Hindi - क्राइम कहानियाँ

मायानगरी के साए

Spread the love

अर्जुन वर्मा


भाग 1

मुंबई की रातों में कुछ अलग ही बात होती है। दिनभर की चकाचौंध के बाद जब समंदर की लहरें भी थककर किनारे से लिपटती हैं, तब शहर के असली चेहरे बाहर निकलते हैं। शोभा डे की पन्नों से परे, फिल्मों के पर्दे से पीछे — वहाँ एक और मुंबई है। काली, चुपचाप, और खूनी। उसी के एक कोने में, डोंगरी की तंग गलियों में, तीन परछाइयाँ एक नीली मारुति वैन से उतरीं।

वैन के सामने वाला शीशा टूटा हुआ था। ड्राइवर ने लाइट बंद रखी थी, गाड़ी का इंजन बंद कर दिया गया था ताकि किसी को आवाज़ न आए। तीनों के चेहरे साफ नहीं थे — एक ने बाल कटवा रखे थे, दूसरा मोटा और खामोश था, और तीसरे की चाल में अजीब-सा आत्मविश्वास था। ऐसा जैसे वो गली, वो घर, वो मौत — सब उसका अपना हो।

“ACP राजेन्द्र पाटिल का घर पीछे वाली गली में है,” मोटे आदमी ने फुसफुसाया।

“क्या टाइम है?” तीसरे ने पूछा।

“तीन बजकर सत्ताईस मिनट।”

“सही है। चौथे मिनट में गोली चलेगी। बिना आवाज़, बिना चूक।”

वो लोग आगे बढ़े।

ACP पाटिल — नाम तो पुलिस का, पर काम पूरे माफिया के। मुंबई पुलिस के उन अफसरों में से एक जो ड्यूटी के नाम पर बिल्डरों से हिस्सा खाते थे, ड्रग्स के ट्रक को पास कराते थे, और बदले में किसी को भी रास्ते से हटा सकते थे। लेकिन किसी को अंदाज़ा नहीं था कि उस रात कौन किसे हटाने आया है।

इसी गली के छत पर एक और परछाई बैठी थी। इंस्पेक्टर नियाज़ अली।

सादी पोशाक, कान में वायरलेस, आँखों में नींद नहीं—बस एक मिशन।

नियाज़ पिछले छह महीने से अंडरकवर था। उसने खुद को “शेरू भाई” नाम से गौरी शेख के नेटवर्क में शामिल कर लिया था। गौरी शेख — वो नाम जो कभी मुंबई की क्राइम स्टोरीज़ का हीरो था। लेकिन सात साल पहले वो गायब हो गया। और उसकी गैरमौजूदगी में, ACP पाटिल ने उसका पूरा राज हथिया लिया।

“ऑपरेशन ब्लैकसेंड चालू करो,” नियाज़ ने कॉलर में फुसफुसाया।

दूर, एक टपरी की आड़ में छुपे स्पेशल टीम के जवानों ने अपनी पोजीशन ले ली।

लेकिन नियाज़ जानता था—अगर आज की रात में एक भी गलती हुई, तो गौरी की वापसी की उम्मीद हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।

बात सात साल पुरानी है।

गौरी शेख, उस वक्त मुंबई का सबसे बड़ा नाम था। उसके पास बंदूकें थीं, लड़के थे, और नेताओं से हाथ मिलाने की कला थी। लेकिन उसे अपने बेटे पर बहुत नाज़ था — इमरान शेख। कॉलेज में टॉपर, लेकिन बाप की विरासत से नफरत करता था।

एक दिन, इमरान एक NGO से जुड़ा और एक बिल्डर के ज़मीन घोटाले के खिलाफ़ रिपोर्ट दर्ज करवाई। बिल्डर का नाम — शंभू नायर। और उसका रक्षक — ACP पाटिल।

तीन दिनों में इमरान “एक्सिडेंट” में मारा गया। गौरी ने सब कुछ समझ लिया, लेकिन बदले की बजाय वो गायब हो गया।

अब, सात साल बाद, खबर आई थी — गौरी ज़िंदा है। और लौट रहा है।

नियाज़ ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था:

“अगर गौरी वापस आया है, तो पाटिल का साम्राज्य हिलने वाला है। मैं दोनों को आमने-सामने लाना चाहता हूँ — एक गोली से नहीं, क़ानून से नहीं — साज़िश से।”

नीचे गली में, तीनों लोग बंगले की दीवार पार कर चुके थे। खिड़की की ग्रिल काटी गई। अंदर अंधेरा था, मगर तीसरे आदमी ने साइलेंसर निकाला और सीधा अंदर घुस गया।

तभी एक ज़ोरदार रोशनी फ्लैश हुई।

“मुंबई पुलिस! हथियार डाल दो!” छतों, खिड़कियों, गलियों से पुलिसवाले झपटे।

एक सेकंड के लिए सब रुका।

“भागो!” किसी ने चिल्लाया।

गोली चली।

छत पर से नियाज़ भी कूद पड़ा, उसका पिस्तौल सीधा मोटे आदमी के सीने पर था।

लेकिन तीसरा आदमी — जिसकी चाल में डॉन जैसा रुतबा था — वो गली के अंधेरे में गायब हो गया।

सुबह होते ही मीडिया पागल हो गया।

“डोंगरी में माफिया हमला नाकाम”
“ACP पाटिल का नाम फिर विवादों में”
“क्या गौरी शेख लौट आया है?”

लेकिन इन सबके बीच नियाज़ अकेले एक दीवार पर टिका हुआ था। उसके हाथ में उस तीसरे आदमी का रुमाल था — उस पर “I.S.” की कढ़ाई थी।

“इमरान शेख?” वह फुसफुसाया।

“नहीं…ये तो मरा हुआ था…”

भाग 2

समंदर के किनारे बसी एक टूटी-फूटी झोपड़ी में सुबह की धूप ढल रही थी। बाहर नारियल के पेड़ों की परछाईं लहरों के साथ हिल रही थी। झोपड़ी के भीतर एक बूढ़ा आदमी, आधा झुका हुआ, गीली मिट्टी से सने एक नक्शे को देख रहा था। उसकी आँखें धंसी हुई थीं, मगर उनमें अब भी एक आग थी।

वो आदमी था — गौरी शेख।

सात साल की गुमनामी ने उसे बदला नहीं, गहरा किया था।

“अब वक़्त आ गया है,” उसने धीरे से कहा।

बगल में बैठे युवक ने पूछा, “अब्बा, क्या हम सचमुच मुंबई वापस जा रहे हैं?”

गौरी ने मुस्कुराकर उसकी तरफ देखा।
“हम कभी लौटे ही कहाँ थे, बेटा। सिर्फ़ छुपे हुए थे… ज़िंदा रहने के लिए, बदला लेने के लिए।”

वो युवक — इमरान शेख — जिसे दुनिया ने मरा हुआ माना था, जिंदा था।

सालों पहले उसका “एक्सिडेंट” दरअसल एक साजिश थी, और उसी साजिश ने बाप-बेटे को एक-दूसरे से दूर कर दिया था। ACP पाटिल ने गौरी को यकीन दिलाया कि इमरान उसे धोखा देकर दिल्ली भाग गया था। लेकिन हकीकत तब सामने आई जब गौरी को गोवा में एक बंकर अस्पताल में बेहोश पड़ा इमरान मिला — अधमरा, मगर जिंदा।

“अब ये लड़ाई तेरी है, इमरान,” गौरी ने कहा। “मैं बस तेरा साया हूँ।”

इमरान की आँखों में आंसू थे — और नफरत भी।

डोंगरी में, इंस्पेक्टर नियाज़ अली ने पिछले रात की रेड की रिपोर्ट ACP पाटिल को दी।

“दो पकड़े गए, एक भाग गया। नामों की पुष्टि नहीं हो पाई। लेकिन सर, वो जो तीसरा आदमी था… उसकी चाल, उसकी निशाना साधने की स्टाइल… कुछ अलग थी।”

ACP पाटिल ने सिगरेट सुलगाई। उसकी आँखें लाल थीं, नींद गायब थी।

“गौरी वापस नहीं आ सकता। वो मर चुका है,” उसने कहा।

“लेकिन सर, अगर वो लड़का इमरान था—”

“इमरान की तो लाश मिली थी—ख़ुद मैंने पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट देखी थी!”

नियाज़ चुप हो गया। मगर उसके दिमाग़ में शक की चिंगारी जल चुकी थी।

दूसरी ओर, मुंबई के अंधेरी इलाके में एक पुरानी मिल के अंदर, गौरी और इमरान ने अपने पुराने वफादारों को इकट्ठा किया था।

रहीम भाई — जो अब ड्रग्स के कारोबार में था,
तारा मौसी — जो लालबत्ती इलाके की रानी थी,
और शमशेर — जो अब भी असलहों की सप्लाई करता था।

“हम पाटिल को अदालत में नहीं, सड़क पर गिराएँगे,” गौरी ने कहा।
“लेकिन बिना खून बहाए।”

इमरान ने उसका हाथ थाम लिया — “नहीं, अब्बा। ये लड़ाई मेरी है। और मेरी शर्तों पर होगी।”

शमशेर हँसा — “बच्चा अब भी गांधीवादी है?”

“नहीं,” इमरान बोला। “अब मैं गांधी और गब्बर, दोनों हूँ।

उधर, नियाज़ ने डोंगरी में एक पुराने बिल्डर ऑफिस की तलाशी ली — वही ऑफिस जहाँ इमरान आखिरी बार देखा गया था।

फाइलों की धूल, सीलन, और अधजली तस्वीरों के बीच एक फोल्डर मिला —
“Project: सफेद जमीन”

उसमें एक सीक्रेट लैंड डील का जिक्र था — 100 करोड़ की जमीन, NGO के नाम पर कब्ज़ा, ACP पाटिल की सहमति से।

और एक फोटो — जिसमें इमरान था, NGO के कार्यकर्ताओं के साथ।

“तो यही वजह थी उसकी मौत की,” नियाज़ बुदबुदाया।

उसी वक्त, उसके कॉलर माइक से आवाज़ आई —
“सर, हमने वो नीली वैन ट्रेस की। ड्राइवर पकड़ा गया है।”

नियाज़ की आँखों में चमक लौट आई।

वहीं ACP पाटिल अब अलग ही खेल खेल रहा था।

“तुम लोग समझते हो गौरी ज़िंदा है?” उसने अपने खास आदमी मनोज से कहा।
“ठीक है। तो ज़िंदा लोगों को मारने में मज़ा ही कुछ और है।”

उसने अपने “साफ-सुथरे” पुलिस नेटवर्क को एक्टिव किया।
एक हिटलिस्ट बनी:

1. शमशेर

2. रहीम

3. तारा मौसी

4. और अंत में — गौरी शेख

“इन्हें मौत दो… और कहानी को दुर्घटना बना दो।”

रात को इमरान अपनी माँ की कब्र पर गया — पहली बार सात सालों में।

“अम्मी, अब मैं लौट आया हूँ। अब्बा टूट चुके हैं। लेकिन मैं उन्हें फिर से ज़िंदा करूँगा — आपके लिए।”

कब्र के पीछे कोई परछाई हिली।

“बहुत देर कर दी लौटने में,” एक आवाज़ आई।

इमरान चौंका — सामने नियाज़ खड़ा था।

“तुम कौन हो?” इमरान ने पूछा।

“एक भूत… जो सच की तलाश में है।”

कुछ पल चुप्पी रही। फिर नियाज़ ने रुमाल निकाला — वही रुमाल जो कल की रेड में मिला था।

“ये तुम्हारा है, ना?” उसने पूछा।

इमरान ने सर झुका लिया।

“तो तुम मरकर भी ज़िंदा हो गए… इमरान शेख। अब मुझे पूरी सच्चाई बताओ। वरना अगली गोली मेरे पास है।”

भाग 3

चांदनी रात थी। कब्रिस्तान के उस कोने में सिर्फ दो परछाइयाँ थीं — नियाज़ और इमरान।

“अगर तुमने मुझे झूठ बोला,” नियाज़ ने कहा, “तो याद रखना, मैं कानून से भी तेज़ गोली चलाता हूँ।”

इमरान कुछ पल चुप रहा, फिर धीरे-धीरे बोला, “मैंने कानून को बहुत करीब से देखा है, इंस्पेक्टर साहब। वो कभी-कभी अपराधियों से भी ज्यादा खतरनाक होता है।”

“तुम जिंदा कैसे बचे?”

“जिस रात मेरा एक्सिडेंट हुआ, दरअसल वो एक प्लांड मर्डर था। बिल्डर शंभू नायर और ACP पाटिल ने मिलकर मुझे मरवाने की कोशिश की। लेकिन मेरा दोस्त रवि… उसने मुझे किसी अनजान अस्पताल में पहुंचा दिया। मैं कोमा में चला गया — छह महीने। जब होश आया, तब तक सब कुछ बदल चुका था।”

“तुम्हारे पिता गौरी शेख को क्या बताया गया?”

“कि मैंने उसे धोखा दिया… और दिल्ली भाग गया।”

नियाज़ कुछ सोच में पड़ गया।

“अब?” उसने पूछा।

“अब मैं सिस्टम को उसी की भाषा में जवाब दूँगा — लेकिन बंदूक से नहीं, सच्चाई से।”

“तुम्हारे पास सबूत है?”

“मेरे पास हर रिकॉर्ड है। प्रोजेक्ट ‘सफेद जमीन’ की असली फाइलें, पाटिल के साइन वाली कॉपीज़, और NGO के लोगों के बयान।”

नियाज़ मुस्कुराया।

“तो चलो, क्रांति की शुरुआत करते हैं।”

अगली सुबह मुंबई के लोगों ने जो देखा, वो किसी सस्पेंस फिल्म से कम नहीं था।

शहर के हर बड़े चौक पर एक पोस्टर चिपका हुआ था:

“इमरान शेख मरा नहीं है।”
“उसकी आवाज़ फिर गूंजेगी।”
“सफेद ज़मीन अब लाल होने वाली है।”

मीडिया पागल हो गया।

“क्या इमरान शेख ज़िंदा है?”
“गौरी शेख की वापसी का संकेत?”
“ACP पाटिल की कुर्सी खतरे में?”

ACP पाटिल अपने ऑफिस में बैठे-बैठे पसीने-पसीने हो गया। उसने मनोज को बुलाया।

“तुरंत शंभू नायर से बात कराओ।”

फोन पर शंभू नायर की आवाज़ कांप रही थी —
“साहब, अगर इमरान ने वो फाइलें मीडिया को दे दीं, तो हम दोनों गए काम से।”

“तू खुद जा, और वो फाइलें किसी भी कीमत पर ढूंढ। और सुन—अब वक्त आ गया है कि हम गौरी शेख को भी खत्म करें… एक बार के लिए, हमेशा के लिए।

दूसरी ओर, गौरी शेख ने अपनी टीम को नया निर्देश दिया।

“अब लड़ाई पब्लिक की है। हमारा एक-एक आदमी अब इस शहर की गलियों में जाएगा — आवाज़ बनकर।”

तारा मौसी ने अपने रेड लाइट एरिया में सभी लड़कियों को इकट्ठा किया।
“अब तुम सिर्फ जिस्म नहीं, इंकलाब बनोगी।”

रहीम भाई ने हर ड्रग डीलर को एक बात समझा दी —
“अब धंधा नहीं, आंदोलन चलेगा।”

और शमशेर ने हर हथियार रखने वाले को संदेश भेजा —
“गोली नहीं चलेगी जब तक क्रांति नहीं होगी।”

इमरान और नियाज़ एक पुरानी प्रेस में मिले — वहीं, जहाँ पहली बार इमरान का लेख छपा था।

“ये रही सारी फाइलें,” इमरान ने कहा। “अब ये पब्लिक को जानना चाहिए।”

“तुम्हारा प्लान क्या है?” नियाज़ ने पूछा।

“मैं पाटिल को सरेआम बेनकाब करूंगा। लेकिन कानून की सीमा में रहकर।”

“और अगर कानून काम न करे?”

“तब कानून को नए चेहरे की ज़रूरत है — और वो चेहरा मैं बनूंगा।”

नियाज़ हँसा — “क्रांतिकारी?”

“नहीं, न्यायिक माफिया।”

इसी बीच शंभू नायर ने रहिम भाई के एक खास आदमी को पकड़वाया — अमजद।

उसे बंद कमरे में लाया गया, जहां पाटिल और नायर दोनों मौजूद थे।

“बोल, फाइलें कहाँ हैं?” पाटिल गरजा।

“मुझे नहीं पता… खुदा की कसम!” अमजद चिल्लाया।

पाटिल ने अपने आदमियों को इशारा किया — बिजली के झटके दिए गए।
अमजद बेहोश हो गया।

“अब कोई और तरीका अपनाना होगा,” नायर फुसफुसाया।

“अगर हमें इमरान नहीं मिला… तो हम उसके पिता को खत्म करेंगे।”

रात को, गौरी शेख अपने पुराने बंगले की छत पर बैठा था। हाथ में सिगार, आँखों में सोच।

“अब बहुत कुछ दांव पर है,” उसने कहा।

“अगर इमरान हार गया… तो सिर्फ वो नहीं, उसकी उम्मीदें भी मर जाएंगी।”

इमरान बगल में बैठा था।

“अब्बा, तुमने जो खोया, मैं उसे फिर से वापस लाऊँगा।”

गौरी ने उसकी तरफ देखा —
“ये लड़ाई अब तेरी नहीं, उस हर उस बेटे की है जिसने सिस्टम के हाथों अपने बाप को खोया।”

अगले दिन, एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ।

इमरान शेख लाइव आया।

“मैं ज़िंदा हूँ।
मुझे मारा गया क्योंकि मैंने सच्चाई बोली।
मैं फिर बोलूंगा — खुलकर, सबके सामने।
सफेद जमीन एक झूठ था। और ACP पाटिल उसका सबसे बड़ा रक्षक।
अब ये लड़ाई आपकी है। मेरा साथ दीजिए।
न्याय चाहिए — बदला नहीं।
पर अगर जरूरत पड़ी, तो मैं दोनों दूंगा।”

वीडियो के नीचे लाखों कमेंट्स आए:

“इमरान ज़िंदाबाद!”
“अब वक्त है उठने का!”
“पाटिल से हिसाब चाहिए!”

भाग 4

मुंबई पुलिस हेडक्वार्टर के अंदर तनाव का माहौल था। ACP पाटिल की गुस्से से भरी चीखें पूरे कॉन्फ्रेंस रूम में गूंज रही थीं।

“क्या कर रहे हो तुम लोग? एक मरा हुआ लड़का ज़िंदा होकर पूरे सिस्टम को हिला रहा है, और तुम सब हाथ पर हाथ धरे बैठे हो?”

DCP सोनाल मेहता, जो अब तक चुप थी, आखिर बोल पड़ी —
“सर, हम सिर्फ फोर्स नहीं हैं, एक सिस्टम का हिस्सा हैं। इमरान ने अब तक कोई गैरकानूनी हरकत नहीं की। उसे दबाने की कोशिश अब उलटी पड़ रही है।”

पाटिल ने उसकी ओर घूरते हुए देखा।
“अगर तुम हमारे साथ नहीं हो, तो समझ लो… दुश्मन हो।”

“शायद वक़्त आ गया है, ACP साहब, जब हमें अपनी वफादारी की नई परिभाषा तय करनी चाहिए,” सोनाल ने कहा और कमरे से बाहर चली गई।

दूसरी तरफ, गौरी शेख को एक गुप्त संदेश मिला — एक चिट्ठी, बिना नाम की, सिर्फ एक लाइन:

“रहीम भाई को बचा लो। पाटिल ने उसे उठवा लिया है।”

गौरी ने इमरान को बुलाया।

“अब वक्त आ गया है, बेटे, कि तुझ पर भरोसा करूँ… पहली बार, पूरी तरह।”

इमरान ने सिर झुकाया।

“मैं खुद जाऊँगा। रहीम भाई सिर्फ एक आदमी नहीं, हमारी आवाज़ हैं।”

शमशेर ने आपत्ति की —
“बहुत रिस्क है। वो पुलिस कस्टडी में है।”

“तो सही जगह पर चोट करनी होगी,” इमरान बोला।

उस रात, डोंगरी थाने के पास एक पुराना पानी का टैंकर खड़ा हुआ।
टैंकर के भीतर इमरान, शमशेर और तारा मौसी के दो भरोसेमंद लोग छिपे थे।

रात के दो बजे, टैंकर में एक हल्का धमाका हुआ — ध्यान भटकाने के लिए।

ठीक उसी वक्त थाने की लाइटें गुल हो गईं।

इमरान ने CCTV रूम में घुसकर फीड कट की, और शमशेर ने भीतर घुसकर रहीम भाई को निकाल लिया।

तीन मिनट — और तीन लोग — फिर अंधेरे में गायब हो गए।

सुबह होते-होते, सोशल मीडिया पर एक और वीडियो आया:

“हमारा एक और साथी छीनने की कोशिश की गई। पर याद रखना — हम मिटने नहीं देंगे।”
– इमरान शेख

ACP पाटिल का पारा सातवें आसमान पर था।
“अब ये खेल खून से सुलझेगा,” उसने कहा।

शंभू नायर ने सुझाव दिया —
“तुम्हारे पास अब भी एक आखिरी चाल है — इमरान के नाम पर दंगे भड़काने की।”

“कैसे?”

“उसके खिलाफ एक झूठी एफआईआर, एक मर्डर केस। मीडिया को फुल सपोर्ट मिलेगा। बस हमें एक ‘लाश’ चाहिए।”

उसी शाम, पाटिल के आदमियों ने तारा मौसी के इलाके में फायरिंग की — जानबूझकर। दो लोग मारे गए। CCTV पहले से बंद कर दिए गए थे।

पाटिल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलवाई:

“ये सब इमरान शेख के इशारे पर हुआ। उसने हथियारबंद गुंडों की फौज बनाई है। अब वो सिर्फ एक एक्टिविस्ट नहीं, एक आतंकवादी है।”

वीडियो फूटेज — एडिट की गई — मीडिया को भेज दी गई।

इमरान को ये सब पहली बार तोड़ता हुआ महसूस हुआ।

“अब्बा, अगर यही चलता रहा… तो लोग हमें ही खलनायक मान लेंगे।”

गौरी शेख चुप रहे।

फिर बोले, “जब तूने फैसला किया था कि क्रांति कानून के दायरे में लड़ेगा… तभी तुझे ये भी पता होना चाहिए था कि सच्चाई की कीमत, खून से चुकानी पड़ेगी।”

“तो क्या अब हम भी उन्हीं जैसे बन जाएं?”

“नहीं, लेकिन अब हमें डरना नहीं है।”

इसी बीच, एक नई खिलाड़ी की एंट्री हुई — DCP सोनाल मेहता।

उसने नियाज़ को बुलाया।

“मैं जानती हूँ पाटिल क्या कर रहा है। मुझे सबूत चाहिए… ताकि मैं उसका खेल खत्म कर सकूं।”

नियाज़ ने इमरान से बात की।

तीनों एक गुप्त मीटिंग में मिले।

“अगर तुम मेरी मदद करोगे,” सोनाल ने कहा, “तो मैं इस केस को CBI को ट्रांसफर करवा सकती हूँ। और पाटिल को सस्पेंड करवाऊँगी।”

इमरान ने पूछा —
“तुम्हारी गारंटी क्या है?”

“मेरी जान,” उसने कहा।

शंभू नायर ने अब एक नई योजना बनाई।

“गौरी शेख को मारो। किसी भी कीमत पर। और इस बार, उसकी लाश होनी चाहिए।”

पाटिल ने एक खास शूटर बुलवाया — “काला नाग” — जो सिर्फ एक गोली चलाता था, लेकिन उसका निशाना कभी चूकता नहीं था।

गौरी शेख को उसी रात एक झील के किनारे मिलने बुलाया गया — एक पुराने दोस्त के नाम पर।

इमरान को शक था, लेकिन गौरी ने कहा,
“अगर मैं नहीं गया, तो वो डर जाएंगे। और अगर मारा गया, तो तू बन जाएगा अगला नेता।”

“अब्बा—”

“ये साया अब तेरे पीछे से हटेगा, बेटा… ताकि तू खुद रोशनी बन सके।”

भाग 5

बांद्रा के बाहर एक सूनी झील के किनारे, रात की स्याही में सिर्फ एक लाल बत्ती चमक रही थी — गौरी शेख की गाड़ी।

ड्राइवर को बाहर इंतज़ार करने कहा गया।

गौरी ने अपनी जेब से पुराना लोकेटर निकाला — छोटा सा ट्रैकर, जो कभी इमरान ने उसे दिया था।
“अगर मैं न लौटा… तो इसे ऑन कर देना,” उन्होंने कहा और झील की ओर बढ़ गए।

छाया में किसी ने सिगरेट सुलगाई।

“बहुत देर लगा दी गौरी,” आवाज़ आई — कड़वी और शांत।

गौरी ने पहचान लिया — काला नाग।

काला नाग — एक नाम, जो माफिया और सिस्टम दोनों के लिए डर का पर्याय था।
उसने 28 टारगेट्स को मारा था, बिना एक भी गलती के। उसकी बंदूक से निकली गोली सीधी दिल के आर-पार होती।

“तू आया क्यों?” काला नाग ने पूछा।

“शायद मरने,” गौरी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

“तेरे बेटे ने तूफान ला दिया है। तेरे जिंदा रहने से उसकी क्रांति अधूरी रह जाएगी।”

“शायद… लेकिन मेरी मौत उसकी आग को ज्वाला बना देगी।”

काला नाग ने अपनी रिवॉल्वर निकाली — साइलेंसर लगा हुआ।

“कोई आखिरी ख्वाहिश?”

“एक सवाल — तुझ जैसे कातिल को भी कभी पछतावा होता है?”

काला नाग ने कुछ पल चुप रहकर कहा —
“हर रात। लेकिन अब सवाल नहीं, वक्त है रिवॉल्वर का।”

उसने ट्रिगर दबाया — धप्प!

ठीक उसी वक्त, झील के दूसरे छोर पर इमरान और शमशेर पहुँच चुके थे। ट्रैकर एक्टिवेट होते ही लोकेशन मिल गई थी।

इमरान ने दौड़कर झील पार की, जहाँ ज़मीन पर गौरी शेख गिरे हुए थे — सीने में खून।

“अब्बा!!”

गौरी ने धीमे से आँखें खोलीं।

“मैंने तुझे… रुकने के लिए नहीं… लड़ने के लिए पाला था।”

“नहीं अब्बा, तुम कुछ नहीं कहोगे… एंबुलेंस… जल्दी!” इमरान चिल्लाया।

लेकिन गौरी की सांसें धीमी होती गईं।

“जला दे इस सिस्टम को… बेटा… आग बन जा…”
और वो हमेशा के लिए शांत हो गए।

इमरान की चीख रात को चीर गई।

“अब्बा!!!”

शमशेर उसकी पीठ पर हाथ रखे खड़ा था — खामोश, मगर भीतर से जला हुआ।

“अब क्या करोगे, इमरान?” उसने पूछा।

इमरान उठा। उसकी आंखों में अब आँसू नहीं, ज्वाला थी।

“अब मैं इमरान नहीं… अग्नि हूँ।”

अगली सुबह, मुंबई के हर न्यूज़ चैनल पर एक ही खबर थी:

“गौरी शेख की हत्या — पुलिस कुछ नहीं कर पाई!”
“शहर में हिंसा की आशंका — इमरान शेख ने दी खुली चेतावनी!”

पाटिल के ऑफिस में जश्न का माहौल था।

“गौरी खत्म, अब सिर्फ ये लड़का बचा है। इसका क्या?”
शंभू नायर ने पूछा।

पाटिल बोला,
“इसे मैं मिट्टी में मिला दूँगा। वो भी कानून के नाम पर।”

दूसरी तरफ, इमरान अब खुलकर सामने आ चुका था।

उसने जनता को संबोधित किया — LIVE, पूरे सोशल मीडिया पर।

> “मेरे पिता को मारा गया — सिर्फ इसलिए कि वो सच्चाई बोलते थे।
अब ये लड़ाई सिर्फ मेरी नहीं रही।
अगर तुम्हें भी अपने बच्चों का भविष्य चाहिए, तो उठो।
हर मोहल्ला, हर बस्ती, हर चौराहा — अब क्रांति का मैदान बनेगा।
ये सिस्टम बदलेगा… या जलेगा।”

वीडियो ने शहर को हिला दिया।

DCP सोनाल मेहता अब खुले समर्थन में आ गईं।

“मैं ACP पाटिल के खिलाफ चार्जशीट तैयार कर रही हूँ। मेरे पास उसके फर्जी एनकाउंटर, बिल्डर डील्स, और मर्डर के सबूत हैं,” उसने इमरान से कहा।

“पर हमें CBI के पास इसे ले जाना होगा। तब तक वो हमें खत्म कर सकता है,” इमरान बोला।

“तो उसे कमजोर करना होगा… अंदर से,” सोनाल ने जवाब दिया।

उस रात, नियाज़ ने पाटिल के ऑफिस में एक फाइल छोड़ दी — छुपाकर।

फाइल में था —
काला नाग का कबूलनामा।

दरअसल, काला नाग को भी इमरान की आग ने छुआ था।
उसने पाटिल और नायर की साजिश की रिकॉर्डिंग इमरान को भेज दी थी — खुद सामने न आते हुए।

रिकॉर्डिंग में पाटिल साफ कह रहा था:

“गौरी शेख की लाश चाहिए। और उसका बेटा… एक और एनकाउंटर में जाएगा।”

इमरान ने वो रिकॉर्डिंग सोनाल को दे दी।

“अब खेल पलटने का समय आ गया है,” उसने कहा।

अगले दिन सोनाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई:

“ACP पाटिल को उसके पद से निलंबित किया जाता है।
उसके खिलाफ हत्या, भ्रष्टाचार और साजिश के सबूत मिले हैं।
केस अब CBI को सौंपा जा रहा है।”

लेकिन खेल खत्म नहीं हुआ था।

पाटिल गायब हो गया था।

और शंभू नायर अब पूरी माफिया ताकत लेकर मैदान में था।

इमरान एक आखिरी संदेश में बोला:

“अब युद्ध है — माफिया बनाम जनता।

ये शहर अब या तो जीतेगा… या हमेशा के लिए मरेगा।”

भाग 6

दोपहर के दो बजे थे। मुंबई का दादर स्टेशन, जहां रोज़ लाखों कदम चलते थे, आज ठहर गया था।
फुटओवर ब्रिज पर एक बैनर टंगा था:

“इंसाफ चाहिए – इमरान ज़िंदाबाद”

सिर्फ दादर ही नहीं – धारावी, माटुंगा, कुर्ला, और नागपाड़ा तक – हर गली, हर नुक्कड़ पर एक ही नारा था।

“पाटिल और नायर – माफिया के दलाल!”
“अब जनता बोलेगी – अब जनता चलेगी!”

इमरान अब सिर्फ एक चेहरा नहीं रहा, वो आंदोलन बन चुका था।

तारा मौसी के आश्रम में बैठा इमरान, पहली बार चुप था। उसकी आंखों में थकान नहीं थी — सिर्फ समर्पण।

शमशेर बोला,
“अब हम पीछे नहीं हट सकते, इमरान।”

“हमें नहीं… अब ये शहर बोल रहा है,” उसने शांत स्वर में कहा।

इसी बीच, एक नई खबर आई —
CBI ने पाटिल के बैंक लॉकर से 17 करोड़ की अवैध संपत्ति बरामद की।

पर पाटिल अब भी गायब था। शंभू नायर और उसके गुर्गे अंडरग्राउंड चले गए थे।

नायर अब भी योजना में लगा था —
“हमें इस लड़के को नहीं, उसकी लहर को खत्म करना है।”

उसने शहर के अलग-अलग हिस्सों में दंगे भड़काने के लिए अपने नेटवर्क को अलर्ट किया।

अगली रात, धारावी में बम ब्लास्ट हुआ। चार मरे, दर्जनों घायल।

उसके तुरंत बाद एक और धमाका – सायन अस्पताल के पास।

TV पर हेडलाइन थी:
“क्या इमरान की क्रांति आतंकवाद में बदल रही ह।

DCP सोनाल का फोन इमरान को आया।

“मीडिया अब पाटिल की भाषा बोल रहा है। हमें सच को सामने लाना होगा।”

इमरान ने जवाब दिया —
“अब मैं स्टूडियो नहीं जाऊँगा। मैं सड़क पर बोलूँगा।”

अगले दिन, शिवाजी पार्क में इमरान की सबसे बड़ी रैली थी।
लाखों लोग इकट्ठा हुए — मजदूर, छात्र, महिलाएं, बुज़ुर्ग।

इमरान मंच पर चढ़ा। कोई माइक नहीं, कोई टेलीप्रॉम्प्टर नहीं।

सिर्फ एक आवाज़ — और सन्नाटा।

“कल रात, फिर हमारे लोगों को मारा गया। अब भी कुछ लोग पूछेंगे — ये आंदोलन क्यों?”

“तो सुनो —
क्योंकि हमारे बच्चों के हाथों में किताब की जगह बंदूकें दी जा रही हैं।
क्योंकि हमारे बापों को मारकर, उसे हादसा कहा जाता है।
क्योंकि सच बोलना अब जुर्म बन चुका है।”

“मैं कोई नेता नहीं। मैं एक बेटा हूँ — जिसका बाप मारा गया।
अब मैं सिर्फ जवाब नहीं चाहता — मैं बदलाव चाहता हूँ।”

सभा सन्न रह गई।
फिर एक बुज़ुर्ग ने नारा लगाया —
“इमरान भाई… आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं!”

और फिर लाखों गलों से एक स्वर:
“इंकलाब… जिंदाबाद!!”

लेकिन शंभू नायर अब चुप नहीं बैठा।

उसने अपनी सारी ताकत झोंक दी — हथियार, ड्रग्स, और लोगों को खरीदने के लिए करोड़ों रुपये।

पाटिल अब एक गुप्त जगह से उसे हुक्म दे रहा था।
“इमरान को ज़िंदा मत छोड़ो। उसे जनता के सामने मारो — ताकि डर फिर से लौटे।”

तारा मौसी ने इमरान को चेतावनी दी।

“शहर अब दहाने पर है बेटा। एक गलती… और ये आग सब कुछ जला देगी।”

“तो क्या करें मौसी? अब पीछे हट जाएं?” इमरान बोला।

“नहीं। अब उस आग को नियंत्रित करना होगा — ताकि वो रोशनी बने, राख नहीं।”

शमशेर और नियाज़ को खबर मिली कि नायर अगले हफ्ते एक बंद गोदाम में बड़ा सौदा करने वाला है — ड्रग्स और हथियारों का।

“अगर हम उसे वहीं पकड़ लें, तो सारा खेल खत्म हो सकता है,” शमशेर ने कहा।

इमरान ने सिर हिलाया।

“लेकिन हमें कानून की हद पार नहीं करनी है। हम वही नहीं बन सकते जिससे लड़ रहे हैं।”

DCP सोनाल को जब ये खबर मिली, उसने तुरंत प्लान तैयार किया।

“एक रेड प्लान करेंगे — लेकिन मीडिया को बुलाकर। ताकि पूरा देश देखे कि असली गुनेहगार कौन हैं।”

रेड की रात —
इमरान, शमशेर, नियाज़ और पुलिस की एक गुप्त टीम तैयार थी।

गोदाम की छत से कैमरे सेट किए गए। सोशल मीडिया पर लाइव लिंक चला।

भीतर शंभू नायर अपने गुर्गों के साथ बैठा था।

रेड शुरू होते ही गोलियां चलीं — लेकिन पुलिस और जनता की साझा टीम ने हर हथियारबंद गुर्गे को दबोच लिया।

लेकिन शंभू नायर भाग निकला — और एक मोड़ पर, इमरान के सामने आ गया।

“अब तू मुझे मारने आया है?”

“नहीं। मैं तुझे उसी कानून के हवाले करूंगा, जिससे तू खेलता था।”

“तू पागल है। लोग तुझे ही मसीहा समझ बैठेंगे। तुझे भी गिरा देंगे, जैसे मुझे गिराया।”

“अगर ऐसा हुआ… तो भी मैं चैन से मरूंगा। लेकिन तेरे जैसे बनने से बेहतर है मिट जाना।”

इमरान ने उसे हथकड़ी पहनाकर कैमरे के सामने पुलिस को सौंपा।

अगले दिन, हर अखबार में एक ही तस्वीर थी:
इमरान शेख – एक नायक, जिसने शहर को आग से बचा लिया।

भाग 7

शंभू नायर की गिरफ्तारी के बाद मुंबई एक गहरी सांस तो ले पाई, पर तूफान अभी थमा नहीं था।

CBI ने पाटिल की तलाश के लिए पूरे राज्य में सर्च ऑपरेशन छेड़ दिया।
पर पाटिल सिर्फ माफिया नहीं था — वो सिस्टम की नसों में बैठा हुआ एक कैंसर था।

DCP सोनाल ने प्रेस को बताया:

“ACP पाटिल ने न केवल कानून का दुरुपयोग किया, बल्कि उसने एक निजी मिलिशिया खड़ी की — ‘ब्लैक ब्रिगेड’। ये संगठन देश के अंदर एक राज्य जैसा ऑपरेट करता था।”

इस खुलासे ने देश को हिला दिया।

लोकसभा में बहस छिड़ गई।

मीडिया बँट चुका था — कुछ इमरान को क्रांतिकारी कह रहे थे, तो कुछ “सिस्टम तोड़ने वाला उग्रपंथी।”

इस बीच, पाटिल नेपाल बॉर्डर के पास एक पुराने लॉज में छुपा बैठा था।

उसका नया प्लान तैयार था —
“इमरान को खत्म नहीं किया, तो मैं इतिहास बन जाऊंगा।
लेकिन अगर उसे मिटा दिया… मैं फिर सिस्टम का राजा बनूंगा।”

उसने एक फोन उठाया —
“ब्लैक ब्रिगेड एक्टिवेट करो। प्लान ‘त्रिनेत्र’ शुरू हो।”

त्रिनेत्र प्लान का मकसद था:
तीन बड़े शहरों में हिंसा — दिल्ली, मुंबई, और लखनऊ।

“जब मुल्क डरता है, तब उसे कोई भी बचाने वाला राजा लगने लगता है,” पाटिल बोला।

इमरान अब दिल्ली में था — संसदीय कमेटी के सामने अपना पक्ष रखने।

“हमारा आंदोलन सिर्फ मुंबई नहीं, पूरे देश की बात करता है।
अगर एक अधिकारी मिलिशिया बना सकता है, तो आज़ाद भारत की नींव डगमगाई हुई है।”

तभी, एक सांसद चिल्लाया —
“आप देश को भड़काने आए हैं या सुधारने?”

इमरान शांत रहा —
“अगर सच बोलना भड़काना है, तो मैं हर बार बोलूंगा।”l

उसी शाम, मुंबई में CST स्टेशन पर एक ग्रेनेड ब्लास्ट हुआ।
12 मरे, 30 घायल।

पाटिल का सन्देश वायरल हुआ:

“जब तक मैं जिंदा हूँ, इस लड़के का देश सपना नहीं देख पाएगा।
मैं सिस्टम हूँ — और सिस्टम अमर है।”

देश दो हिस्सों में बंट गया।

एक तरफ वो जो इमरान के साथ खड़े थे,
दूसरी ओर वो, जो “शांति के नाम पर चुप्पी” चाहते थे।

DCP सोनाल और इमरान ने एक सीक्रेट प्लान बनाया —
ब्लैक ब्रिगेड के मुख्य ठिकानों पर एक साथ रेड।

“इस बार सिस्टम को सिस्टम से ही काटना होगा,” सोनाल बोली।

1 जून की रात — भारत के तीन शहरों में छापे पड़े।

दिल्ली में ब्लैक ब्रिगेड का डेटा हेड पकड़ा गया।
लखनऊ में हथियारों की बड़ी खेप जब्त हुई।
मुंबई में एक पुराने गोदाम से 5 करोड़ रुपये कैश बरामद हुआ।

लेकिन पाटिल अब भी गायब।p

इमरान ने एक बड़ा दांव चला।

LIVE वीडियो में उसने देश को संबोधित किया:

“अगर मुझे कुछ हुआ — तो मेरी आखिरी वसीयत ये होगी कि पाटिल की कहानी हर स्कूल में पढ़ाई जाए।
ताकि अगली पीढ़ी जान सके कि माफिया कोई फिल्मी किरदार नहीं — वो हमारे कानून की कमजोरी से पैदा होता है।”😊

तभी, एक अनजान नंबर से इमरान को वीडियो आया।

पाटिल कैमरे के सामने बैठा था — पीठ पर भारतीय झंडा, हाथ में AK-47।

“आ जा बेटा। आखिरी खेल खेले हम दोनो। या तू बचेगा, या मैं।
लोकेशन भेज रहा हूँ — तय कर तू क्या है: क्रांतिकारी या सिर्फ एक वायरल चेहरा।”

DCP सोनाल ने रोकने की कोशिश की,
“इमरान, ये ट्रैप है!”

“मैं जानता हूँ। पर अब ये लड़ाई अदालत की नहीं… आत्मा की है।”

लोकेशन थी — एलिफेंटा द्वीप का परित्यक्त कारखाना।

इमरान अकेला पहुँचा — सिर्फ एक कैमरा लेकर।
उसने LIVE स्ट्रीम ऑन किया — ताकि दुनिया सच देख सके।

पाटिल सामने आया — हँसता हुआ।

“तेरे जैसे आदर्शवादी मरते हैं बेटा। मैं तुझे रीयलिटी दिखाता हूँ।”

“रीयलिटी तुझे भी दिखानी है पाटिल — कि इस देश में अब डर नहीं बचा।”

दोनों के बीच गोलियां चलीं — लेकिन इमरान ने सिर्फ डिफेंड किया।

अचानक, एक छिपे स्नाइपर ने पाटिल की टांग में गोली मारी।

DCP सोनाल टीम के साथ पहुंच चुकी थी।

“गिरफ्तार कर लो इसे!” वह चिल्लाई।

पाटिल को जनता के सामने पेश किया गया — कैमरे, मीडिया, और कोर्ट के बीच।

उसे उम्रकैद की सज़ा हुई — आतंकवाद, हत्या, देशद्रोह और मनी लॉन्डरिंग के लिए।

अंत में, इमरान ने एक सभा में कहा:

“मैं कोई भगवान नहीं। मैं भी गलत हो सकता हूँ।
पर अगर एक आम लड़का उठ सकता है — तो कोई भी उठ सकता है।
बदलाव सिर्फ नारे से नहीं आता — जोखिम उठाने से आता है।”

भाग 8

मुंबई की हवाओं में पहली बार डर की गंध नहीं थी।
शंभू नायर सलाखों के पीछे था। पाटिल — अब कैदी नंबर 47621 — जीवनभर के लिए जेल में।

लेकिन ये कहानी केवल अपराध और सज़ा की नहीं थी।

ये कहानी थी — परिवर्तन की।

शहर की हर दीवार पर इमरान की मुस्कराती तस्वीर नहीं,
बल्कि एक वाक्य लिखा गया:

“तू मत डर — तेरा सच बहुतों की चुप्पी से बड़ा है।”

तीन महीने बाद —

इमरान ने ‘जन-नीति मंच’ नामक एक स्वतंत्र संगठन खड़ा किया।
उसका उद्देश्य था — भ्रष्टाचार उजागर करना, और सिस्टम के भीतर से बदलाव लाना।

शमशेर अब मीडिया कंसल्टेंट बन चुका था।
नियाज़ — NGO चलाता था जो बच्चों को शिक्षा देता।

और तारा मौसी?

अब वो हर हफ्ते एक यूट्यूब एपिसोड करती थीं —
“तारा की सच्ची बातें” — जहाँ वो जनता को कानून, हक़ और जिम्मेदारी समझातीं।

DCP सोनाल को राष्ट्रपति मेडल मिला।
लेकिन उन्होंने एक ही बात कही:

“सम्मान इमरान का है। मैं तो बस उसकी आवाज़ की गूंज थी।”

सिस्टम अब भी बदल नहीं गया था — लेकिन अब उसमें डर बैठ चुका था।

हर अफ़सर, हर नेता — अब जनता की नजरों से भाग नहीं सकता था।

क्योंकि अब हर गली में एक इमरान था — सवाल करने वाला।

इमरान एक दिन तारा मौसी के आश्रम के पास खड़ा था।

“मौसी, सब खत्म हो गया… और फिर भी अधूरा लगता है।”

मौसी मुस्कुराईं।

“अधूरा नहीं बेटा — अब असली शुरुआत है।
लड़ाई किसी एक पाटिल से नहीं,
उस सोच से है — जो कहती है कि आम आदमी कुछ नहीं कर सकता।”

एक साल बाद —

देशभर के स्कूलों में एक नया पाठ पढ़ाया गया:

“मायानगरी की आग — एक सच्ची क्रांति की कहानी।”

बच्चे पूछते:

“मिस, क्या इमरान हीरो था?”

और शिक्षक जवाब देते:

“इमरान वो सवाल था — जो सबके अंदर था,
बस किसी ने ज़ोर से पूछा नहीं था।”

एक शाम इमरान, शमशेर और नियाज़ साथ बैठे थे — समुद्र की लहरों के सामने।

“क्या तुम सोच सकते थे — धारावी की उस गली से हम यहां तक पहुँचेंगे?” शमशेर बोला।

“नहीं,” इमरान हँसा।
“पर अब समझ आया — जब कोई इंसान अपना डर छोड़ देता है,
तो उसकी उड़ान सरकारों से भी ऊँची हो जाती है।”

उस रात, मुंबई में बारिश थी — जैसे आसमान भी बह रहा हो।

इमरान अकेले छत पर बैठा था।

किसी ने पीछे से कहा,
“सपनों से खेलने का मन है क्या अब?”

वो सोनाल थी।
हाथ में चाय के दो कप।

“अब सिस्टम से लड़ने के बाद क्या करना है?”

इमरान ने कप लिया।

“अब सिस्टम को बनाना है।
नया — साफ — लोगों का सिस्टम।”

देश में पहली बार, एक आम नागरिक संगठन — ‘जन-नीति मंच’ — ने RTI के तहत 500 से ज्यादा भ्रष्ट अफसरों की लिस्ट उजागर की।

आंदोलन अब एक संस्था बन चुका था।

दो साल बाद —

इमरान को संयुक्त राष्ट्र से बुलावा आया।

“आपने लोकतंत्र को ज़मीन से उठाकर फिर से खड़ा किया।
आपसे दुनिया सीख सकती है कि बदलाव सिर्फ चुनाव से नहीं — इरादों से आता है।”

फिल्में बनीं। किताबें लिखी गईं। पर इमरान कभी मंच पर नहीं चढ़ा।

उसने हमेशा कहा:

“मैं नायक नहीं।
मैं बस वो खरोंच हूँ — जो सत्ता को हर बार याद दिलाती है कि उसकी दीवारें पत्थर की नहीं होतीं।”

अंत में —

मुंबई का वही दादर स्टेशन, जहाँ से आंदोलन शुरू हुआ था —
अब हर साल 1 जून को “जन-सत्य दिवस” मनाता है।

लोग मोमबत्तियाँ जलाते हैं,
और बच्चों को सिखाते हैं:

“डर के आगे सिर्फ एड नहीं होता —
एक नयी सुबह भी होती है।”

 

समाप्त

1000017852.jpg

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *