हिमांशु वर्मा
१
डॉ. समीर वर्मा के लिए विज्ञान सिर्फ एक पेशा नहीं था—वह उनका जुनून था, उनका सपना था, उनका अस्तित्व था। दिल्ली यूनिवर्सिटी के थ्योरीटिकल फिजिक्स विभाग में कार्यरत समीर उन विरले वैज्ञानिकों में से थे, जो विज्ञान को महज फॉर्मूलों और समीकरणों तक सीमित नहीं मानते थे, बल्कि उसमें जीवन के हर सवाल का जवाब खोजने की कोशिश करते थे।
समीर का बचपन एक छोटे कस्बे में बीता था। वहाँ की धूलभरी गलियों में उन्होंने न जाने कितनी बार तारों को ताकते हुए अपने आप से पूछा था—“क्या हम वाकई वक्त में पीछे जा सकते हैं? क्या अतीत की गलतियों को सुधारा जा सकता है?” यह सवाल उन्हें चैन से सोने नहीं देता था।
कॉलेज के दिनों में उन्होंने आइंस्टीन के रिलेटिविटी थ्योरी से लेकर स्टीफन हॉकिंग के टाइम ट्रेवल के विचारों तक, हर थ्योरी को पढ़ा। उनकी रिसर्च का विषय भी यही था—क्या क्वांटम फिजिक्स के सहारे इंसान अतीत में झाँक सकता है?
समीर का परिवार शुरू में उनकी इस दीवानगी को मज़ाक में लेता था।
“वक़्त को कौन पकड़ पाया है बेटा? ये तो रेत की तरह हाथों से फिसलता है।”
उनकी माँ अक्सर यही कहा करती थीं।
लेकिन समीर के लिए यह सिर्फ एक दर्शन नहीं, बल्कि वैज्ञानिक चुनौती थी।
पीएचडी के बाद उन्होंने एक प्रोजेक्ट शुरू किया—“कालगति और मनुष्य का हस्तक्षेप”—जिसमें उन्होंने समय-रेखा (टाइमलाइन) में बदलाव करने के सैद्धांतिक और प्रायोगिक दोनों तरह के संभावनाओं को खंगालना शुरू किया।
उनका मानना था कि अगर हम क्वांटम यांत्रिकी की ‘सुपरपोजिशन’ और ‘एंटैंगलमेंट’ के सिद्धांतों को सही ढंग से इस्तेमाल करें तो शायद समय की लहरों को मोड़ा जा सकता है। उन्होंने इस पर कई शोध-पत्र भी लिखे, लेकिन अकादमिक जगत में यह विषय विवादास्पद माना जाता था।
“समीर, तुम क्यों वक्त की कश्ती को मोड़ने चले हो?” उनके सहयोगी प्रोफेसर मिश्रा अक्सर कहा करते थे।
“अगर वक्त ने पलट कर हमें मोड़ दिया तो?”
समीर बस मुस्कुरा देते। उनके भीतर एक जुनून धधकता रहता—एक ऐसा जुनून जो उन्हें आगे बढ़ने को मजबूर करता।
समीर की निजी जिंदगी भी उलझी हुई थी। उनके पिता के साथ एक ऐसा झगड़ा हुआ था जिसने रिश्तों में दरार डाल दी थी।
उस झगड़े के बाद उन्होंने घर छोड़ दिया और पढ़ाई में डूब गए। लेकिन उस दिन के बाद से पिता-पुत्र के बीच जो चुप्पी पसर गई थी, वह कभी टूट न सकी।
उनकी माँ जब तक जीवित रहीं, बेटे और पति के बीच संवाद की एक कड़ी बनी रहीं। लेकिन माँ के गुजरने के बाद वह कड़ी भी टूट गई।
उस रोज़ समीर को लगा, काश! वह उस झगड़े को मिटा सकते।
काश! वह अपने पिता को फिर से अपना बना सकते।
यही काश! उन्हें टाइम ट्रेवल मशीन बनाने के लिए प्रेरित करता रहा।
समीर की प्रयोगशाला अब उनका घर बन गई थी। रात के दो-दो बजे तक वह लैब में ही बैठे रहते—कभी सुपर-कंडक्टर के वायर जोड़ते, कभी थ्योरी के नोट्स बनाते।
कभी-कभी उनकी आँखों के नीचे काले घेरे उभर आते।
कॉफी मग के नीचे जले हुए सर्किटों की गंध महसूस होती।
उनकी डायरी में एक वाक्य अक्सर लिखा मिलता—
“अगर वक्त को थामा जा सकता है, तो मैं अपने पिता को वापस पा सकता हूँ।”
कई असफल प्रयोगों के बाद एक दिन, जैसे किस्मत ने उनका दरवाजा खटखटाया।
उन्होंने एक विशेष प्रकार की क्वांटम वेव जेनरेटर और हाई-एनर्जी स्टेबलाइज़र के बीच एक संबंध खोज निकाला।
यह संबंध किसी और की समझ से बाहर था, पर समीर को लगा—यही तो था वो सूत्र, जिसकी तलाश उन्हें बरसों से थी!
उस रात लैब में गहरी खामोशी थी।
कंप्यूटर स्क्रीन पर नीली लाइटें तैर रही थीं।
उनके हाथ काँप रहे थे।
शायद… शायद आज वह वक्त की दीवार के पार झाँक सकते थे।
“बस एक मौका… बस एक मौका मुझे दे दो,” उन्होंने बुदबुदाते हुए कहा।
उस रात उन्हें नींद नहीं आई।
उनकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी।
मशीन को तैयार करने के लिए उन्हें कई तकनीकी पुर्जों की जरूरत थी—एक प्लाज्मा जनरेटर, क्वांटम फिल्टर, और एक टाइम सर्किट।
उन्होंने तुरंत ही अपने असिस्टेंट अर्जुन को बुलाया।
“सर, यह तो बहुत खतरनाक है,” अर्जुन ने घबराते हुए कहा।
“अगर कुछ गलत हो गया तो?”
समीर ने गहरी साँस ली।
“अर्जुन, मैं जानता हूँ यह आसान नहीं होगा। लेकिन अगर यह सफल हो गया, तो इंसान को वक्त से सवाल करने की ताक़त मिल जाएगी।”
अर्जुन चुप हो गया।
वह समीर के जुनून को समझता था, लेकिन उसके भीतर डर भी था—क्या वाकई वक्त के पंखों को मोड़ा जा सकता है?
या यह बस एक पागलपन था?
उस रात समीर ने लैब की लाइट बुझा दी और बाहर निकलकर आसमान की तरफ देखा।
सितारे मानो झिलमिलाते हुए कह रहे थे—“क्या तुम सच में वक्त को बदल सकोगे?”
समीर की मुट्ठी भींच गई।
“हाँ, मैं बदलूँगा। मैं अपने अतीत को फिर से गढ़ूँगा।”
वह नहीं जानते थे—समय के पंख बड़े नाज़ुक होते हैं।
एक बार उड़ जाएँ तो फिर पकड़ में नहीं आते।
२
अभी रात के दो बज रहे थे, और समीर की लैब की बत्तियाँ अब भी जल रही थीं। उसकी आँखों में नींद की लहरें तैर रही थीं, मगर दिल में सवालों की आंधियाँ उठ रही थीं। उसने मशीन का मॉडल फिर से चेक किया—कहीं कोई त्रुटि तो नहीं? टाइम वेव स्टेबलाइज़र, क्रोनो-इंहिबिटर, और क्वांटम वेव जनरेटर सभी सही काम कर रहे थे।
आज की रात उसके लिए किसी इम्तिहान से कम नहीं थी। हर बार जब उसने आँखें मूँद कर मशीन का स्विच ऑन करने की कल्पना की, तो उसके भीतर डर भी उभरता और साथ ही उम्मीद भी। शायद यह मशीन उसे अपने अतीत में ले जा पाए। शायद वह फिर से अपने पिता से मिल सके। शायद वह वह सब कह पाए, जो उस रोज़ गुस्से में कहा था—जिसने बाप-बेटे के बीच एक दरार खींच दी थी।
अतीत… यह शब्द समीर के लिए महज इतिहास नहीं था, बल्कि एक ऐसा ज़िंदा सच था जो हर रोज़ उसके दिल में टीसता था।
एक बार फिर मशीन के सामने खड़े होकर उसने अपनी आँखें बंद कीं और अपने गाँव के रास्ते याद करने लगा। बचपन की धूलभरी गलियाँ, माँ के हाथों का स्वाद, और पिता की वो कड़क आवाज़ जब वह होमवर्क ठीक से नहीं करता था। वह सब कुछ जैसे उसकी आँखों के सामने घूमने लगा।
एक बार तो उसका मन हुआ कि मशीन को चालू करे और सीधे उस दिन पहुँचे—जिस दिन सब कुछ टूट गया था। मगर एक डर भी उसके भीतर था—क्या वाकई मशीन उसे उस दिन पहुँचा देगी? और अगर पहुँचा देगी, तो क्या वह वहाँ कुछ बदल पाएगा?
समीर के हाथ काँप गए। उसने सोचा, “क्या मैं सच में अतीत बदल सकता हूँ? या फिर यह सब एक भ्रम है?”
उसे याद आया—कॉलेज के दिनों में उसकी एक दोस्त थी, काव्या। उनकी दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला। लेकिन पढ़ाई के जुनून में उसने उसे खो दिया।
कितनी बार उसने सोचा—काश! काव्या को वक्त रहते रोक पाता। काश! अपने अहंकार को छोड़कर उससे माफी माँग लेता। लेकिन अब वह बहुत दूर थी—कहाँ, कैसे, कुछ पता नहीं।
आज मशीन के सामने खड़े होकर उसे काव्या की मुस्कान याद आई। क्या वह वक्त की लहरों को मोड़कर काव्या को फिर से पा सकता है?
उसके दिल में एक सवाल उठा—“अगर मैं अतीत में जाकर किसी एक रिश्ते को जोड़ूँ, तो क्या बाकी रिश्ते भी वैसे ही रहेंगे? या फिर हर बदलाव की एक कीमत चुकानी होगी?”
मशीन की स्क्रीन पर टाइम कोऑर्डिनेट चमक रहे थे।
२१ जून २०१०
११ नवम्बर २००५
३० मार्च १९९८
हर तारीख के साथ उसके सीने में दर्द उठता।
२१ जून २०१०—वही दिन जब उसके पापा से उसका बड़ा झगड़ा हुआ था।
११ नवम्बर २००५—जब काव्या हमेशा के लिए उसकी ज़िंदगी से चली गई थी।
३० मार्च १९९८—जब उसने पहली बार अपने सपनों को पंख दिए थे।
समीर ने गहरी साँस ली। “क्या करूँ? किस दिन जाऊँ?”
उसने महसूस किया कि वक्त के साथ खेलना कोई आसान बात नहीं। एक छोटा सा बदलाव भी पूरी जिंदगी की तस्वीर को बदल सकता है। उसने सुना था कि टाइम-ट्रेवल थ्योरी में ‘बटरफ्लाई इफेक्ट’ जैसी चीज़ होती है—जहाँ एक तितली के पर फड़फड़ाने से भी तूफ़ान आ सकता है।
क्या उसके एक फैसले से किसी और की ज़िंदगी में भूचाल आ जाएगा?
तभी मशीन के भीतर से एक गूँज सी आई—जैसे उसके पिता की आवाज़ उसे पुकार रही हो।
“समीर… बेटा… मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ।”
समीर का दिल काँप गया। वह स्क्रीन को देखने लगा।
“पापा… क्या आप सच में मुझे पुकार रहे हैं?”
स्क्रीन पर एक चेतावनी चमकी: Temporal Destination Locked. Caution: Irreversible Consequences Possible.
समीर ने मशीन की तरफ देखा। उसने मन ही मन खुद से कहा, “मैं अपने पापा को फिर से पाना चाहता हूँ, लेकिन अगर इसकी कीमत मुझे किसी और के आँसू से चुकानी पड़ी तो?”
उसके हाथ मशीन के स्विच पर थे। उसका दिल कह रहा था—जाओ! अपने रिश्ते जोड़ लो।
लेकिन उसका वैज्ञानिक मन चेतावनी दे रहा था—एक बार वक्त के पंख फैल जाएँ, तो उन्हें रोकना आसान नहीं होगा।
वह दुविधा में था।
अचानक लैब के दरवाजे पर अर्जुन की आवाज़ आई, “सर! आप ठीक तो हैं न?”
समीर ने सिर उठाकर उसकी तरफ देखा और मुस्कराया। “हाँ अर्जुन, मैं ठीक हूँ। बस… अपने अतीत से एक सवाल पूछने जा रहा हूँ।”
और उसने मशीन का स्विच ऑन कर दिया।
मशीन की तेज़ रोशनी उसके चारों ओर फैली, जैसे वक्त की लहरें उसे घेर रही हों। समीर की आँखों में आँसू थे—डर के, उम्मीद के, प्यार के।उसने आँखें बंद कर लीं और खुद को वक्त के पंखों के हवाले कर दिया।
३
मशीन की तेज़ रोशनी जैसे समीर को अपनी बाहों में समेट रही थी। उसकी पलकों के नीचे से चमकती हुई लहरें निकलकर उसके चारों ओर फैल रही थीं।
फिर एकाएक सब कुछ शांत हो गया। उसकी साँसें तेज़ हो गईं, दिल की धड़कनें जैसे किसी पुराने गीत की धुन पर बज रही थीं। वह महसूस कर सकता था कि उसके पैरों के नीचे की ज़मीन बदल रही है—जैसे वह किसी और समय, किसी और जगह पर पहुँच गया हो।
उसने आँखें खोलीं। सामने वही पुराना स्कूल था जहाँ उसने पहली बार अपने पापा के साथ कदम रखा था। उसकी आँखों में नमी भर आई।
समीर ने देखा—स्कूल का मैदान, बच्चों की हँसी, और मैदान के एक कोने में खड़े उसके पापा। पापा की आँखों में वही कड़कती हुई रोशनी थी, जो हर बार उसे होमवर्क पूरा न करने पर डांट देती थी।
उसके कदम अनायास ही पापा की तरफ बढ़ने लगे।
“पापा…” उसकी आवाज़ भीग गई थी।
मगर तभी एक आवाज़ गूँजी, “बेटा, तुम कौन हो?”
समीर चौंक गया। सामने वही नौ-दस साल का बच्चा खड़ा था, जो उसका छोटा रूप था—छोटा समीर!
“ये… मैं… मैं…” समीर शब्दों में उलझ गया।
छोटा समीर अपने पापा का हाथ पकड़कर खड़ा था। पापा मुस्कराकर छोटे समीर को थपकी दे रहे थे।
“पापा, होमवर्क तो कर लिया न?”
“हाँ पापा,” छोटे समीर ने डरते-डरते कहा।
समीर की आँखों के सामने वह दृश्य था, जब उसके पापा ने उसे डांटा था। वही दिन जिसने उनके रिश्ते को कड़वाहट में बदल दिया था।
“काश! मैं उस दिन कुछ और कह पाता,” समीर के दिल में हूक उठी।
तभी मशीन के भीतर से आवाज़ आई—“अतीत में बदलाव करना खतरनाक हो सकता है।”
समीर चौंककर मशीन की ओर देखने लगा। मगर वहाँ कुछ नहीं था—शायद उसका दिमाग ही चेतावनी दे रहा था।
“क्या मैं वाकई अतीत बदल सकता हूँ?” उसने खुद से पूछा।
उसने देखा—पापा धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ रहे थे। उनके चेहरे पर मुस्कान थी, मगर उनकी आँखों में थकान भी झलक रही थी।
“पापा, मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ,” समीर ने हिम्मत करके कहा।
पापा ने उसे देखा, जैसे कोई अजनबी देख रहा हो। “बेटा, तुम कौन हो? तुम्हारा चेहरा जाना-पहचाना सा लगता है, लेकिन मैं पहचान नहीं पा रहा।”
समीर की आँखों में आँसू आ गए। “पापा… मैं वही हूँ… आपका बेटा… समीर…”
पापा की आँखें भरी हुई थीं। “समीर? लेकिन तुम तो अभी… ये सब क्या है बेटा?”
समीर के दिल में कुछ टूटकर बिखर गया। “पापा, मैं… मैं बहुत सालों से आपसे माफी माँगना चाहता था। उस दिन जो कुछ भी हुआ… मेरी गलती थी पापा।”
पापा का चेहरा बुझ गया। “गलती? बेटा, मैंने भी बहुत गलतियाँ की हैं। शायद मैंने तुम्हें समझने की कोशिश नहीं की।”
समीर ने हाथ पकड़ लिया। “नहीं पापा, मुझे ही आपको समझना चाहिए था। आपसे बात करनी चाहिए थी। हम दोनों ही अपनी-अपनी गलतियों में उलझ गए।”
मशीन की आवाज़ फिर गूँजी, “तुमने अपने अतीत को देख लिया, लेकिन याद रखो—यहाँ कोई भी बदलाव स्थायी नहीं रहेगा। वक्त की नदी में सिर्फ एक पल का ठहराव होता है, फिर सब बह जाता है।”
समीर की आँखों से आँसू बह रहे थे। “लेकिन मैं माफी माँगना चाहता हूँ। मैं आपके साथ खड़े होकर फिर से सबकुछ ठीक करना चाहता हूँ।”
पापा ने मुस्कराते हुए कहा, “बेटा, अगर तुमने दिल से माफी माँग ली है, तो वही काफी है। वक्त का पंख छूकर भी लौटता नहीं। अब तुम्हें अपने वर्तमान में लौटना होगा।”
समीर ने पापा को गले लगाया। पापा ने भी उसे भींच लिया।
“बेटा, वक्त के पंखों को थामने की कोशिश मत करो। जो बीत गया, उसे स्वीकार कर लो।”
समीर ने आँसू पोंछे और मशीन की तरफ देखा। तेज़ रोशनी एक बार फिर उसके चारों ओर फैलने लगी थी।
वह जान गया—अतीत को बदलना संभव नहीं था, लेकिन माफी माँगकर दिल को हल्का किया जा सकता था।
मशीन की तेज़ आवाज़ के साथ समीर फिर से अपनी लैब में लौट आया। उसकी आँखों में आँसू थे, मगर दिल में एक सुकून भी था। अब वह जानता था—वक्त के पर को थामने की कोशिश बेकार है।अब वक्त था—भविष्य की ओर देखने का।
४
लैब में लौटते ही समीर को कुछ बदला-बदला सा महसूस हुआ। मशीन की स्क्रीन पर हल्की-हल्की झिलमिलाहट थी, जैसे उसने अभी-अभी कोई लंबी यात्रा पूरी की हो।
समीर ने गहरी साँस ली। अब वह जान चुका था कि अतीत को बदलना आसान नहीं है। लेकिन क्या भविष्य में भी उसे यही चुनौतियाँ मिलने वाली हैं?
मशीन की नई चेतावनी
मशीन की स्क्रीन पर चमकता हुआ एक संदेश दिखाई दिया: “टेम्पोरल कोर स्टेबिलिटी लो। फ्यूचर ट्रिप रिज़्की।”
समीर ने माथा ठनका। “क्या अब भविष्य में जाना भी खतरनाक है?”
मशीन की आवाज़ आई, “टेम्पोरल कोर अस्थिर होने के कारण भविष्य में यात्रा के दौरान वास्तविकता में दरार आ सकती है। एक गलत कदम, और सब कुछ उलट-पलट हो सकता है।”
उसी वक्त अर्जुन लैब में आया। “सर, आप ठीक हैं?”
समीर ने अर्जुन को देखकर हल्की मुस्कान दी। “हाँ, मैं ठीक हूँ। लेकिन हमारी मशीन को कुछ दिक्कतें हो रही हैं।”
अर्जुन ने मशीन का डेटा चेक किया। “सर, यह तो गंभीर मामला है। अगर टेम्पोरल कोर अस्थिर हो गया, तो हम भविष्य में जाकर वापस नहीं लौट पाएँगे। या फिर लौटे भी तो शायद वही दुनिया न मिले।”
समीर ने अर्जुन की ओर देखा। “मगर अर्जुन, हमें यह जोखिम उठाना होगा। मुझे पता करना है कि भविष्य में मेरे बनाए हुए बदलावों का क्या असर होगा।”
मशीन की स्क्रीन पर एक और तारीख़ चमकी: ५ अगस्त २०३५
समीर के दिल में हलचल हुई। “२०३५… यानी आज से दस साल बाद! क्या मैं वाकई वहाँ जा सकता हूँ?”
अर्जुन ने कहा, “सर, हमें सतर्क रहना होगा। भविष्य में हमारी छोटी-सी गलती भी बड़ी मुसीबत बन सकती है।”
समीर ने आँखें बंद कर लीं। उसने महसूस किया कि भविष्य एक अनदेखी किताब की तरह है, जिसके हर पन्ने पर अनिश्चितताएँ दर्ज हैं।
“अर्जुन, मुझे जाना ही होगा,” समीर ने दृढ़ आवाज़ में कहा।
अर्जुन ने मशीन की ओर देखा। “सर, एक बार आप भविष्य में गए तो सब कुछ बदल सकता है।”
समीर ने कहा, “अगर मैं यह जोखिम नहीं उठाऊँगा, तो मुझे कभी यह पता नहीं चलेगा कि मेरे आज के फैसलों का कल क्या होगा।”
अर्जुन ने सिर झुकाया। “ठीक है, सर। मैं मशीन तैयार कर देता हूँ।”
मशीन की स्क्रीन पर अब तेज़ रोशनी फैल गई थी। समीर ने अपनी जगह संभाली। उसकी साँसें तेज़ हो गईं। अर्जुन ने मशीन का स्विच ऑन किया।
“सर, सुरक्षित रहिएगा,” अर्जुन ने धीरे से कहा।
समीर ने मुस्कराकर उसकी ओर देखा। “धन्यवाद अर्जुन। वक्त के पंख मुझे ले जाएँगे, लेकिन मैं लौटकर आऊँगा।”
एक पल में समीर के चारों ओर रोशनी फैली और फिर सब कुछ बदल गया। अब वह एक नई दुनिया में था—२०३५ का भविष्य।
उसने देखा—इमारतें कुछ बदली-बदली सी थीं। सड़कों पर इलेक्ट्रिक गाड़ियाँ दौड़ रही थीं, और हर जगह होलोग्राम विज्ञापन थे। लोग अजीब-से कपड़े पहने हुए थे। समीर ने महसूस किया कि वक्त के पंख उसे बहुत दूर ले आए थे।
लेकिन उसका दिल अब भी धड़क रहा था—कहीं ऐसा तो नहीं कि उसने जो बीज अतीत में बोए थे, उनका असर इस भविष्य में किसी अनहोनी के रूप में सामने आ जाए?
उसने ठान लिया—अब चाहे जो भी हो, उसे सच का सामना करना होगा।
५
२०३५ के उस चमकते शहर में समीर को हर चीज़ अजीब लग रही थी। ऊँची-ऊँची इमारतें, सड़क पर दौड़ती इलेक्ट्रिक गाड़ियाँ, और हर तरफ़ होलोग्राम्स की चकाचौंध। ये सब देखकर उसका सिर चकरा रहा था।
उसने धीरे-धीरे कदम बढ़ाए और चारों तरफ़ देखा। हर इंसान के कानों में वायरलेस इयरबड्स थे और उनकी आँखों पर चमकती स्क्रीनें। मानो इंसान और मशीनों का फर्क ही मिट गया था।
समीर ने मन ही मन सोचा—”अगर मैं यहाँ आया हूँ तो मुझे अर्जुन को ढूँढना होगा। शायद वो भी इस भविष्य में किसी रूप में मौजूद हो।”
वह एक पार्क के किनारे पहुँचा, जहाँ कुछ लोग अपने होलोग्राम डिवाइस पर गेम खेल रहे थे। तभी उसकी नज़र एक बूढ़े आदमी पर पड़ी। उसके चेहरे पर झुर्रियाँ थीं, लेकिन उसकी आँखों में वही चमक थी जो अर्जुन की होती थी।
“अर्जुन?” समीर की आवाज़ काँप गई।
उस बूढ़े आदमी ने आँखें उठाकर देखा। “तुम… तुम समीर हो? ये कैसे हो सकता है? तुम तो…”
समीर ने हाथ थाम लिया। “मैं टाइम मशीन से आया हूँ। तुम्हें ढूँढने के लिए।”
अर्जुन की आँखों में आँसू आ गए। “समीर… तुम्हारे जाने के बाद सब कुछ बदल गया। तुम्हारी मशीन ने दुनिया की वास्तविकता को हिला कर रख दिया। वक्त के साथ खेलना बहुत महँगा पड़ा।”
समीर के दिल में हूक उठी। “मैंने तो बस अतीत में कुछ ठीक करने की कोशिश की थी।”
अर्जुन ने गहरी साँस ली। “ठीक करना? अरे समीर, तुमने अतीत को छूकर उस समय की धाराओं को तोड़ दिया। यहाँ तक कि कई शहर तबाह हो गए। अर्थव्यवस्था बिगड़ गई, और सरकारों ने टाइम ट्रेवल को गैरकानूनी घोषित कर दिया।”
समीर ने अपनी आँखें पोंछी। “मगर… मैंने तो किसी को नुकसान पहुँचाने की कोशिश नहीं की थी।”
अर्जुन ने हाथ पकड़ लिया। “समीर, विज्ञान के साथ खेलना खतरनाक होता है। समय के पंख इतने नाज़ुक होते हैं कि हल्की सी हवा भी उन्हें गिरा सकती है।”
समीर के दिल में अपराधबोध घर कर गया। “क्या अब भी कुछ सुधारा जा सकता है, अर्जुन?”
अर्जुन ने आँखें झुका लीं। “अब बहुत देर हो चुकी है। कई जगह गृहयुद्ध शुरू हो चुके हैं, और पर्यावरणीय संकट ने शहरों को तबाह कर दिया है। लोग भविष्य से डरने लगे हैं। उन्होंने अपनी आँखों से टाइम ट्रेवल के विनाश को देखा है।”
समीर ने सिर झुका लिया। “तो ये मेरी वजह से हुआ?”
अर्जुन ने कहा, “तुम्हारा इरादा सही था, लेकिन नीयत और नतीजों में फर्क होता है। विज्ञान को सिर्फ प्रयोगशाला में नहीं, समाज में भी समझना होता है।”
अर्जुन ने मशीन की ओर इशारा किया। “देखो, तुम्हारी मशीन यहाँ भी काम कर रही है, लेकिन अब उसकी एनर्जी को रोकने के लिए सरकार ने टेम्पोरल शील्ड बना दिए हैं। अगर तुमने वापस जाने की कोशिश की, तो शायद तुम्हें हमेशा के लिए यहीं कैद कर दिया जाएगा।”
समीर के रोंगटे खड़े हो गए। “यानी मैं यहाँ फँस सकता हूँ?”
अर्जुन ने गंभीरता से सिर हिलाया। “हाँ, समीर। अब तुम्हारे पास एक ही रास्ता है—तुम्हें मशीन बंद करनी होगी, ताकि बाकी दुनिया और ज्यादा प्रभावित न हो।”
समीर ने गहरी साँस ली। उसके सामने दो रास्ते थे—या तो वह मशीन को हमेशा के लिए बंद कर दे और भविष्य की दुनिया को बचा ले, या फिर अपनी जिज्ञासा के चलते और भी विनाश मचाए।
उसने अर्जुन की ओर देखा। “अर्जुन, तुम हमेशा मेरे दोस्त रहोगे। तुम्हारी चेतावनी मुझे याद रहेगी।”
अर्जुन ने हल्की मुस्कान दी। “समीर, वक्त के पर को थामने की कोशिश मत करो। जो बीत गया, उसे स्वीकार कर लो। और जो आने वाला है, उसे जीने दो।”
समीर ने मशीन के पैनल की तरफ़ हाथ बढ़ाया। एक गहरी साँस लेकर उसने मशीन को बंद कर दिया। उसकी आँखों में आँसू थे, मगर अब उसका दिल हल्का था।
उसने तय कर लिया—अब वह वर्तमान को जीएगा।
६
समीर ने मशीन को बंद कर दिया था, लेकिन उसके दिल में तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा था। भविष्य के उस विनाश ने उसे भीतर तक झकझोर दिया था। उसने महसूस किया कि उसने विज्ञान के साथ खिलवाड़ करके अपने ही भविष्य को संकट में डाल दिया था।
अब वह अपनी लैब में खड़ा था। उसकी मशीन अब भी उसी जगह पर थी—मगर बंद। एक ठंडी हवा कमरे में बह रही थी, जैसे वह भी उसे चेतावनी दे रही हो।
समीर ने मशीन को देखते हुए कहा, “कितनी बड़ी भूल कर दी मैंने… एक छोटे से बदलाव ने कितने ही लोगों का जीवन बदल दिया।”
अर्जुन की आवाज़ उसके कानों में गूँज रही थी, “समीर, वक्त के पर को थामने की कोशिश मत करो।”
वह अपराधबोध की आग में जलने लगा। उसने खुद को ही माफ़ नहीं किया था।
वह धीरे-धीरे लैब के एक कोने में पहुँचा, जहाँ उसकी पुरानी डायरियाँ रखी थीं। उसने एक डायरी निकाली और उसके पन्ने पलटने लगा। उसमें दर्ज था—“मैं अपने पापा से माफी माँगना चाहता हूँ।”
उसने पन्ना पलटा—“मैंने टाइम मशीन इसलिए बनाई ताकि मैं अतीत में जाकर अपने पापा को बता सकूँ कि मैं उन्हें कितना प्यार करता हूँ।”
एक आँसू पन्ने पर टपक पड़ा। “पापा, मैंने आपसे माफी माँगी, लेकिन मेरी जिद ने पूरी दुनिया को मुश्किल में डाल दिया।”
तभी दरवाज़ा खुला और अर्जुन अंदर आया। उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं।
“सर, आप ठीक तो हैं?”
समीर ने आँसू पोंछे और कहा, “अर्जुन, मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी है। टाइम मशीन को कभी नहीं बनाना चाहिए था।”
अर्जुन ने उसकी पीठ थपथपाई। “सर, आपने जो किया वो इंसान होने के नाते किया। हम सभी अपने अतीत से लड़ते हैं, पर विज्ञान हमें यह सिखाता है कि हर चीज़ का एक दायरा होता है।”
अचानक अर्जुन का फोन बजा। उसने घबराकर फोन उठाया।
“हाँ… जी सर…” अर्जुन की आवाज़ काँप रही थी।
फोन रखते ही उसने समीर की ओर देखा। “सर, सरकार ने आदेश दिया है कि आपकी मशीन को तुरंत नष्ट किया जाए। उन्हें डर है कि कोई और इसका दुरुपयोग कर सकता है।”
समीर का दिल काँप गया। “यानी अब ये मशीन मेरी नहीं रही?”
अर्जुन ने कहा, “सर, ये मशीन अब भी आपकी है, लेकिन इसके परिणाम पूरी दुनिया को भुगतने पड़ सकते हैं। सरकार इसे बंद करना चाहती है।”
समीर ने मशीन की ओर देखा। उसकी आँखों में आँसू थे, मगर चेहरे पर दृढ़ता भी थी।
“अर्जुन, अगर यही रास्ता है तो मुझे इसे खत्म करना ही होगा।”
अर्जुन ने कहा, “सर, ये आसान नहीं होगा। सरकार की टीमें आने वाली हैं। अगर आपने मशीन को नष्ट किया, तो वे आप पर केस भी कर सकते हैं।”
समीर ने मुस्कराते हुए कहा, “मुझे परवाह नहीं। मैंने गलती की है तो उसकी सजा भी भुगतूँगा।”
समीर ने अर्जुन की मदद से मशीन को धीरे-धीरे खोलना शुरू किया। हर पेंच खोलते हुए उसके दिल में अजीब-सी बेचैनी हो रही थी।
“ये वही मशीन है जिसने मुझे मेरे पापा से मिलवाया… लेकिन इसने मुझे मेरे सपनों से भी जुदा कर दिया।”
आखिरकार उसने मशीन का ‘टेम्पोरल कोर’ निकाला और ज़ोर से फर्श पर पटक दिया। एक ज़ोरदार आवाज़ के साथ कोर टूट गया और मशीन का सारा सिस्टम ब्लैकआउट हो गया।
समीर ने ठंडी साँस ली। अब मशीन का कोई अस्तित्व नहीं था।
“अब कोई भी समय से नहीं खेलेगा,” उसने खुद से कहा।
अर्जुन ने उसके कंधे पर हाथ रखा। “सर, आपने सही किया।”
समीर ने मशीन की राख को देखा और महसूस किया कि वर्तमान ही सबसे बड़ी सच्चाई है। अब वह जानता था कि अतीत में झाँककर भी भविष्य को नहीं बदला जा सकता। वक्त के पर को थामने की कोशिश छोड़कर उसे वर्तमान को गले लगाना होगा।
७
समीर ने मशीन को नष्ट करके वर्तमान में वापस आने की ठान ली थी। लेकिन उसके भीतर का अपराधबोध अब भी उसे चैन नहीं लेने दे रहा था। उसे लग रहा था जैसे हर पल उसकी बनाई गलतियों का हिसाब माँगा जा रहा हो। अर्जुन के फोन पर एक बार फिर कॉल आया।
“सर, सरकार के अधिकारी आपसे मिलना चाहते हैं,” अर्जुन ने घबराकर कहा।
समीर ने गहरी सांस ली। “ठीक है अर्जुन, जो होगा देखा जाएगा।”
कुछ देर बाद दो सरकारी अधिकारी लैब में आए। उनके साथ कुछ सुरक्षाकर्मी भी थे। उनके हाथ में फाइलें और टैबलेट थे।
“डॉ. समीर राठौर?”
“हाँ,” समीर ने जवाब दिया।
“हम आपके टाइम ट्रेवल प्रयोग के संबंध में जाँच करने आए हैं,” अधिकारी ने कहा।
समीर ने चुपचाप सिर हिलाया। अधिकारी ने कड़ाई से पूछा, “क्या आप मानते हैं कि आपकी मशीन ने समयरेखा को प्रभावित किया है?”
समीर ने धीरे से कहा, “हाँ, मुझे एहसास है कि मेरी मशीन ने अनजाने में कई लोगों की ज़िंदगियों को बदला है।”
“क्या आपको अंदाजा था कि इससे गृहयुद्ध, पर्यावरणीय संकट और सामाजिक असंतुलन जैसी समस्याएँ पैदा होंगी?”
समीर ने आँसू भरी आँखों से कहा, “नहीं, मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था। मैं तो बस अपने अतीत की गलतियाँ सुधारना चाहता था।”
अधिकारी ने कड़ा रुख अपनाया। “डॉ. राठौर, विज्ञान में नीयत से ज़्यादा ज़रूरी नतीजे होते हैं। आपका प्रयोग असफल साबित हुआ है, और इसकी सजा आपको भुगतनी होगी।”
समीर का दिल बैठ गया। उसने अर्जुन की ओर देखा, जो चुपचाप खड़ा था।
“सर,” अर्जुन ने धीरे से कहा, “आपने अपनी गलती मानी है, यही सबसे बड़ा साहस है।”
समीर ने आँसू पोंछते हुए कहा, “अर्जुन, मुझे लगता है जैसे वक्त खुद मुझसे हिसाब माँग रहा है।”
अधिकारी ने कहा, “आपकी मशीन का कोर जब्त कर लिया जाएगा। अगर आप फिर से ऐसा प्रयोग करने की कोशिश करेंगे, तो आपको सख्त सजा दी जाएगी।”
समीर ने ठंडी साँस ली। “मैंने मशीन को नष्ट कर दिया है। अब मैं सिर्फ अपने आज को जीना चाहता हूँ।”
सरकारी अधिकारियों ने फाइलें बंद कीं और निकल गए। समीर और अर्जुन चुपचाप खड़े रहे।
अर्जुन ने समीर के कंधे पर हाथ रखा। “सर, जो हुआ सो हुआ। अब हमें अपने वर्तमान को सुधारना होगा ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी मुस्कुरा सकें।”
समीर ने अर्जुन की ओर देखा। “हाँ अर्जुन, वक्त के पंख मैंने खुद तोड़ दिए हैं। लेकिन अब मैं इंसानियत के पंखों को उड़ने दूँगा।”
समीर ने आसमान की ओर देखा। भविष्य अब भी अनिश्चित था, लेकिन उसने अपने दिल में ठान लिया था—वह अब भविष्य को विज्ञान की प्रयोगशाला में नहीं, बल्कि इंसानियत के दिलों में ढूँढेगा।
८
समीर की आँखों में आसमान के बदलते रंगों की छाया झिलमिला रही थी। उसने अपनी लैब की खिड़की से बाहर झाँका। सूरज की किरणें धीरे-धीरे डूब रही थीं, और एक नई रात दस्तक दे रही थी। यह रात उसके लिए सिर्फ एक और रात नहीं थी, बल्कि बीते कल और आने वाले कल के बीच एक पुल बन गई थी।
समीर ने अर्जुन की ओर देखा, जो चुपचाप उसकी मेज के पास खड़ा था। अर्जुन ने कहा, “सर, आज आपने जो किया, उससे दुनिया को एक नया सबक मिला है। आपने हमें सिखाया है कि विज्ञान के पंख हमें आसमान तक तो ले जा सकते हैं, लेकिन उसके पर बहुत नाज़ुक होते हैं।”
समीर ने गहरी साँस ली। “अर्जुन, मैंने अपनी आँखों से देखा कि समय के साथ खेलना कितना खतरनाक हो सकता है। मुझे लगता था कि मैं अपने अतीत को सुधार सकता हूँ, लेकिन असल में मैंने अपने वर्तमान को भी चोट पहुँचाई।”
अर्जुन ने मुस्कराकर कहा, “गलतियाँ इंसान की सबसे बड़ी सीख होती हैं, सर।”
समीर ने अपनी मशीन की ओर देखा, जो अब केवल टूटे हुए तारों और मलबे का ढेर बन चुकी थी। उसने अपने हाथों से उस मशीन का सपना बुना था, लेकिन आज वही सपना उसकी आँखों से बहकर उसकी हथेलियों से फिसल गया।
“मैंने अपनी मशीन को खुद नष्ट किया है, ताकि कोई और इससे खिलवाड़ न कर सके,” समीर ने धीमे स्वर में कहा।
अर्जुन ने कहा, “सर, आपसे अच्छा कौन जान सकता है कि वक्त को मोड़ने की कोशिश करना इंसान की सबसे बड़ी भूल होती है।”
समीर ने धीरे-धीरे अपनी डायरी उठाई। उसने उस पर लिखा:
“मैंने अपने सपनों को पाने के लिए वक्त के पर थामने की कोशिश की, लेकिन आज समझ गया हूँ—वक्त किसी का गुलाम नहीं होता। वह बहता है, और हमें उसके साथ बहना सीखना होगा। मैं वादा करता हूँ कि अब से मैं अपने वर्तमान को ही संवारूँगा, ताकि भविष्य भी मुस्कुरा सके।”
उसने कलम रख दी और अर्जुन की ओर देखा। “अर्जुन, तुम मेरी आखिरी उम्मीद हो। वक्त के पंखों को मत छुओ, उन्हें उड़ने दो।”
अर्जुन ने मुस्कराकर कहा, “सर, मैं वादा करता हूँ।”
समीर ने एक गहरी साँस ली और लैब से बाहर निकल आया। हवा में ठंडक थी, लेकिन उसमें एक अजीब-सी राहत भी थी। उसने आसमान की ओर देखा—तारों की झिलमिलाहट में उसे अपने पापा का चेहरा दिख रहा था।
“पापा, मैं अब अतीत में नहीं जाऊँगा। मैं यहीं रहूँगा—वर्तमान में,” उसने मन ही मन कहा।
समीर के कदमों ने एक नई दिशा पकड़ ली थी। वक्त के पंख उसके हाथ से छूट चुके थे, लेकिन इंसानियत के पर अब भी खुले थे। समीर ने तय कर लिया था—अब वह विज्ञान के प्रयोगों से नहीं, इंसानियत की मुस्कान से इतिहास रचेगा।
समय के पर अब भी हवा में थे, लेकिन अब उन्हें कोई बाँध नहीं सकता था। यह कहानी यहाँ खत्म होती है, लेकिन समीर की यात्रा अभी बाकी है—अपने वर्तमान को बेहतर बनाने की यात्रा।
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