राहुल भार्गव
अध्याय 1: मौत ऑपरेशन थिएटर में
सुबह के सात बजे का वक्त था, जब शहर के मशहूर नवरत्न मल्टी-स्पेशलिटी हॉस्पिटल की दीवारें अपने अंदर एक गहरा रहस्य समेटे खामोश खड़ी थीं। अस्पताल की कांच की दीवारों से धूप की हल्की किरणें भीतर झांक रही थीं, लेकिन उनकी चमक अस्पताल के स्टाफ की घबराहट के सामने फीकी पड़ गई थी। ऑपरेशन थिएटर नंबर तीन के दरवाजे के बाहर नर्सें, जूनियर डॉक्टर्स और वार्ड बॉय जमा थे, जिनकी आंखों में डर और हैरानी दोनों थे। भीतर से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, लेकिन दरवाजे के निचले हिस्से से खून की एक पतली धारा धीरे-धीरे रिसती हुई गलियारे में फैलती जा रही थी। इंचार्ज नर्स ने कांपते हाथों से अस्पताल के एडमिन ऑफिस को कॉल लगाया और बेमन से धीरे कहा, “सर… ऑपरेशन थिएटर में कुछ गड़बड़ हो गई है… डॉक्टर मीतल शाह अंदर हैं… और दरवाज़ा लॉक है…”। फोन रखते ही उसने अपने माथे से पसीने की बूंदें पोछीं और डरते हुए दरवाजे पर एक बार फिर कान लगाया, शायद कोई हलचल सुनाई दे जाए। लेकिन अंदर मौत की नीरवता थी, एक ऐसी खामोशी जो किसी अनहोनी की गवाही दे रही थी। कुछ ही देर में अस्पताल का सिक्योरिटी हेड और अन्य सीनियर स्टाफ मौके पर पहुंच गए। दरवाजे को मजबूती से धक्का देकर खोला गया और अंदर का नज़ारा देखकर सबकी रूह कांप उठी — डॉक्टर मीतल शाह, अस्पताल के सबसे काबिल सर्जन, ऑपरेशन टेबल के पास खून से लथपथ पड़े थे। सफेद कोट लाल हो चुका था और उनके चेहरे पर एक जमी हुई डरावनी बेचैनी थी।
ACP अशोक नायर को केस सौंपे जाने की सूचना मिल चुकी थी और वह कुछ ही देर में अस्पताल पहुंच गए। उनका व्यक्तित्व सख्त था — पैनी नजरें, तेज चाल और चेहरे पर वो सन्नाटा, जो बड़े से बड़े अपराधी को चुप कर दे। ऑपरेशन थिएटर की दहलीज पर कदम रखते ही उन्होंने एक नज़र चारों तरफ डाली। सफेद दीवारों पर खून के छींटे किसी डरावनी पेंटिंग की तरह लगे थे। उन्होंने देखा कि न तो वहां कोई टूटा ताला था, न ही दरवाजे पर जबरन घुसने के निशान। टेबल के पास गिरे डॉक्टर मीतल के शरीर पर कोई बाहरी संघर्ष का निशान नहीं था, बस गर्दन पर गहरा कट, जो किसी ऑपरेशन उपकरण से ही किया गया प्रतीत होता था। कमरे में मौजूद उपकरण एक-एक कर उनकी नजरों से गुजरे — सर्जिकल नाइफ, कैंची, क्लींप — सब अपनी जगह पर रखे थे। नायर ने आसपास खड़े स्टाफ से पूछा, “CCTV फुटेज?” सबकी निगाहें झुक गईं। अस्पताल के टेक्नीशियन ने डरते हुए कहा, “सर, उस वक्त CCTV बंद था… कोई टेक्निकल फॉल्ट था…”। नायर की निगाहें सख्त हो गईं। बिना फुटेज के, बिना गवाहों के, ऑपरेशन थिएटर के भीतर से हत्या — यह केस उलझा हुआ था, और उसकी परतें गहराई में कहीं छिपी थीं।
बाहर गलियारे में नर्स ज्योति चुपचाप दीवार से लगी खड़ी थी। उसकी आंखों में आंसुओं की नमी और चेहरे पर भय का साया था। ACP नायर की नजरें उस पर टिकीं, और वह उनके सामने आते ही घबरा गई। नायर ने सधे स्वर में कहा, “क्या तुमने कुछ देखा या सुना?” ज्योति की आंखें भर आईं, होंठ कांपे लेकिन आवाज़ न निकली। सिर्फ इतना बोली, “सर… मैं कुछ कहना चाहती हूं, पर अभी नहीं… डर लग रहा है…”। नायर ने उसे तसल्ली दी और कहा, “डरो मत, सच बताना ही तुम्हारी और सबकी भलाई है।” वह धीरे-धीरे वहां से चली गई, लेकिन उसके चेहरे की घबराहट बता रही थी कि वह कुछ जानती थी — शायद इस मौत का कारण, या शायद उस राज़ को जो सफेद कोट की आड़ में छिपा था। उस वक्त अस्पताल का माहौल ऐसा था जैसे दीवारें खुद ACP नायर को पुकार रही हों: “सच ढूंढ़ो… वरना यह खून और भी रंग दिखाएगा…”।
अध्याय 2: ACP नायर की एंट्री
ACP अशोक नायर की कार जैसे ही अस्पताल परिसर में दाखिल हुई, वहां मौजूद हर चेहरा जैसे राहत की उम्मीद लिए उनकी ओर देखने लगा। उनके उतरते ही ठंडी सुबह की हवा में एक अलग ही सख्ती घुल गई। नायर की नजरें हॉस्पिटल के मुख्य दरवाजे से होते हुए सीधे उस ऑपरेशन थिएटर की ओर गईं, जिसके भीतर कुछ घंटे पहले खून का खेल खेला गया था। उनकी चाल तेज थी, कदमों की आहट गलियारों में गूंज रही थी। चारों तरफ फैली अफरातफरी और दबी दबी फुसफुसाहटें उनके कानों तक पहुंच रही थीं — “मीतल शाह की मौत… हत्या है ये…”, “कौन कर सकता है ऐसा?…”। जैसे ही वो थिएटर के पास पहुंचे, वहां मौजूद स्टाफ सावधानी से रास्ता छोड़ता गया। भीतर दाखिल होते ही नायर की नजरें एक-एक चीज को गहराई से पढ़ने लगीं। कमरे में सर्जिकल लाइट की सफेद रोशनी अब भी जल रही थी, जैसे कोई सर्जरी अधूरी रह गई हो। खून का कतरा कतरा टेबल और फर्श पर बिखरा था। नायर ने खून के धब्बों की दिशा देखी, शरीर की स्थिति देखी और अनुमान लगाया कि हमलावर ने बहुत नजदीक से वार किया था। उन्होंने नोट किया कि कोई संघर्ष नहीं हुआ था, न ही मीतल ने खुद को बचाने की कोई कोशिश की थी। यह हमला अचानक हुआ था, और बेहद सटीक।
ऑपरेशन थिएटर से निकलते ही नायर ने अस्पताल की सिक्योरिटी टीम से तीखे सवाल पूछने शुरू किए। “CCTV कब से बंद था?” — टेक्नीशियन ने कांपते स्वर में कहा, “सर… रात एक बजे से सिस्टम डाउन हो गया था… रिपेयर टीम को बुलाया था लेकिन वो सुबह आने वाली थी…”। नायर ने अपनी नोटबुक में समय लिखा। उन्होंने अस्पताल डायरेक्टर से कहा कि तुरंत पिछले 24 घंटे के विजिटर लॉग्स, स्टाफ शिफ्टिंग चार्ट और इलेक्ट्रॉनिक लॉक सिस्टम का डेटा उनके पास पहुंचाया जाए। वो जानते थे कि इस केस में समय की कीमत थी, हर गुजरता पल अपराधी को और दूर कर सकता था। बाहर गलियारे में उन्होंने स्टाफ को देखा, जिनमें ज्यादातर लोगों की आंखों में सवाल और डर दोनों थे। कुछ डॉक्टर कानाफूसी कर रहे थे, कुछ नर्सें आंखें चुराकर वहां से खिसक रही थीं। नायर ने तुरंत सबको निर्देश दिए कि कोई भी स्टाफ हॉस्पिटल परिसर से बाहर न जाए, जब तक पूछताछ पूरी न हो।
नायर ने अपनी जांच की अगली कड़ी के लिए सबसे पहले नर्स ज्योति को बुलाया। उसे देखकर ही नायर को लगा कि उसके दिल में कुछ ऐसा है जो वो छुपा रही है। ज्योति की आंखें सूजी हुई थीं, चेहरे पर थकान और घबराहट थी। नायर ने उसे बैठाया और नर्मी से बात शुरू की, ताकि वो खुलकर बोल सके। “ज्योति, हमें सच जानना है… तुम्हारे बिना हम मीतल की मौत का सच नहीं पा सकते… क्या तुमने कुछ असामान्य देखा या सुना?” ज्योति की आंखों से आंसू बह निकले। उसने रुंधे गले से कहा, “सर… डॉक्टर मीतल… वो अच्छे डॉक्टर थे लेकिन… लेकिन पिछले कुछ महीनों में वो बदल गए थे। ऑपरेशन में लापरवाह, मरीजों पर चिल्लाना, और कभी-कभी दवाइयों में भी गड़बड़… मैं… मैं बहुत कुछ जानती हूं लेकिन डरती हूं… कहीं मेरी जान को खतरा न हो…”। नायर ने उसकी ओर झुककर कहा, “तुम्हारी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है। सच ही तुम्हें और दूसरों को सुरक्षित रख सकता है।” ज्योति ने सिर हिलाया, पर अभी भी वो सब कुछ कहने को तैयार नहीं थी। नायर को महसूस हो गया कि ये केस जितना दिख रहा है, उससे कहीं ज्यादा गहरा और जटिल है।
ACP नायर ने हॉस्पिटल डायरेक्टर से मुलाकात की और अस्पताल की अंदरूनी राजनीति और मीतल शाह के अतीत के बारे में जानने की कोशिश की। डायरेक्टर ने बताया कि मीतल एक समय पर अस्पताल का स्टार सर्जन था, लेकिन पिछले एक साल से उस पर कई आरोप लगते रहे — गलत सर्जरी, मरीजों की अप्रत्याशित मौतें, और कभी-कभी स्टाफ से खराब बर्ताव। मगर हर बार मामला किसी तरह दबा दिया जाता। नायर को शक हुआ कि कहीं मीतल की मौत बदले की आग का नतीजा तो नहीं? उन्होंने डायरेक्टर से मीतल की सभी पेशेवर शिकायतों और केस फाइल्स की कॉपी मंगवाई। उस वक्त ऑपरेशन थिएटर के बाहर खड़े होकर नायर ने एक बार फिर पूरे सीन को अपनी आंखों में दोहराया — एक बंद दरवाजा, भीतर से लॉक, कोई तो ऐसा था जो भीतर गया, मारा और बिना सुराग छोड़े गायब हो गया। या फिर… क्या ये मर्डर दिखाया गया सुसाइड था? क्या मीतल खुद किसी बोझ से दबकर मौत को गले लगा गया? नायर के मन में सवालों की परतें गहराती जा रही थीं और वो जानते थे कि अगला कदम बेहद सावधानी से उठाना होगा।
अध्याय 3: मृत डॉक्टर का अतीत
ऑपरेशन थिएटर की उस डरावनी खामोशी से निकलकर ACP नायर अपने ऑफिस में लौट आए, जहाँ उन्होंने अस्पताल से मिली फाइलों और दस्तावेजों का ढेर अपने सामने रखा। खामोश कमरा, मेज पर बिखरे कागज और नायर की पैनी आंखें — माहौल में सन्नाटा ऐसा था जैसे हर दस्तावेज में एक राज़ छुपा हो जो बाहर निकलने को छटपटा रहा हो। जैसे-जैसे वो फाइलें पलटते गए, मीतल शाह की चमकती छवि धुंधलाती गई और उसके पीछे के स्याह सच सामने आने लगे। पिछले दो सालों में मीतल पर पाँच मेडिकल नेग्लिजेंस के आरोप लगे थे — जिनमें दो मामलों में मरीज ऑपरेशन टेबल पर ही दम तोड़ बैठे थे। एक केस में मीतल पर गलत दवा लिखने का आरोप था, जिसके चलते मरीज को लकवा मार गया। हर बार अस्पताल प्रशासन ने जांच बिठाई लेकिन मामला किसी न किसी तरह दबा दिया गया। रिपोर्टों में एक ही बात लिखी रहती — “कोई ठोस सबूत नहीं मिला”, “टेक्निकल त्रुटि रही होगी”, या “इंसानी भूल की आशंका”। नायर की नजरें हर उस पन्ने पर ठहरती गईं, जहां मरीजों के परिजनों के आंसुओं और गुस्से की परछाइयाँ छुपी थीं।
इन दस्तावेजों के बीच नायर को एक चिट्ठी मिली, जो एक मृतक मरीज के भाई ने अस्पताल को भेजी थी। चिट्ठी में लिखा था — “डॉ मीतल शाह ने मेरे भाई की जिंदगी छीन ली। एक दिन मैं उसका सफेद कोट उसके खून से रंग दूँगा। वो दिन दूर नहीं है।” नायर के चेहरे पर शिकन और गहरी हो गई। यह चिट्ठी अस्पताल ने फाइलों में दबा दी थी, न पुलिस को दी, न कोई कार्रवाई की। उन्होंने उस मरीज का नाम नोट किया — अरुण मलिक। अरुण की मौत ऑपरेशन के दौरान दिल के दौरे से बताई गई थी, लेकिन परिवार का आरोप था कि गलत दवा और मीतल की लापरवाही ने उसकी जान ली। नायर ने तुरंत अपने स्टाफ को निर्देश दिए कि अरुण मलिक के परिवार को खोजकर उनसे पूछताछ की जाए। साथ ही उन्होंने अस्पताल डायरेक्टर से पूछा कि ये चिट्ठी उनके पास क्यों दबी रही? डायरेक्टर ने बुझे स्वर में कहा, “ACP साहब… हम अस्पताल की इज्जत बचाना चाहते थे… इसलिए…”। नायर का गुस्सा भीतर ही भीतर सुलग रहा था — “इज्जत के नाम पर कब तक सच्चाई को दबाया जाएगा?”
नायर ने उस दिन अस्पताल की नाइट शिफ्ट स्टाफ से अलग-अलग पूछताछ शुरू की। ऑपरेशन थिएटर के बाहर ड्यूटी पर मौजूद वार्ड बॉय, नाइट टेक्नीशियन, और एक जूनियर डॉक्टर से गहन सवाल किए। वार्ड बॉय ने बताया कि रात करीब डेढ़ बजे डॉक्टर मीतल अकेले ऑपरेशन थिएटर में गए थे। उनका चेहरा उतरा हुआ था, जैसे किसी चिंता में डूबे हों। उसके बाद किसी को भीतर जाते नहीं देखा गया। जूनियर डॉक्टर ने कहा कि मीतल की आदत थी रात में अकेले रहकर केस स्टडी करना। लेकिन टेक्नीशियन ने जो बताया, उससे नायर के कान खड़े हो गए — “सर, रात करीब दो बजे मैं कॉरिडोर से गुजर रहा था, तब मुझे ऑपरेशन थिएटर के अंदर से कोई परछाईं सी दिखी। लगा कोई और भी अंदर है। पर दरवाजा बंद था तो मैं आगे बढ़ गया।” नायर ने उसके बयान को अपनी नोटबुक में लाल पेन से मार्क किया — यह अहम सुराग हो सकता था। उन्होंने सोच लिया कि ऑपरेशन थिएटर की लॉकिंग सिस्टम की पूरी जांच करवाई जाएगी — क्या सचमुच दरवाजा अंदर से लॉक था या लॉकिंग सिस्टम से छेड़छाड़ की गई थी?
शाम होते-होते नायर के पास अरुण मलिक के परिवार की जानकारी आ गई। उसका भाई — रोहित मलिक — शहर के एक हिस्से में किराए के मकान में रह रहा था। नायर ने तुरंत टीम के साथ वहां जाने का फैसला लिया। रास्ते भर उनकी आंखों के सामने अस्पताल की वो दीवारें घूमती रहीं, जो न जाने कितने राज़ अपने अंदर समेटे थीं। जब वो रोहित के घर पहुंचे, तो एक जर्जर सी बिल्डिंग में छोटे से कमरे का दरवाजा खटखटाया। भीतर से निकला एक थका-हारा, बीमार सा युवक। नायर ने खुद को परिचय देते हुए कहा, “ACP अशोक नायर, हम आपके भाई अरुण के केस के सिलसिले में आपसे बात करना चाहते हैं।” रोहित की आंखें अचानक भर आईं। वो बोला, “बहुत देर कर दी साहब… अगर पहले आए होते तो शायद आज वो शैतान जिंदा न होता…” नायर ने उसे तसल्ली दी और भीतर बैठकर लंबी बातचीत की। रोहित ने उस रात का दर्द बयां किया जब उसके भाई ने ऑपरेशन टेबल पर दम तोड़ा था। और कैसे मीतल शाह ने गलती छुपाने के लिए झूठी रिपोर्ट तैयार की थी। जाते-जाते नायर ने रोहित से पूछा — “क्या आपकी मीतल की मौत से कोई लेना-देना है?” रोहित ने थकी आवाज में जवाब दिया, “काश होता साहब… लेकिन कुदरत ने ही इंसाफ कर दिया। मैं तो लाचार हूँ…” नायर को लगा कि इंसाफ की इस कहानी में अभी कई परतें बाकी हैं।
अध्याय 4: ज्योति की बेचैनी
अस्पताल के उस ऊंचे टॉवर के पंद्रहवें माले की खिड़की से शहर की रोशनी दूर-दूर तक फैली दिख रही थी, मगर उस कमरे के भीतर एक और ही अंधेरा पसरा था। नर्स ज्योति अपने ड्यूटी रूम में बैठी खामोश खिड़की के बाहर ताक रही थी। आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था, सिर्फ एक बेचैनी, जो उसकी आत्मा को कचोट रही थी। उसके कानों में बार-बार वही आवाजें गूंजतीं — ऑपरेशन थिएटर का सन्नाटा, खून का रिसना और डॉक्टर मीतल की भयावह आंखें जो जैसे मरने के बाद भी उस पर टिक गई हों। तभी दरवाजे पर हल्की दस्तक हुई। ACP नायर कमरे में दाखिल हुए, उनका चेहरा गंभीर था। नायर ने उसे देखा और शांत स्वर में कहा, “ज्योति, ये डर तुम्हें कहीं नहीं ले जाएगा। अब सच सामने लाना जरूरी है।” ज्योति की आंखों से एक आंसू ढुलक पड़ा। उसने कांपती आवाज में कहना शुरू किया — “सर… मीतल शाह… वो जैसा बाहर दिखता था वैसा नहीं था। उसने कई बार ऑपरेशन में ऐसी गलतियां कीं जिन्हें देखकर मेरा दिल कांप गया। मगर हम सब चुप थे क्योंकि वो बहुत ताकतवर था… हॉस्पिटल का स्टार डॉक्टर…”।
ज्योति का डर अब उसके शब्दों में बदल रहा था। वो बोली, “उस रात… सर… ऑपरेशन थिएटर में कुछ ऐसा हुआ जो मैं भूल नहीं सकती। मीतल शाह अकेले अंदर गया था। मैं कॉरिडोर में थी। करीब पंद्रह मिनट बाद मुझे अंदर से हल्की आवाजें सुनाई दीं… जैसे कोई किसी से बहस कर रहा हो… पर आवाजें इतनी धीमी थीं कि मैं पहचान नहीं पाई। मैं दरवाजे के पास गई तो दरवाजा बंद था… और फिर सब खामोश हो गया। मैंने सोचा कोई डॉक्टर होगा अंदर… मगर जब दरवाजे के नीचे से खून रिसता दिखा, तो मेरी रूह कांप गई।” नायर ने गंभीरता से पूछा, “तुम्हें किसी और की परछाईं या आहट दिखी?” ज्योति ने सिर झुका लिया, बोली, “मैंने खिड़की के शीशे पर किसी की परछाईं देखी थी सर… पर यकीन नहीं हो पाया वो कौन था… शायद मीतल शाह अकेला नहीं था…”। नायर ने उसकी बात को नोट किया। ये बयान केस की दिशा बदल सकता था।
ACP नायर ने ज्योति से उस रात की शिफ्ट ड्यूटी चार्ट को विस्तार से बताने को कहा। ज्योति ने बताया कि उस वक्त सिर्फ दो अन्य नर्स और एक जूनियर डॉक्टर नाइट ड्यूटी पर थे। मगर उनमें से किसी को भी ऑपरेशन थिएटर के करीब नहीं देखा गया। नायर को शक हुआ कि क्या हॉस्पिटल का कोई अंदरूनी आदमी इस मर्डर में शामिल हो सकता है? उन्होंने ज्योति से उस लॉकिंग सिस्टम के बारे में पूछा। ज्योति बोली, “सर, ये लॉक सिस्टम थोड़ा पुराना है। दिखने में वो अंदर से लॉक दिखता है मगर अगर कोई चाहे तो टेक्नीशियन के मास्टर कार्ड से बाहर से भी खोल सकता है…”। नायर की नजरों में फिर से उस टेक्नीशियन का चेहरा घूम गया, जो उस रात CCTV बंद होने का बहाना बना रहा था। क्या वो मास्टर कार्ड का इस्तेमाल कर अंदर गया था? क्या ज्योति की देखी परछाईं उसी की थी?
नायर ने ज्योति की हिम्मत को सराहा और वादा किया कि पुलिस उसकी सुरक्षा का पूरा इंतजाम करेगी। ज्योति ने थके स्वर में कहा, “सर, एक बात और… मीतल शाह की मौत से एक दिन पहले उसने किसी से फोन पर बहुत लंबी बहस की थी। मैं नर्सिंग स्टेशन पर थी, मैंने उसकी आवाज सुनी थी। वो गुस्से में कह रहा था — ‘अब बहुत हो गया, कल सब कुछ खत्म कर दूंगा।’ सर, ये हत्या उसी से जुड़ी हो सकती है…”। नायर की आंखों में एक चमक आई। उन्होंने ज्योति से नंबर का रिकॉर्ड निकालने को कहा। मामला अब और गहराता जा रहा था। नायर जान चुके थे कि मीतल शाह की मौत के पीछे सिर्फ मेडिकल नेग्लिजेंस नहीं, बल्कि किसी निजी दुश्मनी का धुआं भी उठ रहा था। वो जानते थे — अब अगला कदम उनकी जांच को हत्या के उस राज़ तक ले जाएगा, जो सफेद कोट के पीछे छुपा था।
अध्याय 5: हॉस्पिटल में दबी फाइलें
अगली सुबह ACP नायर फिर नवरत्न हॉस्पिटल पहुंचे। शहर के भीड़-भाड़ से अलग इस हॉस्पिटल की ऊंची इमारतें और कांच की दीवारें बाहर से जितनी चमकदार दिखती थीं, अंदर का सच उतना ही स्याह होता जा रहा था। नायर डायरेक्टर के ऑफिस पहुंचे और एक कठोर आवाज़ में बोले, “हमारी टीम को मीतल शाह से जुड़े हर केस की असली रिपोर्ट चाहिए — वो फाइलें जो आज तक दबा दी गईं। अगर कोई दस्तावेज गायब पाया गया तो सीधे आप पर कार्रवाई होगी।” डायरेक्टर की पेशानी पर पसीना छलक उठा। दबाव में उसने रिकॉर्ड रूम की चाबी दी और कहा, “आप खुद देख लीजिए ACP साहब… हमारे पास छुपाने को कुछ नहीं…”। नायर और उनकी टीम नीचे बेसमेंट में बने पुराने रिकॉर्ड रूम में पहुंचे। वहां धूल जमी फाइलों और दस्तावेजों का एक पहाड़ खड़ा था। पुलिस टीम ने उन पर काम शुरू किया। फाइलों के बीच से निकली कुछ रिपोर्ट्स ने नायर को चौंका दिया। मीतल शाह पर पहले लगे लापरवाही के केस की असली जांच रिपोर्ट कहीं और ही इशारा कर रही थी — गलत दवाइयों का नाम, ऑक्सीजन सप्लाई में की गई छेड़छाड़ और कुछ ऑपरेशन के दौरान बुनियादी नियमों का उल्लंघन। पर इन रिपोर्ट्स पर हर बार एक ही मुहर लगी थी — “इंटर्नल इंक्वायरी क्लोज़्ड”।
रिकॉर्ड रूम की दीवारों में गूंजती वो चुप्पी अब नायर को भीतर तक झकझोर रही थी। वो उन फाइलों को गौर से देख रहे थे जैसे हर शब्द के पीछे छुपा सच उन्हें पुकार रहा हो। तभी उनकी नजर एक पतली नीली फाइल पर पड़ी, जो बाकी दस्तावेजों से अलग कोने में दबी थी। उन्होंने फाइल खोली — यह अरुण मलिक के केस की असली इंक्वायरी रिपोर्ट थी, जिसमें लिखा था कि ऑपरेशन के वक्त दी गई दवाओं की डोज़ तय सीमा से कई गुना ज्यादा थी। रिपोर्ट के आखिरी पन्ने पर अरुण के भाई रोहित की लिखावट में एक नोट था: “इस मौत का बदला लूंगा… डॉक्टर मीतल शाह को उसके गुनाह की सजा दूंगा…”। नायर ने ठंडी सांस ली। उन्होंने अपने सहयोगियों से कहा, “ये फाइल केस का असली मोड़ साबित हो सकती है। हर पेज की फोटोकॉपी कराओ। ये दस्तावेज अब पुलिस की कस्टडी में रहेंगे।” उनके भीतर अब एक गहरी बेचैनी थी — क्या हत्या का राज़ इसी बदले की आग में छुपा है या कोई और परत बाकी है?
फाइलें इकट्ठा कर नायर वापस अपने अस्थाई कैंप ऑफिस लौटे और पूरी रात उन दस्तावेजों का अध्ययन करते रहे। उनके सामने एक पैटर्न उभर रहा था — मीतल शाह की लापरवाही से जुड़ी हर मौत के बाद अस्पताल ने सच्चाई को दबाया, सबूतों को छुपाया और पीड़ित परिवारों को चुप कराने की कोशिश की। ऐसा लग रहा था जैसे अस्पताल की इमारत सिर्फ इलाज का नहीं, बल्कि साजिशों का किला बन चुकी थी। नायर ने खुद से कहा, “कोई न कोई तो होगा जिसने इस सबका फायदा उठाया होगा… और शायद वही इस कत्ल का असली गुनहगार है।” उनकी नजरें अब अस्पताल के टेक्नीशियन पर गड़ गई थीं, जो अब तक जांच से बचता फिर रहा था। उसी ने CCTV सिस्टम को रात में बंद करने की सूचना दी थी। नायर ने तुरंत टेक्नीशियन के घर पर दबिश देने का आदेश दिया। पुलिस जब वहां पहुंची तो पता चला — वो रात से ही लापता है। उसके कमरे से कुछ दस्तावेज, एक अस्पताल का मास्टर लॉक कार्ड और मीतल शाह की तस्वीर मिली, जिस पर लाल स्याही से क्रॉस बना था।
नायर की टीम ने अब टेक्नीशियन की तलाश तेज कर दी। पूरे शहर में अलर्ट जारी हुआ। उधर नायर ने अस्पताल प्रशासन से मास्टर लॉकिंग सिस्टम की डीटेल रिपोर्ट मंगाई। जांच में ये साफ हो गया कि जिस रात मीतल शाह की हत्या हुई, मास्टर कार्ड का इस्तेमाल ऑपरेशन थिएटर के दरवाजे को खोलने और फिर बंद करने में हुआ था। नायर की आंखों में अब संदेह की सुई पूरी तरह टेक्नीशियन पर टिक गई थी। लेकिन फिर भी उन्हें एहसास था कि मामला इतना आसान नहीं है। क्या टेक्नीशियन अकेला था? क्या वो किसी के इशारे पर काम कर रहा था? या उसके दिल में भी बदले की वही आग थी जो पीड़ित परिवारों में थी? इस बीच नायर ने अस्पताल के हर कोने की सुरक्षा बढ़ा दी और मीडिया को सिर्फ इतना बताया — “हत्या की जांच तेजी से चल रही है। हम बहुत नजदीक हैं…”। लेकिन अंदर ही अंदर वो जानते थे — इस सफेद कोट के पीछे का सच अभी पूरी तरह उजागर नहीं हुआ।
अध्याय 6: सुराग ऑपरेशन उपकरणों में
ACP नायर की आंखों में पूरी रात नींद नहीं थी। सुबह होते ही वो फॉरेंसिक टीम के साथ नवरत्न हॉस्पिटल लौटे। ऑपरेशन थिएटर अब भी सील था, वहां की हवा में एक अजीब ठंडक थी — जैसे वो दीवारें मर्डर की गवाह बनी हों और अब सच उगलना चाहती हों। नायर ने टीम को निर्देश दिया, “हर उपकरण की जांच करो… यहां की हर चीज बोल सकती है अगर हम सही तरह से सुनें।” फॉरेंसिक विशेषज्ञों ने एक-एक उपकरण को सावधानी से उठाकर पैक किया, उनके हैंडल और ब्लेड पर पाउडर से उंगलियों के निशान खोजे जाने लगे। ऑपरेशन टेबल के पास गिरे एक सर्जिकल नाइफ पर सूखे खून के धब्बे मिले। नायर की नजरें उसी पर टिक गईं। विशेषज्ञों ने नाइफ को लैब भेजने की तैयारी की। नायर को यकीन था — मर्डर वेपन यही था। उन्होंने थिएटर की फ्लोरिंग, वेंटिलेशन सिस्टम और खिड़की के लॉक की भी दोबारा जांच कराई। सब कुछ अंदर से बंद था — बाहर से घुसने का कोई निशान नहीं। ये मर्डर उतना आसान नहीं था जितना लग रहा था।
जैसे-जैसे दिन ढलता गया, लैब से फॉरेंसिक रिपोर्ट आने लगी। रिपोर्ट ने पुष्टि कर दी कि नाइफ पर मिला खून मीतल शाह का ही था। मगर चौंकाने वाली बात ये थी कि नाइफ पर किसी अन्य के उंगलियों के निशान नहीं थे। ये निशान जानबूझकर मिटाए गए थे, या फिर हत्यारे ने दस्ताने पहने थे। नायर ने फॉरेंसिक एक्सपर्ट से कहा, “नाइफ का हैंडल, उसके माइक्रो स्क्रैचेस, कुछ भी हो… हमें हत्यारे तक पहुंचने का एक सुराग चाहिए।” एक्सपर्ट ने धीमी आवाज़ में कहा, “हम कोशिश कर रहे हैं सर… पर अपराधी बेहद शातिर है।” नायर को अब यकीन होने लगा था कि हत्यारा कोई बाहर का नहीं, बल्कि अस्पताल का अंदरूनी आदमी था, जिसे न केवल ऑपरेशन थिएटर की व्यवस्था की जानकारी थी बल्कि वह फॉरेंसिक जांच से बचने की तरकीब भी जानता था।
इसी बीच नायर ने टेक्नीशियन की तलाश और तेज कर दी। शहर की सीमा पर पुलिस बैरिकेड लगा चुकी थी, रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर अलर्ट जारी था। लेकिन टेक्नीशियन का अब तक कोई सुराग नहीं मिला। नायर ने हॉस्पिटल डायरेक्टर से मास्टर लॉक कार्ड्स का डेटा मंगवाया। जांच में साफ हुआ कि उस रात वही मास्टर कार्ड इस्तेमाल हुआ था जो गायब टेक्नीशियन के पास था। इससे शक और गहरा हो गया। लेकिन नायर का अनुभव कहता था — मामला इतना सीधा नहीं हो सकता। क्या टेक्नीशियन सिर्फ मोहरा था? क्या कोई तीसरा शख्स पर्दे के पीछे से चालें चल रहा था? इसी उधेड़बुन में नायर ने ऑपरेशन थिएटर में मौजूद हर उपकरण की तस्वीरें और स्थिति की 3D मैपिंग करवाई, ताकि हत्या के वक्त की स्थिति को दोबारा रीक्रिएट किया जा सके। वो चाहते थे कि मौत की उस रात का हर क्षण आंखों के सामने जीवंत हो उठे।
शाम ढलने से पहले नायर ने अपने कैंप ऑफिस में केस का पूरा चार्ट बनाया — मीतल शाह की मौत, अस्पताल के छुपे केस, टेक्नीशियन की गुमशुदगी और ऑपरेशन थिएटर के अंदर के सुराग। उन्होंने अपने स्टाफ से कहा, “कल सुबह से टेक्नीशियन का कॉल रिकॉर्ड खंगालना शुरू करो। कोई न कोई कड़ी हमें उस तक ले जाएगी। और ऑपरेशन थिएटर का लॉक सिस्टम एक्सपर्ट से टेस्ट कराओ। हमें यह जानना है कि लॉक को हैक किया गया या मास्टर कार्ड से ही खोला गया।” नायर की आंखों में अब भी संदेह की लपटें थीं। वो जानते थे — ये केस एक ऐसे मोड़ पर पहुंच चुका था जहां हर सुराग सच की ओर नहीं, बल्कि नए सवालों की ओर ले जा रहा था। सफेद कोट का खून अब धीरे-धीरे अपनी स्याही से अस्पताल की हर ईंट पर एक कहानी लिख रहा था — और वो कहानी पूरी होने से पहले कई और परतें उघड़नी बाकी थीं।
अध्याय 7: गायब टेक्नीशियन की परछाई
रात के अंधेरे में ACP नायर की टीम की गाड़ियों की लाल-नीली बत्तियां शहर के कोनों में चमकती रहीं। हर थाना, चौकी, चौक और बार्डर पोस्ट पर टेक्नीशियन की तस्वीर और जानकारी भेज दी गई थी। नायर खुद भी अपनी गाड़ी में बैठे, केस की कड़ियों को मन में जोड़ते जा रहे थे। टेक्नीशियन — वही शख्स जिसने मर्डर के बाद से खुद को छुपा लिया। क्या वो सचमुच हत्यारा था या फिर किसी गहरी साजिश का मोहरा? नायर की टीम को आखिरकार एक झुग्गी बस्ती के पास उस टेक्नीशियन का सुराग मिला। एक चायवाले ने बताया कि सुबह-सुबह वो आदमी घबराया हुआ आया था, कपड़े अस्त-व्यस्त थे और वो कुछ दूर सूनसान इलाके की तरफ निकल गया। नायर ने आदेश दिया — “पूरे इलाके को घेरो, पैदल तलाशी शुरू करो।” उस बस्ती की तंग गलियों में पुलिस की टॉर्च की रोशनी पड़ते ही छुपे हुए कुत्ते भौंकने लगे, दरवाजों के पीछे से आंखें झांकने लगीं।
करीब दो घंटे की तलाश के बाद टीम को एक जर्जर सी झोपड़ी में टेक्नीशियन मिल गया। वो थका, गंदे कपड़े पहने, आंखों में डर लिए बैठा था। पुलिस ने उसे बाहर निकाला और नायर के सामने पेश किया। नायर ने उसकी ओर देखते ही सवाल दागे, “तू भागा क्यों? क्या छुपा रहा है?” टेक्नीशियन हकलाते हुए बोला, “साहब… मैंने किसी को नहीं मारा… मुझसे गलती हो गई… CCTV की फाइल रिकवर करनी थी… मैंने मास्टर कार्ड का इस्तेमाल किया… लेकिन जब थिएटर की तरफ गया तो देखा खून ही खून था… मैं डर गया और भाग गया…”। नायर की पैनी नजरें उसकी बातों का सच झांकने की कोशिश कर रही थीं। उन्होंने उसे कड़ी निगरानी में ले जाने का आदेश दिया। नायर जानते थे — ये शख्स कोई बड़ा राज़ जरूर जानता है, लेकिन डर के मारे वह सच उगल नहीं रहा।
पुलिस ने टेक्नीशियन का कॉल रिकॉर्ड खंगालना शुरू किया। उसी दिन की सुबह के कॉल में एक नंबर बार-बार उभरा — वो नंबर अस्पताल के एक पूर्व कर्मचारी का था, जो मीतल शाह की एक पुरानी शिकायत के बाद नौकरी से निकाला गया था। नायर की टीम ने तुरंत उस व्यक्ति का पता लगाया। पूछताछ में वह आदमी बोला, “मैंने टेक्नीशियन से सिर्फ अपने बिल के बारे में बात की थी… उसका मीतल से कोई लेना-देना नहीं…” लेकिन नायर को ये संयोग हजम नहीं हो रहा था। उन्होंने टेक्नीशियन को फिर से बुलाकर कड़ाई से पूछा — “सच-सच बता, मीतल की मौत में तेरा या उस आदमी का कोई हाथ है?” टेक्नीशियन फूट-फूट कर रोने लगा, “नहीं साहब… मैं सिर्फ पैसे के लिए काम करता था… मैं किसी को मारने की हिम्मत नहीं रखता…”। नायर को एहसास हुआ — साजिश कहीं और बुनी गई है, ये आदमी सिर्फ एक मोहरा था।
उसी रात नायर ने पूरे केस की फाइलें फिर से खंगालीं। उनकी दीवार पर चार्ट बन चुका था — मीतल शाह के दुश्मन, मरीजों के परिवार, अस्पताल स्टाफ, टेक्नीशियन की कड़ियां। उन्होंने अपनी टीम से कहा, “हमारा असली हत्यारा बहुत करीब है। इस कत्ल का मकसद सिर्फ बदला नहीं है… इसमें कुछ और छुपा है।” उन्होंने आदेश दिया कि अगले दिन ऑपरेशन थिएटर की घटनाओं को सीन रीक्रिएशन के जरिए दोबारा पेश किया जाए। वो खुद उस कमरे में खड़े होकर हर कदम को दोहराना चाहते थे — कौन अंदर आया, कौन बाहर गया, कहां से खून गिरा, किस दिशा से वार किया गया। नायर को यकीन था — ऑपरेशन थिएटर की दीवारें अब चुप नहीं रहेंगी, और वो राज़ बाहर आकर कहेगा — “सफेद कोट का खून किसने बहाया…”
अध्याय 8: सीन रीक्रिएशन का सच
सुबह की पहली किरण के साथ ही नवरत्न हॉस्पिटल के ऑपरेशन थिएटर में फिर से हलचल शुरू हो गई थी। ACP नायर ने अपनी पूरी टीम, फॉरेंसिक एक्सपर्ट और हॉस्पिटल स्टाफ को थिएटर में बुला लिया। कमरे की हर चीज़ को ठीक उसी तरह रखा गया जैसा मीतल शाह की मौत की रात था — वही ऑपरेशन टेबल, वही लाइट की एंगलिंग, वही नाइफ की पोजीशन और दरवाजे की लॉकिंग स्थिति। नायर बीच कमरे में खड़े हुए और धीमे स्वर में बोले, “अब हर सेकंड को महसूस करो… जैसे हम उसी रात में लौट गए हों…”। टीम के एक सदस्य ने मीतल शाह की जगह ली। नायर ने दरवाजे की ओर इशारा किया — “यहां से हत्यारा घुसा या कोई अंदर पहले से था? अगर मास्टर कार्ड से दरवाजा खुला, तो कितनी देर लगी होगी? खून किस दिशा में गिरा?”। एक्सपर्ट ने नोट किया कि खून की दिशा और टेबल की पोजीशन बता रही थी — हमला नजदीक से हुआ था, लगभग शून्य दूरी से। यानी हत्यारा मीतल के बेहद करीब था।
सीन रीक्रिएशन में जैसे-जैसे नायर ने बारीकियां देखीं, कई नए सवाल उभरने लगे। अगर दरवाजा लॉक था तो मास्टर कार्ड से हत्यारे ने खोला होगा, पर तब दरवाजे पर बाहर से खरोंच क्यों नहीं मिले? वेंटिलेशन सिस्टम या खिड़की से अंदर आना नामुमकिन था — वहां की जाली और लॉक सही सलामत थे। फॉरेंसिक टीम ने दोबारा लाइटिंग और खून के धब्बों पर अल्ट्रावायलेट लाइट डाली। इस बार ऑपरेशन टेबल के एक कोने पर उंगलियों के हल्के से प्रिंट मिले — किसी ने दस्ताने पहने थे, मगर प्रिंट की आकृति से वो स्टाफ की रूटीन ग्रिप नहीं लग रही थी। नायर की आंखों में चमक आई — “ये वही प्रिंट है जो हत्यारे की उपस्थिति को साबित करेगा। लैब से इसकी डीप एनालिसिस कराओ।” अब मामला तेजी से खुलने लगा था।
रीक्रिएशन के बाद नायर ने टीम को निर्देश दिया कि पूरे हॉस्पिटल के लॉकिंग सिस्टम के मास्टर कार्ड का इतिहास खंगालें। रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया — मर्डर वाली रात मास्टर कार्ड से दरवाजा केवल एक बार खोला गया था, और वो टाइम मीतल शाह के ऑपरेशन थिएटर में दाखिल होने के कुछ मिनट बाद का था। इसका मतलब था कि कोई अंदर गया था। लेकिन फिर दरवाजे का लॉक अंदर से बंद कैसे हुआ? नायर की समझ में आने लगा कि हत्यारे ने मर्डर के बाद दरवाजे को अंदर से लॉक करने की ट्रिक अपनाई थी ताकि मामला आत्महत्या जैसा लगे या पुलिस को भ्रमित किया जा सके। उन्होंने टीम से कहा, “अब हमें उस शख्स तक पहुंचना है जिसके पास वो कार्ड था… या जिसने उस कार्ड का नकली क्लोन बनाया…”। यह मर्डर अब मेडिकल मिस्ट्री से टेक्निकल क्राइम की ओर मुड़ता जा रहा था।
शाम होते-होते नायर की टीम को एक और बड़ी सफलता मिली। फॉरेंसिक लैब से रिपोर्ट आई कि ऑपरेशन टेबल पर जो प्रिंट मिला था वो टेक्नीशियन के हाथ का नहीं था। वो किसी और का था — किसी ऐसे का जो अब तक जांच के घेरे से बाहर था। नायर ने तुरंत पूरे स्टाफ की फिंगरप्रिंट स्कैनिंग शुरू करवाई। हॉस्पिटल के भीतर डर की लहर दौड़ गई। हर कोई अपनी बारी का इंतजार कर रहा था, और नायर के सवाल अब और तीखे हो गए थे। “जिसने मीतल को मारा वो यहीं है… इसी अस्पताल में… सफेद कोट पहने… किसी को शक भी नहीं होगा…”। नायर की आंखों में दृढ़ निश्चय था — अब हत्यारा ज्यादा देर अपनी परछाईं में नहीं छुप पाएगा। ऑपरेशन थिएटर का सन्नाटा अब बोलने को तैयार था।
अध्याय 9: हत्यारे का चेहरा सामने
ऑपरेशन थिएटर की सच्चाई अब धीरे-धीरे बाहर आने लगी थी। ACP नायर की टीम ने फिंगरप्रिंट स्कैनिंग शुरू कर दी थी और हर स्टाफ का रिकॉर्ड खंगाला जा रहा था। पूरे अस्पताल में तनाव का माहौल था — जैसे हर सफेद कोट के पीछे शक की एक परछाईं मंडरा रही हो। नायर की टीम ने फॉरेंसिक लैब से मिली रिपोर्ट को दोबारा पढ़ा — ऑपरेशन टेबल पर मिले प्रिंट्स अस्पताल के ही एक सीनियर सर्जन, डॉक्टर विकास चौधरी के थे। यह वही डॉक्टर था जो मीतल शाह से कई बार पब्लिक मीटिंग्स में उलझ चुका था। अस्पताल के गलियारों में ये चर्चा आम थी कि मीतल शाह की बढ़ती शोहरत से विकास चिढ़ता था। नायर ने तुरंत डॉक्टर विकास को तलब किया। कमरे में प्रवेश करते वक्त विकास का चेहरा उतरा हुआ था। नायर की पैनी नजरें उसके हाव-भाव पढ़ रही थीं।
नायर ने सीधे सवाल दागा — “डॉक्टर विकास, आपके प्रिंट्स ऑपरेशन टेबल पर कैसे मिले? आप मर्डर वाली रात वहां क्या कर रहे थे?” विकास के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं। उसने हकलाते हुए जवाब दिया, “सर… मैं तो… बस मीतल को देखने गया था। वो मेरा पुराना दोस्त था। मर्डर से पहले मैं उसके पास गया था… बात करनी थी… मगर…” नायर की आवाज और सख्त हो गई, “मगर क्या डॉक्टर? बात क्यों करनी थी? और क्यों वो बात इतनी जरूरी थी कि आप आधी रात को ऑपरेशन थिएटर में पहुंचे?” विकास अब घबरा चुका था। उसने धीमी आवाज में कहा, “मीतल ने मेरी एक रिसर्च चुराई थी… मैं उससे सफाई मांगने गया था। हमने बहस की… वो गुस्से में था… लेकिन जब मैं निकला तो वो जिंदा था… सच कह रहा हूँ सर…”। नायर को लगा कि सच अब बहुत करीब है, मगर अभी विकास पूरे सच को उगलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा।
ACP नायर ने टीम को निर्देश दिया कि डॉक्टर विकास के बयान की हर कड़ी की पुष्टि की जाए। CCTV लॉग्स, मास्टर कार्ड के इस्तेमाल का वक्त, और ऑपरेशन थिएटर की घड़ी पर लगी टाइम स्टैम्प सभी को मिलाया गया। जांच में साफ हो गया — विकास मीतल से मिलने गया था, मगर मीतल की मौत उसके बाद हुई थी। यानी विकास मर्डर से पहले वहां था, मर्डर के वक्त नहीं। नायर की आंखों में फिर से संदेह की परछाईं तैर गई। तो आखिर हत्यारा कौन था? तभी एक नई रिपोर्ट आई — मास्टर कार्ड के लॉग्स में छेड़छाड़ की गई थी। किसी ने डिजिटल रिकॉर्ड को हैक कर टाइम स्टैम्प बदल दिया था। यानी हत्यारा टेक्निकल रूप से भी माहिर था। नायर को अब यकीन हो गया — यह मर्डर सिर्फ बदले की आग नहीं, बल्कि एक सोची-समझी साजिश थी जिसमें अस्पताल की तकनीक, सिस्टम और इंसानी कमजोरियों का फायदा उठाया गया था।
शाम होते-होते नायर की टीम को वो अहम सुराग मिल गया जिसने पूरी कहानी को बदल दिया। ऑपरेशन थिएटर की एक अलमारी के भीतर छुपा एक पुराना लॉगबुक मिला, जिसमें मीतल शाह की नर्सिंग टीम की रात की ड्यूटी के हस्ताक्षर थे। उसमें नर्स ज्योति के दस्तखत वक्त से बहुत बाद के थे। यानी वो वक्त पर वहां मौजूद नहीं थी, जबकि उसका दावा था कि वो वहां थी। नायर ने ज्योति को दोबारा बुलाया। नायर ने उसकी आंखों में झांकते हुए कहा, “ज्योति, अब झूठ मत बोलो। तुम मर्डर वाली रात कहां थीं? और तुम्हारे दस्तखत देर से क्यों हुए?” ज्योति फूट-फूट कर रो पड़ी। उसने कांपते हुए कहा, “मैं डर गई थी सर… उस रात मैंने किसी को ऑपरेशन थिएटर से निकलते देखा था… वो सफेद कोट पहने था… पर वो मीतल नहीं था… वो कोई और था… और उसने मुझसे कहा — अगर तुमने कुछ कहा तो अगला नंबर तुम्हारा होगा…” नायर को अब यकीन था — हत्यारा वही था जो अस्पताल के सिस्टम का मालिकाना हक समझता था… और शायद मीतल की मौत सिर्फ एक शुरुआत थी।
अध्याय 10: अंतिम ऑपरेशन — सच का पर्दाफाश
अस्पताल की दीवारों पर सन्नाटा पसरा था, मगर ACP नायर की आंखों में अब एक नई तीव्रता थी। उन्होंने पूरी टीम को अलर्ट कर दिया और निर्देश दिए कि अस्पताल के डायरेक्टर और सीनियर स्टाफ को पूछताछ के लिए रोका जाए। नायर को अब पूरा यकीन हो चुका था कि हत्यारा वही था जिसने अस्पताल के सिस्टम का फायदा उठाया — और वो कोई बाहरी नहीं, बल्कि अंदर का कोई ऐसा शख्स था जो खुद को इस व्यवस्था का राजा समझता था। ऑपरेशन थिएटर की अलमारी में मिली लॉगबुक और मास्टर कार्ड डेटा में की गई छेड़छाड़ अब एक नाम की ओर इशारा कर रही थी — अस्पताल का चीफ एडमिनिस्ट्रेटर, अजय खुराना। नायर की टीम ने उसकी लोकेशन ट्रेस की — वो अपने घर पर नहीं था, बल्कि अस्पताल के एक खाली विंग में छुपा बैठा था। टीम ने चारों ओर से घेरा डाल दिया।
जब अजय को नायर के सामने लाया गया तो उसके चेहरे पर डर और गुस्से का अजीब मिश्रण था। नायर ने ठंडी आवाज में कहा, “अब और नहीं अजय… सच सामने लाओ… मीतल शाह की हत्या क्यों की?” अजय ने कुछ देर तक चुप रहकर नायर की आंखों में देखा और फिर थकी हुई आवाज में बोला, “वो आदमी इस अस्पताल की बदनामी की वजह बन चुका था। हर दिन उसके गलत फैसले, उसकी लापरवाही से मरीज मरते रहे। बोर्ड मेरी नहीं सुनता था… मीतल के रसूख के आगे सब झुक जाते थे। मैंने उसकी मौत का प्लान बनाया ताकि अस्पताल को बचाया जा सके… ताकि ये जगह फिर से लोगों की उम्मीद का घर बने…”। नायर ने गहरी सांस ली। वो जानता था कि अजय ने जो किया वो जुर्म था — चाहे मंशा कुछ भी रही हो।
अजय ने आगे बताया कि उसने मास्टर कार्ड की डुप्लीकेट चिप तैयार करवाई थी और ऑपरेशन थिएटर का डिजिटल लॉग बदलने के लिए एक आउटसोर्स आईटी एक्सपर्ट की मदद ली थी। उसने मीतल की सर्जरी की रुटीन का स्टडी किया और उसी रात को चुना जब मीतल अकेला थिएटर में जाता था। अजय ने दस्ताने पहनकर वार किया और बाद में दस्ताने जला दिए ताकि कोई फिंगरप्रिंट न मिले। नायर ने गहरी नजर से उसे देखा और कहा, “कानून अपने हाथ में लेने का हक किसी को नहीं… तुमने अस्पताल को नहीं बचाया, तुमने इंसाफ का गला घोंटा।” अजय को गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस ने आईटी एक्सपर्ट को भी खोज निकाला और साजिश का पूरा जाल अदालत के सामने पेश किया।
अस्पताल में अब शांति लौट आई थी, मगर नायर जानता था कि यह शांति असली नहीं थी। उसने अस्पताल प्रशासन से कहा कि वो अंदरूनी जांच की प्रक्रिया मजबूत करें ताकि मीतल जैसे डॉक्टर फिर मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ न कर सकें। नायर अपनी टीम के साथ ऑपरेशन थिएटर के बाहर खड़ा था, जहां हत्या हुई थी। वो दीवारों की ओर देखते हुए सोच रहा था — “सफेद कोट सिर्फ इज्जत का नहीं, जिम्मेदारी का भी प्रतीक है। और जब इस कोट पर खून लगता है, तो इंसाफ की आवाज उठाना जरूरी हो जाता है…”। केस खत्म हुआ, मगर नायर के लिए हर केस की तरह ये भी एक सीख छोड़ गया — सिस्टम की खामियां और इंसानी कमजोरियां जब मिलती हैं तो सिर्फ खून बहता है।
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अजय खुराना की गिरफ्तारी और अदालत में पेश हुए सबूतों ने शहर भर में हलचल मचा दी थी। अस्पताल की इमारत, जो कभी उम्मीद की मिसाल मानी जाती थी, अब सवालों के घेरे में थी। कोर्ट में सुनवाई के दौरान ACP नायर की गवाही ने केस को मजबूत बनाया। अजय ने जुर्म कबूल किया, मगर उसकी मंशा पर बहस चलती रही — क्या उसने अस्पताल को बचाने के लिए मर्डर किया या अपनी सत्ता बचाने के लिए? अदालत ने सख्त टिप्पणी की: “किसी भी उद्देश्य से हत्या को सही नहीं ठहराया जा सकता। कानून का सम्मान सर्वोच्च है।” अजय को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। अस्पताल बोर्ड को भी कई स्तरों पर जवाबदेह ठहराया गया और सुधार के आदेश दिए गए। नवरत्न हॉस्पिटल की चमकती इमारत अब एक सबक की मिसाल बन गई थी।
ACP नायर ने केस के बाद खुद को अस्पताल की लॉबी में अकेला खड़ा पाया। उन्होंने ऑपरेशन थिएटर की ओर देखा, जहां अब नए नियमों के तहत सुरक्षा बढ़ा दी गई थी। वहां का सन्नाटा अब भी उनके कानों में गूंज रहा था। उनके दिल में ये टीस थी कि अगर सिस्टम समय रहते चेत गया होता, तो शायद मीतल शाह को भी सुधारा जा सकता था और अजय जैसे व्यक्ति को हत्यारा बनने की नौबत नहीं आती। नायर की आंखों में उस रात की परछाइयां तैर गईं — ऑपरेशन टेबल पर गिरा खून, डरती हुई नर्स ज्योति, भागता टेक्नीशियन और सच की परतों के बीच सिसकती इंसाफ की आवाज। नायर जानता था — इंसाफ मिल गया, मगर जख्म हमेशा ताजा रहेंगे।
मीडिया इस केस को “सफेद कोट का खून” कहकर सुर्खियों में रखती रही। अस्पताल में नए प्रशासक नियुक्त हुए, मरीजों की सुरक्षा और स्टाफ की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए नई नीतियां बनाई गईं। नर्स ज्योति ने अस्पताल छोड़कर किसी दूसरे शहर में नौकरी पकड़ ली, ताकि वो बीती रातों की यादों से दूर रह सके। टेक्नीशियन को भी अदालत ने निर्दोष मानते हुए रिहा कर दिया। ACP नायर ने इस केस की फाइल बंद करते वक्त अपने स्टाफ से कहा, “याद रखना, जब सिस्टम में दरार आती है तो वो दरारें इंसाफ तक पहुंचने का रास्ता मुश्किल बना देती हैं। हमें उस दरार को भरना होगा…”। नायर के शब्द उनकी टीम के दिल में गूंजते रहे।
कुछ महीनों बाद ACP नायर फिर एक नए केस की जांच में व्यस्त हो गए। मगर जब भी वो नवरत्न हॉस्पिटल के सामने से गुजरते, उनकी नजरें उस ऑपरेशन थिएटर की ओर चली जातीं — जैसे वो दीवारें अब भी कोई अधूरी कहानी कह रही हों। अस्पताल की चमचमाती खिड़कियों में उन्हें सफेद कोटों की परछाइयां दिखतीं और कानों में गूंजता वो सवाल — “क्या हम वाकई इंसाफ कर पाए?”। नायर के लिए ये केस केवल एक मर्डर मिस्ट्री नहीं, बल्कि सिस्टम की खामियों और इंसानी कमजोरी का आईना बन चुका था। और वो जानते थे — इंसाफ की लड़ाई कभी खत्म नहीं होती, बस एक केस से दूसरे केस तक चलती रहती है।
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