सुभाष मिश्र
रामलाल फतेहपुर कस्बे की एक तंग गली में रहने वाला एक साधारण आदमी था। उम्र कोई पैंतालीस के आसपास, चेहरे पर झुर्रियों की कुछ रेखाएँ जो हर सुबह के संघर्ष और हर शाम की थकान की गवाही देती थीं। पेशे से वह नगरपालिका दफ्तर में एक लिपिक था, और महीने की पहली तारीख को तनख्वाह मिलते ही उसकी जेब से पैसों के पंख लग जाते थे। रामलाल की ज़िंदगी बसों और साइकिल रिक्शाओं पर कट रही थी। हर सुबह वो अपने घर से निकलता, पहले आधा किलोमीटर पैदल चलता, फिर एक धक्का-मुक्की वाली बस में लटकते-लटकते दफ्तर पहुँचता। वापसी में हाल और भी खराब होता, जब थका-हारा शरीर बस में भीड़ से जूझता और गालियां सुनता। मोहल्ले में उसके समकक्ष लोग या तो साइकिल रखते थे या फिर किसी ने पुराना स्कूटर खरीद लिया था। ऐसे में रामलाल का मन भी करने लगा कि आखिर कब तक वो इस यंत्रणा को झेले। मगर नई गाड़ी खरीदना उसके लिए सपने से कम नहीं था। दो बच्चों की पढ़ाई, घर का किराया और बीवी की दवाइयों के बीच स्कूटर के लिए पैसे कहाँ से आते? मगर दिल की ख्वाहिशें तर्क नहीं मानतीं। एक रात रामलाल चाय की दुकान पर बैठा अपने दोस्तों से अपनी तकलीफ बयान कर रहा था। तभी उसके एक पुराने साथी नंदू ने उसे एक सुझाव दिया — “अरे रामलाल, क्यों नहीं किसी कबाड़ी से एक पुराना स्कूटर खरीद लेता? आधे दाम में मिल जाएगा। थोड़ा-बहुत खटर-पटर करेगा, मगर सवारी तो बन जाएगी न?” ये बात रामलाल को जंच गई। उसकी आँखों में अचानक एक चमक सी आ गई। अगले दिन की छुट्टी उसने इसी काम के लिए रख ली।
सुबह-सुबह रामलाल अपना पुराना झोला लेकर कबाड़ी बाजार की ओर निकल पड़ा। वहाँ कबाड़ियों की दुकानों में स्कूटरों की लाशें पड़ी थीं — कोई बिना सीट का, कोई बिना टायर का, तो कोई अपनी हेडलाइट गँवा चुका था। रामलाल ने एक दुकानदार से पूछा, “भाई कोई ऐसा स्कूटर दिखा दो जो थोड़ा चलता-फिरता हो, कीमत भी हमारी जेब के लायक हो।” दुकानदार ने बड़ी अदाकारी से एक कोने में खड़े हल्के हरे रंग के स्कूटर की ओर इशारा किया। स्कूटर पुराना जरूर था, मगर उसके हैंडल पर अब भी कंपनी का लोगो चमक रहा था। दुकानदार ने खूब तारीफों के पुल बांधे — “साहब, ये तो एकदम मस्त पीस है। पिछले मालिक तो छोड़कर गए क्योंकि वो परदेश चले गए। चालू हालत में है। सिर्फ आपकी किस्मत का इंतजार कर रहा है।” रामलाल ने दो बार स्टार्ट करने की कोशिश की, स्कूटर घरघराया, और फिर एक धुंआ छोड़ते हुए चालू हो गया। रामलाल की खुशी का ठिकाना न रहा। सौदा मात्र दो हजार रुपये में तय हो गया। दुकानदार ने स्कूटर के कागज़ भी थमाए और रामलाल को बधाई दी जैसे वो कोई मर्सिडीज खरीद कर ले जा रहा हो। मोहल्ले में जैसे ही रामलाल अपने स्कूटर पर सवार होकर पहुँचा, बच्चे तालियाँ बजाकर दौड़े, और औरतें खिड़कियों से झाँककर हँसी दबाने लगीं। “रामलाल जी की भी आखिर गाड़ी हो गई!” किसी ने चुटकी ली। रामलाल ने भी मुस्कुराकर सिर हिलाया और स्कूटर को अपनी छोटी सी झुग्गी के सामने खड़ा कर दिया। उसे लग रहा था जैसे अब उसकी इज्जत दुगनी हो जाएगी — दफ्तर में, मोहल्ले में और चाय की दुकान पर।
शाम होते-होते रामलाल का स्कूटर पूरे मोहल्ले का आकर्षण बन चुका था। लोग आते, स्कूटर को देखते, उसके बुढ़ापे पर तरस खाते और रामलाल की हिम्मत की दाद देते। मगर रामलाल को अपने फैसले पर बड़ा गर्व महसूस हो रहा था। उसने स्कूटर पर एक नींबू-मिर्च का तोरण भी बाँध दिया ताकि किसी की नज़र न लगे। उसकी बीवी कमला ने जरूर ताना मारा — “इतने पुराने खटारे को खरीद लाए, कहीं बीच रास्ते धोखा दे गया तो?” मगर रामलाल ने हँसते हुए कहा — “अरे भाग्यवान, ये तो हमारी किस्मत का स्कूटर है, अब देखना मेरी सवारी की शान!” रात को रामलाल ने स्कूटर को अच्छी तरह ढक दिया, उसके ऊपर एक पुरानी चादर डाल दी ताकि ओस से बचा रहे। वो स्कूटर को देखकर इतना खुश था कि उसने देर रात तक खिड़की से उसे निहारा। उसके सपनों में खुद को स्कूटर पर स्टाइल से ऑफिस जाते हुए देखा। मगर रामलाल को क्या पता था कि ये स्कूटर सिर्फ उसकी सवारी नहीं बनेगा, बल्कि आने वाले दिनों में उसके जीवन की सबसे मज़ेदार मुसीबतों की वजह बनने वाला है।
***
रात का समय था। कस्बे की गलियों में सन्नाटा पसरा हुआ था। रामलाल अपने बिस्तर पर लेटा, करवटें बदल रहा था। आज का दिन उसके लिए बेहद खास था — आखिरकार उसका सपना पूरा हुआ था। पुराना ही सही, मगर अपना स्कूटर अब उसके आँगन में खड़ा था। वो खिड़की से बाहर झाँक कर स्कूटर पर नज़र डालता, फिर मुस्कुरा कर लेट जाता। घर की मटमैली चादर में लिपटा स्कूटर चाँदनी रात में अजीब सा रहस्यमय लग रहा था। दूर कहीं कुत्तों के भौंकने की आवाजें आ रहीं थीं, और हल्की हवा के झोंके खिड़की के पर्दों को हिला रहे थे। रामलाल आधी नींद में जा ही रहा था कि अचानक उसे एक जानी-पहचानी आवाज सुनाई दी — “घर्र्र-घर्र्र-घर्र्र…”। पहले तो उसने सोचा कि शायद सपना देख रहा है। मगर आवाज तेज होती गई। वो हड़बड़ा कर उठ बैठा। कान लगा कर सुना — आवाज उसके अपने स्कूटर की थी! दिल की धड़कनें तेज हो गईं। डरते-डरते वो खिड़की तक गया और परदे को थोड़ा हटाया। दृश्य देखकर उसके होश उड़ गए। स्कूटर खुद-ब-खुद स्टार्ट हो गया था। उसकी हेडलाइट टिमटिमा रही थी और वह घर के आँगन में धीरे-धीरे आगे-पीछे हो रहा था।
रामलाल के पसीने छूट गए। उसके पैरों में जैसे जान ही नहीं रही। उसका दिमाग सुन्न पड़ गया। उसने सोचा — “हे भगवान! ये तो सचमुच भूतिया स्कूटर निकला! नंदू ने कहा था कि पिछले मालिक की आत्मा इस स्कूटर से बंधी है, शायद वही घूम रही है।” उसने हिम्मत जुटाकर बीवी कमला को उठाया। कमला उठी और रामलाल की हालत देखकर घबरा गई। “क्या हुआ जी? क्यों कांप रहे हो?” रामलाल काँपती आवाज में बोला — “देखो तो, अपना स्कूटर खुद-ब-खुद चल रहा है!” कमला ने बाहर झाँक कर देखा और उसकी भी चीख निकल गई। उसने तुरंत दरवाजा बंद कर लिया और रामलाल को खींच कर चारपाई पर बैठा दिया। दोनों हाथ जोड़ कर भगवान से प्रार्थना करने लगे। मोहल्ले में धीरे-धीरे खटपट की आवाजें सुनकर कुछ और लोग भी जाग गए। खिड़कियाँ खुलने लगीं। किसी ने फुसफुसाकर कहा — “अरे देखो, रामलाल का स्कूटर तो अपने आप चल रहा है!” और फिर तो जैसे पूरा मोहल्ला जाग गया। कोई खिड़की से ताक रहा था, कोई छत से झाँक रहा था। मगर स्कूटर अपनी धुन में घरघराता हुआ इधर-उधर हिलता रहा। रात के सन्नाटे में उसकी आवाज गूंजती रही, और सबका दिल बैठा जा रहा था।
रात भर रामलाल और कमला जागते रहे। स्कूटर कभी स्टार्ट होता, कभी बंद होता। जैसे ही वे सोचते अब सब ठीक है, फिर से घरघराहट शुरू हो जाती। मोहल्ले वाले अपने-अपने घरों में ताले लगाकर दुबक गए। कोई मन ही मन हनुमान चालीसा पढ़ रहा था, कोई दरवाजे पर नींबू-मिर्च लटकाने की बात कर रहा था। भोर होने तक स्कूटर शांत हो गया। सूरज की किरणें फूटते ही लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकले और रामलाल के घर के बाहर इकट्ठा हो गए। बच्चों की टोली सबसे आगे थी। सभी लोग उत्सुकता और डर के मिले-जुले भाव से स्कूटर को निहारने लगे। एक बूढ़ी अम्मा बोली — “मैंने तो कहा ही था, ये पुराना स्कूटर मत लाओ। पिछले मालिक की आत्मा है इस पर।” कोई बोला — “मुझे तो रात में एक काला साया स्कूटर पर बैठा दिखा था।” और फिर पूरे मोहल्ले में स्कूटर के भूतिया होने की कहानियाँ बननी शुरू हो गईं। रामलाल परेशान और लज्जित खड़ा ये तमाशा देख रहा था। उसके सपनों का स्कूटर एक रात में ही पूरे मोहल्ले के लिए दहशत और हंसी का कारण बन गया था। वो सोच में पड़ गया — “अब क्या होगा? क्या मैं इस स्कूटर को रख सकता हूँ? या इसे वापस कबाड़ी को लौटा दूँ?” लेकिन वो ये नहीं जानता था कि यह तो केवल शुरुआत थी, असली तमाशा तो अभी बाकी था।
***
सुबह होते ही रामलाल के घर के बाहर लोगों की भीड़ लग गई। मोहल्ले के हर कोने से लोग जमा होने लगे थे, जैसे कोई तमाशा देखने आए हों। बच्चों की टोली सबसे आगे थी, उनकी आँखों में डर से ज़्यादा उत्सुकता चमक रही थी। बुजुर्ग अपनी लाठी टेकते हुए आ रहे थे और औरतें खिड़कियों और छतों से झाँक रही थीं। सबकी नज़रें रामलाल के आँगन में खड़े उस पुराने स्कूटर पर टिकी थीं, जो रात भर सबकी नींद उड़ाने का कारण बना था। किसी ने कहा, “रामलाल भाई, मैंने तो रात को स्कूटर की हेडलाइट की चमक खिड़की से देखी थी, वो भी बिना किसी के स्टार्ट किए!” कोई दूसरा बोला, “अरे भाई! मैं तो खुद गवाह हूँ, मैंने देखा वो स्कूटर दो कदम आगे बढ़ा, फिर पीछे गया, जैसे कोई अदृश्य सवारी उस पर सवार हो!” हर कोई अपनी-अपनी कहानी जोड़ रहा था। डर और रोमांच का ऐसा माहौल था कि चाय की दुकान से लेकर मंदिर के बाहर तक, हर जगह बस रामलाल के स्कूटर की चर्चा थी।
रामलाल घर के दरवाजे पर खड़ा माथा पीट रहा था। उसने रात की सारी बातें सबको बताईं — कैसे स्कूटर अपने आप स्टार्ट हो गया, कैसे उसने खुद खिड़की से देखा कि कोई उस पर नहीं था, और कैसे पूरी रात उसने भगवान का नाम लेकर बिताई। मगर किसी ने उसकी बात का समाधान नहीं दिया, बल्कि हर कोई नई-नई अफवाहें जोड़ता गया। कोई बोला — “ये स्कूटर जरूर किसी हादसे में मरा होगा। शायद पिछले मालिक की आत्मा इसमें बस गई है।” कोई बोला — “रामलाल भाई, मैं तो कहता हूँ इस स्कूटर को किसी पीपल के पेड़ के नीचे बांध आओ। वहीं भूत-प्रेत रहते हैं। वहीं छोड़ दो। नहीं तो ये स्कूटर एक दिन तुम्हें ले डूबेगा।” औरतें फुसफुसा रही थीं — “देखो न कमला बेचारी की हालत, रात भर नींद नहीं आई होगी। भला ऐसे खटारा स्कूटर की जरूरत ही क्या थी?” कुछ बच्चे स्कूटर के पास जाकर पत्थर फेंकने की हिम्मत कर रहे थे और फिर दौड़कर वापस आ रहे थे। रामलाल की हालत पतली होती जा रही थी। उसकी आँखों के नीचे काले घेरे पड़ गए थे। उसके सपनों का स्कूटर अब उसके लिए मुसीबत बनता जा रहा था।
मोहल्ले में अगले कुछ दिन इसी अफरा-तफरी में बीते। हर रात लोगों की नजरें रामलाल के घर की ओर लगी रहतीं। किसी ने दरवाजे पर नींबू-मिर्च बांधने की सलाह दी, किसी ने झाड़-फूंक करने वाले बाबा को बुलाने को कहा। यहाँ तक कि मोहल्ले के बुजुर्गों ने एक बैठक बुला ली, जिसमें तय हुआ कि अगर स्कूटर की हरकतें यूँ ही चलती रहीं तो पुलिस को सूचना दी जाएगी या फिर किसी बड़े बाबा का सहारा लिया जाएगा। बच्चों ने तो स्कूटर का नाम ही रख दिया — “भूतिया स्कूटर!” और जब भी रामलाल मोहल्ले से गुजरता, बच्चे पीछे से आवाज लगाते — “अरे देखो-देखो, भूतिया स्कूटर वाला आ गया!” रामलाल शर्म से सिर झुका लेता और चुपचाप निकल जाता। कमला भी अब ताने देने लगी थी — “कहा था न, इतना पुराना खटारा मत लाना, अब भुगतो!” रामलाल परेशान था, मगर उसके भीतर एक जिद भी जन्म ले चुकी थी। वो सोचने लगा — “ये मामला जितना डरावना लग रहा है, उतना हो नहीं सकता। कुछ तो वजह होगी। मुझे खुद पता लगाना होगा।” और इसी जिद के साथ उसने एक योजना बनाई कि अब वो रात को खुद पहरा देगा और स्कूटर पर नजर रखेगा। वो नहीं जानता था कि उसके इस फैसले से आने वाली रातें और भी मजेदार और रहस्यमय होने वाली हैं।
***
रामलाल का स्कूटर अब पूरे फतेहपुर कस्बे में मशहूर हो चुका था। चाय की दुकानों, पान के खोखों, यहाँ तक कि मंदिर के बाहर बैठे बुजुर्गों तक की बातचीत का केंद्र वही स्कूटर बन गया था। लोग अपनी कल्पना से तरह-तरह की कहानियाँ गढ़ने लगे थे। कोई कहता — “भैया, ये स्कूटर पहले किसी जमींदार के बेटे का था। लड़का स्कूटर से एक्सीडेंट में मरा और उसकी आत्मा अब भी स्कूटर पर सवारी करती है।” कोई दूसरा दावा करता — “अरे नहीं नहीं, मैंने सुना है वो स्कूटर एक बार श्मशान घाट के पास रात भर पड़ा रहा था। वहीं कोई आत्मा इस पर सवार हो गई।” और हर कहानी में थोड़ा डर, थोड़ा रोमांच और ढेर सारी हंसी का मसाला जुड़ जाता। बच्चे स्कूल जाते समय रामलाल के घर के सामने से निकलते हुए एक दूसरे को धकियाते और डरावनी आवाजें निकालते। कुछ नटखट लड़के तो स्कूटर पर हाथ मारकर भाग जाते और फिर पीछे मुड़कर हँसते। मोहल्ले की औरतें अब कमला को चुपचाप देखतीं और उसके पास बैठकर फुसफुसा कर कहतीं — “बहन, रात को तुलसी में दिया जलाकर रखना। भूत-प्रेत दूर रहते हैं।”
रामलाल खुद भी अब हद दर्जे की उलझन में था। रातें उसकी बेचैनी का कारण बन गई थीं। वो हर रात दरवाजे की कुंडी लगाकर, खिड़कियों के पर्दे खींचकर, अपने बिस्तर पर करवटें बदलता और स्कूटर की आवाजों का इंतजार करता। डर का ऐसा आलम था कि वो पानी पीने के लिए उठता तो पहले भगवान का नाम लेता। कमला भी अब उसकी हालत देखकर सहम गई थी। घर के अंदर नींबू-मिर्च लटके हुए थे, तुलसी में दिया जलता था, और हर रात हनुमान चालीसा की गूँज होती थी। मगर स्कूटर जैसे इन सबसे बेअसर था। कभी-कभी हवा के झोंकों से उसकी चादर फड़फड़ाती और रामलाल का दिल बैठ जाता। मोहल्ले में किसी ने सलाह दी कि स्कूटर को रात को घर के अंदर बांध लो, कोई बोला — “गंगा जल छिड़क दो, भूत भाग जाएगा।” रामलाल ने गंगा जल भी मंगवाया और स्कूटर पर छिड़क दिया। मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात। अगली रात फिर वही घरघराहट, फिर वही हेडलाइट की टिमटिमाहट। लोग अब और भी अजीब बातें करने लगे थे। किसी ने कह दिया — “रामलाल भैया, कहीं स्कूटर में भूत न हो, कहीं वो आपको नुकसान न पहुँचा दे। सावधान रहना!”
धीरे-धीरे डर का माहौल इतना बढ़ गया कि मोहल्ले वालों ने एक आपात बैठक बुला ली। मोहल्ले के चौधरी, कुछ बुजुर्ग और समझदार लोग जमा हुए। बैठक में सबने मिलकर तय किया कि अब इस मामले को गंभीरता से लेना होगा। चौधरी ने कहा — “रामलाल, अब ये मामला मजाक का नहीं रहा। ये स्कूटर अगर भूतिया है तो इससे पूरे मोहल्ले को खतरा है। हमें किसी तांत्रिक बाबा को बुलाना होगा, जो इस भूत को भगा सके।” रामलाल ने पहले तो मना किया — “अरे चौधरी जी, ये सब दिखावा है। कोई भूत-भूत नहीं होता।” मगर जब सब लोगों ने ज़ोर दिया तो रामलाल को मजबूरी में हामी भरनी पड़ी। तय हुआ कि अगली सुबह ही मोहल्ले में मशहूर तांत्रिक बाबा को बुलाया जाएगा, जो झाड़-फूंक करके स्कूटर से आत्मा को बाहर निकालेगा। जैसे ही ये बैठक खत्म हुई, मोहल्ले में बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सबमें उत्साह की लहर दौड़ गई। लोग अब उस तमाशे का इंतजार करने लगे, जो अगले दिन स्कूटर के साथ होने वाला था। रामलाल की रातें अब और भी बेचैनी भरी होने लगीं क्योंकि वो जानता था कि सच्चाई कुछ और है, मगर डर और अफवाहों की आँधी में उसकी आवाज कहीं दब गई थी।
***
अगली सुबह मोहल्ले में जैसे कोई बड़ा मेला लगने वाला हो। हर गली-कूचे से लोग रामलाल के घर की ओर खिंचे चले आ रहे थे। बच्चे अपनी स्कूल की किताबें बगल में दबाए तमाशा देखने आए थे, और औरतें अपनी ओढ़नियों को सिर पर ठीक से संभालते हुए इस अनोखे ‘झाड़-फूंक महोत्सव’ की गवाह बनने पहुँचीं। चौधरी साहब ने खुद तांत्रिक बाबा को बुलाने की जिम्मेदारी ली थी। दोपहर होते-होते एक जीर्ण-शीर्ण हालात में बैलगाड़ी से बाबा जी का आगमन हुआ। उनका हुलिया ऐसा था कि बच्चों की टोली तो उन्हें देख कर ही सहम गई — लंबी दाढ़ी, माथे पर बड़ी-बड़ी लाल-पीली तिलक की रेखाएँ, गले में रुद्राक्ष की मालाएँ, हाथ में एक जटाजूट लहराती झाड़ू जैसी वस्तु और एक बड़ा त्रिशूल। बाबा जी का नाम था — “महातांत्रिक भैरवनाथ बाबा”। जैसे ही वो गाड़ी से उतरे, लोग हाथ जोड़ कर उनके चरण छूने लगे। बाबा ने घनघोर आवाज में कहा — “कहाँ है वो शापित यंत्र जो लोगों की नींदें उड़ाए दे रहा है?” रामलाल ने काँपते हुए स्कूटर की ओर इशारा किया। बाबा ने गहरी नजरों से स्कूटर का मुआयना किया और आँखें मूँद कर बोला — “हूँ… यह स्कूटर नहीं, यह एक कैदखाना है। इसमें एक व्याकुल आत्मा कैद है। उसे मुक्त कराना होगा!”
बाबा ने अपना साजोसामान फैलाना शुरू कर दिया। उन्होंने एक बड़ा पीतल का लोटा निकाला, उसमें कुछ भस्म डाली, कुछ लाल रंग का तरल मिलाया और चारों ओर धुंआ फैलाने लगे। स्कूटर के चारों तरफ गोबर से बनी छोटी-छोटी दीवारें खड़ी की गईं। बाबा मंत्रोच्चार करते हुए स्कूटर के चक्कर लगाने लगे — “ॐ भूतनाशकाय फट्! ॐ प्रेतबाधा विनाशिनी स्वाहा!” बाबा की आवाज ऐसी गूंज रही थी कि मोहल्ले के कुत्ते भी भौंकना बंद कर बैठे। बच्चों ने तो मान लिया कि अब भूत सच में भाग ही जाएगा। बीच-बीच में बाबा अपनी झाड़ू जैसी जटाजूट को स्कूटर पर झटकते, त्रिशूल से स्कूटर की हेडलाइट पर चोट करते और फिर आंखें बंद कर झूमते। रामलाल और कमला दोनों सांस रोके खड़े थे। पूरा मोहल्ला स्तब्ध होकर देख रहा था। जैसे-जैसे बाबा की हरकतें बढ़ती गईं, लोग मंत्रमुग्ध होते चले गए। एक बूढ़ी अम्मा ने तो अपनी चवन्नी बाबा के चरणों में डाल दी और बोली — “बाबा, हमारे घर से भी प्रेत बाधा दूर कर दो।”
करीब एक घंटा यह ड्रामा चला। अंत में बाबा ने स्कूटर पर गंगाजल छिड़का और घोषणा की — “अब इस यंत्र से प्रेत बाधा मुक्त हो चुकी है। रात से ये तुम्हें परेशान नहीं करेगा।” लोग खुशी से ताली बजाने लगे, और कई ने बाबा को दक्षिणा देने के लिए अपनी जेबें टटोलनी शुरू कर दीं। रामलाल ने भी बाबा को पचास रुपये थमा दिए और हाथ जोड़ कर धन्यवाद दिया। मगर जैसे ही रात आई, फिर वही घरघराहट, वही हेडलाइट की टिमटिमाहट। मोहल्ला फिर सहम गया। लोग समझ नहीं पा रहे थे कि ये स्कूटर बाबा के झाड़-फूंक के बाद भी कैसे जिंदा हो गया। बाबा का भूत भगाने का तमाशा अब हंसी का कारण बनने लगा। अगले दिन से ही बच्चे स्कूटर के चारों ओर नाचते हुए गाते — “भूतिया स्कूटर, बाबा की जय, फिर भी स्कूटर वही पुरानी खटाई!” रामलाल की चिंता और गहरी हो गई। उसने अब ठान लिया कि ये मामला किसी तांत्रिक का नहीं, बल्कि खुद उसकी ही समझदारी से सुलझेगा। वो मन ही मन एक नई योजना बनाने लगा।
***
रामलाल अब तांत्रिकों और झाड़-फूंक वालों से निराश हो चुका था। मोहल्ले की हंसी, बच्चों की तानों और अपनी खुद की नींद हराम हो जाने के बाद उसने तय किया कि अब वो खुद इस भूतिया स्कूटर की सच्चाई उजागर करेगा। एक रात का सन्नाटा उसकी बेचैनी को और बढ़ा रहा था। वो चुपचाप उठकर अपने पुराने ट्रंक से एक रस्सी निकाला और स्कूटर की ओर बढ़ा। उसने मन ही मन ठान लिया — “आज तो भूत पकड़ा ही जाएगा।” रामलाल ने स्कूटर के हैंडल से खुद को बांध लिया। वो स्कूटर के पास बैठा, हाथ में डंडा पकड़े, और आँखें गड़ाए आसमान की ओर देखने लगा। चाँद की रोशनी में उसका चेहरा और भी गंभीर लग रहा था। हवा में हल्की सर्दी थी, और दूर किसी उल्लू की आवाज इस पूरे दृश्य को और रहस्यमय बना रही थी। मगर रामलाल की आँखों में अब डर से ज़्यादा जिद थी। वो अपनी हंसी उड़वाना बंद कराना चाहता था।
कई घंटे बीत गए। रात गहरी होती गई। रामलाल की आँखें भारी होने लगीं। आखिरकार, नींद की झपकी ने उसे घेर लिया। तभी अचानक स्कूटर में हल्की-सी हरकत हुई। हवा के एक तेज झोंके से स्कूटर की ढकी चादर सरक गई, और स्कूटर का हैंडल जरा-सा हिला। रस्सी से बंधा रामलाल इस हलचल से एकदम चौंक कर उठा, मगर संभलने से पहले ही वो अपनी ही रस्सी में उलझ गया। स्कूटर के हैंडल से बंधे होने के कारण वो खुद ही घिसटता हुआ ज़मीन पर गिरा। उसके हाथ-पाँव डगमगाने लगे, डंडा एक ओर गिरा और वो खुद मिट्टी से सने आँगन में उलझा पड़ा रहा। उसकी हालत किसी हास्य फिल्म के किरदार जैसी हो गई थी। मोहल्ले की किसी खिड़की से किसी ने यह नज़ारा देख लिया और हल्की-सी हंसी दबा ली। रामलाल ने किसी तरह खुद को रस्सी से छुड़ाया और उठकर खड़ा हुआ। उसका चेहरा धूल और पसीने से भीग चुका था। मगर उसकी आँखों में अभी भी सच्चाई जानने की जिद थी।
अगली सुबह जब मोहल्ले वालों को पता चला कि रामलाल रात भर स्कूटर के पास पहरा दे रहा था और खुद ही उलझ कर गिर पड़ा तो लोगों के बीच हंसी का एक नया दौर शुरू हो गया। बच्चे उसे देखते ही कहते — “अरे रामलाल चाचा, भूत पकड़ लिया क्या?” और फिर ठहाके लगाते। औरतें अपनी सखियों को वो दृश्य सुनातीं कि कैसे रामलाल खुद ही अपनी ही रस्सी में फँस गया था। मगर रामलाल हार मानने वालों में से नहीं था। उसने अब तय कर लिया था कि वो स्कूटर को मिस्त्री के पास ले जाकर इसकी असली सच्चाई जानेगा। क्योंकि वो समझ गया था — ये मामला किसी भूत-प्रेत का नहीं बल्कि किसी मशीनरी की चालाकी का है। मगर उसका यह फैसला स्कूटर की रहस्यमयी कहानी में एक नए मोड़ की शुरुआत होने वाला था।
***
रामलाल ने अब ठान लिया था कि चाहे जो हो, वो स्कूटर की सच्चाई जान कर ही रहेगा। वह खुद पर हंसते लोगों की भीड़ से अब ऊब चुका था। अगली सुबह वह उठकर जल्दी तैयार हो गया। उसने अपनी पुरानी सफेद कमीज पहनी, जो अब हल्की पीली दिखने लगी थी, और सिर पर पसीना पोंछने के लिए गमछा डाल लिया। उसने स्कूटर को धकेलते-धकेलते कस्बे के पुराने मिस्त्री जगन चाचा की दुकान तक पहुँचाया। जगन चाचा स्कूटर और मोटर साइकिल ठीक करने में माहिर थे। उनका ठिकाना कस्बे के पुराने बस स्टैंड के पास था, जहाँ हर समय टूटे-फूटे वाहन, तेल से सने औजार और ग्रीस में सनी कपड़े की लत्तियाँ पड़ी रहती थीं। रामलाल ने हांफते हुए स्कूटर खड़ा किया और बोला — “चाचा, इस स्कूटर की जांच कर दो। रात-रात में खुद-ब-खुद स्टार्ट हो जाता है। मोहल्ले वाले भूत-प्रेत की बात करने लगे हैं।” जगन चाचा ने अपनी ऐनक ठीक की, पान थूकते हुए कहा — “अरे रामलाल, भूत-भूत कुछ नहीं होता। मशीन की चालाकी होती है। तू छोड़ इसको मेरे हवाले, देखता हूँ।”
जगन चाचा ने स्कूटर की सीट हटाई, वायरिंग खोली और धीरे-धीरे उसके पुर्जे निकालने लगे। स्कूटर के अंदरूनी हिस्से की हालत देखकर वो खुद मुस्कुराए बिना न रह सके। कई तार आधे कटे थे, कुछ जले हुए थे, और कुछ तो हवा के झोंके से हिलने भर पर कनेक्ट हो जा रहे थे। चाचा ने एक बार हैंडल घुमाया और हंसते हुए कहा — “अरे रामलाल, ये भूत नहीं, ये तेरी वायरिंग का खेल है। जब हवा चलती है या स्कूटर थोड़ा हिलता है तो तार आपस में जुड़ जाते हैं और इंजन को करंट मिल जाता है। तभी ये अपने आप स्टार्ट हो जाता है। ऊपर से पुरानी गाड़ी है, थोड़ा-बहुत कंपन भी इसे हिला देता है। बस समझ ले, हवा ने ही भूत बनाया है।” रामलाल की आँखें हैरानी से फैल गईं। उसने कभी सोचा ही नहीं था कि इतना बड़ा तमाशा, जो पूरे मोहल्ले को भूतिया कहानी का हिस्सा लग रहा था, महज कुछ तारों की वजह से था।
जगन चाचा ने स्कूटर की पूरी वायरिंग नए सिरे से दुरुस्त की, ढीले कनेक्शन कसे और कहकहे लगाते हुए बोले — “अब ये स्कूटर तेरे कहे बिना स्टार्ट नहीं होगा। हाँ, अगर फिर भी हो तो समझ लेना असली भूत है!” रामलाल ने राहत की सांस ली और स्कूटर पर बैठ कर घर की ओर चल पड़ा। रास्ते भर उसके मन में बीती रातों की सारी घटनाएँ याद आती रहीं — अपनी रस्सी में खुद उलझना, तांत्रिक बाबा की ड्रामा बाज़ी और मोहल्ले वालों की हंसी। मगर अब वो चैन से मुस्कुरा रहा था। उसने ठान लिया कि वो मोहल्ले में जाकर सबको बताएगा कि स्कूटर में कोई भूत नहीं था, सिर्फ मशीन की चालाकी थी। मगर उसे यह भी पता था कि अब ये किस्सा सालों तक कस्बे के लोगों की चाय-चर्चाओं में हंसी का विषय बना रहेगा।
***
रामलाल जैसे ही अपने स्कूटर पर सवार होकर घर की ओर लौटने लगा, उसके दिल का बोझ जैसे हल्का हो गया। अब वो जान चुका था कि न तो कोई भूत था, न कोई आत्मा, और न ही किसी तांत्रिक की जरूरत थी। बस कुछ तारों की शरारत ने उसे और उसके पूरे मोहल्ले को हफ्तों तक परेशान कर रखा था। घर पहुँचते-पहुँचते उसके चेहरे पर वो पुरानी मासूम मुस्कान लौट आई थी। मगर मोहल्ले की गलियों में स्कूटर की घरघराहट सुनते ही लोग फिर अपने-अपने दरवाजों और खिड़कियों से झाँकने लगे। बच्चों की टोली दौड़ कर उसके पीछे हो ली। कोई हंस रहा था, कोई डर के मारे पेड़ के पीछे छिप रहा था। रामलाल स्कूटर से उतरा और भीड़ की ओर देखकर बोला — “भाइयों और बहनों, सुनिए! अब इस स्कूटर में कोई भूत नहीं है। जगन मिस्त्री ने जांच कर दी है। बस कुछ तार ढीले थे, वही हवा में हिलकर करंट दे देते थे। अब सब ठीक है।” मगर रामलाल की यह बात लोगों के ठहाकों में दब गई।
मोहल्ले के चौधरी ने अपनी मूँछों पर ताव देते हुए कहा — “अरे रामलाल भैया! हमें तो लगता था कि अब तुम स्कूटर बेच ही दोगे। लेकिन तुम तो इसे और ज्यादा शान से चला रहे हो।” किसी औरत ने अपनी सखी से धीरे से कहा — “देख बहन, अब रामलाल खुद ही भूत से कम नहीं लगते, वो रस्सी कांड याद है ना?” और दोनों हँसी रोकते-रोकते अंदर चली गईं। बच्चों ने तो स्कूटर के चारों ओर गोल घेरा बनाकर ताली बजाते हुए गाना शुरू कर दिया — “रामलाल चाचा का स्कूटर भूत भगाने वाला, भूत गया मिस्त्री आया, मामला निकला जरा पुराना!” रामलाल पहले तो शर्म से झेंप गया, मगर फिर खुद भी मुस्कुरा पड़ा। आखिर इतना बड़ा तमाशा हुआ था, हंसी तो बनती ही थी। अब मोहल्ले में वो स्कूटर एक किस्सा बन चुका था, जो हर गली-नुक्कड़ पर चाय की चुस्कियों के साथ सुनाया जाने लगा।
शाम को चाय की दुकान पर बैठा रामलाल खुद अपने किस्से का आनंद लेने लगा। लोग उससे मजाक में पूछते — “अरे रामलाल भाई, अब स्कूटर में नया प्रेत तो नहीं आया?” और वो हंस कर जवाब देता — “ना भैया, अब तो ये स्कूटर मुझसे भी ज्यादा शरीफ है।” मोहल्ले के लड़कों ने स्कूटर की नकली भूतिया कहानियों में और मसाले डाल दिए। कोई कहता — “उस रात मैंने स्कूटर पर एक सफेद साया देखा था, जो रामलाल से कह रहा था — मुझे मिस्त्री के पास ले चल!” और ठहाके लगते। ये स्कूटर अब रामलाल की पहचान बन चुका था। वो जहाँ भी जाता, लोग हंसते हुए कहते — “लो भूतिया स्कूटर वाला आ गया।” रामलाल ने भी अब इस हंसी को दिल से लगा कर नहीं, बल्कि अपनी जिंदगी की सबसे अनोखी याद बना लिया।
***
अब जबकि स्कूटर की ‘भूतिया’ कहानी पर से परदा उठ चुका था और असली वजह सबके सामने आ गई थी, रामलाल ने अपने स्कूटर को अपनी शान बना लिया। पहले जो स्कूटर उसके लिए शर्म और हंसी का कारण बना था, अब वही उसका अभिमान बन चुका था। रामलाल रोज सुबह स्कूटर को अच्छे से पानी से धोता, कपड़े से पोंछता और फिर उस पर थोड़ा इत्र भी छिड़क देता। मोहल्ले वाले अब देखते कि रामलाल स्कूटर पर बैठकर ऐसे निकलता मानो कोई राजा अपनी सवारी पर सवार हो। बच्चों की टोली जो पहले स्कूटर का मजाक उड़ाती थी, अब खुद स्कूटर पर बैठने की जिद करने लगी। रामलाल अब शान से कहता — “देखो, ये वही स्कूटर है जिसने पूरे मोहल्ले को हिलाकर रख दिया था। अब देखो इसकी चमक!” और सच में, उसका स्कूटर अब कस्बे की गलियों में सबसे ज्यादा दमकता हुआ दिखता था।
धीरे-धीरे कस्बे में रामलाल और उसके स्कूटर की जोड़ी एक कहानी बन गई। चाय की दुकानों पर लोग मजाकिया अंदाज में कहते — “रामलाल भाई, अब तो स्कूटर की सवारी पर टिकट लगवा दो। आखिर वो भूतिया स्कूटर था!” और रामलाल भी हंसकर कहता — “हाँ भैया, टिकट तो बनवाना पड़ेगा, आखिर मोहल्ले की शान है ये!” अब वो स्कूटर सिर्फ रामलाल की जरूरत नहीं, बल्कि उसका गर्व बन चुका था। जब भी कोई नया मेहमान मोहल्ले में आता, लोग उसे रामलाल के स्कूटर की कहानी सुनाए बिना नहीं रहते। और मेहमान भी उत्सुकता से उस स्कूटर को देखने आते। बच्चे अब उसकी हेडलाइट पर हाथ फेरते और कान लगाकर उसकी घरघराहट सुनते जैसे वो कोई अजूबा हो। रामलाल भी अब खुद पर और अपने स्कूटर पर गर्व करने लगा था। उसे अब इस बात की खुशी थी कि उसने खुद अपनी हिम्मत और सूझबूझ से इस भूतिया रहस्य को सुलझाया था।
रामलाल ने अब स्कूटर को और भी बेहतर बनाने की ठानी। उसने कस्बे के पेंटर से स्कूटर को नया रंग दिलवाया — चमचमाती नीली बॉडी पर लाल धारियाँ। उसने हैंडल पर नए ग्रिप्स लगवाए और पीछे एक छोटा सा झंडा भी लगाया जिस पर लिखा था — “मोहल्ले की शान”। अब जब वो बाजार जाता तो लोग दूर से ही पहचान जाते — “अरे देखो-देखो, भूतिया स्कूटर वाला आ गया!” मगर इस बार उनके शब्दों में हंसी नहीं, बल्कि एक अपनापन और सम्मान झलकता। रामलाल भी अब मुस्कुरा कर सिर ऊंचा करके जवाब देता। मोहल्ले की गलियों में उसका स्कूटर घरघराता हुआ गुजरता और लोगों को वो पुरानी कहानी याद दिला जाता, जब एक स्कूटर ने पूरे मोहल्ले की नींदें उड़ा दी थीं।
***
समय बीतता गया और रामलाल का स्कूटर अब मोहल्ले की शान और पहचान बन चुका था। मगर किस्मत को जैसे आखिरी तमाशा दिखाना बाकी था। हुआ यूँ कि कस्बे में एक बड़ा मेला लगा। रामलाल ने भी तय किया कि वो अपने स्कूटर पर मेले की सवारी करेगा और सबको दिखाएगा कि उसका स्कूटर अब कितना शानदार हो चुका है। वो स्कूटर पर सवार होकर निकला — हैंडल पर रंगीन रिबन बंधे थे, पीछे झंडा लहरा रहा था, और स्कूटर की नई पेंटिंग धूप में चमक रही थी। मगर मेले के मैदान तक पहुँचते-पहुँचते अचानक स्कूटर ने फिर अपनी पुरानी आदत दिखाई। एक बड़े गड्ढे से गुजरते ही स्कूटर की हेडलाइट झपकने लगी और इंजन घरघराकर बंद हो गया। लोग हँसते हुए बोले — “अरे, भूत तो फिर लौट आया रामलाल भाई!” रामलाल पहले तो झेंप गया, मगर फिर खुद भी हँस पड़ा। उसने स्कूटर को किनारे खड़ा किया, एक दो बार किक मारी और फिर खुद मुस्कराते हुए कहा — “अरे भैया, ये स्कूटर नहीं, तमाशा है। और तमाशा आखिर बिना हंसी के कैसे पूरा होगा?”
इस अंतिम तमाशे ने रामलाल को एक बड़ी सीख दे दी थी। वो समझ गया कि ज़िंदगी भी इसी स्कूटर जैसी है — कभी अटकती है, कभी चलती है, कभी हंसी उड़वाती है तो कभी गर्व का कारण बनती है। अगर हम हर रुकावट पर डरें या शर्मिंदा हों तो ज़िंदगी का मजा ही क्या? मेले से लौटते वक्त उसने खुद से वादा किया कि वो अब किसी मजाक या अफवाह से डरकर अपनी खुशी नहीं छोड़ेगा। घर लौटकर उसने स्कूटर की मरम्मत फिर से करवाई और उसे ऐसे संभाला जैसे वो कोई कीमती खजाना हो। मोहल्ले वाले भी अब रामलाल को पहले की तरह चिढ़ाते नहीं थे। अब जब वो स्कूटर पर सवार होता तो लोग कह उठते — “अरे देखो, वो आया जिसने अपने भूत को भी हरा दिया।” बच्चे उसे घेर लेते और उसकी कहानी सुनते, जैसे वो कोई बहादुर योद्धा हो जिसने एक अनोखी जंग जीती हो।
रामलाल की स्कूटर की कहानी अब कस्बे की लोककथा बन गई थी। चाय की दुकानों पर, रात की चौपालों में, गाँव की बैठकों में, हर जगह उसकी कहानी सुनाई जाती थी। रामलाल भी अब इस पूरे अनुभव को अपनी जिंदगी की सबसे हँसी-भरी पूंजी मानता था। वो अक्सर कहा करता — “भाई, जिंदगी में कभी किसी स्कूटर या हालात से डरना नहीं चाहिए। मजाक उड़ाने वाले मिलेंगे, पर असली मजा तब है जब आप खुद भी अपनी कहानी पर हँसना सीख लें।” और सच में, उसका स्कूटर अब न सिर्फ उसके सफर का साथी था, बल्कि उसके साहस, धैर्य और हंसी की मिसाल बन गया था। रामलाल की ये कहानी आने वाली पीढ़ियों को ये सिखा गई कि हर ‘भूत’ डराने नहीं आता, कुछ हंसी भी दे जाता है।
-समाप्त-