मयंक श्रीवास्तव
दुकान से घर तक का सफ़र
शर्मा जी वैसे तो बिल्कुल सीधेसादे इंसान थे, लेकिन मोहल्ले में उनकी पहचान एक ऐसे शख्स की थी जिन्हें हर समय नई-नई चीज़ों का शौक चढ़ा रहता था। कल तक जो बड़े गर्व से लोगों को बताते घूम रहे थे कि “भाईसाहब, मेरा कीपैड वाला फोन पाँच साल से चल रहा है, बैटरी भी ओरिजिनल है”, वही शर्मा जी अचानक एक दिन मोहल्ले की मोबाइल शॉप से चमचमाता नया स्मार्टफोन लेकर लौटे।
अब तक तो शर्मा जी उस पुराने फोन को अपने जीवनसाथी की तरह मान चुके थे। उसमें अलार्म भी मुश्किल से बजता था और कैमरे से ली गई तस्वीरें ऐसी लगती थीं जैसे किसी ने आटे की छलनी से बाहर झाँका हो। लेकिन बेटे ने ज़ोर डाला, “पापा, आप कब तक इस प्राचीन फोन को पकड़े रहेंगे? सब लोग व्हाट्सएप पर ग्रुप में फ़ोटो भेजते हैं, आप तो एसएमएस में भी तीन घंटे लगाते हैं।”
पत्नी ने भी ताना कस दिया, “देखिए जी, जब से पड़ोस की मिश्रा जी ने स्मार्टफोन लिया है, तब से हमारी बहू भी रोज़ कह रही है कि अरे मम्मी-पापा, आप भी ऑनलाइन वीडियो कॉल कर लिया कीजिए।” शर्मा जी को लगा मानो बिना स्मार्टफोन के उनका सामाजिक दर्जा गिरता जा रहा है।
आख़िरकार, पूरे हफ़्ते की माथापच्ची के बाद शनिवार को वे कस्बे की सबसे बड़ी मोबाइल शॉप पर जा पहुँचे। दुकान में घुसते ही जैसे किसी अलौकिक मंदिर का द्वार खुल गया हो। दीवारों पर बड़े-बड़े पोस्टर, जिनमें चमकते-दमकते मॉडल्स मोबाइल पकड़े ऐसे मुस्कुरा रहे थे जैसे फोन नहीं, ब्रह्मज्ञान हाथ में हो।
दुकानदार ने शर्मा जी को देखते ही पहचान लिया—“आइए शर्मा जी, आपका स्वागत है! आज कौन-सी कंपनी का ले लें?”
शर्मा जी ने गला खंखारते हुए कहा, “भाई, ज़रा बढ़िया वाला दिखाना, जिसमें कैमरा भी हो, गाने भी सुन सकें और… और वो क्या कहते हैं… हाँ जी, नेट भी चले।”
दुकानदार ने तुरंत सबसे महंगा फोन उठा लिया। बोला, “यही लीजिए शर्मा जी, इसमें पाँच कैमरे हैं, १२८ जीबी मेमोरी है, और बैटरी ऐसी कि एक बार चार्ज करो तो हफ्ते भर चले।”
शर्मा जी का माथा ठनका। “अरे भाई, ये बैटरी हफ्ते भर चलेगी, तो क्या बीच-बीच में चार्जर से रिश्ता टूट जाएगा? ज़रा सस्ता वाला दिखाओ, मगर नाम ऐसा होना चाहिए कि सुनते ही लोग कहें वाह, क्या फोन है।”
काफी खोजबीन और मोलभाव के बाद आख़िर एक मिड-रेंज फोन पर बात बनी। दुकानदार ने बड़े गर्व से कहा, “शर्मा जी, ये वाला मॉडल अभी-अभी आया है। इसमें फेस लॉक भी है।”
“फेस लॉक?” शर्मा जी हड़बड़ा गए, “अरे भैया, चेहरा तो रोज़ बदलता है—कभी दाढ़ी बढ़ जाती है, कभी मूंछ कट जाती है। फिर खुला नहीं तो? मान लो रात को खिचड़ी खाने के बाद मुँह सूज गया तो? तब तो फोन भी हमें पहचानने से इनकार कर देगा।”
दुकानदार ने हँसते-हँसते समझाया, “नहीं-नहीं शर्मा जी, इतना स्मार्ट है ये कि आपकी सूजी हुई शक्ल भी पहचान लेगा।”
शर्मा जी ने मन ही मन सोचा—“वाह! अब तो फोन भी पड़ोसियों से ज़्यादा मुझे समझेगा।”
ख़ैर, आखिरकार झोले में नया स्मार्टफोन और हाथ में बिल थमाकर दुकानदार ने शर्मा जी को विदा किया।
घर लौटते वक्त शर्मा जी का चलना ही बदल गया था। जैसे किसी सैनिक को नई बंदूक मिल गई हो। वे बार-बार झोले को टटोलते और फिर गर्दन ऊँची करके सड़क पर ऐसे चलते मानो पूरी दुनिया को बताना हो—“हाँ भई, अब मैं भी स्मार्टफोन वाला इंसान हूँ।”
रास्ते में सब्ज़ीवाले ने टोका, “क्या लाए शर्मा जी?”
उन्होंने गर्व से झोला थोड़ा ऊपर उठाया और रहस्यमयी अंदाज़ में बोले, “तकनीक।”
अब मोहल्ले की चौखट पर जैसे ही पहुँचे, बच्चों की टोली ने दौड़कर घेर लिया। “चाचा, दिखाइए न, कौन-सा फोन लिया है?”
शर्मा जी ने बड़े ठसक से कहा, “अरे-अरे, अभी नहीं। पहले घर जाकर शुद्धिकरण होगा, फिर बॉक्स खुलेगा।”
पत्नी पहले से ही दरवाज़े पर इंतज़ार कर रही थीं। बोलीं, “इतनी देर क्यों लगा दी? फोन ले आए न?”
शर्मा जी ने झोले से बॉक्स निकाला, मानो कोई हीरा निकाल रहे हों। पत्नी ने आँखें फैला लीं, बेटे ने झपट्टा मारा, लेकिन शर्मा जी ने रोक दिया।
“अरे-अरे, पहले मैं ही देखूँगा। यह फोन मेरे नाम पर खरीदा गया है, पहले हक भी मेरा है।”
बॉक्स खोला गया। अंदर से सफेद चमचमाता फोन निकला। सबकी आँखें फटी रह गईं। पत्नी बोलीं, “वाह जी, बिल्कुल फिल्मी हीरो जैसा लग रहा है।”
शर्मा जी ने तुरंत टोका, “फोन फिल्मी हीरो जैसा है या मैं?”
बेटा हँस पड़ा, “पापा, आप तो फिल्मी हीरो का ‘पहले और बाद’ वाला फोटो लगते हो।”
शर्मा जी ने गम्भीर होकर फोन हाथ में लिया, लेकिन जैसे ही टचस्क्रीन पर अंगुली रखी, स्क्रीन एकदम ब्लैक हो गई। शर्मा जी घबरा गए, “अरे! बंद हो गया? अभी तो चालू किया था!”
बेटे ने हँसते हुए कहा, “पापा, ये स्क्रीन लॉक है। पासवर्ड डालना होगा।”
“अरे, पासवर्ड तो किसी ने बताया ही नहीं!”
पत्नी बोलीं, “दुकानदार ने तो कहा था कि फेस लॉक है।”
तुरंत फोन चेहरे के सामने लाकर शर्मा जी ने बड़ी उम्मीद से स्क्रीन घूरा। लेकिन फोन ने धड़धड़ाते हुए मुँह पर बड़ा-सा ताला दिखा दिया।
शर्मा जी चौंक पड़े, “देखा! मैंने कहा था न, ये मुझे पहचान ही नहीं रहा।”
बेटे ने मुस्कुराकर फोन हाथ में लिया, दो-तीन बटन दबाए और स्क्रीन खुल गई। बोला, “पापा, पहले रजिस्टर तो कराना पड़ता है।”
शर्मा जी ने राहत की साँस ली और बोले, “वाह भाई, ये फोन तो शादी का रिश्ता जैसा है—पहले फोटो, फिर रजिस्टर, तब जाकर ताला खुलेगा।”
पूरा मोहल्ला हँसी से गूंज उठा।
पहली कॉल और पहली ठोकर
फोन घर आ चुका था, लेकिन असली परीक्षा तो अब शुरू होनी थी। मोहल्ले के लोग बाहर खड़े-खड़े फुसफुसा रहे थे कि शर्मा जी ने नया स्मार्टफोन लिया है। अब सबको यही इंतज़ार था कि आखिर वो फोन का इस्तेमाल कैसे करेंगे।
शर्मा जी ने बॉक्स से निकाले गए फोन को ऐसे थामा जैसे कोई पुजारी पहली बार शिवलिंग पर जल चढ़ा रहा हो। पत्नी ने पूछा, “तो अब सबसे पहले किसे फोन करेंगे?”
शर्मा जी ने सोचा, “चलो भाई, पहले अपने बचपन के दोस्त वर्मा जी को खुशखबरी देते हैं।”
लेकिन मुश्किल यह थी कि पुराने फोन से सारे नंबर ट्रांसफर करने का काम उन्हें आता ही नहीं था। बेटे ने कहा, “पापा, आप पुराने फोन से ब्लूटूथ ऑन करिए, फिर मैं ट्रांसफर कर दूँ।”
शर्मा जी हड़बड़ा गए, “ब्लूटूथ? अरे भाई, ये ब्लूटूथ क्या होता है? कहीं ये दाँतों से तो नहीं जुड़ा होगा? मेरा तो आधा दाँत नकली है।”
बेटा ठहाका मारकर हँस पड़ा, “अरे पापा, ब्लूटूथ का दाँतों से कोई लेना-देना नहीं। ये वायरलेस तरीका है।”
शर्मा जी ने राहत की साँस ली। बोले, “अच्छा! मैंने सोचा अब तो फोन से दाँत भी निकलवा देंगे।”
काफी मेहनत के बाद सारे नंबर नए फोन में आ गए। अब शर्मा जी ने वर्मा जी को कॉल लगाई। मगर जैसे ही कान से फोन लगाया, आवाज़ कुछ सुनाई नहीं दी। वो बार-बार “हेलो-हेलो” करते रहे, पर दूसरी तरफ़ से चुप्पी।
ग़ुस्से में बोले, “ये फोन तो निकम्मा निकला! न आवाज़ आ रही है न जा रही है।”
बेटे ने फोन देखा और हँसते-हँसते लोटपोट हो गया। बोला, “पापा, आपने फोन को उल्टा पकड़ रखा है। स्पीकर नीचे की तरफ होता है, ऊपर कान लगाना होता है।”
पूरा परिवार हँस पड़ा। शर्मा जी की हालत ऐसी हो गई जैसे किसी ने मंच पर भाषण देते समय माइक ही उल्टा पकड़वा दिया हो।
अब कॉल सही ढंग से लगी और उधर से वर्मा जी की आवाज़ गूँजी, “अरे वाह शर्मा, आज तो आपकी आवाज़ में भी स्मार्टनेस आ गई!”
शर्मा जी फूल कर कुप्पा हो गए। बोले, “हाँ भई, अब हम भी स्मार्टफोन वाले हो गए हैं।”
उधर से वर्मा जी बोले, “तो ज़रा व्हाट्सएप पर मैसेज भेजकर दिखाओ।”
यह सुनते ही शर्मा जी पसीना-पसीना हो गए। धीरे से बेटे की तरफ देखा और फुसफुसाए, “ये व्हाट्सएप क्या बला है?”
बेटा बोला, “पापा, ये तो सबसे आसान है। यहाँ से मैसेज, फोटो, वीडियो सब भेज सकते हैं।”
शर्मा जी ने फोन हाथ में लिया और टटोलते-टटोलते आखिर व्हाट्सएप खोल ही लिया। लेकिन जैसे ही कीबोर्ड स्क्रीन पर आया, शर्मा जी को लगा जैसे कोई जहरीली चींटी उनके अंगूठे पर चढ़ गई हो।
“अरे ये बटन इतने छोटे क्यों हैं? मेरी तो मोटी उँगली से तीन-तीन अक्षर दब जाते हैं।”
काफी मशक्कत के बाद उन्होंने टाइप किया: “नमस्ते वर्मा जी।”
लेकिन स्क्रीन पर लिखा आया: “नमस्त्र व्र्म ज्जी।”
शर्मा जी घबरा गए, “अरे ये फोन तो संस्कृत में बदल गया! वर्मा जी क्या समझेंगे?”
पत्नी हँसते-हँसते बोलीं, “अरे, वो तो आपको जानते हैं। समझ जाएँगे कि ये शर्मा जी ही हैं।”
अब आया सबसे बड़ा हादसा। शर्मा जी ने सोचा कि चलो थोड़ी आधुनिकता दिखाते हैं और इमोजी भेजते हैं। उन्होंने कहीं दबाया, तो सीधा भेज दिया—“💋।”
वर्मा जी ने उधर से तुरंत फोन मिलाया, “अरे शर्मा! ये क्या भेज दिया? मोहल्ले की आंटी को भेजना था क्या?”
शर्मा जी की हालत पतली हो गई। पत्नी ने शक भरी नज़रों से देखा, “जी ये किसको चुम्मी भेज रहे थे?”
बेचारे शर्मा जी हकलाने लगे, “अरे-अरे, ये तो फोन की गलती है। ये मशीन अपने आप भेज रही थी।”
बेटा पेट पकड़कर हँसने लगा। बोला, “पापा, अब तो आपको वर्मा अंकल से सफाई देनी पड़ेगी।”
शाम होते-होते पूरा मोहल्ला शर्मा जी के घर पर जुट गया। सबको नया फोन देखना था। शर्मा जी ने सबके सामने फोन चालू किया और बोले, “अब मैं गूगल पर कुछ खोजकर दिखाऊँगा।”
उन्होंने आवाज़ पहचानने वाला फीचर ऑन किया और जोर से बोले, “गूगल, मुझे भिंडी की सब्ज़ी बनाने की रेसिपी बताओ।”
फोन ने सुन लिया और तुरंत स्क्रीन पर आ गया—“बिंदी डिज़ाइन वाली साड़ी।”
सब लोग ठहाका मारकर हँस पड़े।
शर्मा जी बोले, “अरे ये तो मेरी पत्नी के खिलाफ़ साज़िश कर रहा है। मैं सब्ज़ी माँग रहा हूँ और ये साड़ी दिखा रहा है।”
पत्नी ने तुरंत कहा, “अच्छा है, कम से कम अब तुम्हें भी समझ आया कि घर में क्या ज़्यादा ज़रूरी है।”
रात को सोने से पहले शर्मा जी ने फोन चार्जिंग पर लगाया। सुबह उठे तो देखा कि फोन चालू ही नहीं हो रहा।
घबराकर बोले, “अरे! ये तो रातों-रात मर गया।”
बेटा भागा आया और चार्जर देखा। हँसते हुए बोला, “पापा, आपने चार्जर प्लग में लगाया ही नहीं था।”
शर्मा जी ने माथा पीट लिया, “तो ये फोन बिजली बिना कैसे जिएगा? मैंने तो सोचा था कि ये बैटरी वाला है।”
पत्नी ने ताना कसते हुए कहा, “आप तो कह रहे थे हफ्ते भर चलेगा। अभी तो एक रात भी नहीं चला।”
सोशल मीडिया का पहला अनुभव
फोन का असली खेल तो अब शुरू होना था। कॉल और व्हाट्सएप के बाद शर्मा जी को लगा कि अब वे स्मार्टफोन के उस्ताद बन चुके हैं। मगर असली ‘परीक्षा’ तो सोशल मीडिया की थी।
रविवार की सुबह शर्मा जी छत पर बैठे-बैठे अख़बार पढ़ रहे थे। बेटे ने कहा, “पापा, अब आपको फेसबुक भी बना लेना चाहिए।”
शर्मा जी चौंक गए, “फेसबुक? अरे भाई, मेरा चेहरा क्यों बुक में डालना है? वो भी मोहल्ले के बीच!”
बेटे ने हँसते हुए समझाया, “अरे पापा, ये ऑनलाइन जगह है जहाँ लोग फोटो डालते हैं, पोस्ट लिखते हैं और सबको बताते हैं कि उनकी ज़िंदगी कितनी शानदार है।”
शर्मा जी ने अख़बार मोड़ते हुए कहा, “अच्छा! मतलब झूठ बोलने का नया प्लेटफॉर्म।”
बेटा बोला, “आप भी बना लीजिए। सब मोहल्ले वाले हैं वहाँ।”
अकाउंट बनाने की कहानी
शर्मा जी ने फोन उठाया। स्क्रीन पर फेसबुक का नीला लोगो देखकर बोले, “अरे ये तो बिल्कुल पुलिस की वर्दी जैसा रंग है। कहीं पकड़ तो नहीं लेगा?”
बेटे ने अकाउंट बनाने में मदद की। नाम लिखा गया “रामनाथ शर्मा”। लेकिन शर्मा जी ने कहा, “भई, नाम ऐसा होना चाहिए कि लोग हमें देखकर चौंक जाएँ।”
आख़िरकार उन्होंने नाम डाला—“शर्मा जी रॉकस्टार”।
प्रोफ़ाइल फोटो की बारी आई। शर्मा जी ने अलमारी से पुरानी शादी की एलबम निकाली और पत्नी के पास जाकर बोले, “अरे, ये वाली फोटो डाल दूँ न? इसमें मैं घोड़ी पर बैठा हूँ।”
पत्नी बोलीं, “चुप रहिए, लोग समझेंगे कि अभी-अभी बारात से उतरे हैं।”
आख़िरकार शर्मा जी ने एक सेल्फी खींची। लेकिन सेल्फी ऐसी आई कि आधा मुँह धूप में चमक रहा था और आधा छाया में डूबा हुआ था। बेटे ने कहा, “पापा, ये तो हॉरर मूवी का पोस्टर लग रहा है।”
शर्मा जी बोले, “कोई बात नहीं, लोग डरेंगे तो याद भी रखेंगे।”
पहला पोस्ट
अब शर्मा जी ने पहला पोस्ट डालने का निश्चय किया। उन्होंने बड़े गर्व से लिखा—
“आज से हम भी आधुनिक युग में प्रवेश कर गए। नया फोन लिया है। जय हो तकनीक की!”
लेकिन टाइपिंग की वजह से पोस्ट में आ गया—
“आज से हम भी आधनिक युग में परेस कर गए। नाया फन लिया है। जय हो तकनिक की!”
पोस्ट अपलोड होते ही मोहल्ले में हलचल मच गई। मिश्रा जी ने कमेंट किया, “शर्मा जी, आधनिक मतलब? नया कोई तंत्र मंत्र कर रहे हैं क्या?”
चौबे जी ने लिखा, “नाया फन? क्या सर्कस शुरू किया है?”
पत्नी ने देखा तो माथा पीट लिया, “अरे, लोग तो मज़ाक उड़ाएँगे।”
लेकिन शर्मा जी ने हिम्मत नहीं हारी। बोले, “कोई बात नहीं, यही तो असली मनोरंजन है।”
लाइक्स और कमेंट्स
कुछ ही घंटों में उनके पोस्ट पर बीस लाइक आ गए। शर्मा जी ने बेटे से पूछा, “ये लाइक का मतलब क्या है?”
बेटा बोला, “मतलब लोगों को आपका पोस्ट पसंद आया।”
शर्मा जी गर्व से बोले, “वाह! इतने लोग तो मोहल्ले की मीटिंग में भी हमें ताली नहीं बजाते।”
लेकिन जब किसी ने ‘हाहा’ वाला इमोजी भेजा तो शर्मा जी बुरी तरह चौंक गए।
“ये लोग हम पर हँस क्यों रहे हैं? हमने क्या चुटकुला लिखा था?”
पत्नी ने कहा, “अरे, यही तो फेसबुक की रीति है। लोग हँसते-हँसते भी प्यार जताते हैं।”
शर्मा जी ने राहत की साँस ली, मगर मन ही मन ठान लिया—“अब मैं भी ऐसा पोस्ट डालूँगा कि सब हक्के-बक्के रह जाएँ।”
फोटो अपलोड का किस्सा
अगले दिन शर्मा जी सुबह-सुबह पार्क में गए। पेड़ के नीचे खड़े होकर एक फोटो खींची और फेसबुक पर डाल दी। कैप्शन लिखा—“प्रकृति के साथ ध्यान।”
लेकिन फोटो में पीछे से एक कुत्ता उन्हें घूर रहा था और ऐसा लग रहा था मानो कुत्ता ध्यान कर रहा हो।
लोगों ने मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया। “वाह शर्मा जी, ये कुत्ता तो आपका योग गुरु लग रहा है।”
किसी ने लिखा, “ध्यान करते-करते शर्मा जी का चेहरा इतना गंभीर क्यों है, क्या कुत्ते ने आसन छीन लिया?”
शर्मा जी को ग़ुस्सा आया। बोले, “ये लोग फोटो की कला नहीं समझते। मैं कलाकार हूँ।”
ग्रुप ज्वॉइन करने का हादसा
बेटे ने कहा, “पापा, आप मोहल्ला ग्रुप जॉइन कर लीजिए।”
शर्मा जी ने जॉइन किया और पहला मैसेज भेजा—“सुप्रभात। जीवन अनमोल है।”
लेकिन उनकी आदत थी कि वे हर पाँच मिनट बाद ‘सुप्रभात’ लिख देते।
थोड़ी देर में ग्रुप के एडमिन ने लिखा, “शर्मा जी, दिन में पाँच बार सुप्रभात मत दीजिए। हम लोग रात को भी सुप्रभात पढ़ रहे हैं।”
शर्मा जी ने जवाब दिया, “भई, सुप्रभात कहना तो शुभकामना है। इसमें कमी कैसी?”
पूरा ग्रुप हँसी से लोटपोट हो गया।
इंस्टाग्राम की पहली झलक
फेसबुक के बाद अब बारी आई इंस्टाग्राम की। शर्मा जी ने अकाउंट बनाया।
बायो में लिखा—“पार्ट-टाइम दार्शनिक, फुल-टाइम हैंडसम।”
उन्होंने पहला फोटो डाला—खिचड़ी की थाली। कैप्शन दिया—“मेरा पहला मास्टरपीस।”
लोगों ने कमेंट किया, “वाह! पाँच सितारा होटल की डिश।”
किसी ने पूछा, “शर्मा जी, क्या ये खिचड़ी खाने लायक भी है या सिर्फ़ कला है?”
शर्मा जी को लगा लोग तारीफ़ कर रहे हैं। उन्होंने जवाब दिया, “धन्यवाद, अगली बार और भी स्वादिष्ट कला पेश करूँगा।”
मोहल्ले की चर्चा
अब मोहल्ले में हर जगह यही चर्चा थी—“शर्मा जी सोशल मीडिया पर छा गए हैं।”
पान वाले ने कहा, “कल ही मैंने उनकी पोस्ट देखी। ध्यान करते-करते कुत्ता भी आ गया। बड़ा मज़ेदार था।”
नाई ने बोला, “अरे, मैंने तो इंस्टाग्राम पर उनकी खिचड़ी देखी। अब तो लगता है शर्मा जी अगला ‘फूड ब्लॉगर’ बनेंगे।”
पत्नी ने ग़ुस्से में कहा, “लोग हँस रहे हैं और आप गर्व महसूस कर रहे हैं?”
शर्मा जी बोले, “अरे, लोग हँस रहे हैं तो इसका मतलब है कि हमारा काम सफल हो गया।”
रात का हादसा
रात को शर्मा जी ने फेसबुक खोलकर सोचा कि चलो सबको शुभरात्रि बोलते हैं। उन्होंने टाइप किया—“शुभ रात्री।”
लेकिन गलती से पोस्ट हो गया—“शुभ रोटी।”
पूरा मोहल्ला अगले दिन चर्चा करने लगा—“शर्मा जी तो रोटी तक को शुभ मानते हैं।”
बच्चों ने छेड़ा, “चाचा, हमें भी एक-एक शुभ रोटी दे दीजिए।”
शर्मा जी ने माथा पीट लिया, मगर फिर बोले, “कोई बात नहीं। कम से कम अब लोग रात को भूखे नहीं सोएँगे।”
ऑनलाइन ख़रीदारी का धमाल
सोशल मीडिया पर धूम मचाने के बाद अब शर्मा जी को लगा कि स्मार्टफोन का असली उपयोग अभी बाकी है। एक दिन सुबह-सुबह पड़ोसन मिश्रा आंटी आईं और बोलीं, “शर्मा भैया, अब तो आप ऑनलाइन शॉपिंग भी करने लगे होंगे?”
शर्मा जी चौकन्ने हो गए, “ऑनलाइन शॉपिंग? मतलब नेट पर दुकान खोलनी पड़ती है क्या?”
आंटी बोलीं, “अरे नहीं, घर बैठे सब चीज़ें मँगाओ। बटन दबाओ और सामान आपके दरवाज़े पर।”
ये सुनते ही शर्मा जी की आँखों में चमक आ गई। बोले, “वाह! अब तो मुझे सब्ज़ी मंडी में झोला लेकर भटकना नहीं पड़ेगा।”
पहली शॉपिंग का किस्सा
बेटे ने उन्हें एक ऐप डाउनलोड कर दिया। बोला, “पापा, अब इसमें खोजो क्या चाहिए।”
शर्मा जी ने सर्च बॉक्स में बड़े उत्साह से लिखा—“जूते।”
लेकिन उँगली मोटी होने के कारण टाइप हुआ—“जूठे।”
स्क्रीन पर आते ही ढेरों पुराने टूटे-फूटे बर्तन और कबाड़े की तस्वीरें दिख गईं।
शर्मा जी बोले, “ये तो घर की हालत से भी बदतर सामान है। कोई इसे क्यों खरीदेगा?”
बेटा हँसते-हँसते बोला, “पापा, आप जूते लिखना चाहते थे, जूठे लिख दिया।”
शर्मा जी ने माथा पीट लिया, “अरे! अब तो ये ऐप भी मेरी इज्ज़त उतार रहा है।”
आख़िरकार सही लिखकर उन्होंने जूते चुने। स्क्रीन पर सैकड़ों विकल्प देखकर दंग रह गए। बोले, “इतनी सारी दुकानें तो पूरे शहर में भी नहीं।”
उन्होंने एक चमचमाते जूते पर क्लिक किया। दाम देखा—₹२,९९९।
शर्मा जी ने सोचा, “अरे! दुकानदार तो ठगते हैं। यहाँ तो ये सीधा तीन हज़ार माँग रहा है।”
बेटे ने कहा, “पापा, ऑनलाइन यही रेट है। आप चाहो तो डिस्काउंट कूपन लगा सकते हो।”
शर्मा जी बोले, “कूपन? अरे भाई, ये दुकान है या मेले का झूला?”
पेमेंट की मुश्किल
अब बारी आई पेमेंट की। स्क्रीन पर कई विकल्प आए—क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, यूपीआई।
शर्मा जी घबरा गए, “ये सब विदेशी चालें हैं। मैं तो नकद ही दूँगा।”
बेटे ने कहा, “पापा, नकद ऑन डिलीवरी भी है।”
शर्मा जी ने चैन की साँस ली, “अच्छा! मतलब डिलीवरी वाला आएगा तो मैं उसे नकद पकड़ा दूँगा। यही तो असली व्यापार है।”
ऑर्डर प्लेस हो गया। शर्मा जी ने तुरंत फेसबुक पर डाल दिया—
“आज हमने ऑनलाइन शॉपिंग की। अब जूते चलकर हमारे घर आएँगे।”
लोगों ने कमेंट करना शुरू कर दिया। किसी ने लिखा, “वाह शर्मा जी, अब जूतों की भी होम डिलीवरी।”
किसी ने ताना मारा, “सावधान रहिए, कहीं गलत साइज़ न आ जाए।”
डिलीवरी का दिन
दो दिन बाद डिलीवरी बॉय आया। शर्मा जी ने दरवाज़ा खोला और उसे देखकर ऐसे मुस्कुराए जैसे कोई बरसों का बिछड़ा हुआ रिश्तेदार मिल गया हो।
डिलीवरी बॉय बोला, “सर, आपका पार्सल।”
शर्मा जी ने पूछा, “अरे भाई, ये पार्सल क्या होता है?”
बेटा बोला, “पापा, ये वही जूते हैं।”
शर्मा जी ने नकद पैसे दिए और बॉक्स खोला। जैसे ही जूते निकले, उनकी आँखें चमक उठीं। बोले, “वाह! बिल्कुल फिल्मी हीरो जैसे।”
उन्होंने तुरंत पहनकर देखे। लेकिन समस्या ये हुई कि दोनों पैर में कसाव इतना था कि जैसे किसी ने हाथी के पैर में बच्चो का मोज़ा पहना दिया हो।
शर्मा जी चीखे, “अरे ये तो मेरे पैरों की हत्या कर देगा।”
बेटे ने पैकेट देखा और बोला, “पापा, आपने गलती से साइज ७ मँगवा लिया। आपका तो ९ है।”
शर्मा जी ने माथा पीट लिया, “अरे! मैंने तो सोचा ये नंबर मेरी कुंडली से मिल रहा है। अब तो मुझे ही फिट होना पड़ेगा।”
रिटर्न का झंझट
बेटे ने कहा, “पापा, आप इसे रिटर्न कर सकते हैं।”
शर्मा जी चौंके, “रिटर्न मतलब? अरे, ये तो शादी का रिश्ता लग रहा है—न पसंद आया तो लौटा दो।”
उन्होंने ऐप में जाकर रिटर्न का बटन दबाया। लेकिन गलती से क्लिक हो गया—“दोबारा ऑर्डर करें।”
तीन दिन बाद घर पर वही जूते फिर से आ गए।
पत्नी बोलीं, “अब तो पूरा मोहल्ला आपके जूतों की दुकान समझेगा।”
शर्मा जी बोले, “अरे क्या करें, ये फोन हमें बार-बार फँसा रहा है। अब तो लग रहा है ऑनलाइन शॉपिंग से हमारा दिवाला निकल जाएगा।”
अनोखी ख़रीदारी
जूते का झंझट झेलने के बावजूद शर्मा जी का जोश ठंडा नहीं हुआ। उन्होंने सोचा, “अब कुछ बड़ा ऑर्डर करना चाहिए।”
उन्होंने सर्च बॉक्स में लिखा—“लाल शर्ट।”
लेकिन उँगली फिसलने से टाइप हो गया—“लाल शर्त।”
स्क्रीन पर तरह-तरह की जुआ और सट्टेबाज़ी से जुड़ी चीजें दिखने लगीं। शर्मा जी घबरा गए, “अरे! ये तो मेरी इज्ज़त मिट्टी में मिला देगा।”
आख़िरकार सही लिखकर उन्होंने लाल शर्ट मँगवाई।
शर्ट आई तो उसकी रंगत इतनी चटख थी कि मोहल्ले वाले बोले, “अरे शर्मा जी, ये शर्ट है या ट्रैफिक सिग्नल का बोर्ड?”
पत्नी ने ताना मारा, “आपको देखकर लगता है होली अभी खत्म नहीं हुई।”
मोहल्ले की मीटिंग
अब मोहल्ले में चर्चा थी कि शर्मा जी ऑनलाइन शॉपिंग के शिकार हो गए हैं। चौबे जी ने कहा, “भाई, इनका तो रोज़ पार्सल आता है।”
मिश्रा जी बोले, “सही कह रहे हो। कल ही मैंने इन्हें साइज छोटा वाला जूता लौटाते देखा।”
बच्चे चिल्लाने लगे, “चाचा, अगली बार हमारे लिए भी चॉकलेट ऑनलाइन मँगवा देना।”
शर्मा जी बोले, “हाँ-हाँ, सबको खिलाऊँगा। लेकिन पहले ये फोन हमें सही लिखना सिखा दे।”
रात का हादसा
रात को शर्मा जी ने सोचा कि पत्नी को सरप्राइज देंगे। उन्होंने गुपचुप एक साड़ी ऑर्डर कर दी।
लेकिन टाइपिंग में गलती से लिख दिया—“साड़ी” की जगह “साड़ी-कवर।”
डिलीवरी आई तो उसमें साड़ी का कवर निकला। पत्नी ने ग़ुस्से में कहा, “ये क्या लाए हैं?”
शर्मा जी बोले, “अरे मैं तो सोच रहा था आपको गिफ्ट दूँगा। ये फोन तो हमारी लव स्टोरी का विलेन है।”
पत्नी ने ताना मारा, “अच्छा हुआ। वरना आपकी पसंद की साड़ी पहनकर मैं मोहल्ले में घूमती तो लोग हँस-हँसकर मुझे भी फेसबुक पर डाल देते।”
गेम और यूट्यूब का चस्का
ऑनलाइन शॉपिंग की नाकामियों के बाद भी शर्मा जी का जोश कम नहीं हुआ। उन्हें लगने लगा कि फोन सिर्फ़ कॉल करने, फोटो डालने या जूते मँगाने के लिए नहीं बना है। अब असली मज़ा तो गेम्स और वीडियो में है।
एक दिन उनका बेटा कमरे में बैठा मोबाइल पर जोरों से बटन दबा रहा था। शर्मा जी ने झाँककर देखा—स्क्रीन पर रंग-बिरंगे टॉफी जैसे कुछ फूट रहे थे और बेटा हँसी से खिलखिला रहा था।
शर्मा जी ने पूछा, “अरे ये कौन-सा खेल है? देख रहा हूँ, तिहाई मिठाइयाँ फूट रही हैं।”
बेटा बोला, “पापा, ये कैंडी क्रश है। पूरा मोहल्ला खेलता है।”
शर्मा जी चौंक गए, “क्या! पूरा मोहल्ला मिठाइयाँ फोड़ रहा है और मुझे किसी ने बताया तक नहीं? मैं तो समझ रहा था कि टॉफी की दुकान बंद हो गई।”
पहला गेम
बेटे ने उनके फोन में गेम डाल दिया। शर्मा जी ने जैसे ही खेलना शुरू किया, उन्हें लगा कि अब उनकी ज़िंदगी का असली मिशन यही है—रंग-बिरंगी टॉफियों को फोड़कर दुनिया को बचाना।
पहला लेवल तो आसानी से निकल गया। शर्मा जी खुशी से चिल्लाए, “वाह! मैं विजेता हूँ!”
पत्नी रसोई से बोलीं, “अरे विजेता जी, सब्ज़ी लाने का काम तो पूरा हुआ?”
शर्मा जी हड़बड़ा गए, “अभी लेवल टू पर हूँ, सब्ज़ी लेवल बाद में आएगा।”
धीरे-धीरे उनका जोश इतना बढ़ गया कि खाना खाते समय भी फोन साथ रखते। आलू की सब्ज़ी की बजाय उन्हें कैंडी की लड़ी ज्यादा आकर्षक लगने लगी।
मोहल्ले में चर्चा
मोहल्ले में अब नई चर्चा थी—“शर्मा जी पूरे दिन गेम खेलते हैं।”
मिश्रा जी बोले, “कल मैंने इन्हें पार्क में देखा। एक हाथ में फोन था, दूसरे हाथ में कुत्ते की रस्सी। कुत्ता भाग रहा था और शर्मा जी स्क्रीन पर टॉफियाँ फोड़ रहे थे।”
चौबे जी बोले, “अरे मैंने तो देखा कि ऑटो में बैठकर भी यही खेल रहे थे। ड्राइवर बोला, साहब किराया दो। शर्मा जी बोले, पहले ये कैंडी टूटी तो सही।”
यूट्यूब की खोज
गेम के साथ-साथ अब शर्मा जी को वीडियो देखने का भी चस्का लग गया। उन्होंने बेटे से पूछा, “अरे भाई, लोग कहते हैं यूट्यूब पर सब कुछ है। क्या ये सच है?”
बेटा बोला, “हाँ पापा, इसमें गाने, फिल्में, रेसिपी, उपदेश—सब मिलेगा।”
शर्मा जी उत्साहित हो गए। उन्होंने सबसे पहले सर्च किया—“भिंडी की सब्ज़ी बनाने की विधि।”
पर गलती से टाइप हुआ—“भूतनी की सब्ज़ी।”
स्क्रीन पर डरावने वीडियो आने लगे। शर्मा जी चौंक पड़े, “अरे ये कैसा ज़हर परोस रहे हैं? भूतनी भी सब्ज़ी पकाती है क्या?”
पत्नी दौड़ी आईं और डाँटते हुए बोलीं, “अरे, भिंडी लिखना था। ये तो रोज़ का नाटक हो गया।”
पहला गाना
शर्मा जी ने सोचा कि अब कुछ गाना सुनना चाहिए। उन्होंने सर्च किया—“मोहब्बत वाले गाने।”
लेकिन फोन ने सुना—“मोहल्ले वाले गाने।”
स्क्रीन पर मोहल्ले के बच्चों का कोई लोकल वीडियो चल पड़ा। बच्चे गली में ढोल बजाकर गा रहे थे—“चाचा-चाचा मोबाइल वाला, चाचा-चाचा स्मार्ट वाला।”
पूरा घर हँसी से लोटपोट हो गया।
शर्मा जी बोले, “अरे ये यूट्यूब भी पड़ोस की चुगली करने लगा है।”
प्रवचन की तलाश
शर्मा जी को थोड़ा धार्मिक मन भी था। उन्होंने सोचा कि सुबह-सुबह प्रवचन सुनेंगे।
उन्होंने सर्च बॉक्स में लिखा—“सुबह का प्रवचन।”
लेकिन फोन ने ऑटो-करेक्ट करके बना दिया—“सुबह का प्रलोचन।”
तुरंत स्क्रीन पर अजीब-सी फ़िल्मी क्लिप आ गई। शर्मा जी हड़बड़ा गए, “अरे ये कौन सा नया धर्म है?”
पत्नी ने ग़ुस्से में कहा, “फोन आपको सीधे नरक ले जाएगा।”
खुद का वीडियो
अब शर्मा जी के भीतर नया कीड़ा कुलबुलाने लगा। बोले, “लोग अपना वीडियो डालते हैं न? मैं भी डालूँगा।”
बेटे ने कहा, “ठीक है पापा, आप यूट्यूब पर चैनल बना सकते हैं।”
शर्मा जी ने चैनल का नाम रखा—“शर्मा जी का ज्ञान”।
पहला वीडियो उन्होंने रसोई में बैठकर बनाया। हाथ में आलू लेकर बोले, “दोस्तों, ज़िंदगी आलू जैसी है। कभी छिल जाती है, कभी उबल जाती है, लेकिन स्वाद देती ही है।”
वीडियो अपलोड होते ही मोहल्ले में तहलका मच गया। बच्चों ने चिल्लाना शुरू कर दिया, “वाह, अब शर्मा अंकल आलू बाबा बन गए।”
सब्सक्राइबर का चक्कर
वीडियो पर पाँच व्यू आए। उनमें से तीन उनके ही थे।
शर्मा जी गर्व से बोले, “वाह! पाँच लोग मुझे देख रहे हैं।”
बेटे ने हँसते हुए कहा, “पापा, इनमें से तीन तो आपने खुद बार-बार क्लिक किए हैं।”
शर्मा जी बोले, “कोई बात नहीं। महान लोग भी पहले खुद को ही सुनते हैं।”
गेम का हादसा
एक रात शर्मा जी गेम खेलते-खेलते इतने डूब गए कि चार्जिंग लगाना भूल गए। सुबह देखा तो फोन बंद।
घबराकर बोले, “अरे! ये तो कैंडी के चक्कर में शहीद हो गया।”
बेटे ने चार्ज लगाया और कहा, “पापा, आपको गेम से ब्रेक लेना चाहिए।”
लेकिन शर्मा जी बोले, “नहीं बेटा, ये युद्ध है। कैंडी फोड़ना अब मेरी जिम्मेदारी है।”
पत्नी ताना मारते हुए बोलीं, “घर की जिम्मेदारी छोड़ो, कैंडी की जिम्मेदारी संभालो।”
मोहल्ले की प्रतिक्रिया
अब मोहल्ले के लोग शर्मा जी को ‘कैंडी चाचा’ और ‘यूट्यूब बाबा’ कहकर बुलाने लगे।
मिश्रा जी बोले, “भाई, मैंने आपका आलू वाला प्रवचन देखा। आज से आलू खाते हुए मैं भावुक हो जाता हूँ।”
चौबे जी बोले, “मैंने देखा कि आप रात दो बजे भी गेम खेल रहे थे। खिड़की से आपकी आवाज़ आई—‘विजेता!’”
शर्मा जी गर्व से बोले, “हाँ भई, यही तो आधुनिकता है।”
रात का किस्सा
रात को शर्मा जी ने सोचा कि यूट्यूब पर लाइव आकर सबको ‘शुभरात्रि’ कहेंगे।
उन्होंने कैमरा ऑन किया और बोला, “दोस्तों, शुभरात्रि। सपनों में कैंडी और आलू ज़रूर आएँ।”
लेकिन गलती से लाइव बटन दबा रह गया।
सुबह उठकर देखा तो पूरी रात की रिकॉर्डिंग अपलोड हो गई थी—जिसमें वे खर्राटे भरते, करवट बदलते और सपने में बड़बड़ाते दिख रहे थे।
पूरा मोहल्ला हँसते-हँसते लोटपोट हो गया।
ऑनलाइन पेमेंट का चक्कर
अब तक शर्मा जी सोशल मीडिया, शॉपिंग, गेम और यूट्यूब में काफ़ी नाम कमा चुके थे। मोहल्ले में लोग उन्हें “स्मार्टफोन शर्मा” कहकर बुलाने लगे थे। मगर असली कांड तब हुआ जब बेटे ने कहा, “पापा, अब आप ऑनलाइन पेमेंट भी करना सीखिए। नकद पैसे जेब में रखने का ज़माना गया।”
शर्मा जी ने आँखें गोल कर दीं, “क्या! जेब से पैसा निकालकर भी अगर ज़माना चला गया तो मेरी जेब का भविष्य क्या होगा?”
बेटे ने समझाया, “पापा, अब यूपीआई ऐप से सब होता है। दुकान पर क्यूआर कोड स्कैन करो और तुरंत पैसा भेज दो।”
शर्मा जी सोच में पड़ गए, “अरे वाह! मतलब जेब से पर्स निकालने की भी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। लेकिन ये क्यूआर कोड कौन-सा जानवर है?”
पहली कोशिश
अगले दिन बेटे ने उनके फोन में पेमेंट ऐप डाउनलोड कर दिया। नाम और बैंक अकाउंट डलवाया। शर्मा जी को लगा मानो वे कोई अंतरराष्ट्रीय समझौते पर दस्तखत कर रहे हों।
पहली बार उन्हें १ रुपया ट्रायल पेमेंट करना था। उन्होंने स्क्रीन पर लिखा—“1।”
लेकिन मोटी उँगली से गलती से “1001” हो गया।
तुरंत स्क्रीन पर मैसेज आया—“आपने 1001 रुपये भेज दिए।”
शर्मा जी चिल्ला उठे, “अरे! मैंने तो एक रुपये भेजा था। ये फोन तो डाकू निकला।”
बेटा हँसते-हँसते बोला, “पापा, यही कारण है कि लोग ज़ीरो लगाने से डरते हैं।”
सब्ज़ी मंडी का किस्सा
अगले दिन शर्मा जी सब्ज़ी लेने गए। सब्ज़ीवाले ने कहा, “भइया, अब तो मैं भी ऑनलाइन पेमेंट लेता हूँ। ये क्यूआर कोड स्कैन कर दीजिए।”
शर्मा जी ने फोन निकाला, कैमरा खोला और सब्ज़ीवाले की शक्ल पर स्कैन कर दिया।
सब्ज़ीवाला चौंक पड़ा, “अरे भाई, ये क्या कर रहे हैं?”
शर्मा जी बोले, “अरे आपने कहा था स्कैन करो। मैं तो आपका चेहरा स्कैन कर रहा हूँ। अब पैसा अपने-आप आपके जेब में चला जाएगा।”
पूरी मंडी ठहाके से गूँज उठी।
मोहल्ले की मिठाई की दुकान
शर्मा जी की असली परीक्षा तब हुई जब वे मिठाई की दुकान पहुँचे। उन्होंने पेमेंट ऐप खोला और बोला, “अब देखो, मैं टेक्नोलॉजी का उस्ताद हूँ।”
उन्होंने क्यूआर कोड स्कैन किया, लेकिन रकम लिखनी भूल गए।
तुरंत स्क्रीन पर गया—“0 रुपये भेज दिए।”
दुकानदार ने हँसते हुए कहा, “शर्मा जी, आपके आशीर्वाद के अलावा कुछ नहीं आया।”
शर्मा जी बोले, “अरे, मतलब इस ऐप से मुफ्त में मिठाई भी मिल सकती है?”
दुकानदार ने कहा, “नहीं-नहीं, अगली बार सही करना पड़ेगा। वरना मैं आपका फोटो फेसबुक पर डाल दूँगा।”
बिजली का बिल
पत्नी ने कहा, “अब बिजली का बिल भी मोबाइल से भरिए। देखूँ आपकी तकनीकी ताक़त।”
शर्मा जी ने बड़ी हिम्मत जुटाई और ऐप खोला। उपभोक्ता नंबर डालना था। लेकिन उन्होंने ग़लती से मोबाइल नंबर डाल दिया।
तुरंत स्क्रीन पर आया—“बिल सफलतापूर्वक जमा हो गया।”
कुछ देर बाद उनके दोस्त चौबे जी का मैसेज आया, “धन्यवाद शर्मा, आपने मेरा बिजली का बिल भर दिया।”
पत्नी ने माथा पीट लिया, “अरे! अब हमारे घर की बिजली कटेगी और चौबे जी का घर रोशन रहेगा।”
चायवाले का किस्सा
एक शाम शर्मा जी चाय की दुकान गए। चायवाले ने कहा, “पाँच रुपये हैं।”
शर्मा जी ने फोन से पेमेंट किया। मगर गलती से पाँच की जगह पचास भेज दिए।
चायवाला बोला, “धन्यवाद शर्मा जी, आपने एक कप नहीं, दस कप की कीमत दी।”
शर्मा जी हँसकर बोले, “अरे भाई, मैं तो समाज सुधार कर रहा हूँ। ताकि तुम मेरी अगली चाय मुफ्त में दो।”
नकली मैसेज
एक दिन उनके फोन पर मैसेज आया—“आपको 10,000 रुपये का इनाम मिला है। अपना पिन डालकर प्राप्त करें।”
शर्मा जी खुशी से उछल पड़े, “वाह! अब तो किस्मत चमक गई।”
उन्होंने पिन डालना शुरू किया। तभी बेटे ने देखा और चीखा, “पापा, रुकिए! ये फ्रॉड मैसेज है।”
शर्मा जी थम गए, “अरे! मतलब ये लोग मुझे बेवकूफ बना रहे हैं? अरे मैं भी तो कभी बेवकूफ बन सकता हूँ!”
पत्नी ने ताना मारा, “आप कब से बनना बंद किए हैं?”
बैंक मैनेजर की मुलाक़ात
कुछ ही दिनों बाद शर्मा जी बैंक पहुँचे। मैनेजर ने कहा, “अब तो आप मोबाइल बैंकिंग सीख गए होंगे?”
शर्मा जी गर्व से बोले, “हाँ जी, इतना सीख गए हैं कि गलती से चौबे जी का बिल भर दिया।”
मैनेजर हँस पड़ा, “आप तो बैंक के विज्ञापन बन सकते हैं—‘मोबाइल बैंकिंग करें और पड़ोसी की मदद पाएं।’”
मोहल्ले में चर्चा
अब मोहल्ले के लोग कहने लगे—“शर्मा जी तो पूरे इलाके के ऑनलाइन खजांची बन गए हैं। कभी सब्ज़ीवाले का चेहरा स्कैन करते हैं, कभी मिठाई मुफ्त में लेने की कोशिश।”
मिश्रा जी बोले, “कल ही मैंने देखा, शर्मा जी पेमेंट करते-करते दुकानदार से बोले—भाई, थोड़ा चेहरा इधर घुमा लो, कैमरा ठीक से पकड़ नहीं रहा।”
रात का हादसा
रात को शर्मा जी ने सोचा कि पत्नी को सरप्राइज देंगे। उन्होंने मोबाइल ऐप से गुलाबों का गुलदस्ता ऑर्डर किया और पेमेंट भी कर दिया।
लेकिन टाइपिंग की गलती से “गुलाब” की जगह “गुलाबजामुन” पर क्लिक हो गया।
सुबह दरवाज़े पर डिलीवरी वाला आया और एक किलो गुलाबजामुन थमा गया।
पत्नी ग़ुस्से से बोलीं, “ये क्या है? मैंने तो सोचा फूल देंगे, आप तो मिठाई ले आए।”
शर्मा जी बोले, “अरे फूल तो एक दिन में मुरझा जाते हैं, लेकिन गुलाबजामुन से मोहब्बत सालभर चलती है।”
पत्नी ने ताना मारते हुए कहा, “हाँ-हाँ, आपकी मोहब्बत भी अब शक्कर की चाशनी में घुल गई है।”
वीडियो कॉल और मीटिंग का महाभारत
ऑनलाइन पेमेंट की गड़बड़ियों से मोहल्ला अभी उबरा भी नहीं था कि शर्मा जी को नया चस्का लग गया—वीडियो कॉल का। बेटे ने कहा, “पापा, अब आप वीडियो कॉल करना सीखिए। इससे दूर बैठे रिश्तेदार भी ऐसे दिखेंगे जैसे सामने बैठे हों।”
शर्मा जी की आँखें चमक उठीं। बोले, “वाह! अब तो हमें टिकट का पैसा बच जाएगा। गाज़ियाबाद वाला ताऊ जी सीधा ड्राइंग रूम में आ बैठेंगे।”
पहली वीडियो कॉल
बेटे ने उन्हें समझाया कि कैमरा ऑन करके नंबर मिलाओ। शर्मा जी ने बड़ी मेहनत से बटन दबाया और स्क्रीन पर खुद की शक्ल देखी।
वो चौंक गए, “अरे! मैंने तो ताऊ जी को बुलाया था, ये तो मैं खुद आ गया।”
बेटा हँसकर बोला, “पापा, कैमरा आपकी ही तरफ होता है। इसे फ्रंट कैमरा कहते हैं।”
शर्मा जी बोले, “अच्छा! मतलब ताऊ जी को देखने से पहले मैं खुद को देखूँगा। बड़ी स्वार्थी तकनीक है।”
आख़िरकार ताऊ जी स्क्रीन पर आए। लेकिन नेटवर्क गड़बड़ था, आवाज़ फटी-फटी आ रही थी। ताऊ जी बोले, “हैलो, हैलो, सुन रहे हो?”
शर्मा जी भी चिल्ला पड़े, “हाँ, मैं सुन रहा हूँ, लेकिन आप मुझे क्यों हकलाकर जवाब दे रहे हैं?”
ताऊ जी बोले, “अरे ये मेरी गलती नहीं, ये नेट की चाल है।”
कैमरे की गड़बड़ी
शर्मा जी को वीडियो कॉल का इतना नशा चढ़ा कि उन्होंने मोहल्ले की मीटिंग भी मोबाइल पर करने की ठान ली। चौबे जी, मिश्रा जी और पांडे जी सबको ग्रुप वीडियो कॉल में जोड़ा।
जैसे ही कॉल शुरू हुई, चौबे जी बोले, “अरे शर्मा जी, आप उल्टे क्यों दिख रहे हैं?”
असल में शर्मा जी ने फोन को तिरछा पकड़ लिया था और स्क्रीन पर उनका सिर नीचे और पैर ऊपर दिख रहे थे।
मिश्रा जी बोले, “लगता है शर्मा जी योगासन कर रहे हैं।”
शर्मा जी बोले, “नहीं-नहीं, मैं तो कुर्सी पर बैठा हूँ। ये फोन मुझे उल्टा-पुल्टा बना रहा है।”
पृष्ठभूमि का तमाशा
वीडियो कॉल में पीछे का दृश्य भी सबको दिखता है। पत्नी रसोई से गुज़र रही थीं। अचानक उन्होंने चिल्लाकर कहा, “ये आलू कौन रख गया यहाँ?”
पूरा ग्रुप हँस पड़ा। चौबे जी बोले, “वाह! शर्मा जी के घर की मीटिंग में भी आलू शामिल हैं।”
शर्मा जी शर्मिंदा हो गए। बोले, “अरे ध्यान मत दीजिए, ये हमारी टेक्निकल टीम है।”
पोती की कॉल
एक दिन उनकी पोती ने, जो विदेश में पढ़ रही थी, वीडियो कॉल किया। पोती ने कहा, “दादा जी, आप मुझे देख रहे हो?”
शर्मा जी बोले, “हाँ बिटिया, तू तो साफ दिख रही है। लेकिन तू क्यों इतनी छोटी हो गई? स्क्रीन पर तो हाथ की उँगली जितनी लग रही है।”
पोती खिलखिला उठी, “दादाजी, मैं छोटी नहीं हुई। स्क्रीन छोटी है।”
शर्मा जी बोले, “अरे ये फोन भी बच्चों को छोटा करके दिखाता है। बहुत अन्याय है।”
ऑफिस मीटिंग का हाल
एक दिन शर्मा जी के पुराने ऑफिस से उन्हें ऑनलाइन मीटिंग में बुलाया गया। शर्मा जी गर्व से बोले, “आज मैं सबको चौंका दूँगा।”
मीटिंग शुरू हुई। सब लोग गंभीर चर्चा कर रहे थे। अचानक शर्मा जी ने कैमरा ऑन किया।
लेकिन कैमरा ऐसे ऐंगल पर था कि केवल उनकी नाक का क्लोज़अप दिख रहा था।
बॉस चौंक गया, “अरे शर्मा, ये क्या है? पूरी स्क्रीन पर सिर्फ़ नथुने दिखाई दे रहे हैं।”
शर्मा जी हड़बड़ा गए और फोन घुमाते-घुमाते कैमरा सीधा किया। लेकिन अब पीछे से पत्नी आती दिखीं, जो आलमारी से कपड़े निकाल रही थीं।
बॉस ने हँसकर कहा, “लगता है मीटिंग से ज़्यादा दिलचस्प तो आपके घर का ड्रामा है।”
म्यूट का झंझट
मीटिंग के दौरान शर्मा जी बार-बार बोलते रहे, “मैं कुछ कहना चाहता हूँ।”
लेकिन किसी ने सुना ही नहीं। वो चिल्लाए, हाथ हिलाए, मगर कोई जवाब नहीं।
आख़िरकार बेटे ने दौड़कर बताया, “पापा, आपका माइक्रोफोन म्यूट है।”
शर्मा जी बोले, “अरे! मतलब इतने देर से मैं खामोशी का भाषण दे रहा था।”
बॉस ने हँसते हुए कहा, “शर्मा जी, अगर अगली बार भी म्यूट रहेंगे तो आपको ‘साइलेंट अचीवर’ का अवॉर्ड देंगे।”
स्क्रीनशेयर का हादसा
मीटिंग में सब लोग प्रेज़ेंटेशन दिखा रहे थे। शर्मा जी भी उत्साहित हो गए। उन्होंने कहा, “अब मैं भी अपना दस्तावेज़ दिखाऊँगा।”
लेकिन गलती से उन्होंने अपनी फोटो गैलरी खोलकर स्क्रीनशेयर कर दिया।
सबके सामने उनकी सुबह की सेल्फी दिखने लगी, जिसमें वो टूथब्रश मुँह में दबाकर पजामा पहने खड़े थे।
पूरी मीटिंग हँसी से फट पड़ी।
शर्मा जी ने हड़बड़ाकर कहा, “अरे ये हमारी प्रेज़ेंटेशन का ड्राफ्ट है—सुबह से शुरू होकर शाम तक।”
मोहल्ले की ऑनलाइन पंचायत
अब शर्मा जी ने मोहल्ले की ऑनलाइन पंचायत बुला ली। सब लोग फोन पर जुड़े।
चौबे जी बोले, “ये तकनीक तो अच्छी है। घर बैठे मीटिंग।”
लेकिन तभी शर्मा जी की नेटवर्क स्पीड गिर गई। उनकी आवाज़ ऐसी टूटी कि सुनाई दिया—“मिश्रा जी… आलू… चाय… शादी।”
मिश्रा जी चौंककर बोले, “अरे शर्मा जी, आप हमारी शादी की बात क्यों कर रहे हैं?”
शर्मा जी ने सफाई दी, “अरे नहीं-नहीं, मैं कह रहा था मोहल्ले में सफाई होनी चाहिए।”
रात का हादसा
रात को शर्मा जी ने सोचा कि वीडियो कॉल पर पत्नी को रोमांटिक सरप्राइज देंगे।
उन्होंने कैमरा ऑन किया और कहा, “मेरी प्यारी, देखो मैं तुम्हें फूल दिखा रहा हूँ।”
लेकिन गलती से फोन का पिछला कैमरा चालू रह गया। स्क्रीन पर न तो शर्मा जी दिखे, न फूल—बल्कि पीछे से पड़ोस का कुत्ता पूँछ हिलाते दिखा।
पत्नी बोलीं, “वाह जी, इतना प्यार कभी मुझे नहीं जताया जितना कुत्ते को।”
शर्मा जी शर्मिंदा हो गए, “अरे ये फोन हमारी लव स्टोरी का दुश्मन है।”
स्मार्टफोन का महा-हंगामा
अब तक शर्मा जी का स्मार्टफोन मोहल्ले में चर्चा का सबसे बड़ा विषय बन चुका था। कोई उन्हें “कैंडी चाचा” कहता, कोई “आलू बाबा,” तो कोई “स्मार्टफोन शर्मा।” लेकिन असली धमाका अभी बाकी था।
अलार्म का कांड
एक सुबह शर्मा जी ने सोचा कि अब फोन का अलार्म इस्तेमाल करेंगे। पहले तो हमेशा मुर्गे की बाँग या पत्नी की चिल्लाहट से उठते थे, पर अब उन्हें आधुनिकता का चस्का लग चुका था।
उन्होंने अलार्म सेट किया—सुबह ६ बजे। लेकिन टाइपिंग की गलती से ६ की जगह ६० लिख दिया।
फोन ने अगली अलार्म टाइम दिखाया—“सुबह ६०:०० बजे।”
शर्मा जी बोले, “वाह! ये तो हमें हमेशा सोने देगा। अब कभी न उठना पड़ेगा।”
पत्नी ने माथा पीट लिया, “अरे, इसका मतलब है अलार्म बजेगा ही नहीं।”
कैमरे का हंगामा
दोपहर को शर्मा जी ने मोहल्ले के पार्क में फोटो खींचने की ठानी। उन्होंने कैमरा खोला और बच्चों को इकट्ठा कर लिया।
“आओ बच्चों, मैं तुम्हें दुनिया का सबसे अच्छा फोटो दूँगा।”
लेकिन शर्मा जी का हाथ फिसल गया और उन्होंने ‘बर्स्ट मोड’ ऑन कर दिया।
तुरंत सैकड़ों फोटो खिंच गए। बच्चों ने हल्ला मचा दिया, “चाचा, आप तो हमारी फिल्म बना रहे हो!”
बाद में जब शर्मा जी ने फोटो देखे तो किसी में बच्चा रो रहा था, किसी में मुँह बना रहा था, और किसी में वो खुद आँखें बंद किए खड़े थे।
वायरल वीडियो का मामला
शर्मा जी का सबसे बड़ा सपना था कि उनका वीडियो वायरल हो जाए। एक दिन उन्होंने सोचा कि क्यों न डांस करके वीडियो बनाया जाए।
उन्होंने ड्राइंग रूम में कुर्सी हटाई, रेडियो चालू किया और ठुमके लगाने लगे। बेटे ने वीडियो शूट कर लिया।
शर्मा जी ने गर्व से कहा, “अब इसे यूट्यूब पर डालो।”
वीडियो अपलोड हुआ और देखते ही देखते मोहल्ले के सारे बच्चे हँसी से लोटपोट हो गए। किसी ने लिखा—“चाचा, आप तो टिक-टॉक के खोए हुए राजा लगते हो।”
किसी ने कमेंट किया—“अगर शर्मा जी का ये डांस वायरल हुआ तो हम मोहल्ला छोड़ देंगे।”
शर्मा जी खुश हो गए, “वाह! आखिरकार लोग मेरी कला को पहचान रहे हैं।”
पड़ोस की आंटी का फोन
एक दिन गलती से शर्मा जी ने पड़ोस की आंटी को वीडियो कॉल कर दिया। जैसे ही स्क्रीन पर आंटी आईं, शर्मा जी घबरा गए।
आंटी बोलीं, “अरे शर्मा जी, ये क्या? दिन-दहाड़े मुझे क्यों बुला लिया?”
शर्मा जी हकलाने लगे, “अरे आंटी, ये तो फोन की शरारत है। मैं तो बेटे को बुलाना चाहता था।”
पत्नी ने सब सुन लिया और गुस्से से बोलीं, “वाह जी! अब फोन के बहाने से मोहल्ले की आंटी को बुला रहे हो?”
पूरा घर हंगामे से भर गया।
ऑनलाइन शादी का निमंत्रण
कुछ ही दिन बाद शर्मा जी को एक ईमेल आया। उसमें लिखा था—“आपको शादी में सादर आमंत्रित किया जाता है। लिंक पर क्लिक करें और शामिल हों।”
शर्मा जी खुशी से उछल पड़े, “वाह! अब तो बिना लड्डू बाँटे ही शादी हो जाएगी।”
उन्होंने लिंक पर क्लिक किया और पूरे मोहल्ले के सामने फोन उठाकर बोले, “देखो, मैं शादी में शामिल हो रहा हूँ।”
लेकिन असल में वो शादी का नहीं, बल्कि ऑनलाइन जूते बेचने वाली साइट का लिंक था। स्क्रीन पर लिखा आया—“जूते खरीदें, ५०% छूट।”
चौबे जी बोले, “वाह शर्मा जी, आपने शादी के बदले जूतों से रिश्ता जोड़ लिया।”
फोन की मौत
इतने हादसों के बाद भी शर्मा जी का फोन चलता रहा। मगर आखिरकार एक दिन असली दुर्घटना हो ही गई।
शर्मा जी बाथरूम में गाना गुनगुनाते हुए फोन से सेल्फी ले रहे थे। अचानक फोन उनके हाथ से फिसला और बाल्टी में जा गिरा।
“धड़ाम!”
फोन पानी में डूब गया। शर्मा जी ने चीख मार दी, “अरे! मेरी जान चली गई!”
पत्नी दौड़ी आईं, “क्या हुआ? कौन चला गया?”
शर्मा जी रोते हुए बोले, “मेरा स्मार्टफोन।”
पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया। किसी ने कहा, “फ्रिज में डाल दो, सूख जाएगा।” किसी ने कहा, “चावल में दबा दो, नमी खींच लेगा।”
शर्मा जी ने फोन को चावल के डिब्बे में डाल दिया। मगर जब तक निकाला, फोन ने अंतिम सांसें ले ली थीं।
विदाई समारोह
फोन की मौत पर शर्मा जी ने बाक़ायदा श्रद्धांजलि सभा रखी। मोहल्ले वाले इकट्ठा हुए।
शर्मा जी ने गला भरकर कहा, “ये फोन केवल मशीन नहीं था, ये मेरे जीवन का सबसे बड़ा शिक्षक था। इसने मुझे आलू की गहराई, गुलाबजामुन की मिठास और जूतों का दर्द सिखाया।”
सब लोग हँसी रोकते-रोकते रोने लगे।
चौबे जी बोले, “सही कह रहे हो शर्मा। इस फोन ने हमें भी खूब हँसाया।”
नया मोड़
श्रद्धांजलि सभा खत्म होते-होते बेटे ने कहा, “पापा, चिंता मत कीजिए। अगली बार और अच्छा स्मार्टफोन ले लेंगे।”
शर्मा जी की आँखों में चमक लौट आई। बोले, “हाँ बेटा, इस बार तो मैं ऐसा फोन लूँगा जिसमें गलती की भी सेटिंग हो। ताकि चाहे मैं कुछ भी दबाऊँ, सही काम ही हो।”
पत्नी ने सिर पकड़ लिया, “हे भगवान! अब तो अगला अध्याय शुरू होगा।”
मोहल्ले वाले बोले, “फिर से हंगामा पक्का है।”
समाप्त
				
	

	


