Hindi - क्राइम कहानियाँ

रिवर्स काउंटडाउन

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सिद्धार्थ महाजन


मुंबई की उस रात की हवा में बारिश की गंध कुछ अलग थी—एक ऐसी नमी जो सिर्फ मौसम की नहीं, बल्कि आने वाले तूफ़ान का संकेत दे रही थी। शाम से ही लगातार बरसते पानी ने मरीन ड्राइव की चमकदार सड़क को आईने जैसी चिकनी सतह में बदल दिया था। अरब सागर की लहरें ऊँचाई तक उछलकर पत्थरों से टकरा रही थीं, मानो शहर के हर रहस्य को धो डालना चाहती हों। लेकिन उस रात जो होने वाला था, उसे कोई भी बारिश नहीं मिटा सकती थी। रात के ठीक ग्यारह बजकर पैंतालीस मिनट पर एक काले रंग की मर्सिडीज़ S-क्लास समुद्र किनारे पार्किंग में खड़ी मिली, जिसके शीशों पर पानी की बूंदें मोतियों की तरह चमक रही थीं। पास से गुजरते ड्राइवरों को वह बस एक और लक्ज़री कार लगी, लेकिन गाड़ी के भीतर बैठे व्यक्ति की स्थिरता ने एक पैदल चल रहे युवक का ध्यान खींच लिया। उसने खिड़की के पास जाकर देखा—सामने की सीट पर एक मध्यम आयु का आदमी, सिर सीट के पीछे टिका हुआ, आँखें आधी खुली, और चेहरे पर अजीब-सी शांति। युवक ने दरवाज़े पर खटखटाया, पर कोई हलचल नहीं हुई। तभी उसकी नज़र डैशबोर्ड पर गई, जहाँ एक लाल रोशनी में चमकता डिजिटल डिस्प्ले दिख रहा था: 48:00:00। संख्याएँ धीरे-धीरे घट रही थीं, मानो किसी अनदेखे खेल की गिनती शुरू हो चुकी हो। युवक ने घबराकर तुरंत पुलिस को फोन किया, और कुछ ही मिनटों में मरीन ड्राइव की शांत रात पर सायरनों की तीखी आवाज़ों ने कब्ज़ा कर लिया।

इंस्पेक्टर आरव मेहता अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुँचे। तीस की उम्र के इस तेज़तर्रार अफ़सर की पहचान थी उसकी ठंडी निगाहें और बारीक़ियों को पकड़ने की अद्भुत क्षमता। गाड़ी का दरवाज़ा खोलते ही एक तेज़ धातु जैसी गंध बाहर फैल गई—खून की गंध। पीड़ित की पहचान जल्दी ही हो गई: रघुवीर मल्होत्रा, शहर का नामी बिज़नेसमैन, जो अपने आक्रामक सौदों और बेदाग़ पब्लिक इमेज के लिए मशहूर था। उसकी सफ़ेद शर्ट पर लाल धब्बे साफ़ दिख रहे थे, गले पर गहरे कट के निशान से साफ़ था कि मौत तेज़ धार वाले हथियार से हुई है। मगर सबसे चौंकाने वाली चीज़ थी वही डिजिटल डिस्प्ले। आरव ने डिवाइस को ध्यान से देखा—यह कोई साधारण कार एक्सेसरी नहीं थी। डिस्प्ले पर समय लगातार कम हो रहा था, और हर सेकंड की टिक-टिक बारिश की आवाज़ में भी साफ़ सुनाई दे रही थी। टीम ने डिवाइस को हटाने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही एक कॉन्स्टेबल ने तार खींचने का प्रयास किया, स्क्रीन ने चमकते हुए चेतावनी दी: “Do Not Interrupt”। यह कोई साधारण घड़ी नहीं थी; यह किसी बेहद चालाक दिमाग़ की बनाई हुई मशीन थी। आरव ने तुरंत आदेश दिया कि कोई भी इसे छेड़े नहीं। कार के अंदर कोई संघर्ष का निशान नहीं था, खिड़कियाँ भीतर से लॉक थीं, और सीसीटीवी फुटेज में दिख रहा था कि कार कुछ घंटों पहले यहाँ आई थी लेकिन ड्राइवर कभी बाहर नहीं निकला। मीडिया के कैमरे अब तक वहां पहुंच चुके थे, और चारों तरफ़ से सवालों की बौछार होने लगी—“क्या यह हत्या है?” “काउंटडाउन का मतलब क्या है?”—लेकिन आरव की निगाहें सिर्फ़ उस उलटी गिनती पर टिकी थीं, जो अब 47:52:13 दिखा रही थी। हर घटता सेकंड जैसे उसके भीतर एक अनजानी बेचैनी जगा रहा था।

रघुवीर मल्होत्रा की हत्या की ख़बर कुछ ही घंटों में पूरे शहर में आग की तरह फैल गई। टीवी चैनलों पर “रिवर्स काउंटडाउन किलर” की हैडलाइन चमक रही थी, और सोशल मीडिया पर लोग तरह-तरह के कयास लगाने लगे। क्या यह किसी बिज़नेस राइवल का काम था? या किसी साइकोपैथ का जो खेल खेल रहा था? पुलिस मुख्यालय में डीसीपी ने आरव को स्पष्ट निर्देश दिए—इस केस को शहर की इज्ज़त का मामला समझो, हर सुराग पर नज़र रखो। आरव ने अपनी टीम के साथ तुरंत मल्होत्रा के बिज़नेस और निजी जीवन की तहकीकात शुरू की। शुरुआती रिपोर्ट में सामने आया कि मल्होत्रा हाल ही में एक बड़े रियल एस्टेट डील में विवादों में घिरा था, लेकिन कोई ठोस सबूत नहीं था। वहीं फॉरेंसिक टीम ने बताया कि हत्या में इस्तेमाल हथियार अभी तक नहीं मिला है, और कार के फिंगरप्रिंट्स भी साफ़ कर दिए गए हैं—सिवाय मल्होत्रा के। सब कुछ इतनी सफाई से किया गया था कि मानो कातिल पुलिस से कई कदम आगे सोच चुका हो। रात गहराती जा रही थी, पर आरव की आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। बाहर बारिश थम चुकी थी, लेकिन उसके भीतर सवालों की बारिश और तेज़ हो गई थी। आखिर ये 48 घंटे किस चीज़ की गिनती है? क्या यह अगले शिकार की ओर इशारा है, या पुलिस के लिए कोई घातक चेतावनी? डिस्प्ले की ठंडी लाल रोशनी जैसे कह रही थी—खेल अभी शुरू हुआ है।

सुबह की पहली किरणें मुंबई की गीली सड़कों पर हल्की सुनहरी चमक बिखेर रही थीं, लेकिन इंस्पेक्टर आरव मेहता के दफ़्तर में माहौल रात से भी ज़्यादा भारी था। मरीन ड्राइव की हत्या की गूंज अब तक थमी नहीं थी, और मीडिया ने “रिवर्स काउंटडाउन किलर” को लेकर शहर को दहशत में डाल दिया था। आरव अपने डेस्क पर रखी फाइलों में डूबा था कि अचानक साइबर क्राइम सेल से कॉल आया। आवाज़ में उतावलापन साफ़ झलक रहा था—“सर, आपको कुछ दिखाना होगा।” आरव तुरंत कंट्रोल रूम पहुँचे, जहाँ स्क्रीन पर रघुवीर मल्होत्रा की ईमेल इनबॉक्स खुली थी। जाँच के दौरान यह पता चला था कि हत्या से ठीक बहत्तर घंटे पहले मल्होत्रा को एक अनजान ईमेल मिला था। ईमेल का सब्जेक्ट लाइन ही किसी धमकी से कम नहीं थी: “Your Time Starts Now”। मेल खोलते ही एक वीडियो चलता था, जिसमें मल्होत्रा की निजी ज़िंदगी के कुछ ऐसे गुप्त पल कैद थे, जिनके बाहर आने से उसकी इमेज और बिज़नेस साम्राज्य दोनों तबाह हो सकते थे। वीडियो के नीचे सिर्फ़ दो लाइनें थीं—“48 घंटे में 10 करोड़ का इंतज़ाम करो। पैसा कहाँ और कैसे देना है, अगला मेल बताएगा। पुलिस को खबर दी तो अगला डिस्प्ले तुम्हारे नाम होगा।” आरव की आँखों में एक ठंडी चमक उभरी। यानी काउंटडाउन का खेल यहीं से शुरू हुआ था। मल्होत्रा ने ब्लैकमेलर की शर्तें मानने की बजाय चुप रहना चुना, शायद उसने सोचा होगा कि यह महज़ एक डराने की चाल है। लेकिन ठीक दो दिन बाद, वही 48 घंटे पूरे होते ही उसकी हत्या हो गई।

साइबर टीम ने ईमेल के स्रोत का पता लगाने की कोशिश की, पर यह कोई साधारण ब्लैकमेलर नहीं था। मेल का आईपी एड्रेस हर बार अलग-अलग देशों से रूट हो रहा था—कभी रूस, कभी सिंगापुर, तो कभी किसी छोटे यूरोपीय शहर से। आरव के अनुभवी दिमाग़ ने तुरंत समझ लिया कि यह कोई शौकिया अपराधी नहीं है, बल्कि कोई ऐसा मास्टरमाइंड है जो डिजिटल दुनिया को हथियार की तरह इस्तेमाल करना जानता है। आरव ने मेल की भाषा, वीडियो की क्वालिटी और भेजे गए समय को बार-बार देखा। हर डिटेल में एक ठंडी, योजनाबद्ध सोच झलक रही थी। वीडियो के बैकग्राउंड में चल रही हल्की-सी ध्वनि—एक पुराना मराठी गाना—ने आरव का ध्यान खींचा। “ये गाना इतना अनजाना नहीं है,” उसने मन ही मन सोचा, “लेकिन इसे कहाँ सुना है?” उसी वक्त उसकी फोन की स्क्रीन पर एक और नोटिफिकेशन चमका। यह शहर के दूसरे छोर, बांद्रा के एक पब से आई इमरजेंसी कॉल थी। रिपोर्ट थी कि वहां एक पार्क की गई कार के भीतर एक और डिजिटल डिस्प्ले मिला है, बिल्कुल वैसा ही जैसा मरीन ड्राइव पर देखा गया था। आरव के दिल की धड़कन तेज़ हो गई। टीम को साथ लेकर वह तुरंत बांद्रा के लिए निकला। बारिश अब थम चुकी थी, लेकिन आसमान में काले बादल अब भी भारी थे, जैसे शहर पर किसी अदृश्य साए की परत चढ़ी हो।

बांद्रा के पब के पीछे बने सुनसान पार्किंग एरिया में जैसे ही आरव पहुँचा, उसने देखा कि पुलिस पहले ही जगह को घेर चुकी है। एक सिल्वर रंग की ऑडी Q7 के डैशबोर्ड पर वही लाल रोशनी चमक रही थी: 48:00:00। स्क्रीन पर टाइमिंग वही थी, गिनती फिर से शुरू हो चुकी थी, और अब 47:55:42 दिखा रही थी। लेकिन इस बार कार के अंदर कोई लाश नहीं थी। खाली सीटों के बीच वह अकेला डिस्प्ले किसी घातक संदेश की तरह चमक रहा था। आरव ने खिड़की से झाँकते हुए डिवाइस का निरीक्षण किया—पिछले डिस्प्ले से ज़रा भी अलग नहीं, जैसे किसी ने इसे खास तौर पर एक ही ढाँचे में बनाया हो। मीडिया के लोग मौके पर पहुँच चुके थे, कैमरों की फ्लैश लाइट्स अंधेरे में बारूद की चिंगारियों जैसी चमक रही थीं। चारों तरफ़ से सवालों की बौछार हो रही थी—“क्या अगला शिकार तय हो चुका है?” “काउंटडाउन खत्म होते ही क्या फिर से खून बहेगा?” लेकिन आरव की नज़रें केवल उस लाल रोशनी पर टिकी थीं, जो शहर के लिए दूसरी चेतावनी थी। अब यह साफ़ हो गया था कि यह खेल सिर्फ़ एक हत्या तक सीमित नहीं है। किसी को 48 घंटे के भीतर यह साबित करना होगा कि वह अगला निशाना कौन है, वरना मुंबई की गलियों में फिर किसी की ज़िंदगी की उलटी गिनती ख़त्म हो जाएगी। आरव के भीतर एक ठंडा संकल्प जागा—कातिल चाहे जितनी चालाकी दिखाए, अब यह शिकार और शिकारी का खेल नहीं रहेगा।

मुंबई की रात फिर एक बार डर के साये में डूब गई थी। बांद्रा के पब की पार्किंग में मिला दूसरा डिजिटल डिस्प्ले अपनी गिनती के आख़िरी घंटों की ओर बढ़ रहा था। इंस्पेक्टर आरव मेहता और उनकी टीम ने चारों तरफ़ नाकाबंदी कर रखी थी, सीसीटीवी फुटेज खंगाली जा रही थी, और हर गाड़ी की तलाशी ली जा रही थी। बारिश से गीली सड़कें स्ट्रीट लाइट की पीली रोशनी में चमक रही थीं, पर हवा में फैली बेचैनी किसी भी रोशनी को निगलने पर तुली थी। आरव को यकीन था कि काउंटडाउन खत्म होने से पहले अगला निशाना सामने आएगा। उसकी नज़रें लगातार डिस्प्ले पर टिके सेकंड्स पर दौड़ रही थीं, मानो हर टिक-टिक उसकी नसों में बिजली दौड़ा रही हो। 00:12:57—बस बारह मिनट। तभी वायरलेस पर एक चीखती हुई आवाज़ गूंजी—“सिरफ एक किलोमीटर दूर, पालि हिल रोड के पास एक बंगले से गोली चलने की आवाज़ आई है!” आरव ने बिना एक पल गंवाए टीम को वहीं रोककर गाड़ी स्टार्ट की। बारिश फिर से तेज़ हो चुकी थी, वाइपर लगातार शीशे पर दौड़ रहे थे, और शहर की सड़कें इस रात की दहशत का बयान कर रही थीं। बंगले पर पहुँचते ही उसने देखा, मीडिया के कुछ लोग पहले से मौजूद थे, और पुलिस लाइन खींच चुकी थी। भीतर जो नज़ारा था, उसने आरव के दिल में चुभन भर दी—मुंबई के मशहूर फिल्म प्रोड्यूसर संदीप कपूर का शव उनके आलीशान ड्राइंग रूम में पड़ा था, सिर पर नज़दीक से चलाई गई गोली के निशान साफ़ थे। ठीक उसी समय, पब में रखा डिस्प्ले शून्य पर पहुँचा और अपनी रोशनी बुझा दी। समय और मौत की यह संगति अब संयोग नहीं रह गई थी।

बंगले की दीवारों पर लगे सुरक्षा कैमरों से मिली सीसीटीवी फुटेज ने इस डरावने खेल की एक और परत खोल दी। स्क्रीन पर एक काले हूडि पहना शख्स दिखा, जो बड़े इत्मीनान से बंगले की ओर बढ़ रहा था। उसका चेहरा हर फ्रेम में अंधेरे या कैमरे के ब्लाइंड स्पॉट में छुपा रहा, मानो उसने पहले ही हर कैमरे की पोज़िशन का खाका बना लिया हो। वह बंगले के भीतर घुसता है, महज़ चार मिनट में बाहर निकलता है, और बिना किसी हड़बड़ाहट के रात में गुम हो जाता है। आरव ने वीडियो को कई बार देखा, हर चाल, हर हरकत को परखा, लेकिन हत्यारे की पहचान किसी भूत जैसी रहस्यमयी थी। पुलिस ने आसपास के इलाकों में तलाशी ली, पर कोई सुराग नहीं मिला। तभी साइबर सेल ने आरव को ईमेल की नई सूचना दी—मर्डर के सिर्फ़ पंद्रह मिनट बाद एक और मेल आया था, इस बार मीडिया हाउसों और पुलिस दोनों को। मेल का सब्जेक्ट लाइन वही ठंडी चुनौती थी: “Truth is Punishment”। मेल के अटैचमेंट में एक वीडियो था, जिसमें संदीप कपूर की छुपी हुई ज़िंदगी का ऐसा काला सच सामने आया, जिसे देख शहर हिल गया। वीडियो में उनके कई साल पुराने एक कास्टिंग काउच स्कैंडल के सबूत थे—रिकॉर्डिंग्स, मैसेजेस और गवाही, जिनका कोई सार्वजनिक रिकॉर्ड कभी नहीं मिला था। मेल में साफ़ लिखा था—“पाप का मूल्य अब खून से चुकाया जाएगा। अगला शिकार तैयार है।” स्क्रीन के आख़िरी फ्रेम पर बस दो शब्द चमक रहे थे—“48 Hours”। आरव के मन में एक ठंडी लहर दौड़ गई। इसका मतलब था कि तीसरी मौत का काउंटडाउन अब शुरू हो चुका है।

मीडिया ने इस सनसनीखेज मोड़ को लपक लिया। हर न्यूज़ चैनल, हर अख़बार इस हत्यारे को नया नाम दे रहा था—“नैतिक हत्यारा”, “मोरल किलर”, “डिजिटल जल्लाद”। एंकरों की गर्म बहसें शहर को और भी भयभीत कर रही थीं। कुछ लोग हत्यारे को समाज का “सुधारक” बताकर समर्थन कर रहे थे, तो कुछ इसे अराजकता की चेतावनी कह रहे थे। सोशल मीडिया पर मीम्स, थ्रेड्स और लाइव चर्चाओं का बवंडर उठ चुका था। आरव मेहता के लिए यह मामला अब सिर्फ़ हत्या की गुत्थी नहीं रह गया था; यह एक मनोवैज्ञानिक युद्ध था। हर पीड़ित का कोई गुप्त पाप सामने आ रहा था, हर मेल में छुपा एक नैतिक फैसला था, और हर काउंटडाउन के पीछे एक घड़ी की टिक-टिक थी जो पुलिस की नाकामी पर हँस रही थी। शहर की गलियों में रात ढलते ही लोग जल्दी घर लौटने लगे, पब और रेस्टोरेंट्स खाली दिखने लगे, और बच्चे टीवी की खबरों से सहमे हुए थे। आरव खिड़की से बाहर देखते हुए खुद से जूझ रहा था—क्या यह हत्यारा सच में गुनहगारों को सज़ा दे रहा है, या यह नैतिकता का मुखौटा पहनकर अपनी बीमार मानसिकता का खेल खेल रहा है? एक तरफ़ बढ़ता दबाव था, दूसरी तरफ़ गिनती की निर्दयी चाल। कातिल ने साफ़ संदेश दे दिया था: अगले 48 घंटे पुलिस के लिए इम्तहान होंगे। आरव जानता था कि अगर अगली उलटी गिनती को समय रहते नहीं रोका गया, तो मुंबई की इस बेचैन रात का अंत फिर एक लाश और एक जलती लाल रोशनी के साथ होगा।

मुंबई पुलिस मुख्यालय की चौथी मंज़िल पर बने स्पेशल वार रूम में उस रात हर स्क्रीन नीली रोशनी में चमक रही थी। साइबर क्राइम यूनिट, फॉरेंसिक टीम और इंस्पेक्टर आरव मेहता की विशेष टीम एक ही जगह इकट्ठा थी। दीवार पर लगी बड़ी डिजिटल घड़ी पर टिक-टिक करती सूइयां सबको लगातार यह याद दिला रही थीं कि अगला काउंटडाउन अब भी चल रहा है। ईमेल ट्रैक करने की कोशिश पिछले चोबीस घंटों से लगातार जारी थी, लेकिन हर सुराग जैसे किसी अदृश्य दीवार से टकराकर लौट आ रहा था। कभी मेल का आईपी सर्बिया से निकलता, कभी किसी अफ़्रीकी सर्वर से। कई बार तो लोकेशन ऐसी जगह दिखती जहां सर्वर का कोई वास्तविक अस्तित्व ही नहीं था। आरव ने स्क्रीन पर झुककर कोड की लंबी लाइनों को पढ़ते हुए गहरी सांस ली। सामने साइबर सेल की चीफ़ अधिकारी प्रिया नायर ने धीरे से कहा, “ये कोई साधारण हैकर नहीं है, सर। हर मेल भेजने से पहले वो वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क की परतें बनाता है, और हर परत खुद-ब-खुद मिट जाती है। जो भी यह कर रहा है, वह न सिर्फ़ टेक्नोलॉजी का मास्टर है, बल्कि हमारे हर कदम का पहले से अंदाज़ा भी लगा रहा है।” कमरे में सन्नाटा छा गया। आरव को महसूस हुआ कि यह अपराधी सिर्फ़ पुलिस को नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम को चुनौती दे रहा है। हर असफल ट्रैकिंग के साथ मीडिया का दबाव बढ़ रहा था और जनता का डर गहराता जा रहा था। बाहर शहर में शाम की भीड़ अपने तरीके से चल रही थी, लेकिन इस वार रूम की घड़ी किसी और ही दुनिया का समय दिखा रही थी—एक ऐसी दुनिया का जहां हर सेकंड मौत की ओर ले जा रहा था।

इसी तनाव के बीच, फॉरेंसिक लैब से आई एक रिपोर्ट ने आरव की सोच की दिशा बदल दी। बांद्रा और मरीन ड्राइव से जब्त किए गए दोनों डिजिटल डिस्प्ले की बारीकी से जांच की गई थी। देखने में साधारण एलईडी स्क्रीन जैसी लगने वाली इन डिवाइसों के भीतर बेहद जटिल सर्किट और कस्टम-डिज़ाइन चिप्स लगे थे। रिपोर्ट के आख़िरी पन्ने पर एक छोटा-सा नोट था, जिसने आरव की आंखों में चमक ला दी—“हर डिवाइस के मदरबोर्ड पर एक सीरियल नंबर उकेरा गया है, और दोनों नंबरों का पैटर्न किसी पुराने पुलिस रिकॉर्ड से मेल खाता है।” आरव ने तुरंत पुराने केस फाइल्स खुलवाए। घंटों तक फाइलों और डेटाबेस को खंगालने के बाद आखिर उसने पैटर्न पकड़ लिया—सीरियल नंबर असल में मुंबई के पिछले दस सालों के कुछ अनसुलझे मामलों की फाइल कोडिंग से मेल खा रहे थे। मरीन ड्राइव के डिस्प्ले का नंबर एक पुराने हिट-एंड-रन केस से जुड़ा था, जिसमें एक नामी कारोबारी ने सबूतों की कमी के कारण सज़ा से बच निकलने में सफलता पाई थी। बांद्रा के डिस्प्ले का नंबर एक ऐसे कास्टिंग काउच मामले की फाइल से मिलता था जिसे प्रोड्यूसर संदीप कपूर के प्रभावशाली संपर्कों ने दबा दिया था। आरव की आंखों के सामने पजल का एक नया टुकड़ा साफ़ हो गया—कातिल सिर्फ़ मौजूदा पीड़ितों को नहीं, बल्कि शहर के पुराने अपराधों को भी अच्छी तरह जानता है। ये महज़ ब्लैकमेल या पैसों का खेल नहीं था; यह किसी का ठंडा, योजनाबद्ध बदला था, जिसमें कानून की नाकामी को निशाना बनाया जा रहा था।

इस खोज ने केस को और जटिल बना दिया। आरव के सामने अब दो लड़ाइयाँ थीं—एक तरफ़ डिजिटल दुनिया में छुपे ब्लैकमेलर को पकड़ना, दूसरी तरफ़ पुराने केसों के जाल में छुपे उन नामों को खोजना जो शायद अगला निशाना हो सकते थे। उसने अपनी टीम को निर्देश दिया कि सभी पुराने अनसुलझे मामलों को प्राथमिकता के आधार पर फिर से खंगाला जाए। फाइलें एक-एक करके वार रूम की टेबल पर फैलने लगीं—भ्रष्ट राजनेता, ताक़तवर बिज़नेसमैन, फिल्म इंडस्ट्री के बड़े चेहरे, सबकी परतें खुलने लगीं। हर केस में एक बात समान थी: अपराध के पुख्ता सबूत होने के बावजूद आरोपियों को कानूनी दांवपेंच और पैसे के बल पर बरी कर दिया गया था। इसी बीच, मीडिया ने “नैतिक हत्यारा” को लेकर और उग्र बहस छेड़ दी। कुछ लोग इसे न्याय का नया रास्ता बता रहे थे, तो कुछ पुलिस की नाकामी को कोस रहे थे। आरव खिड़की से बाहर देखते हुए सोच में डूब गया—क्या यह हत्यारा किसी व्यक्तिगत बदले की आग में जल रहा है, या यह सिस्टम के खिलाफ़ एक सुनियोजित युद्ध है? जवाब कोई भी हो, एक बात तय थी: यह सिर्फ़ एक अपराधी नहीं, बल्कि शहर की आत्मा को झकझोरने वाला खिलाड़ी था। हर नई खोज के साथ उलझन गहराती जा रही थी। आरव ने ठान लिया कि चाहे यह खेल कितना भी उलझा हो, उसे इस छुपे हुए दुश्मन की पहचान करनी ही होगी, क्योंकि हर काउंटडाउन के पीछे सिर्फ़ मौत नहीं, बल्कि मुंबई के पुराने पापों का काला आईना छुपा था।

मुंबई की रात हमेशा की तरह शोर और रोशनी से भरी थी, लेकिन इंस्पेक्टर आरव मेहता के घर के भीतर एक ऐसा सन्नाटा था जो किसी भी अपराध स्थल से ज़्यादा भयावह लग रहा था। पिछले कुछ दिनों से चल रहे लगातार हत्याओं और काउंटडाउन की गूंज अब उसके निजी जीवन तक पहुँच चुकी थी। रात के करीब ग्यारह बजे जब वह अपने डेस्क पर पुराने केस फाइलों में उलझा था, तभी मोबाइल की स्क्रीन चमकी—पत्नी सिया का संदेश था। आरव ने जैसे ही मैसेज खोला, उसकी सांसें थम गईं। स्क्रीन पर सिर्फ़ तीन शब्द थे: “काउंटडाउन शुरू हो चुका है।” कोई नाम नहीं, कोई नंबर नहीं, बस एक अनजाना व्हाट्सऐप अकाउंट और डराने वाली पंक्ति। सिया बेडरूम से बाहर आई तो उसका चेहरा पीला पड़ा हुआ था, हाथ में फोन अब भी कांप रहा था। “आरव, ये क्या हो रहा है? ये लोग मुझे क्यों मैसेज कर रहे हैं?” उसकी आवाज़ में भय और आरोप दोनों थे। आरव ने उसे शांत करने की कोशिश की, लेकिन उसके मन में एक नई बेचैनी घर कर चुकी थी। अब यह खेल सिर्फ़ एक पुलिस केस नहीं रह गया था; यह सीधे उसकी निजी ज़िंदगी में प्रवेश कर चुका था। कमरे के कोने में टंगी घड़ी की टिक-टिक अब किसी धमकी की तरह लग रही थी। आरव ने तुरंत सिया का फोन अपनी साइबर टीम को ट्रेसिंग के लिए भेजा, लेकिन जवाब वही पुराना था—आईपी एड्रेस हर सेकंड बदल रहा था, और संदेश कोडेड सर्वर से आया था। सिया ने आँसुओं से भरी आँखों से कहा, “अगर ये लोग मेरे पास तक पहुँच सकते हैं, तो अगला कदम क्या होगा?” आरव के पास कोई जवाब नहीं था, बस उसकी मुट्ठी कसती जा रही थी।

अगली सुबह सूरज के उगने से पहले ही एक और झटका इंतज़ार कर रहा था। आरव जैसे ही अपने थाना परिसर पहुँचा, उसे गेट पर तैनात कॉन्स्टेबल ने रोक लिया। उसकी आँखों में डर साफ़ झलक रहा था। “सर… आपको कुछ दिखाना है,” वह हकलाते हुए बोला। आरव तेज़ क़दमों से उस दिशा में बढ़ा जहाँ स्टेशन की पार्किंग में पुलिस की गाड़ियाँ खड़ी रहती थीं। वहाँ, बिलकुल बीचोंबीच, एक काली एसयूवी की डैशबोर्ड पर वही लाल चमकती डिजिटल स्क्रीन लगी थी। डिस्प्ले पर लिखा था: 48:00:00। चारों ओर तैनात जवान हैरानी और घबराहट में इकट्ठा थे। यह पहला मौका था जब ब्लैकमेलर ने पुलिस के दिल पर सीधा वार किया था—आरव के अपने इलाके में, उसकी निगरानी के बावजूद। डिवाइस के चारों तरफ़ कोई उंगली के निशान नहीं थे, कैमरे की फुटेज में सिर्फ़ कुछ सेकंड का अंधेरा दिखा, मानो कोई अदृश्य हाथ इस घड़ी को रखकर गायब हो गया हो। स्टेशन की दीवारों पर टंगे सीसीटीवी कैमरे भी उस समय कुछ देर के लिए ब्लैकआउट में चले गए थे। आरव ने स्क्रीन को देखा, जो अब 47:52:33 पर पहुँच चुकी थी। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था—यह सिर्फ़ चुनौती नहीं, बल्कि सीधी चेतावनी थी। कातिल उसे बता रहा था कि अब पुलिस की ताक़त और सुरक्षा भी इस खेल को रोक नहीं सकती। इस बार की गिनती महज़ शहर में किसी अनजान शिकार की ओर इशारा नहीं कर रही थी, बल्कि आरव के अपने जीवन को केंद्र में खड़ा कर रही थी।

उससे भी बड़ा सदमा कुछ देर बाद मिला, जब साइबर क्राइम यूनिट ने तीसरे डिस्प्ले से जुड़ा नया ईमेल खोलकर आरव को दिखाया। मेल की हेडलाइन में लिखा था: “पाप की फाइल नंबर तीन”। नीचे स्क्रॉल करते ही स्क्रीन पर एक वीडियो प्ले हुआ, जिसमें पुलिस विभाग के ही एक अफसर का नाम और चेहरा साफ़ दिखाई दे रहा था—सब-इंस्पेक्टर रजत वर्मा, जो आरव की टीम का हिस्सा था। वीडियो में रजत के पुराने एक ड्रग्स केस से जुड़े दस्तावेज़ और तस्वीरें थीं, जिनसे साफ़ साबित होता था कि उसने सबूतों से छेड़छाड़ कर एक बड़े नशा तस्कर को बचाया था और इसके बदले भारी रकम ली थी। रजत यह देखकर हक्का-बक्का रह गया, उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया। कमरे में बैठे हर इंस्पेक्टर की आँखों में शक और गुस्सा था। रजत हकलाते हुए सफाई देने लगा, लेकिन आरव की नज़रों में अब कोई कोमलता नहीं थी। यह खेल अब खुलकर पुलिस की ईमानदारी को चुनौती दे रहा था। आरव समझ गया कि ब्लैकमेलर सिर्फ़ बाहरी अपराधियों को नहीं, बल्कि सिस्टम के भीतर के पापियों को भी निशाना बना रहा है। उसकी चाल इतनी गहरी थी कि पुलिस के हर कदम को पहले से भांप कर उसने पूरी टीम को मानसिक रूप से तोड़ने का इंतज़ाम कर रखा था। बाहर मीडिया चैनलों पर “रिवर्स काउंटडाउन किलर पुलिस को भी निशाने पर ले रहा है” की हेडलाइन घूम रही थी, और जनता का भरोसा पुलिस पर से उठने लगा था। सिया को भेजे गए संदेश, थाने के भीतर मिला डिस्प्ले, और टीम के अफसर का उजागर सच—इन तीन वारों ने आरव की पेशेवर और निजी दोनों ज़िंदगियों को हिला दिया था। अब यह केस महज़ अपराधी को पकड़ने का नहीं, बल्कि अपनी पत्नी, अपने साथियों और पूरे सिस्टम की रक्षा का युद्ध बन चुका था। और घड़ी की टिक-टिक हर सेकंड यह याद दिला रही थी कि अगला शिकार कोई भी हो सकता है—शायद खुद आरव भी।

मुंबई की नमी भरी सुबह, जब शहर का आसमान हल्के ग्रे रंग में डूबा था, आरव मेहता के दफ़्तर में बेचैनी एक नए स्तर पर पहुँच चुकी थी। पिछली रात मिली जानकारी ने पूरी टीम की नींद उड़ा दी थी—काउंटडाउन का अंत आते ही इंस्पेक्टर निखिल सावंत की मौत की आशंका लगभग तय हो चुकी थी। निखिल, जो आरव की अपनी टीम का हिस्सा था, अब ब्लैकमेलर की अगली सूची में शामिल हो चुका था। आरव बार-बार खुद से सवाल कर रहा था—क्या वे इस खेल को रोकने में इतने असहाय थे? निखिल के अतीत की जाँच में धीरे-धीरे चौंकाने वाली परतें खुल रही थीं। एक पुराने मर्डर केस में, जो तीन साल पहले मीडिया की सुर्खियों में छाया था, निखिल ने सबूतों के साथ छेड़छाड़ की थी। उस केस में एक बड़े बिज़नेसमैन का नाम सामने आया था, मगर रहस्यमय तरीके से सारे ठोस सबूत गायब हो गए और आरोपी बरी हो गया। रिपोर्टों से पता चला कि निखिल ने इस केस में किसी की सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि मोटी रकम के लिए गवाही को मोड़ा था। जैसे-जैसे यह सच सामने आता गया, आरव के भीतर की बेचैनी बढ़ती गई—क्योंकि इसका मतलब साफ़ था कि ब्लैकमेलर पुलिस के हर रहस्य तक पहुँच रखता है। बारिश से भीगे मरीन ड्राइव पर गाड़ियाँ धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थीं, पर आरव के मन की रफ्तार किसी रुकने को तैयार नहीं थी। वह बार-बार अपने ऑफिस के कोने में लगे तीसरे डिस्प्ले को देख रहा था, जिसमें अब “05:12:33” चमक रहा था। समय तेजी से फिसल रहा था, और उनके पास कोई पुख्ता रास्ता नहीं था।

समय खत्म होने से पहले पूरी टीम ने निखिल की सुरक्षा को लेकर सख़्त इंतज़ाम किए। उसे एक सुरक्षित लोकेशन पर रखा गया, उसका फोन सील कर दिया गया, और चारों ओर पुलिस की चौकसी बढ़ा दी गई। मगर ब्लैकमेलर की पकड़ मानो हर दायरे से परे थी। काउंटडाउन की हर टिक के साथ निखिल के चेहरे पर डर साफ़ झलकने लगा था। उसने कई बार आरव से निजी बातचीत की कोशिश की, लेकिन हर बार कुछ न कुछ अधूरा छोड़ देता—मानो कोई अदृश्य बोझ उसके गले में फँसा हो। रात के करीब आते ही बारिश ने एक बार फिर मुंबई को अपनी चादर में लपेट लिया। सुरक्षा घेरे के बावजूद, जैसे ही काउंटडाउन का आख़िरी घंटा शुरू हुआ, बिजली की एक तेज़ कड़क ने पूरे सेफहाउस की बत्तियाँ झपका दीं। अगले ही पल, टीम को निखिल के कमरे से एक चीख सुनाई दी। दरवाज़ा तोड़कर अंदर घुसते ही आरव का दिल मानो रुक गया—निखिल फर्श पर पड़ा था, उसकी सांसें थम चुकी थीं। उसके गले पर एक महीन तार का निशान था, जैसे किसी ने बिना किसी संघर्ष के उसकी जान ले ली हो। सबसे डराने वाली बात यह थी कि कमरे में मौजूद कैमरे और गार्ड्स किसी भी संदिग्ध को अंदर आते नहीं देख पाए। पास की मेज़ पर वही डिजिटल डिस्प्ले चमक रहा था—“48:00:00”—जैसे अगले शिकार की उलटी गिनती शुरू हो चुकी हो। आरव ने उसे घूरते हुए महसूस किया कि ब्लैकमेलर हर बार एक ही पैटर्न दोहरा रहा है, लेकिन उसकी पहुँच इतनी गहरी है कि पुलिस की हर चाल बेअसर साबित हो रही है।

निखिल की मौत ने न केवल पुलिस फोर्स को झकझोर दिया, बल्कि पूरे शहर में दहशत की लहर दौड़ा दी। मीडिया ने इसे “इनसाइड जॉब” करार देना शुरू कर दिया, यह सवाल उठाते हुए कि जब पुलिस खुद सुरक्षित नहीं, तो आम लोग कैसे बचेंगे। आरव के लिए यह व्यक्तिगत और पेशेवर दोनों मोर्चों पर सबसे कठिन समय था। वह निखिल के शरीर के पास खड़ा होकर बार-बार एक ही बात सोच रहा था—क्यों हर डिस्प्ले का समय 48 घंटे का होता है? क्यों हर पीड़ित को पहले ब्लैकमेल किया जाता है और फिर समय पूरा होते ही उसकी हत्या होती है? उसे अचानक एहसास हुआ कि शायद यह समय किसी व्यक्तिगत प्रतिशोध या पुराने केस से जुड़ा है। निखिल के केस की फाइलें खंगालते हुए आरव को कई पुराने नाम मिले—ऐसे लोग जो कभी पुलिस की नज़रों से बच निकले थे, ऐसे अपराध जो बंद तो हुए, पर इंसाफ़ अधूरा रहा। क्या ब्लैकमेलर खुद को न्याय का देवता समझ रहा है, जो कानून से बचे हुए गुनहगारों को अपने तरीके से सज़ा दे रहा है? पर सबसे बड़ा सवाल यही था कि उसे इतने गोपनीय पुलिस रिकॉर्ड कैसे मिल रहे हैं। जैसे-जैसे शहर की रात और गहरी होती गई, आरव को महसूस हुआ कि यह खेल सिर्फ हत्याओं का नहीं, बल्कि मुंबई के सबसे अंधेरे सच को उजागर करने का है। और हर 48 घंटे में बजता काउंटडाउन मानो चेतावनी दे रहा था—अगला शिकार पहले से तय है, बस घड़ी की सुइयों का इंतज़ार बाकी है।

मुंबई की सुबह अब तक की सबसे सूनसान और घबराई हुई लग रही थी। पिछले हफ्तों में हुई लगातार मौतों और काउंटडाउन की घटनाओं ने पूरे शहर को डर और अनिश्चितता की चादर में लपेट दिया था। इंस्पेक्टर आरव मेहता अपने दफ़्तर में बैठे थे, आंखों के सामने स्क्रीन पर छपी फाइलों और डिजिटल डिस्प्ले के कोड की लंबी लिस्टें फैली थीं। टीम ने पहले कई बार डिस्प्ले के तकनीकी और हार्डवेयर पहलुओं की जांच की थी, लेकिन किसी भी सामान्य तकनीकी विश्लेषण से कुछ खास नहीं निकला था। आरव ने खुद को कंप्यूटर स्क्रीन के सामने घंटों तक बैठा पाया, जैसे उसकी आंखें और दिमाग दोनों ही इन जटिल एल्गोरिदमिक पैटर्न को समझने के लिए तरस रहे हों। वह जानता था कि अगर डिस्प्ले में छुपा पैटर्न समझ में आ गया, तो केवल किलर की चाल समझने में मदद नहीं मिलेगी, बल्कि शायद उसके उद्देश्य और मानसिकता का भी पता चल जाएगा। उसने कई रातें बिता दी, कोड को अलग-अलग तरीकों से डिक्रिप्ट करने की कोशिश की, और धीरे-धीरे उसने नोटिस किया कि डिस्प्ले में दिख रहे 48 घंटे के काउंटडाउन में एक स्थिर गणितीय पैटर्न छिपा हुआ था।

आरव ने टीम के तकनीकी विशेषज्ञों के साथ मिलकर डिस्प्ले के अंदरुनी एल्गोरिदम को डिकोड करना शुरू किया। शुरुआत में यह कोई सामान्य टाइमर नहीं लग रहा था। डिस्प्ले के कोड में समय की हर इकाई—सेकंड, मिनट, घंटा—के पीछे एक जटिल गुप्त गणितीय सूत्र छुपा था। सूत्र पीड़ितों की मौत का अनुमान नहीं दे रहा था, बल्कि यह ब्लैकमेलर के स्वास्थ्य से जुड़े एक भयावह आंकड़े की गणना कर रहा था। आरव ने लगातार कई केसों की तुलना की और पाया कि डिस्प्ले में हर 48 घंटे का काउंटडाउन केवल एक संकेत था—ब्लैकमेलर की अपनी जीवन प्रत्याशा का अनुमान। वह गणना कर रहा था कि उसके पास खुद की मौत तक कितने घंटे बचे हैं। और उसी सीमित समय में, वह अपने तरीके से उन भ्रष्ट लोगों को निशाना बना रहा था जिनका अतीत गुमनाम अपराधों और भ्रष्टाचार से भरा था। जैसे ही आरव ने यह निष्कर्ष निकाला, उसकी सांस थम गई। मतलब यह था कि किलर कोई साधारण मनोवैज्ञानिक या हत्यारा नहीं था; वह मरने से पहले एक न्याय के प्रतीक के रूप में स्वयं को स्थापित कर रहा था। इस पैटर्न का मतलब स्पष्ट था—ब्लैकमेलर की घातक बीमारी और टर्मिनल स्टेज ने उसे सीमित समय दिया था, और उसने इसे उस भ्रष्टाचार की सफाई में लगा दिया था जो कानून के हाथों छूट गया था।

आरव के सामने यह नया सच आते ही पूरे मामले का नजरिया बदल गया। अब यह केवल हत्या और ब्लैकमेल का मामला नहीं रह गया था, बल्कि यह एक इंसान की अंतिम लड़ाई थी—एक शख्स जो जानता था कि उसकी मौत निश्चित है और वह अपने अंत से पहले दुनिया को अपने तरीके से सुधारने की कोशिश कर रहा है। डिस्प्ले के पैटर्न ने यह भी साफ़ कर दिया कि हर पीड़ित का अतीत ब्लैकमेलर के लिए सिर्फ़ अपराध नहीं था, बल्कि उसकी मरते हुए समय सीमा के भीतर एक संकेत था—कितनी जल्दी उसे कार्रवाई करनी थी। आरव ने महसूस किया कि हर 48 घंटे का काउंटडाउन केवल प्रतीक था, न कि निर्दयी गिनती। यही वजह थी कि सभी डिस्प्ले समान समय पर सेट थे—यह व्यक्तिगत मरने की टाइमलाइन थी, न कि किसी बाहरी घटना की। इस खोज ने न केवल आरव की समझ बढ़ाई, बल्कि उसे यह एहसास दिलाया कि अपराध और न्याय के बीच की सीमाएं कितनी जटिल और धुंधली हो सकती हैं। अब उसे न केवल ब्लैकमेलर को पकड़ने की चुनौती थी, बल्कि यह समझने की भी जरूरत थी कि वह अपने अंतिम समय में किसी भी कीमत पर भ्रष्टाचार और अन्याय को खत्म करने के लिए कितना दूर जा सकता है। यह खुलासा आरव के लिए एक चेतावनी और एक रहस्य दोनों था—किलर की मौत निश्चित थी, लेकिन उसकी योजना इतनी गहरी और व्यवस्थित थी कि उसे रोकना आसान नहीं था। और इसी सोच के साथ, आरव ने अगले कदम की तैयारी शुरू की, यह जानते हुए कि पैटर्न का सही अर्थ समझना ही अगले शिकार और शहर की सुरक्षा का चाबी साबित होगा।

मुंबई का आकाश जैसे काले बादलों की चादर में ढक गया था, और कोलाबा की संकरी गलियों में हर कदम पर सन्नाटा और भय की गूंज सुनाई दे रही थी। इंस्पेक्टर आरव मेहता और उनकी टीम सुबह-सुबह कोलाबा पहुँची, जब तीसरे डिस्प्ले की सूचना मिली थी। इस बार डिजिटल स्क्रीन पर केवल “24:00:00” लिखा हुआ था—48 घंटे के काउंटडाउन का आधा समय बचा था। आरव ने तुरंत आसपास का मुआयना किया। गली के छोटे-छोटे रेस्टोरेंट्स, पुरानी इमारतों की झुकी हुई खिड़कियाँ, और सडक़ किनारे खड़े रिक्शा ड्राइवरों की आंखों में अचानक डर के निशान दिखने लगे। कोई नहीं जानता था कि ब्लैकमेलर किस मोड़ से निकल आएगा, और यह डिस्प्ले केवल संकेत दे रहा था कि समय की घड़ी अब तेजी से घातक होती जा रही थी। आरव ने अपनी टीम को चार ग्रुपों में बाँट दिया—हर समूह को इलाके की नाकेबंदी और फुटपाथों की जाँच का जिम्मा दिया गया। सीसीटीवी कैमरों की निगरानी, गली के छोटे कैमरों की लाइव फीड और ड्रोन की सहायता से पूरे क्षेत्र को स्कैन किया जा रहा था, पर ब्लैकमेलर की चाल इतनी चालाकी भरी थी कि हर सुराग जैसे धुंध में मिलकर गायब हो जाता था।

इसी बीच, आरव के निजी मोबाइल पर एक गुप्त संदेश आया। स्क्रीन पर चमकते शब्दों ने उसे ठंडा कर दिया—“अगर सच जानना है, तो मुझे ढूंढो – इससे पहले कि घड़ी रुक जाए।” संदेश का पता अज्ञात था, और इसका अंदाज़ ऐसा था जैसे ब्लैकमेलर खुद उसे चुनौती दे रहा हो। आरव ने तुरंत टीम को बुलाया और संदेश को साझा किया। यह स्पष्ट था कि अब खेल केवल हत्याओं का नहीं रहा; यह एक दौड़ बन चुका था—एक ऐसा खेल जिसमें शहर की गलियों, बंद पब्लिक स्पेस और हर भीड़भाड़ वाली जगह की घड़ियाँ ब्लैकमेलर और पुलिस की चुनौती का मैदान थीं। आरव ने महसूस किया कि समय अब उनके खिलाफ़ था। डिस्प्ले की 24 घंटे की उलटी गिनती, न केवल ब्लैकमेलर के अगले शिकार के लिए चेतावनी थी, बल्कि यह संकेत भी था कि अपराधी अब अपने अंतिम प्रयास में था। मुंबई की संकरी गलियों में पुलिस वाहन और पैदल जवान हर मोड़ पर घात लगाए खड़े थे, लेकिन जैसे ही कोई संदिग्ध दिखाई देता, वह निगरानी से गायब हो जाता।

आरव ने अपनी टीम के बीच रणनीति बनाई—एक समूह को सीधे डिस्प्ले के आसपास तैनात किया गया, जबकि दूसरा समूह आसपास की गलियों और पब्लिक स्पेस में संभावित छिपने की जगहों पर निगरानी रखता। कोलाबा की चौराहों, मरीन ड्राइव की ओर बढ़ते रास्तों, और पुराने फोर्ट के भीतर की इमारतों में पुलिस ने घेराबंदी कर दी। हर गली, हर नुक्कड़, हर पब्लिक ट्रांसपोर्ट की जगह पर जवान तैनात थे। आरव खुद भी लगातार रेडियो से स्थिति पूछ रहा था और ड्रोन्स के लाइव फीड पर नजर टिकाए हुए थे। तभी उसने देखा—डिस्प्ले से कुछ दूरी पर एक काले हूडि वाला शख्स तेजी से इमारतों के बीच से निकल रहा था, लेकिन हर कैमरे की सीमा के बाहर। आरव ने रेडियो में आदेश दिए, “सभी यूनिट्स, उसे घेरो, कोई भी रास्ता बचाने नहीं देना।” पूरे शहर में दौड़ शुरू हो गई थी—ब्लैकमेलर के खिलाफ़ समय, पुलिस, और शहर के नागरिकों की सुरक्षा की यह अंतिम दौड़। आरव जानता था कि अगर वह सही समय पर कार्रवाई नहीं कर पाए, तो न केवल एक और हत्या संभव थी, बल्कि मुंबई का यह खेल अब शहर की आत्मा पर स्थायी छाप छोड़ सकता था। घड़ी की टिक-टिक हर पल उन्हें याद दिला रही थी कि ब्लैकमेलर अब अपने अंतिम 24 घंटे में था, और वह किसी भी कीमत पर अपना लक्ष्य पूरा करने वाला था।

मुंबई का अंधेरा उस रात और भी गहरा लग रहा था। कोलाबा से प्राप्त सुराग ने आरव मेहता को शहर के पुराने औद्योगिक इलाके में स्थित एक परित्यक्त गोदाम तक पहुँचाया था। बारिश की हल्की बूंदों और सड़क की जलती हुई लाइटों की परछाइयों में गोदाम की सिल्हूटें डरावनी लग रही थीं। आरव अपनी टीम के साथ चुपचाप इमारत के करीब पहुँचा। अंदर का सन्नाटा और खिड़कियों के टूटे शीशों से आती ठंडी हवा जैसे चेतावनी दे रही थी कि यह केवल सामान्य छुपने की जगह नहीं, बल्कि किसी खतरनाक योजना का केंद्र है। आरव ने रेडियो पर धीरे से आदेश दिए—“पूरी टीम चुपचाप अंदर दाखिल हो।” कदम दर कदम अंदर बढ़ते हुए, हर आवाज़ और हर हलचल उनके कानों में आग की तरह गूंज रही थी। गोदाम के बीचोबीच, छत से टंगी पुरानी लाइटें हल्की झिलमिल कर रही थीं। तभी आरव की नज़र उस ब्लैकमेलर पर पड़ी—काले हूडि वाला शख्स, जिसके चेहरे पर अब पहचान की झलक थी।

आरव ने अपनी हथेली में पिस्तौल कसकर पकड़ ली और धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ा। अचानक ब्लैकमेलर ने अपनी हूडि हटाई, और सामने जो चेहरा था उसने आरव को स्तब्ध कर दिया। वह कोई अपराधी नहीं, बल्कि एक पूर्व इन्वेस्टिगेटिव पत्रकार था—अमन प्रताप। आरव ने उसका चेहरा ध्यान से देखा और तुरंत समझ गया कि यह वही शख्स था जो सालों पहले बड़े सरकारी और कॉर्पोरेट स्कैम को उजागर करने की कोशिश में फंसा था। अपने साहसिक प्रयास के कारण उसने अपनी नौकरी, प्रतिष्ठा और परिवार दोनों खो दिए थे। अब वह अपने खोए हुए जीवन की भरपाई के लिए इस अंधेरे मिशन पर था। “मैं इसे न्याय कहता हूँ,” उसने ठंडी आवाज़ में कहा। “लोगों के पाप और भ्रष्टाचार को उजागर करने का अंतिम तरीका यही बचा है—मैं केवल वह कर रहा हूँ जो सिस्टम ने कभी नहीं किया।” उसकी आवाज़ में ठंडापन था, पर आँखों में गहरी पीड़ा और नियति की स्वीकार्यता भी झलक रही थी। आरव ने धीरे से पूछा, “तो यह सभी हत्याएं, यह काउंटडाउन—यह सब?” अमन ने सिर हिलाया, “हर डिस्प्ले, हर 48 घंटे का खेल—यह मेरे जीवन की समय सीमा का पैमाना है। मैं जानता हूँ कि मेरी घातक बीमारी का अंतिम चरण आ चुका है, और इस अंतिम समय में, मैं उन लोगों को निशाना बनाता हूँ जिनका कोई काला सच है और जिन्होंने कानून को चकमा दिया।”

अमन की कहानी ने आरव के लिए सब कुछ बदल दिया। अब यह केवल एक हत्या और ब्लैकमेल का मामला नहीं था; यह एक इंसान की अंतिम लड़ाई थी—एक व्यक्ति जो न्याय की परिभाषा को अपने तरीके से तय कर रहा था। उसने बताया कि डिस्प्ले में छुपा गणितीय पैटर्न केवल उसकी बचे हुए समय की गणना कर रहा था—हर 48 घंटे की गिनती दरअसल उसके अपने जीवन के अंतिम चरण का संकेत था। आरव ने महसूस किया कि अमन की बीमारी और उसका मिशन इतनी गहरी जड़ें रखती थीं कि उसे रोकना आसान नहीं था, पर किसी भी कीमत पर उसे हिंसा रोकनी होगी। गोदाम की खिड़कियों से आती बारिश की बूंदें और बाहर के अंधेरे ने इस मुठभेड़ को और भी नाटकीय बना दिया। आरव ने शांत स्वर में कहा, “अमन, हम तुम्हारे दर्द को समझ सकते हैं, पर निर्दोष लोगों की जान लेना कानून की परिभाषा के खिलाफ़ है।” अमन ने धीरे से मुस्कराते हुए उत्तर दिया, “समय का मेरे पास भी कम है, और मैं केवल न्याय के अंतिम संकेत को पूरा कर रहा हूँ। जब मेरा काउंटडाउन खत्म होगा, तो सब कुछ खत्म हो जाएगा—मेरी मौत और यह खेल, दोनों।” गोदाम में दोनों की आँखों में एक अजीब तनाव और समझदारी की झलक थी। आरव ने महसूस किया कि अब यह सिर्फ़ गिरफ्तारी का मामला नहीं, बल्कि मुंबई के भ्रष्टाचार, न्याय और इंसानियत के बीच की लड़ाई बन चुका था। हर पल अब निर्णायक था, और अमन की अंतिम घड़ी धीरे-धीरे खत्म होने को थी।

१०

मुंबई की रात गहरी और सन्नाटेदार थी, जैसे शहर के हर कोने में इस अजीब खेल की गूंज अब तक फैली हुई हो। गोदाम के अंदर, आरव मेहता और ब्लैकमेलर, अमन प्रताप, आमने-सामने खड़े थे। बाहर की बारिश की हल्की बूंदें खिड़कियों से टकरा रही थीं, और भीतर का वातावरण ठंडा और तनावपूर्ण था। डिजिटल डिस्प्ले पर समय की अंतिम गिनती चल रही थी—“00:00:10”। दस सेकंड शेष थे। आरव के दिल की धड़कन इतनी तेज़ थी कि उसे अपने कानों में यह आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी। उसने पिस्तौल नीचे रखते हुए अमन की ओर धीरे-धीरे बढ़ना शुरू किया। अमन की आंखों में न डर था न पछतावा, बल्कि एक शांति और स्वीकृति का भाव। हर कदम के साथ आरव महसूस कर रहा था कि अब यह मामला कानून, अपराध और न्याय के पार जाकर किसी गहरे मानवीय और दार्शनिक द्वंद में बदल चुका है। उसने अमन से कहा, “तुम्हारी पीड़ा समझता हूँ, पर निर्दोष लोगों की जान लेना सही नहीं।” अमन ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया और धीमी आवाज़ में कहा, “इंस्पेक्टर, समय कम है, पर सच हमेशा बचा रहना चाहिए—यही मेरी अंतिम पुकार है।”

जैसे ही डिस्प्ले की सेकंड की सुई शून्य की ओर बढ़ी, आरव ने अपने हाथ बढ़ाए, कोशिश की कि अमन को रोका जाए। पर अमन ने उसे अपनी मुस्कान में छिपा एक शांति भरा संकेत देते हुए कहा, “सच बचा लेना, इंस्पेक्टर। मैं तैयार हूँ।” अगली ही घड़ी की टिक के साथ, अमन की सांस थम गई। उसके चेहरे पर वह शांति बनी रही, जो किसी पूरी की गई यात्रा और अंतिम जिम्मेदारी की पूर्ति की तरह लग रही थी। आरव चुपचाप खड़ा रहा, उसकी आंखों में आंसू और उसके मन में सवालों की बाढ़। गोदाम के भीतर अब सन्नाटा था, पर बाहर का शहर जैसे फिर से अपनी धड़कनों के साथ जी रहा था। मीडिया ने अगले ही दिन इस घटना को छापते हुए अमन को दो नामों में पेश किया—कुछ ने उसे हीरो कहा, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आखिरी लड़ाई लड़ रहा था, और कुछ ने उसे खलनायक कहा, जिसने निर्दोष लोगों को अपने मिशन के लिए बलि चढ़ा दिया। शहर के लोग, पुलिसकर्मी, और सामान्य नागरिक सभी इस दुविधा में थे कि क्या वह न्याय का प्रतीक था या एक खतरनाक हत्यारा।

आरव के लिए यह अनुभव केवल पेशेवर चुनौती नहीं रहा, बल्कि उसे अपने अंदर के सवालों और समाज की गहरी जड़ित खामियों का सामना करना पड़ा। वह खड़ा रहा, अपने हाथ में बचे हुए डिस्प्ले को देखते हुए, और सोच में डूब गया—क्या यह केवल अपराध था, या वास्तव में एक बीमार और भ्रष्ट समाज के खिलाफ अंतिम पुकार? अमन की मृत्यु ने उसे यह एहसास दिलाया कि कानून और न्याय के बीच की खाई कितनी गहरी हो सकती है, और कभी-कभी इंसान अपने अंतिम समय में खुद को न्याय का साधन बना लेता है। शहर की रोशनी अब धीरे-धीरे वापस लौट रही थी, पर आरव के मन में प्रश्न बने रहे—क्या कभी ऐसा होगा कि सिस्टम इतना मजबूत हो कि ऐसे लोग अपनी अंतिम पुकार देने के लिए मरने न जाएं? क्या सत्य और न्याय को स्थापित करने का तरीका हमेशा कानून के नियमों में बंधा होना चाहिए, या कभी-कभी इंसान अपने अंतिम समय में किसी और तरह का फैसला करने के लिए बाध्य होता है? गोदाम की ठंडी दीवारों में गूंजती सन्नाटा, डिस्प्ले की बत्ती का मंद चमक और बारिश की आवाज़, इन सवालों के बीच एक अनुत्तरित रहस्य छोड़ गई—मुंबई के इस खेल की असली कहानी शायद अब केवल समय ही बता सकता था।

समाप्त

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