सम्वित शर्मा
अध्याय १: एक और गिरावट
बारिश की एक भारी रात थी, जब मुंबई की गगनचुंबी इमारत ‘ओशन व्यू हाइट्स’ के नीचे पुलिस की गाड़ियाँ जमा हो गईं। चारों तरफ नीली-लाल बत्तियों की झिलमिलाहट में भीगते हुए कुछ लोग भीड़ बनाकर खड़े थे, और बीच में एक पीले प्लास्टिक की शीट से ढका शव—एक और मौत। सेक्योरिटी गार्ड ने सबसे पहले देखा था, या शायद सबसे पहले उसने देखा जाना तय किया गया था। इमारत की 13वीं मंज़िल से गिरकर मरी महिला का चेहरा क्षत-विक्षत हो चुका था, लेकिन अयान शेख को इतना तो साफ दिख गया कि ये कोई साधारण आत्महत्या नहीं थी। उसकी आंखें खुली थीं—सचमुच खुली हुई—मानो आखिरी पल तक वो जानती थी कि उसे मारा जा रहा है। भीड़ में एक औरत चुपचाप साड़ी में लिपटी हुई आई और शव की ओर देखा, फिर कुछ बुदबुदाई—”हर साल कोई न कोई… वही मंज़िल, वही दिन…” और अयान का माथा ठनका।
ओशन व्यू हाइट्स, वर्ली के किनारे खड़ी एक आलीशान इमारत, जहाँ करोड़ों की प्रॉपर्टी खरीदने वाले लोग रहते थे—उनकी नींद हर साल 4 जुलाई को किसी मौत की चीख से टूटती थी। बीते छह वर्षों से हर साल इसी तारीख को 13वीं मंज़िल से किसी न किसी की मौत होती थी, और हर बार पुलिस इसे अलग-अलग वजहों से “केस क्लोज़” कर देती थी—कभी मानसिक अवसाद, कभी एक्सिडेंट, कभी डोमेस्टिक वायलेंस। लेकिन अयान को इस बार कुछ अलग महसूस हुआ। महिला का नाम प्रेरणा वर्मा था—35 वर्षीय, तलाक़शुदा, अकेली, लेकिन मानसिक रूप से स्थिर। उसकी डायरी में उस रात के पहले पन्ने पर सिर्फ एक लाइन लिखी थी—“मुझे लगता है कोई मुझे देखता है जब मैं नहीं देख रही होती।” लिफ्ट लॉबी की सीसीटीवी फुटेज में वो 13वीं मंज़िल की ओर जाती दिखती है, और उसके बाद… कुछ नहीं। कोई आता नहीं, कोई निकलता नहीं, बस तीन बजे सुबह उसका शव इमारत के सामने पाया गया। अयान ने जब पुराने केस फाइलें मंगवाईं, तो हर केस में यही पैटर्न था—एक अकेला व्यक्ति, एक सूनी मंज़िल, एक साफ मौत और कोई नहीं देखने वाला।
अयान को केस देते वक्त उसके सीनियर ने कहा था, “अगर कोई इसे सुलझा सकता है, तो तू ही है। या फिर…” उसने एक फाइल खिसकाई, जो धूल में दबा एक नाम उभार रही थी—डॉ. मेधा सिंह। “वो क्रिमिनल माइंड्स पढ़ती थी, और… पढ़ा भी देती थी,” अफसर ने कहा था। लेकिन अयान जानता था कि डॉ. मेधा कोई आम प्रोफेसर नहीं थीं। वो किसी जमाने में अपराधियों के दिमाग का नक्शा बना लेती थीं। अब एकांत में रहने वाली, 62 साल की महिला थीं, जो केसों से नाता तोड़ चुकी थीं, लेकिन जिनका नाम अब भी केस फाइलों में गूंजता था। अयान ने उनके घर का पता निकाला और अगले दिन दस्तक दी। एक बूढ़ी, शांत आंखों वाली औरत ने दरवाजा खोला—हाथ में चाय की कप और आँखों में बर्फ जैसी चुप्पी। अयान ने कहा, “13वीं मंज़िल… फिर एक मौत हुई है।” और एक सेकेंड के लिए लगा जैसे मेधा की पुतलियाँ स्थिर हो गई हों, जैसे उस नंबर ने उनके भीतर कोई पुरानी नस छेड़ दी हो। उन्होंने कुछ नहीं कहा, बस अयान को भीतर आने का इशारा किया। दीवारों पर पुराने केसों की तस्वीरें, डायग्राम्स, और एक कोने में जला हुआ एक नक्शा… और बीच में टंगी एक खामोश घड़ी, जो 3:04 पर रुकी हुई थी।
अध्याय २: डॉ. मेधा की वापसी
कमरे में बैठते ही अयान ने एक गहरी साँस ली। वो चाहकर भी अपनी अधीरता छुपा नहीं सका। सामने की मेज़ पर रखी किताबें सब एक ही विषय की थीं—”Abnormal Psychology,” “Criminal Profiling,” “Patterns of Psychotic Delusion.” दीवार पर टंगा एक पुराना अखबार काटा गया था, जिसका शीर्षक था: “क्रिमिनल साइकोलॉजिस्ट ने बताई सीरियल किलर की मानसिक गहराइयाँ।” मेधा ने चुपचाप उसके लिए पानी रखा और खुद एक आरामकुर्सी में बैठ गईं, जैसे यह सब एक रस्म हो जिसे वह कई बार निभा चुकी हैं। अयान ने उन्हें सारी घटना बताई—ओशन व्यू हाइट्स, 13वीं मंज़िल, प्रेरणा वर्मा की मौत, पुराने सालों की साम्यता। जब उसने सीसीटीवी फुटेज का ज़िक्र किया—जहाँ कोई न आते देखा गया, न जाते—तो मेधा की भौंहें हल्के से सिकुड़ गईं। उन्होंने धीरे से पूछा, “क्या मृतका की नींद की दवाइयों की कोई रिपोर्ट आई?” अयान चौंका। “कैसे पता?” मेधा ने अपनी डायरी में कुछ लिखा—एक नाम के आगे एक छोटा-सा प्रश्नचिन्ह, और फिर कहा, “जो लोग अकेले होते हैं, वे डर से नहीं मरते, डर के साथ जीने से मरते हैं… और वो अक्सर दवाइयों से पहले डर को छुपाते हैं।”
अयान जानता था कि वह अकेले इस केस को नहीं सुलझा पाएगा। इसलिए जब उसने अपने फोन से प्रेरणा की लिखी आखिरी डायरी पंक्ति—“मुझे लगता है कोई मुझे देखता है जब मैं नहीं देख रही होती”—पढ़कर सुनाई, तो मेधा कुछ पल चुप रहीं। फिर उन्होंने अपनी पुरानी फाइलें निकालीं—उनमें एक केस “राजवीर मल्होत्रा” नामक एक अस्थिर कलाकार का था, जिसने चार हत्याएँ की थीं, और हर बार उसने कहा था कि “13 एक पवित्र संख्या है। ये वो आईना है जिसमें असली चेहरा दिखता है।” उस केस की आखिरी लाइन भी डायरी जैसी ही थी। अयान को तब समझ में आया कि शायद 13वीं मंज़िल सिर्फ एक जगह नहीं, एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है—एक ट्रिगर, जो किसी विशेष तरह की मानसिकता को जाग्रत करता है। लेकिन अयान को ऐसे ‘साइकोलॉजिकल’ स्पष्टीकरणों पर भरोसा नहीं था। उसने कहा, “मुझे फोरेंसिक चाहिए, सबूत—not symbolism.” मेधा मुस्कुराईं, एक गहरी, थकी हुई मुस्कान—“अगर सबूत ही काफी होते, तो इंसान कभी झूठ नहीं बोलता।”
मेधा ने उस रात ओशन व्यू हाइट्स की हर जानकारी मंगवाने का प्रस्ताव रखा—हर फ्लैट का रिकॉर्ड, पिछले मृतकों की मेडिकल हिस्ट्री, उनकी मानसिक स्थिति, और खासकर—रात की सिक्योरिटी शिफ्ट का डेटा। जब अयान ने उससे पूछा कि क्या वह केस में आधिकारिक रूप से सहयोग करेंगी, तो उन्होंने जवाब दिया, “अगर ये वही पैटर्न है जो मुझे लगता है… तो ये केस किसी पुलिस अफ़सर या प्रोफेसर का नहीं… एक इंसान का है जो अपने ही अतीत से डरता है।” कमरे में एक अजीब-सी खामोशी छा गई। खिड़की के बाहर से एक बिल्ली की रोने जैसी आवाज़ आई और मेधा ने हल्के से अपनी उंगलियों से पुरानी घड़ी की सुइयों को छुआ—वो अब भी 3:04 पर अटकी थी। “अयान,” उन्होंने पहली बार नाम लेकर कहा, “कभी-कभी एक मंज़िल, एक तारीख़, और एक भावना… मिलकर एक आत्मा की कहानी कहती है। चलो, इसे सुनते हैं।” और इसी के साथ, छह साल से बंद पड़ी उनकी डायरी फिर से खुल गई।
अध्याय ३: 1301 – बंद दरवाज़े का राज़
बारिश थमी थी, पर ओशन व्यू हाइट्स की 13वीं मंज़िल पर एक अजीब-सी सीलन अब भी लिपटी हुई थी। दीवारों से पेंट उतरने लगा था, और लॉबी में खड़े होकर ऐसा लगता था जैसे यहां कोई वक्त से नहीं गुज़रा—जैसे घड़ी की सूई यहाँ थम गई हो। मेधा और अयान लिफ्ट से सीधे 13वीं मंज़िल पर पहुंचे। हवा में एक अजीब-सी गंध थी—न तो साफ, न सड़ी हुई, बल्कि जैसे पुरानी किताबें और बंद कमरे की दम घुटती खामोशी। फ्लैट 1301 के बाहर वो कुछ देर रुके। दरवाज़ा बंद था, बेल दबाने पर कोई जवाब नहीं आया। मेधा ने दीवार से कान लगाकर धीरे से पूछा, “क्या आप अंदर हैं?” और तभी एक बहुत हल्की—बहुत ही हल्की—फुसफुसाहट जैसी ध्वनि दरवाज़े के भीतर से आई, जैसे कोई सांस ले रहा हो, या जैसे कोई धीमी आवाज़ में कुछ दोहरा रहा हो। अयान ने लॉक को गौर से देखा—कोई तो था अंदर। उन्होंने बिल्डिंग मैनेजर को बुलाया, और मुख्य चाबी से दरवाज़ा खोला गया।
1301 का दरवाज़ा जब खुला, एक तेज़ हवा का झोंका पूरे फ्लैट में से बाहर आया, जैसे किसी ने भीतर की आत्मा को बाहर धकेला हो। कमरा अंधेरे में डूबा हुआ था, खिड़कियाँ बंद, पर्दे गिरे हुए। कमरे में घुसते ही मेधा को एक पुरानी फाउंटेन पेन, आधे से भरी हुई चाय की प्याली, और दीवार पर स्याही से बने अजीब से गोलाकार निशान दिखाई दिए—मानो किसी ने दीवार को कम्पास बनाकर मानसिक नक्शा खींचा हो। मेधा ने धीमे स्वर में कहा, “यह किसी डिसोसिएटिव पर्सनालिटी का काम है—कई बार ऐसे लोग अपने डर को जियोमेट्री में बांधते हैं।” अयान ने अलमारी खोली, तो एक लाल रंग की डायरी दिखाई दी, जिसके हर पन्ने पर किसी एक ही वाक्य को बार-बार लिखा गया था—”मैं वहाँ नहीं हूँ लेकिन मुझे वहाँ होना चाहिए था।” मेधा की आँखें गहरी हो गईं, जैसे ये वाक्य उसकी अपनी स्मृति से निकला हो। डायरी के आखिर में एक स्केच था—एक गार्ड की आकृति, जिसकी आँखें रेखाओं में नहीं, बल्कि शून्य में थीं।
तलाशी के दौरान पास के फ्लैट के निवासी, एक बुज़ुर्ग महिला ने बताया कि 1301 की किराएदार—प्रेरणा वर्मा—अक्सर रात में नींद में चलती थी, और कभी-कभी अजीब से शब्द बड़बड़ाती थी। “एक रात मैंने उसे छत की ओर जाते देखा,” महिला ने बताया, “मैंने टोका तो उसने मेरी तरफ देखे बिना कहा, ‘वो बुला रहा है, जो मुझे देखता है जब मैं नहीं देखती।’” उस वाक्य ने मेधा के भीतर कुछ चुभा। उन्होंने तुरंत पूछा, “क्या आपने कभी उसे सिक्योरिटी गार्ड से बात करते देखा था?” महिला ने सिर हिलाया, “हाँ, एक लंबा-सा गार्ड था… नाम शायद रवि? पर बाद में वो दिखा ही नहीं…” मेधा और अयान ने जैसे ही बिल्डिंग के सिक्योरिटी शेड्यूल को खंगालना शुरू किया, कुछ साफ हुआ—हर साल 4 जुलाई की रात, नाइट शिफ्ट में गार्ड का नाम अलग होता था, पर चेहरे एक जैसे… या एक जैसे डरावने। मेधा ने धीरे से कहा, “कभी-कभी, हम किसी को याद नहीं रखते, क्योंकि वो हमारे अंदर ही रहता है।” और एक बार फिर, उन्होंने अपनी डायरी में एक नाम लिखा—1301—उसके नीचे एक वाक्य: “हर फ्लैट एक ज़ेहन है, और ज़ेहन में छुपे कमरे कभी खुद नहीं खुलते।”
अध्याय ४: कैमरों के पीछे
डॉ. मेधा की उंगलियाँ अब भी डायरी के काले पन्नों पर चल रही थीं, जब अयान ने सामने लैपटॉप पर सीसीटीवी फ़ुटेज चला दी। कैमरा फुटेज 13वीं मंज़िल के कॉरिडोर का था—तारीख़ थी 3 जुलाई की रात, और वक्त था ठीक 2:46 AM। वीडियो में प्रेरणा वर्मा अकेले लिफ्ट से निकलती दिखाई दी। वो धीरे-धीरे अपने फ्लैट 1301 की ओर बढ़ी, चाबी निकाली, दरवाज़ा खोला, और अंदर चली गई। फिर कुछ नहीं। कोई आवाज़ नहीं, कोई बाहर आता नहीं, कोई अंदर जाता नहीं। लेकिन जब अयान ने वीडियो को ज़ूम करके 2:59 AM पर रोका, तो मेधा ने इशारा किया—“वो देखो।” कॉरिडोर के आख़िर में लगे कांच के फ्रेम में एक परछाईं हल्की-सी हिलती हुई दिखाई दी थी। इंसानी आकृति, लंबी, स्थिर, जैसे वो प्रेरणा के दरवाज़े की ओर देख रही हो। फिर अचानक वो परछाईं लिफ्ट की दिशा में मुड़ती है… लेकिन लिफ्ट कभी खुलती नहीं। ये वही गार्ड था, जिसकी आँखें स्केच में थीं, लेकिन चेहरा फ़ुटेज में धुँधला, लगभग ग़ायब।
अयान ने झुंझलाकर कहा, “शायद कोई कैमरा ग्लिच हो… या लाइट रिफ्लेक्शन।” लेकिन मेधा ने ठंडे स्वर में जवाब दिया, “या फिर कोई ऐसा, जो चाहता ही नहीं कि उसे पहचान लिया जाए।” उन्होंने तुरंत पिछले छह साल की रातों की सीसीटीवी फुटेज मंगवाई—हर एक फ़ाइल की, जिनमें मौतें हुई थीं। और जो सामने आया, वह किसी डरावने पैटर्न जैसा था। हर मौत की रात—हर फ़ुटेज में—एक पल ऐसा आता था, जब कैमरा एक सेकेंड के लिए ब्लिंक करता, फिर स्थिर हो जाता, और उसी एक सेकेंड में—कॉरिडोर के किसी कोने में—वो परछाईं दिखाई देती थी। चेहरा हमेशा छाया में, कपड़े नॉर्मल गार्ड जैसे, लेकिन चाल… जैसे हवा में चलती परछाईं। अयान अब परेशान होने लगा था। “अगर यह कोई इंसान है,” उसने कहा, “तो उसे पकड़ना नामुमकिन नहीं होना चाहिए। अगर यह इंसान नहीं…” उसकी बात अधूरी छूट गई।
मेधा ने तब अयान को एक और बात बताई, जो उसने अब तक किसी से नहीं कही थी—राजवीर मल्होत्रा का केस, जिसे उन्होंने अपने करियर के आखिरी साल में डील किया था। राजवीर ने चार लोगों की हत्या की थी, हर बार बिना कोई सबूत छोड़े। और उसके आखिरी बयान में वह सिर्फ यही कहता रहा: “मैं उनका चेहरा पहन लेता हूँ जो सबसे कम देखे जाते हैं—गार्ड्स, क्लीनर्स, पोस्टमैन। मैं वहीं खड़ा होता हूँ, जहाँ लोग मुझे देखकर भी अनदेखा कर देते हैं।” अदालत ने उसे पागल घोषित किया था, और एक मानसिक अस्पताल में भेज दिया गया था। लेकिन रिकॉर्ड के अनुसार, उसने वहाँ आत्महत्या कर ली थी। लेकिन क्या वो सच था? या क्या उसने अपनी परछाईं किसी और के अंदर ट्रांसफर कर दी थी—किसी ऐसे के अंदर, जो हर जगह हो सकता है, और कोई न पहचाने? उसी पल, स्क्रीन पर फुटेज में लिफ्ट का दरवाज़ा बिना बटन दबाए खुलता है… और कुछ भी नज़र नहीं आता—सिर्फ एक और परछाईं।
अध्याय ५: अतीत की परछाइयाँ
डॉ. मेधा सिंह का फ्लैट उस रात एक बार फिर वैसा ही लग रहा था जैसे वक्त लौट आया हो—दीवारों पर टंगे केस नोट्स, ज़मीन पर बिखरे पुराने अस्पतालों के नक्शे, और बीच में बैठी वो खुद, अतीत से लड़ती एक अनुभवी जासूस जैसी। अयान ने जब सीसीटीवी का आखिरी फुटेज बंद किया, तो उसकी आंखों में सिर्फ संदेह नहीं था—अब डर भी था। “आप कह रही हैं कि ये कोई… आत्मा है?” उसने संकोच के साथ पूछा। मेधा ने सिर हिलाया, “नहीं। मैं कह रही हूँ कि ये कोई ऐसा है जिसने अपनी पहचान का इस्तेमाल करना छोड़ दिया है… अब वो छाया बन चुका है। और ये सब शुरू हुआ था—राजवीर मल्होत्रा से।” उन्होंने अपनी फाइल की सबसे नीचे की दराज से एक पुरानी फोटो निकाली—जिसमें एक दुबला-पतला आदमी, गहरी आंखों वाला, मुस्कुराता हुआ दिख रहा था। “राजवीर, द मास्क्ड आर्टिस्ट।” अयान ने उसे गौर से देखा—चेहरा उसे कहीं देखा-सा लगा, लेकिन वह तय नहीं कर सका कहाँ। मेधा ने बताया कि राजवीर मानसिक रोगी नहीं था; वह एक परफेक्शनिस्ट कलाकार था, जो चेहरे की रेखाओं को हू-ब-हू कॉपी कर सकता था। और उसका दावा था कि वो लोगों की ‘आंतरिक छवियों’ को पहचान सकता है—उनका असली डर, उनकी सबसे छुपी परत।
2009 में, जब मेधा ने राजवीर को पकड़वाया था, तब वह कहता था कि हर इंसान एक मंज़िल पर खड़ा होता है, जो दिखती नहीं—एक मानसिक मंज़िल। “और 13वीं मंज़िल?” अयान ने पूछा। मेधा ने अपनी डायरी की ओर इशारा किया—जिसमें कई गोलाकार चिह्न थे, हर एक एक व्यक्ति की मानसिक स्थिति का प्रतीक। “13वीं मंज़िल हमारे ज़ेहन की वो परत है जहाँ हम अपने सबसे गहरे डर से मिलते हैं। राजवीर ने इन मौतों को रोकने के लिए नहीं, दोहराने के लिए ट्रेनिंग दी थी—एक पैटर्न, एक रिचुअल।” फिर उन्होंने एक और फाइल खोली—राजवीर के भर्ती होने की मेडिकल रिपोर्ट। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात थी—अस्पताल का नाम: धारावी मानसिक पुनर्वास केंद्र, और उससे भी ज़्यादा—उस रिपोर्ट में एक वार्ड बॉय का हस्ताक्षर—नाम: रवि शंकर, वही नाम जो ओशन व्यू की गार्ड ड्यूटी फाइल में हर साल पाया गया था।
अयान अब घबरा चुका था। “क्या आप कह रही हैं कि रवि वही है?” मेधा ने कहा, “शायद रवि राजवीर नहीं… लेकिन उसके ही किसी मानसिक रोग के संपर्क में आया हुआ व्यक्ति है—या वो खुद उस डर का पात्र बन गया है जिसे राजवीर बोता था। ये सिर्फ एक अपराध नहीं, ये मानसिक संक्रमण है।” उन्होंने तुरंत धारावी केंद्र की पुरानी फाइलें निकलवाईं। वहाँ से पता चला कि ‘रवि शंकर’ ने अस्पताल में राजवीर के साथ तीन साल काम किया था, और फिर अचानक गायब हो गया। उसका कोई रेसिडेंशियल रिकॉर्ड नहीं, कोई फैमिली नहीं, कोई बैंक खाता नहीं। जैसे वह कभी अस्तित्व में था ही नहीं—सिर्फ एक नाम, एक शिफ्ट, एक परछाईं। और तभी, जैसे हवा का झोंका कमरे में आया, मेधा की खिड़की अचानक अपने आप खुल गई। बाहर एक गली थी—खाली। लेकिन सामने की बिल्डिंग के शीशे में किसी का प्रतिबिंब थमा हुआ था—लंबा, स्थिर, और सीधा इस तरफ देखता हुआ। अयान दौड़कर खिड़की के पास गया, लेकिन कुछ नहीं था। मेधा ने शांत स्वर में कहा, “हम अब सिर्फ कातिल से नहीं, उसके बनाए आईने से लड़ रहे हैं।”
अध्याय ६: नींद में चलते लोग
1307, ओशन व्यू हाइट्स का सबसे कोना वाला फ्लैट, बाहर से बिल्कुल सामान्य दिखता था—साफ़ दरवाज़ा, पॉटेड प्लांट्स, और नेमप्लेट: “Mr. & Mrs. Kaul.” लेकिन जब अयान और मेधा उस दरवाज़े पर पहुँचे और बेल बजाई, दरवाज़ा खुलते ही एक झिझकभरी मुस्कान के साथ सामने खड़ी महिला ने कहा, “क्या आप वही लोग हैं जो पिछले केस देख रहे हैं?” भीतर बुलाते ही वो जैसे फुसफुसाते हुए बोलने लगी, “मुझे लगता है मैं कुछ ठीक नहीं देख रही…” उसके पति आदित्य भी वहीं बैठे थे—थके हुए, आँखों के नीचे गहरे काले घेरे, और हाथों में कॉफी का मग, जैसे कई रातों से नींद का स्वाद तक भूल चुके हों। “आप समझ नहीं सकते,” आदित्य ने कहा, “हर रात हम उठते हैं… लेकिन खुद नहीं। हम अपने ही बिस्तर में होते हैं, पर पाँवों में मिट्टी लगी होती है। एक रात, मैंने अपनी पत्नी को छत की रेलिंग पर बैठे देखा… सोते हुए। और वो… मुस्कुरा रही थी।” मेधा की आंखों में कुछ चमका, जैसे एक पैटर्न और उभर आया हो।
उन्होंने कपल से अनुरोध किया कि वे अपने कमरे के CCTV या बेबी मॉनिटर जैसी कोई फुटेज दिखाएं। आदित्य ने थोड़ा झिझकते हुए एक रिकॉर्डिंग चलाई—रात के ठीक 3:02 की। वीडियो में दिख रहा था कि सोई हुई महिला अचानक उठती है, बिना किसी हड़बड़ी के, सीधा बालकनी की ओर जाती है, फिर दरवाज़ा खोलती है, और रेलिंग के पास जाकर खड़ी हो जाती है। उसकी आँखें अब भी बंद थीं। अगले फ्रेम में, अचानक कुछ एक सेकेंड के लिए झिलमिलाता है—वो ही धुँधली परछाईं, कैमरे की सबसे कोने वाली जगह से गुजरती हुई। लेकिन इस बार, परछाईं सिर्फ गुजरती नहीं—वो जैसे कमरे के भीतर रुकती है। और अगले फ्रेम में, महिला वापस अपने बिस्तर पर पाई जाती है। जैसे कुछ ‘ने उसे वहाँ रखा हो।’ अयान अब साफ़ समझ रहा था कि ये महज़ sleepwalking नहीं है। ये कुछ और है—जैसे किसी तरह की सामूहिक नींद, जो 13वीं मंज़िल के लोगों को एक लय में बाँधती है—हर रात, एक ही वक्त पर।
मेधा ने तुरंत कमरे के तापमान, ह्यूमिडिटी, और इमारत के आर्किटेक्चरल नक्शे का विश्लेषण करना शुरू किया। उन्होंने बताया, “यहाँ कुछ है—एक जगह जो दिमाग को नींद और जागने के बीच की रेखा पर खड़ा कर देती है। एक स्पेस… जिसे राजवीर ने ‘मानसिक गलियारा’ कहा था। वह गलियारा, जहाँ आप अपने नियंत्रण में नहीं रहते।” उन्होंने 1307 की बालकनी से झाँककर 1301 की ओर इशारा किया। “वहाँ से हर रात कुछ आता है। लेकिन वो कोई इंसान नहीं… वो एक विचार है, एक अनदेखा इशारा।” तभी आदित्य की पत्नी अचानक बोल पड़ी, “वो आज रात आएगा… उसने कहा है ‘अब तुम तैयार हो।’” उसकी आंखें खुली थीं, लेकिन उनमें कोई जीवन नहीं था। अयान और मेधा के रोंगटे खड़े हो गए। उन्होंने देखा—उसके पाँवों के नीचे की ज़मीन गीली थी, जैसे अभी-अभी मिट्टी से लौटी हो। लेकिन बाहर तो सूखा था। सिर्फ एक बालकनी थी… और उस पार, 13वीं मंज़िल का वो अंधकार, जो हर आवाज़ को निगल जाता था।
अध्याय ७: लिफ्ट जो कभी रुकती नहीं
ओशन व्यू हाइट्स की लिफ्ट एकदम सामान्य दिखती थी—स्टील के चमकते दरवाज़े, ऊपर डिजिटल नंबरों की लाल रोशनी, और हर मंज़िल के नाम के सामने एक छोटा-सा बटन। लेकिन जब मेधा ने लिफ्ट इंजीनियरिंग पैनल की लॉगबुक खंगालनी शुरू की, तो जल्द ही एक अजीब पैटर्न सामने आया—हर साल 4 जुलाई को, ठीक 2:57 AM से 3:04 AM के बीच, लिफ्ट स्वतः 13वीं मंज़िल पर गई थी… बिना किसी कॉल बटन के दबे हुए। लिफ्ट टेक्नीशियन ने कहा, “मैम, हमने पूरा सिस्टम ऑटो-सेटिंग पर लॉक किया है। अगर बटन नहीं दबाया गया, लिफ्ट खुद नहीं जाती… लेकिन डेटा कहता है, हर बार वो जाती है… और किसी को ले जाती है।” अयान ने पूछा, “किसे?” जवाब में बस एक खाली, डर से भरा कंधा हिलाया गया। उस रात, मेधा ने तय किया—वो खुद उस वक्त लिफ्ट के भीतर रहेंगी।
रात 2:45 पर, अयान ने पूरे सुरक्षा उपकरण एक्टिव किए—एक इन्फ्रारेड कैमरा, एक ऑडियो रिकॉर्डर, और एक EMF मीटर जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड पकड़ सकता था। मेधा लिफ्ट में खड़ी हुईं—चुप, स्थिर, और पूरी तरह सजग। 2:57 पर लिफ्ट का दरवाज़ा अपने आप बंद हुआ। बिना किसी मंज़िल का बटन दबाए, लिफ्ट ऊपर जाने लगी—6… 7… 9… 11… और फिर… 13। दरवाज़ा खुलते ही हवा का एक ऐसा झोंका भीतर आया जिसमें न कोई ठंड थी, न गर्मी—बस एक अजीब-सी ‘चीज़’ थी। दरवाज़े के सामने कोई खड़ा नहीं था, लेकिन EMF मीटर का सुई पूरी तरह दाएँ झुक गया—मानो कोई शक्तिशाली ऊर्जा वहाँ मौजूद हो। मेधा ने भीतर झाँका—कॉरिडोर बिल्कुल खाली, पर फर्श पर हल्के से गीले पाँवों के निशान थे, जो सीधे 1301 की ओर जा रहे थे। उसी समय, लिफ्ट का कैमरा कुछ पल के लिए झिलमिलाया, और स्क्रीन पर एक फ्रेम के लिए कुछ अजीब नज़र आया—एक चेहरा, उल्टा, क्षणिक, लेकिन बिल्कुल वैसा जैसा राजवीर की पुरानी तस्वीरों में था।
मेधा ने वहीँ से बाहर निकलकर अयान को फोन किया, लेकिन फोन ‘नेटवर्क आउट ऑफ रेंज’ बताता रहा। उन्होंने पीछे मुड़कर देखा—लिफ्ट अब भी खुली थी, लेकिन उसके भीतर का कैमरा अचानक टूट चुका था। तभी उन्हें एक धीमी सी आवाज़ सुनाई दी—जैसे किसी ने फुसफुसाकर कहा हो, “अब तुम मुझे देख सकती हो।” कॉरिडोर में कोई नहीं था। लेकिन दीवारों पर अचानक नमी की धारियाँ बनने लगीं, जैसे अंदर से कुछ रिस रहा हो—कुछ ऐसा जो केवल डर की भाषा में बहता है। मेधा ने तुरंत 1301 की दिशा में देखा, जहाँ दरवाज़ा हल्के से आधा खुला था, और भीतर अंधेरे में एक लाल बिंदी जैसी रोशनी टिमटिमा रही थी—शायद कोई रिकॉर्डिंग डिवाइस, या शायद… कोई आँख? तभी अचानक लिफ्ट अपने आप बंद हुई और नीचे उतर गई—लेकिन इस बार, बटन पैनल पर 13 का नंबर जलता रहा… जैसे अब वो मंज़िल न रुकने वाली थी, बल्कि हर जगह साथ आने वाली थी।
अध्याय ८: बंद खिड़की से छलांग
सुबह की पहली धूप भी ओशन व्यू हाइट्स की 13वीं मंज़िल तक पहुँचने से डरती थी, जैसे इमारत खुद अपनी छाया से घिरी हो। और इसी सुबह, फ्लैट 1304 की बालकनी के नीचे एक और शरीर पाया गया—कमरे के अंदर से बंद खिड़की के बावजूद, कोई नीचे गिर चुका था। मृतक का नाम था राहुल शेट्टी—36 साल का एक ग्राफिक डिज़ाइनर, जो पिछले तीन साल से अकेले 1304 में रह रहा था। खून अब भी बिल्डिंग की मुंडेर से टपक रहा था, लेकिन जब पुलिस ने फ्लैट की तलाशी ली, तो उन्होंने पाया कि खिड़कियाँ अंदर से लॉक थीं, दरवाज़े पर कोई तोड़फोड़ नहीं थी, और कमरे में सारा सामान अपनी जगह पर था—सिवाय एक के—टेबल पर रखे पुराने टेप रिकॉर्डर के, जो अब भी चल रहा था। अयान ने जैसे ही ‘प्ले’ दबाया, टेप में एक धीमी, गहरी आवाज़ गूँजी: “तेरा वक्त हो गया है, अब तू भी देख सकेगा वो जो हमेशा से देख रहा है।” और फिर एक हँसी—लंबी, सर्द, और ऐसी कि खिड़कियाँ अपने आप कंपन करने लगीं।
डॉ. मेधा जैसे किसी पुराने भय में लौट गईं। उन्होंने राहुल का पुराना केस फोल्डर निकाला—उसे नींद की समस्या थी, और कुछ महीनों से वह एक “देखने वाले आदमी” की बात करता था, जो खिड़की के बाहर खड़ा रहता था, हर रात ठीक 3:04 बजे। जब अयान ने पूछा कि क्या उसके कमरे में कोई ड्रग्स मिला, तो फॉरेंसिक टीम ने बताया कि नहीं—शरीर पूरी तरह साफ़ था, कोई नशा, कोई दवा नहीं। लेकिन शरीर पर एक अजीब बात थी—पीठ पर लाल रंग से बने हाथों के पांच निशान… जैसे किसी ने उसे धक्का नहीं दिया, बल्कि खींचकर बाहर गिरा दिया हो। फिर उन्होंने टेप रिकॉर्डर को उल्टा किया—उसमें अंदर की तरफ एक नंबर उकेरा हुआ था: RM-13। मेधा की साँस रुक गई—राजवीर मल्होत्रा। वह अपनी आर्ट के सारे उपकरणों पर यही चिन्ह बनाता था। और इसी टेप के अंदर की रील पर एक हाथ से लिखा हुआ वाक्य मिला: “अब हर खिड़की दरवाज़ा है, और हर दरवाज़ा गिरावट।”
उस शाम, अयान और मेधा ने राहुल के लैपटॉप को एक्सेस किया। उसकी आखिरी डिजिटल आर्ट एक ग्राफिक डिजाइन थी—13वीं मंज़िल की एक बालकनी, और उसपर खड़ा एक गार्ड, जिसके चेहरे पर कोई चेहरा नहीं था—सिर्फ खालीपन। और नीचे एक कैप्शन लिखा था: “ये मैं हूँ, जब मैं सो नहीं रहा होता।” मेधा समझ गईं कि अब ये ‘छाया’ केवल 1301 तक सीमित नहीं रही। उसने पूरे फ्लोर को अपनी गिरफ्त में ले लिया था—हर फ्लैट एक मानसिक दर्पण था, जहाँ रहने वाला अपनी सबसे गहरी परछाईं से मिल रहा था। रात होते ही, 13वीं मंज़िल की लाइट्स एक-एक कर बुझने लगीं। और आख़िरी में जो रौशनी बंद हुई, वो थी—सीसीटीवी कैमरा, जिससे देखने की कोशिश हो रही थी… उस चीज़ को, जो पहले से सब कुछ देख रही थी।
अध्याय ९: सिक्योरिटी गार्ड की सच्चाई
बिल्डिंग के गेट पर बैठे सिक्योरिटी गार्ड से बात करते समय अयान ने उसकी आंखों में झाँकने की कोशिश की। नाम—रवि। उम्र—लगभग चालीस। चेहरा शांत, बिना किसी घबराहट के, मानो वह सब कुछ जानता हो जो लोग सोच भी नहीं सकते। “सर, हर कोई कहता है 13वीं मंज़िल ठीक नहीं है,” रवि बोला, “मगर मैं रोज़ देखता हूँ… कोई आता है… कोई जाता है… पर किसी को याद नहीं रहता।” उसकी आवाज़ स्थिर थी, लेकिन एक अजीब-सी यांत्रिकता उसमें झलक रही थी, जैसे वो स्क्रिप्ट पढ़ रहा हो। मेधा ने उसकी शिफ्ट रिपोर्ट माँगी, लेकिन फाइलों में उसका कोई लॉग ही नहीं था। जितनी बार CCTV चेक किया गया, हर बार 4 जुलाई की रात रवि गार्ड रूम में दिखाई ही नहीं देता—न अंदर, न बाहर। सिर्फ एक चेहरा होता था—कभी साफ़, कभी धुँधला—लेकिन हमेशा वहीं। अयान ने उसकी फोटो खिंचवाकर पुराने क्रिमिनल रिकॉर्ड्स से मैच करने की कोशिश की, और एक चौंकाने वाला मिलान सामने आया—रवि शंकर असल में ‘विनोद आर. सिंह’ था, जो 2011 में एक मानसिक रोगी के तौर पर ‘धारावी मनोचिकित्सा केंद्र’ में भर्ती हुआ था—उसी साल, जब राजवीर मल्होत्रा ने कथित आत्महत्या की थी।
मेधा को अब यकीन हो गया था कि रवि सिर्फ कोई छिपा हुआ नाम नहीं था, वो राजवीर की सोच की प्रतिछाया था। उन्होंने धारावी केंद्र के पुराने डॉक्टर से मुलाकात की। “विनोद?” डॉक्टर ने कहा, “हाँ… वो बहुत ही शांत था। पर उसके सपनों में एक आदमी आता था जो कहता था, ‘तू देखेगा मेरी आँखों से, बोलेगा मेरे मुँह से।’ और कुछ महीने बाद… उसने सचमुच अपनी आँखों में सूई चुभोकर खून से दीवार पर सिर्फ एक नंबर लिखा—13।” उसी वक्त विनोद गायब हो गया था, और अस्पताल ने केस क्लोज कर दिया था। लेकिन अयान ने उसके सारे दस्तावेज़ फिर से मंगवाए—तब उन्हें पता चला कि उसे राजवीर के साथ एक ही वार्ड में रखा गया था, और दोनों में हर रात ‘थेरैपी के दौरान’ बातचीत होती थी। राजवीर ने उसे अपने ‘वर्कशॉप’ में रखा था—जहाँ वह लोगों की मानसिकता को रंग, आकार, और संख्याओं में ढालता था। रवि—या कहें विनोद—राजवीर की सबसे पहली ‘कृति’ था।
जब अयान ने रवि से दोबारा आमने-सामने सवाल पूछा—”क्या तुम विनोद हो?”—तो वो कुछ पल चुप रहा, फिर एकदम शांत स्वर में बोला: “नाम नहीं बदलता, चेहरा बदल जाता है। मैं वही हूँ जिसे वो देख नहीं सके, लेकिन महसूस करते रहे।” उसकी पुतलियाँ उस क्षण एक पल के लिए स्थिर हो गईं—मानो उसकी आँखों के पीछे कोई और देख रहा हो। मेधा ने तब एक छोटी लाल टोर्च निकाली और उसकी आंखों पर चमकाई—पुतलियों की प्रतिक्रिया नहीं हुई। रवि जैसे ट्रान्स में था। फिर वो धीरे से बुदबुदाया, “अब 13 बंद नहीं रहेगा… हर मंज़िल अब वही मंज़िल होगी।” और तभी बिल्डिंग की बिजली एक झटके से बंद हो गई। पूरे ओशन व्यू हाइट्स में अंधेरा छा गया। जब जनरेटर चालू हुआ, तो रवि वहाँ नहीं था—उसकी कुर्सी खाली, टेबल पर खून की एक पतली सी रेखा… और उसके नीचे लिखा था: “वो लौट आया है। अब केवल गिरावट बचेगी।”
अध्याय १०: अंतिम सीढ़ी – 13वीं से नीचे कुछ नहीं
बिजली जाते ही ओशन व्यू हाइट्स जैसे किसी जिंदा शरीर में तब्दील हो गया था—हर दीवार साँस लेने लगी थी, हर मंज़िल पर चुप्पी गूँजने लगी थी। 13वीं मंज़िल की ओर बढ़ते हुए अयान और मेधा को लग रहा था कि वे किसी बिल्डिंग में नहीं, बल्कि एक दिमाग के भीतर उतर रहे हैं—जिसमें हर फ्लैट एक स्मृति है, हर दरवाज़ा एक दबी चीख। जैसे ही वे 13वीं मंज़िल पर पहुँचे, लिफ्ट बंद थी, लाइटें मंद पड़ चुकी थीं, और हवा में किसी पुराने लोशन, स्याही और धूल की मिली-जुली गंध थी। 1301 का दरवाज़ा—अब भी बंद। लेकिन दीवारों पर कुछ नया उभरा था—स्याही से बने चेहरे, दर्जनों चेहरों के बीच एक चेहरा सबसे अलग था—राजवीर का, जिसे मेधा ने पहचान लिया। उसने अयान की ओर देखा, फिर बोली, “अब ये बिल्डिंग कोई जगह नहीं रही, ये उसका कैनवास बन चुकी है।”
1301 का दरवाज़ा जब खुला, तो वहाँ कमरे में एक और दरवाज़ा था—जिसे पहले कभी किसी ने देखा ही नहीं था। वह दरवाज़ा लकड़ी का नहीं, लोहे का था—पुराने हॉस्पिटल वॉर्ड्स में इस्तेमाल होने वाला। उस पर एक प्लेट जड़ी थी: “प्रेक्षण-कक्ष – RJ/Mental Extension No.13.” अयान ने चौंककर पूछा, “ये यहाँ पहले नहीं था।” मेधा ने दरवाज़ा खोला—अंदर एक लंबा गलियारा था, जो किसी मानसिक संस्थान की तरह दिखता था। ट्यूब लाइट की झिलमिलाहट, गूंजती हुई दीवारें, और सबसे अंत में एक कुर्सी, जिस पर एक आकृति बैठी थी। जैसे ही वे पास पहुँचे, कुर्सी पर बैठा आदमी उठा—लंबा, पतला, आँखों में स्थिरता, और होंठों पर वही पुरानी मुस्कान—राजवीर। लेकिन वह ज़िंदा नहीं था, न मरा। वह अब ‘चेतना’ था—संग्रहालय बन चुका एक डर। “मैं कभी नहीं गया,” उसने कहा, “मैं हर उस दिमाग में रहता हूँ जो खुद को नहीं समझता। 13वीं मंज़िल कोई इमारत नहीं… वो तुम्हारा ही बनाया हुआ कमरा है, डॉ. मेधा।”
तभी दीवार पर लहराते हुए शब्द उभरे: “तुमने मुझे रोका था, अब मैं तुम्हें पूरा करूंगा।” अयान आगे बढ़ा, लेकिन फर्श हिलने लगी। मेधा ने उसकी बाँह पकड़ी और कहा, “याद है, मैं क्यों रिटायर हुई थी?” अयान कुछ नहीं बोला। “क्योंकि राजवीर का आखिरी रोगी… मैं थी।” उसका चेहरा सख़्त था, आवाज़ काँप रही थी, “उसने मेरी नींदों में उतरना शुरू कर दिया था। मैं 13 देखती थी… हर जगह… हर सपना, हर चीख… उसने मेरे ही भीतर दरवाज़ा खोला था।” अब वह दरवाज़ा सामने था—वास्तविक रूप में। मेधा ने राजवीर की ओर देखा, और बोली, “अब मैं तुम्हें बंद करती हूँ।” उसने अपनी जेब से एक चाबी निकाली—जो राजवीर के वॉर्ड की अंतिम चाबी थी, जिसे उसने वर्षों पहले छिपा रखा था।
दरवाज़ा जैसे ही बंद हुआ, पूरी मंज़िल काँप उठी—एक अंतिम चीत्कार गूँजा, बिजली लौटी, और वह अतिरिक्त दरवाज़ा जैसे कभी था ही नहीं। 1301 अब खाली था—केवल एक कुर्सी, एक बुझी लाइट, और मेधा की डायरी, जो खुले पन्ने पर एक आखिरी वाक्य लिखा था:
“अब हर मंज़िल सिर्फ एक मंज़िल है… 13वीं नहीं।”
और तभी अयान को अपने फोन पर एक नोटिफिकेशन आया—”CCTV Feed: New motion detected at 1307 – Time: 3:04 AM.”
समाप्त




