विक्रम चतुर्वेदी
दिल्ली की पुरानी गलियों में सर्दियों की रातें हमेशा से रहस्यमयी रही हैं, लेकिन उस रात की धुंध कुछ अलग थी—जैसे हवा में अजीब सी गंध घुली हो, जैसे पुरानी कहानियाँ अचानक फिर से ज़िंदा हो उठी हों। रात के करीब ढाई बज रहे थे जब पुरानी दिल्ली के एक तंग गली में एक मृत शरीर मिला। कोहरे की मोटी चादर के बीच झांकती स्ट्रीट लाइट की पीली रोशनी में उसका चेहरा साफ़ नहीं दिख रहा था, लेकिन जो दिख रहा था, वो डरावना था—उसके चेहरे पर गहरी दहशत की झलक थी, जैसे मौत से पहले उसने कुछ ऐसा देखा हो जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। इंस्पेक्टर यशवर्धन “यश” सिंह को जैसे ही कॉल मिली, वो तुरंत अपनी जीप लेकर निकल पड़े। दिल्ली पुलिस में उनका नाम तेज़ दिमाग़ और जिद्दी स्वभाव के लिए जाना जाता था। वो लंबे समय से ऐसे मामलों को हल करते आए थे जिनमें कोई और हाथ खड़े कर देता, लेकिन इस बार मामला कुछ अलग लग रहा था। जीप की हैडलाइट्स कोहरे को चीरती हुई आगे बढ़ी, लेकिन फिर भी कुछ मीटर से ज़्यादा दूर देख पाना नामुमकिन था। यश के ज़हन में अनगिनत सवाल थे—कोई चोर? कोई गैंगवार? या कुछ और? घटनास्थल पर पहुँचकर यश ने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई। संकरी गली में पुरानी दीवारों पर उग आई काई, टूटी-फूटी ईंटें और कबाड़ का अंबार बिखरा पड़ा था। पास ही एक पुराना मंदिर था, जिसकी दीवारों पर चढ़ा पीला रंग जगह-जगह से उखड़ चुका था। उनके सहायक, सिपाही अर्जुन, पहले से वहाँ मौजूद थे और उन्होंने धीरे से इशारा किया—”सर, यही है शव।” यश ने शव की ओर बढ़ते हुए देखा कि उस आदमी की आँखें खुली हुई थीं, और pupils चौड़ी हो चुकी थीं। उसके होंठ थोड़े खुले थे, जैसे मरने से ठीक पहले उसने चीखने की कोशिश की हो। लेकिन सबसे अजीब बात थी उसकी नाक के पास बसी हल्की सी चमेली की खुशबू, जो कोहरे में भी साफ़ महसूस हो रही थी। यश ने धीमी आवाज़ में कहा, “चमेली की महक? इस वक़्त?” अर्जुन ने घबराकर कहा, “सर, कहीं किसी ने शव पर फूल तो नहीं डाले?” यश ने सिर हिलाया, “नहीं, देखो ज़रा… आस-पास कहीं फूल तो नहीं हैं।” लेकिन आसपास सिर्फ़ टूटे हुए ईंट, कांच की बोतलें और गीली ज़मीन थी—कहीं भी चमेली का एक भी फूल नहीं था। यश ने शव की जेबें टटोलनी शुरू कीं। उसमें से एक पुराना पर्स, कुछ नोट, और एक काग़ज़ का टुकड़ा मिला जिस पर उर्दू में कुछ लिखा था—लेकिन नमी से शब्द धुंधले पड़ चुके थे। तभी पीछे से आवाज़ आई, “इंस्पेक्टर सिंह?” यश ने मुड़कर देखा—डॉ. रिना जोशी, फॉरेंसिक विशेषज्ञ, जो अक्सर ऐसे मामलों में उनकी मदद करती थीं। रिना की आँखों में वही जिज्ञासा थी, जो यश की आँखों में थी। “डॉ. जोशी,” यश ने कहा, “कोई चोट का निशान नहीं है, लेकिन मौत का डर चेहर पर साफ़ दिख रहा है। कुछ समझ में आ रहा है?” रिना ने शव का निरीक्षण करते हुए कहा, “कोई बाहरी चोट नहीं, न ही खून का निशान। ऐसे में दो ही चीज़ें हो सकती हैं—या तो दिल का दौरा, या फिर किसी तरह का ज़हरीला पदार्थ जिससे तुरंत असर हो। मैं लैब में पोस्टमॉर्टम के बाद बता पाऊँगी।” यश ने गहरी साँस ली। अचानक उनके कानों में गली की दूसरी तरफ़ से कुछ खटर-पटर सुनाई दी। वो तेजी से उधर बढ़े, लेकिन वहाँ सिर्फ़ एक आवारा बिल्ली थी जो कूड़े के ढेर में कुछ तलाश रही थी। यश की नज़र एक पुराने दीवार पर पड़ी जहाँ किसी ने लाल रंग से कुछ लिखा था—”वक़्त आ गया है।” ये शब्द जैसे ठंडी हवा में तैरते हुए उनके दिल में उतर गए। वो दीवार पर उँगलियों से छूकर देख रहे थे कि रंग अभी ताज़ा था। इसका मतलब किसी ने हाल ही में लिखा था—शायद वही जो इस हत्या के पीछे हो सकता है। यश वापस लौटे तो देखा कि रिना शव को ऐंबुलेंस तक पहुँचाने की तैयारी कर रही थीं। अर्जुन ने धीरे से पूछा, “सर, क्या लगता है आपको? किसी गिरोह का काम?” यश ने बिना नज़रें हटाए कहा, “पता नहीं, अर्जुन। लेकिन गिरोह इतनी सफ़ाई से नहीं मारते। और ये चमेली की महक… कुछ तो है जो छुपा है।” उस गली में खड़े-खड़े यश के ज़हन में बचपन की एक धुंधली याद तैर गई—उनकी माँ पूजा में हमेशा चमेली के फूल चढ़ाती थीं। उन फूलों की खुशबू उनके बचपन की सबसे पुरानी यादों में से थी। पर आज वही महक डर और मौत की निशानी बन गई थी। यश को लगा, जैसे अतीत का कोई अधूरा पन्ना फिर से खुलने वाला हो। थोड़ी देर बाद शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया। यश और रिना ने जीप में बैठकर वापसी की राह पकड़ी। रास्ते में रिना ने चुप्पी तोड़ी, “यश, तुम्हें क्या लगता है? क्या ये कोई मानसिक दबाव की वजह से दिल का दौरा हो सकता है?” यश ने धीरे से कहा, “हो सकता है, लेकिन सवाल ये है कि आदमी को इतना डराने वाला क्या था? और फिर ये चमेली की महक… मुझे लगता है, ये सिर्फ़ इत्तेफ़ाक़ नहीं है।” रिना कुछ देर चुप रहीं, फिर बोलीं, “कल रिपोर्ट आने के बाद शायद कुछ साफ़ हो।” जीप कोहरा चीरती हुई आगे बढ़ती रही, लेकिन यश के मन में कोहरा और गहरा होता जा रहा था। दिल्ली की सड़कों पर उस रात कुछ ऐसा था जो हमेशा की तरह नहीं था—जैसे पुरानी हवेलियों की दीवारों में छुपा कोई राज़ फिर से सांस लेने लगा हो। कुछ ही घंटों में ये मामला शहर भर की सुर्ख़ियों में छा गया। लोग अटकलें लगाने लगे—किसी ने कहा पुरानी रंज़िश है, किसी ने कहा काला जादू। लेकिन यश जानता था कि सच्चाई न तो अफ़वाहों में मिलेगी, न ही डर में। सच छुपा है उन गलियों की धुंध में, उन शब्दों में जो लाल रंग से दीवार पर लिखे गए थे—”वक़्त आ गया है।” सवाल ये था—किसका वक़्त? और क्यों? जब तक जवाब नहीं मिलता, यश को नींद नहीं आने वाली थी। पर उस रात उसने ये महसूस किया कि ये सिर्फ़ एक हत्या नहीं थी—ये कहानी की शुरुआत थी, एक ऐसे रहस्य की जो उसके अतीत से भी जुड़ा हो सकता था। और यही सोचते-सोचते उसकी जीप दिल्ली की सड़कों पर गायब हो गई, सिर्फ़ धुंध के बीच लाल बत्ती की हल्की रोशनी टिमटिमाती रही।
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सुबह की पहली किरण अभी दिल्ली की गलियों तक नहीं पहुँची थी, लेकिन इंस्पेक्टर यशवर्धन “यश” सिंह के लिए रात जैसे अब तक ख़त्म नहीं हुई थी। कोहरे ने शहर को अब भी अपनी गिरफ्त में ले रखा था, और उस धुंध के भीतर कल रात की वो लाश और चमेली की वो महक बार-बार उसके ज़हन में गूंज रही थी। पुलिस मुख्यालय की ऊपरी मंज़िल पर बने उनके छोटे से ऑफिस में, यश की मेज़ पर सबूतों की फाइलें बिखरी पड़ी थीं—वही कागज़ का टुकड़ा, जिसमें धुंधली लिखावट थी, और दीवार पर लाल रंग से लिखा “वक़्त आ गया है” का फ़ोटो। खिड़की के बाहर कोहरा दीवारों से टकरा कर वापस लौट रहा था, जैसे किसी अदृश्य ताकत ने शहर को बाँध रखा हो। तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई, और डॉ. रिना जोशी हाथ में रिपोर्ट लिए भीतर आईं। “यश,” उसने धीमे स्वर में कहा, “पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट आ गई है।” यश की आँखों में अचानक एक चमक आई, “बताओ, कुछ मिला?” रिना ने गहरी सांस ली, “मौत का कारण दिल का दौरा ही है, लेकिन दिल पर कोई पुराना रोग नहीं था। और सबसे दिलचस्प बात–पीड़ित के खून में हमें एक दुर्लभ किस्म के पौधे का अर्क मिला है, जिसका असर सीधा दिल की धड़कन पर पड़ता है। ये कोई आम ज़हर नहीं है, बल्कि ऐसा कुछ जिसे पारंपरिक जड़ी-बूटियों से बनाया जा सकता है।” यश ने चौंककर पूछा, “मतलब उसे किसी ने जान-बूझकर डराया और फिर ज़हर से मारा?” रिना ने कहा, “संभव है। पर ज़हर की मात्रा बेहद कम थी, जैसे किसी ने बस इतना ही चाहा कि दिल डर से थम जाए। और हाँ, शव के कपड़ों पर चमेली के फूल के तेल के अंश भी मिले हैं।” ये सुनते ही यश की यादों में फिर से माँ की पूजा और वो चमेली की माला घूम गई, मगर इस बार उसके साथ खून की महक भी घुल गई। उसने धीमे से बुदबुदाया, “चमेली का रहस्य…।” तभी अर्जुन फाइलें लेकर भीतर आया, “सर, मरने वाले की पहचान हो गई है—नाम है अनवर कुरैशी, 62 साल का, पुराने किले के पास एक छोटी सी दुकान चलाता था। कोई दुश्मन या विवाद का रिकॉर्ड नहीं मिला।” यश ने पूछा, “और परिवार?” अर्जुन बोला, “बीवी का देहांत पाँच साल पहले हो चुका है, एक बेटा है जो मुंबई में रहता है। दुकान पर वो रोज़ देर रात तक बैठा करता था।” यश ने कहा, “हमें दुकान देखनी होगी, शायद कुछ मिलेगा।” उस सुबह कोहरा कुछ कम हुआ था, लेकिन हवाओं में अजीब सी ठंडक थी। यश, रिना और अर्जुन उस पुरानी दुकान पर पहुँचे। टूटी-फूटी लकड़ी की अलमारियों में पुराने सिक्के, घड़ियाँ, और कुछ दुर्लभ किताबें रखी थीं। दुकान के कोने में एक पुराना दीवान पड़ा था, जिस पर अब भी अनवर की चप्पलें रखी थीं। यश की नज़र दीवार पर टंगी एक तस्वीर पर पड़ी—पुरानी दिल्ली के किसी जुलूस की तस्वीर, जिसमें कुछ लोग गहरे रंग के कपड़ों में दिखाई दे रहे थे, उनके गले में चमेली की मालाएँ थीं। रिना ने फौरन पूछा, “ये तस्वीर पुरानी लगती है, शायद कोई त्योहार?” अर्जुन बोला, “सर, सुनने में आया है कि अनवर साहब पुराने ज़माने के एक जुलूस से जुड़े थे, जिसे ‘चमेली की बारात’ कहते थे। लेकिन अब ये जुलूस बरसों से नहीं निकला।” यश ने तस्वीर को हाथ में लेकर गौर से देखा—उसमें सबसे आगे खड़ा एक आदमी कुछ जाना-पहचाना सा लगा, जैसे उसकी शक्ल अपने ही अतीत से मेल खाती हो। “ये जुलूस क्या था?” यश ने पूछा। अर्जुन ने कहा, “कहते हैं, मुग़ल दौर के एक खानदान की याद में हर साल एक जुलूस निकलता था, जिसमें लोग चमेली के फूल चढ़ाते थे, लेकिन अचानक कई साल पहले वो बंद हो गया।” रिना ने फुसफुसाकर कहा, “और अब उसी खानदान से जुड़े लोग मरने लगे हैं?” यश की सोच की रफ़्तार तेज़ हो गई—क्या ये मौत किसी अतीत के गुनाह का बदला थी? तभी दुकान के तहखाने की सीढ़ियों की ओर उनका ध्यान गया, जहाँ दरवाज़ा आधा खुला था। यश ने इशारे से अर्जुन को आगे बढ़ने को कहा, और खुद पिस्तौल हाथ में लेकर धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतरे। नीचे अंधेरा था, लेकिन मोबाइल की टॉर्च जलाते ही एक पुरानी अलमारी का ताला टूटा हुआ दिखाई दिया। अलमारी के भीतर किताबों के पीछे एक लकड़ी का डिब्बा रखा था। यश ने डिब्बा खोला—उसमें कुछ पीले पड़े काग़ज़ और एक रेशमी कपड़े में लिपटी छोटी शीशी थी, जिसमें वही चमेली का तेल था। रिना ने धीमे से कहा, “ये वही तेल होगा जिससे कपड़ों पर निशान मिले।” यश ने काग़ज़ों को खोला, उन पर उर्दू में कुछ लिखा था—“वक़्त आ गया है, ख़ून से लिखा आख़िरी सच, और चमेली के फूलों से होगा न्याय।” रिना की साँसें थम सी गईं, “ये तो किसी योजना का हिस्सा लगता है।” यश के ज़हन में कल रात की दीवार पर लिखा वही वाक्य गूँजा—“वक़्त आ गया है।” दुकान के बाहर निकलते समय यश की नज़र पास के मंदिर पर पड़ी, जहाँ धुंध अब भी अटकी थी। उस मंदिर की दीवारों पर किसी ने ताज़ा चमेली के फूल चढ़ा रखे थे, और वहां से भी वही महक आ रही थी। यश का दिल तेज़ धड़कने लगा—क्या अनवर कुरैशी के मरने से पहले भी कोई यहाँ आया था? तभी अर्जुन ने दौड़कर बताया, “सर, पास की गली में एक और शव मिला है।” यश और रिना तेज़ी से वहाँ पहुँचे। वही हाल—चेहरे पर दहशत, चोट का कोई निशान नहीं, और चारों ओर चमेली की गंध। इस बार शव एक युवा महिला का था, जिसकी उम्र मुश्किल से तीस के आसपास होगी। उसकी मुट्ठी में कुछ दबा हुआ था—जब अर्जुन ने खोलकर देखा, उसमें एक टूटा हुआ चमेली का फूल था, और एक छोटा सा काग़ज़ जिस पर उर्दू में लिखा था, “शुरुआत हो चुकी है।” यश की आँखों में चिंता की परछाइयाँ गहरी हो गईं। अब ये मामला सिर्फ़ एक अजीब मौत का नहीं रहा—ये किसी सिलसिले की शुरुआत थी, जो पता नहीं कितने और लोगों को निगलने वाला था। और सबसे डरावनी बात–ये सिलसिला अतीत से बंधा था, उस अतीत से जिसे यश ने कभी समझने की कोशिश भी नहीं की थी। कोहरे के बीच खड़े यश के ज़हन में अब सिर्फ़ एक सवाल गूंज रहा था—”अगला कौन?” लेकिन जवाब धुंध में कहीं खोया हुआ था, और चमेली की खुशबू उस जवाब को और भी रहस्यमय बना रही थी। दिल्ली की पुरानी हवेलियों, गली-कूचों और मंदिरों की दीवारों के पीछे जैसे सदियों पुराना कोई राज़ जाग उठा था, और यश को लग रहा था कि ये राज़ उसकी अपनी रगों में भी बह रहा है।
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दिल्ली की सुबह अब भी कोहरे में डूबी हुई थी, लेकिन इंस्पेक्टर यशवर्धन “यश” सिंह के दिल में अंधेरा और गहरा हो चुका था। दो रहस्यमय मौतें, दोनों के चेहरे पर वही डर की मुहर, और हर जगह चमेली की वही मीठी मगर डरावनी महक। पुलिस मुख्यालय की दीवारों के पीछे बैठे यश के सामने मेज़ पर वही सबूत फैले थे—उर्दू में लिखे हुए वो वाक्य, पुरानी तस्वीरें, और चमेली के तेल की शीशी। उस अजीब सी गंध ने जैसे उसकी नींद छीन ली थी, और अब उसे चैन नहीं था। तभी दरवाज़ा खुला और डॉ. रिना जोशी भीतर आईं। उनके चेहरे पर भी चिंता की परछाइयाँ थीं। उन्होंने धीमे स्वर में कहा, “यश, दूसरी मौत की भी रिपोर्ट आ गई है। वही पौधे का अर्क, वही दिल पर सीधा असर। लगता है कातिल एक ही है, और वो किसी खास मकसद से चुन-चुनकर लोगों को मार रहा है।” यश ने गहरी साँस ली और खिड़की से बाहर देखते हुए कहा, “मकसद… मकसद क्या है? दोनों पीड़ितों के बीच सीधा रिश्ता तो नहीं दिख रहा, लेकिन ये उर्दू के संदेश… और चमेली की बारात की वो तस्वीर… कुछ तो है जो जोड़ता है इन्हें।” तभी अर्जुन तेज़ी से भीतर आया, “सर, मैंने पुराने अख़बारों और रिकॉर्ड में कुछ ढूँढा है।” उसके हाथ में धूल लगी एक पुरानी फाइल थी। यश ने फाइल खोली, उसमें पीली पड़ी कतरनों और कुछ धुंधली तस्वीरों के बीच एक ख़बर पर उसकी नज़र टिकी—“चमेली की बारात के दौरान लापता हुए तीन लोग, केस आज तक अनसुलझा।” ये घटना 1968 की थी। यश की आँखों में हलचल हुई, “1968… इतने साल पहले? और उसके बाद ये जुलूस अचानक बंद क्यों हो गया?” अर्जुन बोला, “सर, उस वक्त जुलूस मुग़ल खानदान की याद में निकलता था, कहा जाता था कि जिनके गले में चमेली की माला डाली जाती है, वो खानदान के सच्चे वारिस हैं। पर उसी साल तीन लोग लापता हो गए, और जुलूस पर मनहूसियत का साया कहकर उसे बंद कर दिया गया।” रिना ने धीरे से कहा, “क्या इन हत्याओं का रिश्ता उसी लापता लोगों या उनके वंशजों से हो सकता है?” यश ने गहरी नज़र से रिना की तरफ़ देखा, “और अगर हाँ, तो अगला निशाना कौन होगा?” उस क्षण यश के दिल में अजीब सी सनसनाहट हुई, जैसे कोई पुरानी धड़कन फिर से ज़िंदा हो गई हो। उसने अर्जुन से कहा, “मुझे उन लापता तीनों के नाम और उनका पता निकालो। साथ ही देखो, कहीं उनके परिवार आज भी दिल्ली में रहते हैं या नहीं।” अर्जुन तुरंत चला गया। यश के मन में रह-रहकर वही तस्वीर घूम रही थी—चमेली की मालाओं से सजे लोग, और सबसे आगे खड़ा वो शख़्स जिसकी शक्ल जानी-पहचानी सी लगी थी। उसने रिना से कहा, “मुझे दिल्ली आर्काइव लाइब्रेरी चलना होगा, शायद वहाँ कुछ पुराने रिकॉर्ड्स में और सुराग़ मिलें।” दोपहर को जब कोहरा थोड़ा छंटा, यश और रिना दिल्ली आर्काइव की सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे। भीतर की पुरानी लकड़ी की अलमारियों और किताबों की महक में एक रहस्य की गंध थी, जैसे ये इमारत भी उन राज़ों को सदियों से सँजोए बैठी हो। रिकार्ड्स सेक्शन में बैठे एक बुजुर्ग लाइब्रेरियन ने सुनकर सिर हिलाया, “चमेली की बारात… हाँ बेटा, सुना तो है। उस खानदान का बड़ा नाम था—मुग़ल बादशाह की छत्रछाया में पला था वो खानदान। लेकिन 1857 के गदर के बाद से उनका नाम मिटने लगा, फिर भी हर साल बारात निकलती रही, कहते हैं खानदान की शुद्ध रक्त रेखा की पहचान के लिए।” यश ने पूछा, “और 1968 में जो लोग लापता हुए?” बुजुर्ग ने अलमारी से एक पुराना रजिस्टर निकाला, “ये देखो—शाहिद अली, रईस अहमद और माधवी सिंह। इनके बारे में उसके बाद कुछ पता नहीं चला।” रजिस्टर के पन्ने पलटते हुए यश का हाथ ठिठक गया—माधवी सिंह। वही उपनाम… वही नाम जो उसके अपने खानदान में चलता आया था। रिना ने धीरे से पूछा, “माधवी सिंह… यश, कहीं…” यश की साँस जैसे थम गई। उसने धीमे स्वर में कहा, “माधवी सिंह मेरी दादी का नाम था।” उन शब्दों का वजन इतना भारी था कि कुछ क्षण के लिए कमरे की हवा भी ठहर गई। यश के दिमाग़ में बचपन की यादें तैर गईं—दादी की कहानियाँ, उनके गले की पुरानी चमेली की माला, और वो वाक्य जो उन्होंने मरने से पहले बुदबुदाया था, “वक़्त फिर आएगा…” अब सब जुड़ने लगा था। ये हत्याएँ सिर्फ़ अजनबियों की नहीं थीं, ये उसके अपने अतीत से जुड़ी हुई थीं। रिना ने उसका कंधा पकड़ा, “यश, तुम्हें अपने परिवार के बारे में और जानना होगा। शायद तुम्हारे पिता को कुछ पता हो।” यश की आँखों में गुस्सा और दर्द एक साथ उभर आया, “पिता… उनसे मैंने बरसों बात नहीं की। पर शायद अब वक़्त आ गया है।” लाइब्रेरी से बाहर निकलते समय कोहरे की परत फिर से घनी हो रही थी। यश की आँखों में अब डर नहीं, बल्कि एक नई आग थी। गाड़ी की खिड़की से बाहर देखते हुए उसने दिल्ली की पुरानी हवेलियों को देखा, जैसे वो दीवारें भी उसे घूर रही हों और कह रही हों—“राज़ खोलो, वक़्त आ गया है।” उसी शाम उसने पहली बार अपने पिता को कॉल किया। उधर से भारी, थकी हुई आवाज़ आई, “हाँ, बोलो।” यश ने कहा, “मुझे आपसे मिलना है, ज़रूरी है।” कुछ पल की चुप्पी के बाद उधर से जवाब आया, “ठीक है, कल सुबह।” कॉल कटते ही यश ने महसूस किया कि ये मुलाक़ात सिर्फ़ एक बेटे और पिता के बीच की नहीं होगी—ये मुलाक़ात अतीत की परछाइयों से होगी, उन राज़ों से जिनसे वो अब तक भागता रहा। रात को ऑफिस लौटते वक्त यश ने महसूस किया कि कोई जीप के पीछे-पीछे आ रहा है। उसने शीशे में देखा—एक काली कार थोड़ी दूरी पर थी, लेकिन जैसे ही यश ने गाड़ी रोकी, वो कार गायब हो गई। क्या उसे कोई निगाह में रखे हुए था? और अगर हाँ, तो कौन? ऑफिस पहुँचकर अर्जुन इंतज़ार कर रहा था। उसने कहा, “सर, लापता लोगों के परिवारों का पता चल गया। शाहिद अली का बेटा आज भी पुरानी दिल्ली में रहता है, और रईस अहमद की बेटी अभी भी यहीं है। पर सबसे हैरानी की बात—माधवी सिंह के बारे में कहीं कोई रिकॉर्ड नहीं है।” यश की आवाज़ में सख़्ती थी, “मुझे उनका पता दो, मैं खुद बात करूँगा। और कल सुबह मैं पिता से मिलने जा रहा हूँ—अब जो भी हो, सच सामने लाना होगा।” कोहरा फिर से गहरा हो चुका था, और दिल्ली की हवाओं में चमेली की महक अब भी तैर रही थी। मगर इस बार उस महक के साथ यश को अपने दिल की धड़कनें भी सुनाई दे रही थीं—धड़कनें जो कह रही थीं कि सच्चाई जितनी करीब आ रही है, उतनी ही डरावनी भी है। और यश ने महसूस किया, ये सिर्फ़ हत्याओं की गुत्थी नहीं थी—ये उसकी अपनी कहानी थी, उसका अपना खून था जो इस रहस्य में बह रहा था।
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सुबह की पहली रोशनी ने जैसे ही दिल्ली की पुरानी हवेलियों की दीवारों को छुआ, इंस्पेक्टर यशवर्धन “यश” सिंह पहले से ही अपने पिता के घर की दहलीज़ पर खड़ा था। ये वही घर था जिसमें उसका बचपन बीता था, लेकिन पिछले कुछ बरसों से वो इस दरवाज़े के पास तक भी नहीं आया था। दरवाज़ा खोला तो सामने उसके पिता थे—बाल सफ़ेद हो चुके थे, चाल में थकान झलक रही थी, लेकिन आँखों में वही सख़्ती जो यश बचपन से पहचानता था। कुछ पल के लिए दोनों सिर्फ़ एक-दूसरे को देखते रहे, जैसे शब्द गले में अटक गए हों। फिर पिता ने धीमे स्वर में कहा, “आ जाओ, बैठो।” बैठक के कोने में लकड़ी की अलमारी पर रखा पुराना फोटो फ्रेम अब भी वहीं था—दादी माधवी सिंह की तस्वीर, उनके गले में वही चमेली की माला। यश की निगाह उस तस्वीर पर जाकर अटक गई। “मुझे सब सच बताइए,” यश की आवाज़ में आज डर कम और जिद ज़्यादा थी, “दादी का नाम उन लापता लोगों में क्यों था? और ये चमेली की बारात असल में थी क्या?” पिता ने गहरी साँस ली, उनकी आँखें कुछ देर के लिए अतीत में खो गईं, “तुम्हारी दादी सिर्फ़ खानदान की औरत नहीं थीं, बेटा। वो उस खानदान की आख़िरी वारिस थीं, जिसके नाम पर चमेली की बारात निकलती थी। बारात सिर्फ़ रस्म नहीं थी—वो असल में वारिस चुनने का तरीका था। कहते थे, जिस पर चमेली की माला डाली जाएगी, वही असली उत्तराधिकारी होगा।” यश ने पूछा, “लेकिन 1968 में क्या हुआ?” पिता की आँखों में डर तैर गया, “उस साल दादी पर माला डाली गई थी, लेकिन उसी रात वो अचानक लापता हो गईं। दो और लोग गायब हुए—शाहिद अली और रईस अहमद। लोग कहते थे, खानदान की ताकत को संभालने के लिए बलिदान ज़रूरी था। पर कुछ मानते थे, ये सब बस अंधविश्वास था। तुम्हारे दादा ने बहुत ढूंढा, पर दादी नहीं मिलीं। कुछ साल बाद वो लौटीं, लेकिन चुप रहीं—कभी नहीं बताया कि उन दिनों कहाँ रहीं। बस इतना कहती थीं, ‘वक़्त आएगा, सब सामने आएगा।’” यश की आवाज़ कड़वी हो गई, “और आपने मुझे क्यों नहीं बताया?” पिता ने थके हुए स्वर में कहा, “मैं चाहता था कि तुम इस पागलपन से दूर रहो। मैं खुद भी सच से भागता रहा… पर लगता है, अब वो वक़्त सचमुच आ गया है।” यश के दिल में जैसे बर्फ़ सी पिघलने लगी, पर डर और गुस्सा अब भी कायम था। उसने कहा, “ये हत्याएँ… ये सब कहीं उस पुराने संस्कार का हिस्सा तो नहीं?” पिता चुप रहे, बस खिड़की के बाहर फैले कोहरे को देखते रहे। उसी पल अर्जुन का कॉल आया, “सर, एक अजीब बात मिली है—शाहिद अली का बेटा कहता है, उसे भी धमकी भरे उर्दू में लिखे नोट मिल रहे हैं, और उसमें बार-बार लिखा है ‘वक़्त आ गया है।’” यश का दिल तेज़ धड़कने लगा, “मैं वहीं आ रहा हूँ।” कॉल कटते ही यश ने पिता की ओर देखा, “आपको कुछ याद आए तो मुझे बताइए।” पिता ने सिर हिलाया, लेकिन उनकी आँखों में छुपा डर यश से छुपा नहीं था। शाहिद अली के बेटे इरफान के घर पहुँचकर यश ने देखा कि वो डरा हुआ था। उसके हाथ में वही तरह का काग़ज़ था—उर्दू में वही शब्द, वही लाल स्याही। इरफान की आवाज़ काँप रही थी, “सर, मैंने कुछ नहीं किया, मैं तो सिर्फ़ एक ट्यूटर हूँ, लेकिन ये लोग कहते हैं, मेरा खून… मेरा खून ज़रूरी है…” यश ने पूछा, “कौन लोग?” इरफान बोला, “मुझे नहीं पता, कभी फोन आता है, कभी दरवाज़े पर काग़ज़, कहते हैं चमेली की बारात फिर से निकलेगी, और इस बार कोई नहीं बचेगा।” यश ने रिना की ओर देखा, जो अब तक चुपचाप सब सुन रही थी, “रिना, अब ये साफ़ है कि हत्यारे बस मार नहीं रहे, वो एक पैटर्न फॉलो कर रहे हैं—एक संस्कार, एक परंपरा।” रिना ने कहा, “और अगला निशाना इरफान भी हो सकता है।” उसी पल यश के फोन पर एक और कॉल आया, “सर, रईस अहमद की बेटी भी लापता हो गई है।” हवा में डर और भी घना हो गया था, जैसे कोहरा और चमेली की गंध अब मौत की आहट बन चुकी हो। यश ने तेज़ी से फैसला लिया, “इरफान, तुम्हें कुछ दिन पुलिस सुरक्षा में रहना होगा।” इरफान की आँखों में राहत का साया आया, लेकिन डर अब भी कायम था। शाम को यश ने फैसला किया कि उसे उस हवेली में जाना होगा जहाँ आख़िरी बार चमेली की बारात निकली थी। हवेली दिल्ली के बाहरी इलाके में वीरान खड़ी थी—टूटी छत, उखड़ी दीवारें, और जाली से छनती रोशनी। हवेली के दरवाज़े पर वो शब्द उकेरे हुए थे—“वक़्त आ गया है।” हवेली के भीतर कदम रखते ही चमेली की तीखी महक ने जैसे यश का गला दबोच लिया। टॉर्च की रोशनी में दीवारों पर faded चित्र उभरे—चमेली की माला पहने हुए लोग, और बीच में एक सिंहासन। रिना ने धीमे स्वर में कहा, “ये सिर्फ़ रस्म नहीं थी, ये तो किसी गुप्त परंपरा का हिस्सा लगता है—जैसे कोई ताजपोशी।” यश की नज़र एक पत्थर की पट्टी पर लिखे शब्दों पर गई, “खून से बनेगा नया उत्तराधिकारी।” यश की साँसें तेज़ हो गईं, “मतलब हत्याएँ इस खानदान की ताकत लौटाने का तरीका हैं?” उसी वक्त पीछे कुछ आवाज़ें सुनाई दीं। अर्जुन दौड़कर आया, “सर, बाहर कोई छुपा हुआ है।” यश और अर्जुन ने दौड़कर देखा, लेकिन बाहर सिर्फ़ कोहरा था। कुछ दूर पर टूटा हुआ चमेली का फूल ज़मीन पर गिरा हुआ था। यश ने उसे उठाया, उसकी खुशबू अब जहरीली सी लगने लगी थी। हवेली के बीचों-बीच एक पुराना कमरा था, जिसमें एक लोहे की संदूक पड़ी थी। यश ने संदूक खोला—भीतर पुरानी किताबें, कुछ मोमबत्तियाँ और एक पुराना नक़्शा। नक़्शे में शहर के कुछ खास इलाकों पर निशान बने थे—वही इलाक़े जहाँ हत्याएँ हुई थीं। यश ने बुदबुदाया, “ये लोग सिर्फ़ मार नहीं रहे, ये एक पैटर्न बना रहे हैं… और शायद आख़िरी क़ुरबानी अभी बाकी है।” हवेली की दीवारों से गिरती धूल के बीच यश ने महसूस किया कि उसकी रगों में भी वही खून बह रहा है जिसके नाम पर ये सब हो रहा है। उसकी आँखों में डर की जगह अब गुस्सा था—अगर ये सब उसके खून के नाम पर हो रहा है, तो अब उसे ही इसे रोकना होगा। बाहर निकलते वक्त कोहरा और घना हो चुका था, और हवेली की टूटी खिड़कियों से आती चमेली की गंध जैसे कानों में कह रही थी—“वक़्त आ गया है…”
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दिल्ली की रात और भी गहरी हो चुकी थी और हवाओं में अब कोहरे के साथ-साथ चमेली की महक और भी तेज़ हो गई थी जैसे कोई पुराना शाप फिर से जाग उठा हो इंस्पेक्टर यशवर्धन “यश” सिंह की जीप हवेली से निकलकर शहर की ओर बढ़ रही थी पर उसके दिल में रह-रहकर वही नक़्शा और वो शब्द गूंज रहे थे “खून से बनेगा नया उत्तराधिकारी” सड़क पर फैले कोहरे में जीप की हैडलाइट जैसे अतीत की परतें चीरने की कोशिश कर रही थी रिना चुपचाप उसके साथ बैठी थी लेकिन उसकी आँखों में भी वही डर और सवाल था जो यश के दिल में था तभी अर्जुन का कॉल आया “सर रईस अहमद की बेटी का शव मिल गया है उसी पैटर्न में चेहरे पर वही डर और पास में टूटा हुआ चमेली का फूल” यश की मुट्ठी भींच गई उसकी साँसें भारी हो गईं और दिल की धड़कन जैसे सिर के भीतर गूंजने लगी “अब बस एक बचा है… इरफान” उसने बुदबुदाया रिना ने उसकी ओर देखा “यश हमें इरफान को फौरन सुरक्षित जगह पर ले जाना होगा हत्यारा उसके बेहद क़रीब पहुँच चुका है” जीप सीधे उस गेस्ट हाउस की ओर बढ़ी जहाँ इरफान को छुपाया गया था पर जैसे-जैसे वे करीब पहुँचे यश की बेचैनी बढ़ती जा रही थी गेस्ट हाउस के बाहर सन्नाटा पसरा हुआ था दरवाज़ा आधा खुला हुआ देखकर यश की धड़कन और तेज़ हो गई उसने पिस्तौल संभाली और अर्जुन के साथ अंदर दाख़िल हुआ कमरा खाली था पलंग पर इरफान का फोन पड़ा हुआ था स्क्रीन पर अभी भी चमक रहा था एक अधूरा मैसेज “मुझे लेने कोई आया था… उनके गले में चमेली की म…” यश ने फोन कसकर पकड़ लिया उसकी उँगलियाँ ठंडी पड़ गईं “मतलब हत्यारे उसे यहाँ से ले गए और इरफान भी अब…” कमरे की हवा में वही जानी-पहचानी महक घुली हुई थी चमेली की महक जो अब इत्र नहीं बल्कि मौत की गंध बन चुकी थी अचानक यश की नज़र कमरे की खिड़की से बाहर पड़ी सड़क पर गई जहाँ कोहरे के बीच कुछ धुंधली परछाइयाँ हिलती हुई दिखीं उसने दौड़कर खिड़की खोली पर बाहर सिर्फ़ कोहरा और वीरानी थी जैसे वो परछाइयाँ धुएँ में घुलकर गायब हो चुकी हों यश की साँसें अब काबू से बाहर हो रही थीं उसने अर्जुन को आदेश दिया “सारे सीसीटीवी फुटेज मँगाओ, और इरफान को हर हाल में ढूँढो… चाहे ज़मीन फाड़नी पड़े” अर्जुन चला गया और रिना ने धीमे स्वर में कहा “यश ये सिर्फ़ कत्ल नहीं है ये एक रिवाज है और तुम जानते हो इसकी जड़ें तुम्हारे खानदान से जुड़ी हैं” यश की आँखों में एक पल के लिए दर्द की झलक आई “हाँ रिना मुझे डर है अगला निशाना मैं हो सकता हूँ क्योंकि अगर सच में कोई आख़िरी उत्तराधिकारी चुनना बाकी है… तो मैं ही हूँ” रिना की साँस रुक सी गई “यश ऐसा मत कहो” लेकिन यश की नज़र में डर से ज़्यादा अब गुस्सा था उसने धीरे से कहा “अगर मेरा खून चाहिए तो आएँ… लेकिन मैं इतनी आसानी से मरने वाला नहीं हूँ” उसी रात यश ने अपने पिता को फिर कॉल किया “पापा मुझे सच-सच बताइए दादी कहाँ गई थीं और वापस आकर उन्होंने क्या छुपाया” पिता की आवाज़ थकी हुई थी “तुम्हारी दादी ने मुझसे भी सब कुछ नहीं कहा बेटा लेकिन उन्होंने एक किताब छोड़ी थी जो हवेली के तहखाने में छुपी है उसमें लिखा है कि खानदान की ताकत सिर्फ़ खून से लौट सकती है और जब वक्त आएगा आख़िरी उत्तराधिकारी चुना जाएगा” यश की साँसें थम गईं “मतलब ये सब सिर्फ़ किसी सनकी की साज़िश नहीं है ये एक पीढ़ियों पुरानी योजना है और हो सकता है हत्यारा उसी किताब को पढ़कर काम कर रहा हो” पिता ने कहा “हाँ और शायद वो किताब अब भी हवेली में हो” कॉल कटते ही यश ने रिना और अर्जुन को इकट्ठा किया “हमें फिर से हवेली में जाना होगा इस बार सिर्फ़ देखने नहीं उस तहखाने में छुपी किताब ढूँढने” जीप कोहरे को चीरती हुई फिर उसी वीरान हवेली के पास पहुँची रात और भी स्याह हो चुकी थी हवेली के जर्जर दरवाज़े को धक्का देकर यश भीतर दाख़िल हुआ दीवारों पर टॉर्च की रोशनी पड़ते ही पुराने चित्र उभर आए और हवा में चमेली की महक और भी भारी लगने लगी तहखाने की सीढ़ियाँ उतरते वक्त जैसे हर कदम पर ज़मीन डोल रही थी और दीवारों से गिरती मिट्टी की आवाज़ कानों में गूंज रही थी तहखाने में पहुँचते ही उन्होंने पुरानी ईंट की दीवार में हल्की सी दरार देखी अर्जुन ने जोर लगाकर ईंटें हटाईं तो पीछे एक लकड़ी का संदूक निकला संदूक खोलने पर भीतर कपड़े में लिपटी एक मोटी किताब थी उसके कवर पर उर्दू में सुनहरे अक्षरों से लिखा था “वारिस-ए-खानदान” यश ने किताब को खोला उसमें पहली पंक्ति थी “खून से ही खून का उत्तराधिकारी जन्मेगा और चमेली के फूल उसे मार्ग दिखाएँगे” यश की उँगलियाँ ठंडी पड़ गईं उसने आगे पढ़ा “वक़्त आएगा जब बारात फिर से निकलेगी और तीन क़ुरबानियों के बाद आख़िरी वारिस जीवित बचेगा वही उत्तराधिकारी बनेगा” रिना ने डर भरी आवाज़ में कहा “मतलब इरफान को ज़िंदा रहना होगा तब जाकर हत्यारे का मकसद पूरा होगा” यश ने किताब बंद की “या फिर मैं खुद ही उस योजना को तोड़ दूँ” उसी वक्त तहखाने के बाहर कुछ कदमों की आहट सुनाई दी सबकी साँसें थम गईं कोहरे में एक परछाईं हिली और फिर अचानक एक आदमी सामने आया उसके गले में चमेली की माला थी और आँखों में पागलपन झलक रहा था “तुम लोग इसे नहीं रोक सकते आख़िरी उत्तराधिकारी का वक़्त आ चुका है” यश ने पिस्तौल तानी “कौन हो तुम? क्या चाहते हो?” वो पागल हँसी हँसा “तुम खुद जानते हो इंस्पेक्टर सिंह तुम्हारा खून ही तो दरकार है…” पर इसके पहले कि वो कुछ और कहता तहखाने की छत से मिट्टी गिरी और परछाईं गायब हो गई तहखाने की हवा और भारी हो गई जैसे सदियों से सोया हुआ राज़ अब जाग उठा हो बाहर निकलते वक्त यश ने महसूस किया कि हवेली की दीवारों पर उकेरे गए वही शब्द “वक़्त आ गया है” अब और गहरे हो चुके थे रात की हवा में चमेली की महक अब और भी तेज़ थी और यश को महसूस हुआ कि अगला वार उसके बेहद करीब है दिल्ली की रात स्याह परतों में लिपटी थी और उसी सन्नाटे में किसी ने बहुत धीमे से फुसफुसाया “अगला तू ही है…”
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दिल्ली की रात अपने पूरे कहर पर थी और हवाओं में घुली चमेली की महक अब इतनी गहरी हो चुकी थी कि इंस्पेक्टर यशवर्धन “यश” सिंह को लगने लगा जैसे हर सांस ज़हर बनकर उसके भीतर उतर रही हो हवेली से लौटते वक़्त उसके दिल में सिर्फ़ एक ही सवाल गूंज रहा था कि आख़िरकार ये सब कब और कैसे ख़त्म होगा उसकी आँखों के आगे बार-बार वही किताब की पंक्तियाँ घूम रही थीं “खून से ही खून का उत्तराधिकारी जन्मेगा और चमेली के फूल उसे मार्ग दिखाएँगे” और उन शब्दों के साथ ही उसे याद आया उस पागल की लाल आँखें जो तहखाने में कह रहा था “तुम्हारा खून ही तो दरकार है” जीप शहर की सुनसान गलियों से गुज़र रही थी लेकिन यश को लग रहा था कि हर मोड़ पर कोई उनका पीछा कर रहा है जैसे मौत की बारात अब सचमुच उसके पीछे चल पड़ी हो तभी अर्जुन का कॉल आया उसकी आवाज़ में घबराहट थी “सर हमें इरफान का सुराग़ मिला है उसे एक खंडहरनुमा हवेली में बंदी बनाया गया है वही हवेली जहाँ आख़िरी बार चमेली की बारात निकली थी” यश के दिल की धड़कन तेज़ हो गई “अर्जुन उस हवेली को घेरो मैं और रिना वहीं पहुँचते हैं” जीप तेज़ रफ्तार से उस हवेली की तरफ़ दौड़ी रास्ते में कोहरे की चादर और भी मोटी हो चुकी थी और हवाओं में अब चमेली की महक इतनी गाढ़ी हो गई थी कि लग रहा था जैसे वो महक नहीं किसी पुराने पाप की सड़ी हुई सच्चाई हो हवेली के पास पहुँचकर जीप रुकते ही यश और रिना दौड़कर भीतर दाख़िल हुए हवेली के बाहर पुराने पत्थरों पर जली हुई मोमबत्तियों की कतार बनी हुई थी और हर मोमबत्ती के पास ताज़ा चमेली का फूल रखा था हवेली के भीतर जाते ही दीवारों पर लटके हुए जाले और पुराने परदे हवा में हिल रहे थे और बीचों-बीच एक बड़ा सा हॉल था जहाँ फर्श पर किसी पुराने संस्कार के चिह्न सफेद चूने से बने हुए थे उनके बीच में इरफान ज़ंजीरों से बंधा हुआ था उसका चेहरा डर से सफ़ेद पड़ चुका था और उसके गले में भी चमेली की माला डाल दी गई थी जैसे वो बारात का दूल्हा हो यश की आँखों में गुस्से की आग जल उठी “इरफान!” तभी कोहरे में से वही पागल हत्यारा सामने आया उसके पीछे कुछ और नकाबपोश लोग थे सबके गले में चमेली की माला थी और आँखों में एक अजीब सी चमक “आख़िरी बारात का समय आ गया है इंस्पेक्टर” उसने फुफकारते हुए कहा “तीन क़ुरबानियाँ पूरी हो चुकी हैं अब आख़िरी उत्तराधिकारी चुना जाएगा और उसका खून ही खानदान की ताक़त लौटाएगा” यश ने पिस्तौल तानी “कौन हो तुम?” पर उसकी आवाज़ को अनसुना करते हुए वो पागल आगे बढ़ा “तुम्हारा खून ही असली खून है इंस्पेक्टर तुम ही माधवी सिंह के वंशज हो तुम्हीं से ये परंपरा पूरी होगी” यश की साँसें थम गईं “तो इरफान को क्यों?” हत्यारे ने कहा “इरफान को मारकर हम असली वारिस को सामने लाना चाहते थे पर अब तुम खुद आ गए हो” यश की उँगलियों में पिस्तौल कस गई “अगर मेरे खून से तुम लोगों की ताक़त लौटेगी तो आज मैं ही इसे ख़त्म करूँगा” तभी अचानक नकाबपोशों में से एक ने रिवॉल्वर निकालकर इरफान के सिर पर तान दी “अगर तुमने गोली चलाई तो इरफान मर जाएगा” हॉल की हवा जैसे पत्थर हो गई चमेली की महक और भी भारी हो गई और उसी महक में यश को अपने दिल की तेज़ धड़कनें सुनाई दे रही थीं रिना ने धीमे स्वर में कहा “यश सोचो” पर यश के सामने अब दो ही रास्ते थे या तो वो इरफान को मरता देखे या अपने खून से उस पुराने पाप को जिन्दा करे अचानक अर्जुन पीछे से दाख़िल हुआ और एक नकाबपोश पर टूट पड़ा गड़गड़ाहट की आवाज़ के साथ फर्श पर खून फैल गया और उसी अफरा-तफरी में यश ने फुर्ती से इरफान की ज़ंजीरें खोल दीं “भागो इरफान!” इरफान काँपते हुए उठा तभी हत्यारे ने चिल्लाकर कहा “ये परंपरा पूरी होकर रहेगी इंस्पेक्टर तुम्हारा खून माँगता है खानदान” और उसने चाकू निकालकर यश पर झपटा यश ने पिस्तौल से वार किया दोनों गिरे चमेली की मालाएँ ज़मीन पर बिखर गईं और पूरे हॉल में उनकी तीखी महक फैल गई हाथापाई में यश के कंधे पर चाकू लगा खून की कुछ बूँदें फर्श पर गिरीं और उसी पल जैसे हत्यारे की आँखों में एक दीवानी चमक आ गई “खून… असली खून” उसने फिर से वार करना चाहा लेकिन यश ने पूरी ताक़त से उसे धक्का दिया वो पागल हत्यारा सीढ़ियों से नीचे गिरा और उसका सिर पत्थर से टकरा गया खून की धार बहने लगी और उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं चारों ओर सन्नाटा छा गया नकाबपोश भाग खड़े हुए और हवेली के दरवाज़े पर सिर्फ़ कोहरा और चमेली की महक रह गई यश की साँसें अब भी तेज़ चल रही थीं उसका कंधा बुरी तरह से लहूलुहान था रिना दौड़कर उसके पास आई “यश!” पर यश की नज़र फर्श पर गिरी अपनी खून की बूँदों पर अटक गई उसके दिल में डर समा गया कहीं ये वही खून तो नहीं जो परंपरा को ज़िंदा कर देगा हवेली के बाहर आते ही उसने अर्जुन से कहा “इरफान को तुरंत सुरक्षित जगह पहुँचाओ अब तक तो उसे सबसे बड़ा ख़तरा था पर अब ख़तरा मुझ पर है” हवाओं में चमेली की महक कम होने के बजाय और तेज़ हो गई जैसे कह रही हो कि कहानी अभी खत्म नहीं हुई यश ने अपने लहूलुहान कंधे को दबाते हुए दूर आसमान की ओर देखा जहाँ कोहरे के उस पार एक धुंधली सी परछाईं थी जो देख रही थी और शायद इंतज़ार कर रही थी मौत की बारात तो ख़त्म हो गई थी पर असली खेल अब शुरू हुआ था…
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दिल्ली की सड़कों पर सुबह का उजाला अभी ठीक से फैला भी नहीं था कि इंस्पेक्टर यशवर्धन “यश” सिंह की जीप पुराने शहर की तंग गलियों में दाख़िल हो रही थी कंधे पर लगी चोट अब भी हर हरकत पर दर्द दे रही थी पर उसके दिल में दर्द से भी गहरा था एक डर… डर कि मौत की बारात तो खत्म हो चुकी थी मगर असली खेल अब शुरू हो चुका था हवाओं में अब भी चमेली की वही कड़वी महक तैर रही थी जो हर बार खतरे की आहट बनकर सामने आती थी जीप रुकी तो सामने वही पुरानी हवेली थी जो अब तक गवाह थी इस खूनी खेल की ईंट-ईंट जैसे उसके पुकार रही थी यश धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़कर भीतर दाख़िल हुआ अर्जुन और रिना उसके पीछे थे तहखाने में कल रात की लड़ाई के निशान अब भी ताज़ा थे ज़मीन पर फैली सूखी चमेली की पंखुड़ियाँ और दीवारों पर लटके धुंधले खून के छींटे उस पागल हत्यारे की मौत का सबूत थे लेकिन हवा में कुछ और भी था… जैसे कोई अब भी छुपकर देख रहा हो यश की नज़र टूटी हुई सीढ़ियों के उस कोने पर गई जहाँ से कल रात हत्यारा गिरा था वहीं पास में एक पुराना संदूक दिखा यश ने धीरे से खोला उसमें से एक पुरानी डायरी निकली उसके कवर पर उर्दू में सुनहरे अक्षरों से लिखा था “वारिस का सच” दिल की धड़कनें तेज़ करते हुए उसने पहला पन्ना खोला “हमारे खून की ताक़त तब तक अधूरी है जब तक आख़िरी उत्तराधिकारी को खुद अपना खून न चखाया जाए” यश के माथे पर पसीना आ गया रिना की धीमी आवाज़ उसके कानों में पड़ी “यश… कहीं इस किताब का मतलब ये तो नहीं कि हत्यारे का असली मकसद तुम्हें खुद तुम्हारे खून से शपथ दिलवाना था?” यश ने गहरी साँस ली उसकी आँखों के आगे बार-बार दादी की तस्वीर घूम रही थी गले में चमेली की माला और होठों पर वो आख़िरी फुसफुसाहट “वक़्त फिर आएगा…” अचानक तहखाने की सीलन भरी दीवार से बाहर किसी के खाँसने की आवाज़ आई अर्जुन ने टॉर्च घुमाई लेकिन वहां कोई नहीं था बस कोहरे की मोटी परत धीरे-धीरे लहराती दिखी जैसे उसके भीतर कोई परछाईं हो यश ने धीमे स्वर में कहा “यहाँ कोई है” उसने पिस्तौल संभाली और कोने की ओर बढ़ा तभी हवा में वही चमेली की तेज़ महक उठी जिसने पलभर में उसके होश हिला दिए और कोहरे के भीतर से उभरी एक आकृति लंबा कुरता पहने एक बूढ़ा सा आदमी जिसके चेहरे पर डर नहीं बल्कि शातिर मुस्कुराहट थी उसने धीमे से कहा “इतनी जल्दी समझ गए तुम?” यश की आवाज़ सख़्त हो गई “तुम कौन हो?” बूढ़ा आदमी आगे बढ़ा “मैं वो हूँ जो इस परंपरा को जिंदा रखे हुए है मैं ही आख़िरी पुजारी हूँ और तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था” यश की साँस थम गई “मतलब सब तुम्हीं ने कराया?” बूढ़ा आदमी हँसा “मैंने सिर्फ़ रस्म निभाई हत्याएँ ज़रूरी थीं ताक़त लौटाने के लिए पर असली बलिदान तो अब होगा जब तुम अपना खून चखोगे तभी खानदान की शक्ति तुम्हारे अंदर जागेगी” यश की आँखों में आग थी “ये सब खत्म हो चुका है” बूढ़े ने सिर हिलाया “नहीं बेटा परंपरा खत्म नहीं होती उसे बस नया उत्तराधिकारी चाहिए और वो तुम हो” तभी बूढ़े ने अपनी मुट्ठी से एक मुड़ा-तुड़ा चमेली का फूल निकाला उसकी खुशबू इतनी तेज़ थी कि यश को एक पल के लिए चक्कर सा आ गया बूढ़े की फुसफुसाहट हवा में गूँजी “चखो अपने खून को बेटा वक़्त आ गया है” तभी अर्जुन ने बूढ़े की ओर छलांग लगाई लेकिन बूढ़ा फुर्ती से कोहरे में गायब हो गया हवेली में फिर से सन्नाटा फैल गया सिर्फ़ टॉर्च की रोशनी में उड़ती धूल और चमेली की पंखुड़ियाँ रह गईं यश की साँसें उखड़ रही थीं उसकी उंगलियों में अब भी डायरी थी उसने दूसरा पन्ना खोला “जो उत्तराधिकारी खून की कसम नहीं खाएगा उसका अंत निश्चय है” यश की मुट्ठी भींच गई “ये सब बकवास है मैं उस खून को कभी नहीं चखूँगा” रिना ने धीमे स्वर में कहा “पर यश अगर वो सच में तुम्हारे खून का इंतज़ार कर रहे हैं तो वो फिर से हमला करेंगे” यश ने गुस्से में किताब फेंक दी “तो आने दो उन्हें इस बार मैं भी तैयार हूँ” हवेली से बाहर आते ही कोहरा और घना हो चुका था पर इस बार कोहरे में सिर्फ़ डर नहीं था बल्कि यश की आँखों में एक चुनौती भी थी उसने अर्जुन और रिना की ओर देखा “हमारे पास ज़्यादा वक्त नहीं है अगली बार वो इरफान या किसी और को निशाना बनाएंगे हमें उन्हें रोकना ही होगा” तभी अर्जुन का फोन बजा आवाज़ घबराई हुई थी “सर इरफान की गाड़ी दिल्ली के बाहरी इलाके में लावारिस मिली है उसमें खून के धब्बे हैं” यश की साँस रुक गई “इरफान…” उसने जीप स्टार्ट की “चलिए” जीप गड्ढों और टूटी सड़कों से होती हुई उस जगह पहुँची जहाँ इरफान की गाड़ी खड़ी थी सीट पर चमेली की कुछ पंखुड़ियाँ पड़ी थीं और खिड़की पर खून की सूखी लकीरें यश का गुस्सा अब आग बन चुका था “अब बहुत हो गया” उसने अर्जुन को आदेश दिया “सारे संदिग्धों की तलाश शुरू करो और बूढ़े की तस्वीर हर जगह भेजो” दिल्ली की हवाओं में अब सिर्फ़ चमेली की महक नहीं थी उसमें खून की गंध भी घुल चुकी थी कोहरा अब किसी पर्दे की तरह नहीं बल्कि किसी राक्षस की तरह हर चीज़ को निगल रहा था जीप की हेडलाइट्स कोहरे को चीरते हुए आगे बढ़ीं और यश को लगा जैसे दूर कहीं उस कोहरे की मोटी परत में दो लाल आँखें उसे घूर रही थीं उसकी रगों में दौड़ता वही खून अब उसके खिलाफ़ खड़ा था पर उसने कसम खाई थी इस बार वो उस खून से हार नहीं मानेगा हवाओं में किसी की फुसफुसाहट थी “वक़्त आ गया है…” पर यश ने ज़ोर से बुदबुदाया “हाँ… लेकिन इस बार वक़्त मैं तय करूँगा”
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दिल्ली की रात फिर उसी अजीब सी चुप्पी में डूबी थी और हवाओं में चमेली की महक अब और भी घनी हो चुकी थी इंस्पेक्टर यशवर्धन “यश” सिंह की जीप शहर की सुनसान सड़कों से गुज़र रही थी पर आज उसके दिल में डर से ज़्यादा गुस्सा और ठान चुकी ज़िद थी कि अब ये खेल खत्म करना ही होगा उसकी आँखों में बार-बार वही बूढ़ा पुजारी घूम रहा था जिसकी फुसफुसाहट में मौत की भविष्यवाणी छुपी थी “तुम्हारा खून ही इस परंपरा को पूरा करेगा” जीप के भीतर सन्नाटा था रिना और अर्जुन दोनों चुप थे पर उनकी निगाहों में भी सवाल थे कि क्या वाक़ई यश का खून ही सबका जवाब है अचानक अर्जुन ने कहा “सर अगर वो लोग सच में तुम्हारे खून के पीछे हैं तो हमें उन्हें फँसाना चाहिए” यश की आँखों में एक पल के लिए हल्की सी चिंगारी जली “तुम कहना चाहते हो हम जाल बिछाएँ?” अर्जुन ने सिर हिलाया “हाँ सर हम खबर फैलाएँ कि आप मंदिर के पीछे पुराने खंडहर में अकेले मिलने आएँगे तब वो ज़रूर आएँगे” रिना की आवाज़ में चिंता थी “लेकिन ये बहुत ख़तरनाक है यश वो लोग कुछ भी कर सकते हैं” यश ने धीमे स्वर में कहा “रिना अगर मैं छुपता रहूँ तो ये सिलसिला कभी खत्म नहीं होगा मुझे अपने डर से आमने-सामने बात करनी ही होगी” दिल्ली के उस पुराने हिस्से में जहाँ अब सिर्फ़ टूटी हवेलियाँ और खंडहर बचे थे वहीं की एक वीरान इमारत को चुना गया खंडहर के चारों ओर सिर्फ़ सूखी घास और कोहरा था और बीचों-बीच एक पुराना कुआँ जो अब सूख चुका था अर्जुन ने पूरी टीम को आस-पास छुपा दिया और खुद भी अंधेरे में खो गया यश अकेला खड़ा था हल्की हवा में चमेली की महक अब इतनी भारी लग रही थी जैसे साँस लेना मुश्किल हो रहा हो तभी कोहरे में से वही बूढ़ा पुजारी निकला चेहरे पर वही ठंडी मुस्कान और गले में चमेली की माला “तुम आ ही गए” उसकी आवाज़ गूंजती हुई आई यश ने पिस्तौल उसकी ओर तानी “तुम्हारा खेल अब खत्म होने वाला है” बूढ़ा हँसा “खेल कभी खत्म नहीं होता बेटा बस नए किरदार आते हैं पर कहानी वही रहती है” तभी कोहरे से और लोग निकले सबके गले में चमेली की माला थी और आँखों में पागलपन की चमक “तैयार हो जाओ आख़िरी संस्कार के लिए” यश की आवाज़ में गुस्सा उबल पड़ा “अगर तुम्हें मेरा खून चाहिए तो आओ पर मैं लड़ूँगा” बूढ़े की आवाज़ में जादू जैसा कुछ था “तुम्हें लड़ना नहीं है तुम्हें बस अपना खून चखना है तब ही तो तुम सच्चे वारिस बनोगे” यश की मुट्ठी भींच गई “मैं उस खून को कभी नहीं चखूँगा जिसने इंसानों की जान ली है” बूढ़ा धीरे-धीरे आगे बढ़ा “पर यही तुम्हारा भाग्य है” तभी अर्जुन ने दूर से इशारा किया और पुलिस के सायरन की हल्की आवाज़ आई मगर वो पागल झुंड डरने के बजाय और भी आगे बढ़ गया अचानक बूढ़े ने जेब से एक चमेली का फूल निकाला और ज़मीन पर गिराया हवा में तेज़ झोंका उठा और यश की आँखों के सामने कुछ धुंधला सा घूम गया उसे लगा जैसे वो बचपन के आँगन में खड़ा है दादी की आवाज़ सुनाई दे रही है “वक़्त फिर आएगा…” यश ने झटका खाकर आँखें खोली पर सामने वही बूढ़ा खड़ा था “देखा? तुम्हारा खून ही तुम्हें बुला रहा है” यश की साँसें तेज़ हो गईं उसने पिस्तौल उठाई “रुक जाओ!” लेकिन बूढ़ा बढ़ता गया “बस एक क़दम और और सब पूरा हो जाएगा” तभी अर्जुन ने छुपकर एक नकाबपोश पर गोली चलाई भगदड़ मच गई रिना भी दौड़कर आई “यश पीछे हटो!” पर यश की नज़र बूढ़े पर टिकी थी बूढ़ा उसके इतना करीब आ चुका था कि उसकी साँसें भी महसूस हो रही थीं “तुम्हारा खून ही दरवाज़ा खोलेगा” उसने अपने हाथ की अंगुली से यश के ज़ख्म से बहता खून छू लिया और अपने माथे पर लगा लिया हवा जैसे भयानक सी हो गई चमेली की महक और तेज़ हो गई यश ने गुस्से में चीख़ कर बूढ़े को धक्का दिया वो लड़खड़ाकर पीछे गिरा और सिर पत्थर से टकरा गया खून बहा और उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं कोहरे में उसकी आख़िरी फुसफुसाहट गूंजी “वक़्त… पूरा… हुआ…” अचानक आसमान में बिजली चमकी और ज़मीन पर गिरी हवेली की दीवारों पर उर्दू में वही शब्द चमकने लगे “वक़्त आ गया है” लेकिन कुछ पल बाद सब शांत हो गया जैसे मौत की बारात सचमुच खत्म हो गई हो अर्जुन ने दौड़कर यश का कंधा पकड़ा “सर सब ठीक है?” यश की साँस अब भी भारी थी पर उसकी आँखों में पहली बार हल्की राहत थी उसने बूढ़े की लाश की ओर देखा “खेल वहीं खत्म होता है जहाँ डर का खून बहता है” रिना की आँखों में आंसू थे पर मुस्कुराहट भी “यश तुमने ये कर दिखाया” मगर यश जानता था कहानी यहीं नहीं रुकी हवा में अब भी हल्की सी चमेली की महक बाकी थी जैसे कोई अदृश्य फुसफुसाहट कह रही हो “कभी-कभी वक़्त लौट भी आता है…”
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दिल्ली की उस सूनी सुबह में जब धूप कोहरे की मोटी चादर से लड़ने की नाकाम कोशिश कर रही थी इंस्पेक्टर यशवर्धन “यश” सिंह अपने ऑफिस की खिड़की से बाहर देख रहा था उसकी आँखों के नीचे काले घेरे गवाह थे उन अनगिनत रातों के जो चमेली की बारात, पुरानी हवेलियों और खून की गंध में बीती थीं लेकिन आज उसकी निगाह में कोई डर नहीं बल्कि अजीब सी थकान और राहत का मिश्रण था पर तभी अर्जुन ने दरवाज़ा खटखटाया “सर एक अजीब चीज़ मिली है” यश ने घूमकर देखा अर्जुन के हाथ में एक पुराना लिफ़ाफ़ा था उस पर धुंधली उर्दू में लिखा था “वारिस-ए-खानदान के नाम” यश का दिल धड़क उठा उसने लिफ़ाफ़ा खोला भीतर एक चिट्ठी थी और एक सूखी चमेली की माला चिट्ठी में लिखा था “तुमने जो रास्ता चुना वो परंपरा से अलग था पर कहानी अब भी जिंदा है दरवाज़े पूरी तरह बंद नहीं हुए” यश की उंगलियों में वो सूखी माला कांपने लगी उसकी खुशबू नहीं थी लेकिन जैसे उसकी सूखी पंखुड़ियों में भी सदियों पुरानी साजिशों की स्याही चुपचाप सोई थी तभी रिना अंदर आई उसकी आँखों में सवाल थे “यश अब क्या करोगे?” यश ने धीमे स्वर में कहा “शायद वो लोग अभी भी ज़िंदा हैं या उनके जैसे और लोग भी हैं जो इस परंपरा को फिर से जिंदा करना चाहते हैं” रिना ने धीरे से पूछा “और तुम?” यश ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा “मुझे उस कहानी का आख़िरी पन्ना खुद ही लिखना होगा” उसी शाम यश उस हवेली की ओर निकला जहाँ सब शुरू हुआ था हवेली वीरान थी लेकिन कोहरे में उसकी दीवारें अब भी जिंदा लगती थीं जैसे हर ईंट में दादी की वो आख़िरी फुसफुसाहट बसी हो “वक़्त फिर आएगा” हवेली के आँगन में पाँव रखते ही उसे लगा जैसे अतीत की परछाइयाँ उसके साथ चल रही हैं हवा में हल्की सी चमेली की खुशबू फिर से महसूस हुई पर इस बार उसमें डर की जगह एक जानी-पहचानी उदासी थी तहखाने की सीढ़ियाँ अब भी वहीं थीं दीवारों पर वही शब्द “खून से बनेगा नया उत्तराधिकारी” यश की उँगलियाँ उन शब्दों पर चली गईं जैसे वो अपने बचपन की कोई भूली हुई कहानी पढ़ रहा हो तभी उसकी नज़र ज़मीन पर गिरी उस किताब पर पड़ी जो पिछले संघर्ष में वहीं गिर गई थी “वारिस का सच” उसने किताब उठाई धूल झाड़ी और आख़िरी पन्ना खोला उस पन्ने पर लिखा था “जब उत्तराधिकारी अपना ही खून बहाता है तभी वो सच को मुक्त करता है” यश की साँसें थम गईं उसने धीरे से अपनी उंगलियों पर लगी उस रात की सूखी खून की परत को देखा जो अब तक छूटी नहीं थी क्या सच में वो खून सबका दरवाज़ा बंद कर चुका था? तभी हवेली के कोने से धीमी आवाज़ आई “वक़्त बदलता है बेटा पर परछाइयाँ नहीं” यश ने चौंककर देखा वही बूढ़ा पुजारी खड़ा था पर उसके माथे पर ज़ख्म का गहरा निशान था जैसे वो मरकर भी ज़िंदा हो उठा हो उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी “मैं मर नहीं सकता बेटा मैं परंपरा हूँ” यश ने पिस्तौल तानी “इस बार मैं ख़त्म करूँगा इस कहानी को” बूढ़ा हँसा “तुम सिर्फ़ देह को मार सकते हो पर कहानी को नहीं” तभी कोहरे से और कुछ परछाइयाँ निकलीं सबके गले में चमेली की माला थी यश के दिल की धड़कन तेज़ हो गई लेकिन इस बार उसने पिस्तौल नीचे की और कहा “तुम्हें मेरा खून चाहिए था ना? लो” उसने अपनी पुरानी चोट पर ज़ोर डाला खून की कुछ ताज़ा बूँदें ज़मीन पर गिरी हवेली की हवा अचानक भारी हो गई बूढ़े की आँखों में पागलपन चमका “हाँ बेटा यही तो चाहिए था” पर तभी यश ने धीमे से कहा “लेकिन इस बार मेरा खून किसी ताक़त के लिए नहीं बल्कि इस कहानी को ख़त्म करने के लिए बहा है” बूढ़ा चीख़ा “तुमने नियम तोड़ा!” हवेली की दीवारें हिलने लगीं कोहरा और घना हो गया पर यश की नज़र ठंडी और शांत थी जैसे उसने अपने डर को मार डाला हो तभी बिजली चमकी और बूढ़ा पुजारी गिर पड़ा उसकी माला ज़मीन पर गिरी और अचानक हवेली की हवा से चमेली की महक गायब हो गई परछाइयाँ भी एक-एक कर धुंध में खो गईं हवेली में फिर से सन्नाटा फैल गया बस हवा में अब चमेली की महक की जगह धूल और सन्नाटा था यश की आँखों में हल्की नमी थी उसने धीमे से किताब बंद की और कहा “परछाइयाँ सिर्फ़ तब तक ज़िंदा रहती हैं जब तक हम उन्हें अपने भीतर जगह देते हैं” बाहर आते वक्त सूरज की हल्की रोशनी कोहरे को चीर रही थी जैसे सदियों से सोई सुबह अब जाग रही हो हवेली के दरवाज़े पर खड़े होकर उसने आख़िरी बार पीछे मुड़कर देखा तो वहाँ सिर्फ़ वीरानी थी और टूटी ईंटें पर अब कोई महक, कोई फुसफुसाहट और कोई परछाईं नहीं थी उसने गहरी साँस ली और आसमान की तरफ़ देखा जहाँ पहली बार उसे खुला नीला आकाश दिखा…
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दिल्ली की उस सुबह में जब हल्की धूप कोहरे की आख़िरी परतों को पिघला रही थी इंस्पेक्टर यशवर्धन “यश” सिंह हवेली के बाहर खड़ा था जहाँ उसने बीती रात उस बूढ़े पुजारी और परंपरा की आख़िरी साँसें देखी थीं हवेली अब एक शांत खंडहर थी दीवारों पर चमेली की माला के सूखे टुकड़े और फर्श पर गिरे पुराने फूल किसी भूली हुई पूजा के चुपचाप गवाह थे यश की आँखों में नींद की कमी के बावजूद एक अजीब सी शांति थी जैसे किसी लंबे दुःस्वप्न से जागकर कोई पहली बार सच्ची सुबह देख रहा हो हवा में अब वो घुटन भरी चमेली की महक नहीं थी सिर्फ़ पुरानी ईंटों की मिट्टी की गंध और दूर कहीं से आती चिड़ियों की आवाज़ थी अर्जुन और रिना भी कुछ कदम पीछे खड़े थे उनकी निगाहों में थकान के साथ-साथ संतोष भी था कि ये कहानी अब सच में खत्म हो चुकी थी लेकिन यश जानता था कि कुछ कहानियाँ कभी पूरी तरह खत्म नहीं होतीं वो सिर्फ़ राख बनकर दिल के किसी कोने में दबी रहती हैं और वक़्त आने पर फिर से हवा में उड़कर याद दिला जाती हैं कि हम क्या थे और क्या बन गए यश ने धीरे से हवेली के दरवाज़े पर हाथ रखा ईंटों की ठंडक ने जैसे उसे पुरानी यादों की ओर खींच लिया बचपन में वो इन्हीं गलियारों में भागता फिरता था दादी की धीमी फुसफुसाहट सुनता था “वक़्त फिर आएगा” तब उसे ये सब कहानी लगती थी पर आज उसे समझ आ गया था कि ये सिर्फ़ शब्द नहीं थे बल्कि एक चेतावनी थी इंसान अगर अपने डर से भागे तो डर हमेशा पीछा करता है लेकिन अगर एक बार वो डर से आँख मिलाए तो डर की जड़ें खुद ही सूख जाती हैं हवेली की दीवारों पर अब भी धुंधले अक्षरों में लिखा था “खून से बनेगा नया उत्तराधिकारी” लेकिन यश ने पिस्तौल की बट से उन शब्दों को मिटा दिया जैसे अतीत के ज़ख्म को मिटा रहा हो मिट्टी की उस परत से धूल उड़ी और उसके भीतर एक राहत की साँस थी तभी अर्जुन ने धीमे स्वर में कहा “सर अब क्या करेंगे?” यश ने हल्की मुस्कान दी “अब जीएँगे अर्जुन जैसे लोग जीते हैं डर से नहीं हकीकत से” रिना ने धीरे से पूछा “पर यश क्या सच में सब खत्म हो गया?” यश ने आसमान की ओर देखा जहाँ कोहरे की आख़िरी परतें भी धूप में गायब हो रही थीं “शायद नहीं रिना कुछ कहानियाँ पूरी तरह खत्म नहीं होतीं लेकिन हमने वो दरवाज़ा बंद कर दिया है जो सबसे ज़्यादा डरावना था” तभी हवेली के कोने में पड़ी पुरानी किताब “वारिस का सच” पर उसकी नज़र पड़ी उसने किताब उठाई और उसके पन्नों को देखा अब वे पन्ने भीग कर फट चुके थे और शब्द मिट चुके थे जैसे वक़्त खुद भी इस कहानी को भूलना चाहता हो यश ने किताब को हवेली की सीढ़ियों पर रख दिया और जेब से माचिस निकाली एक तीली जलाई किताब की सूखी जिल्द ने आग पकड़ ली और देखते ही देखते पुरानी स्याही, कागज़ और सब राज़ जलकर राख बन गए धुआँ हवा में ऊपर उठा और कुछ ही पलों में गायब हो गया हवा में अब भी हल्की सी महक थी पर वो महक अब डर की नहीं थी बल्कि किसी पुराने चक्र के टूटने की थी यश ने राख की ओर देखते हुए धीमे से बुदबुदाया “कुछ परछाइयाँ सिर्फ़ तब तक रहती हैं जब तक हम उन्हें अपने भीतर जगह देते हैं अब ये जगह खाली है” अर्जुन और रिना ने भी उस आग को देखा और कुछ कहे बिना समझ गए कि ये सिर्फ़ किताब को जलाना नहीं था ये अपने खून की कहानी को वहीं दफ़न करना था जीप में लौटते वक़्त हवेली दूर पीछे छूट गई और पहली बार ऐसा लगा जैसे हवाओं में सिर्फ़ सुबह की ताज़गी है कोई साज़िश, कोई महक, कोई फुसफुसाहट नहीं यश ने गहरी साँस ली और महसूस किया कि उसके दिल पर से जैसे कोई पुराना पत्थर हट गया हो उसने अपना हाथ जख़्मी कंधे पर रखा जहाँ से उस रात खून बहा था पर अब वो जख़्म भी भरने लगा था रास्ते में शहर की हलचल लौट आई लोग अपनी-अपनी जिंदगियों में मग्न थे जैसे कुछ हुआ ही न हो पर यश जानता था कि उसने किस परछाईं को हराया है और उस हर जीत की कीमत क्या होती है ऑफिस पहुँचकर उसने पुरानी फाइलें बंद कीं और उन पर “क्लोज़्ड” की मोहर लगाई हर मोहर के साथ उसे लगा कि एक-एक करके वो धुंधली परछाइयाँ पीछे छूट रही हैं शाम को जब सूरज डूबने लगा तो खिड़की से आती रोशनी उसके चेहरे पर पड़ी और उस रोशनी में उसके चेहरे पर थकान के साथ एक हल्की मुस्कुराहट भी थी दूर से हवा आई पर उसमें अब सिर्फ़ हवा की ठंडक थी कोई चमेली की महक नहीं यश ने आख़िरी बार आसमान की ओर देखा जहाँ नीला रंग धीरे-धीरे स्याह हो रहा था उसने आँखें बंद कीं और महसूस किया कि डर की सबसे बड़ी ताक़त उसका रहस्य होता है और जब वो रहस्य उजागर हो जाता है तो डर भी मर जाता है हवाओं में जैसे कहीं से धीमे से फुसफुसाहट आई “वक़्त फिर आएगा…” पर यश ने भी मुस्कुराकर जवाब दिया “और इस बार मैं तैयार रहूँगा” सूरज डूबा रात आई पर उस रात में अब कोई धुंध नहीं थी कोई बारात नहीं थी सिर्फ़ वक़्त की राख थी जो हवा में उड़ती हुई दूर कहीं खो गई।
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