१
मुंबई की हलचल भरी सुबह में, जब अरब क्रिएटिव एजेंसी की 12वीं मंज़िल पर धूप कांच की दीवारों से छनकर बोर्डरूम में गिर रही थी, तभी नए कैंपेन की मीटिंग शुरू हुई। एजेंसी का यह सबसे बड़ा प्रोजेक्ट था—एक इंटरनेशनल ब्रांड का भारत में पहला बड़ा लॉन्च—और हर कोई इस मीटिंग में अपनी चमक दिखाने के लिए तैयार बैठा था। कमरे में मौजूद क्लाइंट, अकाउंट मैनेजर, आर्ट डायरेक्टर्स, और कॉपी टीम के बीच, अरब मेहता की उपस्थिति अलग ही थी। शांत, सधे हुए, लेकिन आंखों में गहराई लिए, वह क्रिएटिव डायरेक्टर के तौर पर अपने नोट्स के साथ तैयार था। दूसरी तरफ, रिया कपूर, सीनियर कॉपीराइटर, अपने तेज़-तर्रार अंदाज़ में कॉफी का कप थामे, एकदम फ्रेश आइडियाज़ से लैस थी। दोनों की पहली मुलाक़ात कुछ दिनों पहले ही औपचारिक रूप से हुई थी, लेकिन आज पहली बार वे एक साथ किसी बड़े क्रिएटिव विज़न पर आमने-सामने काम करने जा रहे थे। जैसे ही प्रोजेक्ट ब्रीफ़ दीवार पर प्रोजेक्टर के जरिए दिखाया गया, कमरे में एक तरह की उत्सुकता फैल गई—यह सिर्फ़ एक विज्ञापन नहीं था, बल्कि एक कहानी गढ़ने का मौका था, जो लाखों लोगों तक पहुंचेगी।
मीटिंग के पहले आधे घंटे में सब कुछ व्यवस्थित लग रहा था—आंकड़े, टार्गेट ऑडियंस, ब्रांड पोज़िशनिंग। लेकिन जब क्रिएटिव आइडियाज़ पर चर्चा शुरू हुई, तभी असली टकराव सामने आया। अरब ने एक मिनिमलिस्टिक, इमोशनल कैंपेन का सुझाव दिया—कम शब्द, गहरी इमेजरी, और साइलेंट मोमेंट्स का इस्तेमाल जो दर्शक को सोचने पर मजबूर कर दें। दूसरी तरफ, रिया का विज़न बिल्कुल अलग था—वह एक तेज़-रफ़्तार, संवाद-प्रधान, सोशल मीडिया फ्रेंडली अप्रोच चाहती थी, जिसमें कहानी और कैरेक्टर की परतें तुरंत पकड़ में आएं। दोनों की बहस प्रोफेशनल थी, लेकिन हर वाक्य के पीछे उनकी क्रिएटिव जुनून साफ़ झलक रहा था। बाकी टीम के लिए यह जैसे दो धाराओं का टकराव था—एक शांत नदी जो गहराई में बहती है, और एक तेज़ बहाव वाली धारा जो सबको अपनी ओर खींच लेती है। कुछ पलों में, माहौल थोड़ा तनावपूर्ण भी हो गया, पर उतना ही रोमांचक भी। अरब ने एक लाइन खींचकर कहा, “कभी-कभी कम कहना ज़्यादा असर करता है,” तो रिया ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “और कभी-कभी ज़्यादा कहना ही लोगों के दिल तक पहुंचाता है।” उस पल, वे दोनों सिर्फ़ विचार नहीं रख रहे थे, बल्कि अपनी क्रिएटिव पहचान की रक्षा कर रहे थे।
जैसे-जैसे चर्चा आगे बढ़ी, एक अजीब-सी बात साफ़ होने लगी—भले ही उनके तरीके अलग थे, लेकिन उनकी सोच की जड़ कहीं न कहीं जुड़ी हुई थी। अरब की इमेजरी और रिया की नैरेटिव स्किल्स, अगर सही तरह से मिल जाएं, तो एक ऐसा कैंपेन बन सकता था जो भावनात्मक भी हो और कहानीदार भी। मीटिंग के अंत में, क्लाइंट और टीम के बाकी लोग थोड़े उलझे हुए लेकिन उत्साहित थे, जबकि अरब और रिया दोनों के बीच एक अनकहा एहसास था—शायद यह टकराव सिर्फ़ शुरुआत है, और उनके रास्ते बार-बार टकराने वाले हैं। जब मीटिंग खत्म हुई और सब बाहर निकलने लगे, अरब ने एक हल्की मुस्कान के साथ रिया से कहा, “लगता है, हमें कॉफी पर बैठकर इन आइडियाज़ को सुलझाना पड़ेगा।” रिया ने उसकी आंखों में देखते हुए जवाब दिया, “कॉफी तो होगी, लेकिन सुलझाना… देखते हैं।” उस छोटी-सी बातचीत में, प्रोफेशनल टकराव के पीछे छिपी एक नई जिज्ञासा की चिंगारी जल चुकी थी—जिसे दोनों ने महसूस तो किया, लेकिन अभी किसी ने नाम नहीं दिया। बाहर मुंबई की बारिश शुरू हो चुकी थी, और शायद उनकी क्रिएटिव जर्नी की भी पहली बूंद गिर चुकी थी।
२
दोपहर के करीब ढाई बजे, एजेंसी का माहौल कुछ सुस्त-सा हो गया था। क्रिएटिव टीम के कई लोग अपने-अपने डेस्क पर झुके लैपटॉप स्क्रीन में खोए हुए थे, तो कोई अपने हेडफोन में डूबा गाने सुन रहा था। इसी बीच, अरब बोर्डरूम से निकलते हुए कॉमन एरिया की ओर बढ़ा। ऑफिस के उस कोने में रखी कॉफ़ी मशीन एक तरह से सबके लिए ब्रेक और बातचीत का छोटा-सा अड्डा थी—जहां क्लाइंट मीटिंग्स की थकान थोड़ी देर के लिए उतार दी जाती, और जहां प्रोफेशनल बातें अक्सर पर्सनल किस्सों में बदल जातीं। अरब ने मशीन के नीचे कप रखा और मोका लैटे का बटन दबाया। उसी समय, पीछे से आती हंसी और तेज़ कदमों की आवाज़ ने उसका ध्यान खींचा। रिया थी—अपने कॉफ़ी मग को घुमाते हुए, कंधे पर स्कार्फ लटकाए, जैसे वह किसी फ्रेम से बाहर निकलकर यहां आ गई हो। वह पास आई और मशीन पर दूसरी तरफ खड़ी हो गई। “काफी हेल्दी नहीं है, पता है?” उसने कप नीचे रखते हुए कहा। अरब ने हल्की मुस्कान दी, “तो फिर आप क्यों ले रही हैं?” रिया ने शरारती अंदाज़ में आंखें उठाईं, “कभी-कभी थोड़ी अनहेल्दी चीज़ें भी ज़िंदगी में जरूरी होती हैं।” उनकी हंसी हल्की-सी गूंजी, जैसे बोर्डरूम का तनाव एक कप कॉफ़ी में घुल गया हो।
कॉफ़ी बनते-बनते बातचीत का रुख अनजाने में थोड़ा पर्सनल हो गया। अरब ने casually पूछा, “तो, आप लिखती भी हैं?” रिया ने पहले तो हल्का-सा चौंकते हुए देखा, फिर बोली, “हाँ… मतलब, पब्लिक के लिए नहीं। बस खुद के लिए—कविताएं, नोट्स, टुकड़े-टुकड़े में बातें।” उसने कप उठाते हुए जोड़ा, “लिखना मेरे लिए जैसे सांस लेने जैसा है, बस बिना सोचे हो जाता है।” अरब की आंखों में हल्की चमक आ गई। “दिलचस्प,” उसने कहा, “क्योंकि मैं भी किसी वक्त कहानियां गढ़ा करता था… लेकिन मंच पर।” रिया ने भौं उठाई, “थिएटर?” अरब ने सिर हिलाया, “कॉलेज के दिनों में डायरेक्टिंग और एक्टिंग—बस वही मेरी पहली क्रिएटिव ट्रेनिंग थी।” रिया ने चुपचाप उसकी ओर देखा, जैसे किसी पज़ल का टुकड़ा जगह पर बैठ गया हो। “तो इसीलिए आपकी प्रेजेंटेशन में वो… स्टेज वाला ठहराव था,” उसने धीरे से कहा। अरब ने हल्की हंसी के साथ जवाब दिया, “और शायद इसी वजह से मैं संवाद से ज़्यादा चुप्पी को तरजीह देता हूँ।” इस छोटे-से पल में दोनों के बीच एक अजीब-सी कनेक्शन की डोर बुनने लगी—जैसे शब्दों और मंच की पृष्ठभूमि, दो अलग रास्ते होते हुए भी, किसी एक पुराने शहर में मिल गए हों।
बाकी टीम के लोग आते-जाते रहे, लेकिन अरब और रिया कॉफ़ी मशीन के पास खड़े जैसे अपनी ही दुनिया में थे। बातें इधर-उधर घूमते हुए भी भीतर कुछ गहराई तक छू रही थीं। रिया ने अपनी एक अधूरी कविता की एक पंक्ति बगैर सोचे बोल दी—”कुछ चुप्पियां भी होती हैं, जो बातें सुनाती हैं”—और अरब ने बिना पलक झपकाए कहा, “यही तो मैं थिएटर में खोजता था।” एक हल्की-सी चुप्पी आई, लेकिन वह असहज नहीं थी—बल्कि जैसे दोनों ने उस खामोशी में एक-दूसरे को पढ़ लिया हो। फिर रिया ने घड़ी की तरफ देखा और मुस्कुराकर बोली, “चलना चाहिए, वरना लोग सोचेंगे हम किसी नए कैंपेन की सीक्रेट प्लानिंग कर रहे हैं।” अरब ने मज़ाक में कहा, “शायद हम सच में कर भी रहे हैं… बस अभी नाम नहीं रखा।” वे दोनों अपने-अपने डेस्क की ओर लौट गए, लेकिन भीतर कहीं, एक अनकहा अंडरकरंट बहना शुरू हो चुका था। ऑफिस के शोर-शराबे के बीच, कॉफ़ी की महक के साथ, शायद उनके बीच की कहानी का पहला निजी अध्याय लिख दिया गया था—एक ऐसा अध्याय जो मीटिंग रूम की टकराहट से अलग, कहीं ज़्यादा गहरा और सॉफ्ट-फोकस में था।
३
शाम के करीब छह बजे, जब एजेंसी का माहौल थोड़ा ढीला पड़ने लगा था और कुछ लोग घर जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी अकाउंट टीम से एक ईमेल आया—क्लाइंट ने कैंपेन की डेडलाइन तीन दिन आगे खींच दी है। बोर्डरूम में तुरंत एक मीटिंग बुलाई गई, और जैसे ही यह खबर अरब और रिया तक पहुंची, दोनों के चेहरों पर एक पल को सन्नाटा उतर आया। यह प्रोजेक्ट वैसे ही चुनौतीपूर्ण था, और अब तीन दिन कम का मतलब था लंबी रातें, तेज़ फैसले और हर कदम पर टाइम की सुई का दबाव। बाकी टीम में थोड़ी अफरा-तफरी थी—किसी के फोन पर कॉल्स बढ़ गए, तो कोई अपने सिस्टम पर फाइलें री-शफल करने लगा। अरब ने सिर्फ़ गहरी सांस लेकर नोट्स उठाए और कहा, “ठीक है, हम प्लान रीसेट करेंगे।” उसकी आवाज़ में न कोई घबराहट थी, न जल्दबाज़ी—बस एक steady calmness, जिसने कमरे में फैले तनाव को कुछ सेकंड के लिए कम कर दिया। रिया ने उसकी तरफ देखा, जैसे वह silently पूछ रही हो, “तुम्हें सच में घबराहट नहीं हो रही?” और अरब की नज़र ने बिना शब्दों के जवाब दिया, “नहीं।”
रात गहराने लगी, और ऑफिस के फ्लोर पर सिर्फ़ कुछ डेस्कों पर रोशनी बची थी—उनमें अरब और रिया का कोना भी शामिल था। दोनों अपने-अपने सिस्टम पर डूबे हुए थे—अरब mood boards और विजुअल ट्रीटमेंट पर काम कर रहा था, जबकि रिया लगातार कॉपी और नैरेटिव स्ट्रक्चर को पॉलिश कर रही थी। बाहर की खिड़की से दिखने वाला मुंबई का स्काईलाइन धीरे-धीरे धुंधला पड़ रहा था, लेकिन भीतर के डेडलाइन के तूफ़ान में हर मिनट की गिनती साफ़ सुनाई दे रही थी। बीच-बीच में वे छोटे-छोटे ब्रेक लेते—कभी कॉफ़ी मशीन तक, कभी बस डेस्क के पास खड़े होकर दो मिनट बात करने के लिए। रिया को हैरानी हो रही थी कि अरब का चेहरा थकान में भी वैसा ही शांत था, जैसे किसी ने उसकी घड़ी से टाइम का प्रेशर निकाल दिया हो। उसने एक बार पूछा भी, “तुम इतने आराम से कैसे रह पाते हो?” अरब ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “थिएटर ने सिखाया है—अगर तुम मंच पर घबरा जाओ, तो दर्शक भी घबरा जाते हैं।” रिया ने सिर हिलाया, जैसे उसने अभी-अभी अपने सामने बैठी इस शख्सियत के बारे में एक नया पन्ना पढ़ लिया हो।
करीब रात के साढ़े ग्यारह बजे, जब दोनों ने आखिरकार पहले राउंड के फाइनल लेआउट और कॉपी एक साथ मिलाकर देखा, तो एक अजीब-सी संतुष्टि उनके बीच तैरने लगी। थकान के बावजूद, यह एहसास कि उन्होंने मिलकर डेडलाइन के पहले दिन का सबसे मुश्किल हिस्सा पार कर लिया है, दोनों के चेहरे पर साफ़ था। रिया को महसूस हुआ कि अरब की उपस्थिति किसी एंकर की तरह थी—जिसने उसे तूफ़ान में भी डूबने नहीं दिया। वह जानती थी कि आने वाले दो-तीन दिन और भी कठिन होंगे, लेकिन अब उसे डर कम लग रहा था। जैसे ही वे ऑफिस से निकले, मुंबई की सड़कों पर देर रात की नमी और हल्की हवा थी। अरब ने कहा, “कल सुबह जल्दी आना होगा,” और रिया ने हल्के से मुस्कुराकर जवाब दिया, “मैं आ जाऊंगी… लेकिन तुम कॉफ़ी बनाओगे।” उस पल में, डेडलाइन का तूफ़ान कहीं दूर था—करीब था तो बस वह अजीब-सा भरोसा, जो शायद सिर्फ़ उन लोगों के बीच बनता है, जिन्होंने एक साथ देर रात तक काम किया हो और बिना कहे एक-दूसरे की रफ़्तार पकड़ ली हो।
४
रात करीब साढ़े आठ बजे, अरब और रिया उस दिन का काम खत्म करके ऑफिस से निकले ही थे कि बाहर एकदम से आसमान फट पड़ा। मुंबई की पहली भारी मॉनसून बारिश, जैसे महीनों से रूके बादल अचानक खुलकर बरसने लगे हों। सड़क पर ट्रैफिक का शोर, गाड़ियों की हेडलाइट्स में चमकते पानी के छींटे, और हवा में मिट्टी की नमी—सब मिलकर एक अजीब-सा रोमांटिक अराजकता बना रहे थे। उन्होंने एक साथ दौड़ते हुए नज़दीकी बस स्टॉप की छत के नीचे शरण ली। लेकिन छत से लगातार टपकते पानी और चारों तरफ से आती हवा के कारण दोनों आधे भीग चुके थे। रिया ने अपने बालों से पानी झटकते हुए हंसकर कहा, “लगता है इस मौसम का वेलकम पार्टी हमें ही मिली है।” अरब ने शर्ट की आस्तीन से अपने माथे की बूंदें पोंछते हुए जवाब दिया, “और ड्रेस कोड भी—वॉटरप्रूफ।” उस हल्की-सी हंसी में भीगते हुए कपड़ों की ठंडक के बीच, एक मुलायम-सी झिझक घुली हुई थी, जैसे दोनों को पता हो कि वे अचानक एक निजी फ्रेम में आ गए हैं, जिसे कोई तीसरा छू नहीं सकता।
बारिश लगातार तेज़ होती जा रही थी और बसें भीड़ से भरी हुई गुजर रही थीं। चारों ओर का शोर—लोगों की बातें, हॉर्न, बारिश की परतों की आवाज़—के बीच भी उनके बीच एक अलग-सी खामोशी थी। रिया ने अपनी बांहों को मोड़कर खुद को गर्म रखने की कोशिश की और अरब ने अनजाने में अपनी जैकेट उसकी तरफ बढ़ा दी। रिया ने पहले मना किया, लेकिन अरब ने मुस्कुराकर कहा, “थिएटर में सीखा है, प्रॉप सही वक्त पर इस्तेमाल करना चाहिए।” उसने जैकेट ले ली, और उसी के साथ जैसे माहौल का तापमान थोड़ा बढ़ गया। भीगे कपड़ों के साथ, हर हावभाव थोड़ा ज़्यादा नज़दीकी महसूस हो रहा था—जैसे हाथ से जैकेट लेना भी एक लंबा स्पर्श बन गया हो। रिया ने बारिश की तरफ देखते हुए कहा, “कभी-कभी लगता है, इस शहर की बारिश सबको एक बहाना देती है—रुकने का, सोचने का।” अरब ने उसकी ओर देखे बिना जवाब दिया, “या शायद कुछ कहने का, जो बाकी दिनों में नहीं कह पाते।” यह बात सुनकर रिया ने उसकी ओर हल्की नज़र डाली, लेकिन दोनों ने आगे कुछ नहीं कहा—बस पानी की बूंदों की आवाज़ उनके बीच बाकी सब शब्दों की जगह भर रही थी।
करीब पंद्रह-बीस मिनट बाद, जब बारिश थोड़ी हल्की हुई, तो उन्होंने तय किया कि पैदल ही अगले मोड़ तक चलना बेहतर होगा, जहां से उन्हें अपने-अपने रास्तों की गाड़ियां आसानी से मिल जाएंगी। सड़क किनारे पानी के छोटे-छोटे तालाब बन गए थे, जिनमें स्ट्रीटलाइट्स की रोशनी सुनहरे धब्बों की तरह तैर रही थी। चलते-चलते उनके कदम कभी एक साथ, कभी अलग हो रहे थे—लेकिन बिना किसी तय लय के भी उस चलने में एक आराम था। रिया ने हंसकर कहा, “अगर कोई फिल्म का सीन लिख रहा होता, तो यहां शायद कोई बैकग्राउंड म्यूजिक डाल देता।” अरब ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, “और शायद क्लोज़-अप भी।” उस पल में, मौसम, सड़क, और भीगे कपड़ों के बीच एक अनकही नज़दीकी थी—न बहुत स्पष्ट, न पूरी तरह छुपी हुई। जब वे मोड़ पर पहुंचे और अलग-अलग गाड़ियों में बैठने से पहले एक छोटी-सी नज़र का आदान-प्रदान हुआ, तो उसमें कोई वादा नहीं था, बस यह अहसास था कि यह शाम उनकी कहानी में किसी खास, मुलायम पन्ने की तरह हमेशा रह जाएगी—एक पन्ना जिसे वे शायद कभी खोलकर पढ़ेंगे, शायद कभी बस महसूस करेंगे।
५
शाम करीब सात बजे का वक्त था, जब एजेंसी के फ्लोर पर अचानक सारी लाइट्स झपकी लेकर बुझ गईं। एक पल के लिए सब चौंक गए, फिर रिसेप्शन से आवाज़ आई—“पूरे ब्लॉक की बिजली गई है।” जनरेटर चालू होने में वक्त लगने वाला था, तो अकाउंट टीम ने दिन का काम समेटना शुरू कर दिया। लेकिन अरब और रिया के पास क्लाइंट के लिए अगली सुबह का प्रेजेंटेशन तैयार करना था, जिसे टालना मुमकिन नहीं था। ऑफिस बॉय ने कुछ मोमबत्तियां लाकर उनके कोने की मेज़ पर रख दीं, और देखते-ही-देखते वहां हल्की पीली रोशनी का एक छोटा-सा दायरा बन गया। बाहर खिड़की से आता शहर का अंधेरा और भीतर मोमबत्तियों का कांपता उजाला—दोनों के बीच माहौल में एक अजीब-सी नर्मी घुल गई। अरब ने लैपटॉप की बैटरी चेक करते हुए कहा, “लगता है आज का ब्रेनस्टॉर्मिंग थोड़े थिएट्रिकल सेटअप में होगा।” रिया ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “शायद यही आपका असली कम्फर्ट ज़ोन है।” उनकी हंसी मोमबत्ती की लौ के साथ हल्के-हल्के कांपती रही, जैसे कमरे में सिर्फ़ उनके लिए कोई सीन लिखा गया हो।
जैसे-जैसे वे कैंपेन के आइडिया पर काम करते रहे, मोमबत्ती की रोशनी उनके चेहरों पर छोटे-छोटे हाइलाइट्स बना रही थी—कभी रिया की आंखों में, कभी अरब की ठुड्डी पर, जैसे कोई फोटोग्राफर हर एक्सप्रेशन को फ्रेम कर रहा हो। बीच-बीच में वे स्केचबुक पर ड्रॉ करते, लाइनें लिखते, और फिर हंस पड़ते—कभी किसी मूर्खतापूर्ण ड्रॉइंग पर, कभी किसी अजीब वर्डप्ले पर। रिया ने एक विजुअल सुझाया, जिसमें बारिश की एक बूंद किसी शब्द में बदल जाती है, और अरब ने बिना सोचे उसका हाथ पकड़कर नोटबुक उसकी ओर खींच ली—सिर्फ पेंसिल से एक लाइन खींचने के लिए, लेकिन वह स्पर्श कुछ सेकंड ज्यादा ठहर गया। दोनों ने एक साथ नज़र उठाई, और उस पल में न हंसी थी, न शब्द—सिर्फ़ मोमबत्ती की लौ की हल्की-सी सरसराहट और कमरे में फैलती धीमी सांसों की आवाज़। अरब ने धीरे से कहा, “ये आइडिया अच्छा है… और शायद इसे फील करने के लिए यही रोशनी चाहिए।” रिया ने बिना कुछ बोले सिर हिलाया, लेकिन उसकी आंखों में साफ़ था कि वह सिर्फ़ आइडिया की बात नहीं सुन रही थी।
करीब आधा घंटा और बीत गया, और काम लगभग पूरा हो चुका था। बाहर बिजली अब भी नहीं आई थी, लेकिन कमरे के भीतर माहौल जैसे किसी अलग ही टाइम ज़ोन में चला गया था। रिया ने मोमबत्ती की लौ को देखते हुए कहा, “अजीब है… कभी-कभी अंधेरा रोशनी से ज़्यादा साफ़ दिखा देता है।” अरब ने हल्के से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “और कभी-कभी ये ऐसे पलों को भी दिखा देता है, जिन्हें दिन की रौशनी में नज़रअंदाज़ कर देते हैं।” उन्होंने फाइल सेव की, लैपटॉप बंद किया, लेकिन जाने से पहले कुछ सेकंड के लिए वहीं बैठे रहे—जैसे दोनों को पता हो कि यह छोटा-सा मोमबत्ती वाला ब्रेनस्टॉर्मिंग सेशन उनकी कहानी के लिए सिर्फ़ एक वर्क मीटिंग नहीं, बल्कि एक ठहरा हुआ पल बन चुका है। जब आखिरकार जनरेटर चल पड़ा और ट्यूबलाइट्स ने कमरे को भर दिया, तो दोनों ने अनजाने में आंखें कुछ पलों के लिए मींच लीं—शायद इसलिए नहीं कि रोशनी तेज़ थी, बल्कि इसलिए कि वह जादुई अंधेरा अब खत्म हो चुका था।
६
सुबह ऑफिस पहुंचते ही अरब ने महसूस किया कि माहौल कुछ बदला-बदला है। कॉमन एरिया में कॉफ़ी मशीन के पास खड़े दो जूनियर डिज़ाइनर्स आपस में कुछ फुसफुसा रहे थे, और जैसे ही उसने उनकी तरफ देखा, वे अचानक चुप हो गए। अकाउंट टीम के एक लड़के ने हंसते-हंसते कहा, “सुना है कल मोमबत्ती वाली मीटिंग बड़ी… प्रोडक्टिव रही।” अरब ने बस हल्की मुस्कान देकर बात टाल दी, लेकिन भीतर कहीं एक बेचैनी उठी। उसे पता था कि एजेंसी में अफवाहें हवा से भी तेज़ चलती हैं, और एक बार उड़ान भरने के बाद उन्हें वापस पकड़ना लगभग नामुमकिन होता है। दूसरी तरफ, रिया अपने डेस्क पर बैठी थी, हेडफोन लगाए, जैसे किसी का सामना न करने की कोशिश कर रही हो। उसकी आंखों में वो चंचलता नहीं थी जो आमतौर पर सुबह के समय होती थी। अरब ने एक-दो बार उसकी तरफ देखा, लेकिन उसने सिर झुकाए रखा, जैसे वह ऑफिस की भीड़ में खुद को अदृश्य बनाने की कोशिश कर रही हो।
दिनभर के काम में, उनकी बातचीत औपचारिक और सीमित हो गई। पहले जहां आइडिया शेयर करते वक्त हल्की हंसी और इशारे होते थे, अब वहां सिर्फ़ सीधी-सी प्रोफेशनल बातें थीं। लंच ब्रेक में भी रिया अकाउंट टीम के साथ बैठ गई, और अरब ने अपनी मेज़ पर अकेले खाना खाया। उसे समझ आ रहा था कि यह सिर्फ़ अफवाहों का असर नहीं, बल्कि उनके अपने मन का डर भी था—यह डर कि कहीं लोग उनकी मेहनत को गलत नजरिए से न देखें, कहीं उनके प्रोफेशनल इमेज पर दाग न लग जाए। रिया को शायद यह और भी भारी लग रहा था, क्योंकि वह जानती थी कि उसकी पोज़िशन तक पहुंचने के लिए उसे कितनी मेहनत और संघर्ष से गुजरना पड़ा है। एक छोटी-सी फुसफुसाहट भी, अगर गलत रंग पकड़ ले, तो सालों की मेहनत पर पानी फेर सकती है। अरब भी यह समझता था, और इसलिए उसने खुद को दूरी बनाए रखने के लिए मजबूर किया—भले ही दिल में वह कल रात के उस ठहरे हुए पल को अब भी महसूस कर रहा था।
शाम के समय, जब बाकी लोग धीरे-धीरे ऑफिस से निकलने लगे, तो अरब ने देखा कि रिया अपना बैग लेकर जल्दी बाहर निकल गई, बिना उसकी ओर देखे। उसके जाते कदमों में एक अजीब-सी जल्दी थी, जैसे वह इस जगह और इस दिन से जितना हो सके उतनी दूरी चाहती हो। अरब अपनी कुर्सी पर बैठा रहा, स्क्रीन पर खुली फाइल को घूरते हुए, लेकिन ध्यान कहीं और था। वह जानता था कि यह दूरी शायद सही है—कम से कम फिलहाल के लिए। दोनों को अपनी-अपनी जगह संभालनी थी, अपने-अपने दायरों में रहना था, ताकि जो भी बन रहा है, वह जल्दबाज़ी या बाहरी दबाव में टूट न जाए। बाहर खिड़की से देखी जाने वाली मुंबई की बारिश अब रुक चुकी थी, लेकिन उसके भीतर एक अलग तरह का मौसम चल रहा था—जिसमें दिल की चाहत और दिमाग की सावधानी के बीच लगातार टकराव हो रहा था।
७
एजेंसी में उस महीने का माहौल सामान्य से ज्यादा तनावपूर्ण था—सालाना प्रमोशन और बड़े प्रोजेक्ट असाइनमेंट की घोषणा बस कुछ ही दिनों में होने वाली थी। कॉरिडोर में फाइलें और लैपटॉप से ज्यादा, फुसफुसाहटें और कानाफूसियां घूम रही थीं। मीटिंग रूम में हर प्रेजेंटेशन सिर्फ़ क्लाइंट को इम्प्रेस करने के लिए नहीं, बल्कि सीनियर्स के सामने अपनी पोज़िशन मजबूत करने के लिए भी हो रहा था। अरब, जो पिछले एक साल से लगातार बड़े क्लाइंट्स के साथ सफल कैंपेन डिलीवर कर रहा था, खुद को इस बार प्रमोशन के लिए लगभग पक्का मान रहा था—न कि अहंकार में, बल्कि मेहनत और नतीजों के भरोसे पर। लेकिन एक दिन अचानक, एचआर से लीक हुई अनऑफिशियल लिस्ट में उसका नाम गायब था। खबर हवा की तरह फैल गई, और लोग आधी-आधी बातें बनाकर पास करने लगे—“शायद उसने कुछ गलत कहा होगा”, “सीनियर मैनेजमेंट से बनती नहीं होगी”—जिनमें से किसी की भी पुष्टि नहीं थी। अरब ने ऊपर से शांत चेहरा बनाए रखा, लेकिन भीतर उसे यह साफ़ महसूस हो रहा था कि यह फैसला टैलेंट के बजाय ऑफिस पॉलिटिक्स का नतीजा था।
इसी बीच, रिया को भी एक अप्रिय बातचीत का सामना करना पड़ा। एजेंसी की एक सीनियर महिला बॉस—जो अपने तेज़-तर्रार फैसलों और अंदरूनी नेटवर्किंग के लिए जानी जाती थीं—ने उसे अपने केबिन में बुलाया। बातचीत सतही तौर पर एक नए प्रोजेक्ट पर चर्चा से शुरू हुई, लेकिन जल्दी ही असल मुद्दे पर आ गई। उन्होंने लगभग कैज़ुअल लहजे में कहा, “रिया, तुम्हारे पास बहुत टैलेंट है, और इस कंपनी में तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल है… बशर्ते तुम सही लोगों के साथ जुड़ो।” रिया ने कुछ समझते हुए भी अनजान बनने की कोशिश की, तो बॉस ने सीधे कहा, “देखो, अर्णव अच्छा क्रिएटिव डायरेक्टर है, लेकिन मैनेजमेंट में उसके बारे में बातें हो रही हैं। अगर तुम उसके साथ ज़्यादा नज़र आईं, तो लोग तुम्हारे प्रोफेशनल जजमेंट पर सवाल उठा सकते हैं।” यह सुनकर रिया के भीतर गुस्सा और असहजता एक साथ उमड़ आई। उसे यह एहसास चुभा कि यहां उसकी क्रिएटिविटी से ज्यादा मायने ‘किसके साथ दिखती है’ यह रखता है। वह बिना किसी बहस के वहां से निकल आई, लेकिन अंदर कुछ टूट-सा गया था—न सिर्फ़ सिस्टम पर भरोसा, बल्कि उस खुलेपन पर भी, जिससे वह अब तक अरब के साथ काम कर पाती थी।
दिनों तक ऑफिस में उनकी बातचीत न्यूनतम हो गई, और वह भी सिर्फ़ जरूरी काम तक सीमित। अरब समझ रहा था कि रिया पर दबाव है, और शायद वह खुद को इस समय उससे दूर रखकर सुरक्षित महसूस कर रही है। लेकिन यह दूरी दोनों के लिए आसान नहीं थी। एक तरफ, अरब अपनी नाकामी और अन्याय के अहसास को निगलते हुए अपने प्रोजेक्ट्स पर ध्यान देने की कोशिश कर रहा था; दूसरी तरफ, रिया खुद को यह समझा रही थी कि फिलहाल यह दूरी ‘सही रणनीति’ है। मगर हर बार जब वे कॉरिडोर में आमने-सामने आते, या मीटिंग में एक-दूसरे की बात सुनते, तो आंखों में वही पुराना अंडरकरंट झलक जाता—एक ऐसा जुड़ाव, जिसे कोई लिस्ट, कोई चेतावनी, या कोई पॉलिटिक्स खत्म नहीं कर पा रहा था। बाहर से, एजेंसी अपनी तेज़ रफ्तार में चलती रही—डेडलाइन, पिचेज़, और ऑफिस गॉसिप के साथ—but उनके भीतर, यह महीना दोनों के लिए चुपचाप लड़ा गया एक निजी युद्ध था।
८
तेज़ बारिश की बौछारों से मुंबई की सड़कें चमक रही थीं, पानी के छींटे फुटपाथ से उछलकर राहगीरों को भिगो रहे थे। अर्णव छतरी के बिना ही ऑफिस बिल्डिंग से बाहर निकला था, उसके बाल और शर्ट पूरी तरह भीग चुके थे, लेकिन उसके चेहरे पर हल्की-सी झुंझलाहट थी। रिया पहले से ही गेट के पास खड़ी थी, हाथ में छतरी, लेकिन उसके कपड़े भी बारिश की तेज़ धार से आधे भीग चुके थे। दोनों की नज़रें मिलीं, और एक पल के लिए चारों ओर का शोर—बारिश की आवाज़, हॉर्न, लोगों की चिल्लाहट—सब धुंधला सा पड़ गया। रिया ने ठंडी, लेकिन काँपती आवाज़ में कहा, “तुमसे बात करनी है… अभी।” अर्णव ने पहले हिचकिचाया, लेकिन फिर उसने पास आकर कहा, “बोलो।” पानी की बूंदें उनके चेहरों से लुढ़क रही थीं, और इस बरसाती शाम में पुराने गिले-शिकवे, अनकही बातें, सब सतह पर आने लगे।
रिया ने गहरी सांस लेते हुए शुरू किया, “तुम सोचते हो कि मैं दूर हो रही हूँ, लेकिन तुम्हें अंदाज़ा भी है कि क्यों? ऑफिस में जो बातें फैल रही हैं, लोग कैसे देख रहे हैं हमें… मुझे अपने करियर की चिंता करनी पड़ रही है, अर्णव। लेकिन ये सिर्फ़ अफवाहों की बात नहीं है… मैं ये भी जानना चाहती हूँ कि हमारे बीच क्या है। क्या ये सिर्फ़ एक प्रोफेशनल पार्टनरशिप है? या फिर…” उसकी आवाज़ धीमी पड़ गई, जैसे वह खुद अपने सवाल से डर रही हो। अर्णव ने नजरें चुराईं, लेकिन फिर रिया की आँखों में देखा—भीगी हुई, उलझी हुई, पर सवालों से भरी। उसने कहा, “रिया, मैं भी खुद से यही पूछ रहा हूँ। हम दोनों जानते हैं कि जो महसूस होता है, वो बस काम का रिश्ता नहीं है… लेकिन कब से ये सब बदल गया, मुझे भी नहीं पता।” हवा में भीगती बारिश की खुशबू और उनके बीच की खामोशी, दोनों की धड़कनों को और तेज़ कर रही थी।
बारिश और तेज़ हो गई थी, जैसे आसमान उनकी बातचीत का गवाह बनना चाहता हो। अर्णव ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “शायद सच ये है कि मैं तुम्हारे बिना इस एजेंसी में, इस शहर में, अपने दिन की शुरुआत सोच भी नहीं सकता।” रिया का चेहरा पल भर के लिए नरम पड़ा, लेकिन फिर उसने धीमे से कहा, “तो फिर हमें ये तय करना होगा, अर्णव… कि हम इस एहसास के साथ क्या करने वाले हैं।” उसके शब्दों में चुनौती भी थी और उम्मीद भी। वे दोनों वहीं, फुटपाथ के किनारे, बारिश की चादर के नीचे खड़े रहे—न कोई हां, न कोई ना, बस एक अनकहा वादा कि आगे का रास्ता आसान नहीं होगा, लेकिन शायद साथ होने से थोड़ी हिम्मत मिल जाएगी। बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी, और शायद उनके दिलों के अंदर भी कुछ वैसा ही था—एक अनवरत बहाव, जिसे रोका नहीं जा सकता था।
९
अगली सुबह पिच मीटिंग का दिन था, और एजेंसी में सभी का तनाव साफ़ झलक रहा था। बाहर आसमान में बादल घिर चुके थे, मानो शहर भी इस दिन को किसी इम्तिहान की तरह महसूस कर रहा हो। रिया अपने फाइनल नोट्स प्रिंट करवा रही थी, तभी अर्णव के फोन पर कॉल आई — वह बुखार और तेज़ खांसी से जूझ रहा था, और डॉक्टर ने उसे आराम करने की सलाह दी थी। यह सुनकर रिया के भीतर घबराहट का एक तेज़ झटका लगा; इतने हफ्तों की तैयारी के बाद, यह पिच दोनों की टीमवर्क का नतीजा थी। लेकिन उसने खुद को संभाला, गहरी सांस ली और खुद से कहा, “अगर मैं यह अकेले कर सकती हूँ, तो कहीं न कहीं उसका एक हिस्सा मेरे साथ है।” छतरी लेकर वह मीटिंग वेन्यू के लिए निकली, लेकिन हवा और बारिश ने कुछ ही मिनटों में उसे तोड़-मरोड़ कर बेकार कर दिया। भीगी हुई, ठंडी हवा से जूझते हुए, वह खुद से वादा कर रही थी कि अर्णव के भरोसे को वह टूटने नहीं देगी।
वेन्यू पर पहुंचते ही रिया ने अपने भीगे बालों और गीले कपड़ों को नजरअंदाज़ करते हुए कॉन्फ़्रेंस रूम में कदम रखा। क्लाइंट्स की नज़रों में एक पल के लिए हैरानी थी, लेकिन जैसे ही रिया ने बोलना शुरू किया, उसकी आवाज़ में एक ऐसा आत्मविश्वास और जुनून था, जो शायद वह खुद भी पहले नहीं जानती थी। स्लाइड्स बदलते हुए, उसने हर उस पॉइंट को बारीकी से पेश किया, जिस पर वह और अर्णव देर रात तक बहस करते और सुधार करते थे। बीच-बीच में उसकी नज़रें अनजाने में उस खाली कुर्सी पर टिक जातीं, जहां अर्णव को होना चाहिए था, लेकिन यह खालीपन उसे और मजबूत बना रहा था। सवाल-जवाब के दौर में भी उसने संयम नहीं खोया, बल्कि हर चुनौतीपूर्ण सवाल को एक मौके की तरह लिया। पिच खत्म होते ही, कमरे में कुछ पलों का सन्नाटा था, फिर तालियों की गूंज ने उसकी थकान को पल भर में मिटा दिया। क्लाइंट ने मुस्कुराते हुए हाथ मिलाया और साफ़ शब्दों में कहा, “We’d love to work with you.”
एजेंसी लौटते समय बारिश थम चुकी थी, लेकिन उसके भीतर की बेचैनी बढ़ रही थी। जैसे ही वह ऑफिस में दाखिल हुई, पूरी टीम ने उसका स्वागत तालियों और मुस्कान के साथ किया। रिया ने तुरंत अर्णव को कॉल किया, उसकी आवाज़ में हल्की सी थकान और राहत थी — “पिच जीत गए।” फोन के उस पार कुछ पल की चुप्पी के बाद अर्णव की धीमी, भावुक हंसी सुनाई दी, जिसमें गर्व और अपनापन दोनों घुले थे। “मुझे पता था तुम कर लोगी,” उसने कहा, और रिया को महसूस हुआ कि उसकी असली ताकत सिर्फ उसकी तैयारी या शब्दों में नहीं, बल्कि उस अदृश्य साझेदारी में है जो उनके बीच बुन चुकी थी। टूटी हुई छतरी भले बारिश से उसे बचा न सकी हो, लेकिन अर्णव का साथ—चाहे वह दूर से ही क्यों न हो—उसके हर इम्तिहान में उसे संभालने के लिए काफी था। उस शाम, रिया ने समझ लिया कि उनकी जीत सिर्फ एक प्रोजेक्ट की नहीं, बल्कि उस बंधन की थी, जो किसी भी गुटबाज़ी, दूरी या बीमारी से नहीं टूट सकता।
१०
शाम ढल रही थी और पूरे मुंबई पर बादलों की चादर तनी हुई थी। ऑफिस का दिन खत्म हो चुका था, लेकिन अर्णव और रिया ऊपर की छत पर खड़े थे—जहां से पूरे शहर की रोशनी बारिश की बूंदों में झिलमिला रही थी। सीज़न की आखिरी बारिश थी, और आसमान जैसे विदाई के गीत गा रहा था। हवा में मिट्टी की ताज़ा खुशबू घुली हुई थी, जो दोनों को एक अजीब-सी शांति दे रही थी। अर्णव ने हाथ जेब में डालकर खड़ा-खड़ा बस रिया को देखा, जो बालों को पीछे करती हुई बारिश का सामना कर रही थी। उनकी नज़रें मिलीं, लेकिन इस बार उनमें कोई अनकही दूरी नहीं थी—बल्कि एक साफ़-सुथरा यकीन था। उन्होंने पिछले कुछ हफ़्तों के सारे उतार-चढ़ाव, नाराज़गियां और अनकही बातें पीछे छोड़ दी थीं। रिया के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, जैसे उसने अपने मन में कुछ तय कर लिया हो। “तो ये फाइनल है,” उसने बारिश की आवाज़ में धीरे से कहा, “हम साथ रहेंगे… लेकिन अपना करियर भी बचाएंगे।” अर्णव ने बिना कुछ कहे बस सिर हिलाया, उसकी आंखों में वो भरोसा था, जो शब्दों से कहीं ज्यादा ताकतवर था।
बारिश तेज हो चुकी थी, लेकिन कोई भी नीचे जाने का नाम नहीं ले रहा था। पानी की ठंडी बूंदें दोनों के कपड़ों को भिगो रही थीं, फिर भी वो जैसे उसी पल में जमे हुए थे। अर्णव ने हल्के से रिया का हाथ थाम लिया—पहली बार इतने खुले तौर पर, बिना किसी हिचकिचाहट के। दोनों जानते थे कि आगे भी मुश्किलें आएंगी, अफवाहें फैलेंगी, लोगों की बातें सुननी पड़ेंगी, लेकिन अब वो दोनों एक टीम थे—सिर्फ़ प्रोफेशनल पार्टनर्स नहीं, बल्कि लाइफ पार्टनर्स भी। रिया ने एक गहरी सांस ली, जैसे बारिश की खुशबू को अपने अंदर उतार रही हो। उसने महसूस किया कि उनके बीच का रिश्ता किसी डेडलाइन या मीटिंग पर निर्भर नहीं था—ये कुछ गहरा था, जो वक्त और मौसम के साथ भी नहीं मिट सकता था। अर्णव ने हंसते हुए कहा, “लगता है मिट्टी भी हमारे नए सफ़र का वेलकम कर रही है।” रिया ने उसकी तरफ देखा और जवाब दिया, “और ये सफ़र… अब रुकेगा नहीं।”
नीचे सड़क पर गाड़ियां हॉर्न बजा रही थीं, लोग भागते हुए छतरियां संभाल रहे थे, लेकिन छत पर खड़े इन दो लोगों के लिए बाकी दुनिया जैसे रुक गई थी। बारिश की महक उनके चारों तरफ़ फैली हुई थी—वो महक, जो बचपन की याद दिलाती है, जो किसी पुराने रिश्ते को ताज़ा कर देती है, और जो हर नयी शुरुआत का संकेत देती है। दोनों ने महसूस किया कि उनकी कहानी अब सिर्फ़ बारिश की वजह से खूबसूरत नहीं थी, बल्कि इसलिए थी क्योंकि उन्होंने एक-दूसरे को चुन लिया था—हर मौसम, हर हाल में। अर्णव ने रिया के कंधे पर हाथ रखा और दोनों ने शहर की तरफ देखा, जो बारिश में नहाकर चमक रहा था। इस चमक में उन्हें अपना आने वाला कल दिख रहा था—एक कल, जिसमें न कोई डर था, न कोई शक, सिर्फ़ भरोसा और साथ का वादा। और फिर, बिना कुछ कहे, उन्होंने बस बारिश को अपने ऊपर गिरने दिया, जैसे वो उनके नए सफ़र की पहली आशीर्वाद की बूंदें हों।
समाप्त