची।

शव रेत में आधा दबा था। पास ही एक टूटा चश्मा, कुछ बाल, और एक अजीब सा ब्रेसलेट मिला—ब्रेसलेट जो डॉक्टर गिरीशन अक्सर पहनते थे।

“क्या यह डॉक्टर है?” उसने फौरन पूछा।

“DNA रिपोर्ट 24 घंटे में आएगी,” एक फोरेंसिक अफ़सर ने कहा।

लेकिन रेवती को यकीन था—यह लाश भी एक छलावा थी। साज़िशकार कोई और है, और खेल अब भी अधूरा।

वह एक आखिरी बार डॉक्टर के घर गई—नीले दरवाज़े के पीछे। घर अब वीरान नहीं, बल्कि ज़िंदा लग रहा था। जैसे दीवारें खुद गवाही देने को तैयार थीं।

स्टोर रूम के दीवार पर उसने गौर किया—पुरानी दीवारों पर स्क्रैच के निशान थे। किसी ने दीवार को खोदने की कोशिश की थी।

रेवती ने दीवार को हथौड़े से तुड़वाने का आदेश दिया। कुछ ही देर में, दीवार के पीछे एक पतला सा कम्पार्टमेंट मिला।

अंदर एक डिब्बा था।

डिब्बे में जो मिला, उसने रेवती को स्तब्ध कर दिया—

  • डॉक्टर गिरीशन का असली पासपोर्ट
  • ऐलिस की मां की मृत्यु प्रमाणपत्र की एक पुरानी कॉपी
  • और एक खत—डॉक्टर की लिखावट में

“मैं डर गया था, ऐलिस। तुम्हारी मां की मौत के पीछे की सच्चाई मेरे लिए एक बोझ बन गई थी। मैंने सोचा था अगर सब दबा दूँ, तो सब ठीक हो जाएगा। लेकिन यह रेत कभी शांत नहीं रहती। हर लहर एक चीख लौटाती है।”

उस खत ने स्पष्ट कर दिया—डॉक्टर कोई कातिल नहीं था। वह गवाह था। और शायद भागा भी इसीलिए था, क्योंकि वह किसी से नहीं लड़ना चाहता था।

रेवती अब समझ चुकी थी—इस खेल में तीन मोहरे थे:

  • ऐलिस—जो अपनी मां की संपत्ति और सच्चाई की तलाश में भारत आई थी।
  • डॉक्टर—जिसने सच्चाई देखी, लेकिन चुप रहना चुना।
  • और महेश पिल्लै—जिसने हर आवाज़ को या तो खरीद लिया या दफना दिया।

लेकिन अब एक आखिरी चीज़ बची थी—डॉक्टर कहाँ है?

क्या वो सचमुच ज़िंदा है?

क्या उसने खुद को छुपा लिया है?

या कोई उसे पहले ही खामोश कर चुका है?

रेवती अब जानती थी कि उसे जवाब मिलेगा… नीले दरवाज़े के पीछे, उस आखिरी रूम में, जहाँ कोई चीख अब भी रेत में दबी है।

ऐलिस का सच

रेवती नायर ने अपनी अब तक की सबसे उलझी हुई केस में कदम रखा था। दो लाशें, एक लापता डॉक्टर, एक फ्रेंच महिला जिसकी मां की मौत रहस्य में डूबी थी, और एक ताकतवर व्यक्ति—महेश पिल्लै—जो हर चीज़ की छाया बन चुका था। लेकिन अब उसे उस छाया के पीछे की रौशनी चाहिए थी।

उसका अगला कदम था—ऐलिस मौरिन को ढूंढ निकालना।

इंटरपोल और विदेशी दूतावास से मिली जानकारी के अनुसार ऐलिस अब भी भारत में थी। चेन्नई एयरपोर्ट से उसने उड़ान नहीं भरी थी, बल्कि पास के एक फाइव स्टार होटल में चेक-इन किया था—नकली नाम से।

रेवती ने तुरंत रेड प्लान किया।

होटल के कमरे में जब रेवती की टीम घुसी, ऐलिस खिड़की के पास बैठी थी। चुप, शांत, और बेहद थकी हुई।

“Miss Alice Maureen,” रेवती ने कहा, “आपको पूछताछ के लिए हिरासत में लिया जाता है।”

ऐलिस कोई विरोध नहीं करती। बस धीरे से कहती है, “अब तो मुझे यही चाहिए था।”

थाने में जब उससे पूछताछ शुरू हुई, रेवती ने सवाल दागे—”तुम डॉक्टर गिरीशन से क्यों मिली थीं? वो लिफ़ाफा क्या था? और दो लोग मरे हैं, क्या तुम जानती हो क्यों?”

ऐलिस ने लंबी सांस ली।

“मैं भारत पहली बार नहीं आई। मेरी मां—मार्था मौरिन—यहाँ 1995 से 2002 तक पांडिचेरी यूनिवर्सिटी में पढ़ाती थीं। उन्हीं दिनों वो डॉक्टर गिरीशन से मिली थीं।”

“तो क्या वो…?” रेवती पूछती है।

“हाँ,” ऐलिस कहती है, “वो एक-दूसरे से प्यार करते थे। लेकिन जब मेरी मां गर्भवती हुई, डॉक्टर पीछे हट गया। उन्होंने कोई ज़िम्मेदारी नहीं ली। मां फ्रांस लौट गईं। उन्होंने कभी डॉक्टर से संपर्क नहीं किया, और मैं भी नहीं चाहती थी।”

रेवती शांत रही। ऐलिस की आवाज़ काँप रही थी।

“फिर कुछ साल पहले मां की मृत्यु हुई। हार्ट अटैक बताया गया। लेकिन उनके कागज़ात में कुछ ज़मीन के दस्तावेज़ मिले—पांडिचेरी की। और वहां डॉक्टर गिरीशन का नाम भी था।”

“तब तुम वापस आई?” रेवती ने पूछा।

“हाँ। मैं जवाब चाहती थी। मां की ज़मीन हड़प ली गई थी। मैंने केस दर्ज करवाने की कोशिश की, लेकिन हर जगह से टाल दिया गया। मुझे समझ आया कि मामला सिर्फ ज़मीन का नहीं है—किसी ने माँ की मौत को भी दबा दिया था।”

रेवती की आंखें सिकुड़ गईं। “क्या तुम्हें लगता है डॉक्टर ने तुम्हारी मां को मारा?”

“नहीं,” ऐलिस कहती है, “वो कायर था, लेकिन हत्यारा नहीं। उसने मां से पीछा छुड़ाया, लेकिन बाद में पछताया। जब मैं उससे मिली, उसने सब बताया।”

“क्या?”

“कि मेरी मां को जबरन एक मेडिकल केस से हटा दिया गया था। वो एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर Kaveri Assets के ख़िलाफ़ सबूत इकट्ठा कर रही थीं। महेश पिल्लै ने उन्हें धमकाया था। और शायद…”

“…शायद उसे मरवा भी दिया।” रेवती उसकी बात पूरी करती है।

ऐलिस सिर हिलाती है। “डॉक्टर ने तब कुछ नहीं किया। उसने सिर्फ चुपचाप दस्तावेज़ संभाल लिए। और अब जब मैंने उससे जवाब मांगे, उसने वो लिफाफा मुझे देने से मना कर दिया।”

“और फिर?”

“फिर वो डर गया। कहा—’मैं तुम्हारी मां को खो चुका, अब तुमसे डरता हूँ।’ उसी रात वो लापता हो गया। और किसी ने मेरी निगरानी शुरू कर दी।”

“महेश पिल्लै?”

“शायद। मुझे दो बार होटल में कोई फोन आया—’अगर तुम वापस न गई, तो अगली लाश तुम्हारी होगी।'”

रेवती उसे गौर से देखती रही। “लेकिन फिर भी तुम रुकी?”

“हाँ। क्योंकि अब यह सिर्फ मेरी मां की ज़मीन की लड़ाई नहीं थी। यह उसके इंसाफ़ की लड़ाई थी।”

रेवती ने ऐलिस को सुरक्षित रखने के आदेश दिए। उसे स्पेशल प्रोटेक्शन में रखा गया। लेकिन उस रात जब रेवती थाने लौट रही थी, उसके मोबाइल पर एक गुमनाम कॉल आया।

“रेवती नायर बोल रही हैं?”

“हाँ।”

“अगर डॉक्टर गिरीशन को बचाना है, तो कल रात 11 बजे Old Lighthouse के पास आइए। अकेले।”

रेवती चौंकी। “तुम कौन हो?”

“कोई जो जानता है कि नीला दरवाज़ा सिर्फ एक दरवाज़ा नहीं… एक सुरंग है, जिसके दोनों छोर पर मौत है।”

कॉल कट गया।

रेवती जानती थी—अब खेल आखिरी मोड़ पर है।

उसने तय किया—वो जाएगी। अकेले।

लेकिन उससे पहले, उसने ऐलिस से एक आखिरी बात पूछी—

“अगर तुम्हें डॉक्टर से दोबारा मिलने का मौका मिले… तो क्या कहोगी?”

ऐलिस ने कुछ देर सोचा। फिर हल्की मुस्कान के साथ बोली:

“मैं कहूँगी, सच से भागना आसान होता है। लेकिन कभी-कभी, वही सच हमारी रक्षा भी करता है।”

रेवती समझ गई—इस केस में कोई खलनायक एक नहीं है। कुछ डर से भागे, कुछ डर से जीते। लेकिन ऐलिस—वो अकेली थी जो सच को पकड़ने आई थी।

अब सिर्फ एक रात बाकी थी। और उस रात, नीले दरवाज़े के पीछे की परतें खुलने वाली थीं।

नीले दरवाज़े के पीछे

रात 10:45 बजे। पांडिचेरी का पुराना लाइटहाउस समुद्र के किनारे अंधेरे में गुम हो रहा था। लहरें आज और ज़्यादा बेचैन थीं, जैसे रात खुद किसी भारी रहस्य को अपने भीतर समेटने के लिए हिम्मत बटोर रही हो।

इंस्पेक्टर रेवती नायर अकेली पहुंची। उसके पास कोई वायरलेस नहीं था, न टीम, न बैकअप। सिर्फ उसकी बेल्ट में टॉर्च और जैकेट के अंदर छिपा एक रिवॉल्वर।

11 बजते ही पीछे से कदमों की आहट आई।

रेवती मुड़ी। एक झुर्रीदार, थका हुआ चेहरा। डॉक्टर गिरीशन।

“आप ज़िंदा हैं,” रेवती ने धीमे से कहा।

“हाँ,” डॉक्टर बोला, “लेकिन ज़िंदा होने का मतलब सिर्फ सांस लेना नहीं होता। मैं तीन हफ्तों से भाग रहा हूँ—महेश पिल्लै से, अपने अपराधबोध से… और खुद से।”

रेवती ने चुपचाप उसकी बात सुनी।

“मैंने ऐलिस की मां से मोहब्बत की थी,” वह बोला, “पर जब मामला गंभीर हुआ, मैं डर गया। मैं उसके साथ नहीं गया। फिर जब मुझे पता चला कि उसे मार दिया गया, मैंने सबूत इकट्ठा करना शुरू किया—कागज़ात, रिकॉर्डिंग, तस्वीरें।”

“और तुमने ऐलिस को वो सब देने से मना किया?” रेवती ने पूछा।

“क्योंकि मैं जानता था, वो अकेली नहीं थी। कोई उसकी निगरानी कर रहा था। मैं जानता था, अगर वो लिफ़ाफा उसके पास गया, तो वो मारी जाएगी।”

“तो तुमने खुद को गायब कर लिया?”

“हाँ। मैं जानता था कि अगर मैं मरा समझा जाऊं, तो कोई मुझे खोजेगा नहीं। मैंने नकाबपोश के साथ समझौता किया। मैंने कहा, तुम मुझे ‘मरा’ घोषित कर दो, बदले में मैं सबूत तुम्हें नहीं दूँगा।”

“नकाबपोश यानी… महेश पिल्लै?”

“हाँ। वो खुद नहीं आया था, पर उसके आदमी मेरे पीछे थे। लेकिन मुझे एक चीज़ का यकीन था—अगर ऐलिस जिंदा रही, तो एक दिन वह सच तक जरूर पहुँचेगी। और शायद तुम जैसी कोई पुलिस अफसर उसे रास्ता दिखाएगी।”

रेवती के गले में कुछ अटका। उसने डॉक्टर की आंखों में देखा—एक ऐसा अपराधबोध जो सालों में बूढ़ा हो चुका था।

“तुम्हें थाने चलना होगा। अब सच सामने आएगा।”

डॉक्टर ने सिर झुकाया। “मैं तैयार हूँ।”

रेवती ने वायरलेस पर टीम को बुलाया, लेकिन तभी एक गोली की आवाज़ आई।

ट्यून ट्यून!

डॉक्टर ज़मीन पर गिर पड़ा। उसके सीने से खून बह रहा था।

रेवती ने तुरंत अपना रिवॉल्वर निकाला, लेकिन सामने कोई नहीं था—सिर्फ एक परछाई, जो लाइटहाउस के अंधेरे में विलीन हो गई।

टीम पहुँच गई, डॉक्टर को अस्पताल ले जाया गया। लेकिन रास्ते में ही उसकी साँसें थम गईं।

रेवती थक गई थी। लेकिन हार नहीं मानी।

उसने डॉक्टर के दिए सभी सबूतों को केस में जोड़ा, ऐलिस को बतौर गवाह पेश किया गया, और दो महीने की कठिन लड़ाई के बाद महेश पिल्लै गिरफ्तार हुआ।

एक बड़ा रीयल एस्टेट घोटाला, जिसमें ज़मीन हड़पना, सरकारी रिकॉर्ड में हेरफेर, और दो हत्याएं शामिल थीं—सामने आया।

डॉक्टर गिरीशन को मरणोपरांत न्याय दिलाया गया। ऐलिस को उसकी मां की ज़मीन लौटा दी गई।

लेकिन एक आखिरी चीज़ अब भी बाकी थी।

रेवती एक दिन अकेली डॉक्टर के पुराने घर गई। नीले दरवाज़े को देखा—जो अब टूटा नहीं था, बल्कि शांत था। उसने दरवाज़ा खोला। सब कुछ वैसा ही था—अगरबत्ती की गंध, किताबों की आलमारी, वो पुराना सोफा, और स्टोर रूम।

वो स्टोर रूम, जहां से कहानी शुरू हुई थी।

दीवार पर अब डॉक्टर की तस्वीर थी, और नीचे एक पंक्ति लिखी थी:

कभीकभी सच भी चुप रहता है, जब तक कोई उसे सुनने नहीं आता।

रेवती ने आंखें मूँद लीं। उसे लगा जैसे लहरें अब शांति से लौट रही थीं।

समाप्त

 

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