English - Fiction - Romance

रात की आख़िरी बूँद

Spread the love

रेशमा गुलज़ार


1

दिल्ली की गर्मी जब जून के तीसरे हफ्ते में साँस लेने लगती है, तो शामें धुएँ में घुल जाती हैं। ट्रैफिक की आवाजें खिड़कियों के भीतर तक आती हैं, और पर्दे धीमे-धीमे नाचते हैं, जैसे किसी ने उन्हें एक धीमा राग गुनगुनाया हो।

अन्वी ने लैपटॉप बंद किया। स्क्रीन पर वो तीसरा पैराग्राफ अब भी अधूरा था—एक स्त्री का स्पर्श लिखते-लिखते उसकी अपनी त्वचा पर सिहरन सी दौड़ गई थी। उसने कॉफ़ी मग उठाया, जो अब ठंडा हो चुका था। बालों की एक लट उसकी गर्दन पर टिक गई थी—गर्मी और अधूरी नींद दोनों की गवाही देती हुई।

उसकी बालकनी की रेलिंग पर बैठा शहर देर रात के किस्सों की तरह बिखरा पड़ा था। लेकिन आज की रात में कुछ था—कुछ अलग। उसके इनबॉक्स में रूद्र का मैसेज था।

“मैंने तुम्हारी आंखों में एक अधूरी कविता देखी थी। आज उसे पूरा करने का मन है। क्या मैं आ सकता हूँ?”

अन्वी ने मोबाइल को घूरा। हँसी उसके होंठों तक आई, फिर वहीं अटक गई। उसने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन कुछ मिनट बाद दरवाज़े पर दस्तक हुई।

रूद्र आया था।

कमरे में न कोई संगीत था, न कोई मोमबत्ती। बस वो खामोशी थी जो दो ऐसे लोगों के बीच होती है, जो एक-दूसरे को छूने से पहले पढ़ना चाहते हैं।

“तुम्हारे बाल खुले रहने चाहिए,” रूद्र ने कहा, उसकी गर्दन के पीछे बालों को धीरे से छुते हुए, “ऐसे, जैसे कोई नदी पीछे से बह रही हो।”

अन्वी हँसी नहीं। वो बस साँस ले रही थी, गहराई से, हर बार उसकी उँगलियों के साथ कुछ पुरानी पर्तें टूटती जा रही थीं।

उसकी उँगलियाँ अब उसकी पीठ पर थीं, पसीने की रेखाओं से लिखती हुई एक कविता, जो शायद रूद्र के ही शब्द थे।

अन्वी की शर्ट के बटन धीमे-धीमे खुले। कोई जल्दबाज़ी नहीं थी। जैसे कोई चित्रकार अपनी कूंची हर रंग पर रुक कर चलाता हो, उसी तरह रूद्र उसके कंधे पर झुका।

“तुम्हारी ख़ुशबू किताबों जैसी है,” उसने कहा।

“पुरानी?” अन्वी ने हल्के से पूछा।

“नहीं, उन किताबों जैसी जिनका हर पन्ना किसी ने छूकर रखा हो, मगर पूरी तरह कभी पढ़ा न हो।”

वो पंक्ति अन्वी को काँपने पर मजबूर कर गई। उसकी उँगलियाँ रूद्र की गर्दन में समा गईं। उनके होंठ अब भी एक-दूसरे से दूर थे, लेकिन साँसों के बीच की दूरी घुल रही थी।

जब पहली बार रूद्र ने उसे चूमा, वो चुम्बन किसी कमसिन बारिश की तरह था—मुलायम, हिचकता हुआ, मगर गहरा। अन्वी ने आँखें बंद कर लीं, और उस चुम्बन में खो गई जैसे कोई महिला पुराने संगीत में घुल जाए।

कपड़े ज़मीन पर किसी कविता के शब्दों की तरह गिरते गए—एक के बाद एक, लेकिन अधूरेपन के साथ नहीं।

रूद्र ने उसकी कलाई पर होंठ रखे। “यहीं से शुरू होती है तुम्हारी कहानी,” उसने कहा।

रात अब उनकी नहीं रही—वो बस एक समय की धारा बन चुकी थी, जिसमें दोनों तैर रहे थे, एक-दूसरे की त्वचा पर कहानी की तरह लिखते हुए।

2

अगली सुबह की रौशनी धीमे-धीमे कमरे के पर्दों से रिस रही थी। जैसे रात ने अपने होंठों की छाप खिड़कियों पर छोड़ दी हो। बिस्तर की सिलवटों में बीती हुई रात की गर्मी अब भी बाकी थी—और उन दो जिस्मों की साँसें एक-दूसरे में उलझी हुई।

अन्वी की आँखें खुलीं, तो उसके बाल बिखरे हुए थे, और रूद्र उसकी बाजू के नीचे शांत लेटा हुआ था। उसके चेहरे पर रात की थकान नहीं, बल्कि किसी गहरे सुकून की परत थी।

वो उसे देखती रही—उसकी पलकों की धीमी हरकतें, उसकी गर्दन की नसें, और उसकी सीने पर उसकी उँगलियों की छाप।

“क्या तुम अब भी कुछ लिख रही हो?” रूद्र की आवाज़ बमुश्किल फुसफुसाहट से ज़्यादा थी।

“हाँ,” अन्वी मुस्कराई, “लेकिन अब शब्द कम पड़ रहे हैं।”

“तो मैं तुम्हें छूकर उन्हें वापस लाऊँ?”

वो सवाल नहीं था। वो निमंत्रण भी नहीं था। वो एक बेतरतीब वादा था—जो हर स्पर्श में दोहराया जा रहा था।

रूद्र उठकर खिड़की की ओर गया, और बारिश के पानी में भीगे शहर को देखा। “चलो, छत पर चलते हैं।”

अन्वी ने कुछ नहीं पूछा। बस एक ढीली-सी शर्ट पहन ली, और उसके साथ चल दी।

छत पर धूप और पानी का मिलन हो रहा था। बारिश अब भी धीमी थी, लेकिन हवा में एक मादकता थी—जैसे कोई धुन जिसे धीमे-धीमे सुना जा रहा हो।

रूद्र ने पीछे से उसके बालों को समेटा, और गर्दन पर होंठ रख दिए।

“बारिश की बूँदें तुम्हारी त्वचा पर कुछ और ही करती हैं,” उसने कहा।

“जैसे क्या?”

“जैसे वो ईर्ष्या करती हैं, कि तुम्हें मैं छू रहा हूँ, वो नहीं।”

अन्वी ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में गीली धूप थी, और कुछ ऐसा जो शब्दों में नहीं लिखा जा सकता था।

फिर कुछ पल ऐसे थे जहाँ न कोई शब्द थे, न हँसी, न सांसें। बस बारिश की वो खामोशी, जो उनके जिस्मों पर उतर रही थी, जैसे कोई अदृश्य प्रेमी।

रूद्र ने उसकी शर्ट के भीतर धीरे से उँगलियाँ फेरीं, जैसे वो जानना चाहता हो कि अंदर क्या कहानी छुपी है।

“यहाँ,” उसने उसकी पीठ पर उँगली से लिखा, “तुम्हारी सबसे पुरानी याद छुपी है।”

“और तुम्हारे होंठ?” अन्वी ने धीमे से पूछा।

“वो तो हर रात नई कविता लिखते हैं।”

उनका मिलन आज तेज़ नहीं था, न ही भूखा। वो बरसात की तरह धीरे-धीरे भीतर घुसा—हर हलचल के साथ ज़रा और गहरा, ज़रा और आत्मिक।

अन्वी ने उसकी पीठ पर उँगलियाँ चलाईं। “तुम्हारा जिस्म किसी पुराने शहर जैसा है… जहां हर गली में एक कहानी छुपी हो।”

“और तुम उस शहर की अकेली राहगीर हो,” रूद्र ने कहा।

भीगते हुए, छत की उस खुली जगह पर, उन्होंने खुद को और एक-दूसरे को पढ़ा—छुआ, समझा, और बरसात की हर बूँद को एक चुम्बन बना दिया।

3

उस शाम किताबों की दुकान में कुछ और था। दीवारें चुप थीं, लेकिन कहानियाँ उनकी ईंटों के भीतर सांस ले रही थीं। अन्वी अपने अगले उपन्यास के लिए रिसर्च कर रही थी, जब रूद्र वहाँ आ गया—बिना बताये, जैसे वो उसका कोई अधूरा पन्ना हो जो अचानक वापस आ गया हो।

उसने काले रंग की एक पतली शर्ट पहनी थी, गीले बाल, और कंधे पर उसका कैमरा। आँखों में वही ठहराव, वही बेआवाज़ खिंचाव जो अन्वी की सांसों को एक लय देता था।

“किस किताब की तलाश में हो?” रूद्र ने पूछा, पास आकर।

“शायद उसी की जो अब तक लिखी नहीं गई,” अन्वी ने मुस्कुराकर जवाब दिया।

“तो क्या मैं तुम्हारी अगली किताब का पहला पन्ना बन सकता हूँ?”

उसके होंठो के किनारे एक लाज छिपी थी, जो उसने किताब की आड़ में छिपाने की कोशिश की। लेकिन रूद्र ने उसकी कलाई पकड़ ली—धीरे से, लेकिन इरादतन।

“यहाँ नहीं,” अन्वी फुसफुसाई।

“यहीं,” रूद्र ने कहा, “जहाँ हर किताब की ख़ुशबू तुम्हारे बदन से मेल खाती है।”

पुस्तकालय के पिछले हिस्से में एक छोटा-सा कोना था—जहाँ कम ही लोग जाते थे। वहाँ बैठकर अन्वी अक्सर अपनी डायरी में चुपचाप कुछ लिखती थी।

रूद्र ने उसकी पीठ के पीछे से हाथ डालकर उसकी डायरी बंद की।

“कभी-कभी कुछ चीजें लिखने से बेहतर होता है उन्हें जी लेना,” उसने कहा।

फिर जैसे वक्त की घड़ी रुक गई। उनकी उंगलियाँ एक-दूसरे में फँस गईं, और किताबों के बीच, उस संकरी जगह में, वो उसके बेहद पास आ गया।

रूद्र की उँगलियाँ उसकी गर्दन की जड़ में उतरीं, और वहीं से उसकी शर्ट के बटन खोलने लगे—एक-एक कर, जैसे हर बटन के साथ कोई कहानी खुल रही हो।

“तुम किताबों जैसी क्यों हो?” उसने पूछा।

“क्योंकि मुझे पूरी तरह कोई पढ़ नहीं पाता,” अन्वी ने कहा, और उसका माथा रूद्र के सीने पर टिक गया।

अब वो दोनों किताबों की उन ऊँची रैक के बीच खड़े थे—जहाँ आसपास बस शब्दों की गंध थी, और उनके बीच पिघलती हुई एक गर्म सांस।

उसकी उँगलियाँ अब अन्वी की कमर के नीचे तक फिसल चुकी थीं। वह थरथराई, मगर पीछे नहीं हटी।

उनके होठों की मुलाक़ात इस बार धीमी नहीं थी—यह वह चुम्बन था जो इंतज़ार के हर क्षण की भरपाई कर रहा था।

अन्वी ने उसकी कमर में अपनी उंगलियाँ बाँध दीं, और उसकी गर्दन को चूमते हुए फुसफुसाई, “अगर ये कोई कहानी है, तो मुझे इसका अंत मत बताना।”

“मैं बस तुम्हारे हर शब्द को चखना चाहता हूँ,” रूद्र ने कहा।

वो आलिंगन अब सिर्फ़ रोमांच नहीं था। वो बदन की भाषा थी—नर्म, गहराई से गीली, और शब्दों से ज़्यादा गूंजती हुई।

जब वो दोनों उस किताबों के अंधेरे कोने से बाहर लौटे, उनकी आँखों में कहानी नहीं थी—उनकी त्वचा पर एक कविता लिखी जा चुकी थी।

4

कमरे में सिर्फ़ एक आईना था—पुराना, चौकोर, लकड़ी की नक्काशी वाली फ्रेम में। रूद्र ने उसे दीवार पर लगाया था जब वो पहली बार अन्वी के अपार्टमेंट में रुका था। “आईना वो जगह है जहाँ तुम्हारी आत्मा अपना अक्स देखती है,” उसने कहा था।

आज रात, आईने में कोई आत्मा नहीं थी—बस दो जिस्म थे, एक-दूसरे में समाए हुए।

अन्वी बाथरूम से बाहर आई तो उसका गीला तौलिया कमर तक लिपटा हुआ था। बालों से पानी टपक रहा था, और गर्दन पर साबुन की आखिरी रेखा अब भी चमक रही थी।

रूद्र ने बिस्तर से उठकर उसका हाथ पकड़ा, और बिना कुछ कहे उसे आईने के सामने खड़ा कर दिया।

“आज तुम खुद को मेरी आँखों से देखो,” उसने कहा।

आईने में अन्वी का प्रतिबिंब कुछ अलग था—भीगी हुई, नंगी कंधों वाली, और आँखों में कोई पुराना जादू जो लौट आया हो।

रूद्र पीछे से आया। उसके सीने से उसका पीठ टिक गई। उसकी उंगलियाँ तौलिये के भीतर घुसकर उसकी कमर पर थिरकने लगीं।

“तुम्हारी पीठ पर मैं अपनी कहानी लिखना चाहता हूँ,” वह फुसफुसाया।

“तुम हर रात मुझे नए अक्षर दे जाते हो,” अन्वी ने आँखें बंद करते हुए कहा।

रूद्र ने तौलिया नीचे गिरा दिया। आईने के सामने उसका जिस्म अब पूरी तरह उजागर था। लेकिन उसकी नज़रों में कोई हिचक नहीं थी—सिर्फ़ एक अजीब-सी शांति थी, जैसे उसने खुद को सौंप दिया हो।

उसने अन्वी की गर्दन पर होंठ रखे—धीरे, स्थिर, गर्म। फिर उसकी उंगलियाँ उसके पेट से होते हुए जांघों तक गईं।

“आईना देख रहा है,” अन्वी ने कहा।

“तो देखे,” रूद्र ने उत्तर दिया। “क्योंकि सच छुपाने की चीज़ नहीं है।”

उसका स्पर्श अब तेज़ हो रहा था, लेकिन अधीर नहीं। वो जैसे हर अंग पर रुककर पूछ रहा था—”क्या मैं यहाँ भी तुम्हारा हो सकता हूँ?”

आईने में, अन्वी की पलकों की थरथराहट और उसके होठों की आधी खुली सांसें, एक गहरी कविता जैसी लग रही थीं।

रूद्र ने उसे पलटा, और अब वे आमने-सामने थे—बिलकुल करीब। उनकी सांसें एक-दूसरे की त्वचा पर उतर रही थीं। चुम्बन फिर से शुरू हुआ—गहरा, गीला, और सच्चा।

उसने अन्वी को आईने से टिकाकर उसके कंधे पर चूमना शुरू किया। उसके होंठ पीठ पर गीली स्याही की तरह बिखरते गए।

“आईना आज जो देख रहा है,” रूद्र ने कहा, “वो कोई और कभी नहीं देख पाएगा।”

उनकी साँसें अब एक-दूसरे में समा रही थीं। रूद्र ने अन्वी की जांघों के बीच अपनी हथेली रखी—धीरे, पूरी तरह से उपस्थित। अन्वी ने उसकी कमर को और कसकर थाम लिया।

कहानी अब आईने के बाहर नहीं, उसके भीतर चल रही थी।

5

वो रात थी जब शहर सो गया था लेकिन एक अपार्टमेंट की खिड़की अब भी खुली थी। परदे हवा में धीमे-धीमे हिल रहे थे, जैसे किसी पुराने गीत की ताल पर नाच रहे हों।

बिस्तर पर अन्वी और रूद्र चुपचाप लेटे थे—नंगे, मगर बेफिक्र। जिस्मों की कहानी थोड़ी देर पहले ही खत्म हुई थी, लेकिन आत्माएँ अब भी एक-दूसरे में उलझी थीं।

अन्वी की उंगलियाँ उसकी छाती पर लहरों की तरह घूम रही थीं।

“क्या हर रात ऐसी ही होती है तुम्हारे लिए?” उसने पूछा।

रूद्र ने उसकी ओर देखा, हल्की मुस्कान के साथ। “नहीं। बाकी रातें बस गुज़रती हैं। ये… ये रुकी हुई है।”

अन्वी ने उसकी गर्दन पर होंठ रख दिए। एक धीमा चुम्बन, जिसमें कोई लालसा नहीं, बस रह जाना था।

“क्या तुम्हें कभी डर नहीं लगता?” उसने फुसफुसाया।

“किसका?” रूद्र ने पूछा।

“कि ये सब बस एक रात की बात हो?”

रूद्र ने अन्वी के बाल पीछे हटाए और उसकी आँखों में देखा। “अगर ये एक ही रात है, तो मैं हर रोज़ यही रात जीना चाहता हूँ।”

कमरे में अब भी उनकी त्वचा की गर्मी फैली थी। तकिए पर उनकी खुशबू थी, चादर में उनकी उलझनें।

अन्वी ने उसकी हथेली अपने सीने पर रखी।

“यहाँ कुछ है जो सिर्फ़ तुम्हारे पास जागता है,” वह बोली।

“मैं हर बार तुम्हें ऐसे देखता हूँ जैसे पहली बार हो,” रूद्र ने कहा।

उनका मिलन अब एक आदत बन रहा था। लेकिन ये आदत किसी बोरियत की तरह नहीं, बल्कि किसी नशे की तरह थी—जिसे हर रात फिर से जीने का मन करता है।

रूद्र ने धीरे से अन्वी को अपनी ओर खींचा। उसके नाज़ुक स्तनों पर अपनी उँगलियाँ फिराईं और उनका सिर अपने कंधे पर रख लिया।

“तुम्हारे शरीर में एक पूरा ब्रह्मांड है,” वह बोला, “और मैं अब भी हर बार एक नया ग्रह खोजता हूँ।”

अन्वी ने उसकी जांघों पर अपना पैर टिका दिया। उनकी सांसें अब फिर एक लय में थीं।

“कभी-कभी मैं डर जाती हूँ,” वह बोली।

“क्यों?”

“क्योंकि तुम मुझे ऐसे छूते हो जैसे मैं कोई कविता नहीं, बल्कि तुम्हारा विश्वास हूँ।”

रूद्र ने उसकी ठुड्डी को ऊपर उठाया, और फिर एक लंबा चुम्बन उसके होठों पर टिका दिया। यह चुम्बन शब्दों से परे था।

इस बार उन्होंने एक-दूसरे को ज़्यादा गहराई से छुआ—धीरे, पूरी तरह, जैसे वे कोई शपथ ले रहे हों।

बिस्तर पर अब एक कहानी नहीं थी। वो खुद एक बिस्तर बन चुके थे—एक-दूसरे के लिए।

6

रूद्र को उस शाम शूटिंग के लिए शहर से बाहर जाना था। कैमरे का बैग, लैपटॉप और कुछ ज़रूरी लेंस पैक हो चुके थे। लेकिन अन्वी के घर से निकलना उसके लिए आसान नहीं था।

वो दरवाज़े के पास खड़ा था, और अन्वी पलंग पर बैठी थी—ढीली-सी टीशर्ट में, गीले बालों के साथ, कॉफ़ी मग पकड़े हुए।

“कितने दिन?” उसने पूछा।

“तीन रातें… शायद चार।”

अन्वी ने मुस्कुराने की कोशिश की, मगर उसकी मुस्कान हल्की-सी थरथराई। जैसे उसमें कोई अंतर्निहित डर था।

रूद्र ने पास आकर उसकी नाक के पास अपनी उँगलियाँ फिराईं। “मैं हर रात तुम्हारे शब्दों की तरह लौट आऊँगा।”

“और अगर मैं तुम्हें किसी शब्द की तरह मिटा दूँ तो?”

“तो मैं किसी अनपढ़ कविता की तरह तुम्हारे तकिये में सोया रहूँगा,” उसने कहा।

वो चला गया।

रात आई।

बिना रूद्र की साँसों के, अन्वी का कमरा खाली-सा लगा। उसने किताब उठाई, एक अधूरी कविता लिखने की कोशिश की, लेकिन रूद्र की गंध अब भी तकिए पर थी।

उसने आईने में देखा—अपना नग्न बदन, और उस पर रूद्र के स्पर्श की अदृश्य छापें। उसका मन किया, वो स्पर्श फिर से महसूस करे।

उसने चादर गिरा दी।

कमरे में अब सिर्फ़ उसकी साँसें थीं, और वो ख़ुद को वैसे छू रही थी जैसे रूद्र ने पहली बार छुआ था—धीरे, ध्यान से, पूरे होश में।

उसकी उंगलियाँ गर्दन से उतरकर उसके वक्षों तक पहुँचीं। उसने आँखें बंद कीं, और गहरी साँस ली। उसके स्पर्श में अब कोई संकोच नहीं था, कोई सवाल नहीं था।

उसकी उंगलियाँ पेट पर उतरीं, नाभि के पास, फिर नीचे।

उसने अपने भीतर रूद्र की गर्म साँसों को याद किया, और उसकी आवाज़ को जो फुसफुसाकर कहता था—”तुम्हारा हर हिस्सा एक गवाही है कि चाहत पवित्र होती है।”

उसने एक आह भरी। उसकी देह एक धीमे कंपन से गुज़री। वो खुद को छूती रही, ऐसे जैसे प्रेम की परिभाषा वही बनाना चाहती हो।

फिर, एक हल्का-सा कंपन… और सब कुछ ठहर गया।

उसने चादर ओढ़ ली, जैसे कोई किताब का पन्ना बंद कर दे।

रात अब चुप थी।

मगर उसकी त्वचा पर एक नई कहानी लिखी जा चुकी थी—जिसे सिर्फ़ वही पढ़ सकती थी।

7

तीसरी रात थी, रूद्र अब भी वापस नहीं आया था।

अन्वी ने पूरे दिन कुछ नहीं लिखा। शब्द जैसे कहीं भीतर अटक गए थे। खिड़की से बाहर बारिश गिर रही थी, लेकिन उसकी बूंदें उसे अब उत्तेजित नहीं करती थीं—बल्कि एक बेचैनी देती थीं।

रात के आठ बजे दरवाज़े पर दस्तक हुई।

वो उठी नहीं। दिल ने बस एक बार धड़क कर पूछा—“क्या वो है?”

फिर एक और दस्तक।

और फिर वो आवाज़—नर्म, थकी हुई, मगर सच्ची—“अन्वी…”

दरवाज़ा खुला।

रूद्र खड़ा था—भीगा हुआ, आँखों में कुछ ऐसा जो तीन रातों की दूरी से ज़्यादा गहरा था।

अन्वी ने कुछ नहीं पूछा, उसने भी कुछ नहीं कहा। दोनों बस एक-दूसरे को देखते रहे, जैसे आँखों में कोई अधूरी किताब पलट रही हो।

फिर अचानक—तेज़, लेकिन गहराई से—रूद्र ने उसे बाहों में भर लिया।

“मैं तुम्हें मिस नहीं करता,” उसने उसकी गर्दन में मुँह छिपाकर कहा, “मैं तुम्हारे बिना अपना वजूद नहीं समझ पाता।”

अन्वी की उँगलियाँ उसकी पीठ पर थीं, और होंठ धीरे-धीरे उसके कान के पास।

“आज… मुझे मत पढ़ो,” वह फुसफुसाई, “मुझे लिख दो।”

बिस्तर तक पहुँचना किसी स्क्रिप्ट का हिस्सा नहीं था। वह एक आदिम क्रिया थी—बिना सोचे, बिना रोके।

रूद्र ने उसकी शर्ट उतारी नहीं—बल्कि चूमते हुए उसे ऊपर खींचा, और हर हिस्से पर होंठ टिकाकर जैसे कहा—“तुम यहाँ भी मेरी हो, और यहाँ भी…”

अन्वी का शरीर अब सिहर रहा था। लेकिन यह कोई पहली रात की सिहरन नहीं थी—यह थी उस स्त्री की देह की जो जानती है कि उसे कैसे चखा गया है।

उसकी जांघें रूद्र की कमर के चारों ओर लिपट चुकी थीं।

उसकी पीठ पर नाखून की लकीरें उतर रही थीं।

और रूद्र ने खुद को उसके भीतर ऐसे डुबो दिया जैसे कोई साज अपनी धुन को खोज ले।

साँसें तेज़ थीं, लेकिन लय में।

उसने अन्वी की आँखों में देखा—वहाँ आँसू थे।

“यह क्या है?” उसने पूछा।

“ये सिर्फ़ जिस्म का नहीं है,” उसने कहा, “ये वो लम्हा है जब देह, आत्मा की भाषा बोलने लगती है।”

रूद्र ने उसे और कसकर पकड़ा। उसकी हर थरथराहट, हर गहरी आह, अब एक पूर्ण कविता बन रही थी।

और जब वे दोनों चरम पर पहुँचे, तो वह सिर्फ़ एक पल नहीं था—वो था उनका पुनर्जन्म।

8

सुबह की पहली किरण खिड़की के कोने से उनके बिस्तर पर पड़ी थी। चादर आधी नीचे सरक चुकी थी, और अन्वी की पीठ पर रूद्र की उँगलियाँ अब भी ठहरी हुई थीं।

लेकिन इस सुबह में कुछ अलग था—कोई ताजगी नहीं, कोई थकान नहीं… बस एक भारी शांति, जैसे समय ने रुककर कुछ कह दिया हो।

अन्वी उठी, बिना बोले। उसकी चाल में सुकून था, मगर भीतर कुछ बेचैन। उसने कॉफ़ी बनाई, कप टेबल पर रखा, और खिड़की के पास बैठ गई।

रूद्र ने आँखें खोलीं।

“आज तुम कुछ नहीं कह रही हो,” उसने कहा।

“क्योंकि अब सब कह दिया है,” अन्वी की आवाज़ धीमी थी, लेकिन थकी नहीं।

“सब?”

“हाँ,” उसने उसकी ओर देखा, “मैंने अपनी देह से तुम्हें अपना हर अनकहा हिस्सा सौंप दिया, रूद्र। अब शब्द बचे ही नहीं।”

वो पास आया, उसके बालों में उँगलियाँ फिराईं, और उसका माथा चूमा।

“तो क्या अब यह अंत है?” उसने पूछा।

अन्वी ने सिर हिलाया। “नहीं। ये तो शुरुआत है।”

“किसकी?”

“उस मोहब्बत की जो अब देह से आगे निकल चुकी है। जो सिर्फ़ छूने से नहीं, चुप्पी में जीने से होती है।”

वो दोनों फिर से पास आए, मगर इस बार कोई उत्तेजना नहीं थी। कोई ज़ोर नहीं, कोई लालसा नहीं।

रूद्र ने उसे बाहों में भर लिया। उसकी नंगी पीठ पर उसकी हथेली ठहरी रही—जैसे किसी संतुलन को संभाल रही हो।

उनकी साँसें एक-दूसरे में डूबी रहीं। बिस्तर अब भी उनका था, लेकिन अब वो रणभूमि नहीं—एक तीर्थ बन चुका था।

अन्वी ने रूद्र की छाती पर सिर रखा।

“मैं तुम्हें चाहती हूँ, रूद्र। सिर्फ़ तुम्हारे जिस्म को नहीं, तुम्हारे होने को। तुम्हारे मौन को। तुम्हारी गंध को।”

उसने उसकी पीठ पर चूम लिया, एक लहर की तरह।

“और मैं तुम्हारी हर परत चाहता हूँ, अन्वी। तुम्हारे अंदर के अंधेरे को भी, जहाँ कोई कभी नहीं गया।”

धीरे-धीरे, उन्होंने एक-दूसरे को फिर से छुआ—मगर जैसे कोई अंतिम बूँद सहेज रहा हो।

रूद्र की हथेलियाँ अब उसकी जाँघों पर थीं, मगर वे तेज़ नहीं थीं। वे पूछ रही थीं, “क्या मैं अब भी तुम्हारा हूँ?”

अन्वी ने उसका चेहरा थामकर चूमा—धीरे, लंबा, सजीव।

“तुम हमेशा रहोगे। क्योंकि अब हम जिस्म नहीं रहे—हम कविता बन चुके हैं।”

और फिर…
कमरे में सिर्फ़ एक लंबी, सधी हुई चुप्पी थी।
जिसमें उनकी मोहब्बत साँस ले रही थी।
बिना किसी शोर के।
बिना किसी शब्द के।
बस…
एक आख़िरी बूँद की तरह।

[समाप्त]

1000025814.png

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *